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Saturday, January 17, 2015

SETH JAMNALAL BAJAJ - जमनालाल बजाज




अगर नि:स्वार्थ सामाजिक सेवा और उद्यमिता का सुंदर प्रतीक देखना हो, तो जमनालाल बजाज के जीवन को देखा जा सकता है। आखिर जिस व्यक्ति ने महात्मा गांधी को अपने पिता के रूप में देखा हो और मां आनंदमयी में मां का वात्सल्य पाया हो, उसके जीवन को अनूठा तो होना ही था। गीता में कर्म और सबके कल्याण का जो मनोरथ है, उसे अपना संबल बनाकर वह एक तरफ अपने उद्यम को सफल बनाते गए, दूसरी ओर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक उत्थान के लिए अलख जगाते हुए दिखे। मन में जब तक आध्यात्मिकता का पुट न हो और यह मन जब तक दूसरों के लिए द्रवित न होता हो, तब तक वे सब काम संभव नहीं हो सकते, जिनके लिए जमनालाल बजाज जाने गए।

जमनालाल बजाज ने एक उद्योग समूह को स्थापित कर उसका परचम लहराया। वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे और आजादी के मतवालों के लिए उनका हृदय खुला था। लेकिन यह उनका सामान्य परिचय ही होगा। वास्तव में तब स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे देश में मानवता का अद्भुत संस्कार जगा था। समाज सेवा और मानवता का पाठ तब हर कोई याद कर रहा था। ऐसे में उनकी छवि का स्मरण इसलिए होता है कि जहां लोग महात्मा गांधी के कहने पर चलते रहे, वहां उन्होंने तो बापू को पूरा ही अपना लिया। इस रिश्ते को कई रूपों में देखा गया-एक पिता और उसके दत्तक पुत्र की तरह, लाठी पकड़कर भारत की आजादी का बिगुल बजाने वाले नेता और उनके सच्चे अनुयायी की तरह, और भारत से गरीबी और अशिक्षा का अभिशाप मिटाने का संकल्प लेकर चलने वाले संत और उनके अनुगामी की तरह। जिसने भी उन्हें पाया, महात्मा की साया में ही पाया। गांधी जी की लड़ाई केवल आजादी पाने तक सीमित नहीं थी। वह जिस तरह का भारत चाहते थे, उसमें ऐसे सच्चे अनुयायी और धुनी व्यक्तियों की सतत जरूरत थी।

जमनालाल बजाज ने महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया और समाज के विकास की नींव डाली। उद्यमशीलता उन्हें विरासत में मिली थी। हालांकि वह एक कारोबारी दंपती का गोद लिया हुआ पुत्र थे। बचपन के गहरे संस्कार कहिए या घर का परिवेश, उनके अंदर अध्यात्मिकता बनी रही। बापू के संपर्क में तो अनेक लोग आए, लेकिन बिरले ही थे, जो उन्हें इस रूप में समझ पाए। उन्होंने गांधीजी के व्यक्तित्व और गुणों को पूरी तरह समझा। फिर एक बार वह नतमस्तक हुए, तो उनके लिए समर्पित ही हो गए। गांधी का दर्शन समझने के लिए जटिल नहीं होना पड़ता। यह अहिंसा और सत्याग्रह का पाठ है। यही हमें सविनय अवज्ञा के बारे में बताता है। कोई कितना भी कष्ट दे, आपको नाराज नहीं होना है। लेकिन अपनी बात पूरी निडरता से कहनी है। एक सत्याग्रही में इतनी शक्ति कहां से आएगी? बापू ने इसके लिए अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य जैसे ग्यारह व्रत बताए थे। जमनालाल बजाज ने इन व्रतों को अपनाने की सच्ची कोशिश की। वही कहीं डिगे नहीं। इसलिए इन दोनों में एक सौहार्द का रिश्ता बन गया। अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी सामाजिक सेवाओं को देखते हुए मजिस्ट्रेट और रायबहादुर की उपाधियों से सम्मानित किया। पर देश की खातिर उन्होंने विनम्रता से ये उपाधियां लौटा दीं। वह उस समय की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ते रहे।

