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Tuesday, April 2, 2019

RUPA GROUP - कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस

कभी दुकानों से भगा दिया जाता था, आज है 1500 करोड़ के बिज़नेस के मालिक


Rupa Group Success Story : इस कंपनी को इस मुकाम तक पहुचाने में दो भाइयों की जोड़ी ने अपने पूरे जीवन को समर्पित कर दिया है उनके नाम है प्रहलाद राय अग्रवाल (74) और कुंज बिहारी अग्रवाल (64) जो व्यापार क्षेत्र में KB और PRके नाम से विख्यात हैं। दोनों मारवाड़ी व्यापारिक विरासत से आये है जिन्होंने अपना पूरा जीवन व्यापार में लगा दिया है।

जब KB से व्यापार के बारे में पूछा गया तो उनके अनुसार – ” व्यापार एक तरह से एडजस्टमेंट है जिसमें हमेशा मार्कट की गति के अनुसार अपने आप को अच्छा बनाते हुए कैसे आप वस्तुओं को क्वालिटी के साथ बेच सकते हो और अपनी मार्केट वैल्यू बनाते हो।“

इसी फिलॉसफी पर काम करते हुए आज रूपा अपने व्यापार क्षेत्र (इनरवेयर बिज़नेस) में लीडर बनकर उभरा है जो सतत विकास एवं प्रयासों का साझा फल है। यह एक कहानी है जो लगातार बन रहे मार्केट में मौकों को भुनाने के साथ ही नवीनतम तकनीक और कठिन मेहनत से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

जैसे जैसे लोगों की आमदनी बढ़ती गई है वैसे ही इस क्षेत्र में भी कॉम्पिटिशन बढ़ता गया है , इनरवियर बिज़नेस में आज LUX, VIP, Dollar और Jockey जैसे ब्रांड मौजदू है लेकिन RUPA एक मार्केट लीडर के रूप में उभरा है जो इस कंपनी के लीडरशिप को दर्शाता है ।

रूपा ग्रुप के इनरवियर ब्रांड्स 

सबसे खास चीज़ जो RUPA ने अन्य प्रतिस्पर्धीयों से अलग की है वो है अपने ही क्षेत्र में ब्रांड को विकसित करना। जब Rupa ब्रांड पूरे भारत मे अच्छा बिज़नेस कर रहा था तब इन्होंने MacroMan नाम से एक प्रीमियम ब्रांड मार्किट में उतारा.

जो आज उनका फ्लैगशिप ब्रांड बन गया है जिसकी पहुंच अब निम्न और मध्यम वर्गीय ग्राहकों के साथ ही उच्च वर्ग ग्राहकों में भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा है। इस ब्रांड के द्वारा इन्होंने ग्राहकों को एक प्रीमियम अनुभव कराने का एक सफल उदाहरण पेश किया है।

इस तरह के सफल प्रयोगों के साथ इंडस्ट्री लीडर बनना RUPA के लिये आसान होता गया , इन ब्रांड्स ने रेवेन्यू को पांच गुना करते हुए 800 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है तथा सालाना लगभग 20% की दर से इनका रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ रहा है .

इनके पास अब पूरी ब्रांड चैन बन चुकी है जो किड्स से लेकर एडल्ट्स तथा निम्न से उच्च वर्गों में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे हैं।

Rupa Group Success Story

तो कहानी शुरू होती है 1968 में जब 19 वर्षीय PR अग्रवाल ने वो शुरुआत की है जो आज RUPA Group के नाम से हमारे सामने है। इनकी कहानी भी राजस्थान के मारवाड़ी परिवारों से मिलती है जिन्होंने ने रोज़गार के नए अवसरों के लिए राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य क्षेत्रों की तरफ रुख किया था।

रूपा के विज्ञापन 

PR के पिताजी शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले के रहने वाले थे, लगातार अकाल और खेती के चौपट होने के कारण कोलकाता शिफ्ट होने का निर्णय लिया। कोलकाता में बहुत ही कम पूंजी में अपना व्यापार शुरू किया और पूरा परिवार यही विस्थापित हो गया ।

PR शुरुआत में कोलकाता में एक कॉलेज खोलना चाहते थे लेकिन साथ ही अपने परिवार के बिज़नेस में भी लगातार काम करते रहे। हमेशा मेहनती और नए आइडियाज पर काम करने वाले PR अपने पिताजी से विरासत में मिले व्यापार से ज्यादा खुश नही थे।

इसी तड़प और नए करने की चाहत ने 1962 में बिनोद होजरी नाम से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की नींव डाली लेकिन अगले 6 सालों में यह व्यापार नही चल पाया और वो घाटे में आ गए।

अपने कारोबार या यूं कहें कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए 1968 में इन्होंने RUPA नाम से इनरवेयर उत्पादन का काम शुरू किया जो उनके पिछले से कारोबार से कई गुना कारगर साबित हुआ।

1960 के दशक में Dora नाम से एक इनरवेयर ब्रांड बहुत ही पॉपुलर होने के साथ ही मार्किट लीडर था। PR का सीधा सामना अब Dora से ही होने वाला था , जब भी रिटेलर्स के पास अपने ब्रांड Rupa को बेचने जाते तो उन्हें दुकानों से भगा दिया जाता था।

जब रिटेलर्स उनका प्रोडक्ट नही ले रहे है तो उन्होंने व्हॉल सेलर्स को 2 महीने तक माल क्रेडिट पर देना शुरू कर दिया तथा धीरे धीरे Rupa ब्रांड मार्किट में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहा लेकिन अभी भी DORA से प्रतिस्पर्धा बहुत दूर की बात थी।

एक  समारोह के दौरान ग्रुप  संस्थापक अग्रवाल बंधू 

कहते है जब इंसान कठिन मेहनत कर रहा होता है तो ईश्वर भी उसका साथ देता है , ऐसा ही कुछ PR के साथ भी हुआ । अगले तीन साल में Dora ने अपने रिटेल क्षेत्र में ध्यान बढ़ाने के चलते कम लाभ वाले इनरवेयर बिज़नेस को बंद कर दिया ।

ये मौका PR के लिए एक मार्केटिंग अवसर बन कर आया और इसको PR ने हाथों हाथ लिया और जुट गए Rupa को ब्रांड बनाने में , इनके इस काम मे छोटे भाई KB का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

कोलकाता के आसपास अपनी पैठ बनाने के बाद RUPA ने पूरे देश मे अपनी पहुंच बनाने का फैसला लिया और अच्छी क्वालिटी के साथ ही आक्रामक मार्केटिंग के साथ ही अपने क्षेत्र में उतर गए ।

Rupa ने अपने आप को मार्कट में बनाये रखने के लिए आउटसोर्सिंग के बजाय ब्रांड क्रिएशन और मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान दिया । इसी के फलस्वरूप 1980 में बॉलीवुड फिल्मों के कैसेट्स पर एडवरटाइजिंग देने का फैसला किया जिससे पूरे देश मे इनकी पहुंच बनी और सेल्स में जोरदार बढ़त देखने को मिली।

लेकिन असली सफलता 1990 में आज तक के साथ एडवरटाइजिंग के बाद मिली और उनकी टैग लाइन ‘ ये आराम का मामला हैं‘ सभी की जुबान पर चढ़ गई और आज का RUPA ब्रांड अब मार्केट लीडर बन गया है । अब बाकी की कहानी मार्केट की सफलता की कहानियां बन गई है ।

PR और KB दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी व्यापारिक कुशलता एवम मेहनत से भारतीयों का सबसे पसंदीदा ब्रांड खड़ा कर लिया है ।

RUPA के बारे में रोचक तथ्य: 

रूपा के ब्रांड – 
Softline, 
Euro, 
Bumchums, 
Torrido, 
Thermocot, 
Macroman, 
Footline and 
Jon 

इनरवेयर मार्केट लीडर 

सेलिब्रिटी जो रूपा ब्रांड से जुड़ चुके हे – Govinda, Sanjay Dutt, Aishwarya Rai, Ronit Roy, Ranveer Singh, Sidharth Malhotra, Bipasha Basu 
Revenue – 1500 Carore 

सीखने योग्य बातें

इस RUPA ग्रुप के सफर से कई वास्तविक अनुभव निकल कर आये है जिन्हें अपने जीवन मे आत्मसात कर सकते है। सबसे महत्वपूर्ण बात सीखने को जो मिलती है वो अंत तक लड़ते रहना और कितनी भी विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानना ।

हम भी शरुआती विफलताओं से घबरा कर अपना कार्य बीच मे ही छोड़ देते है जिससे हमारा सारा किया गया कार्य व्यर्थ हो जाता है। हमें अंत तक लड़ना चाहिए और हमेशा विफलता के बाद भी एक और प्रयास के लिए अपने आप को मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए।

DEEPAK GUPTA - मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ डेयरी से सालाना करोड़ों की कमाई कर रहे दीपक गुप्ता

सिंगापुर में कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में तीस वर्षों की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर दीपक गुप्ता इन दिनों नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी से सालाना करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं। उनका धंधा कुछ ही साल में इतना मुनाफेदार होने की सबसे बड़ी वजह है उनके डेयरी की दूध की शुद्धता। वह अपने यहां किसी को दूध छूने भी नहीं देते हैं। थन से सीधे दूध कोल्ड टैंकों में स्टोर होता है।

