GOYAL FAMILY - LEGEND IN OIL BUSINESS
HAMARA VAISHYA SAMAJ - हमारा वैश्य समाज
प्रिय मित्रो यह चिटठा हमारे महान वैश्य समाज के बारे में है। इसमें विभिन्न वैश्य जातियों के बारे में बताया गया हैं, उनके इतिहास व उत्पत्ति का वर्णन किया गया हैं। आपके क्षेत्र में जो वैश्य जातिया हैं, कृपया उनकी जानकारी भेजे, उस जानकारी को हम प्रकाशित करेंगे।
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Friday, July 4, 2025
Thursday, July 3, 2025
बनिया समुदाय: इतिहास, संस्कृति, और व्यापारिक रणनीतियाँ
बनिया समुदाय: इतिहास, संस्कृति, और व्यापारिक रणनीतियाँ
भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विविध संस्कृतियों, परंपराओं और समुदायों के लिए जाना जाता है। इन समुदायों में से एक महत्वपूर्ण समुदाय बनिया समुदाय है। बनिया शब्द संस्कृत के ‘वणिज’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘व्यापारी’। ऐतिहासिक रूप से, बनिया समुदाय व्यापार, वाणिज्य और साहूकारी से जुड़ा रहा है। यह समुदाय मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात राज्यों से ताल्लुक रखता है, लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और अन्य उत्तरी भारतीय राज्यों में भी इनकी महत्वपूर्ण आबादी है। बनिया समुदाय न केवल अपनी व्यापारिक कुशलता के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी एक समृद्ध सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत भी है। इस लेख में हम बनिया समुदाय के इतिहास, सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक पहलुओं और पारंपरिक व्यापारिक रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
बनिया समुदाय का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
बनिया समुदाय का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, जिसकी जड़ें भारतीय सभ्यता के शुरुआती दौर तक फैली हुई हैं। माना जाता है कि इस समुदाय का संबंध प्राचीन वैश्य वर्ण से है, जो हिंदू वर्ण व्यवस्था में तीसरा स्थान रखता है। वैश्य वर्ण का पारंपरिक कार्य व्यापार और वाणिज्य था, और बनिया समुदाय ने इस भूमिका को सदियों तक बखूबी निभाया है।
ऐतिहासिक अभिलेखों और लोककथाओं के अनुसार, बनिया समुदाय के पूर्वज महाराजा अग्रसेन माने जाते हैं। कहा जाता है कि महाराजा अग्रसेन ने वैश्य समुदाय को अठारह गोत्रों में विभाजित किया था, और इन गोत्रों से ही बनिया समुदाय की विभिन्न उप-जातियाँ विकसित हुईं। हरियाणा में स्थित अग्रोहा को बनिया समुदाय का मूल स्थान माना जाता है।
मध्यकाल और आधुनिक काल में भी बनिया समुदाय ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने न केवल स्थानीय स्तर पर व्यापार को बढ़ावा दिया, बल्कि लंबी दूरी के व्यापार में भी सक्रिय भूमिका निभाई। मुगल काल और ब्रिटिश शासन के दौरान, बनिया व्यापारियों ने अपनी व्यापारिक कुशलता और वित्तीय समझ के बल पर महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया।
बनिया समुदाय की सामाजिक संरचना:
बनिया समुदाय एक जटिल सामाजिक संरचना वाला समुदाय है, जिसमें कई उप-जातियाँ शामिल हैं। इन उप-जातियों में अग्रवाल, खंडेलवाल, माहेश्वरी, ओसवाल, पोरवाल और श्रीमाली बनिया प्रमुख हैं। ऐतिहासिक रूप से, इन उप-जातियों के बीच विवाह संबंध सीमित थे, लेकिन आधुनिक समय में यह स्थिति कुछ हद तक बदल गई है।
प्रत्येक उप-जाति के अपने रीति-रिवाज, परंपराएं और कुलदेवता होते हैं। यह सामाजिक विभाजन समुदाय के भीतर एक मजबूत पहचान और एकता की भावना को बनाए रखने में सहायक रहा है। हालांकि, व्यापक स्तर पर, सभी बनिया उप-जातियाँ कुछ सामान्य मूल्यों और परंपराओं को साझा करती हैं, जो उन्हें एक सूत्र में बांधती हैं।
बनिया समुदाय की सांस्कृतिक विरासत:
बनिया समुदाय की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध और विविध है। यह समुदाय हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय का अनुयायी है और भगवान विष्णु की पूजा करता है। वल्लभ संप्रदाय के प्रति इनकी विशेष आस्था देखी जाती है। इसके अलावा, कुछ बनिया परिवार जैन धर्म का भी पालन करते हैं।
शाकाहार और मद्यनिषेध बनिया समुदाय की संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। अधिकांश बनिया परिवार कट्टर शाकाहारी होते हैं और शराब से परहेज करते हैं। वे धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का निष्ठा से पालन करते हैं। त्योहारों और पारिवारिक समारोहों को बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है, जिनमें पारंपरिक संगीत, नृत्य और भोजन का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
बनिया समुदाय में शिक्षा का भी विशेष महत्व रहा है। ऐतिहासिक रूप से, बनिया लड़कों को व्यापारिक कौशल जैसे पढ़ना, लिखना, लेखांकन और अंकगणित की शिक्षा दी जाती थी। यह शिक्षा अक्सर गुप्त व्यापारी लिपियों में होती थी, जो समुदाय के भीतर ज्ञान और कौशल को बनाए रखने में मदद करती थी।
बनिया समुदाय की पारंपरिक व्यापारिक रणनीतियाँ:
बनिया समुदाय की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण उनकी पारंपरिक व्यापारिक रणनीतियाँ रही हैं। ये रणनीतियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहीं और उन्होंने इस समुदाय को व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान दिलाई। इनमें से कुछ प्रमुख रणनीतियाँ इस प्रकार हैं:
किफायत और पूंजी संरक्षण पर जोर: बनिया समुदाय में बचत और पूंजी को पुनः निवेश करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अनावश्यक खर्चों से बचना और वित्तीय संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना उनकी व्यापारिक सफलता की एक महत्वपूर्ण रणनीति रही है। यह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और विकास सुनिश्चित करता है।
मजबूत नेटवर्क और विश्वास-आधारित संबंध: ऐतिहासिक रूप से, बनिया समुदाय के भीतर व्यापारिक संबंध विश्वास और मजबूत अंतर-व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित थे। इन नेटवर्कों ने उधार, व्यापार और सूचना साझा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामुदायिक संबंधों और नैतिक व्यवहार को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण रणनीति थी। आपसी विश्वास और सहयोग से व्यापारिक लेन-देन सुगम होता था।
विस्तृत लेखा-जोखा और लेखांकन: बनिया व्यापारियों की एक महत्वपूर्ण विशेषता हमेशा से ही विस्तृत लेखा-जोखा रखना रही है। लाभ, हानि और मालसूची का सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखने से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की स्पष्ट जानकारी मिलती थी। यह सतर्कता और पारदर्शिता व्यापारिक सफलता के लिए आवश्यक थी।
अनुकूलनशीलता और बाजार जागरूकता: बनिया समुदाय के व्यापारियों ने हमेशा बदलते बाजार की स्थितियों के अनुकूल होने और नए अवसरों की पहचान करने की क्षमता दिखाई है। बाजार के रुझानों के बारे में जानकारी रखना और अपनी रणनीतियों को उसके अनुसार समायोजित करना उनकी सफलता की कुंजी रही है। यह लचीलापन उन्हें प्रतिस्पर्धी बने रहने में मदद करता था।
रणनीतिक साझेदारी और सामुदायिक समर्थन: समुदाय के भीतर सहयोग, चाहे वह अनौपचारिक साझेदारी के माध्यम से हो या आपसी समर्थन प्रणाली के माध्यम से, संसाधनों को जुटाने और जोखिमों को कम करने में मदद करता था। यह सामूहिक दृष्टिकोण उनके व्यापारिक प्रयासों को मजबूत करता था। संकट के समय में समुदाय एक-दूसरे का साथ देता था।
