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Monday, December 31, 2012

भंडारी वैश्य-BHANDARI VAISHYA

भंडारी जाति का संक्षिप्त इतिहास

भारतीय समाज में कर्म के आधार पर सुदीर्घ काल तक प्रचलित रही चतुवर्ण-व्यवस्था में भंडारी वैश्य वर्ण में स्थान पाते हैं और भंडारी महाजन जाति में आते हैं | ओसवाल वंश की एक प्रतिष्ठ जाति/गौत्र/शाखा भंडारी समाज ही है |

सन 1891 में भंडारी गौत्र की उत्पति अजमेर के चौहान राज्य वंश से हुई | अजमेर के चौहान राजाओं के वंशज राव लाखण सी/लक्ष्मण शाकमभरी(सांभर) से अलग होकर अपने बाहुबल से नाडोल को अपना राज्य बनाया | भंडारियों की ख्यात् के अनुसारनाडोल के राजा राव लाखण सी के 24 रानियाँ थी, परन्तु वे सभी नि:संतान थी| जैन आचार्य यशोभद्र सूरी जी विहार करते हुए नाडोल पधारे | राजा लाखण सी ने आचार्य श्री का भक्तिभाव से भव्य सत्कार किया | आचार्य श्री अत्यंत प्रसन्न हुए | राव लाखण सी ने आचार्य श्री के सम्मुख नि:संतान होने का दुःख प्रकट किया और दुःख निवारण के लिये आचार्य प्रवर से शुभाशीष देने का निवेदन किया | आचार्यवर ने प्रत्येक रानी को एक एक पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और साथ ही राजा से कहा की वे अपने 24 पुत्रो में से एक पुत्र हमे सौप दोगे, जिसे हम जैन धर्म, अंगीकार करवायेंगे | राजा लाखण सी ने यह बात स्वीकार कर ली | आचार्य श्री का आशीर्वाद फलीभूत हुआ और राजा लाखण सी 24 पुत्रो के पिता बने, जिनके नाम इस प्रकार है -

(1) मकडजी
(2) सगरजी
(3) मदरेचाजी
(4) चंद्रसेनजी
(5) सोहनजी
(6) बीलोजी
(7) बालेचाजी
(8) सवरजी
(9) लाडूजी
(10) जजरायजी
(11) सिद्पालजी
(12) दूदारावजी
(13) चिताजी
(14) सोनगजी
(15) चांचाजी
(16) राजसिंहजी
(17) चीवरजी
(18) बोडाजी
(19) खपतजी
(20) जोधाजी
(21) किरपालजी
(22) मावचजी
(23) मालणजी
(24) महरजी

कुछ वर्षों बाद आचार्य जी पुन: पधारे और राजा लाखण सी ने अपने वचन अनुसार प्रसन्तापूर्वक अपने 12 वे पुत्र दूदारावजी को आचार्य श्री की सेवा में दे दिया | आचार्य श्री ने दूदारावजी को प्रतिबोधित किया | उनके प्रतिबोध एवं तात्विक भाष्य से दूदारावजी ने जैन धर्म को अंगीकार किया | राजा लाखण सी ने दूदारावजी को "भांडागारिक राजकीय पद पर आसीन किया" भांडागारिक पद को किसी क्षुद्र भंडार विशेष से जोड़ना उचित नहीं होगा | भांडागारिक पद राजकोषीय भंडार की व्यापकता से युक्त लगता है दूदाराव जी के वंशज भांडागारिक नाम से संबोंधित किये जाते रहे होगें जो कालान्तर में अपभ्रंश रूप में भंडारी शब्द में परिवर्तित हो गया होगा - ऐसा प्रतीत होता है |

अत: इस प्रकार दूदारावजी ही भंडारियों के आदिपुरुष हुए |

Wednesday, December 26, 2012

जो किस्मत के धनी वे बनिया!

जी-चैनल के सुभाष गोयल से लेकर एयरटेल के सुनील मित्तल तक सभी बनिए ही हैं। आचार्य रजनीश ने दुनिया को दीवाना बनाकर रखा था वह भी बनिए (जैन) ही थे। चंद्रा स्वामी ने तो चूना लगाने के क्षेत्र में नए रिकार्ड बनाए, वे भी बनिए हैं। कौनसा ऐसा क्षेत्र है जो उनसे बचा हुआ है?

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है। 

अखबारों में आ रहे तमाम परीक्षा परिणामों के नतीजों पर नजर डालें तो इस कालम में बनियों यानी वैश्य व्यापारी वर्ग पर लिखने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। हाई स्कूल से लेकर आईआईटी, पीएमटी यहां तक की सिविल सेवा तक के नतीजों में सफलता पाने वालों की सूची चौंकाती है। जिधर नजर डालंे तो उसमें आधे से ज्यादा नामों के आगे गुप्ता, गोयल, जैन, अग्रवाल, सिंघल, बसंल, कंसल आदि सरनेम देखने को मिलेंगे। जो बनिए कभी केवल दुकान और व्यापार तक सीमित रहते थे, आज हर क्षेत्र में अव्वल आ रहे हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो, जहां उन्होंने सफलता हासिल नहीं की हो। कुशाग्रता तो उनके खून में पाई जाती है और मानो गणित पर उनका एकाधिकार सा है। शायद ही इस वर्ग का कोई छात्र ऐसा हो, जो गणित में कमजोर हो। चंद वर्ष पहले तक सीपीडब्ल्यूडी में ही बनिया इंजीनियरों की भरमार दिखती थी, पर अब यह अतीत की बात हो चुकी है। 

मनु स्मृति में भी वैश्यों को व्यापार का काम सौंपा गया था और अपना देश आजाद हुआ तो उससे पहले से ही वे सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करने लगे थे। बिड़लाजी महात्मा गांधी के फाइनेंसर माने जाते थे। यह अलग बात है कि इस देश को आजादी दिलावाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी खुद भी गुजरात के बनिया ही थे। जमना लाल बजाज, डालमिया सभी ने स्वतंत्रता संग्राम में जितना संभव हो सका, उतनी उनकी मदद की। उस दौरान मनमथनाथ गुप्त की गिनती बहुत बड़े क्रांतिकारियों में होती थी। साहित्य के क्षेत्र में भी मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि कहलाए। काका तो जाने माने हास्य कवि थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है। 

पत्रकार के रूप में बनियों ने विशेष ख्याति हासिल की। समकालीन पत्रकारिता में शेखर गुप्ता इसका जीता जागता उदाहरण है। एक समय तो ऐसा था जब कि मजाक में यह कहा जाने लगा था कि इंडियन एक्सप्रेस में ‘गुप्त काल’ रहा है। क्योंकि तब शेखर गुप्ता के अलावा वहां नीरजा (गुप्ता), हरीश गुप्ता, शरद गुप्ता, शिशिर गुप्ता भी पत्रकारिता कर रहे थे। 

जब सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो पत्रकार निर्मल पाठक ने उनसे चुटकी लेते हुए कहा था, चचा, भाजपा के लिए तो समस्या पैदा हो जाएगी, क्योंकि अब बनियों को सोचना पड़ेगा कि वे आपको वोट दें या भाजपा को। केसरीजी ने पूछा वह कैसे तो उसने शरारती अंदाज में कहा कि आपने जगह-जगह दीवारों पर लिखा यह नारा तो पढ़ा ही होगा कि ‘भाजपा के सदस्य बनिए’।

