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Saturday, December 16, 2017

GOURAV MITTAL - गौरव मित्तल

एक दिन में बदल गई इस IITian की जिंदगी, आज 160 से ज्यादा देशों में बिक रहा है इनका आइडिया

“करुणा ऐसी भाषा है जिसे बहरे भी सुन सकते हैं और अंधे देख सकते हैं।” — मार्क ट्वेन

शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति की भी कोई न कोई कमज़ोरी ज़रूर होती है, हालांकि इसे स्वीकार करने का जिगर कम ही लोगों में होता है। इसके विपरीत दिव्यांगों पर कम ध्यान दिये जाने की ज़रूरत होती है क्योंकि वे आत्मनिर्भर होते हैं और उनकी शक्तियां उनके किसी और ज्ञानेन्द्रियों पर ज्यादा तीव्रता से केंद्रित होती है। उन्हें विशेष जरूरतों वाला इस लिए कहा जाता है क्योंकि वे अपने आप किसी अलग ढंग से ख़ास होते हैं।


ऋषिकेश के गौरव मित्तल ने 2012 में जब CSR एक्टिविटी के तहत नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड (NAB) में भाग लिया तब उन्होंने यह महसूस किया कि नेत्रहीन लोगों को मदद की जरूरत है और उसी समय से उन्होंने नेत्रहीन लोगों के लिए कुछ तकनीक की जरूरत को समझा। NAB में भाग लेने से उन्हें प्रेरणा मिली और फिर Eye -D, नामक एक डिवाइस की परिकल्पना ने जन्म लिया।

2010 बैच के आईआईटी बीएचयू ग्रेजुएट गौरव हमेशा से अपने आस-पास की स्थिति के बारे में जागरूक रहते थे। उन्होंने पांच साल का इंटीग्रेटेड कोर्स मैथमेटिक्स एंड कंप्यूटिंग में किया था। एक दिन के NAB में भाग लेने से उनके मन पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने उसी दिशा में आगे बढ़ने का निश्चय किया। इसी समय उन्होंने तय किया कि वे नेत्रहीनों के लिए एक ऐसा डिवाइस डिज़ाइन करेंगे जो उनके दैनिक जीवन को और भी आसान बना देगा।

गौरव बताते हैं “ मैंने नेत्रहीनों के रास्ते में आए बाधाओं को पहचानने और चेहरे को पहचानने वाले अलग-अलग डिवाइस बनाना शुरू किया।” इन ऐप को डिज़ाइन करने के लिए उन्हें साइट्रिक्स और माइक्रोसॉफ्ट से ग्रांट भी मिला। नेत्रहीन लोगों से उनकी जरूरतों की जानकारी लेकर उनके जरूरतों के हिसाब से ऐप डिज़ाइन करने का काम आसान नहीं था।

इस काम में उनके लिए भरपूर तसल्ली थी; एक तरफ उन्होंने टेक्नोलॉजी से खेलने का अपने बचपन का सपना जीया तो दूसरी ओर नेत्रहीनों की जिंदगी आसान बनाने का संतोष भी उनके भीतर था। इस नेक काम को करने की प्रेरणा उसके अंतरतम में बैठ गई थी और इसलिए उन्होंने 2013 में नेत्रहीनों को अपना यह ऐप दिखाया। उन्हें इसके लिए बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली जिससे आगे और ऐप डिज़ाइन करने के लिए प्रेरित हुए। गौरव का यह प्रयास उनके लिए एक चिंगारी की तरह था और इसके बाद वे पूरे उत्साह के साथ ऐप डिज़ाइन करने में लग गए।


2015 में उन्होंने महसूस किया कि उन्हें तो यही करना है। वे अपने जैसे साथी चाहते थे और वे अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से नेत्रहीनों के लिए ऐप बनाने में लग गए। इस काम के लिए उन्हें आलोचना भी सहनी पड़ी। परन्तु उन्होंने सभी आलोचनाओं को एक स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ स्वीकारा और अपने आपको विकसित करने का मौका दिया।

Eye-D की संकल्पना 2012 में हुई और 2014 तक शोध के रूप में रही और तब फिर जिंजरमाइंड टेक्नोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की औपचारिक स्थापना हुई। यह एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐप है। नेत्रहीन अपनी पूरी जानकारी अपनी भाषा में कस्टम मेड कीपैड के द्वारा इसमें फीड करते हैं। यह डाटा को इंग्लिश में अनुवाद करता है और रिस्पॉन्स को उपयोगकर्ता के लिए जोर से पढ़ा जाता है।

वर्तमान में Eye-D, Eye-D फ्री और Eye-D प्रो ऐप विश्व भर के गूगल प्ले में उपलब्ध है। इसके अलावा इनकी टीम कुछ हार्डवेयर डिवाइस पर काम कर रहे हैं जो अगले साल तक आ बाज़ार में आ जाएगी। इनकी टीम के चार मेंबर बैंगलोर के बाहर काम कर रहे हैं। अपने प्रोडक्ट में सुधार करने के लिए बाहर से अभी मदद ली जाती है। Eye-D भारत के कुछ एनजीओ के साथ भी काम कर रहा है। गौरव बताते हैं “ हमारी टीम में चार सदस्य हैं। (गौरव, वैभव, शाश्वत और रिमी) हम विश्व भर के वालंटियर्स के साथ काम करते हैं जिसमें से अधिकतर नेत्रहीन हैं। हमारी टीम पूरी तरह से संतुलित टीम है और हम स्थाई रेवेन्यू बनाने और विस्तार करने में लगे हुए हैं। हम अपने उपयोगकर्ता से बात कर अपना बिज़नेस मॉडल बनाते हैं।”

यह ऐप सूचना, प्रतिबिंब और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट को अल्गोरिथ्म्स के द्वारा अपने उपयोगकर्ता की मदद करती है। यह वर्तमान में 160 देशों में और 12 भाषाओँ में उपलब्ध है और इसके 9000 सक्रिय मासिक उपभोक्ता हैं । 2018 तक 100000 नेत्रहीनों के लिए उपयोगी होने का लक्ष्य है। Eye-D ने स्वयं को नेत्रहीनों के लिए वरदान साबित किया है और उनकी जिंदगी बेहद आसान हो गयी है। गौरव कहते है “आप जिस आइडिया पर काम करना चाहते हैं, शुरूआत ग्राहकों से बात करके करें और उनकी जरूरत के बारे में जानें।“

साभार: hindi.kenfolios.com/iit-alumnus-life-changed-just-day-now-160-countries-buy-powerful-idea/
by Anubha Tiwari12/8/2017

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