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Thursday, November 16, 2017

GOPINATH SAHA - देशभक्त क्रान्तिकारी गोपीनाथ साहा


गोपीनाथ साहा का जन्म पश्चिम बंगाल में ज़िला हुगली के सरामपुर में सन् 1901 में पिता विजय कृष्ण साहा के घर में हुआ था। प्रतिष्ठित परिवार ने स्कूल की शिक्षा भी दी। परन्तु उन्होंने देशभक्ति का मार्ग चुन लिया और 1921 के असहयोग आन्दोलन में तन, मन, धन से समर्पित होकर कार्य किया। इसके बाद वे देवेन डे, हरिनारायण और ज्योशि घोष क्रान्तिकारियों के संपर्क में आकर ‘युगान्तर दल’ के सक्रिय सदस्य बन गए। उन दिनों कलकत्ता में पुलिस के डिटेक्टिव डिपार्टमेन्ट के मुखिया चार्ल्स टेगार्ट ने क्रान्तिकारियों के ख़िलाफ़ बहुत सख्ती से मोर्चा खोला हुआ था। देशभक्तों के ऊपर बहुत ज़ुल्म किया जा रहा था। टेगार्ट के सख्त रवैये के चलते बहुत से क्रान्तिकारियों को फाँसी पर लटकाया जा चुका था। बहुतेरे जेलों में सड़ रहे थे। ऐसे में ‘युगान्तर दल’ ने यह निर्णय लिया कि टेगार्ट का काम तमाम कर दिया जाए। इससे क्रान्तिकारियों का मनोबल बढ़ेगा और पुलिस का टूटेगा तथा शहीद क्रान्तिकारियों का बदला भी लिया जा सकेगा । उसको ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी गोपीनाथ साहा को दी गई। दिनाँक 12 जनवरी 1924 को चौरंगी रोड पर टेगार्ट के आने की भनक थी। घात लगाकर गोपीनाथ ने आने वाले अंग्रेज पर फॉयर किया। उनका ख़्याल था कि वह चार्ल्स टेगार्ट है। परन्तु बाद में पता चला कि मारा जाने वाला एक सिविलियन अंग्रेज था जो किसी कम्पनी में कार्य करता था। उसका नाम अर्नेस्ट डे था। लोगों ने उनका पीछा किया और गोपीनाथ साहा पकडे ग़ए। गोपीनाथ के ऊपर मुक़द्दमा दर्ज़ करके न्यायलय में केस चलाया गया। 21 जनवरी, 1924 को पेशी पर उन्होंने जज से मुख़ातिब होकर बड़ी बेबाक़ी और बहादुरी से कहा, ‘कंजूसी क्यों करते हैं, दो-चार धाराएँ और भी लगाइए’। बहुत ही साहस और दिलेरी से उन्होंने केस का सामना किया।

उच्च अदालत में पेशी पर उन्होंने कहा; मैं तो चार्ल्स टेगार्ट को ठिकाने लगाना चाहता था क्योंकि उसने देश-प्रेमी क्रान्तिकारियों को काफी तंग कर रखा था। लेकिन उसकी क़िस्मत अच्छी थी कि वह बच निकला और इस बात का दु:ख है कि एक मासूम व्यक्ति मारा गया। परन्तु मुझे विश्वास है कि कोई न कोई क्रान्तिकारी मेरी इस इच्छा को ज़रूर पूरी करेगा। अदालत ने उनके इस बयान पर 16 फरवरी को उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई। सज़ा सुनते ही वे खिलखिलाकर हँसे और बोले; मैं फाँसी की सज़ा का स्वागत करता हूँ। मेरी इच्छा है कि मेरे रक्त की प्रत्येक बूंद भारत के प्रत्येक घर में आज़ादी के बीज बोए। एक दिन आएगा जब ब्रिटिश हुक़ूमत को अपने अत्याचारी रवैये का फल भुगतना ही पड़ेगा।

