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Friday, July 31, 2020

VISHNU PRABHAKAR - विष्णु प्रभाकर, प्रख्यात लेखक

VISHNU PRABHAKAR - विष्णु प्रभाकर, प्रख्यात लेखक 

VISHNU PRABHAKAR 
विष्णु प्रभाकर (Vishnu Prabhakar) का जन्म 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश स्थित मुजफ्फरपुर के एक गाँव में हुआ था | इनके पिता दुर्गा प्रसाद एक धार्मिक व्यक्ति थे | विष्णु प्रभाकर की माता एक शिक्षित महिला थी जिन्होंने अपने दौर में हो रही कुरीति पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया था | | विष्णू प्रभाकर (Vishnu Prabhakar) की शुरुवाती शिक्षा मीरापुर में हुयी थी | वर्ष 1929 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण की |

मैट्रिक पुरी होने के बाद नौकरी करते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने कई परीक्षाये पास की जिनमे प्रमुख भूषण , , प्रभाकर , प्राज्ञ और विशारद थी | उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी | यही कारण था कि उन्हें काफी कठिनाइयो और समस्याओं का सामना करना पड़ा था | अपनी घर की परेशानियों और जिम्मेदारियों के बोझ से उन्होंने स्वयं को मजबूत बना लिया |

विष्णु प्रभाकर (Vishnu Prabhakar) ने चतुर्थ श्रेणी की एक सरकारी नौकरी प्राप्त की | इस नौकरी के जरिये उन्हें मात्र 18 रूपये प्रतिमाह का वेतन प्राप्त होता था जिससे ही वो अपना गुजर बसर करते थे | भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के नायक महात्मा गांधी के जीवन आदर्शो से प्रेरित होने के कारण उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हो गया | वे स्वतंत्रता आन्दोलन से भी जुड़े |

वर्ष 1931 में “हिंदी मिलाप” पत्रिका में उनका पहला लेख छपा था | शरतचन्द्र की जीवनी पर आधारित उनकी रचना “आवारा मसीहा” के लिए उनको कई सम्मान मिले | वे शरतचन्द्र को जानने के लिए लगभग उन सभी जगहों पर गये जहां से शरतचंद्र का जुड़ाव था | उन्होंने बांगला भाषा भी सीखी और जब यह जीवनी छपी तो साहित्य में विष्णु प्रभाकर (Vishnu Prabhakar) की धूम मच गयी |

अनेक साहित्य लिखने के बावजूद भी लोग उन्हें “आवारा मसीहा” के लिए ही सबसे ज्यादा पहचानते थे| विष्णु प्रभाकर रेडियो , दूरदर्शन , पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबधी मीडिया के विविध क्षेत्रो में पर्याप्त लोकप्रिय रहे | विष्णु प्रभाकर (Vishnu Prabhakar)द्वारा लिखी गयी रचना “पहाड़ चढ़े गजनन्दलाल ” और “दक्कन गये गजनन्दलाल” एकदम निराली है | इन्हें पढ़ते हुए आप हँसते हँसते लोटपोट हो जाओगे | इससे साबित होता है कि विष्णु प्रभाकर हर विधा के लेखक थे | विष्णु प्रभाकर का देहांत 11 अप्रैल 2009 को 96 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में हुआ था | 

साभार:Biographyhindi.com/vishnu-prabhakar-biography-in-hindi

Balwantrai Mehta - बलवंत राय मेहता

Balwantrai Mehta - बलवंत राय मेहता 


Balwantrai Mehta
BALWANT RAI MEHTA 


प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री बलवंत राय मेहता (Balwantrai Mehta) का जन्म 19 फरवरी 1889 ईस्वी को सौराष्ट्र की भावनगर रियासत में हुआ था | उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की | इसी समय गांधीजी ने विद्याथियो से सरकारी शिक्षा संस्थानों की अपील की थी | इससे प्रभावित मेहता ने यूनिवर्सिटी से डिग्री नही ली और एक वर्ष बाद गुजरात विद्यापीठ के स्नातक बने | गांधीजी के सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर मेहता ने भावनगर रियासत में भी प्रतिनिधि शासन की स्थापना के लिए लोगो को संघठित करना आरम्भ किया |

हरिजन उद्दार की गतिविधियाँ बधाई , उनके लिए “ठक्कर बापा हरिजन आश्रम” बनाया | महिलाओं के लिए महिला विद्यापीठ की स्थापना की | भावनगर प्रजामंडल की स्थापना में भी वे अग्रणी थे | 1928 से 1947 तक उन्होंने अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा मंडल के रूप में महामंत्री के रूप में काम किया | बलवंत राय मेहता (Balwantrai Mehta) कांग्रेस के आंदोलनों में भी भाग लेते रहे | 1923 के नागपुर झंडा सत्याग्रह में वे जेल गये | 1930 में गांधीजी ने उन्हें ढोलेरा के नमक सत्याग्रह नेता नियुक्त किया |

1940 और 1942 के आंदोलनों में भी वे जेलों में बंद रहे | स्वंतंत्रता के बाद 1948 में वे भावनगर के प्रधानमंत्री बने | वे भारत की संविधान सभा के भी सदस्य थे | 1952 में लोकसभा के सदस्य चुने गये | संघठित गुजरात राज्य बन जाने पर मेहता को 1963 में वहा का मुख्यमंत्री बनाया गया | 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में 19 सितम्बर 1965 को बलवंत राय मेहता (Balwantrai Mehta) के हवाई जहाज पर शत्रुओ ने गोली चला दी | इसमें उनकी और उनकी पत्नी सरोज बेन की मृत्यु हो गयी | 
साभार:biographyhindi.com/balwantrai-mehta-biography-in-hindi

DR. RAM MANOHAR LOHIYA - राममनोहर लोहिया

DR. RAM MANOHAR LOHIYA - राममनोहर लोहिया

DR. RAM MANOHAR LOHIYA 
समाजवादी आन्दोलन के नेता और स्वतंत्रता सेनानी डा.राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर नामक स्थान में एक वैश्य परिवार में हुआ था | उनके पिता हीरालाल लोहिया गांधीजी के अनुयायी थे | इसका प्रभाव राममनोहर लोहिया पर भी पड़ा | वाराणासी और कोलकाता में शिक्षा पुरी करने एक बाद वे 1929 में उच्च शिक्षा के लिए यूरोप गये | 1932 में उन्होंने बर्लिन के हुम्बोल्ड विश्वविद्यालय से राजनीति दर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की |