दीपक गुप्ता

पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। 

सिंगापुर में अपना लंबा करियर छोड़ कर चंडीगढ़ से लगभग दो घंटे की ड्राइव दूरी पर नाभा (पंजाब) में हिमालय क्रीमी डेयरी चला रहे दीपक गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने 20 एकड़ जमीन में डेयरी स्थापित की है जिसमें होल्सटीन फ्रीजिएन तथा जर्सी नस्ल की सैकड़ों गायें हैं। उनका सपना था कि वह लोगों को ऐसा दूध उपलब्ध कराएं, जिसे हाथ से छुआ भी न गया हो। यह नया नहीं है बल्कि दुनिया भर में ‘फार्म टू टेबल’ डेयरी कारोबार के नाम से काफी प्रचलित है, जिसे लोग पसंद भी करते हैं। उनकी डेयरी में दूध को हाथ से छुआ भी नहीं जाता। सीधे स्टोर किया जाता है। इसके बाद दूध को रेफ्रिजरेटेड ट्रकों के जरिये सप्लाई किया जाता है। गायों के चारे के लिए वह फार्म में जैविक पद्धति से उगे गेहूं और सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं।

गायों के वेस्ट का इस्तेमाल कर बायोगैस और उर्वरक भी तैयार किया जाता है। आज हिमालय क्रीमी डेयरी फार्म से उन्हें सालाना कई करोड़ की आय हो रही है। दो साल पहले उन्होंने डेयरी फॉर्म का यह काम शुरू किया था। चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद उन्हें नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो विदेश निकल गए। वह सिंगापुर में एक मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगे लेकिन अपना मुल्क छोड़कर तीन दशक तक लगातार विदेश में रहने से उनका मन उचटने लगा था। विदेश में वह जिस मल्‍टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे, उसका भी एग्रीकल्‍चर का ही काम था। उससे भी उन्हें अपने इस नए धंधे का अनुभव मिला था।

एक दिन जब वह सिंगापुर से भारत लौट रहे थे, तभी रास्ते में अखबार पढ़ते समय एक खबर ने उनको इतना उत्साहित कर दिया कि जीवन की दिशा ही बदल गई। उन्होंने उसी वक्त सिंगापुर की नौकरी छोड़ने की ठान ली। तय कर लिया कि अब जो कुछ करेंगे, अपने देश की धरती पर। अब नौकरी के लिए सिंगापुर नहीं जाएंगे। घर लौटकर उन्‍होंने अपनी लगभग बीस एकड़ की जमीन पर डेयरी का काम शुरू कर दिया। अच्छी नस्ल की जर्सी गाएं खरीद लाए। उनके साथ कुछ अन्य नस्ल की भी गाएं थीं। धीरे-धीरे उनकी संख्या तीन सौ से अधिक हो गई। इस वक्त साढ़े तीन सौ गाएं उनके फॉर्म में हैं। उनको रोजाना मशीनों से दुहा जाता है।

शुद्धता को ध्यान में रखते हुए मशीनों के जरिए दूध सीधे टैंकों में जमा किया जाता है और वहीं से ग्राहकों को सप्लाई कर दिया जाता है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि आजकल आम तौर से ग्राहकों को शुद्ध दूध का अभाव रहता है। उनको जल्दी पूरी तरह गैरमिलावटी दूध मिलना मुश्किल रहता है। ऐसे में वह किसी भी कीमत पर अपनी गायों के दूध की शुद्धता पर कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। यहां तक कि पैकिंग के वक्त भी उनके दूध पर कोई कर्मचारी हाथ नहीं लगा सकता है। यही कारण है कि ग्राहक उनके दूध की शुद्धता पर पूरा भरोसा करते हैं और इससे उनके दूध की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

किसी ज़माने में भारत में शुद्ध दूध की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे दूध-दही की नदियां बहने वाला देश कहा जाता था। पहले दूध में केवल पानी मिलाया जाता रहा है किन्तु आज हालात ये हैं कि लोग दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाने लगे हैं। दूध में मिलाये जाने वाले कुछ केमिकल तो इतने दुष्प्रभावी होते ही हैं कि उनका असर आने वाली संतानों पर भी पड़ने का खतरा होता है। वैसे अब दूध की शुद्ध आजमाने के तरीके भी लोगों ने सीख लिए हैं। शुद्धता जांचने के लिए सर्वप्रथम आप उसकी खुशबू लें। यदि उस दूध में साबुन जैसी गंध आती है तो वह दूध सिंथेटिक है।

शुद्ध दूध स्वाद में हल्का मीठा होता है, जबकि नकली और सिंथेटिक दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने के कारण कड़वा हो जाता है। शुद्ध दूध को कुछ समय या एक से अधिक दिन भी स्टोर करने पर उसका रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध कुछ ही समय के बाद पीला पड़ने लगता है। पानी के मिलावट की पहचान करने के लिए दूध को एक काली सतह पर थोड़ा सा गिरा दे। यदि दूध असली होगा तो उसके पीछे एक सफेद लकीर छूटेगी अन्यथा नही। उबालते समय शुद्ध दूध का रंग नही बदलता है जबकि नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है। किसी चिकनी जगह जैसे लकड़ी या पत्थर की सतह पर एक-दो बूंद दूध टपकाइए, आप देखेंगे की यदि वह शुद्ध है तो नीचे की और बहने पर उसके पीछे सफ़ेद धारी जैसा निशान हो जाएगा वरना दूध अशुद्ध है। शुद्ध दूध को हथेली पर रगड़ने से चिकनाहट महसूस नहीं होती है जबकि अशुद्ध दूध डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट पैदा कर देता है। दीपक गुप्ता के डेयरी का दूध इन सारे तरीकों से आजमाया जा चुका है। आज तक उन्हें कहीं से कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली है।

दीपक गुप्ता की डेयरी

दीपक गुप्ता को अब शुद्धता की बदौलत ही अपने व्यवसाय से अब सालाना करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है। वह अपने इस कारोबार से इतना संतुष्ट और खुश हैं कि उन्हें न तो पुराना जॉब छोड़ने का कोई पश्चाताप है, न और किसी काम की जरूरत रह गई है। उनका ये कारोबार दिनोदिन उन्नत होता जा रहा है। दीपक गुप्ता बताते हैं कि अखबार की खबर भी एक निमित्त मात्र बनी, पढ़ते ही तुरंत मूड बना लिया वरना हाईटेक डेयरी खोलना तो उनका पढ़ाई के समय से ही बड़ा पुराना सपना रहा है। हां, बिना हाथ लगाए दूध की पैकिंग का आइडिया जरूर उन्‍हें सिंगापुर से भारत के सफर के दौरान मिला था। वह अक्‍सर भारत में अखबारों में मिलावटी दूध के बारे में पढ़ते थे। तभी से उनके मन में कुछ नया करने की बात तेजी से जोर मारने लगी थी। वैसे भी हमारे देश में खाटी दूध मिलना सपने जैसा ही होता है। खास कर त्योहारों के मौके पर शुद्ध खोवा तक मिलना दुश्वार रहता है। पता नहीं क्यों लोग दूध जैसे पेय का इतनी धोखेबाजी से धंधा करते हैं। ईमानदारी से करें तो इसमें वैसे ही भारी बरक्कत के चांस रहते हैं।

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अभी पिछले महीने ही कहा है कि उपज बढ़ाने के लिए कीट नाशकों तथा अन्य रासायनों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादों आदि में प्रदूषण होने से भारत में मां का दूध भी पूरी तरह शुद्ध नहीं रह गया है, फिर गाय-भैस के दूध की शुद्धता की बात कौन करे लेकिन दीपक गुप्ता कहते हैं कि उनका दावा है, कोई उनकी डेयरी के दूध को अशुद्ध सिद्ध करके दिखाए। वैसे साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज और वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है। दूध प्रोटीन, कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (विटामिन बी -2) युक्त होता है। इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयोडीन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है।

इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं। गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम और भैस के दूध में प्रति ग्राम 0.65 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। जहां तक मिलावट की बात है, आजकल ज्यादातर कंपनियां इसमें विटामिन ए, लौह और कैल्शियम ऊपर से मिलाती हैं। इसमें भी कई तरह के जैसे फुल क्रीम, टोंड, डबल टोंड और फ्लेवर्ड मिल्क बेचे जा रहे हैं। फुल क्रीम में पूर्ण मलाई होती है, अतः वसा सबसे अधिक होता है। इन सभी की अपनी उपयोगिता है, पर चिकित्सकों की राय के अनुसार बच्चों के लिए फुल क्रीम दूध बेहतर है तो बड़ों के लिए कम फैट वाला दूध। दीपक गुप्ता कहते हैं कि दूध में यदि मिलावट कर दीजिए तो खीर, खोआ, रबड़ी, कुल्फी, आईस्क्रीम यानी दुग्ध जनित हर प्रोडक्ट मिलावटी हो जाता है। इसलिए वह कत्तई अपने यहां दूध को किसी हाथ लगाने भर की भी छूट नहीं देते हैं।

साभार: yourstory.com/hindi/3857b45677-deepan-gupta-earning-m


Monday, April 1, 2019

अग्रोहा और लक्खी तालाब

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सालभर में बीकानेर के तीन अग्रवाल परिवारों ने 7000 करोड़ के नमकीन बेचे.