बनियों का भाजपा से विशेष लगाव रहा हैं। एक समय था, जब हर शहर में पार्टी का स्थानीय दफ्तर किसी बाजार में होता था। नीचे दुकान होती थी व पहली मंजिल पर कार्यालय हुआ करता था। जब राजग सत्ता में थी तो दैनिक जागरण के मालिक नरेंद्र मोहन भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा में आ गए थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैश्य समाज का एक भी मंत्री नहीं था। विजय गोयल भी सरकार के अंतिम महिनों में कैबिनेट में लिए गए थे। नरेंद्र मोहन अपने अखबार में अक्सर यह खबर छपवाते रहते थे कि राजग में बनियों की उपेक्षा हो रही है। उनका एक भी मंत्री नहीं हैं। इस पर एक बार प्रमोद महाजन ने किसी कार्यक्रम में उनसे कटाक्ष करते हुए कहा कि हम पर तो बनियों की सरकार होने का आरोप लगाया जा रहा है और आप का अखबार लिख रहा है कि सरकार में बनियों की उपेक्षा हो रही है। 

रुपए पैसे के हिसाब-किताब रखने की उनकी योग्यता गजब की होती है। इसी योग्यता के कारण सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे थे। उनके बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि ‘‘न खाता न बही, जो कहें केसरी वही सही’’। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कोषाध्यक्ष भी बनिया ही हैं। पहले पार्टी के कोष को वेदप्रकाश गोयल संभालते थे। अब अध्यक्ष बदलने के बाजवूद भाजपा का खजाना उत्तराधिकारी के रुप में उनके बेटे पीयूष गोयल को सौंप दिया गया है।

पड़ोसी राज्य हरियाणा में बनियों व जाटों का बहुत पुराना बैर माना जाता है। न्याय युद्ध के दौरान देवीलाल अक्सर भजनलाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एक किस्सा सुनाते थे कि उन्होंने किसी जाट से पूछा कि अगर हर किलोमीटर एसवाईएल नहर बनाने में भजनलाल एक लाख रुपए कमा रहा हो तो पूरी हरियाणा में नहर बनवा कर वह कितनी कमाई कर डालेगा? इस पर उस लड़के ने जवाब दिया कि हम कोई ‘बणिए’ के छोरे हैं जो यह हिसाब किताब करते फिरे? यह अलग बात है कि तब बीडी गुप्ता उनके साथ हुआ करते थे जो कि वैश्य समाज के एक बहुत बड़े संगठन के अध्यक्ष थे। हरियाणा की राजनीति में ओम प्रकाश जिंदल की काफी अहम भूमिका रही। पहले उन्होंने भजनलाल का साथ निभाया व फिर बंसी लाल का।

आपातकाल के दौरान बंसीलाल अपने शहर भिवानी के एक संपन्न वैश्य व्यापारी से नाराज हो गए। उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए शहर के सबसे चर्चित स्थान घंटाघर में स्थित उसकी संपत्ति पर बुलडोजर फिरवा दिया। वह लाला इतना होशियार था कि जब उसे यह पता चला कि कार्रवाई होने वाली है तो उसने उस युग में जब कि लोगों के पास साधारण कैमरे भी नहीं होते थे, मुंबई से फिल्म बनाने वाले मूवी कैमरे व फोटोग्राफर का इंतजाम किया। उस इलाके में स्थित एक ऊंची इमारत में उसे छिपाकर पूरी फिल्म तैयार करवाई। जब आपातकाल समाप्त हुआ और जनता पार्टी ने उस दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया तो उसने उसके समक्ष वह फिल्म पेश कर दी। आयोग ने उसकी जमीन वापस लौटाने का आदेश दिया। इस घटना के कई साल बाद जब मैं उस बुजुर्ग व्यापारी से मिला तो उसने बताया कि बंसीलाल के इस कदम से उसके भाग्य खुल गए क्योंकि उसकी जिस बिल्डिंग को ध्वस्त किया गया था, वह काफी पुरानी थी। उसमें दरजनों किराएदार थे, जो डेढ़, दो रूपए महिला किराया देते थे। उसे खाली भी नहीं करते थे। बुलडोजर चलने के बाद उसे उनसे मुक्ति मिल गई। जब मैं वहां गया तो उस स्थान पर बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र बन चुका था। जिसमें दर्जनों बैंक व बीमा कंपनियों के दफ्तर खुले हुए थे। जिनसे तब उसे लाखों रूपए महीना किराया मिल रहा था। हालांकि जब लाला ने अनुरोध कर मुझे पीछे स्थित अपने बाग में खाना खिलवाया तो मैंने पाया कि हमें स्टील की जिन कटोरियों में खाना परोसा गया था, वे टूटी हुई थीं। मैंने अपने जीवन में पहली व अंतिम बार स्टील के टूटे हुए बर्तन वहीं देखे। 

जी-चैनल के सुभाष गोयल से लेकर एयरटेल के सुनील मित्तल तक सभी बनिए ही हैं। आचार्य रजनीश ने दुनिया को दीवाना बनाकर रखा था, वह भी बनिए (जैन) ही थे। चंद्रा स्वामी ने तो चूना लगाने के क्षेत्र में नए रिकार्ड बनाए, वे भी बनिए है। कौन सा ऐसा क्षेत्र है, जो उनसे बचा हुआ है? हिंदू धर्म में सबसे चर्चित कथा सत्य नारायण की है, जो यह बताती है कि आदमी किस तरह से भगवान तक को मूर्ख बनाता है। पहले उसे प्रसाद का लालच देकर काम करवाता है, फिर अपना वादा पूरा करना भूल जाता है। उसका मुख्य पात्र भी बनिया ही है। 

बनिए पूजा पाठ में बहुत ज्यादा रूचि लेते हैं। दीवाली पर सबसे लंबी पूजा वही करवाते हैं। वे ही सबसे ज्यादा मथुरा और वृंदावन जाते हैं। लक्ष्मी को भी उनके यहां ही रहना पसंद आता है। इस बारे में हरियाणा में किसी जाट मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि एक जाट ने अपने घर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर ली। एक दिन शाम को खूंटा नजर नहीं आया तो उसने भैंस की जंजीर हनुमानजी की टेढ़ी वाली टांग में बांध दी। कुछ देर बाद भैंस का घूमने का मन हुआ, उसने कुछ झटके मारकर मूर्ति उखाड़ डाली व बाहर चल पड़ी। मूर्ति उसके साथ घिसटती चली जा रही थी। रास्ते में एक मंदिर था, जहां लक्ष्मी की मूर्ति लगी थी। वे हनुमानजी की हालत देखकर हंस पड़ी। इस पर हनुमानजी नाराज होकर कहा, ज्यादा न हंस। वह तो तेरी किस्मत अच्छी है कि बनिया के यहां रहती है। अगर किसी जाट के पल्ले पड़ी होती तो कब की यह हंसी निकल गई होती।