विदेशो में डा.लोहिया (Ram Manohar Lohia) को मार्क्सवादी दर्शन के अध्ययन का अवसर मिला परन्तु उनकी प्रवृति “साम्यवादी” विचारों की ओर नही हुयी और वे “समाजवादी” बनकर भारत लौटे | 1933 में जिस समय डा.लोहिया स्वदेश लौटे ,देश में गाधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा हुआ था | डा.लोहिया पुरी शक्ति के साथ उसमे कूद पड़े | वे कांग्रेस में समाजवादी विचारों का प्रतिनिधत्व करने वालो में थे | 1934 में “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी” की स्थापना के प्रथम अधिवेशन में उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव , जयप्रकाश नारायण , अशोक मेहता आदि के साथ भाग लिया |

पंडित जवाहरलाल नेहरु जब कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो उन्होंने डा.लोहिया (Ram Manohar Lohia) को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विदेश विभाग का सचिव नियुक्त किया था | द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर डा.लोहिया गिरफ्तार कर लिए गये और दिसम्बर 1941 में जेल से बाहर आये | 1942 में “भारत छोड़ो” प्रस्ताव की स्वीकृति के समय वे मुम्बई में थे वे भूमिगत हो गये और आन्दोलन के संचालन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा | एक बार बीच में गिरफ्तार हुए तो “आजाद दस्ते” ने जयप्रकाश नारायण के साथ इन्हें भी छुड़ा लिया था |

फिर 1943 में लाहौर जेल में बंद हुए | जेल से छुटने पर डा.लोहिया (Ram Manohar Lohia) ने 1946 में “गोवा मुक्ति” आन्दोलन का नेतृत्व किया | 1948 में अपने समाजवादी साथियों सहित डा.लोहिया भी कांग्रेस से अलग हो गये | 1952 में उन्होंने समाजवादी सम्मेलन की अध्यक्षता की | 1963 में वे लोकसभा के लिए चुने गये | डा.लोहिया के क्रांतिकारी तेवर सदा बने रहे | उन्होंने अंग्रेजो की मुर्तिया हटाने का आन्दोलन चलाया , अंग्रेजी हटाओ सम्मलेन आयोजित किया , चित्रकूट में रामायण मेला आरम्भ कराया |

“मुस्लिम पर्सनल लॉ” का विरोध किया | स्वतंत्रता के बाद भी वे विभिन्न कारणों से सात बार गिरफ्तार हुए | लोकसभा में उन्होंने नेहरु जी की नीतियों का विरोध किया | डा.लोहिया (Ram Manohar Lohia) ने अनेक पुस्तको की रचना की | इनमे “फ्रेग्मेंट्स ऑफ़ द वर्ल्ड माइंड” “मार्क्स गांधी एंड सोशलिज्म” “विल टू पॉवर” “चायना एंड नार्थन फ्रंटियर” “इतिहास चक्र” और “भाषा” आदि उल्लेखनीय है | पौरुष ग्रन्थि के ऑपरेशन के बाद 12 अक्टूबर 1967 को दिल्ली के एक अस्पताल में डा.लोहिया का देहांत हो गया |

साभार: 
biographyhindi.com/ram-manohar-lohia-biography-in-hindi

अग्रवाल समाज के मूल पुरुष और आग्रेय गणराज्य के संस्थापक - महाराज अग्रसेन

"अग्रवाल समाज के मूल पुरुष और आग्रेय गणराज्य के संस्थापक - महाराज अग्रसेन"

युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक और ...
MAHARAJA AGRASEN 
नाम - कुंवर अग्रसेन (महाराज अग्रसेन जी)


जन्म - शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, अश्विन मास, 5144 वर्ष पूर्व..

जन्म भूमि - प्रतापगढ़
पिता - महाराज श्री वल्लभसेन
माता - महारानी भगवती देवी
पत्नी - महारानी माधवी
गद्दी - अग्रोहा, हरयाणा
कुलदेवी- हरिप्रिया महालक्ष्मी
कुलदेवता - भगवान विश्वनाथ
वंश - सुर्यवंश
राजवंश - अग्रवंश
कुलगुरु - महर्षि गर्ग
धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
युद्ध - महाभारत युद्ध
पूर्वाधिकारी - महाराज वल्लभसेन
उत्तराधिकारी - महाराज विभुसेन
ध्वज - सूर्य पताका
राज चिह्न - एक स्वर्ण मुद्रा और एक ईंट

महाराज अग्रसेन के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-

1- महाराज अग्रसेन का जन्म काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से और उनके अंश से हुआ था इसलिए उन्हें शिव रूपाय भी कहते हैं।

2- महाराज अग्रसेन ने मात्र 16 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ महाभारत युद्ध में भाग लिया था। इन्हें श्री कृष्ण का सानिध्य और आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था।

3- महाराज अग्रसेन का विवाह त्रिपुरा के शक्तिशाली नागवंश की राजकुमारी महारानी माधवी से हुआ था। महाराज अग्रसेन के स्वसुर नागराज महीधर ने सूर्यवंशियों और नागवंशियों के मेल की यादगार स्वरूप और महाराज अग्रसेन के सम्मान में अग्रतल बसाया था। जिसे आज अगरतला कहते हैं जो त्रिपुरा की राजधानी है।

4- महाराज अग्रसेन के राजकुमारी माधवी से विवाह से देवराज इंद्र को ईर्ष्या हुई और उन्होंने अग्रोहा गणराज्य में वर्षा बंद कर दी। तदोपरांत कुलदेवी महालक्ष्मी के आशीर्वाद से महाराज अग्रसेन ने इंद्र का मानमर्दन किया था।

5- महाराज अग्रसेन वंशकर राजा थे, अर्थात जिसके नाम से उसके कुल को जाना जाए। इससे पूर्व इक्ष्वाकु वंश में रघु वंशकर राजा हुए हैं जिनके नाम पर इस कुल का नाम रघुकल भी है।

6- महाराज अग्रसेन कुलदेवी महालक्ष्मी के अनन्य भक्त थे उन्होंने अपने जीवनकाल में तीन बार महालक्ष्मी को प्रसन्न करके वर हासिल किया था। उन्होंने राज्य के मध्य में एक भव्य रत्नजड़ित श्रीपीठ का निर्माण करवाया था।

7- महाराज अग्रसेन ने समाजवाद का प्रथम दर्शन दिया था एक मुद्रा और एक ईंट के रूप में इसलोये उन्हें समाजवाद का प्रथम पुरुष भी कहते हैं।