साभार: नवभारत टाइम्स 

MARWARI IN DELHI - दिल्ली में मारवाड़ी

ACHIN AGRWAAL - अचिन अग्रवाल, वैश्य गौरव




 


साभार: दैनिक भास्कर 

श्रेया अग्रवाल ने देश किये जीते ३ गोल्ड, बनाया विश्व रिकोर्ड

मप्र / शूटिंग के लिए 12वीं की परीक्षा छोड़ी थी, अब श्रेया ने देश के लिए जीते तीन गोल्ड मेडल


3 साल पहले पहली बार श्रेया ने उठाई थी एयरगन, अब वर्ल्ड चैम्पियन; भाई भी राष्ट्रीय स्तर का निशानेबाज

जबलपुर. यहां की रहने वाली श्रेया ने सोमवार को ताइपे (ताइवान) में चल रही 12वीं एशियन एयरगन शूटिंग चैम्पियनशिप में 10 मीटर एयर राइफल जूनियर वर्ग में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के साथ गोल्ड मेडल जीता। वे इससे पहले टीम और मिक्स्ड टीम इवेंट में भी देश के लिए गोल्ड जीत चुकी हैं। इस प्रदर्शन से उनके घर में जश्न का माहौल है। पिता संजय अग्रवाल ने दैनिक भास्कर एप प्लस से बातचीत की। उन्होंने श्रेया की जिंदगी के उस वाकये का जिक्र किया, जिसने बेटी को आज शिखर पर पहुंचा दिया।

पिता ने बताया कि तीन साल पहले, जब श्रेया 9वीं में थीं, तब वह स्कूल टीम के साथ एक शूटिंग इवेंट में गई थी। वहां उसने गोल्ड मेडल जीत लिया। इसके बाद वह निशानेबाजी का नियमित ट्रेनिंग लेने लगी। दूसरी वजह, उसका भाई यश है। जो राष्ट्रीय स्तर का शूटर है।

रात को ही कह दिया था कि गोल्ड जीतूंगी

पिता बताते हैं कि श्रेया ने अपने पहले प्रदर्शन के बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखा। रविवार रात 8.30 बजे श्रेया का फोन आया था। कहा- कल मैच है। मैं गोल्ड ही जीतूंगी। इसके बाद हमें आज 11 बजे उसके कोच निशांत नथवानी ने बताया कि बेटी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता है।

परीक्षा और खेल में, खेल को चुना 

संजय ने बताया कि एशियन चैम्पियनशिप के लिए दिल्ली में ट्रॉयल हो रहे थे और श्रेया को इसके लिए चुना। उसने मां (मीना अग्रवाल) और मुझसे कहा- शूटिंग चैम्पियनशिप का ट्रॉयल है और 12वीं की परीक्षा भी चालू हो रही है। इस पर हमने उसे कहा- परीक्षा होती रहेगी। तुम ट्रॉयल देने जाओ। वह गई और एशियन शूटिंग चैम्पियनशिप के लिए चुन ली गई।

तीन साल पहले उठाई गन, अब विश्व चैम्पियन 

18 साल की छोटी सी उम्र में विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप में स्वर्णिम प्रदर्शन करने वाली श्रेया ने महज 3 साल पहले राइफल पकड़ी थी। नियमित अभ्यास, लगन और मेहनत के कारण उनकी देश के शीर्ष जूनियर निशानेबाजों के बीच अलग पहचान है।

गगन नारंग फाउंडेशन का फायदा मिला 

पिता ने बताया कि गगन नारंग फाउंडेशन से जुड़ने का श्रेया को फायदा मिला। उसने शूटिंग की बारीकियां तेजी से सीखीं। जबलपुर में उसके कोच निशांत नथवानी हैं। वे भी नारंग फाउंडेशन से जुड़े हैं।

बेटी पर गर्व है: पिता

ईपीएफ विभाग में कार्यरत पिता संजय कहते हैं, हमें अपनी बेटी पर गर्व है। उसने मप्र के साथ ही दुनिया में देश का मान बढ़ाया। इन तीन मेडल के साथ ही अब तक वह 13 इंटरनेशनल मेडल जीत चुकी है। सरकार ने उसे ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट (ओजीक्यू) के लिए भी चुना है। मां मीना अग्रवाल शासकीय शिक्षक हैं। बेटी की सफलता से बेहद खुश मीना कहती हैं- हमें उसके पदक जीतने की उम्मीद थी और उसने एक-दो नहीं पूरे तीन गोल्ड मेडल जीत लिए।


12वीं एशियन एयरगन शूटिंग चैंपियनशिप में श्रेया का प्रदर्शन- 

1 - 10 मीटर व्यक्तिगत स्पर्धा - गोल्ड 

2 - टीम इवेंट में गोल्ड 

3 - मिक्स्ड डबल में गोल्ड

श्रेया अग्रवाल का वर्ल्ड रिकॉर्ड.

श्रेया अग्रवाल ने चीन की रुओझू का 10 मीटर एयर राइफल का रिकॉर्ड तोड़ जूनियर महिला वर्ग में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड

ताइपे। पूरा भारत इस समय IPL के रंग में रंगा हुआ है। इस IPL में अब तक कई दिलचस्प मुकाबले देखने को मिले हैं। ऐसे में हर कोई IPL पर नजरे गड़ाए बैठा है। लेकिन, भारत के जूनियर चैंपियनों ने दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया है। शूटर श्रेया अग्रवाल ने सोमवार को एशियाई एयरगन चैंपियनशिप में जूनियर वर्ग का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है।

ताइपे में चल रही एशियाई एयरगन चैंपियनशिप के जूनियर महिला वर्ग मुकाबले में श्रेया अग्रवाल ने 10 मीटर एयर राइफल में स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। 18 साल की श्रेया ने फाइनल में 252.5 अंक हासिल किए, जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इस वर्ग में भारत की मेहुली घोष ने कांस्य पदक जीता। उन्होंने 228.3 का स्कोर किया।

रिकॉर्ड

10 मीटर एयर राइफल के जूनियर महिला वर्ग मुकाबले में यह रिकॉर्ड अब तक चीन की रुओझू झाओ के नाम था। रुओझू ने पिछले साल 22 अप्रैल को कोरिया में वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान 252.4 का स्कोर किया था।
इस प्रतियोगिता में यशवर्धन के साथ मिलकर श्रेया अग्रवाल 10 मीटर एयर राइफल जूनियर मिक्स्ड टीम का स्वर्ण पदक पहले ही जीत चुकी हैं। उस इवेंट में मेहुली घोष और केवल प्रजापति की भारतीय जोड़ी रजत पदक जीतने में सफल रही थी।

साभार: दैनिक भास्कर 

Friday, March 29, 2019


HINA JAYASWAL - एयरफोर्स की पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर बनीं हिना जायसवाल


चंडीगढ़ की हिना जायसवाल पढ़ाई के दिनो में सैन्य वेश के सपने देखा करती थीं। वायु सेना ने उनके सपनों को पंख लगा दिए हैं। वह देश की पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर के रूप आधी आबादी के सशक्तीकरण की ताज़ा मिसाल बनी हैं।

हिना जायसवाल 

हर भारतीय के दिल में किसी महिला सेनानी के लिए विशेष श्रद्धा भाव होता है। वे स्त्री होने के बावजूद हमेशा पूरे देश की रक्षा करती हैं। इसलिए भी उनका दायित्व एक आदर्श के रूप में लिया जाता है। यह भी गौरतलब होता है कि स्त्री होने के बावजूद वह किस तरह सेना की कठिन ट्रेनिंग लेती हैं। प्रशिक्षित हो जाने के बाद वह भारत की महिलाओं ही नहीं, पूरे देश के लिए एक मिसाल बन जाती हैं। मोदी राज में महिला सशक्तीकरण की ऐसी ही ताजा मिसाल बनी हैं वायु सेना की पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर हिना जायसवाल।

उनके जज्बे और लगन को हर भारतीय दिल सलाम कर रहा है। हिना कहती हैं- 'पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर बनने की मेरी उपलब्धि सपना पूरा होने जैसी है क्योंकि मैं बचपन से ही सैनिकों की वेशभूषा पहनने और पायलट बनने के लिए प्रेरित होती रही थी। मैं विमानन में अपने काम को लेकर उत्साहित हूं और काम के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हूं।'

हमारी सरकारें महिलाओं के बूते पर यकीन करें तो वह देश और समाज के मुश्किल से मुश्किल काम चुटकियों में आसान कर सकती है। देखिए न कि हमारे देश का रक्षा मंत्रालय ही एक महिला मंत्री निर्मला सीतारमण ने संभाल रखा है। भारत की वीर नारियों ने नौसेना में नाविक सागर परिक्रमा नामक मिशन आईएलएसवी नौका तारिणी के जरिए पूरा किया। सभी महिला सदस्यों के इस दल का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने किया। आज देश की वीर नारियां नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार हिना जायसवाल ने येलाहांका वायु सेना स्टेशन में कोर्स पूरा करने के बाद पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर बनने का इतिहास रचा है। चंडीगढ़ की हिना वायु सेना की इंजीनियरिंग शाखा में पांच जनवरी 2015 को सैनिक के रूप में भर्ती हुई थीं। उनका फ्लाइट इंजीनियरिंग का कोर्स गत दिवस 15 फरवरी 2019 को ही पूरा हुआ है। छह महीनों के पाठ्यक्रम के दौरान हिना ने अपने पुरुष प्रतिद्वंद्वियों के साथ प्रशिक्षण लेते हुए अपनी प्रतिबद्धता, समर्पण और दृढ़ता का प्रदर्शन किया। हिना ने पंजाब यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में स्नातक किया है। उल्लेखनीय है कि पुरुष सैनिक बहुल फ्लाइट इंजीनियर ब्रांच को पिछले साल सरकार द्वारा महिला अधिकारियों के लिए भी मंजूर कर दिया गया।