साभार : नया इंडिया, लेखक विनम्र 




Wednesday, December 19, 2012

कलाल-कलवार-कराल वैश्य

पिछड़ी  जातियों के संदर्भ में अक्सर कलाल शब्द सुनते आए हैं। कलार या कलाल मूलतः वैश्यों के उपवर्ग है जो जातिवादी समाज में विकास की दौड़ में लगातार पिछड़ते चले गए। अब इन्हें अन्य पिछड़ावर्ग में गिना जाता है। यह भी स्थापित सत्य है कि वैश्य समुदाय की पहचान किस जमाने में क्षत्रिय वर्ण में होती रही है। विभिन्न वैश्य समूदायों की उत्पत्ति के सूत्र क्षत्रियों से ही जुड़ते हैं।


कलाल शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत केकल्य या कल्प से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है इच्छापूर्ति करना। व्यवहार में लाने योग्य, समर्थ आदि। व्यावहारिक तौर पर इसमें राशन सामग्री का भाव भी आता है। आप्टे के संस्कृत शब्दकोश में कल्पपालः का अर्थ शराब विक्रेता बताया गया है। इसी तरह कल्य शब्द का अर्थ भी रुचिकर, मंगलमय आदि है। इसमें भी भोज्य सामग्री का भाव है। कल्य से ही बना हैकलेवा जो हिन्दी में खूब प्रचलित है और सुबह के नाश्ते या ब्रेकफास्ट के अर्थ में इस्तेमाल होता है। कल्या का मतलब मादक शराब होता है। मदिरा के कई उपासकों का कलेवा कलाली पर ही होता है। कल्यपाल या कल्पपालमूलतः एक महत्वपूर्ण ओहदा होता था जिस पर तैनात व्यक्ति के जिम्मे सेना की रसद से जुड़ी हुई तमाम जिम्मेदारियां थीं। कल्यपाल यानी जो खाद्य आपूर्ति का काम करे। व्यापक रूप में खाद्य आपूर्ति यानी प्रजा के भरण पोषण का दायित्व राजा का भी होता है अतः प्रजापालक के रूप में कल्यपाल का अर्थ राजा भी होता है। कलाल वैश्यों से भी पहले क्षत्रिय थे इसके संदर्भ भी मिलते हैं। कल्यपाल राजवंश भी हुआ है जिन्होने कश्मीर में शासन किया।


शासन के लिए, खासतौर पर सेना के लिए रसद आपूर्ति के काम में मदिरा भी एक रसद की तरह ही उपभोग की जाती थी। कल्प का एक अन्य अर्थ है रोगी की चिकित्सा। जाहिर है इसमें पदार्थ का सार, आसवन करना, आसव निकालना आदि भाव भी शामिल हैं। गौरतलब है कि प्राचीन भैषज विज्ञान के अनुसार ये सारी विधियां ओधषि निर्माण से जुड़ी रही हैं। कलाल के वैश्य समुदाय संदर्भित अर्थ पर गौर करें तो जाहिर है कि रोगोपचार वैद्य का कार्य रहा है मगर ओषधि निर्माण का काम एक पृथक व्यवसाय रहा है जिसे वैश्य समुदाय करता रहा है। कल्यपाल एक राज्याश्रित पद होता था। प्राचीनकाल में भी मदिरा के गुण-दोषों के बारे में राज्य व्यवस्था सतर्क थी। कल्यपालका मतलब हुआ आसवन की गई सामग्री का अधिपति। शासन व समाज के उच्च तबके द्वार विलासिता के तौर पर उपभोग की जाने वाली मदिरा के निर्माण का काम इसी कल्यपाल के जिम्मे होता था। कल्यपाल का ही अपभ्रंश रूप होता है कलार या कलाल। कलाल समुदाय में जायसवाल वर्ग काफी सम्पन्न और शिक्षित रहा है। इनकी उद्यमशीलता वैश्यों सरीखी ही है। मदिरा के कारोबार पर हमेशा से राजकीय नियंत्रण रहा है। आज के दौर में हर राज्य में शराब विक्रेताओं के 

कल्य शब्द से बने कलाल या कलार से ही जन्मे कलारी या कलाली का किसी समय समाज में ऊंचा और विशिष्ट स्थान था।सिंडिकेट बने हुए हैं जिन पर कलाल समुदाय के लोग ही काबिज हैं। देश के अलग अलग इलाकों में इनके कई नाम भी प्रचलित हैं मसलन कलार, कलवार, दहरिया, जायसवाल, कनौजिया, आहलूवालिया, शिवहरे, वालिया,   कर्णवाल, सिकन्द,  आदि। पंजाब के आहलूवालिया जबर्दस्त लड़ाका क्षत्रिय हैं। बहादुरी में इनका सानी नहीं अविभाजित पंजाब के आहलू गांव से इनकी शुरूआत मानी जाती है। अवध का एक बड़ा इलाका किसी जमाने में कन्नौज कहलाता था। यहां से जितने भी समुदाय व्यवसाय-व्यापार के लिए अन्यत्र जा बसे उनके साथा कन्नौजिया शब्द भी जुड़ गया। कन्नौजिया शब्द में किसी जाति विशेष का आग्रह नहीं बल्कि स्थान विशेष का आग्रह अंतर्निहित है। कन्नौजिया उपनामधारी लोग हर वर्ग-समाज में मिल जाएंगे। शिवहरे नाम शिव से संबंधित है।


कल्य शब्द से बने कलाली से जहां ताड़ीखाने का रूप उभरता है वहीं राजस्थान की रजवाड़ी संस्कृति में यह शब्द विलास और श्रंगार के भावों को व्यक्त करता है। लोक गायन की एक शैली हीकलाली अथवा कलाळी कहलाती है। इस पर कई भावपूर्ण गीतलिखे गए हैं। शुद्ध रूप में इन्हें कलाळियां कहा जाता है। रजवाड़ी दौर में कलाळ अर्थात कलालों का रुतबा था। उनकी मदिरा प्रसिद्ध थी। उनकी अपनी भट्टियां होती थीं।लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ने रजवाड़ी गीत की भूमिका में लिखा है कि समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति इनके घर जाकर मदिरापान करते थे। इन कलालों की महिलाएं मेहमानों की आवभगत करतीं और मनुहार से मदिरा पिलाते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान के बनाए रखती थीं। वे इस संबंध में सजन और पातुड़ी कलाळन का उल्लेख करती हैं। मध्यकालीन सूफी-संतों ने भी ईश्वर भक्ति के संदर्भ में कलाली, भट्टी जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। कबीरदास कहते हैं-कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई। सिर सौपे सोई पिवै, नहिं तो पिया न जाई।। यानी रामरस का स्वाद अगर लेना है तो सर्वस्व त्यागना होगा। अब यह कैसे संभव है कि जिस सिर अर्थात मुंह से मदिरा का स्वाद लेना है, वही सिर कलाल को मदिरा की एवज में सौप दिया जाए !!

कल्य शब्द से बने कलाल या कलार से ही जन्मे हैं कलारी या कलाली का किसी समय समाज में ऊंचा और विशिष्ट स्थान था। आज कलाली देशी दारू की दुकानों या ठेकों के रूप में आमतौर पर व्यवहृत हैं। मराठी, गुजराती, पंजाबी जैसी भाषाओं में भी यही रूप प्रयोग में आते हैं जिससे सिद्ध है कि कल्यपाल की राज्याश्रित व्यवस्था का विस्तार समूचे भारत में था। शराब की भट्टियां लगाने का काम खटीक करते थे और विक्रय की जिम्मेदारी कलाल समुदाय की थी। डॉ विगो खोबरेकर लिखित मराठा कालखंड-2 में शिवाजी के राज्य में नियंत्रित मदिरा व्यवसाय का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि ब्राह्मणों के लिए शराबनोशी प्रतिबंधित थी। सैनिकों के लिए भी शराब की मनाही थी।

साभार :

श्री अजित वडनेरकर, http://shabdavali.blogspot.in/2009/02/blog-post_27.html

THE GREAT BANIYA COMMUNITY

A very very interesting story on India ‘s caste issues

Forbes magazine has put out a list of the world’s 1,210 billionaires.