8- महाराज अग्रसेन का राज्य ध्वज पीत रंग का था जिसपर सूर्यचिन्न अंकित था -

"शिखरे राजभवने महोचछायध्वजोत्कटे।

अलक्ष्यत ध्वजं पीतवर्णं भानुसुलक्षणं ।।"

- अग्रभागवत- 10:31

9- महाराज अग्रसेन ने आग्रेय गणराज्य की नींव रखी थी।पणिनि ने आग्रेय गणराज्य को आयुद्धजीवी संघ लिखा है जो अपने अप्रतिम शौर्य के लिए जाना जाता था। जिसने सदियों तक देश की सीमा की शकों और हूणों से रक्षा की थी।

10- भारतीय राज्यमार्ग NH-9 का आधिकारिक नाम महाराज अग्रसेन के नाम पर है जो दिल्ली से अग्रोहा होते हुए पाकिस्तान बॉर्डर तक जाता है।

11- सन् 1976 में भारत सरकार ने महाराज अग्रसेन के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। सिर्फ भारत सरकार ही नहीं बल्कि मालदीव देश की सरकार ने भी 2016 में महाराज अग्रसेन के नाम पर डाक टिकट जारी किया था।

जनक पिता बनकर इन्होने नव समाज निर्माण किया इनके ही विचारों के कारण आज अग्रवाल जाति ने उद्धार किया!!


साभार : राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा

MAHARAJA SHREE AGRASEN JI - जय श्री अग्रसेन

MAHARAJA SHREE AGRASEN JI - जय श्री अग्रसेन



जय श्री अग्रसेन

,,,,,,,,,,,अग्रकुल,,,,,,,,


अग्रवाल शब्द की उत्पति के बारे में भिन्न-भिन्न मतकारों के भिन्न-भिन्न मत हैं | अग्रोहा के निवासी होने के कारण और बाद में अलग अलग स्थानों पर जाने पर इनको अग्रोहा वाले के नाम से संबोधित किया गया जो शब्द बाद में चलकर अग्रवाल हो गया | दूसरे मन्तव्य के अनुसार अग्रसेन - अग्रोहा अग्रवाल सभी में अग्र शब्द की प्रधानता है जिसका अर्थ होता है अग्रणी | इस अग्र शब्द से सदा आगे रहने वाली जाति के लोग अग्रवाल कहलाए, जिसका अर्थ होता है सदैव आगे रहने वाले | वही कुछ लोग अग्रोहारी (अग्रोहा के निवासी) कहलाए जो आगे चलकर अग्रहरि हो गए,

अग्रवाल , अग्रहरि समुदाय जन्म से वैश्य नही है | यह अपने गुण कर्म से कारण वैश्य कहलाते है |

प्रारम्भिक काल में अग्रवालों की मुख्य आजीविका कृषि, पशुपालन और व्यापार होता था | परन्तु कालान्तर में वाणिज्य की तरफ ज़्यादा झुकाव होने के कारण इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय व्यापार हो गया | आज भी कुछ अग्रवाल खेतीहर हैं | अग्रवाल एवं अग्रहरि अग्रकुल वंश के उपनाम मुगलो आतंक से त्रसित अग्रसेन महाराज के वंशज धीरे-धीर देश के विभिन्न भागों तथा नजदीक के अन्य देशों भी बस गए। ये सभी ने विभिन्न स्थानों के आधार पर अपने उपनाम रख लिए। वर्मा: बर्मा मे निवास करने वालों ने उपनाम "वर्मा" रख लिया। आज भी बिहार के छपरा जिला मे सारण के पास स्थित दीघवारा बस्ती के अग्रहरि बंधु अपने नाम के साथ वर्मा लगाते है। सिंह: कुछ अग्रहरि परिवार पंजाब में बस गए और उन्होंने सिख धर्म अपना लिया, वे "अग्रहरि सिख" कहलाए, ठीक उसी प्रकार जैन धर्म अपनाने वाले अग्रबंधू "अग्रवाल जैन" हो गए। ऐसे अग्रहरियों ने अपने नाम के साथ 'सिंह' उपनाम रखना प्रारंभ कर दिया, जैस दीपक सिंह अग्रहरि, शमशेर सिंह अग्रहरि इत्यादि। ऐसे सिंह नामधारी अग्रहरि आज जमशेदपुर, सासाराम, औरंगाबाद, पटना, कलकत्ता, बनारस, मिर्जापुर, बलिया, प्रतापगढ़ आदि मे निवास कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल व पंजाब मे सेसे ही अग्रहरि सिखो द्वारा गुरूद्वारा भी संचालित किए जाते हैं। महाजन: चूँकि अग्रवाल एवं अग्रहरि जाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय दुकान या व्यापार ही था, जो कि छोटे-छोटे कस्बों या गाँवों मे उनके द्वारा संचालित की जाती थी। गाँवो के लोगों में इन दुकानदारों के प्रति काफी आदर एवं इज्जत थी तथा वे उन्हें 'महाजन' कह कर संबोधित करते थे। धीरे-धीरे इन दुकानदारों ने अपना उपनाम 'महाजन' रखना प्रारंभ कर दिया। साह एवं शाह: शाह का अर्थ बड़ा, महान साहूकार, बादशाह होता है। देश के अने भागों मे वैश्यों के लिए यह प्रबोधन प्रयुक्त होता है। शायद इसी कारण साहूकारी का काम करने वाले अग्र बंधूओं ने अपने नाम के साथ शाह अथवा साह लगाना प्रारंभ किया हो। सेठ या श्रेष्ठा: अग्रवाल तथा अग्रहरि वैश्य लोग अपने नाम के आगे या पीछे 'सेठ' उपनाम लगाते है, जैसे सेठ तीरथ प्रसाद अग्रहरि, सेठ राम अवतार गुप्त। सेठ उपमा समाज के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को प्राप्त होती थी। बनिया : जो सभी कार्यों को बनाने की क्षमता रखता हो | जो सब का बन सकता और सब को अपना बना सकता हो | वणिक : वणज व्यापार करने के कारण | वैश्य : प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश के कारण, गतिशील होने के कारण | अग्रवाल : जो सर्वदा सब कार्यों में अग्रणी रहे | गुप्त या गुप्ता: अग्रवालो एवं अग्रहरियो मे अपने नाम के साथ गुप्त या गुप्ता लिखने वालों की संख्या सर्वाधिक है। पासकर संहिता के अनुसार 'गुप्त' उपाधि का प्रयोग वैश्य वर्ण के लिए होता है।