हिना जायसवाल से पहले देश की वायु सेना में फाइटर पायलट के रूप में तीन महिलाओं की नियुक्ति ने पूरे देश को गर्वोन्नत कर दिया था- अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह, जो भारतीय वायु सेना के लड़ाकू बेड़े में शामिल की गईं। महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से वह एक और बड़ी उपलब्धि ही नहीं, मिसाल भी रही है। इंडियन एयर फोर्स की फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी लड़ाकू विमान उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला हैं। अवनी ने अकेले मिग-21 उड़ाकर एक नया इतिहास रचा। 19 फरवरी, 2018 को अवनी चतुर्वेदी ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से अकेले ही फाइटर एयरक्राफ्ट मिग-21 से उड़ान भरी। इसी तरह शुभांगी स्वरूप के रूप में नेवी को पहली महिला पायलट मिलीं। यह ऐतिहासिक क्षण नेवी के लिए तब आया जब नेवी में महिलाओं को शामिल करने का निर्णय पहली बार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में लिया था। निकट अतीत में शुभांगी के साथ ही आस्था सहगल, रूपा ए. और शक्तिमाया भी नेवी के शस्त्र विभाग की इंस्पेक्शन ब्रांच में पहली बार शामिल की गईं।

साभार: yourstory.com/hindi/hina-jaiswal-becomes-air-forces-first-female-fligh-ecds4gewqw




दिल्ली कुंडली में अग्रसेन धाम


PREMLATA AGRAWAL - प्रेमलता अग्रवाल, वैश्य गौरव

साभार: नवभारत 

Saturday, January 19, 2019

VAISHYA - वैश्य ~ the Backbone of India's economy

VAISHYA - वैश्य ~ the Backbone of India's economy


अंग्रेजों के आने से पहले तक हमारा देश इतना धनी और समृद्ध था कि इसे सोने का चिङियां कहा जाता था।भारत को सोने के चिङियां बनाने में इन्हीं वैश्य समुदाय का योगदान जाता है। द्वारा तमाम लूट-खसोट के बाद भी वैश्य समाज के मेहनत के बदौलत 16 वीं शताब्दी तक भारत तब भी दुनिया का सबसे अधिक धनी देश था।अकेले भारत के GDP ग्रोथ इतना ज्यादा था जितना पुरे युरोप का था।तो यह उपलब्धि हमारे वैश्य समाज के बदौलत थी। यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत #मैगस्थनीज ने वैश्य समाज की विरासत की प्रशंसा में लिखा है कि- "देश में भरण- पोषण के प्रचुर साधन तथा उच्च जीवन-स्तर, विभिन्न कलाओं का अभूतपूर्व विकास और पूरे समाज में ईमानदारी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा प्रचुर उत्पादन वैश्यों के कारण है।" 

#द्विज_वर्ण - ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य आर्यों के द्विज वर्ण हैं । वैश्यों के ब्राह्मणों और क्षत्रियों के साथ गुरुकुल शिक्षा, उपनयन संस्कार , शिखा, सूत्र धारण करने का अधिकार है । ब्राह्मण की उपाधि शर्मा है , क्षत्रिय की वर्मा और वैश्य की गुप्त । ब्राह्मणों की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा के मस्तक से हुई , क्षत्रिय की भुजाओं से और वैश्यों की *उदर से । ब्राह्मण देश की मेधाशक्ति हैं क्षत्रिय देश की रक्षा शक्ति और वैश्य देश की अर्थ शक्ति । एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा से ब्राह्मण , शिव-शक्ति से क्षत्रिय और विष्णु से वैश्य (अर्थात विष्णु की तरह अन्नदाता , लक्ष्मीवान और पालक ) ।

*कृषि, वाणिज्य और गौपालन से ही समाज की उदर पूर्ति होती है ।

#कर्तव्य - 

विष्णु संहिता में लिखा है - क्षमा , सत्य , दम , शौच , दान , इन्द्रिय संयम , अहिंसा , गुरुसेवा , तीर्थपर्यटन , सरलता , लोभत्याग , देवब्राह्मण पूजा , और निंदा का त्याग ये वैश्य जाती के साधारण धर्म हैं । 

#मनुस्मृति के अनुसार अध्ययन, कृषि, वाणिज्य, पशु रक्षा, दान देना और कुसीन्द वैश्यों के प्रमुख कार्य हैं । 

"पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च ।
वणिक पथम कुसीदं च वैश्यश्च कृषिमेव च ।।" 

श्री वामन पुराण में भी बताया गया है - 

"यज्ञाध्ययन-सम्पन्नता दातारः कृषिकारिणः ।
पशुपालयं प्रकुर्वन्तु वैश्य विपणीजीविनः ।।"

वैश्यगण यज्ञाध्ययन से सम्पन्न दाता , कृषिकर्ता व वाणिज्य जीवी हों । तथा पशुपालन का कर्म करें । 

#महाभारत में उल्लेख आया है कि सर्वादिक धनाढ्य होने के कारण राज्य को #सर्वादिक_कर देने वाला वैश्य वर्ग ही था । "उपातिष्ठनत कौन्तेयं वैश्य इव कर प्रदः ।"

#नाम_व_उपाधियां - वैश्य शब्द का संस्कृत पर्याय उरुव्य , उरूज , भुमीजीवी , वट , द्विज , वार्तिक , सार्थवाह , वणिक , पणिक है । 

आदि जगत के इतिहास में जिस फिणिक (फिनिशन्स) नामक जिस प्राचीन जाती का उल्लेख है वह ऋक सहिंता की पणि नाम की जाती का अपभ्रंश है । (तं गूर्तयोने मनिषः परिणसः समुद्रं न संचरने सनिस्पवः) । इस मंत्र में धनार्थी पणिगण समुद्र व सागरद्वारा यात्रा करके व्यापार करते थे ।

वैश्य वर्ण के लिए बौद्ध साहित्य में वेस्स , गृहपति , सेट्टी , कुटुम्भिक , आदि शब्द मिलते हैं । इसके अलावा बौद्ध काल मे वैश्य गृहपति भी कहे जाते थे । सेट्टी अथवा सेठ (बड़े व्यापारी) के साथ वह बैंकपति और सार्थवाह भी थे । सार्थवाह दूरस्थ प्रदेशों की यात्रा करके व्यापार करते थे । 

वैश्यों को महाजन, सेठ, नगरसेठ, धन्नासेठ, जगतसेठ आदि उपाधियों से भी सम्मानित किया जाता था । जो श्रेष्ठ से बनी है । और संस्कृत शब्दकोश में साधु शब्द जिससे साहू या शाह बना वो भी व्यापारियों के लिए प्रयोग होता था ।

#राजतंत्र_में_वैश्य -

महाभारत कालीन मंत्रिमंडल में सर्वादिक 21 मंत्री पद वैश्यों के लिए थे । महाभारत शान्तिपर्व में राजधर्मानुशासन पर्व के ८५वें अध्याय श्लोक ७-११ में पितामह भीष्म ने 'धर्मराज' युधिष्टिर को उपदेश देते हुए मंत्रिमंडल के आकार के विषय में कहा - "राजा के मंत्रिमंडलं में 4 वेदपाठी ब्राह्मण, 8 क्षत्रिय, 21 धन धान्य से सम्पन्न वैश्य, 3 शूद्र 1 सूत को मंत्रिमंडल में सम्मिलित करें ।" 

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार क्षत्रिय राजतंत्र और वैश्य ग्राम व्यवस्था संभालते थे ग्राम प्रधान बनकर । 

#आधुनिक_काल_और_मध्य_काल_में_वैश्य_जाती ~

इस समयखण्ड में भी वैश्य जाती का भारत के उत्थान और हिन्दू धर्म के लिए में अभुत्व पूर्ण योगदान रहा है । 