1 मार्च 1924 को उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। और एक साहसी वीर देश के लिए 23 वर्ष की आयु में शहीद हो गया। फाँसी के तख्ते पर वह प्रसन्न मुद्रा में पहुँचा। काल-कोठरी से लाने से कुछ क्षण पहले ही उन्होंने अपनी माँ को पत्र लिखा; तुम मेरी माँ हो यही तुम्हारी शान है। काश! भगवान हर व्यक्ति को ऐसी माँ दे जो ऐसे साहसी सपूत को जन्म दे। गोपीनाथ साहा की बहादुरी, संकल्प, दृढ़-निश्चय और शहादत की दास्तान तब तक ज़िन्दा रहेगी जब तक संसार चलता रहेगा। हमारी आज़ादी जो उन जैसे अनगिनत शहीदों के बलिदान से मिली है, उसकी सार्थकता और औचित्य को और मज़बूत बनाएँ और देश में ‘सबसे पहले देश’ के मनोभाव के साथ सामाजिक तथा आर्थिक विषमताएँ दूर कर भारत को एक समृद्ध-शक्तिशाली देश बनाएँ। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

साभार: saadarindia.com/


Friday, November 10, 2017

SHRIPRAKASH LOHIYA - श्रीप्रकाश लोहिया

19 वर्ष की उम्र में विदेशी धरती पर शून्य से शुरुआत कर ऐसे बनाया 67,000 करोड़ का साम्राज्य


एक बहुमुखी व्यक्तित्व वाले प्रवासी भारतीय ने भारतीय उद्यमिता के उत्साह और जोश में और भी वृद्धि की है। 2017 मेें फोर्ब्स पत्रिका के प्रकाशन के वक्त 5 बिलियन डाॅलर की संपत्ति के साथ वे विश्व के 288वें धनकुबेरों की सूची में शामिल थे। मगर फोर्ब्स के ही रियल टाईम डेटा के अनुसार उनकी संपत्ति 2017 में ही 6.3 बिलियन डाॅलर हो गई। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि श्री प्रकाश लोहिया हैं, जिनकी गिनती इण्डोनेशिया के चौथे सबसे रईस इंसान के रूप में होती है।


विश्व के वृहत्तम पाॅलिस्टर निर्माता कंपनी इण्डोरामा कार्पोरेशन के प्रबंध निदेशक श्री लोहिया जब 1975 में अपने पिता मोहन लाल लोहिया के साथ इण्डोनेशिया की धरती पर अपने सपनों को पूरा करने आए थे तो उन्हें भी गुमान न था कि सफलता उनका इस कदर स्वागत करेगी। इण्डोरामा दो शब्दों के मेल से बनी है इण्डो इण्डोनेशिया को प्रतिक करता है जबकि रामा भगवान श्री राम को प्रस्तुत करता है। कंपनी तेजी से अफ्रिकी देशों में विस्तार कर रही है। हाल ही में उन्होंने नाइजिरिया में एक उर्वरक कंपनी स्थापित किया है। इण्डोरामा का लक्ष्य अफ्रिका महादेश में साल 2020 तक 2 बिलियन डाॅलर का निवेश बढ़ाकर 4.2 बिलियन डाॅलर करना है। इसी कड़ी में उन्होंने सेनेगल में सबसे बड़ा उर्वरक सयंत्र स्थापित किया है। मैक्सिको में भी उन्होंने औद्योगिक ईकाई की स्थापना की है।

कैसे हुई शुरुआत

कोलकत्ता में जन्में श्री प्रकाश लोहिया की यह यात्रा 40 साल पूर्व तब शुरु हुई थी जब 19 वर्ष की अवस्था में उन्होंने इण्डोनेशिया का रुख किया। उन्होंने साल 1971 में वाणिज्य की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। साल 1973 में पिता संग इण्डोनेशिया की धरती पर कदम रखा। नए देश में नई संभावनाओं को देखते हुए उनके पिता ने एक रासायनिक वस्त्र उद्योग की आधारशिला रखी। शुरुआत के कुछ वर्षों तक उन्होंने इंडस्ट्री को चलाया और 1976 में सूत निर्माण की प्रक्रिया शुरू की। इण्डोरामा सिंथेटिकस के बैनर तले उन्होंने अपने प्रोडक्ट्स को बाज़ार में उतारा।