"गुप्तोतिवैश्यस्य" (17.4) यह उपाधि का प्रयोग वैश्यों की प्रायः घटक नाम के साथ लगाते है। विष्णु पुराण के श्लोक (3-10-9) के अनुसार-

शर्मादेवस्य, विप्रस्य, वर्मात्राताचभूभज्ञर्नः। भूमिगुप्तश्च वैश्यस्यवास शुद्रस्यकारपेतं।

अर्थात् ब्राह्मण के नाम के अंत में 'शर्मा', क्षत्रिय के अंत मे 'वर्मा', वैश्यों के अंत मे 'गुप्त' और शुद्रों के नाम के अंत मे 'दास' लगे। इसीकारण अग्र बंधुओ ने भी अपने नाम के साथ वैश्य होने के कारण 'गुप्त' लिखते थे जो अंग्रेजी मे 'गुप्ता' हो गया। अग्रसेन महाराज के वंशज धर्म परायण, शाकाहारी और अपने ईष्ट देव भगवान में इनका अटूट विश्वास होता है | पूजा पाठ इनके दैनिक जीवन का अंग है | कुलदेवी महालक्ष्मी के उपासक और दान व कर्तव्य परायण होते हैं | कर्म में इनका विश्वास होता है | अग्रावालों में उन्‍नत संतति हो इस सिद्धांत को ध्यान में रख कर आदि काल से ही सह गोत्रीय विवाह निषेध है |

परिवारों के उपनाम उपरोक्त के अलावा अग्रवाल और अग्रहरि वैश्य समुदाय के लोग अपने नाम के साथ अपने परिवारों के उपनमो का भी प्रयोग करते है जैसे जालान, पौद्दार, सिंघानिया, पित्ती, सुरेका, बुबना, सुल्तानिया, मोदी, बजाज, सेक्सरिया, हरलालका, खेतान आदि | इलाहाबाद एवं प्रतापगढ़ के कुछ अग्रहरि बन्धुओ द्वारा भी मोदी उपनाम प्रयोग किया जाता है | अग्रवंश के प्रत्येक सदस्य में महाराजा अग्रसेन का समाजवाद रग - रग में प्रवाहित हो रहा है | इसी कारण से हर अग्रवंशज उदार, निष्ठावान, कर्मठ व्यक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहा है | " सादा जीवन उच्च विचार " वाली कहावत हमेशा उस पर चरितार्थ रही है | जो भी उनके पास बचता रहा है उसे उदारतापूर्वक परहित के लिए अर्पित करते रहते है

साभार: अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि ,, इंदौर, अग्रवंशी एकता परिषद्, भारत

Zoop के संस्थापक नंदित और गौरांग बिंदल

जयपुर के इन 2 भाइयों ने 6 महीने से भी कम समय में 45 लाख रुपए लगाकर खड़ा किया फूडटेक बिजनेस

हम एक ऐप से चलने वाली दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ टेक्नोलॉजी हर दिन एक नए उद्योग में प्रवेश कर रही है और इसे सरल, आसान और अधिक सुविधाजनक बना रही है। हालांकि इसके बावजूद भी फूडटेक स्पेस में ऐसी बहुत सारी चीजें आ रही हैं या हो रही हैं जो हैरान करने वाली हैं।

These 2 brothers from Jaipur built a foodtech business with Rs 45 ...
NANDIT & GOURANG BINDAL 
जहां सबसे पहले, बहुत बड़ी संख्या में फूड डिलीवरी सर्विसेस थीं, तो अब इस ब्लॉक के चारों ओर एक नया ऐप है जो फुल-सर्विस और सेल्फ-सर्विस रेस्तरां के लिए एंटायर ऑर्डरिंग और चेकआउट प्रक्रिया को डिजिटल रूप देकर आपके भोजन के तरीके को बदल रहा है।

जयपुर के दो भाइयों नंदित और गौरांग बिंदल के दिमाग की उपज, ज़ूप (Zoop) का उद्देश्य डिनर और रेस्तरां मैनेजर्स दोनों के लिए भोजन के अनुभव को आसान बनाना है। यह ग्राहकों को अपने स्मार्टफोन से सीधे ऑर्डर देने की अनुमति देता है, इसके लिए ग्राहक को बस अपने रेस्तरां में टेबल पर रखे एक क्यूआर कोड को स्कैन करना होता है जिसके बाद ऐप पर मेनू ओपन हो जाता है।

दोनों भाई कहते हैं,

“यह एक रेस्तरां में भोजन करते समय ग्राहक के सामने आने वाले उस इंतजार के समय और परेशानियों को समाप्त करता है। जूप हर ऑर्डर के टर्नअराउंड टाइम को बहुत कम कर देता है, रेस्तरां में लागत बचत और अतिरिक्त राजस्व बढ़ता है।”

ऐसे हुआ इस बिलियन-डॉलर आइडिया का जन्म

2017 में ऐप के आइडिया की कल्पना करने वाले गौरांग और नंदित कहते हैं,

"दरअसल फूड कोर्ट और QSRs में लगातार निराशा के अनुभवों से जूप का आइडिया पैदा हुआ था।"

हालांकि, इस प्लेटफॉर्म को जून 2019 में निष्पादित किया गया था। टेक्नोलॉजी और एक स्केलेबल एंव टिकाऊ व्यवसाय के निर्माण के बारे में पैसनेट दोनों भाइयों ने व्यक्तिगत रूप से फूड कोर्ट में लंबी कतारों और लंबे मेनू को ब्राउज करने की परेशानी और ऑर्डर के बाद घंटों तक इंतजार करने का संघर्ष किया है।

भले ही देखने में ये मामूली समस्याएं लग सकती हैं, लेकिन यह उन सार्वभौमिक समस्याओं में से एक हैं, जिन्हें अगर एड्रेस किया जाए, तो वे बहुमूल्य समय और धन बचा सकते हैं।

दोनों भाई कहते हैं,

"न केवल ग्राहकों, बल्कि रेस्टोरेंट चलाने वालों को भी उचित रूप से कुशल मैनपॉवर खोजने और उन्हें बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं।"

आखिरकार, रेस्तरां उद्योग में कर्मचारियां की नौकरी छोड़ने की दर काफी ज्यादा होती है, जिसके चलते, आमतौर पर प्रशिक्षण पर खर्च में वृद्धि और ग्राहक अनुभव से समझौता करना पड़ता है।