◆ कई इतिहासकारों के अनुसार #गुप्तकाल जो भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है जिसमें हिन्दू धर्म का चतुर्दिश उत्थान हुआ वो वैश्य थे । 
◆कई वैश्य जातियां जैसे अग्रवाल , रस्तोगी और बर्णवाल इत्यादि प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था से निकली हैं। सिद्धार्थ गौतम भी शाक्य गणतंत्र के थे । पाणिनि की अष्टाध्यायी , जैन व बौद्ध ग्रंथों में लिछवि, वैशाली , मालव आदि गणराज्यों का उल्लेख है । अग्रवाल जिस प्राचीन गणतंत्र के थे 'आग्रेय' वो महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार यौधेयों के गणतंत्र का एक अंग था जो भारत की द्वितीय रक्षा प्रणाली था गुप्त काल तक । यौधेयों ने अनेकों वर्षों तक हमें विदेशी शक, हूण आक्रमणकारियों से बचाया था । सिकंदर से भी युद्ध में आग्रेय गणराज्य ने भाग लिया था । आग्रेय गणराज्य का जिक्र महाभारत में मालव और रोहतगी गणराज्यों के साथ आया है । इसे महाराज अग्रसेन ने बसाया था ।
◆ मध्यकाल में वैश्य रजवाड़ों में ऊंचे और बड़े पदों पे थे जिनका युद्ध मे भाग लेना भी इतिहास में दर्ज है । उदाहरणतः मारवाड़ी वैश्य भामाशाह महाराणा प्रताप के प्रधान मंत्री, अच्छे मित्र व सलाहकार थे । 
◆हिन्दू धर्म की संजीवनी गीताप्रेस गोरखपुर दो मारवाड़ी अग्रवालों हनुमान प्रसाद पोद्दार और जयदयाल गोयनका जी की दें थी जिसने घर घर में हमारे धर्म शास्त्र पहुंचाए । ◆भारतीय ISRO जिसने कई महत्वपूर्ण मिशन में अपने झंडे गाड़ें हैं उसके संस्थापक एक गुजराती जैन बनिया 'विक्रम साराभाई' थे । 
◆आज वैश्य समाज भारत की अर्थव्यस्था की रीढ़ हैं ।


लेख साभार: प्रखर अग्रवाल की फेसबुक वाल से साभार 

Sunday, January 13, 2019

Chirag Jain : चिराग़ जैन


जन्म : 27 मई 1985; नई दिल्ली

शिक्षा : स्नातकोत्तर (जनसंचार एवं पत्रकारिता)

पुरस्कार एवं सम्मान

1) भाषादूत सम्मान (हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार) 2016

2) सारस्वत सम्मान (जानकी देवी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय) 2016

3) शब्द साधक सम्मान (राॅटरी क्लब, अपटाउन, दिल्ली) 2016

4) लेखक सम्मान (लेखक व पत्रकार संघ, दिल्ली) 2014

5) हिन्दी सेवी सम्मान (भारत विकास परिषद्, नई दिल्ली) 2014

6) कविहृदय सम्मान (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) 2013

7) छुपा रुस्तम सम्मान (वाह-वाह क्या बात है, सब टीवी) 2013

प्रकाशन

कोई यूँ ही नहीं चुभता; काव्य-संग्रह; शिल्पायन प्रकाशन

ओस; काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन

मन तो गोमुख है; काव्य-संग्रह; पाँखी प्रकाशन

जागो फिर एक बार; काव्य-शोध; राष्ट्रीय कवि संगम

पहली दस्तक; काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन

दूसरी दस्तक;काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन

निवास : नई दिल्ली

“27 मई 1985 को दिल्ली में जन्मे चिराग़ पत्रकारिता में स्नातकोत्तर करने के बाद ‘हिन्दी ब्लॉगिंग’ पर शोध कर रहे हैं। ब्लॉगिंग जैसा तकनीकी विषय अपनी जगह है और पन्नों पर उतरने वाली संवेदनाओं की चुभन और कसक की नमी अपनी जगह। कवि-सम्मेलन के मंचों पर एक सशक्त रचनाकार और कुशल मंच संचालक के रूप में चिराग़ तेज़ी से अपनी जगह बना रहे हैं।

चिराग़ की रचनाओं में निहित पात्र का निर्माण एक भारतीय मानस् की मानसिक बनावट के कारण हुआ है, जिसे पगने, फूलने में सैकड़ों वर्ष लगे हैं। एक स्थिर व्यक्तित्व का चेहरा, जिसका दर्शन हमें पहली बार इनकी रचनाओं में होता है।

एक चेहरे का सच नहीं, एक सच का चेहरा! जिसे चिराग़ ने गाँव, क़स्बों और शहरों के चेहरों के बीच गढ़ा है। औपनिवेशिक स्थिति में रहने वाले एक हिन्दुस्तानी की आर्कीटाइप छवि शायद कहीं और यदा-कदा ही देखने को मिले। एक सच्चा सच चिराग़ की रचनाओं में जीवन्त और ज्वलंत रूप में विद्यमान है कि उसकी प्रतिध्वनि सदियों तक सुनाई देगी।

चिराग़ की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें हिमालय-सी अटलता भी है और गंगा-सा प्रवाह भी। चिराग़ की रचनाओं के कॅनवास पर दूर तक फैला हुआ एक चिन्तन प्रदेश मिलता है, सफ़र का उतार-चढ़ाव नहीं, मील के पत्थर नहीं कि जिन पर एक क्षण बैठकर हम रचनाकार के पद-चिन्हों को ऑंक सकें कि कहाँ वह ठिठका था, कौन-सी राह चुनी थी, किस पगडंडी पर कितनी दूर चलकर वापस मुड़ गया था। हमें यह भी नहीं पता चलता कि किस ठोकर की आह और दर्द उसके पन्नों पर अंकित है।

चिराग़ की रचनाओं को पढ़कर लगता है कि वह ग़रीबी की यातना के भीतर भी इतना रस, इतना संगीत, इतना आनन्द छक सकता है; सूखी परती ज़मीन के उदास मरुथल में सुरों, रंगों और गंध की रासलीला देख सकता है; सौंदर्य को बटोर सकता है और ऑंसुओं को परख सकता है। किन्तु उसके भीतर से झाँकती धूल-धूसरित मुस्कान को देखना नहीं भूलता।

नई पीढ़ी का सटीक प्रतिनिधित्व कर रहे चिराग़ को पढ़ना, वीणा के झंकृत स्वरों को अपने भीतर समेटने जैसा है। इस रचनाकार का पहला काव्य-संग्रह ‘कोई यूँ ही नहीं चुभता’ जनवरी 2008 में प्रकाशित हुआ था। इसके अतिरिक्त चिराग़ के संपादन में ‘जागो फिर एक बार’; ‘भावांजलि श्रवण राही को’ और ‘पहली दस्तक’ जैसी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में चिराग़ की रचनाएँ चार रचनाकारों के एक संयुक्त संकलन ‘ओस’ में प्रकाशित हुई हैं।” –परिचय लेखक- नील

साभार : kavyanchal.com/chirag-jain

ADITI GUPTA - अदिति गुप्ता


अदिति गुप्ता, जन्म २१ अप्रैल, १९८८, एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री हैं। अदिति ने अपना स्वप्निल प्रथम-अभिनय बालाजी टेलीविज़न के 'किस देश में है मेरा दिल' नामक कार्यक्रम में हर्षद चोपड़ा के विपर्यय स्वरूप किया था जब वे केवल १९ वर्ष की थीं। उनका गृहनगर पुणे है और वे एक व्यवहार अभिकल्पक (फैशन डिजाइनर) बनना चाहती थीं, लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बदलीं की उन्हें मुख्य भूमिका निभाने का अवसर मिल गया।

रोमन लिपि में अदिति का नाम Aditi ना लिखकर Additi लिखा जाता है। इसका हिन्दी में नाम इस प्रकार बनेगा 'अद्दिति'। यह इसलिए क्योंकि बालाजी टेलीविज़न की स्वामी एकता कपूर का अंकज्योतिष में बहुत विश्वास है और इसलिए उन्होंने नाम में एक अतिरिक्त d जोड़ दिया है। अदिति का कहना है कि वे अपने अभिनय-पात्र हीर से बिल्कुल विपरीत हैं और बहिर्मुखी हैं और लड़कों से इश्कबाज़ी करना पसंद करती हैं। व्यवसाय से अदिति पुणे से एक व्यवहार अभिकल्पक हैं।

अभी वह बालाजी टेलीफ़िल्म्स के धरावाहिक किस देश में है मेरा दिल में हीर नाम की लड़की की मुख्य भूमिका निभा रही हैं। वृतांतों पर उन्होनें विभिन्न प्रदर्शन किए हैं, जैसे स्टार परिवार अवार्डस, स्टार प्लस के रंग दे इंडिया वृतांत, बालाजी के दिवाली रिश्तों की इत्यादि। उन्होनें कैमिया (अतिथि भूमिका) भुमिकाएं भी निभाई हैं जैसे कयामथ में और बालाजी के कार्यक्रम कसौटी जिंदगी की के अंतिम धारावाहिक में।

वर्तमान परियोजनाएं 
किस देश में है मेरा दिल - हीर मान / जुनेजा 
कैमिया
पुरस्कार 
रिलायंस मोबाइल स्टार परिवार अवार्डस २००८ (पसंदीदा योग्य जोड़ी, हर्षद मेहता के साथ बतौर हीर मान) 
न्यू टैलेंट अवार्डस २००८ (परदे पर सर्वश्रेष्ठ दंपत्ति हर्षद दोपड़ा के साथ बतौर हीर मान) 
स्टार परिवार अवार्डस २००९ (पसंदीदा जोड़ी, हर्षद चोपड़ा के साथ बतौर हीर मान / जुनेजा) 
गौण बातें 
अदिति को संगीत सुनना पसंद है, उन्हें पश्विमी परिधान पसंद हैं, उनका पसंदीदा गाना है "भीगी-भीगी रातों में"। 
अदिति का सबसे अच्छा मित्र उनका लैपटॉप है। वह अपना खाली समय अपने लैपटॉप पर बिताना पसंद करती है। उनके लैपटॉप पर उनकी बहुत-सी गूढ़ बातें हैं जिन्हें वे किसी के साथ नहीं बाँटती हैं। 
अदिति सदैव एक व्यवहार अभिकल्पक बनना चाहती थीं और उन्होंने कभी नहीं सोचा था की वे कभी अभिनेत्री बनेंगी। 
अदिति का कहना है कि वे अपने अभिनय-पात्र हीर जैसी नहीं हैं और उन्हें लड़कों के साथ इश्कबाज़ी करना पसंद है। 

