भंडारी जाति का संक्षिप्त इतिहास
भारतीय समाज में कर्म के आधार पर सुदीर्घ काल तक प्रचलित रही चतुवर्ण-व्यवस्था में भंडारी वैश्य वर्ण में स्थान पाते हैं और भंडारी महाजन जाति में आते हैं | ओसवाल वंश की एक प्रतिष्ठ जाति/गौत्र/शाखा भंडारी समाज ही है |
सन 1891 में भंडारी गौत्र की उत्पति अजमेर के चौहान राज्य वंश से हुई | अजमेर के चौहान राजाओं के वंशज राव लाखण सी/लक्ष्मण शाकमभरी(सांभर) से अलग होकर अपने बाहुबल से नाडोल को अपना राज्य बनाया | भंडारियों की ख्यात् के अनुसारनाडोल के राजा राव लाखण सी के 24 रानियाँ थी, परन्तु वे सभी नि:संतान थी| जैन आचार्य यशोभद्र सूरी जी विहार करते हुए नाडोल पधारे | राजा लाखण सी ने आचार्य श्री का भक्तिभाव से भव्य सत्कार किया | आचार्य श्री अत्यंत प्रसन्न हुए | राव लाखण सी ने आचार्य श्री के सम्मुख नि:संतान होने का दुःख प्रकट किया और दुःख निवारण के लिये आचार्य प्रवर से शुभाशीष देने का निवेदन किया | आचार्यवर ने प्रत्येक रानी को एक एक पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और साथ ही राजा से कहा की वे अपने 24 पुत्रो में से एक पुत्र हमे सौप दोगे, जिसे हम जैन धर्म, अंगीकार करवायेंगे | राजा लाखण सी ने यह बात स्वीकार कर ली | आचार्य श्री का आशीर्वाद फलीभूत हुआ और राजा लाखण सी 24 पुत्रो के पिता बने, जिनके नाम इस प्रकार है -
(1) मकडजी
(2) सगरजी
(3) मदरेचाजी
(4) चंद्रसेनजी
(5) सोहनजी
(6) बीलोजी
(7) बालेचाजी
(8) सवरजी
(9) लाडूजी
(10) जजरायजी
(11) सिद्पालजी
(12) दूदारावजी
(13) चिताजी
(14) सोनगजी
(15) चांचाजी
(16) राजसिंहजी
(17) चीवरजी
(18) बोडाजी
(19) खपतजी
(20) जोधाजी
(21) किरपालजी
(22) मावचजी
(23) मालणजी
(24) महरजी
कुछ वर्षों बाद आचार्य जी पुन: पधारे और राजा लाखण सी ने अपने वचन अनुसार प्रसन्तापूर्वक अपने 12 वे पुत्र दूदारावजी को आचार्य श्री की सेवा में दे दिया | आचार्य श्री ने दूदारावजी को प्रतिबोधित किया | उनके प्रतिबोध एवं तात्विक भाष्य से दूदारावजी ने जैन धर्म को अंगीकार किया | राजा लाखण सी ने दूदारावजी को "भांडागारिक राजकीय पद पर आसीन किया" भांडागारिक पद को किसी क्षुद्र भंडार विशेष से जोड़ना उचित नहीं होगा | भांडागारिक पद राजकोषीय भंडार की व्यापकता से युक्त लगता है दूदाराव जी के वंशज भांडागारिक नाम से संबोंधित किये जाते रहे होगें जो कालान्तर में अपभ्रंश रूप में भंडारी शब्द में परिवर्तित हो गया होगा - ऐसा प्रतीत होता है |
अत: इस प्रकार दूदारावजी ही भंडारियों के आदिपुरुष हुए |
This is definitely not correct
ReplyDeleteBhandari's are regarded as rajput. Historically they have existed before 1891.
1595 ईसवी में वीर श्री माधो सिंह भण्डारी जी का जन्म हुआ था, यह वीर टिहरी के राजा श्री महिफत शाह जी के प्रमुख सेनापति थे।
Deleteऔर सत्रहवीं सदी के एक कुशल इंजीनयर भी थे। आपने उस जमाने में संसाधनों के अभाव में भी सिंचाई के लिए सुरंग का निर्माण किया।।
1891 में भण्डारी की उत्पत्ति लिखा है आपने
1595 ईसवी में वीर श्री माधो सिंह भण्डारी जी का जन्म हुआ था, यह वीर टिहरी गढ़वाल रियासत के राजा श्री महिफत शाह जी के प्रमुख सेनापति थे।
ReplyDeleteऔर सत्रहवीं सदी के एक कुशल इंजीनियर भी थे। आपने उस जमाने में संसाधनों के अभाव में भी सिंचाई के लिए सुरंग का निर्माण किया था ।।
1891 में भण्डारी की उत्पत्ति लिखा है आपने!!
गलत जानकारी मत पोस्ट किया करो ।।
उत्तराखंड में भण्डारी का इतिहास क्षत्रिय राजपूत का है। 16वीं सताब्दी में एक अपराजित कुशल सेनापति तथा 16वीं सदी में मलेथा की कूल ( नहर) पहाड़ी पर सुरंग के जरिये मलेथा की सूखी पड़ी भूमि को सिंचित करके अपनी कुशल इंजीनिरिंग की छाप छोड़ कर इतिहास के पन्नो में अपना नाम अमर कर गए हैं। वीर भड़ माधो सिंह भण्डारी पुत्र कालो सिंह भण्डारी।
ReplyDeleteआपकी जानकारी गलत है। इसे सही कीजिएगा।।
Yes you are right Bhandari samaj Maharashtra ke western coast me bhi stith he aap ye jankari web page pe Dal dijega isase Maharashtra me stith Bhandari samaj ko ye pata challenge.
Deleteओर कुछ जानकारी हो तो साझा करें
ReplyDeleteBhandari dhakad samaj ke surnames hai bahut sare lagate hai
ReplyDeleteMy self suraj.Bhandari rajput
ReplyDeleteFrom uttrakhand
They were brahmins from nepal who came to india by uttarakhand state and then they had to follow rajput caste as they were outsider and had to shield themselves from the invaders in India.
ReplyDeleteक्या भण्डारी वैश्य समाज के बनिया, गुप्ता या अग्रवाल के समकक्ष होते हैं?
ReplyDeleteNhi hote
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