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Saturday, June 8, 2013

PREMLATA AGRAWAL - प्रेमलता अग्रवाल - दुनिया के हर शिखर पर विजय


 PREMLATA AGRAWAL - प्रेमलता अग्रवाल - दुनिया के हर शिखर पर विजय 


बेटियों के लिए वह गट्सी मॉम (साहसी मां) हैं, तो पति के लिए साधारण जीवन जीने वाली असाधारण महिला, लेकिन समर्थक उन्हें जमशेदपुर की माउंटिनियर मॉम (पर्वतारोही मां) कहना ज्यादा पसंद करते हैं। वाकई जिस समाज में 40 वर्ष पार कर चुकी महिला अमूमन ′बुजुर्ग′ मानी जाती है और उनकी निर्भरता घर के पुरुष सदस्यों पर बढ़ जाती है, वहां उम्र के पचास वसंत देख चुकी प्रेमलता अग्रवाल अगर सेवन समिट्स (दुनिया के सातों महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटियां) की फतह का इतिहास रचती हैं, तो उनकी उपलब्धि पर इतराना स्वाभाविक है। यह सफलता इसलिए भी खास है, क्योंकि इससे पहले कोई भारतीय महिला यह उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई थी। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली भारत की सबसे उम्रदराज महिला का रिकॉर्ड भी प्रेमलता के ही नाम है।

पद्मश्री से सम्मानित प्रेमलता को पर्वतों से प्यार बचपन में ही हो गया था। तब दार्जिलिंग की पहाड़ी वादियां उन्हें खूब लुभाती थीं और वह अपने छोटे कदमों से पहाड़ नापने निकल पड़ती थीं। पर जमशेदपुर का सपाट मैदान ससुराल क्या बना, पहाड़ की गोद में खेलने की आदतें पीछे छूट गईं। अलबत्ता करीब दस वर्ष पूर्व घर-बच्चों की जिम्मेदारी घटनी शुरू हुई, तो इच्छाएं फिर से जीवित हो उठीं। पर्वतारोही बनने के उनके फैसले को पत्रकार पति और ससुरालवालों ने जरूर हाथोंहाथ लिया, फिर भी बढ़ती उम्र उनकी राह में रुकावट-जैसी थी। एवरेस्ट फतह को याद करते हुए प्रेमलता ने एक इंटरव्यू में कहा है, ′जब मैं बेस कैंप पहुंची, तो मिशन का नेतृत्व कर रहे शेरपा का पहला वाक्य यही था कि तुम इस मिशन पर क्यों आई हो? तुम चोटी तक नहीं पहुंच पाओगी।′ लेकिन जैसा कि पिता रामवतार गर्ग कहते हैं, उनकी बेटी जो ठान लेती है, उसे जरूर पूरा करती है। यही जिद प्रेमलता को विश्व की सबसे ऊंची चोटी तक ले गई, जबकि राह में मौसम ने तो रुकावटें डाली ही, दस्तानों के गुम होने से भी दिक्कतें आईं।

बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में प्रेमलता ने आज दुनिया नाप ली है, पर उन्हें खुद से बड़ी उपलब्धि अरुणिमा की लग रही है, जिसने विकलांगता को पीछे छोड़ते हुए एवरेस्ट की सफल चढ़ाई की। अब उनका सपना अपनी दो अन्य जिम्मेदारियों को पूरा करना है-पहला, महिलाओं, खासकर आदिवासी महिलाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देना, और दूसरा, छोटी बेटी की शादी कर मां का कर्तव्य पूरा करना।

एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए जब वह बेस कैंप पहुंची, तो उन्हें यही सुनना पड़ा कि बढ़ती उम्र के कारण वह चोटी तक नहीं पहुंच पाएंगी।

साभार : अमरउजाला

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