महालक्ष्मी का महाराज अग्रसेन को अग्रकुल की कुलदेवी होने का वर

महालक्ष्मी का महाराज अग्रसेन को अग्रकुल की कुलदेवी होने का वर 

पद्मासने स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी ।

परमेशी जगन्मातः महालक्ष्मी नमोस्तुते ।।

आज मार्गशीष पूर्णिमा को श्री हरिप्रिया महालक्ष्मी जी ने महाराज अग्रसेन को तृतीय और अंतिम वर दिया था। इसे अग्रवाल समाज महालक्ष्मी वरदान पर्व के रूप में मनाता है। अग्रसेन अपने पुत्र विभु को आग्रेय का राज्य सौंपकर महारानी माधवी के साथ वानप्रस्थ आश्रम स्वीकार कर तपस्चर्या करने चले गए । चलते चलते वो यमुना तट पर पहुंचे और वहां यमुना जी मे गोते लगाकर मन को एकाग्र करके , संक्षिप्त जप आदि का कर्म पूर्ण किया और वहां यमुना तट के महर्षियों द्वारा कहीं गईं कथाओं गाथाओं को सुनने लगे । तदोपरांत महाराज अग्रसेन और महारानी माधवी ने उत्तम तपस्या का अनुष्ठान प्रारम्भ किया और त्रिभुवन अधीश्वरी देवी महालक्ष्मी का स्तवन किया । अग्र-माधवी ने जगतपिता ब्रह्मा जी द्वारा रचित सैंकड़ों मंत्रों से श्रध्दापूर्वक महालक्ष्मी का पूजन किया । उन्होंने वर्षों तक एक पैर पे खड़े रहकर दुर्धर योग का अनुष्ठान किया ऐसे कठोर व्रत का पालन करते हुए उन दोनों का शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था और उनका शरीर, चमड़े से ढकी हड्डियों का ढांचा मत्र राह गया था । उनके इस कठोर तप से प्रसन्न होकर साक्षात महालक्ष्मी कमल दल पे विराजमान होकर प्रकट हुईं । और उन्हें अग्रकुल की कुलदेवी होने का वर दिया ।

श्री उवाच

भविष्यति प्रसादन्मे वंशास्ते तेजसंविताः।
परित्राणाय लोकानं सत्यमेदत् ब्रवीमि ते।।

श्री लक्ष्मी ने कहा- हे अग्र! मेरी कृपा से तुम्हारा वंश , स्वयं तुम्हारे तेज से परिपूर्ण होगा , जो तीनों लोकों के संकटों से संसार के लोगों को मुक्ति दिलाएगा , मैं तुमसे ये सत्यवचन कहती हूं।

तव तुष्टा प्रदास्यमि राज्यमायुर्वपूः सुतान्।
न तेसाम दुर्लभं किश्चिदस्मिनलोके भविष्यति।।

हे अग्र ! तुम्हारे वंश द्वारा संतुष्ट होने पर मैं उन्हें राज्य, दीर्घायु, निरोगी शरीर, व श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करूंगी और तब उनके लिए संसार मे कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होगी ।

पूज्यस्व कुले नित्यं सोअग्रवंशो भविष्यति।
कुलेम् ते न वियोक्ष्यामि यावच्चंद्रादिवाकारं।।

हे अग्र ! जिस कुल में मेरी नित्य पूजा होती हो ऐसा तुम्हारा अग्रवंश होगा , मैं तुम्हे वचन देती हूं जब तक सूरज और चंद्र विद्यमान है मैं पूजित होने पे तुम्हारे कुल का परित्याग नहीं करूंगी ।

😊😊 जय कुलदेवी महालक्ष्मी जय श्रीमन नारायण 😊😊

महाराजा अग्रसेन पर मालदीव में डाक टिकट


साभार: वैश्य वैभव 

VAISHYA GURUMATH HALDIPUR - वैश्य गुरु मठ हल्दीपुर






साभार: वैश्य भारती पत्रिका 

भारतेंदु हरिश्चंद्र: आधुनिक हिंदी के पितामह जिनकी जिंदगी लंबी नहीं बड़ी थी

भारतेंदु हरिश्चंद्र: आधुनिक हिंदी के पितामह जिनकी जिंदगी लंबी नहीं बड़ी थी


भारतेंदु हरिश्चंद्र को केवल 35 वर्ष की आयु मिली, लेकिन इतने ही समय में उन्होंने गद्य से लेकर कविता, नाटक और पत्रकारिता तक हिंदी का पूरा स्वरूप बदलकर रख दिया। हिन्दी साहित्य के माध्यम से नवजागरण का शंखनाद करने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म काशी में 9 सितम्बर, 1850 को हुआ था। इनके पिता श्री गोपालचन्द्र अग्रवाल ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे और‘गिरिधर दास’ उपनाम से भक्ति रचनाएँ लिखते थे। घर के काव्यमय वातावरण का प्रभाव भारतेंदु जी पर पड़ा और मात्र पाँच वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना पहला दोहा लिखा।

“लै ब्यौड़ा ठाड़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान
बाणासुर की सैन्य को, हनन लगे भगवान्।।”

यह दोहा सुनकर पिताजी बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया कि तुम निश्चित रूप से मेरा नाम बढ़ाओगे। बाबू हरिश्चन्द्र बाल्यकाल से ही परम उदार थे। यही कारण था कि इनकी उदारता लोगों को आकर्षित करती थी। इन्होंने विशाल वैभव एवं धनराशि को विविध संस्थाओं को दिया है। इनकी विद्वता से प्रभावित होकर ही विद्वतजनों ने इन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि प्रदान की। अपनी उच्चकोटी के लेखन कार्य के माध्यम से ये दूर-दूर तक जाने जाते थे। इनकी कृतियों का अध्ययन करने पर आभास होता है कि इनमें कवि, लेखक और नाटककार बनने की जो प्रतिभा थी, वह अदभुत थी। ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार थे।

भारतेन्दु जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। उन्होंने देश के विभिन्न भागों की यात्रा की और वहाँ समाज की स्थिति और रीति-नीतियों को गहराई से देखा। इस यात्रा का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे जनता के हृदय में उतरकर उनकी आत्मा तक पहुँचे। इसी कारण वह ऐसा साहित्य निर्माण करने में सफल हुए, जिससे उन्हें युग-निर्माता कहा जाता है। 16 वर्ष की अवस्था में उन्हें कुछ ऐसी अनुभति हुई, कि उन्हें अपना जीवन हिन्दी की सेवा में अर्पण करना है। आगे चलकर यही उनके जीवन का केन्द्रीय विचार बन गया। उन्होंने लिखा है –

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान कै, मिटे न हिय को सूल।।”

भारतेंदु ने हिन्दी में ‘कवि वचन सुधा’ पत्रिका का प्रकाशन किया। वे अंग्रेजों की खुशामद के विरोधी थे। पत्रिका में प्रकाशित उनके लेखों में सरकार को राजद्रोह की गन्ध आयी। इससे उस पत्र को मिलने वाली शासकीय सहायता बन्द हो गयी; पर वे अपने विचारों पर दृढ़ रहे। वे समझ गये कि सरकार की दया पर निर्भर रहकर हिन्दी और हिन्दू की सेवा नहीं हो सकती।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की राष्ट्रीय भावना का स्वर ‘नील देवी’ और ‘भारत दुर्दशा’ नाटकों में परिलक्षित होता है। अनेक साहित्यकार तो भारत दुर्दशा नाटक से ही राष्ट्र भावना के जागरण का प्रारम्भ मानते हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की। उनके साहित्यिक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पण्डित रामेश्वर दत्त व्यास ने उन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि से विभूषित किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेन्दु हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। जिस समय भारतेंदु हरिश्चंद्र का अविर्भाव हुआ, देश ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज़ी शासन में अंग्रेज़ी चरमोत्कर्ष पर थी। शासन तंत्र से सम्बन्धित सम्पूर्ण कार्य अंग्रेज़ी में ही होता था। अंग्रेज़ी हुकूमत में पद लोलुपता की भावना प्रबल थी। भारतीय लोगों में विदेशी सभ्यता के प्रति आकर्षण था। ब्रिटिश आधिपत्य में लोग अंग्रेज़ी पढ़ना और समझना गौरव की बात समझते थे। हिन्दी के प्रति लोगों में आकर्षण कम था, क्योंकि अंग्रेज़ी की नीति से हमारे साहित्य पर बुरा असर पड़ रहा था। हम ग़ुलामी का जीवन जीने के लिए मजबूर किये गये थे। हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था। ऐसे वातावरण में जब बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र अवतारित हुए तो उन्होंने सर्वप्रथम समाज और देश की दशा पर विचार किया और फिर अपनी लेखनी के माध्यम से विदेशी हुकूमत का पर्दाफ़ाश किया।