Fifty-five of them are Indians. A billion dollars is Rs. 4,480 crore.

A Baniya is a member of the Vaish caste, 

They are approx. 15% of India ‘s population. Yet, 26 of the 55 are baniyas! & some of them from sub vaishya caste.

India ‘s richest man is a Baniya (Lakshmi Mittal, world’s sixth richest with $31.1 billion),


India ‘s second richest man is a Baniya (Mukesh Ambani, $27 billion),


India ‘s third richest man is a Khoja (Azim Premji, $16.8 billion) a converted baniya.


India ‘s fourth richest men are Baniyas (Shashi and Ravi Ruia, $15.8 billion),


India ‘s fifth richest person is a Baniya (Savitri Jindal, $13.2 billion),


India ‘s sixth richest man is a Baniya (Gautam Adani, $10 billion),


India ‘s seventh richest man is a Baniya (Kumar Mangalam Birla, $9.2 billion),


India ‘s eighth richest man is a Baniya (Anil Ambani, $8.8 billion),


India ‘s ninth richest man is a Baniya (Sunil Mittal, $8.3 billion).


India ‘s 10th richest man is a Parsi (Adi Godrej, world’s 130th richest with $7.3 billion).

Score: Baniyas 9, Rest of India 1. If we consider the Gujaratis Godrej and Premji (from the Lohana bania caste) as coming from mercantile communities then actually Rest of India wasn’t playing this match so far.

India ‘s 11th richest man is K.P. Singh of DLF ($7.3 billion). He is thefirst departure from our trend of mercantile castes. Singh is a peasant, the most populous caste grouping of India,
about 50% of our population.

From numbers 11 to 20, there are seven Baniyas. They are Anil Agarwal of Vedanta ($6.4 billion),

Dilip Shanghvi of Sun Pharma ($6.1 billion), Uday Kotak ($3.2 billion), and Subhash Chandra Goel of Zee, ($2.9 billion). The non-Baniyas are Shiv Nadar of nadar caste a sub vaishya caste, HCL ($5.6 billion),

Malvinder and Shivinder Singh of Ranbaxy ($4.1 billion), Kalanithi Maran of Sun TV ($3.5 billion), Mukesh Jagtiani of Landmark ($3 billion) and Pankaj Patel of Cadila ($2.6 billion) both of them from vaishya baniya caste

Between 21 and 30, there are 8  Baniyas. They are Indu Jain of The Times of India ($2.6 billion),

Desh Bandhu Gupta of Lupin ($2.1 billion), Sudhirand Samir Mehta of Torrent ($2 billion),

Aloke Lohia of Indorama ($2 billion) and Venugopal Dhoot of Videocon ($1.9 billion).

G.M. Rao of GMR ($2.6 billion).

Mumbai builder Rajan Raheja ($2.2 billion).(a khatri sub vaishya caste)

Gautam Thapar of Avantha ($2 billion)( a khatri saub vaishya caste). 

Between 31 and 40 are two Baniyas: Rahul Bajaj ($1.6 billion) and Ajay Piramal ($1.4 billion).

The non-Baniyas include three Brahmins: Nandan Nilekani ($1.8 billion) and

S. Gopalakrishnan ($1.6 billion) of Infosys, and Vijay Mallya ($1.4 billion).

Three of the others are from mercantile our sub vaishya castes: Chandru Raheja ($1.9 billion),

Brijmohan Lall Munjal of Hero Motors ($1.5 billion) and Vikas Oberoi ($1.4 billion).

The last two are K. Anji Reddy ($1.5 billion) (from Andhra’s dominant peasant community) and Ajay Kalsi of Indus Gas ($1.7 billion).

Between 41 and 50 are five Baniyas. They are R.P. Goenka ($1.3 billion), Rakesh Jhunjhunwala ($1.2 billion), Brij Bhushan Singhal ($1.2 billion), B.K. Modi ($1.1 billion) and Mumbai builder Mangal Prabhat Lodha ($1.1 billion). Baba Kalyani of Bharat Forge ($1.3 billion), Keshub Mahindra ($1.2 billion) are fro sub vaishya caste. Non baniya are  K. Dinesh ($1.2 billion) and S.D. Shibulal ($1.1 billion) of Infosys, and Yusuf Hamied of Cipla ($1.1 billion).

The last five, from 51 to 55, include two Baniyas: Mumbai builder Mofatraj Munot of Kalpataru ($1 billion) and Ashwin Dani of Asian Paints ($1 billion). Two of the others are

from mercantile sub vaishya castes: Parsi Anu Aga of Thermax ($1 billion) and Khatri Harindarpal Banga of Noble ($1 billion). Delhi builder Ramesh Chandra of Unitech ($1 billion) ends our list of Indians with a billion dollars or more.

The list has three Parsis, two Muslims and Sikhs in one spot (shared by the Ranbaxy Singhs).

Banga is also a Sikh name but Harindarpal is clean-shaven. All of them, except Poonawalla, have inherited their wealth, though in the case of one (Premji), he took a small firm and

made it global. There is nobody from the scheduled tribes or castes.

India ‘s large peasant castes have some representation (Singh, Patel, Reddy), but not much.

There are 46 Baniyas on our list. Many of them inherited their wealth, but just as many (Mittal, Ruias, Adani, Dhoot among others) are self-made.

The list has 16 Rajasthanis, and 13 Gujaratis. Every single Rajasthani is from one caste, Vaish, though they are from two faiths: Hindu and Jain.

Only Gujarat is capable of producing billionaires drawn from four different faiths-Hindu, Parsi, Jain and Muslim-and three different castes: Baniya, Khatri and peasant.

This is unique in India and there is something about this secular mercantile culture that produces great men across communities. What is it? Three out of the four biggest leaders of the subcontinent under British rule were Gujarati, and they were drawn from these three castes: Gandhi, Jinnah and Patel. Only 5% of India ‘s population, Gujaratis don’t have the numbers to dominate its democratic politics. But businesses are not run in

democratic fashion. And to rise, you need quality, not quantity.

The heartland of India , where our quantity resides, is missing from this list. Bihar, Bengal, Madhya Pradesh, Odisha, Uttar Pradesh have little or no representation and this does not surprise us.

On the list are 10 south Indians, in proportion to their 20% share of India ‘s population.

The famous five from Infosys are obviously self-made. Of the others, four are first-generation wealthy. This is a good indicator for the future, and it restores some balance in favor of Rest of India.

Two final observations. India ‘s greatest businessman is not on this list.Why is that?

It is because Ratan Tata owns less than 1% of Tata Sons. He is exceptional in every way.


SAABHAAR : SRI DINESH VORA

Thursday, December 13, 2012

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी - वैश्य गौरव - Our Proud PM Shri Narendra Modi

हिंदू ह्रदय सम्राट, वैश्य गौरव भाई नरेन्द्र मोदी जी.