मोलभाव कौशल और मूल्य की समझ: सफल व्यापार के लिए मूल्य की गहरी समझ और मजबूत मोलभाव कौशल आवश्यक थे। इसमें वस्तुओं के मूल्य का आकलन करना, बाजार की कीमतों को समझना और अनुकूल शर्तों पर बातचीत करना शामिल था। यह कौशल उन्हें लाभप्रद सौदे करने में सक्षम बनाता था।
दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य और धैर्य: टिकाऊ व्यवसाय बनाने में अक्सर दीर्घकालिक दृष्टिकोण और धैर्य शामिल होता है। त्वरित लाभ की बजाय धीरे-धीरे विकास पर ध्यान केंद्रित करना और लंबे समय तक स्थिर व्यवसाय बनाए रखना एक रणनीतिक दृष्टिकोण था। यह स्थिरता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता था।
पारंपरिक ज्ञान और कौशल का हस्तांतरण: व्यापार से संबंधित ज्ञान और कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित किया जाता था। यह अनौपचारिक शिक्षा युवा पीढ़ी को व्यापार की बारीकियों को समझने और सफल व्यापारी बनने में मदद करती थी।
विविधीकरण: समय के साथ, बनिया समुदाय ने अपने व्यापारिक हितों का विविधीकरण किया। उन्होंने न केवल पारंपरिक व्यापारों में अपनी पकड़ बनाए रखी, बल्कि नए क्षेत्रों जैसे उद्योग, वित्त और प्रौद्योगिकी में भी प्रवेश किया। यह विविधीकरण उन्हें आर्थिक रूप से अधिक स्थिर और लचीला बनाता है।
धर्म और नैतिकता का पालन: बनिया समुदाय में व्यापार करते समय धर्म और नैतिकता के सिद्धांतों का पालन करने पर जोर दिया जाता था। ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और निष्पक्ष व्यवहार उनके व्यापारिक मूल्यों का हिस्सा थे। यह विश्वसनीयता और ग्राहकों का विश्वास जीतने में सहायक होता था।
आधुनिक परिदृश्य:
आधुनिक समय में, बनिया समुदाय ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है। पारंपरिक व्यापार के अलावा, समुदाय के सदस्य अब सरकार, निजी उद्यम, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कानून, शिक्षा और राजनीति जैसे विविध व्यवसायों में सक्रिय हैं। शिक्षा के बढ़ते महत्व और अवसरों की उपलब्धता ने समुदाय के सदस्यों को नए क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद की है।
हालांकि, आज भी बनिया समुदाय अपनी सांस्कृतिक जड़ों और पारंपरिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है। पारिवारिक बंधन, सामुदायिक भावना और व्यापारिक नैतिकता आज भी उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बनिया शादियाँ भव्य समारोह होती हैं जो परिवार, सांस्कृतिक विरासत और विस्तृत अनुष्ठानों पर जोर देती हैं। इन शादियों में कई दिनों तक उत्सव चलते हैं, जिनमें महत्वपूर्ण सामाजिक जमावड़े और पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है।
निष्कर्ष:
बनिया समुदाय भारत का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली समुदाय है, जिसका इतिहास व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में गौरवशाली रहा है। अपनी मजबूत सामाजिक संरचना, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही व्यापारिक रणनीतियों के कारण, इस समुदाय ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। “रहस्य” के बजाय, यह कहना अधिक उचित होगा कि बनिया समुदाय ने कुछ विशिष्ट रणनीतियों, मूल्यों और कौशल को विकसित किया है, जिन्होंने उन्हें व्यापार में सफलता दिलाई है। आज, जबकि समुदाय के सदस्य विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं, उनकी पारंपरिक बुद्धिमत्ता, उद्यमशीलता की भावना और सामुदायिक एकता की भावना अभी भी उनके लिए मार्गदर्शक बनी हुई है। बनिया समुदाय भारतीय समाज की विविधता और समृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
SABHAR : Adv Arun Singh infipark.com/articles/baniya-community-history-culture-trade
Monday, June 30, 2025
PARAG JAIN NEW RAW CHIEF
PARAG JAIN NEW RAW CHIEF
RAW Chief IPS Officer Parag Jain; Pakistan | Operation Sindoor | IPS पराग जैन RAW चीफ बने: 1 जुलाई से चार्ज संभालेंगे, दो साल का कार्यकाल रहेगा; एविएशन रिसर्च सेंटर के प्रमुख भी हैं

पराग जैन 1989 बैच के पंजाब कैडर के आईपीएस हैं।
पंजाब कैडर के 1989 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अफसर व ऑपरेशन सिंदूर के रणनीतिकारों में से एक पराग जैन खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW ) के नए प्रमुख होंगे। केंद्र ने उनकी नियुक्ति का आदेश शनिवार को जारी किया। वे 1 जुलाई से कार्यभार संभालेंगे।
वे 30 जून को रिटायर हो रहे RAW प्रमुख रवि सिन्हा का स्थान लेंगे। जैन RAW में पाकिस्तान डेस्क का नेतृत्व कर चुके हैं। पड़ोसी देशों के मामलों के एक्सपर्ट जैन पंजाब में आतंक के खात्मे व अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान अहम योगदान दे चुके हैं।
आतंकी ठिकाने तबाह करने में महत्वपूर्ण इनपुट
पराग जैन फिलहाल RAW के दूसरे सबसे वरिष्ठ अफसर हैं। वर्तमान में एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) के प्रमुख हैं। ARC को ऑपरेशन सिंदूर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, जिसने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमलों की सुविधा प्रदान करने वाली खुफिया जानकारी दी थी।
ARC ने ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी विमानों और हवाई क्षेत्र की निगरानी में भूमिका निभाई, जिससे भारतीय वायुसेना बड़े हमले करने में सक्षम हुई। इस ऑपरेशन में ह्यूमन और टेक्निकल इंटेलिजेंस का बेहतरीन समन्वय देखने को मिला। एक्सपर्ट के मुताबिक जमीनी स्तर पर वर्षों की मेहनत और काफी कोशिशों के बाद नेटवर्क बनाने से ही इस तरह के सटीक लक्ष्य हासिल करना संभव हो पाया।
श्रीलंका-कनाडा में मिशन में रहे
पराग जैन ने ऑपरेशन बालाकोट के दौरान भी जम्मू-कश्मीर में काम किया है। जैन ने कनाडा में भारतीय मिशन में रहते हुए खालिस्तानी आतंकी मॉड्यूल्स पर नजर रखी थी। पंजाब में आतंक के चरम दौर में एसएसपी व डीआईजी रहे। वह श्रीलंका व कनाडा में कई भारतीय मिशन में तैनात रहे। इस दौरान उन्होंने भारत के खुफिया हितों की रक्षा की। खासकर कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों पर निगरानी से भारत को अहम जानकारियां मिलीं।
पराग जैन पंजाब कैडर के 1989 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं, वह RAW में पाकिस्तान डेस्क का नेतृत्व कर चुके हैं।
लोगों की मदद न करने वालों पर कार्रवाई
पंजाब के पूर्व डीजीपी सुरेश अरोड़ा बताते हैं, उनकी छवि ईमानदार अफसर की रही है। लुधियाना में वह बतौर डीआईजी रेंज तैनात थे, तब वे चंडीगढ़ के अपने घर से ही चीनी-चाय पत्ती व दालें तक लेकर जाते थे। पराग ने एक दिव्यांग की शिकायत पर कार्रवाई न करने पर एक एसएचओ और एक एसआई को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी थी।
उन्होंने संबंधित सब इंस्पेक्टर को कहा था कि हम लोगों की भलाई के लिए हैं, इसलिए इनकी सुनवाई जल्द की जाए। इसके बावजूद उस व्यक्ति की बात नहीं सुनी गई। तो उन्होंने कार्रवाई की थी। पत्नी सीमा जैन आईएएस अफसर हैं। इन दिनों केंद्र में सेक्रेटरी फाइनेंस, स्पेस के पद पर हैं।
नियुक्ति क्यों महत्वपूर्ण
इस वक्त सीमा पार आतंक और खालिस्तान के पुनरुत्थान से लेकर पाकिस्तान-चीन गठजोड़ जैसी कई रणनीतिक चुनौतियां उभर रही हैं। ऐसे में उम्मीद है कि जमीनी स्तर के पुलिसिंग अनुभव, विदेश में खुफिया पोस्टिंग और तकनीकी सक्षम नेतृत्व के बेजोड़ मेल के साथ वे भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील अवधि के दौरान RAW के मिशन में तेजी लाएंगे।
Saturday, June 28, 2025
भगवान् की जाति
भगवान् की जाति
भागवत और उसके देवता की जाती पर चर्चा चल रही है... लेकिन भागवत के देवता हैं कौन? क्या भागवत केवल कृष्ण का चरित्र है? लेकिन भागवत के कृष्ण कौन है?
