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Thursday, February 2, 2017

वैश्य समाज की वैश्विक विरासत

वैश्य समाज की वैश्विक विरासत (विरासत ट्रस्ट द्वारा शोध-परियोजना) 

भारतीय समाज-व्यवस्था में वैश्य समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वैश्य समाज के अन्तर्गत अग्रवाल, माहेश्वरी, खण्डेलवाल, विजयवर्गीय, ओसवाल, जायसवाल, बरनवाल, जैन, केसरवानी, माथुरवैश्य, गहोईवैश्य, राजवंशी, रस्तोगी, रौनियार, वाष्र्णेय आदि अनेक घटक हैं। 

वैश्य समाज का प्राचीनकाल से वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अवदान रहा है। यह अवदान परम्परागत विरासत के रूप में वर्तमान वैश्विक पीढ़ी को प्राप्त हुआ है तथा भावी पीढि़यों को प्राप्त होता रहेगा।

यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत मैगस्थनीज ने वैश्य समाज की विरासत की प्रशंसा में लिखा है-‘कि देश में भरण- पोषण के प्रचुर साधन तथा उच्च जीवन-स्तर, विभिन्न कलाओं का अभूतपूर्व विकास और पूरे समाज में ईमानदारी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा प्रचुर उत्पादन वैश्यों के कारण है।' 

डाॅ. दाऊजी गुप्त वैश्य समाज की विरासत को रेखांकित करते हुए लिखते हैं- ‘वणिकों की आश्चर्यजनक प्रतिभा का प्रथम दिग्दर्शन हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त होता है। उस समय जैसे वैज्ञानिक ढंग से बसाए गए व्यवस्थित नगर आज संसार में कहीं नहीं हैं।आज के सर्वश्रेष्ठ नगर न्यूयार्क, पेरिस, लंदन आदि से हड़प्पा सभ्यता के नगर कहीं अधिक व्यवस्थित थे। ललितकला शिल्पकला और निर्यात-व्यापार पराकाष्ठा पर थे। इनकी नाप-तौल तथा दशमलव-प्रणाली अत्यन्त विकसित थी। भारतीय वणिकों ने चीन, मिश्र, यूनान, युरोप तथा दक्षिणी अमेरिका आदि देशों में जाकर न केवल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाया अपितु उन देशों की अर्थव्यवस्था को भी सुधारा। ईसा से 200 वर्ष पूर्व कम्बोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड आदि देशों में जाकर बस गए। वहाँ उनके द्वारा बनवाए गए उस काल के सैंकड़ों मन्दिर आज भी विद्यमान हैं। उसी काल में वे व्यापारी भारत से बौद्ध संस्कृति को अपने साथ वहाँ ले गए। वणिकों ने भारतीय धर्म, दर्शन और विज्ञान से सम्बन्धित लाखों ग्रन्थों का अनुवाद कराया जो आज भी वहाँ उपलब्ध हैं।'

वैश्य समाज की समाजसेवा प्रवृत्ति की प्रशंसा में राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने दिल्ली में 22 फरवरी 2009 को भाषण के दौरान कहा था कि ‘इस समाज का प्रेम और सद्भाव देश को मंदी के दौर से उबारने में सक्षम है। समाज लोगों की मदद में जुटा हुआ है। सामान्य हैसियत वाला वैश्य बन्धु भी जनसेवा में पीछे नहीं है। ऐसा समाज ही देश को सुदृढ बनाने की क्षमता रखता है।'

राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने 2 जनवरी 2009 को हैदराबाद में विचार प्रकट करते हुए कहा था कि ‘वैश्य समाज ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया । स्वतन्त्रता के बाद भी राष्ट्र निर्माण में वैश्य समाज की भूमिका सराहनीय रही। वैश्य समाज ने अपने वाणिज्यिक ज्ञान और व्यापारिक निपुणता का लोहा देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में मनवाया है। वैश्य समाज ने देश को बहुत से चिकित्सक, इंजीनियर, वैज्ञानिक समाजसेवी आदि दिए हैं तथा आर्थिक प्रगति और विकास कार्य में हमेशा भरपूर योगदान किया है।