कोई संदेश देने से पहले उसका अनुकरण करने की गांधी जी की सीख ही थी कि जमनालाल जी ने घर के पारिवारिक लक्ष्मी नारायण मंदिर में कमजोर जातियों का प्रवेश कराया। उस समय की परिस्थितियों में यह साहसिक कदम था। गो सेवा उनके जीवन का ध्येय बन गया। उन्होंने कुटीर उद्योग और खादी के महत्व को समझा। मातृभूमि के प्रति गहरे लगाव के कारण ही उन्होंने प्रजामंडल की स्थापना की थी। एक समय ऐसा भी आया, जब अंग्रेजों से प्रभावित जयपुर नरेश ने उन्हें जन्मभूमि आने से रोका, तो उन्होंने सविनय अवज्ञा का रास्ता अपनाया। तब प्रजा ने उनका साथ दिया। नतीजतन महाराजा को उन्हें रिहा करना पड़ा। महात्मा गांधी जिस तरह देश को बदलना चाहते थे, जमनालाल बजाज ने उसे पूरा करने में कोई कमी नहीं होने दी। यही कारण था कि बापू ने जब देश में चीनी उद्यम का सुंदर भविष्य देखा, तो जमनालाल जी ने मिल खड़ी कर दी। बात चाहे हिंदी के उत्थान की हो या सामाजिक विषमता दूर करने की, वह हर कदम पर महात्मा गांधी के विचारों से अभिभूत रहे। कारोबार में ट्रस्टी के महत्व को उन्होंने स्वीकारा। गांधीजी ने कहा था कि कारोबारी किसी उद्यम में पूंजी लगाता है, लेकिन उसमें श्रम का भी महत्व है। इसी धारणा पर बजाज समूह ट्रस्टी के नियमों का पालन करता रहा। यहीं से समाज की अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान करने वालों को प्रोत्साहन भी दिया जाता रहा। गांधीजी के रचनात्मक कर्म को समझना हो, तो बजाज समूह की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों को देखा जा सकता है। वर्धा के आसपास जो कुछ सुंदर-सजीला नजर आता है, वह इन्हीं भावनाओं से ओतप्रोत होकर बना है। महिला शिक्षा, ग्रामोद्योग और कुष्ठ रोगियों के दुख दूर करने में इस समूह ने जिस तरह मदद की, वह खासकर याद करने लायक है।

जमनालाल बजाज का पूरा जीवन उद्यमिता और आध्यात्मिकता का संगम है। गांधी के संपर्क में आकर उनकी दृष्टि और विकसित हुई। वह गांधीजी को पूरी तरह समझ पाए और गांधीजी ने भी उन्हें भांप लिया था। गीता के बारहवें अध्याय में एक श्लोक है, जिसका आशय यह है कि सब इंद्रियों को वश में करके, सब दशाओं में समानचित्त रहते हुए, सब प्राणियों के कल्याण में आनंद अनुभव करते हुए वे मुझको ही प्राप्त होते हैं। नए भारत और नए समाज के लिए इस पवित्र मार्ग की जरूरत हमेशा रही। आज सामाजिक विषमता का दायरा जिस तरह बढ़ता जा रहा है, कल्याणकारी प्रवृत्तियों की जैसी उपेक्षा हो रही है, जब व्यवसाय और बाजार समाज कल्याण के कार्य से विमुख होते जा रहे हों, तब जमनालाल जैसे प्रखर उद्यमी की कमी खलती है, जो अंत्योदय यानी सबसे अंतिम व्यक्ति के विकास का महत्व समझते थे। आज के भारत को फिर एक जमनालाल बजाज की जरूरत है।