निशीथे तम उद्भूते जायमाने जनार्दने । देवक्यां देवरूपिण्यां #विष्णुः सर्वगुहाशयः । आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः ॥
जन्म-मृत्युके चक्रसे छुड़ानेवाले जनार्दनके अवतारका समय था निशीथ । चारों ओर अन्धकारका साम्राज्य था। उसी समय सबके हृदयमें विराजमान भगवान् विष्णु देवरूपिणी देवकीके गर्भसे प्रकट हुए, जैसे पूर्व दिशामें सोलहों कलाओंसे पूर्ण चन्द्रमाका उदय हो गया हो ॥ ❤️
- श्रीमद्भागवत दशम स्कंद अध्याय तृतीया
वास्तव में भागवत तो संपूर्ण विष्णु चरित्र पर ही आधारित है यह बात स्वयं वेद व्यास इसी श्रीमद्भागवत में कहते हैं - एतद् वः कथितं विप्रा #विष्णोश्चरितमद्भुतम् । ❤️ - श्रीमद्भागवत, द्वादश स्कंध 12.2
कृष्ण अवतार केवल दशम स्कंध में वर्णित हैं अन्य ग्यारह स्कन्द में अर्ची, पृथु, लक्ष्मी नरसिंह सीताराम आदि सभी चौबीस अवतार वर्णित हैं जिन्हें भागवत ने लक्ष्मी नारायण का ही अवतार कहा है.. ❤️🙏🏻
भगवान विष्णु का वर्ण क्या होगा? वैसे तो भगवान से ही चारों वर्ण उत्पन्न हुए और भगवान का कोई वर्ण नहीं हैं फिर भी सोचें तो..
देखिए भगवान विष्णु का प्रिय रंग - पीताम्बर.. मनुस्मृति के अनुसार वैश्य का प्रियरंग पीताम्बर.. विष्णु को कौन प्रिय लक्ष्मी.. वैश्यों को कौन प्रिय - लक्ष्मी, विष्णु से ही वैश्य बना.. उनके नामानुसार.. और विष्णु क्या करते हैं अन्न धन आदि द्वारा विश्व का पालन.. विश्वम्भर हैं... विश का मुखिया अर्थात वैश्य होता है.. कृषि वाणिज्य और गोपालन द्वारा अन्न, धन का सृजन वैश्य करते हैं... और तो और जब भगवान ने अपना पूर्णावतार (कृष्ण अवतार) लिया तो दौड़ते हुए नंद बाबा के आंगन में पहुंच गए.. बच्चे को पारिवारिक माहौल ही अच्छा लगता है.. वैश्य वर्ण के कारण उन्हें वैश्य परिवार में ही बचपन अच्छा लगा.. गोपालक होते हैं वैश्य और भगवान का धाम - गोलोक धाम... उनकी प्रिया राधा रानी के पिता का उल्लेख शिव पुराण और ब्रह्मवैवर्त में वृषभानु "वैश्य" ऐसा स्पष्ट है..
52 बुद्धि बनिया और बनिये का दिमाग की अक्सर तारीफ की जाती है और नारायण छलिया हैं.. वैश्य ऐश्वर्यशाली होते हैं लक्ष्मीवान होते हैं और नारायण साक्षात लक्ष्मीपति हैं 😎
भागवत का प्राण गोपिका गीत है और गोपियां कौन हैं? साक्षात् वैश्य कुलोद्भव ❤️🙏🏻
इतनी similarity के बाद अब मैं दावा ठोक देता हूँ... 😜😜
जय गोविंद
लेख साभार प्रखर अग्रवाल जी की फेसबुकवाल से
Monday, June 23, 2025
KONKANASTH VAISHYA VANI
KONKANASTH VAISHYA VANI
कोंकणी वैश्य वाणी हैएक हिंदू उपजाति, जो मुख्य रूप से गोवा और कोंकण क्षेत्र के अन्य भागों में पाई जाती है, जो व्यापारियों और सौदागरों के रूप में अपनी पारंपरिक भूमिका के लिए जानी जाती है वे कोंकणी बोलते हैं और कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी पाए जाते हैं। उन्हें संदर्भित करने के लिए "वाणी" शब्द का भी उपयोग किया जाता है, और उन्हें कभी-कभी कुदाली वाणी भी कहा जाता है, विशेष रूप से कर्नाटक के कारवार और अंकोला क्षेत्रों में।
वर्ण और जाति:
वैश्य वाणी व्यापक वैश्य वर्ण के भीतर एक उप-जाति है, जो चार पारंपरिक हिंदू वर्णों में से एक है।
ऐतिहासिक भूमिका:
परंपरागत रूप से, वे व्यापार और वाणिज्य में शामिल रहे हैं तथा व्यवसाय क्षेत्र में उनकी मजबूत उपस्थिति रही है।
भौगोलिक वितरण:
गोवा में जन्म लेने के बाद, वे इनक्विजिशन अवधि के दौरान अन्य क्षेत्रों में चले गए। वे गोवा के शहरी केंद्रों जैसे मापुसा, पोंडा और मडगांव के साथ-साथ कारवार (कर्नाटक) और कोंकण तट के अन्य हिस्सों में केंद्रित हैं।
भाषा:
उनकी मातृभाषा कोंकणी है।
अन्य नामों:
इन्हें वाणी के नाम से भी जाना जाता है, और कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से कारवार और अंकोला में, कुदाली वाणी के रूप में भी जाना जाता है।
सामाजिक प्रथाएँ:
अन्य हिंदू समुदायों की तरह वे पारंपरिक विवाह रीति-रिवाजों और संस्कारों का पालन करते हैं।
KARWAR VAISHYA COMMUNITY
KARWAR VAISHYA COMMUNITY
Vaishya Vani is a sub-caste of Vaishyas, one of the varnas of Hinduism. They are traditionally traders and merchants and are found mainly in the Indian regions of Konkan, Goa, some parts of coastal and central Karnataka, and Kerala. The community is commonly known as Vanis and sometimes Kudali Vanis. They speak dialects of the Marathi and Konkani.
The VaisyVani originated in Goa and later migrated to other states during the Inquisition period. They are traditionally traa ders and commercial communities, though the Vaishya community in Goa is relatively small in comparison to other states in India. They are concentrated in urban areas, especially Mapusa, Ponda, Margao towns in Goa, Karwar in Karnataka and throughout the Konkan coast. Vaishya vani community residing in the Kerala in Fort Kochi, Pachalam, Vaduthala, Varapuzha, Maradu, Palluruthy and Elamakkara. They are non-vegetarian but abstain from eating pork and beef.
Marriage rites are akin to those of other Hindu communities,following the Hindu Samskaras. The community members use to marry only from the same community.
वैश्य वाणी हिंदू धर्म के वर्णों में से एक वैश्यों की एक उपजाति है। वे पारंपरिक रूप से व्यापारी और सौदागर हैं और मुख्य रूप से कोंकण, गोवा, तटीय और मध्य कर्नाटक के कुछ हिस्सों और केरल के भारतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। समुदाय को आमतौर पर वाणी और कभी-कभी कुदाली वाणी के रूप में जाना जाता है। वे मराठी और कोंकणी की बोलियाँ बोलते हैं। वैश्यवाणी की उत्पत्ति गोवा में हुई और बाद में इनक्विजिशन अवधि के दौरान अन्य राज्यों में चले गए। वे पारंपरिक रूप से व्यापारी और वाणिज्यिक समुदाय हैं, हालांकि गोवा में वैश्य समुदाय भारत के अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा है। वे शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, विशेष रूप से गोवा में मापुसा, पोंडा, मडगांव शहर, कर्नाटक में कारवार और पूरे कोंकण तट पर। वैश्य वाणी समुदाय केरल में फोर्ट कोच्चि, पचलम, वदुथला, वरपुझा, मरदु, पल्लुरूथी और एलामक्कारा में रहता है। वे मांसाहारी हैं लेकिन सूअर और गोमांस खाने से परहेज करते हैं। विवाह संस्कार अन्य हिंदू समुदायों के समान ही होते हैं, जो हिंदू संस्कारों का पालन करते हैं। समुदाय के सदस्य केवल एक ही समुदाय के लोगों से विवाह करते हैं।
Thursday, June 19, 2025
KANSA BANIK VAISHYA OF BENGAL
KANSA BANIK VAISHYA OF BENGAL
कंसबानिक या कंसारी (KANSABANIK OR KANSARI) जाति का इतिहास, कंसबानिक की उत्पति कैसे हुई?