जैसा कि संस्थापक बताते हैं,

"विभिन्न निरर्थक प्रक्रियाएं जैसे मेनू को कई बार देखना, ऑर्डर लेने के लिए कई बार डेस्क तक जाना, या पेमेंट कलेक्ट करने में काफी समय का खर्च होना जिससे पीक आवर्स के दौरान बिक्री खोना, जैसी कई समस्याएं हैं जिनका ग्राहकों और रेस्टोरेंट चलाने वालों दोनों को सामना करना पड़ता है।"

जूप के एंड-टू-एंड सलूशन के साथ, इन समस्याओं को आसानी से खत्म किया जा सकता है क्योंकि ग्राहक एक बार बैठे और अपने स्मार्टफोन से सभी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।

एक पेमेंट या ऑर्डर करने से आगे का ऐप

फूडटेक या यहां तक कि रेस्तरां-तकनीक के स्पेस का डिजिटलीकरण पूरी तरह से एक नोवल कॉन्सेप्ट नहीं है। बाजार में कई और प्वेयर्स भी हैं जो ऑर्डर, फीडबैक, पेमेंट्स या CRM के आसपास के मुद्दों को हल करते हैं। लेकिन जूप यहां अकेले इन सभी चिंताओं को संबोधित करते हुए और संपूर्ण सेवाओं को प्रदान करते हुए मैदान में डटा है। जूप की कोर यूएसपी फूड कोर्ट और क्यूएसआर में कस्टमर एफर्ट्स को 80 प्रतिशत तक कम करना है, वहीं इसके साथ ही पार्टनर आउटलेट्स के सामने आने वाली ऑपरेशनल चुनौतियों के साथ, टीम ग्राहकों के लिए मूल्यवान डेटा अंतर्दृष्टि पैदा करने की दिशा में भी काम कर रही है।

वे कहते हैं,

"यह कस्टमर डाइनिंग हिस्ट्री, प्रेफरेंस और रेकमंडेशन्स को भी दिखाता है, जो आउटलेट्स को ग्राहकों को व्यक्तिगत सेवाओं की पेशकश करने में मदद करता है।"

इसके अलावा, जूप एक लोयल्टी प्रोग्राम भी डेवलप कर रहा है जिसे ग्राहकों के उपभोग व्यवहार से जोड़ा जाएगा।

वे बताते हैं कि यह डीप डिस्काउंटिंग की समस्या को हल करेगा। मेकिंग में AI- इनेबल्ड डील और एल्गोरिदम आधारित ऑटोमेटेड रिवॉर्ड मैनेजमेंट सिस्टम भी है।

संस्थापकों का कहना है,

“हमने सबसे पहले डाइनिंग इंडस्ट्री के साथ शुरुआत की है, लेकिन अन्य क्षेत्रों जैसे होटल के कमरे, थिएटर और रिटेल चेन को पूरा करने की योजना है।"

जयपुर से पूरे भारत में

वे कहते हैं,

“हमने जयपुर में शुरू किया क्योंकि शहर का रेस्तरां बाजार आज भारत में सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है। और जैसा कि, हम इस शहर के निवासी हैं, इसलिए हमारे लिए ऑपरेशन और लॉजिस्टिक आसान था। इसने हमें जल्दी से पायलट साइटों पर काम करने, उपयोग का विश्लेषण करने और उपयोग बढ़ाने के लिए उत्पादों में सुधार को रोल आउट करने में मदद की।”

45 लाख रुपये के साथ बूटस्ट्रैप, इन-रेस्टोरेंट ऑर्डर और चेकआउट प्लेटफॉर्म की स्थापना के लगभग चार महीने हो गए हैं। इस छोटी अवधि में, 11 तकनीकी और गैर-तकनीकी कर्मचारियों की एक टीम शामिल है, और ये पहले से ही 23 ब्रांडों पर सवार है। इनमें से कुछ नामों में टी ट्रेडिशन कैफे, ब्राउन शुगर कैफे, द मॉडर्न चौपाटी (फूडकोर्ट) और ट्रोव कैफे शामिल हैं।

वे कहते हैं,

“फूड कोर्ट के लिए, यह एक नो-ब्रेनर था क्योंकि आउटलेट के मालिकों ने तुरंत ऐसी प्रणाली की आवश्यकता को समझा। कैफे और लाउंज के लिए, मालिकों ने जूप के लाभों को समझा और इस कॉन्सेप्ट को ट्राई करने के लिए उत्साहित थे क्योंकि किसी ने इसी तरह की चीज को अब तक एक महत्वपूर्ण पैमाने पर निष्पादित नहीं किया था।”

जयपुर में सफल पायलट के बाद, ज़ूप भारत में टीयर I शहरों का विस्तार करना चाहता है, और एक उच्च श्रम लागत के साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी विस्तार की योजना है। अगले 18 महीनों में, प्लेटफॉर्म पर 60 करोड़ रुपये मासिक का लेन-देन करते हुए, पूरे भारत में 6,000 आउटलेट्स को जोड़ने का लक्ष्य होगा।

संस्थापक कहते हैं,

"तब तक हमारा राजस्व लगभग 4-6 करोड़ रुपये मासिक होगा।" हालांकि, इस मील के पत्थर को पार करने का मतलब होगा कि अधिक कैपिटल को हासिल करना। और, गौरांग और नंदित इसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं, क्योंकि वे "आक्रामक तरीके से फंड जुटाना चाह रहे हैं।"

अंत में, यह एक इंटीग्रेटेड ईकोसिस्टम बनाने और वर्तमान परिचालन चुनौतियों को खत्म करने के बारे में है। जैसा दोनों संस्थापक बताते है,

"जैसे-जैसे और अधिक आउटलेट जूप को अपनाते हैं, वैसे-वैसे पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रशिक्षित हो जाएगा और चुनौतियां अंततः दूर हो जाएंगी।”

साभार: yourstory.com/hindi/these-2-brothers-of-jaipur-set-up-foodtech-busines

AYUSH JAYSWAL - पेस्टो टेक के सह-संस्थापक आयुष जायसवाल

जानें कैसे एक कॉलेज ड्रॉपआउट के स्टार्टअप में शामिल हुए 3 बिलियन डॉलर वाले यूनिकॉर्न स्टार्टअप के सह-संस्थापक?