नरेन्द्र दामोदरदास मोदी  

जन्म: १७ सितम्बर, १९५० भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं। भारत के राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें २६ मई २०१४ को विधिवत भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलायी। वे स्वतन्त्र भारत के १५वें प्रधानमन्त्री हैं तथा इस पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्में प्रथम व्यक्ति हैं।

उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने २०१४ का लोकसभा चुनावलड़ा और २८२ सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की।
इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के १४वें मुख्यमन्त्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार ४ बार (२००१ से २०१४ तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय सेराजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द इयर २०१३ के ४२ उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।

अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं।

नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य केमहेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में १७ सितम्बर १९५० को हुआ था। नरेन्द्र मोदी जी का परिवार मोध-घांची-वनिक-तेली समुदाय से सम्बंधित हैं. जो की गुजरात की एक वैश्य जाति हैं.  वह पूर्णत: शाकाहारी हैं।  भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की।[ युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए और साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।  किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगर में पूरी की। उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में गुजरात विश्वविद्यालयसे राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और एम॰एससी॰ की डिग्री प्राप्त की।
अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र था लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी।  इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी। 
13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदाबेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ वे मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये। परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी। जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है:

"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"

पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती। हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।

राजनीति में प्रारम्भ से ही सक्रियता

नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ. उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का आधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की रणनीति ही तो थी।

अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी जब गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा जिसमें आडवाणी जी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार की दूसरी रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इन दोनों यात्राओं ने मोदी का राजनीतिक कद ऊँचा कर दिया जिससे चिढ़कर शंकरसिंह वघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।

1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र भाई मोदी को सौंप दी।

गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में

नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं कोई भारी भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती।  उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे। वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। वे स्वयं को पण्डित जवाहरलाल नेहरू के मुकाबले सरदार वल्लभभाई पटेल का असली वारिस सिद्ध करने में रात दिन एक कर रहे हैं। धोती कुर्ता सदरी के अतिरिक्त वे कभी कभार सूट भी पहन लेते हैं। गुजराती, जो उनकी मातृभाषा है के अतिरिक्त वे राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही बोलते हैं। अब तो उन्होंने अंग्रेजी में भी धाराप्रवाह बोलने की कला सीख ली है। 

गुजरात के विकास की योजनाएँ

मुख्यमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास के लिये जो महत्वपूर्ण योजनाएँ प्रारम्भ कीं व उन्हें क्रियान्वित कराया उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

पंचामृत योजना -  राज्य के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना,

सुजलाम् सुफलाम्- राज्य में जल स्रोतों का उचित व समेकित उपयोग जिससे जल की बरवादी को रोका जा सके,

कृषि महोत्सव – उपजाऊ भूमि के लिये शोध प्रयोगशालाएँ,

चिरंजीवी योजना – नवजात शिशु की मृत्युदर में कमी लाने हेतु,

मातृ-वन्दना – जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु,

बेटी बचाओ – भ्रूण हत्या व लिंगानुपात पर अंकुश हेतु,

ज्योतिग्राम योजना – प्रत्येक गाँव में बिजली पहुँचाने हेतु,

कर्मयोगी अभियान – सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु,

कन्या कलावाणी योजना – महिला साक्षरता व शिक्षा के प्रति जागरुकता,

बालभोग योजना – निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर का भोजन,

मुख्यमन्त्री का दस सूत्री कार्यक्रम

आदिवासी व वनवासी क्षेत्र के विकास हेतु मोदी ने गुजरात राज्य में दस सूत्री वनबन्धु विकास कार्यक्रम चला रक्खा है। इस कार्यक्रम के सभी दस सूत्र निम्नवत हैं:

1-पाँच लाख परिवारों को रोजगार
2-उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता
3-आर्थिक विकास
4-स्वास्थ्य
5-आवास
6-साफ स्वच्छ पेय जल
7-सिंचाई
8-समग्र विद्युतीकरण
9-प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता
10-शहरी विकास ।

आतंकवाद पर मोदी के विचार

१८ जुलाई २००६ को मोदी ने एक भाषण में आतंकवाद निरोधक अधिनियम जैसे आतंकवाद-विरोधी विधान लाने के विरूद्ध उनकी अनिच्छा को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की। मुंबई की उपनगरीय रेलों में हुए बम विस्फोटों के मद्देनज़र उन्होंने केंद्र से राज्यों को सख्त कानून लागू करने के लिए सशक्त करने की माँग की। उनके शब्दों में -

"आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।"

नरेंद्र मोदी ने कई अवसर पर कहा था कि यदि भाजपा केंद्र में सत्ता में आई, तो वह सन् २००४ में उच्चतम न्यायालय द्वारा अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने के निर्णय का सम्मान करेगी। भारत के उच्चतम न्यायालय ने अफज़ल को २००१ में भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए दोषी ठहराया था एवं ९ फ़रवरी २०१३ को तिहाड़ जेल में उसे लटकाया गया।

गुजरात के दंगों में मोदी पर आरोप प्रत्यारोप

२७ फरवरी २००२ को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में एक हिंसक भीड़ द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले ११८० लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यू यॉर्क टाइम्सने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल १८२ सीटों में से १२७ सीटों पर जीत हासिल की।

अप्रैल २००९ में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था।दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस०आई०टी० की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

उसके बाद फरवरी २०११ में टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता।इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया। द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया। भारतीय जनता पार्टी ने माँग की कि एस०आई०टी० की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।

सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं। 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा १५३ ए (1) (क) व (ख), १५३ बी (1), १६६ तथा ५०५ (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।  हालँकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जाँच दल (एस०आई०टी०) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया। 

२६ जुलाई २०१२ को नई दुनिया के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा - "२००४ में मैं पहले भी कह चुका हूँ, २००२ के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी माँगूँ? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये।" मुख्यमन्त्री ने गुरुवार को नई दुनिया से फिर कहा- “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जबाव नहीं है।"

यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने अपने बचाव में ऐसा कहा हो। वे इसके पहले भी ये तर्क देते रहे हैं कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले एक दशक में गुजरात ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है।

लेकिन जब केन्द्रीय क़ानून मन्त्री सलमान खुर्शीद से इस बावत पूछा गया तो उन्होंने दो टूक जबाव दिया - "पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमन्त्री के खिलाफ़ एफ०आई०आर० दर्ज़ नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फाँसी देने जा रहा है?"

