Pages

Showing posts with label सोनवाल सिहारे वैश्य. Show all posts
Showing posts with label सोनवाल सिहारे वैश्य. Show all posts

Thursday, November 24, 2011

सोनवाल सिहारे वैश्य जाति का इतिहास

सोनवाल सिहारे वैश्य जाति का इतिहास

सोनवाल सिहारे वैश्य मध्य भारत व बुंदेलखंड के क्षेत्र में मिलते हैं. यह अपने नाम के साथ सिहारे, सोहारे, व गुप्ता लिखते हैं. सोनवाल वैश्य मूलतः गुजरात के सौराष्ट्र से आये हुए शाह गुजराती वैश्य हैं. सौराष्ट्र में सोमनाथ के मंदिर पर जब मुसलमानों का आक्रमण हुआ था, तब मुसलमानों ने वंहा के निवासियों को धर्मान्तरण के लिए बाध्य किया, इस जाति ने धर्म बदलने के बजाये वंहा से पलायन करना उचित समझा और राजस्थान की और चले गये.

कुछ लोग राजस्थान से भी व्यापार की तलाश में मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में आकर के बस गये. गुजरात में सोमनाथ मंदिर को हारने के कारण यह जाति अपने आप को सोनवाल या सोमवाल लिखने लगी. शिवजी को हारने के कारण सिहारे कहलाये. कर्नल टोड ने ने लिखा हैं की यह जाति सोलंकियो के अंतर्गत आती हैं, सौर क्षत्रिय जाति से ही सौरहारा बना हैं.और इस सौर जाति के नाम पर ही सौराष्ट्र नाम पड़ा हैं. इस जाति का सम्बन्ध सौराष्ट्र व सोमनाथ से बहुत मिलता हैं, उस देश में गुप्त वंश का शासन भी बहुत काल तक रहा हैं, और गुप्त वंश के महाराजा महासेन बड़े प्रतापी राजा हुए हैं, इसी कारण से यह जाति अपने नाम के आगे गुप्त भी लिखती हैं. प. उदयराज लिखित सोहारे वंश दर्पण एक पुस्तक मिली हैं, जिसमे इस वंश को चन्द्र वंशी क्षत्रिय लिखा हैं. राजा महासेन को इस जाति का आदि पुरुष माना जाता हैं. व्यवसाय व खेती करने के कारण ही ये लोग वैश्य कहलाने लगे. इनके गोत्र निम्नलिखित हैं,

१. मुनगल
२. शाक्य
३. भोज
४. वत्स्य
५. बज्रासेन
६. सिंघी

सोनवाल जाति के निम्नलिखित अल्ल मिलते हैं,

१. रहू
२. अजमेरिया
३. माहौर
४. मकर
५. बरदिया
६. पहाड़िया
७. निहोनिया
८. मोहनिया
९. विसुरिया
१०. बक्बेरिया
११. बुधिया
१२. गोड़िया
१३. पवैया
१४. सोंजेले
१५. बडकुल
१६. खडेरे
१७. गुरेले
१८. महिपतेले
१९. नरवरिया
२०. भदोरिया
२१. सरसे
२२. अलापुरिया

सोनवाल पुर्णतः शाकाहारी हैं. कुलदेवता शिव हैं, व कुलदेवी माता लक्ष्मी हैं.