आयुष जायसवाल (24) उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित एक छोटे से शहर वाराणसी में बड़े हुए। आयुष बचपन में पतंग और कंप्यूटर गेम के शौकीन थे। वह एक शतरंज के ग्रैंडमास्टर बनने के इच्छुक थे और यहां तक कि उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व भी किया।

How a college dropout got a $3B-unicorn co-founder to join his startup


लेकिन 2007 में Apple द्वारा पहले iPhone के लॉन्च ने उनके जीवन की योजना को बदल दिया। जब स्टीव जॉब्स ने प्रतिष्ठित डिवाइस का अनावरण किया, उसी समय 12 साल की उम्र में उन्होने भविष्य में उद्यमी बनने का निर्णय कर लिया। इसके बाद उन्होने टेक पर गहन पठन और अनुसंधान किया।

वह याद करते हैं, “आपकी जेब में सब कुछ ठीक था! उस उपकरण का उपयोग करने की संभावनाओं के बारे में सोचना आकर्षक था।"

“आठवीं के बाद मैंने कक्षाएं छोड़नी शुरू कर दीं और वेबसाइट बनाने और ग्राफिक्स डिजाइन करने पर काम किया। जब मैं दिल्ली में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गया, तो मैं एक उद्यमी बनना चाहता था। मैंने अपने शुरुआती कॉलेज के दिनों में कॉलेजों के लिए ईआरपी (एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) सॉफ्टवेयर बनाकर अपना पहला स्टार्टअप शुरू किया था।”

एक व्यवसायिक परिवार से आते हुए, जहाँ लगभग किसी ने कभी नौकरी नहीं की है, उद्यमिता शायद आयुष के खून में है। लेकिन क्या उन्हे पारिवारिक व्यवसाय के साथ आगे बढ़ना था? एक फर्नीचर की दुकान चलाना शुरूने के बजाय आयुष के बड़े सपने थे।

अपने हीरो एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की तरह आयुष ने भी कॉलेज छोड़ दिया। वे कहते हैं, “एक दिन मेरे शिक्षक ने मुझे बताया कि मुझे न्यूनतम 75 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज़ करानी है और साथ ही उन्होंने कहा कि आपका कैरियर सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक कक्षा में नहीं बनेगा। आपको अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके, अपने आप से कॉलेज के बाद सीखना होगा। उसके बाद मैंने कॉलेज जाने में कोई तर्क नहीं देखा और छोड़ने का फैसला किया।"

उनके "मध्यवर्गीय" माता-पिता "कॉलेज छोड़ने के विचार" के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आयुष ने उन्हें न बताने का फैसला किया, लेकिन फिर भी उन्होंने इसे छोड़ दिया।

“इस चरण के दौरान उन्हें रिश्तेदारों से मिलने वाली सलाह सिर्फ बेतुकी थी, इसलिए मैंने उन्हें नहीं बताने का फैसला किया क्योंकि इससे समस्या कम ही हो रही थी।"

आयुष ने अपने इंजीनियरिंग कोर्स में छह महीने कॉलेज जाना बंद कर दिया और लगभग एक साल बाद आधिकारिक तौर पर कॉलेज से बाहर हो गए, लेकिन अगले कुछ सालों तक उनके माता-पिता को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उन्होने कॉलेज छोड़ दिया है।

आयुष ने कहा, “इसने मुझे कुछ साल दिए जो मुझे बिना किसी पारिवारिक बाधा के चाहिए थे। मैंने अगले दो साल दिवालिया होकर बिताए। इस दौरान इतने सारे विचारों के साथ कोशिश की और कई स्टार्टअप के लिए एक फ्री में काम किया।"

असफलता से सफलता की राह

एक दर्जन विफल उत्पादों और स्टार्टअप्स के बाद में आयुष ने 2017 में एडटेक स्टार्टअप पेस्टो टेक की स्थापना की, जिसमें उनके साथ अमेरिकी तकनीकी विशेषज्ञ एंड्रयू लिनफुट थे, जो उन्हे Innov8 में मिले थे।

एंड्रयू इससे पहले न्यूयॉर्क स्थित सीरियल उद्यमी गैरी 'वी' वायनेरचुक के वायनेरपार्किंग में प्रौद्योगिकी प्रमुख थे।

पेस्टो टेक ने एक कैरियर त्वरक के रूप में कार्य करता है और एक 12-सप्ताह का बूटकैम्प चलाता है, जहाँ यह सॉफ्टवेयर इंजीनियरों (न्यूनतम दो वर्षों के अनुभव के साथ) को सॉफ्ट-स्किल्स में प्रशिक्षित किया जाता है, जो उन्हें अमेरिका के उन मेंटर्स से जोड़ता है, जिन्होंने फेसबुक, उबर और ट्विटर जैसी कंपनियों के साथ काम किया है।

प्रशिक्षण शुल्क निशुल्क है और मेंटर कुछ भी शुल्क नहीं लेते हैं। हालांकि, कार्यक्रम में शामिल होने से पहले छात्रों को एक आय शेयर समझौते पर हस्ताक्षर करना होगा। एक बार जब प्रशिक्षित सॉफ्टवेयर इंजीनियर एक अंतरराष्ट्रीय टेक कंपनी में फुल टाइम रिमोट जॉब में अपने पिछले वेतन (या कम वेतन सीमाओं के लिए न्यूनतम 2X) कमाते हैं, तो उन्हें अपनी वार्षिक आय का 17 प्रतिशत अगले प्रशिक्षण शुल्क के रूप में देना पड़ता है और यह मासिक आधार पर तीन साल चलता है।

यदि कोई छात्र अपने पिछले वेतन का 1.5 गुना नहीं कमा रहा है, तो यह प्रशिक्षण उसके लिए मुफ्त है। यह अपने काम पर रखने वाले भागीदारों से लगभग 500 डॉलर (लगभग 40,000 रुपये) की प्रबंधन लागत लेता है।

एक पेस्टो स्नातक का औसत वेतन स्टार्टअप के अनुसार लगभग 46,000 डॉलर (लगभग 35 लाख रुपये) है। पेस्टो स्नातक पहले से 5 गुना अधिक पैसा बनाते हैं। कुछ लोग 8-10 गुना भी बनाते हैं। कोहोर्ट के शीर्ष पूर्व छात्रों को 72 लाख रुपये, 60 लाख रुपये और 45 लाख रुपये के प्रस्ताव भी मिले हैं।