बाबरी मस्ज़िद के लिये पिछले ५४ सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे ९२ वर्षीय मोहम्मद हाशिम अंसारी के मुताबिक भाजपा में प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रान्त गुजरात में सभी मुसलमान खुशहाल और समृद्ध हैं। जबकि इसके उलट कांग्रेस हमेशा मुस्लिमों में मोदी का भय पैदा करती रहती है।


२०१४ लोकसभा चुनाव


प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार में भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी थी।१३ सितम्बर २०१३ को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में आगामी लोकसभा चुनावों के लिये प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इस अवसर पर पार्टी के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी मौजूद नहीं रहे और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा की। मोदी ने प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद चुनाव अभियान की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी। प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद मोदी की पहली रैली हरियाणा प्रान्त के रिवाड़ी शहर में हुई।

एक सांसद प्रत्याशी के रूप में उन्होंने देश की दो लोकसभा सीटों वाराणसी तथा वडोदरा से चुनाव लड़ा और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए।


लोक सभा चुनाव २०१४ में मोदी की स्थिति


न्यूज़ एजेंसीज व पत्रिकाओं द्वारा किये गये तीन प्रमुख सर्वेक्षणों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधान मन्त्री पद के लिये जनता की पहली पसन्द बताया था। एसी वोटर पोल सर्वे के अनुसार नरेन्द्र मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने से एनडीए के वोट प्रतिशत में पाँच प्रतिशत के इजाफ़े के साथ १७९ से २२० सीटें मिलने की सम्भावना व्यक्त की गयी।  सितम्बर २०१३ में नीलसन होल्डिंग और इकोनॉमिक टाइम्स ने जो परिणाम प्रकाशित किये थे उनमें शामिल शीर्षस्थ १०० भारतीय कार्पोरेट्स में से ७४ कारपोरेट्स ने नरेन्द्र मोदी तथा ७ ने राहुल गान्धी को बेहतर प्रधानमन्त्री बतलाया था। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन मोदी को बेहतर प्रधान मन्त्री नहीं मानते ऐसा उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था। उनके विचार से मुस्लिमों में उनकी स्वीकार्यता संदिग्ध हो सकती है जबकि जगदीश भगवती और अरविन्द पानगढ़िया को मोदी का अर्थशास्त्र बेहतर लगता है। योग गुरु स्वामी रामदेव व मुरारी बापू जैसे कथावाचक ने नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया।

पार्टी की ओर से पीएम प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान तीन लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में ४३७ बड़ी चुनावी रैलियाँ, ३-डी सभाएँ व चाय पर चर्चा आदि को मिलाकर कुल ५८२७ कार्यक्रम किये। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने २६ मार्च २०१४ को मां वैष्णो देवी के आशीर्वाद के साथ जम्मू से की और समापन मंगल पाण्डे की जन्मभूमि बलिया में किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा। यही नहीं, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने २०१४ के चुनावों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की।


परिणाम

चुनाव में जहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ३३६ सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने २८२ सीटों पर विजय प्राप्त की। काँग्रेस केवल ४४ सीटों पर सिमट कर रह गयी और उसके गठबंधन को केवल ५९ सीटों से ही सन्तोष करना पड़ा। नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन २००१ से २०१४ तक लगभग १३ साल गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री रहे और हिन्दुस्तान के १५वें प्रधानमन्त्री बने।

एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हेतु विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा क्योंकि किसी भी एक दल ने कुल लोकसभा सीटों के १० प्रतिशत का आँकड़ा ही नहीं छुआ।


भाजपा संसदीय दल के नेता निर्वाचित

२० मई २०१४ को संसद भवन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित भाजपा संसदीय दल एवं सहयोगी दलों की एक संयुक्त बैठक में जब लोग प्रवेश कर रहे थे तो नरेन्द्र मोदी ने प्रवेश करने से पूर्वसंसद भवन को ठीक वैसे ही जमीन पर झुककर प्रणाम किया जैसे किसी पवित्र मन्दिर में श्रद्धालु प्रणाम करते हैं। संसद भवन के इतिहास में उन्होंने ऐसा करके समस्त सांसदों के लिये उदाहरण पेश किया। बैठक में नरेन्द्र मोदी को सर्वसम्मति से न केवल भाजपा संसदीय दल अपितु एनडीए का भी नेता चुना गया। राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी को भारत का १५वाँ प्रधानमन्त्री नियुक्त करते हुए इस आशय का विधिवत पत्र सौंपा। नरेन्द्र मोदी ने सोमवार २६ मई २०१४ को प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली।


वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा दिया

नरेन्द्र मोदी ने २०१४ के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक अन्तर से जीती गुजरात की वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा देकर संसद में उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया और यह घोषणा की कि वह गंगा की सेवा के साथ इस प्राचीन नगरी का विकास करेंगे।


भारत के प्रधानमन्त्री

ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह

मुख्य लेख : नरेन्द्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह

नरेन्द्र मोदी का २६ मई २०१४ से भारत के १५वें प्रधानमन्त्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित शपथ ग्रहण के पश्चात प्रारम्भ हुआ। मोदी के साथ ४५ अन्य मन्त्रियों ने भी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित कुल ४६ में से ३६ मन्त्रियों ने हिन्दी में जबकि १० ने अंग्रेज़ी में शपथ ग्रहण की।समारोह में विभिन्न राज्यों और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों सहित सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया। इस घटना को भारतीय राजनीति की राजनयिक कूटनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।

सार्क देशों के जिन प्रमुखों ने समारोह में भाग लिया उनके नाम इस प्रकार हैं।

अफ़्गानिस्तान – राष्ट्रपति हामिद करज़ई
बांग्लादेश – संसद की अध्यक्ष शिरीन शर्मिन चौधरी
भूटान – प्रधानमन्त्री शेरिंग तोबगे
मालदीव – राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम
मॉरिशस – प्रधानमन्त्री नवीनचन्द्र रामगुलाम
नेपाल – प्रधानमन्त्री सुशील कोइराला
पाकिस्तान – प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़
श्रीलंका – प्रधानमन्त्री महिन्दा राजपक्षे

ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और राजग का घटक दल मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एमडीएमके) नेताओं ने नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रीलंकाई प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के फैसले की आलोचना की। एमडीएमके प्रमुख वाइको ने मोदी से मुलाकात की और निमंत्रण का फैसला बदलवाने की कोशिश की जबकि कांग्रेस नेता भी एमडीएमके और अन्ना द्रमुक आमंत्रण का विरोध कर रहे थे। श्रीलंका और पाकिस्तान ने भारतीय मछुवारों को रिहा किया। मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित देशों के इस कदम का स्वागत किया।

इस समारोह में भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था। इनमें से कर्नाटक के मुख्यमंत्री, सिद्धारमैया (कांग्रेस) और केरल के मुख्यमंत्री, उम्मन चांडी (कांग्रेस) ने भाग लेने से मना कर दिया। भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करने वालीतमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने समारोह में भाग न लेने का निर्णय लिया जबकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने अपनी जगहमुकुल रॉय और अमित मिश्रा को भेजने का निर्णय लिया।

वड़ोदरा के एक चाय विक्रेता किरण महिदा, जिन्होंने मोदी की उम्मीदवारी प्रस्तावित की थी, को भी समारोह में आमन्त्रित किया गया। अलवत्ता मोदी की माँ हीराबेन और अन्य तीन भाई समारोह में उपस्थित नहीं हुए, उन्होंने घर में ही टीवी पर लाइव कार्यक्रम देखा. 


साभार : विकिपीडिया 

पटेल समुदाय - एक प्रमुख वैश्य जाति - PATEL

Patels are found in large numbers in the state of Gujarat in India (see Gujarati people). Information on the caste system in Hinduism indicates that farmers and agricultural workers tend to belong to Vaishya caste, the third highest caste.