भारतेंदु हरिश्चंद्र हिन्दी में नाटक विधा तथा खड़ी बोली के जनक माने जाते हैं। साहित्य निर्माण में डूबे रहने के बाद भी वे सामाजिक सरोकारों से अछूते नहीं थे। उन्होंने स्त्री शिक्षा का सदा पक्ष लिया। 17 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक पाठशाला खोली, जो अब हरिश्चन्द्र डिग्री कालिज बन गया है। यह हमारे देश, धर्म और भाषा का दुर्भाग्य रहा कि इतना प्रतिभाशाली साहित्यकार मात्र 35 वर्ष की अवस्था में ही काल के गाल में समा गया। इस अवधि में ही उन्होंने 75 से अधिक ग्रन्थों की रचना की, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। इनमें साहित्य के प्रत्येक अंग का समावेश है।

प्रख्यात साहित्यकार डा. श्यामसुन्दर व्यास ने लिखा है – जिस दिन से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने भारत दुर्दशा नाटक के प्रारम्भ में समस्त देशवासियों को सम्बोधित कर देश की गिरी हुई अवस्था पर आँसू बहाने को आमन्त्रित किया, इस देश और यहाँ के साहित्य के इतिहास में वह दिन किसी अन्य महापुरुष के जन्म-दिवस से किसी प्रकार कम महत्वपूर्ण नहीं है। 

बाबू मोशाय!!! जिंदगी लंबी नहीं…बड़ी होनी चाहिए…!’ यह डायलॉग 1971 की चर्चित फिल्म ‘आनंद’ का है. फिल्म में कैंसर के मरीज बने राजेश खन्ना ने जिंदगी का यह फलसफा अपने दोस्त अमिताभ बच्चन को दिया था. लेकिन यह फलसफा हिंदी साहित्य की महान विभूति भारतेंदु हरिश्चंद्र पर भी सटीक बैठता है. उन्होंने सिर्फ 34 साल चार महीने की छोटी सी आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन दुनिया छोड़ने से पहले वे अपने क्षेत्र में इतना कुछ कर गए कि हैरत होती है कि कोई इंसान इतनी छोटी सी उम्र में इतना कुछ कैसे कर सकता है. हमें मालूम हो या न हो लेकिन यह सच है कि आज का हिंदी साहित्य जहां खड़ा है उसकी नींव का ज्यादातर हिस्सा भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनकी मंडली ने खड़ा किया था. उनके साथ ‘पहली बार’ वाली उपलब्धि जितनी बार जुड़ी है, उतनी बहुत ही कम लोगों के साथ जुड़ पाती है. इसलिए कई आलोचक उन्हें हिंदी साहित्य का महान ‘अनुसंधानकर्ता’ भी मानते हैं.

साभार: theanalyst.co.in/bhartendu-harishchandra

SHRIDDHA SAHU - श्रद्धा साहू

MISHIKA CHOURASIA - मिशिका चौरसिया

फिल्म में मेरा सलेक्शन बिना ऑडिशन के हुआ- मिशिका चौरसिया


पहलाज निहलानी की फिल्म ‘ रंगीला राजा’ से तीन लड़कियों ने डेब्यु किया है। उनमें से एक का नाम है मिशिका चौरसिया। मिशिका का जन्म नागपूर में हुआ और उसकी पढ़ाई लिखाई हुई बैंगलुरू में। एक्टिंग के बारे में कभी न सोचने वाली मिशिका का फिर किस तरह आगमन हुआ बॉलीवुड में। बता रही है, इस मुलाकात में।

बकौल मिशिका मैं नागपुर से हूं लेकिन बाद में बैंगलुरू चली गई। एक्टिंग को लेकर मैने नहीं सोचा था। लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि मुझे इस लाइन में आना पड़ा। इसके लिये मैने पहले न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से एक्टिंग का कोर्स किया। उसके बाद मुंबई आ गई। यहां आने के बाद मैंने टी-सीरीज के साथ दो तीन म्यूजिक वीडियोज किये।

एक दिन मेरे अंकल के तहत मेरा पहलाज जी से उनके ऑफिस में मिलना हुआ। हमने उनकी फिल्मों के बारे में बातें की लेकिन मैने अपने काम की उनसे कोई बात नहीं की और जब हम निकलने लगे तो पहलाज जी ने कहा कि अपनी कुछ फोटोज मुझे भेजना। मैने अपने पिक्स भेज दिये। करीब पंद्रह दिन बाद पहलाज जी का फोन आया कि कल ऑफिस आ जाओ, आपका मेजरमेन्ट लेना है। मैं हैरान थी कि उन्होंने मेरे बारे में मुझसे कुछ भी नहीं पूछा फिर कैसा मेजरमेंट। खैर मैं अगले दिन उनके ऑेफिस गई तो वो पूरा भरा हुआ था। उस वक्त वहां डासरेक्टर समेत कू्र का हर मेंबर मौंजूद था। मेरा मेजरमेंट हुआ, उसके बाद सर ने मुझे पूरी कहानी न बताते हुये मुझे मेरे रोल की वन लाइन सुनाई। इसके बाद मुझे फिल्म के लिये साइन कर लिया। दरअसल सर ऑडिषन में बिलीव नहीं करते, उनका कहना हैं कि पांच मिनीट के ऑडिशन में कैसे एक्टर की पहचान हो सकती है। इसलिये मैं कह सकती हूं कि मुझे बिना ऑडिशन की ये फिल्म मिली। उसके पंदरह दिन बाद कर्जत में इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई थी। 


किरदार यही है कि ये एक वर्किगं वूमन है जो काफी स्ट्रांग है। वो काफी बबली है। सबसे अहम बात ये है कि जब मेरी एन्ट्री होती है इसके बाद ही सारे ड्रामे और तमाशे शुरू हो जाते हैं। गोविंदा डबल रोल में हैं और उनकी बीवी और गर्लफ्रेंड है। मैं किसी के साथ नहीं हूं फिर भी दोनों के साथ हूं।

गोविंदा जी की फिल्में देखकर मैं बड़ी हुई हूं। दूसरे सुपर स्टार सुपर स्टार ही होता है। वो फिल्में करे या न करें। उसके कॅलीबर और उसके टेलेंट पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कहा जाता है आफ्टर दिलीप कुमार गोविंदा ही एक ऐसा एक्टर हैं जिसे कंपलीट एक्टर कहा जा सकता है। मैने देखा है उनका टेलेंट जो पिक्चर में दिखाई देता है उससे कहीं ज्यादा है। इसी फिल्म के दौरान मैने देखा कि एक ही षॉट वे दस अलग अलग तरीके से दिखा सकते है उन्होंने अपना वैरियेशन रिपीट नहीं किया। जबकि हम तो एक बार ही कर ले तो बहुत बड़ी बात है। मेरा पहला ही सीन उनके साथ करीब तीन मिनिट बीस सैकेंड का था, जो एक टेक में ओ के हो गया। हालांकि इससे पहले कुछ रिहर्स्रल जरूर हुई थी। मुझे कैमरे से डर वर नहीं लगता दूसरे मेरी मैमोरी बहुत शार्प है इसलिये डायलॉग्स याद करने के मेरे साथ कोई प्राब्लम नहीं थी । मुझे हां पहलाज जी का सपोर्ट, गोविंदा जी का सपोर्ट तो था ही लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि मैने मास्टर शॉट वन टेक में कंपलीट कर दिया। सभी शॉक्ड थे। कि एक नई लड़की ऐसा कैसे कर सकती है।


उनकी इमेज पता नहीं क्यों ऐसी बना दी गई वरना बहुत ही अच्छे इंसान हैं शक्ति सर। पूरी शूटिंग के दौरान अपनी इमेज के मुताबिक उन्होंने एक प्रतिशत भी ऐसी हरकत नहीं की। उनके पास किस्सों की खजाना है, मैं उनसे लगातार किस्से सुनती रहती थी। शूटिंग के बाद हम सब देर रात तक कैरम खेलते रहते थे या और मस्ती करते रहते थे । वाकई उके साथ काम करने में जो मजा आया उसे मैं ता जिन्दगी नहीं भूल सकती ।

मिशिका का कहना हैं कि मुझे पहलाज जी ने तीन फिल्मों के लिये अनुबंधित किया हुआ है बावजूद इसके मैं बाहर भी फिल्म कर सकती हूं।

साभार: mayapuri.com/mishika-chourasia-talks-about-her-debut-film-rangeela-raja







आरके अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, नेट प्लाट प्राइवेट लिमिटेड

मां के कहने से ब्याज पर लिए 50,000 रुपये और शुरू किया बिजनेस, आज 60 करोड़ का टर्नओवर

आरके अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, नेट प्लाट प्राइवेट लिमिटेड 

हर सफलता के पीछे एक अद्भुत कहानी होती है। कानपुर शहर के उद्योगपति आरके अग्रवाल की सफलता की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। साधारण से नौकरी पेशा परिवार में जन्मे आरके अग्रवाल की मां की इच्छा थी कि उनका बेटा उद्योगपति बने। अनगिनत संघर्षों को पछाड़ते हुए आखिरकार आरके अग्रवाल ने ऐसा कर दिखाया। आज उनकी शहर में पांच औद्योगिक इकाइयां हैं। कई देशों में इनके उत्पाद निर्यात होते हैं। 60 हजार रुपये से शुरू किया काम आज 60 करोड़ के सालाना टर्नओवर में तब्दील कर दिया है। तिलक नगर निवासी आरके अग्रवाल के पिता दिवंगत रूप किशोर अग्रवाल न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में थे। चार बेटों का परिवार और एक कमाने वाला। शुरुआती जीवन अभावों में बीता। किसी तरह उन्होंने आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और बंगलुरू की एक कंपनी में नौकरी करने लगे। बेटे का नौकरी करना उनकी मां कमला अग्रवाल को पसंद नहीं आया।