धातु और पीतल के बर्तन बनाने में कंसबानिको की महारत हासिल थी. घरेलू बर्तनों जैसे पानी के जार प्लेट इत्यादि इन्हीं के द्वारा बनाया जाता था. ये जहाजों के लिए पीतल के उपकरणों को बनाते थे. धीरे-धीरे दूसरे जातियों के लोगों ने भी कंसबानिको का काम सीख कर इस पेशा को अपनाया. कंसबानिको को मुश्किलों का सामना तब करना पड़ा जब बाजार में सस्ते चीनी के मिट्टी और एल्युमीनियम के बर्तन चलन में आने लगा. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनके काम के लिए आवश्यक कच्चा माल मिलना बंद हो गया. मजबूरी में वे गाँवों मे चले गए और जैसे- तैसे अपना गुजारा करते रहे. कुछ कंसारी आभूषण बनाने और कीमती पत्थरों को जड़ने के काम करने लगे हैं कुछ विद्युत मशीनरी और सर्जिकल उपकरणों के हिस्सों का निर्माण शुरू कर दिया है. कंसबानिक या कंसारी (Kansabanik or Kansari) भारत में पाई जाने वाली एक वैश्य जाति है. यह परंपरागत रूप से ब्रेज़ियर (brazier) और ताम्रकार (coppersmith) के रूप में काम करते हैं. बंगाल में यह ‘नबासख’ (Nabasakh) समूह का हिस्सा हैं, जिसमें कुल 14 जातियां शामिल है.कंसारी घण्टा धातु (Bell metals), पीतल (Brass) और कांसे (bronze) का भी काम करते हैं. बता दें कि घण्टा धातु (Bell metals) एक कठोर मिश्रातु (alloy) है जिससे घण्टे, घंटियाँ और अन्य उपकरण जैसे झांझ (cymbals) आदि का निर्माण किया जाता है. यह बर्तन और कई प्रकार के उपकरण बनाते हैं और अपने उत्पादों को स्थानीय और बाहरी बाजारों में बेचकर जीवन यापन करते हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कंसबानिकों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में मान्यता दी गई है. आइए जानते हैं कंसबानिक जाति का इतिहास, कंसबानिक की उत्पति कैसे हुई?
कंसबानिक जाति एक परिचय
भारत में यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में पाए जाते हैं. उड़ीसा में यह मुख्य रूप से खोर्धा जिले में पाए जाते हैं. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. देवी लक्ष्मी और भगवान विश्वकर्मा में इनकी विशेष आस्था है. बता दें कि लक्ष्मी माता इनकी कुलदेवी हैं, जबकि भगवान विश्वकर्मा इनके कुलदेवता हैं. यह बंगाली, उड़िया, असमिया और हिंदी बोलते हैं.
कंसबानिक जाति की उत्पति कैसे हुई?
संभवत: कांसे का काम करने के कारण इनका नाम कंसबानिक या कंसारी पड़ा.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इनकी उत्पत्ति भगवान विश्वकर्मा के पुत्र से हुई है. हिंदुओं के एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ बृहद्धर्म पुराण (Brihaddharma Purana) में कंसाबनिकों को जाति पदानुक्रम में उच्च मिश्रित जातियों की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है. एक प्रचलित किवदंती के अनुसार, स्वर्ग की एक अप्सरा को श्राप दिया गया था और उसने पृथ्वी लोक पर मानव के रूप में जन्म लिया. निर्माण और सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा ने धरती पर एक ब्राह्मण के रूप में अवतार लिया. फिर उस श्रापित अप्सरा और भगवान विश्वकर्मा का विवाह हुआ, जिससे उनके 9 पुत्र हुए. सभी पुत्र बड़े होकर कुशल कलाकार और दक्ष शिल्पकार बने. उन्हीं पुत्रों में से एक ब्रेज़ियर और ताम्रकार के रूप में काम करने लगा. कंसबानिक उन्हीं के वंशज होने का दावा करते हैं.
SAHA VAISHYA OF BENGAL - बंगाल के साहा वैश्य
SAHA VAISHYA OF BENGAL - बंगाल के साहा वैश्य
साहा ( बंगाली : সাহা ), जिसे कभी-कभी शाहा भी लिखा जाता है , एक बंगाली वैश्य उपनाम है, जो आमतौर पर पश्चिम बंगाल , असम और त्रिपुरा के भारतीय राज्यों और बांग्लादेश में बंगाली हिंदुओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता है । यह उपनाम आमतौर पर बैश्य साहा , शुनरी वैश्य , कर्मकार वैश्य , सुवर्ण बानिक वैश्य , गंधबानिक वैश्य, बैश्य कपाली तीली वैश्य के द्वारा प्रयुक्त किया जाता है
बारहवीं शताब्दी की शुरुआत में रामपाल के समय के चंडीमऊ छवि शिलालेख, वर्ष 42 में, एक दानी वणिक (शाब्दिक रूप से व्यापारी) साधु सहराणा का उल्लेख है, जो राजगृह से उत्पन्न साधु भदुल्व का पुत्र था और एतराग्राम में रहता था।
साहा जाति मुख्य रूप से बंगाल में पाई जाती है, यह बंगाली हिंदुओं का एक समुदाय है जो पारंपरिक रूप से व्यापार और व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। वे "साहा" उपनाम का उपयोग करते हैं, लेकिन वे पोद्दार, रॉय चौधरी और अन्य जैसे अन्य उपनाम भी अपनाते हैं। ऐतिहासिक रूप से, उन्हें एक व्यापारिक वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके सदस्य किराना व्यापारी, दुकानदार और विभिन्न वस्तुओं के डीलर के रूप में काम करते हैं कुछ साह लोग धन उधार देने और खेती में भी लगे हुए हैं ।
आइए उनके इतिहास पर अधिक विस्तृत नजर डालें:
उत्पत्ति और वर्ण स्थिति:
साहा जाति बंगाल में वैश्य के रूप में मान्यता प्राप्त हैं यह एक वैश्य बनिया जाति हैं
उपनाम एवं उपजातियाँ:
उपनाम "साहा" संस्कृत शब्द "साधु" से लिया गया है, जिसका अर्थ है साहूकार और व्यापारी। हालाँकि, समुदाय अन्य उपनामों का भी उपयोग करता है।
पारंपरिक व्यवसाय:
साह मुख्य रूप से व्यापार और व्यवसाय में अपनी भागीदारी के लिए जाने जाते हैं, जिसमें किराना, दुकानदारी और विभिन्न वस्तुओं का कारोबार शामिल है।
मध्यकालीन साहित्य में अनुपस्थिति:
ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि साहा समुदाय, एक अलग उपजाति के रूप में, उन्नीसवीं सदी के मध्य से पहले बंगाल में विकसित नहीं हुआ था।
सामाजिक गतिशीलता:
कुछ साहों ने अपनी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाने का प्रयास किया है, जबकि कुछ ने वैश्य का दर्जा पाने का दावा किया है।
उल्लेखनीय लोग
कलाकार और प्रदर्शनकर्ता
अनामिका साहा , भारतीय अभिनेत्री
अरुण साहा , बांग्लादेशी अभिनेता और संगीतकार
आशिम साहा , बांग्लादेशी कवि और एकुशी पदक के प्राप्तकर्ता
बिद्या सिन्हा साहा मीम , बांग्लादेशी अभिनेत्री
देबत्तमा साहा , भारतीय अभिनेत्री
देबोजित साहा , भारतीय गायक
इमोन साहा , एक बांग्लादेशी संगीतकार, संगीतकार और गायक हैं। उन्होंने अपनी संगीत रचना और निर्देशन के लिए 7 बांग्लादेश राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अर्जित किए।
एना साहा , भारतीय अभिनेत्री और निर्माता
ईशा साहा , भारतीय अभिनेत्री
पीयूष साहा , भारतीय फिल्म निर्देशक
सत्य साहा , बांग्लादेशी संगीत निर्देशक और स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार (मरणोपरांत) प्राप्तकर्ता
शिति साहा , बांग्लादेशी गायिका और सर्वश्रेष्ठ टैगोर गायिका के लिए चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता
सुरजीत साहा , भारतीय अभिनेता, मॉडल और सोशल मीडिया प्रभावकार
स्वपन साहा , भारतीय फिल्म निर्देशक
त्रिना साहा , भारतीय अभिनेत्री
राजनेताओं
भानु लाल साहा , त्रिपुरा के पूर्व वित्त मंत्री