दरअसल इस फर्म की शुरुआत एक सूत कताई ईकाई की रूप में हुई थी और समय के साथ-साथ कंपनी इण्डोनेशिया की सबसे बड़ी टेक्सटाईल कंपनी बन गई। उन्होंने अपनी उत्पादन ईकाई का विस्तार इण्डोनेशिया के बाद उजबेकिस्तान और थाईलैण्ड तक पहुँचाया। 1980 के दशक के अंत में मोहन लाल लोहिया ने कंपनी को भविष्य में परिवार के विवादों से बचाने के लिए अपने तीन बेटों के बीच विभाजित कर दिया।

अधिग्रहण के जरिए नए क्षेत्रों में बढ़ाया कारोबार


साल 1990 में कंपनी के कार्यक्षेत्र में विविधता करते हुए श्री प्रकाश ने पाॅलीथिन और टेराफेटलेट का उत्पादन शुरु किया जिससे कोक और पेेप्सी जैसे पेयपदार्थ का बोतलबंद किया जाता है। 2006 में इण्डोरामा सिन्थेटिक्स अफ्रिकी देशों में निवेश करना शुरु किया। उन्होंने नाइजिरिया की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एलमा पेट्रोकैमिक्ल्स का 225 मिलियन डाॅलर में अधिग्रहण कर अपना दायरा बढ़ाया। अपनी सफलता के रथ पर सवार श्री प्रकाश लोहिया की कंपनी इण्डोरामा कार्पोरेशन पेट्रोकैमिकल्स में 2 बिलियन डाॅलर के निवेश के साथ पश्चिमी अफ्रिकी देशों में इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विदेशी निवेशक बन गयी।

64 की उम्र में भी वह सक्रिय रुप से अपनी कंपनी का संचालन देखते हैं। 57 फैक्ट्रीयों के साथ वर्तमान में 21 देशों में फैली इस कंपनी का सालाना टर्नओवर 10 बिलियन डाॅलर (67,000 करोड़ रूपये) के करीब है। हाल ही में उन्होंने ड्यूपाॅन्ट के साथ भी साझा व्यपार के समझौते किए हैं।

प्रकाश लोहिया ने कंपनी का भाग अपने बेटे अमित को सौंप दिया है। जो अभी सिंगापुर में रहते हैं। परंतु नाइजिरिया ईकाई का संचालन वे स्वयं करते हैं। वार्टन स्कूल आॅफ बिजनेस से ग्रेजुएट अमित को फोब्स पत्रिका ने ‘प्रिंस आॅफ पाॅलिस्टर’ कहा है। श्री प्रकाश के छोटे भाई आलोक भी इण्डोनेशिया के रईसों में एक है।

सामाजिक कार्यों में भी दिल खोल कर लेते हैं हिस्सा

श्री प्रकाश लोहिया इण्डोनेशिया के सामाजिक क्षेत्र के लिए भी बहुत कुछ कर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण के क्षेत्र में भी उन्होंने काफी योगदान दिया है। कई स्कूल, अस्पताल और स्वास्थ्य केन्द्र खोलने में आर्थिक सहायता प्रदान की है।

श्री लोहिया कला के भी एक दिलेर कद्रदान हैं। उनके पास दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह भी है जिसमे 16वीं सदी का ‘बाईबल’ और 18वीं सदी का लिखा गया ‘कुरान’ है। उनके पास विश्व का दूसरा सबसे बड़ा लिथोग्राफ का संग्रह है। जिनमें कुछ तो 17वीं सदी के हैं। उन्होंने 75 मिलियन डाॅलर से 245 वर्ष पुराने ‘मेफेयर मेंशन’ का जिर्णोद्धार कराया। इसके लिए कई इतिहासकार, कलाकार और शिल्पकारों को लगाया गया। उनके इस कार्य के लिए उन्हें ‘मेफेयर का महाराज’ भी कहा जाता है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2012 में उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान से भी नवाजा गया था।

एक प्रवासी भारतीय द्वारा विदेशों में अपनी सफलता का परचम लहराना पूरे देश के लिए एक गर्व का विषय है। अपनी मेहनत और लगन से श्री प्रकाश लोहिया ने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया। उनकी कामयाबी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो किसी भी उद्यमिता के पहल से घबराते हैं।

साभार: 
hindi.kenfolios.com/sri-prakash-lohia-indorama-corporation/

by Amit Kumar,11/11/2017