Patels in Gujarat are divided into two major groups: 1) Kadava Patel 2) Leva Patel

A mythological story says that Lord Rama had two sons with his wife Sita: Luv and Kush. Leva Patels consider themselves the descendants of Luv and the Kadva Patels say they are descendants of Kush.


Some believe that Patels are descendants of Kshtryas known as the Kurmi Kshtryas. Over time, the word Kurmi changed to Kunbi and later to Kanbi. This Kurmi Kshatrya population grew in Punjab such that several families did not possess enough land to cultivate and this was one of the reasons for out migration. Another reason for this exodus from the Punjab area were the atrocities, mistreatment and loss of family members encountered during the attack by King Sairas of Iran in 600 B.C., King Dairas of Iran in 518 B.C and Alexander the Great of Greece in 300 B.C. These families called the Kurmi Kshtryas who endured losses of family members and setbacks emigrated eastbound or southbound towards Rajasthan, then to the area of present Gujarat, for survival as well as making a better life for their families. When the Kurmi Kshatriyas came to Gujarat, they first went to Saurastra, then to Vadnagar, later on to Vadodara & Baruch. During A.D 1820’s, the Kurmis, by that time known as Kanbis, moved to the area of current Surat District and then to Valsad District. In addition to being known as Kanbis, they were also known as Kadvas and Levas. 

Patels are also classified based on the geographical regions. 

1. Kachchi Patel: Kachchi Patels are one type of Kadava patel worshipping Shri Umiya Mata as their clan deity. 

2. Mehsani Patel: Mehsani Patel are predominantly Kadava patel worshipping Shri Umiya Mata as their clan deity. They are mainly concentrated in North Gujarat's districts mainly in Mahesana and Gandhinagar. 

3. Kathiawadi Patel: Kathiawadi/Saurashtra Patels are Leva Patel and Kadva Patel. Leva Patel are concentrated mainly in Saurashtra, Anand district, Charotar and Kheda district. Kadava Patels are mainly Junagadh, Rajkot, Jamanagar & Surendranagar district of Kathiawar or Suarashtra, Mehsana, Sabarkantha, Banaskantha of North Gujarat and in North Rajasthan, Jaipur and rest of the Rajasthan. Leva Patel primarily worships Shri Khodiyar Mata, Mahisasur Mardini or Badhrakali as their clan deity.

Over history they have mostly been landowners and farmers.

Patels like most of the population in Gujarat are traditionally strict vegetarians.

Sardar Patel of Karamsad, Gujarat was a Charotari Leva Patel.

Leva Patel/Kambi/ Patils claim Suryavanshi origin from Lava (or Leva), the son of Rama in the Hindu epic Ramayana.

According to one theory, Lava established the settlement at Lahore, which was the original residence of Levas.[citation needed] The writer Keshavlal Patel says that, the fourth son of Manu, the hereditors of Disht sect Janmejay (not the Janmejay of Mahabharat), Vishalavati (the present Vyas city in Punjab) was ruling over a region. Lava removed him and established 'Lavapur' and gave the kingdom to his son.After Lava 55th hereditor Sumitra was defeated by Arjuna's hereditor Parikshit(second) and conquered Punjab. According to Ikshanku sect, Lava and Kush belonged to 40th generation.

The myth of the origin of the Leva Patidar from the descent of the sons of Rama is of prime importance and is mainly used to differentiate the community from the Kadva Patidar of kush origin. Majority of leva patel community is also found in Saurashtra region.

PATIL 

Different scholars have suggested different theories about the origin of the word Patil (also Patel or Patidar).

'Patil' meant "group" or "branch" during the regime of Mohammad Begada. 'Patt' meant "part of the land" and 'Patidar' meant "Tax Collector". 'Patil' meant "chief of the village".

The word Patil could also have derived from 'Patkil'. 'Patu' means "Clever", and "patta" means "Chief". The person who established the village used to become Patil. Patil used to become known, because of Village recognition. Patil was not a government post or self occupied post. Virtues and works of the person used to make him a Patil. Later on this post became hereditary. Patil became the Village King and later received Government honor, even after receiving many posts. The Sardars means "soldiers" who did not give up Patilship.

Originally, the Leva Patils belonged to two provinces (Parganas), the Khandesh province (Pargana), and the Vidarbha province (pargana). Each province (pargana) had a Bhorgaon Panchayat (A Judicial system to solve family & other problems). The head of this province (pargana) received government rights (Deshmukhi rights).
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Friday, November 16, 2012

लाला लाजपत राय - LALA LAZPAT RAY





**** " लाला लाजपत राय " ****

मित्रों आज वैश्य गौरव लाला लाजपत राय का शहीदी दिवस हैं. आज के दिन ही लाला लाजपत राय शहीद हो गए थे.


पूरा नाम लाला लाजपत राय



जन्म 28 जनवरी, 1865


जन्म भूमि मोगा ज़िला, पंजाब


मृत्यु 17 नवंबर, 1928



मृत्यु स्थान लाहौर

पार्टी कांग्रेस


पद स्वतंत्रता सेनानी, नेता, वकील, लेखक


जेल यात्रा 3 मई, 1907, असहयोग आंदोलन (1921)


विद्यालय राजकीय कॉलेज, लाहौर


शिक्षा वक़ालत


विशेष योगदान 'इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की, अछूत कांफ्रेस का आयोजन


संबंधित लेख बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल


रचनाएँ पंजाब केसरी, यंग इंण्डिया, भारत का इंग्लैंड पर ऋण, भारत के लिए आत्मनिर्णय, तरुण भारत

लाला लाजपत राय (जन्म- 28 जनवरी, 1865 ई.; मृत्यु- 17 नवंबर, 1928 ई.) को भारत के महान क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले लाला लाजपत राय 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 'गरम दल' के प्रमुख नेता तथा पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे। लालाजी को 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। इन्होंने क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर हिसार में वकालत प्रारम्भ की। कालान्तर में स्वामी दयानंद के सम्पर्क में आने के कारण लाला जी आर्य समाज के प्रबल समर्थक बन गये। यहीं से इनमें उग्र राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। लाला जी को पंजाब में वही स्थान प्राप्त था, जो महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक को।

जीवन परिचय

लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा ज़िले में हुआ था। 28 जनवरी सन् 1865 को मुंशी जी की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया। बालक ने अपनी किलकारियों से चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ बिखेर दीं। बालक के जन्म की खबर पूरे गाँव में फैल गई। बालक के मुखमंडल को देखकर गाँव के लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से अपने बालक का लालन-पालन करते रहे। वे प्यार से अपने बच्चे को लाजपत राय कहकर बुलाते थे। लाजपत राय के पिता जी वैश्य थे, किंतु उनकी माती जी सिक्ख परिवार से थीं। दोनों के धार्मिक विचार भिन्न-भिन्न थे। वे एक साधारण महिला थीं। वे एक हिन्दू नारी की तरह अपने पति की सेवा करती थीं।

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने क़ानून की उपाधि प्राप्त करने के लिए 1880 में लाहौर के 'राजकीय कॉलेज' में प्रवेश ले लिया। इस दौरान वे आर्य समाज के आंदोलन में शामिल हो गए। लालाजी ने क़ानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद जगरांव में वक़ालत शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वक़ालत की।

लाल-बाल-पाल

लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल को 'लाल-बाल-पाल' के नाम से जाना जाता है। इन नेताओं ने सबसे पहले भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग उठाई।