माणिक साहा , 2022 से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री
सुब्रत साहा , एक भारतीय प्रख्यात राजनीतिज्ञ, जिन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार में लोक निर्माण राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया।
वैज्ञानिक और शिक्षाविद
बरना साहा , भारतीय-अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक
भास्कर साहा , भारतीय जीवविज्ञानी और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्तकर्ता
चंद्रिमा शाहा , भारतीय जीवविज्ञानी और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार की प्राप्तकर्ता
कनक साहा , भारतीय खगोल वैज्ञानिक और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के प्राप्तकर्ता
मेघनाद साहा , भारतीय खगोल भौतिक विज्ञानी, साहा आयनीकरण समीकरण के विकासकर्ता
समीर कुमार साहा , बांग्लादेशी वैज्ञानिक और एकुशी पदक के प्राप्तकर्ता
सेन्जुति साहा , बांग्लादेशी वैज्ञानिक
सनत कुमार साहा , बांग्लादेशी अर्थशास्त्री और एकुशी पदक के प्राप्तकर्ता
खिलाड़ियों
आरती साहा , इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने वाली पहली एशियाई महिला और पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी
नंदिता साहा , भारतीय टेबल-टेनिस खिलाड़ी, राष्ट्रमंडल कांस्य पदक विजेता (2006)
सुभाजीत साहा , भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी, राष्ट्रमंडल स्वर्ण पदक विजेता
रिद्धिमान साहा , भारतीय क्रिकेटर
सामाजिक कार्यकर्ता और सुधारक
चितरंजन साहा , बांग्लादेशी शिक्षाविद्, प्रकाशक और सामाजिक कार्यकर्ता, एकुशी पदक के प्राप्तकर्ता
गोपीनाथ साहा , बंगाली कार्यकर्ता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सदस्य
नित्यानंद साहा , भारतीय क्रांतिकारी
राय बहादुर रानाडा प्रसाद साहा , बांग्लादेशी व्यवसायी, परोपकारी, और स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार (मरणोपरांत) के प्राप्तकर्ता
SHREEMAL SONI VAISHYA OF GUJARAT
SHREEMAL SONI VAISHYA OF GUJARAT
शिरमाल (वर्तमान में भिन्नमाल के नाम से जाना जाता है) मारवाड़ में आबू रोड से 50 मील की दूरी पर स्थित है श्रीमाल भारत के राजस्थान राज्य में एक स्थान है। वर्तमान में भीनमाल के नाम से जाना जाता है। श्रीमाल "श्री" और "माल" का संयोजन है। "श्री" का लोकप्रिय अर्थ लक्ष्मी है, जो धन की देवी है। "श्री" का अर्थ सुंदरता और चमक भी है, "माल" का अर्थ स्थान है। इस प्रकार श्रीमाल लगभग 800 साल पहले एक सुंदर समृद्ध स्थान था जहाँ अन्य जातियों के साथ-साथ सुनार भी रहते थे, कलाकृतियाँ बनाते थे।सोने से सुंदरता का निर्माण किया और अन्य समुदायों के साथ समृद्ध हुआ। संस्कृत भाषा में भिन्न शब्द का अर्थ है टूटा हुआ या अलग हुआ और इसलिए भीनमाल का अर्थ है टूटा हुआ स्थान। श्रीमाल पुराण (स्कंद पुराण का हिस्सा) के अनुसार ऋषि गौतम और देवी लक्ष्मी के श्राप के कारण श्रीमाली नगर का विकेंद्रीकरण हुआ और इसकी समृद्धि और जनसंख्या में कमी आई। चूंकि श्रीमाल नगर को बहुत नुकसान हुआ, इसलिए वहां रहने वाले लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो गए।
उनमें से अधिकांश गुजरात और मारवाड़ (राजस्थान) की ओर पलायन करने लगे। इसलिए वर्तमान में अधिकांश श्रीमाल इन दो राज्यों में रह रहे हैं, हालांकि वे अपने पारंपरिक और आधुनिक पेशे के साथ दुनिया भर में चले गए और स्थापित हो गए।
मध्यकाल में भीनमाल, गुर्जर राजपूत साम्राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी।[2] मध्यकाल में इस शहर का नाम भीलमाल (भीलमाल) था। ह्वेन त्सांग ने लगभग 641 ई. में भीलमाल (भीलमाल) का दौरा किया था। ह्वेन त्सांग के अनुसार भीलमाल, गुर्जर राजपूत साम्राज्य की राजधानी थी। उन्होंने कहा कि राजपूत गुर्जरों ने भीनमाल (पिलो-मो-लो) में राजधानी के साथ एक समृद्ध और आबादी वाले राज्य पर शासन किया।
आज श्री माल बीस हज़ार की आबादी वाला एक छोटा सा गाँव है जो मारवाड़ के भीलड़ी जंक्शन के पास है। भीलड़ी जंक्शन से भीलड़ी जंक्शन की दूरी सौ और तीन किलोमीटर है। शिरोही स्टेशन से वहाँ पहुँचा जा सकता है जहाँ सौ श्री माली ब्राह्मण हैं और चालीस श्री माली सोनी वैश्य बनिया की दुकानें हैं। भारतीय क्षेत्र के इतिहास पर विचार करें तो - वीर भूमि - वरु भूमि जोधपुर और आबू के बीच है जहाँ श्री माली विशाल भूमि पर बसे थे। भीलड़ी खूबसूरत राज्य की राजधानी है जहाँ पहले बहुत ऊँचे महल और घनी आबादी थी जो हर विदेशी को आकर्षित करती थी।
यह व्यापार का मुख्य केंद्र था, गुजरात और मारवाड़ व्यापारिक गतिविधियों में योगदान दे रहे थे। यहाँ खूबसूरत झीलें और धार्मिक स्थल थे, ब्राह्मण, बनिया जैसे उच्च समाज के लोग थे जो नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पित और धार्मिक स्वभाव के थे। समय के साथ सबसे लोकप्रिय और प्रचलित पर्याय भीनमाल आज वीरान हो गया है। एक खूबसूरत भीनमाल अब बंजर छोटा सा गाँव है। 1611 के वर्ष में एक ब्रिटिश व्यापारी श्री निकोलस उसेलेट ने 36 मील क्षेत्र वाले भीनमाल का दौरा किया और यहाँ बॉम्बे गजेटियर में छपा उनका संस्करण है “1611 ई. में आगरा से अहमदाबाद आए एक अंग्रेज यात्री निकोलस उसेलेट ने भीनमाल में 24 कोस (36 मील) की एक प्राचीन दीवार देखी, जिसके कई बेहतरीन तालाब बर्बाद हो रहे थे।”
आज भीनमाल के पुराने खंडहर और इतिहास आश्चर्यजनक है। अब शहर के पूर्वी भाग में भगवान वाराही मंदिर के साथ हाल ही में पुनर्निर्मित चार जैन पार्श्वनाथ मंदिर भीनमाल स्थित हैं।
मंदिर और इसकी मूर्तियाँ वास्तुकला का एक सुंदर नमूना हैं। यहाँ एक सुंदर नीलकंठ महादेव मंदिर भी है और यक्ष झील के दक्षिण में बाना झील के किनारे और झील के बीच में लखरा द्वीप स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
श्रीमाल का नाम इस स्थान से लिया गया है जो ईसाई युग की 6ठी से 9वीं शताब्दी के बीच राजपूत गुर्जरों की राजधानी थी। पुराने शहर का वर्तमान स्थल अपने पिछले वैभव के कई अवशेषों से भरा पड़ा है जो बड़े क्षेत्र में बिखरे हुए हैं-
विस्मृत युग के मूक गवाह हैं। यह शहर जैन धर्म के आगमन से पहले स्थापित प्रतीत होता है। शहर के निर्माण की कथा श्रीमाल पुराण में मिलती है जो (13वीं शताब्दी) के अंत में लिखी गई थी जिसमें कहा गया है कि सत्य युग के स्वर्ण युग में भृगु नाम के एक ऋषि रहते थे जिनकी श्री (लक्ष्मी) नाम की एक पुत्री थी, नारद के अनुरोध पर विष्णु ने इस युवती से विवाह किया और विवाह देवताओं की उपस्थिति में मनाया गया जो इस शुभ अवसर को देखने के लिए हर तरफ से आये थे। ब्रह्मा और देवताओं ने लक्ष्मी को आशीर्वाद दिया और कहा विष्णु ने विश्वकर्मन (दिव्य वास्तुकार) को उस स्थान पर एक बड़ा शहर बनाने का निर्देश दिया और अपने सेवकों को ऋषियों के सुंदर युवा पुत्रों को लाने के लिए भेजा ताकि वे वहाँ निवास कर सकें। सभी दिशाओं से 45,000 ब्राह्मण श्रीमाल में नई आबादी को इकट्ठा करने आए थे। ब्राह्मण, श्रीमाली बनिया, श्रीमाली सोनी के पोरवाड़ बनिया, धनोत्कट सभी दिशाओं से आए थे और वे श्रीमाल से आए थे। इसके बाद श्रीमाल में आने वाले सभी लोगों ने लक्ष्मी को अपनी देवी या संरक्षक संत के रूप में अपनाया।
बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजेटियर ..., खंड 1, भाग 1 से एक और बात यह है कि जब लक्ष्मी का विवाह श्रीमाल में विष्णु से हो रहा था, तो उन्होंने अपने वक्षस्थल में देखा, जहाँ से जरिया (जड़िया) सुनार वैश्य निकले थे: उन्होंने उत्तर की ओर देखा तो ओशवाल वैश्य प्रकट हुए, उनके पूर्व की ओर से पोरवाल वैश्य पैदा हुए। उनके फूलों के भाग्यशाली हार से श्रीमली ब्राह्मण उत्पन्न हुए।
श्रीमाल में आने वाले ब्राह्मणों को श्रीमाली ब्राह्मण कहा जाता है और वे श्रीमाली बनिया, श्रीमाली सोनी के पोरवाड बनिया, धनोत्कट और श्रीमाल में आए अन्य समुदायों के कुलगुरु हैं।
एक हिंदू वैश्य समुदाय जो मुख्य रूप से भारत के गुजरात में पाया जाता है, जो सुनार के रूप में अपने काम के लिए जाना जाता है वे बड़ी सोनी जाति का एक उप-विभाग हैं, जिसमें आभूषण व्यापार में शामिल विभिन्न कारीगर समूह शामिल हैं। श्रीमाली सोनी को कभी-कभी वानिया सोनी या श्रीमाली वानिया सोनी भी कहा जाता है ।
यहाँ अधिक विस्तृत जानकारी दी गई है:
पेशा:
परंपरागत रूप से, श्रीमाली सोनी सोने, चांदी और हीरे के आभूषणों में अपनी शिल्पकला के लिए जाने जाते हैं। कई लोग धन उधार देने और व्यापार में भी शामिल हैं।
जगह:
वे मुख्य रूप से गुजरात में पाए जाते हैं, तथा अन्य भारतीय राज्यों और यहां तक कि अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे स्थानों में भी उनकी उपस्थिति है।
उप-विभाग:
वे बड़ी सोनी जाति के भीतर एक विशिष्ट समूह हैं, जिसमें पाटनी सोनी और श्रीमाली सोनी जैसे विभिन्न उप-विभाग शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना जाति संघ है।
KHADAYAT VAISHYA OF GUJARAT - खड़ायता वैश्य
KHADAYAT VAISHYA OF GUJARAT - खड़ायता वैश्य
खड़ायता वैश्य - खड़ायत वैश्य खड़ायता जाति एक वानिया जाति है जो गुजरात की उच्च जातियों में से एक है। हिंदुओं के बनिया/वानिया समुदाय में 'खड़ायता' जाति की उत्पत्ति भारत के गुजरात राज्य में हुई थी। इसका अस्तित्व दुनिया भर में है। इस समुदाय के लोग व्यापारिक गतिविधियों के लिए जाने जाते हैं।
खड़ायता समुदाय का इतिहास लगभग 700 साल पुराना है। मूल परिवार उत्तर गुजरात के "खड़त" नामक गांव से आए प्रतीत होते हैं। हालाँकि समुदाय के सदस्यों का औपचारिक संगठन इस सदी के आरंभ में शुरू हुआ था। उस समय अधिकांश परिवार गुजरात और उसके आस-पास के गांवों में रहते थे। अधिकांश सदस्यों का शिक्षा स्तर बहुत कम था और उनका मुख्य व्यवसाय वस्तुओं का व्यापार था। केवल कुछ शिक्षित समुदाय के सदस्य ही बॉम्बे और अहमदाबाद जैसे शहरों में रह रहे थे।
बंबई में रहने वाले कुछ खड़ायता समुदाय के सदस्यों ने वर्ष 1912 में एक संगठन "खड़ायता समाज" की शुरुआत की। इन शुभचिंतकों ने माना कि उच्च शिक्षा ही समुदाय के युवा सदस्यों के भविष्य को आगे बढ़ाने का एकमात्र तरीका है। इसलिए समाज की सबसे पहली गतिविधि खड़ायता के बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए सुविधाएं और छात्रवृत्ति निधि स्थापित करना था।
उस समय की स्थिति को समझना हमारे लिए मुश्किल है। कई गांवों या काफी बड़े समुदायों में प्राथमिक शिक्षा की भी सुविधा नहीं थी। गांवों से आने वाले छात्रों को, जहां ज्यादातर खड़ायता परिवार बसे हुए थे, प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहरों में अपने रिश्तेदारों के साथ रहना पड़ता था। लड़कियों के लिए शिक्षा लगभग न के बराबर थी।
1914 में नाडियाड में खादायता परिषद नामक पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें गुजरात के कई हिस्सों से प्रतिनिधि शामिल हुए थे। सम्मेलन में जरूरतमंद छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए छात्रवृत्ति कोष स्थापित करने के प्रस्ताव पारित किए गए थे। समुदाय के सदस्यों के बेटे-बेटियों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए 1916 में खादायता शिक्षा समाज (केलवाणी मंडल) की स्थापना की गई थी। यह धन छात्रवृत्ति और स्कूलों, कॉलेजों और विदेशी शिक्षा में अध्ययन के लिए ब्याज मुक्त ऋण के रूप में वितरित किया गया था। यह संगठन पिछले 80 वर्षों से कई खादायता समुदाय के सदस्यों की शिक्षा के विकास का केंद्र रहा है। पिछले 90 वर्षों के दौरान मंडल द्वारा उपलब्ध कराए गए धन से हजारों छात्रों को लाभ हुआ है।
पहली परिषद के बाद से अब तक एक दर्जन से ज़्यादा परिषदें आयोजित की जा चुकी हैं। उनमें से हर एक ने समयबद्ध मुद्दों को संबोधित किया है और समुदाय की वित्तीय, शैक्षिक और सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रगतिशील संकल्प लिए हैं। यह समुदाय की गतिशील प्रकृति और समय की मार झेलकर आगे बढ़ने की इच्छा को दर्शाता है।
समुदाय के सदस्य गांवों से आने वाले छात्रों की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ थे, जहां शिक्षा की सुविधाएं व्यावहारिक रूप से मौजूद नहीं थीं। प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने के लिए भी युवाओं को घर से दूर, आमतौर पर किसी रिश्तेदार के घर पर रहना पड़ता था। प्रमुख शहरों में छात्रों के लिए आवास और भोजन की सुविधाएं स्थापित करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया गया था। वर्तमान में छात्रों के लिए 10 से अधिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। जाहिर है छात्रों की ज़रूरतें बदल गई हैं और इनमें से कई सुविधाओं का उपयोग अब कॉलेज और स्नातकोत्तर अध्ययन करने वाले छात्र कर रहे हैं।
इस सदी के शुरुआती दौर में समुदाय के नेताओं ने महिलाओं और युवा लड़कियों की स्थिति पर गौर किया और उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। शिक्षा का स्तर बेहद कम था, लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में, यानी 14 साल की उम्र में ही हो जाती थी और कई दुर्भाग्यपूर्ण मामलों में वे 15 साल की उम्र में ही विधवा हो जाती थीं। इन जरूरतमंद महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए, एक संगठन महिला उन्नति या विकास समाज (महिला विकास मंडल) की स्थापना की गई। इस संगठन ने छोटे पैमाने के व्यवसाय में प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं और आवश्यक उपकरणों के लिए धन मुहैया कराया।
जैसे-जैसे समुदाय के सदस्यों का शैक्षिक स्तर सुधरता गया, उनमें से कई लोग रोजगार के लिए बॉम्बे, अहमदाबाद, बड़ौदा आदि जैसे बड़े शहरों में चले गए। उनकी मुख्य समस्या रहने के लिए जगह ढूँढना था। समुदाय के परोपकारी लोगों ने बड़े शहरों में गेस्ट हाउस शुरू करने के लिए धन और सुविधाएँ दान कीं। ऐसी सुविधाओं ने नए नौकरीपेशा युवाओं को थोड़े समय के लिए रहने की जगह प्रदान की। समुदाय के उन सदस्यों के लिए अतिरिक्त सुविधाएँ भी स्थापित की गईं जिन्हें चिकित्सा उपचार या अस्पताल में भर्ती होने आदि के दौरान रहने के लिए अस्थायी स्थान की आवश्यकता थी।