मां चाहती थीं कि उनकी तरह उनके बेटे के परिवार को हर महीने वेतन का इंतजार न करना पड़े। आखिरकार मां ने एक दिन कह दिया, बेटा नौकरी नहीं करनी। तुम्हें उद्योगपति बनना है। मां के सपने को पूरा करने के लिए आरके अग्रवाल ने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने बताया कि वेतन से बचे 10,000 रुपये और पिता से ब्याज पर लिए 50,000 रुपये से अपनी स्किल वाला उद्योग स्थापित किया। वर्ष 1978 में पनकी में किराये पर बिल्डिंग ली। रिसर्च इकाइयों के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट बनाने की फैक्ट्री स्थापित की।

यहीं से असली संघर्ष शुरू किया। विभिन्न तरह के लाइसेंस आदि लेना बड़ा मुश्किल था। आखिरकार इस व्यवसाय में बड़ी सफलता नहीं मिली। आठ साल बाद इसे बंद कर दिया। वर्ष 1986 में प्लास्टिक और पॉलीयूरेटीन के व्यवसाय में कदम रखा। ऑटो मोबाइल कंपोनेट बनाने लगे। यह काम चल निकला। देखते देखते टाटा मोटर, स्कॉर्ट्स, सोनालिक ट्रैक्टर जैसी कंपनियां इनके उत्पादों की ग्राहक बन गईं।

आरके अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, नेट प्लाट प्राइवेट लिमिटेड

वर्तमान में ये देश की कई बड़ी ऑटो मोबाइल कंपनियों के लिए उत्पाद तैयार करते हैं। काम इतना बढ़ा कि पनकी में ही एक के बाद एक पांच उत्पादक इकाइयां स्थापित कीं। एक फैक्ट्री रूद्रपुर में भी खोली। उनका सालाना टर्नओवर 60 करोड़ रुपये से अधिक का हो गया है। 

कुल उत्पादन का 40 फीसदी निर्यात 

आरके अग्रवाल बताते हैं कि उनके कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा निर्यात होता है। इंग्लैंड, स्लोवेनिया, आयरलैंड में उत्पाद जाते हैं। वर्ष 2010 में राष्ट्रपति अवार्ड और 2012 व 2014 में राज्य सरकार से एक्सपोर्ट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। दिल्ली में चल रहीं लो फ्लोर बसों में उन्हीं की बनाई हुई सीटें लगी हैं। अभी हाल ही में उन्होेंने प्लास्टिक पॉली प्रोपलिन के दाने की ट्रेडिंग भी शुरू की है। 

युवाओं को संदेश 

युवा नौकरी के पीछे न भागें। यदि दिमाग में कोई बिजनेस आइडिया है तो उस पर काम करें। लगन और मेहनत से किए गए काम में सफलता मिलती है। एक बात ध्यान रखें जो भी उत्पाद बेचें या बनाएं उससे एक दिन में कमाने की न सोचें। व्यवसाय दीर्घकालीन लाभ के लिए होता है। 

साभार:प्रदीप अवस्थी , अमर उजाला, कानपुर


Monday, December 17, 2018

वैश्य समाज के बारे में कुछ जानकारी

वैश्य समाज के बारे में कुछ जानकारी,,,,,

वैश्य समाज के बारे में मुझे जानकारी देने को आवश्यता नही है ,,,

दुनियां जानती है वैश्य समाज के बारे में ,,,,,

फिर भी वैश्य समाज से अंजान या जलने वाले या घृणा करने वाले लोगों को बता रहा हूँ ये समाज के बारे में कुछ भ्रांतियां है जिन्हें दूर करना चाहता हूँ ,,,

जो लोग समाज के बारे में भ्रांतियां फैलाते है वो या तो वैश्य समाज की शख्सियत , कामयाबी से जलते है या फिर अंजान बने रहना चाहते है ,,


उन्हें बता हूँ वैश्य समाज कभी भी किसी भी समाज का अहित नही चाहता है वो सबको सम्मान देता है सभी को अपनी तरफ सुखी देखने की कामना करता है ये वो ही समाज है जो सबसे कम धन होने के बाबजूद भी अपने खर्चो में फिजूल खर्ची को खत्म करके सभी वर्गों के हितों के लिए कुछ न कुछ करता है ये वही समाज है जिसने अपने साथ-2 सभी के लिए ऐसी परम्पराए विकसित की है जिससे सभी की रोजी रोटी सुचारू रूप से चल सके ,,, फिर भी सभी ये कहते है कि वैश्य समाज ने हमारे लिए क्या किया है अरे मूर्खो ,,,,,

जो पंडित ये समझते है कि हम पूज्यनीय है तो ये मत भूलो की आज भी तुम्हारा कोई आदर कर रहा है तो वो सिर्फ वैश्य समाज की बजह से , जो तुम अहंकार दिखाते हो जरा सा ज्ञान होने का उससे ज्यादा ज्ञान तो एक तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी लिए फिरता है तुम्हे लेकिन जो तबज्जो मिलती है वो सब वैश्य समाज की बजह से ,,,,, वो तुम्हे अपने से भी श्रेष्ठ रखता है ,,,अन्य जातियां भी तभी तुम्हारा सम्मान करती है न तो तुम्हे कौन पूछता था ,,, वैश्य समाज ने ही हर जाति के उत्तान के लिए कुछ न कुछ परम्पराए बनाई है जैसे विवाह के अवसर पर दूल्हे की हजामत के लिए नाई , मिट्टी के बर्तनों के लिए कुम्हार,,,,हवन पूजन के लिए पंडित, काजी, ,,,,बैंड बाजे के लिए मुसलमान, खाने के लिए हलवाई, हर वर्ग को उन्नति में लाने के लिए कुछ न कुछ अवश्य रखा है फिर भी चंद चोर नेताओ , कर्मचारियों , विशेषकर फिल्म जगत के लोगों ने इस समाज के बारे में उल्टा सीधा चित्रण किया है जिसके परिणामस्वरूप ही आज हर समाज वैश्य वर्ग को घृणा की दृष्टि से देखता है बिना कुछउसके बारे में इतिहास जाने ,,,,

वो वर्ग ऐसा वर्ग है जो अपनी मेहनत - की एक-एक पाई पाई को इकट्ठा करके करोड़ो का चंदा किसी को भी दान में देता है ,,,,,,वैश्य समाज को मुझे परिचय देने की आवश्यकता नही है वो किसी परिचय का मोहताज नही है तमाम कुप्रथाओ को खत्म करने में हमेशा अग्रणी ,,,,,,,,

देश आजादी से लेकर आज तक वैश्य समाज ने जो योगदान दिया है वो अविस्मरणीय है ,,, देश आजादी में क्रांति के लिए धन बल जुटाने सेठ जमुनालाल बजाज , बिरला परिवार , देश आजादी की लड़ाई में भी वैश्य समाज के प्रमुख क्रांतिकारियों का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिसे भुलाया नही जा सकता जैसे - लाला लाजपत राय , मनमंथ गुप्ता, महात्मा गांधी, श्यामलालगुप्ता पार्षद इतियादी अनेक ऐसे जांबाजों हुए है जिनका महत्वपूर्ण योगदान है ,,,,

वैश्य समाज के संस्कारों के बारे में बात करे तो इसके कहने ही क्या है ,,,,,

बड़े से बड़े उधोयपतियों को देख लो एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अमबानी से लेकर , सुनील भारती मित्तल , वेदान्ता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल , आदित्य बिड़ला ग्रुप के मालिक इतियादी में से किसी को भी देख लो अहंकार,अभिमान छू कर भी नही गुजरा है ,,,

हमेशा राष्ट हिट में कुछ न कुछ बड़ा करते रहते है 

जैसे अगर सुनील मित्तल एयरटेल के मालिक की बात करें तो बिज़नेस यूनिवरसिटी के लिए 7000 करोड़ का चंदा देना , अनिल अमबानी का 

Bsuiness स्कूल के लिए 10000 करोड़ देना , अनिल अग्रवाल का 20000 करोड़ का दान करना अनेकों ऐसे उदाहरण है दान पुण्य के कार्यों के किस्सों में तो ये समाज अग्रणी है ही ये समाज दिखावा के लिए दान नही करता है ना ही राजनीति करने के लिए राजनीति से इस वर्ग का कोई लेना देना नही है ,,,,

इसका जीता जागता उदाहरण है मिस्टर मुकेश अमबानी एशिया के डब्से धनाढ्य व्यक्ति अपनी बेटी के शादी समारोह में सपरिवार गरीबों को , दिव्यांगों को अपने हाथों से भोजन करा रहे है इनका राजनीति से कोई लेना देना नही है ये इनके माता पिता के संस्कार है जो इनमे झलक रहे है वार्ना अपने सुना ही होगा ,,,,की पैसा , पद ,या प्रतिष्ठा अगर बढ़ती है तो इंसान का अहंकार भी बढ़ता है पर वो इन पर फिट नही बैठता है मित्रो,,,,,,, ये है हमारा वैश्य समाज और उसके संस्कार सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक के,,,,