Pages

Saturday, April 22, 2017

तो इसलिए अग्रवाल करते है मांसाहार से परहेज, जानिए क्यों है अग्रवालों में एक आधी गोत्र ?


वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत वैश्य समुदाय प्रमुख है जिसमे आज अग्रवाल समुदाय को कौन नहीं जनता, यह अपने व्यापर करने कि क्षमता के लिए प्रसिद्ध होते है, लेकिन अगर आप खुद अग्रवाल है या कोई अग्रवाल आपका दोस्त है तो आप यह भी जानते होंगे कि ज्यादातर अग्रवाल मांसाहार से परहेज करते है, यहाँ पर यह स्पष्ट करना जरूरी होता है कि अग्रवाल एक टाइटल है जो महाराजा अग्रसेन के वंशजो के लिए प्रयुक्त किया जाता है, वैसे इसमें कुल 18 गोत्र होती है जो कि क्रमशः गर्ग, बंसल, बिंदल, भंदल, धारण, ऐरण, गोयल, गोयन, जिंदल, सिंघल, कंसल, कुच्छल, मधुकुल, मित्तल, मंगल, नांगल, तायल एवं टिंगल, लेकिन आप जब भी किसी जानकार अग्रवाल से पूछेंगे तो वह अपनी कुल गोत्र 17.5 बताएँगे, और इसी के पीछे छुपा है वह राज जो आपको बताएगा कि क्यों ज्यादातर अग्रवाल मांसाहार से परहेज करते है.

अग्रवाल समुदाय का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, यह महाराजा अग्रसेन के वंशज माने जाते थे, जो द्वापर युग के अंतिम चरण में अग्रोहा के राजा थे, वैसे तो यह क्षत्रिय थे एवं प्रभु राम भगवान की 34वीं पीढ़ी माने जाते है इस हिसाब से वह सूर्यवंशी राजा थे लेकिन महामाया लक्ष्मी जी ने उन्हें क्षत्रिय वर्ण त्याग कर वैश्य बनने की सलाह दी थी क्योंकि वह बहुत उदार और दयालु एवं अहिंसक प्रवर्ती के थे, वैसे तो उन्होंने रजा बल्लभसेन के यहाँ जन्म लिया था जो प्रतापपुर के राजा थे लेकिन जब माता लक्ष्मी ने उन्हें वैश्य बनने के लिए कहा तो उन्होंने अपनी राजधानी नई जगह ढूंढना प्रारंभ किया वह एक ऐसी जगह पर पहुचे जहाँ हिरन एवं शेर के बच्चे आपस में खेल रहे थे उन्हें यह भूमि बहुत पसंद आई और वहां उन्होंने अपनी राजधानी बने इस जगह का नाम अग्रसेन के नाम पर ही अग्रोहा रखा गया, महाराजा अग्रसेन का जन्म रानी माधवी से हुआ था एवं उनसे उन्हें 18 पुत्र रत्न प्राप्त हुए, कालांतर में महाराजा अग्रसेन ने अपने इन पुत्रो से 18 गोत्रो की स्थापना करवाई एवं जिस ऋषि ने एक गोत्र के लिए यज्ञ किया उसी ऋषि के नाम पर उस गोत्र का नाम पढ़ गया जैसे गर्ग ऋषि से गर्ग गोत्र, कश्यप ऋषि से कंसल गोत्र, वात्सल्य ऋषि से बंसल गोत्र आदि, कहा जाता है कि जब सभी गोत्र की स्थापना अच्छे से हो गयी तो 18वीं गोत्र में पशु बलि के लिए एक अश्व लाया गया महाराजा अग्रसेन ने देखा कि उसे मारा जाने वाला है, यह देख कर अहिंसक महाराजा अग्रसेन का दिल पिघल गया एवं उन्होंने बलि न देने का आदेश दिया इस पर ऋषिगण बोले कि अगर इसकी बलि नहीं दी गयी तो यह गोत्र आधी मानी जाएगी, ऐसा सुनकर महाराजा अग्रसेन बोले कि भले ही यह गोत्र आधी मानी जाए लेकिन में आदेश देता हूँ कि मेरा कोई भी वंशज न तो जीव हत्या करेगा एवं न ही जीव का भक्षण करेगा.

इसी के बाद से महाराजा अग्रसेन ने अपने वंशजो को शाकाहारी रहने का सन्देश दिया था जो आज भी ज्यादातर अग्रवाल निभा रहे है, लेकिन कुछ युवा आज की चकाचौंध में अपने पूर्वज की कही बाt को भूल कर मांसाहार खाते है जो सोचने का विषय है ...


साभार:amankhatima

6 comments:

  1. पुनर्विचार करें मुझे जहां तक पता है अग्रसेन जी की माता का नाम माधवी नहीं था महाराजा अग्रसेन की धर्म पत्नी का नाम महारानी माधुरी था

    ReplyDelete
  2. Hm madhuri mata nagraj ki kanya thi ,isliye agarwal nago ki bhi pooja kerte h

    ReplyDelete
  3. अधूरी और वो भी गलत जानकारी। कृपया अपनी जानकारी दुरुस्त करें🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. भाई पूरी जानकारी आप दे दीजिएगा कृपया..

      Delete

हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।