बाद के वर्षों में समुदाय के नेताओं ने जरूरतमंद परिवारों को कठिन समय में वित्तीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता को पहचाना। खड़ायता परिवारों को सहायता प्रदान करने के लिए जनता चैरिटेबल ट्रस्ट नामक एक संगठन की स्थापना की गई।
समुदाय ने साठ के दशक में महुडी (जिसे कोट्यार्कधाम के नाम से जाना जाता है) में एक नया मंदिर और एक गेस्ट हाउस बनाकर भगवान (इष्टदेवता) की सेवा के लिए अपनी गतिविधियों का विस्तार किया। इसके बाद, समुदाय के तीर्थयात्रियों के लिए गोकुल और नाथद्वारा में सुविधाएँ जोड़ी गईं ।
संगठित गतिविधियों के अन्य क्षेत्रों में युवा बैठकें, व्यापार सहायता और प्रशिक्षण, सामूहिक विवाह, सहकारी भंडार और वित्तपोषण संगठन, व्यापार सहायता और शिक्षा के विशिष्ट क्षेत्रों के लिए सीमित पहुंच वाले स्कूल शामिल हैं।
खड़ायतों की सेवा करने वाले संगठनों की गतिविधियों का व्यापक अवलोकन करने पर कार्यकर्ताओं के प्रगतिशील विचारों और नेतृत्व गुणों का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने समाज में हो रहे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों को देखा है और समुदाय के सदस्यों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिए अपने प्रयासों को समायोजित किया है।
21वीं सदी की शुरुआत में खड़ायता परिवार पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। वे दुनिया के सभी महाद्वीपों, भारत के सभी राज्यों में फैले हुए हैं। वे चाहे कहीं भी रहते हों, उन्होंने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया और अपने साथी खड़ायतों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे हैं।
खडायता वैश्य / बनिया समाज के गोत्र व कुलदेवियाँ
अठारह ब्राह्मण भगवान् कोट्यर्क की आराधना कर रहे थे। उस समय प्रत्येक ब्राह्मण की सेवा सुश्रूषा के लिए दो दो वैश्य लगे हुए थे। वे अठारह ब्राह्मण खड़ायता ब्राह्मण और सेवारत वैश्य खड़ायता वैश्य कहलाए।
खड़ायता वैश्यों के गोत्रों और कुलदेवियों का ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में निम्नानुसार वर्णन है-
वणिजां च प्रवक्ष्यामि गोत्राणि विविधानि च |
गुन्दानुगोत्रं नान्दोलु मिंदियाणु तृतीयकं ||
नानु नरसाणु वैश्याणु मेवाणु सप्तमं तथा |
भटस्याणु साचेलाणु सालिस्याणु तथैव च ||
कागराणु तथा गोत्रंमिथ्यं च प्रकीर्तितम् ||
कुलदेवियों का वर्णन-
देव्यश्च द्वादश प्रोक्तास्तत्राद्या नेषुसंज्ञाका |
ततो गुणमयी प्रोक्ता नरेश्वरी तृतीयका ||
तुर्या नित्यानन्दिनी तु नरसिंही च पञ्चमी |
षष्ठी विश्वेश्वरी प्रोक्ता सप्तमी महिपालिनी ||
भण्डोदर्यष्टमी देवी शङ्करी नवमी तथा |
सुरेश्वरी च कामाक्षी देव्यो ह्येकादश स्मृताः ||
तया कल्याणिनीयं वै द्वादशी तु प्रकीर्तिता ||
सुप्रसिद्ध खड़ायता
सोनल शाह - एक विशा खड़ायता - जो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की संक्रमण टीम के सलाहकार बोर्ड का हिस्सा थीं।
कोदरदास कालिदास शाह - एक मोडासा एकदा विशा खड़ायता जिन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
डॉ. अमृतलाल चुन्नीलाल शाह (अर्थशास्त्री) - श्री जनोद एकदा विश्व खादयता के सदस्य - जिन्हें वर्ष 1990 में बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य प्रबंध निदेशक के रूप में चुना गया था और वे श्री जनोद एकदा विश्व खादयता के पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है
Nagar Vaishya / Baniya Samaj History in Hindi नागर वैश्य समाज की उत्पत्ति व इतिहास
नागर वैश्य समाज की उत्पत्ति व इतिहास Nagar Vaishya / Baniya Samaj History in Hindi
ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड के अनुसार गुजरात के राजा सत्यसंघ ने गर्ततीर्थ के ब्राह्मणों को नागर ब्राह्मणों के निवास वाले बड़नगर में व्यापार की प्रेरणा दी थी। वे गर्ततीर्थ के ब्राह्मण उस नगर में वाणिज्य-व्यवसाय करने से नागर वैश्य कहलाए –
ततस्ते ब्राह्मणाः सर्वे गर्ततीर्थ समुद्भवाः।
सत्यसंघं समभ्येत्य प्रोचुर्दुखं स्वकीयकम्।।
परिग्रहः कृतोऽस्माभिः केवलं पृथिवीपते।
न च किं चित्फ़लं जातं वृत्तिजं न पुरोद्भवम् ||
अर्थात् गर्ततीर्थ के निवासी ब्राह्मण राजा सत्यसंघ से कहने लगे हे राजन् ! गर्ततीर्थ में हमें केवल दान से धन प्राप्त होता है। उससे गुजारा नहीं होता। वृति के बिना गृहस्थी का फल नहीं।
तब राजा सत्यसंघ की प्रेरणा से बड़नगर के नागर ब्राह्मण गर्ततीर्थ के ब्राह्मणों को अपने यहाँ ले गए और उनके वाणिज्य-व्यवसाय को प्रोत्साहन दिया |
तेऽपि तेषां प्रसादेन गर्ततिर्थोद्भवा द्विजाः |
परां विभूतिमादाय मोदन्ते सुख संयुता ||
गर्ततिर्थोद्भवा विप्रा यथा जाता वणिग्वराः ||
वे गर्ततीर्थ के ब्राह्मण नागर ब्राह्मणों के प्रोत्साहन से वाणिज्य-व्यापार में सफलता पाकर समृद्ध हो गए तथा वैश्य कहलाने लगे।
कुलदेवता /कुलदेवी
ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में नागर वैश्यों के कुलदेवता हाटकेश्वर महादेव बताए गए है।
नागर ब्राह्मणकुल तथा नागर वैश्यकुल की देवी दमयन्ती का वर्णन भी ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में हुआ है। दमयन्ती की मूर्ति शिलारूप में है। उसकी प्रथम पूजा गुजरात नरेश द्वारा की गई थी –गत्वा शिलासमीपे तु विललापाति चित्रधा | ततः कृत्वालयं तस्याः समन्तात् सुमनोहरम् || कर्पूरागरु धूपाद्यैर्वस्त्र कुंकुमचन्दनैः ||
अर्थात् दुःखी राजा दमयन्ती शिला के पास जाकर मन की वेदना प्रकट करने लगा। उसने वह देवालय का निर्माण कराकर कपूर अगरबत्ती धूप वस्त्र कुमकुम आदि पूजापदार्थ अर्पित किए। उस क्षेत्र की स्त्रियों ने भी दमयन्ती पूजन का संकल्प किया –
यदस्माकं गृहे वृद्धिः कदचित्संभविष्यति |
तद्ग्रतश्च पश्चाच्च दमयन्त्याः प्रपूजनम् ||
करिष्यामो न सन्देहः सर्वकृत्येषु सर्वदा |
जब-जब हमारे घर में विवाहादि विशेष कार्य होंगे, कार्य के आरम्भ में तथा संपन्न होने के बाद दमयन्तीपूजा करें। सारे कार्य उन्हें स्मरण करके किये जाएंगे। दमयन्तीपूजन की महिमा का भी वर्णन है –
एनां दृष्ट्वा कुमारी या वेदीमध्ये गमिष्यति |
सा भविष्यत्य संदेहात्पत्युः प्राणसमा सदा ||
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन कन्यायज्ञ उपस्थिते |
दमयन्ती प्रदृष्ट्व्या पूजनीया विशेषतः ||
विवाह के समय जो कन्या दमयन्ती का दर्शन करके तत्पश्चात् वेदी स्थल पर जाएगी तो वह अपने पति को प्राणो के सामान प्रिय होगी। इसलिए विवाह के अवसर पर नागर ब्राह्मणों और नागर वैश्यों की कन्याओं को दमयन्ती का दर्शन और पूजन अवश्य करना चाहिए।।
Monday, June 2, 2025