पिछले मई में मेट्रिक्स पार्टनर्स की अगुवाई में दिल्ली के स्टार्टअप ने सीड फंडिंग में 2 मिलियन डॉलर जुटाए हैं। श्रीजी सह-संस्थापक श्रीहरि माजली, राहुल जैमिनी और नंदन रेड्डी, Innov8 के संस्थापक रितेश मलिक, पोजिस्ट फाउंडर आशीष तुलसियान और OIC कैपिटल के जैक येंग ने भी निवेश के दौर में भाग लिया।

कुछ महीने पहले एंड्रयू ने अपना कुछ बनाने के लिए पेस्टो से आगे बढ़ने का फैसला किया। आयुष कहते हैं, “वह हमेशा पेस्टो समुदाय का एक अभिन्न हिस्सा रहेंगे। हम उनकी यात्रा को आगे बढ़ाने और उनकी अपार सफलता की कामना करते हैं।”

यूनिकॉर्न से पेस्टो में प्रवेश

घटनाओं के एक दिलचस्प मोड़ में इस महीने की शुरुआत में स्विगी के सह-संस्थापक और सीटीओ राहुल जैमिनी ने पेस्टो में शामिल होने के लिए दिग्गज फूडटेक को छोड़ दिया (जिसकी कीमत $ 3 बिलियन से अधिक थी)। इसे उन्होंने 2014 में श्रीहर्ष और नंदन के साथ मिलकर स्थापित किया था।

32 वर्षीय आईआईटी खड़गपुर स्नातक, जिन्होंने पहले मिंत्रा के साथ काम किया था, बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत अनुभव प्रदान करने के लिए जटिल प्रणाली में अपने विकास की देखरेख करते हुए स्विगी की प्रौद्योगिकी रीढ़ बनाने के लिए जिम्मेदार थे।

पेस्टो में, राहुल अभी भी अपनी नई भूमिका में बदलाव कर रहे हैं और वे युवा स्टार्टअप में सह-संस्थापक और सीओओ (मुख्य परिचालन अधिकारी) के रूप में शामिल होंगे। गौरतलब है कि राहुल स्टार्टअप में और भी फंड लगा

साभार: yourstory.com/hindi/pesto-tech-ayush-jaiswal-swiggy-startup-rahul-jaimani

Wednesday, July 29, 2020

दीपक मित्तल बने अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के राष्ट्रीय महामन्त्री

दीपक मित्तल बने अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के राष्ट्रीय महामन्त्री।


अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने दीपक मित्तल को राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया है।दीपक मित्तल अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन में अभी तक राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे दीपक मित्तल काफी समय से आईवीएफ में सक्रिय रुप से कार्य कर रहे हैं उत्तराखंड में आप सभी बंधुओं को साथ लेकर आईवीएफ का निरंतर कार्य करते हुए समाज को आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं।

आज अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन रुड़की शाखा ने दीपक मित्तल को राष्ट्रीय महामंत्री बनाए जाने पर राष्ट्रीय नेतृत्व का आभार व्यक्त किया तथा दीपक मित्तल का उनके प्रतिष्ठान पर जाकर उनका स्वागत किया तथा शुभकामनाएं दी तथा उनके उज्जवल भविष्य की कामना की तथा अपेक्षा कि अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन का कार्य और अधिक गति से प्रारंभ हो सकेगा।

इस अवसर पर स्वागत करने वालों में नितिन गोयल अध्यक्ष, रामगोपाल कंसल संरक्षक, आकाश गोयल, विभोर अग्रवाल, प्रशांत अग्रवाल, कविश मित्तल व ध्वज सिंगल उपस्थित रहे तथा सबने मिष्ठान खिलाकर माला पहनाकर दीपक मित्तल का स्वागत किया।

साभार: roorkeecity.com/deepak-mittal-became-the-national-general-secretary-of-the-international-vaishya-mahasammelan


Saturday, July 25, 2020

myGSTcafe - सतीश भाटिया, अभिषेक पोरवाल और अरिजीत गुप्ता

myGSTcafe -  सतीश भाटिया, अभिषेक पोरवाल और अरिजीत गुप्ता

[स्टार्टअप भारत] बी2बी प्लेटफॉर्म myGSTcafe व्यवसायों के लिए जीएसटी दाखिल करना बना रहा है आसान

कानपुर स्थित पिनाकल फिनसर्व एडवाइजर्स का बी2बी प्लेटफॉर्म myGSTcafe व्यवसायों, कॉरपोरेट्स, और कर पेशेवरों को जीएसटी फाइल करने में मदद करता है।


myGSTcafe के सह-संस्थापक, सतीश भाटिया, अभिषेक पोरवाल और अरिजीत गुप्ता

जुलाई 2017 से देश भर में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू होने पर कई भारतीय कंपनियां गैर-कानूनी रूप से काम करने के चलते पकड़ी गईं। बहु-स्तरीय अप्रत्यक्ष कर को मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक आधार पर व्यवसायों द्वारा अनिवार्य रूप से दायर किए जाने की आवश्यकता होती है।

तब से कई कंपनियां बड़े और छोटे व्यवसायों के लिए इस प्रक्रिया को सरल बनाने की कोशिश कर रही हैं। कानपुर स्थित पिनेकल फिनसर्व एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड उनमें से एक है।

सतीश भाटिया, अभिषेक पोरवाल और अरिजीत गुप्ता द्वारा 2009 में स्थापित इस कंपनी का उद्देश्य कराधान, वित्त और ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में अपने उत्पाद, myGSTcafe के साथ तकनीकी समाधान प्रदान करना है, जिसे 2017 में लॉन्च किया गया था।

ऑफ़लाइन एप्लिकेशन कॉर्पोरेट्स के लिए डिज़ाइन किया गया है और कर पेशेवर एंड-टू-एंड GST अनुपालन का ध्यान रखते हैं और व्यवसायों को बिना परेशानी के उनके रिटर्न को दर्ज करने में मदद करते हैं।

YourStory से बात करते हुए, अरिजीत, जो एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, कहते हैं कि myGSTcafe सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करने और ऑफ़लाइन चलाने की आवश्यकता है। सॉफ्टवेयर व्यवसायों को जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) और जीएसटी ऑडिट और सुलह का दावा करने में मदद करता है। यह निर्णय लेने वाली व्यावसायिक रिपोर्ट तैयार करने में भी मदद करता है।

कैसे myGSTcafe व्यवसायों की मदद करता है?