22 जुलाई 1998 को भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकान्त ने वैश्य समुदाय को समाज का महत्त्वपूर्ण घटक बताते हुए कहा था - ‘भारत का सांस्कृतिक इतिहास बताता है कि व्यापार संस्कृति के प्रसार में भी बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। भारत के गणित खगोलशास्त्र आदि का ज्ञान धर्म-प्रचारकों के अलावा व्यापारियों द्वारा ही अरब और मध्य- एशिया के देशों में पहुँचा था और वहाँ से फिर यूरोप में। वैश्य प्राचीन समय से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ रहे हैं।' 

किन्तु वैश्य समाज की महनीय विरासत को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला। इतिहासकारों की संकुचित प्रकृति ही इसका कारण है। किसी देश व समाज का समग्र इतिवृत्त ही इतिहास का विषय होता है, पर प्रायः राजवंशों के उत्थान-पतन के साथ ही इतिहास के आरोह-अवरोह का संगीत चलता रहा है। राजवंशों का इतिहास दरबारी इतिहासकारों पर निर्भर रहा। ऐसे इतिहासकार पूर्ण सत्य का दर्शन न करा सके, फलस्वरूप अपूर्ण इतिहास केवल राजाओं के जन्म, राज्यारोहण, मृत्यु, युद्ध और सुधार के कार्यों में ही चक्कर काटता रहा।

भारतीय समाज की संरचना अनेक जातीय समाजों के योग से हुई है। प्रत्येक जातीय समाज की विशिष्ट मौलिक सांस्कृतिक-विरासत एवं राष्ट्रीय अवदान है। सभी जातीय समाजों के समग्र-विकास में ही भारतीय समाज का समग्र विकास निहित है। प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक दादाभाई नौरोजी ने कहा है कि सब जातीय समाज संगठित होकर कुरीति-निवारण, शिक्षा प्रसार आदि सामाजिक कार्यों में संलग्न रहें तो भारत एक सशक्त और अखण्ड राष्ट्र बना रहेगा- 

“If every caste and community formed its individual association and sincerely worked to eradicate social evils,to remove illiteracy and to spread education, aal the communities will ere long become national minded. Unity in various communities will automatically lead to converting All india communities without distinction of caste, creed and colour into one strong united Nation.” 

भारत की संविधान परिषद् के सदस्य डाॅ. सच्चिदानन्द सिन्हा ने जातीय समाजों की राष्ट्रीय विकास में भूमिका की सराहना करते हुए कहा था कि कोई समाज अपने अंगों की प्रगति से ही उत्कर्ष के शिखर पर पहुँचता है-

Societies advance as their component parts advance. As long Hindu Society was divided into castes, whose rules of behaviour of the progress were accepted by their members,social advance had to be a function of the progress made by each caste component. Before there can be a true spirit of nationality in our country each component part of the people must realise that its individualisation has realised a point in self-expression when it is desirable in the interest of further advanceor progress to merge its of with other groups or communities.

अतः वैश्य समाज की वैश्विक विरासत को उजागर करने के लिए अनुसन्धान की महती आवश्यकता है। इतिहास के शोधाश्रित पुनर्लेखन से ही पूर्ण सत्य प्रकाशित हो सकेगा तथा भावी पीढियाँ वास्तविक इतिहास को जान सकेंगी। पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा का यह कथन सर्वथा यथार्थ है- ‘हमारे राष्ट्र में जितने भी समाज हैं उनका गहराई और विस्तार से अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि उनकी सांस्कृतिक विरासत के तत्त्वों को आने वाली पीढी के सामने रखा जा सके।

साभार : 
virasattrustsikar.blogspot.in/2014/07/blog-post.html

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