JEE Advanced Topper : AIR 1 Rajit Gupta
JEE Advanced Topper : AIR 1 Rajit Gupta
JEE Advanced Topper : AIR 1 Rajit Gupta JEE Main Rank strategy coaching IIT Bombay BTech CSE target कोटा के राजित बने JEE एडवांस्ड टॉपर
कोचिंग हब कोटा के रहने वाले 18 वर्षीय राजित गुप्ता ने जेईई एडवांस्ड में 360 में से 332 अंक हासिल कर ऑल इंडिया रैंक 1 हासिल की है। राजित ने जेईई की तरफ तभी कदम बढ़ा दिया था जब वह छठी कक्षा में थे। उनके माता-पिता ने उन्हें एक कोचिंग प्रोग्राम में दाखिला दिला दिया था। सफलता को लेकर उन्होंने कहा, 'इतनी कम उम्र में जेईई कोचिंग शुरू करने से मुझे एक मजबूत बेस बनाने में मदद मिली। शुरू में मेरे माता-पिता को लगता था कि मैं मेडिकल की पढ़ाई करूंगा और मैं भी अपने करियर गोल के बारे में पूरी तरह से पक्का नहीं था। लेकिन उन एक्स्ट्रा क्लासेज ने मुझे स्पष्टता दी। मेरा विजन क्लियर होता गया। जब मैं कक्षा 9 में पहुंचा तब तक मैं अपना लक्ष्य तय कर चुका है।
राजित गुप्ता ने इससे पहले जेईई मेन के जनवरी और अप्रैल दोनों सेशन में 100-100 पर्सेंटाइल हासिल किए थे। उनकी ऑल इंडिया रैंक 16 रही थी। रजित ने 10वीं कक्षा 96.8 प्रतिशत नंबरों से पास की थी। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय कोटा कोचिंग, अच्छे गाइडेंस और पॉजिटिव सोच को दिया है। एलन करियर इंस्टीट्यूट के रेगुलर क्लासरूम स्टूडेंट राजित ने बताया, 'पढ़ाई के दौरान सबसे ज्यादा फोकस रहता था कि गलतियों को रिपीट नहीं करूं, क्योंकि गलतियां दूर होने से ही आपकी सब्जेक्ट में नींव मजबूत होती है। मेरा की-ऑफ सक्सेस है, हैप्पीनेस है। हर हाल में खुश रहता हूं। जब भी मौका मिलता है तो कॉलोनी के बच्चों के साथ खेलता हूं। अपनी तैयारी को लेकर कॉन्फिडेंट रहता हूं।'
जेईई एडवांस्ड टॉपर राजित अकादमिक रूप से एक मजबूत परिवार से आते हैं। उनकी मां डॉ. श्रुति अग्रवाल यूनिवर्सिटी टॉपर थीं और वर्तमान में जेडीबी कॉलेज (कोटा) में गृह विज्ञान विषय की प्रोफेसर हैं। उनके पिता ने कोटा इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था और एनआईटी इलाहाबाद से एमटेक किया था। वह वर्तमान में बीएसएनएल (कोटा) में सब डिविजनल इंजीनियर के रूप में काम करते हैं। राजित को परिवार में शुरू से ही पढ़ाई व अनुशासन का माहौल मिला। रजित के पिता दीपक गुप्ता ने 1994 में राजस्थान प्री इंजीनियरिंग टेस्ट (आरपीईटी) में 48वीं रैंक हासिल की थी।
राजित को जेईई मेन परीक्षा पास करने का इतना विश्वास था कि उन्होंने एग्जाम देने के बाद एक बार भी आंसर की तक चेक नहीं की। जेईई टॉपर ने अपने कॉन्फिडेंस के बारे में कहा था, 'मेरे पापा ने मुझसे एग्जाम के बाद एक बार आंसर की देखने के लिए कहा, लेकिन मैंने कहा, 'पापा, चिंता मत करो, मैं एडवांस्ड के लिए क्वालिफाई कर लूंगा।'
उन्होंने बताया, 'काफी पढ़े लिखे परिवार से होने के बावजूद मुझे कभी भी बहुत कुछ हासिल करने का दबाव महसूस नहीं हुआ। मेरे माता-पिता हमेशा मेरे साथ रहे हैं और मेरी पूरी यात्रा में मेरा मार्गदर्शन किया है।'
जेईई एडवांस क्रैक करने की स्ट्रेटिज
- पढ़ाई के लिए कभी भी सख्ती से शेड्यूल का पालन नहीं किया क्योंकि इससे अनावश्यक दबाव पैदा होता था।
- केवल तभी पढ़ा जब मन किया। जितना भी समय पढ़ा, अच्छे से मन लगाकर पढ़ा।
- अपने डाउट्स को दूर करने के बाद ही विषय में आगे पढ़ा।
- अपनी तैयारी का स्तर जानने के लिए मॉक टेस्ट दिए।
किस आईआईटी का कौन सा कोर्स
जेईई टॉपर राजित ने बताया कि वह आईआईटी बॉम्बे से बीटेक इन कंप्यूटर साइंस करना चाहते हैं। आपको बता दें कि आईआईटी बॉम्बे का बीटेक कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग डिग्री कोर्स हर साल जेईई एडवांस्ड के टॉपरों की टॉप चॉइस रहता है। देश-विदेश की प्रतिष्ठित आईटी कंपनियों की ओर से मिलने वाले मोटे सैलरी पैकेज इसकी बड़ी वजह रही है।
राजित एशियन फिजिक्स ओलंपियाड 2024 में देश का नाम भी रोशन कर चुके हैं, जहां उन्होंने ब्रांज मेडल हासिल किया था।
JEE Advanced Topper:SAKSHAM JINDAL - सक्षम जिंदल ने हासिल की AIR रैंक-2
JEE Advanced Topper:SAKSHAM JINDAL - सक्षम जिंदल ने हासिल की AIR रैंक-2
JEE Advanced Topper: हरियाणा के हिसार निवासी सक्षम जिंदल ने जेईई एडवांस्ड 2025 में ऑल इंडिया रैंक 2 प्राप्त कर अपनी लगन और कोटा के प्रतियोगी माहौल की ताकत का परिचय दिया है। सक्षम ने 10वीं कक्षा में 98 प्रतिशत और 12वीं में 96.4 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं।
कोटा के प्रेरणादायक माहौल और सशक्त स्टडी मटीरियल, वीकली टेस्ट और नियमित डाउट सॉल्विंग को अपनी सफलता का अहम हिस्सा बताया। सक्षम ने कहा, "यहां का हेल्दी कम्पीटीशन और मेंटर्स का निरंतर सपोर्ट मेरे लिए बहुत मददगार रहा।"
सक्षम ने बताया कि उनके माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं और उन्होंने हमेशा उन्हें पूरी स्वतंत्रता दी। उन्हें अपनी रुचि और मन की बात के अनुसार करियर चुनने का पूरा मौका मिला। इस वजह से सक्षम बिना किसी दबाव के पढ़ सके और बड़ी सफलता हासिल कर पाए। शुरू से ही मैथ्स उनका पसंदीदा विषय रहा है, इसलिए उन्होंने इसी क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला किया। उनका सपना आईआईटी मुंबई में प्रवेश पाने का था, जो अब पूरा होने जा रहा है।
सक्षम ने 10वीं कक्षा में 98 प्रतिशत और 12वीं में 96.4 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। वे क्रिकेट में अंडर-14 डिस्ट्रिक्ट स्तर तक खेल चुके हैं। कोविड के दौरान क्रिकेट प्रैक्टिस बंद होने से उनका फोकस पूरी तरह पढ़ाई पर केंद्रित हो गया।
जेईई मेन में भी हासिल की ऑल इंडिया रैंक 10
सक्षम जिंदल के पिता डॉ. उमेश जिंदल पैथोलॉजिस्ट और माता डॉ. अनीता जिंदल फिजियोथैरेपिस्ट हैं। जिंदल ने जेईई एडवांस्ड 2025 में ऑल इंडिया रैंक 2 हासिल की। इसके पहले उन्होंने जेईई मेन में भी ऑल इंडिया रैंक 10 हासिल की थी। सक्षम पिछले दो साल से एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट, कोटा में पढ़ाई कर रहे हैं।
कैसे की तैयारी?
सक्षम ने एलन कैरियर इंस्टीट्यूट से परीक्षा की तैयारी की। साप्ताहिक टेस्ट से उनकी परफॉर्मेंस लगातार बेहतर होती गई और नियमित डाउट सॉल्विंग से टॉपिक्स पर पकड़ मजबूत होती चली गई। जब कभी पढ़ाई के दौरान परफॉर्मेंस डगमगाने लगती, तो मेंटर्स और शिक्षकों का निरंतर प्रोत्साहन उन्हें पॉजिटिव बनाए रखने में मदद करता था। इस पूरी तैयारी ने सक्षम को आत्मविश्वास और सफलता की ओर अग्रसर किया।
सक्षम जिंदल बताते हैं कि उन्होंने हर चैप्टर को गहराई से समझने और सवालों की बार-बार प्रैक्टिस करने पर खास जोर दिया। उनका मानना है कि जेईई मेन में केवल एनसीईआरटी सिलेबस पर ध्यान देना ही पर्याप्त होता है और अतिरिक्त किसी दूसरी किताब या मटीरियल की जरूरत नहीं पड़ती।
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