स्वामी दयानन्द का प्रभाव

लाला लाजपत राय स्वामी दयानन्द से काफ़ी प्रभावित थे। पंजाब के 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना के लिए भी इन्होंने अथक प्रयास किये थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर इन्होंने आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने 'दयानंद कॉलेज' के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया। डी.ए.वी. कॉलेज पहले लाहौर में स्थापित किया। लाला हंसराज के साथ 'दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों (डी.ए.वी.) का प्रसार किया।

कांग्रेस के कार्यकर्ता

हिसार में लालाजी ने कांग्रेस की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए।

1892 में वे लाहौर चले गए। उनके हृदय में राष्ट्रीय भावना भी बचपन से ही अंकुरित हो उठी थी।

1888 के कांग्रेस के 'प्रयाग सम्मेलन' में वे मात्र 23 वर्ष की आयु में शामिल हुए थे। कांग्रेस के 'लाहौर अधिवेशन' को सफल बनाने में आपका ही हाथ था।
वे स्वभाव से ही मानव सेवी थे। 1897 और 1899 के देशव्यापी अकाल के समय वे पीड़ितों की सेवा में जी जान से जुटे रहे। जब देश के कई हिस्सों में अकाल पड़ा तो लालाजी राहत कार्यों में सबसे अग्रिम मोर्चे पर दिखाई दिए। देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया। लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की।
लाला लाजपतराय के व्यक्तित्व के बारे में तत्कालीन मशहूर अंग्रेज़ लेखक विन्सन ने लिखा था- "लाजपतराय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित ग़रीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी-इस क्षेत्र में अंग्रेज़ी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।"
1901-08 की अवधि में उन्हें फिर भूकम्प एवं अकाल पीड़ितों की मदद के लिए सामने आना पड़ा।
वे हिसार नगर निगम के सदस्य चुने गए और बाद में सचिव भी चुन लिए गए।

स्वदेशी आन्दोलन

उन्होंने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। अंग्रेज़ों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेज़ों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। 3 मई 1907 को ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें रावलपिंडी में गिरफ्तार कर लिया। रिहा होने के बाद भी लालाजी आज़ादी के लिए लगातार संघर्ष करते रहे।

निर्वासन

"लाजपतराय के सादगी और उदारता भरे जीवन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने अशिक्षित ग़रीबों और असहायों की बड़ी सेवा की थी- इस क्षेत्र में अंग्रेज़ी सरकार बिल्कुल ध्यान नहीं देती थी।"- विन्सन 
गोपालकृष्ण गोखले के साथ एक प्रतिनिधिमंडल में लाला जी इंग्लैंड गए। वहाँ से जापान जाने में अपने देश का हित देखा तो चले गए। लाला जी कहीं भारतीय सैनिकों की भर्ती में व्यवधान न खड़ा कर दें, इसलिए सरकार ने उनको भारत आने की अनुमति नहीं दी। 1907 में उन्हें 6 माह का निर्वासन सहना पड़ा था। वे कई बार इंग्लैंड गए जहाँ उन्होंने भारत की स्थिति में सुधार के लिए अंग्रेज़ों से विचार-विमर्श किया। प्रथम विश्व युद्ध के समय लाला जी ने अमेरिका जाकर वहाँ के जनमत को अपने अनुकूल बनाने का भी सराहनीय प्रयास किया था। लालाजी ने अमेरिका पहुँचकर वहाँ के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर 1917 में 'इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका' नाम से एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने 'तरुण भारत' नामक एक देशप्रेम तथा नवजागृति से परिपूर्ण पुस्तक लिखी थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। अमेरिका में उन्होंने 'इंण्डियन होमरूल लीग' की स्थापना की और 'यंग इंण्डिया' नामक मासिक पत्र भी निकाला। इसी दौरान उन्होंने 'भारत का इंग्लैंड पर ऋण', 'भारत के लिए आत्मनिर्णय' आदि पुस्तकें लिखी, जो यूरोप की प्रमुख भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे।

फिर वह अमेरिका चले गए। वहां भारतीय स्वतंत्रता के लिए अमेरिकी सरकार और जनता की सहानुभूति पाने के लिए प्रयत्न किए। अपने चार वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने 'इंडियन इन्फार्मेशन' और 'इंडियन होम रूल' दो संस्थाएं सक्रियता से चलाई। लाला लाजपतराय ने जागरूकता और स्वतंत्रता के प्रयास किए। 'लोक सेवक मंडल' स्थापित करने के साथ वह राजनीति में आए।

हरिजन उद्धार

1912 में उन्होंने एक 'अछूत कांफ्रेस' आयोजित की थी जिसका उद्देश्य हरिजनों के उद्धार के लिये ठोस कार्य करना था।

लेखक के रूप में

बंगाल की खाड़ी में हज़ारों मील दूर मांडले जेल में लाला लाजपत राय का किसी से संबंध या संपर्क नहीं था। अपने समय का उपयोग उन्होंने महान अशोक, श्रीकृष्ण[2] और उनकी शिक्षा, छत्रपति शिवाजी जैसी पुस्तकें लिखने में किया। जब वे जेल से लौटे तो विकट समस्याएं सामने थीं। 1914 में विश्वयुद्ध छिड़ गया था और विदेशी सरकार ने भारतीय सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी।

नायक

लालाजी ने अमेरिका पहुँचकर वहाँ के न्यूयॉर्क शहर में अक्टूबर 1917 में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नाम से एक संगठन की स्थापना की। 20 फ़रवरी 1920 को जब भारत लौटे तो उस समय तक वे देशवासियों के लिए एक नायक बन चुके थे।

असहयोग आंदोलन में

लालाजी ने 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में भाग लिया। वे गांधी जी द्वारा अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े जो सैद्धांतिक तौर पर रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में चलाया जा रहा था। सन् 1920 में उन्होंने पंजाब में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण 1921 में आपको जेल हुई। इसके बाद लाला जी ने 'लोक सेवक संघ' की स्थापना की। लाला लाजपतराय के नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे 'पंजाब का शेर या पंजाब केसरी' जैसे नामों से पुकारे जाने लगे।

साइमन कमीशन

30 अक्टूबर, 1928 में उन्होंने लाहौर में 'साइमन कमीशन' के विरुद्ध आन्दोलन का भी नेतृत्व किया था और अंग्रेज़ों का दमन सहते हुए लाठी प्रहार से घायल हुए थे। इसी आघात के कारण उसी वर्ष उनका देहान्त हो गया। लालाजी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया। इस घटना के सत्रह दिन बाद यानि 17 नवंबर 1928 को लाला जी ने आख़िरी सांस ली थी...

तीन फ़रवरी 1928 को कमीशन भारत पहुँचा जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी जब लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपतराय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाईं। वे बुरी तरह घायल हो गए, इस समय अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा,

मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के क़फन की कील बनेगी।
और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आज़ादी मिली।

निधन

17 नवंबर 1928 को इन चोटों की वजह से उनका देहान्त हो गया।

देश भक्तों की प्रतिज्ञा

लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया । इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।

श्रद्धांजलि

लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था-
"भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी। वे अमर रहेंगे।" - महात्मा गाँधी 

साभार : 

Birthday. [SNP], फेस बुक