अरिजीत कहते हैं,

“कॉर्पोरेट्स और व्यवसायों के लिए जीएसटी के बारे में प्रमुख डरावना बिंदु उनके इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) को खोने का डर है, अगर यह जीएसटीआर -2 ए ( यह रिटर्न आवक आपूर्ति, टीडीएस और टीसीएस का विवरण प्रदान करता है) में समय पर ठीक से रिफलेक्ट नहीं करता है।”

अरिजीत के अनुसार यह न केवल कंपनी की कार्यशील पूंजी को अवरुद्ध करता है, बल्कि जीएसटी अनुपालन में कर्मचारी लागत को भी बढ़ाता है और जीएसटी रिफंड या आईटीसी को खोने की संभावना है।

वह बताते हैं कि जीएसटीआर -2 ए रिटर्न में प्रतिबिंब आईटीसी आंकड़े उत्पाद आपूर्तिकर्ता की जीएसटी अनुपालन प्रक्रिया पर निर्भर हैं। व्यवसायों को विक्रेताओं के साथ पालन करना होगा और नियमित रूप से जीएसटीआर -2 ए के साथ अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट का मिलान करना होगा, जो एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।

इसके अलावा, सॉफ्टवेयर में एक इनबिल्ट विक्रेता फॉलोअप सुविधा भी है, जो पूरो विक्रेता अनुवर्ती प्रक्रिया को स्वचालित करता है।

व्यापार मॉडल

जबकि MyGstcafe एक B2B समाधान है, Pinnacle भी MyTaxCafe नाम का B2C समाधान भी प्रदान करता है, जो लोगों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से आसानी से और केवल सात चरणों में थोड़े समय के भीतर भी आयकर रिटर्न दाखिल करने में मदद करता है।

यद्यपि अरिजीत ने उत्पन्न राजस्व और कंपनी के व्यवसाय मॉडल के बारे में विवरण देने से इनकार कर दिया है, लेकिन वे बताते हैं कि कंपनी myGSTcafe एप्लिकेशन के आधार पर स्थापित करने के लिए व्यवसायों से शुल्क लेती है।

इसके अलावा यह व्यवसायों को ई-वे बिल, ई-इनवॉइसिंग, जीएसटी रिटर्न एपीआई और वैलीडेशन इंजन के माध्यम से संसाधित करने वाले चालान की संख्या के आधार पर व्यवसायों का शुल्क भी लेता है।

"MyGSTcafe का राजस्व मॉडल ऑन-प्रिमाइसेस उपयोग-आधारित सदस्यता है और यह समाधान को छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए सस्ती बनाता है, जो उपयोग-आधारित GST APIs के साथ अपनी व्यावसायिक प्रक्रियाओं को भी रूपांतरित कर सकते हैं। व्यवहार में चार्टर्ड एकाउंटेंट के लिए अधिमान मूल्य निर्धारण है। अरिजीत ने कहा कि प्रति सब्सक्रिप्शन 7,500 रुपये और भारी मात्रा में लेनदेन के साथ कॉरपोरेट के लिए 2 लाख रुपये तक का यह चार्ज हो सकता है।

यह पूछे जाने पर कि कानपुर को कंपनी के मुख्यालय के रूप में क्यों चुना गया, अरिजीत कहते हैं कि वह हमेशा छात्रों और युवा प्रतिभाओं को शहर में अवसर देने के लिए एक मंच बनाना चाहते थे।

अरिजीत बताते हैं, “कानपुर प्रतिभा की कमी का सामना करता है क्योंकि लोग विकास के लिए टीयर वन शहरों में जाते हैं। यह अन्य भूगोल की तुलना में विकास में असमानता के प्रमुख कारणों में से एक है।”

यह उद्यम लोगों को अनुभव प्राप्त करने, प्रतिभा को बनाए रखने और बाद में अधिक अवसर बनाने में मदद करने के लिए एक मंच प्रदान करने के प्रयास का एक हिस्सा है।

myGSTcafe अपने ग्राहकों के रूप में हॉकिन्स कुकर लिमिटेड, MRF Ltd, अशोक मसाले लिमिटेड, Kanpur Edibles Ltd, Parakat Group (Kerala) और क्रिस्टल सरोवर होटल्स (आगरा) जैसे नामों को गिनते है।

प्लेटफ़ॉर्म CA, कॉर्पोरेट्स और कर पेशेवरों सहित 15,000 से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं का दावा करता है।

COVID-19 स्थिति पर अरिजीत कहते हैं कि कंपनी एक तरह से लाभ में है क्योंकि जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के लिए व्यवसायों के लिए अनिवार्य है। व्यवसाय एक हद तक प्रभावित हो सकता है क्योंकि ऑर्गनाइजेशन लॉकडाउन के कारण अपने बजट को कम करना पड़ सकता है।

नवंबर 2019 में myGSTcafe ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स नेटवर्क (GSTN) से GST सुविधा प्रदाता (GSP) लाइसेंस प्राप्त किया।

प्रतियोगिता और भविष्य

अरजीत कहते हैं, ''हम फिलहाल बूटस्ट्रैप्ड हैं और मुझे लगता है कि हम कम से कम अगले चार से पांच साल तक बने रहना चाहते हैं। उनका मानना है कि बूटस्ट्रैप्ड चरण उन्हें अधिक कुशल तरीकों से उपलब्ध संसाधनों को अनुकूलित करने में मदद करता है।

वह बताते हैं कि myGSTcafe को सरकार के अपने GST पोर्टल से बड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सरकार GST फाइलिंग को आसान बनाने और मुफ्त उपयोगिताओं के साथ सभी प्रयास कर रही है। इसके अलावा, यह अन्य निजी खिलाड़ियों जैसे क्लीयरटेक्स, मास्टर इंडिया और अन्य जीएसपी से भी प्रतिस्पर्धा करता है।

हालांकि, अरिजीत का मानना है कि जो उन्हे अलग बनाता है वो तथ्य यह है कि उनका मॉडल एक ऑफ़लाइन सॉफ्टवेयर है। वे आगे कहते हैं, "ज्यादातर समाधान जो क्लाउड-आधारित हैं, वे महंगे हैं और व्यवसाय उनके इस्तेमाल के दौरान डेटा गोपनीयता के बारे में भी संकोच कर सकते हैं।"

साभार: yourstory.com/hindi/startup-bharat-kanpur-mygstcafe-fintech-gst

JAYESH DESAI - RAJHANS GROUP - जयेश देसाई

 JAYESH DESAI - RAJHANS GROUP - जयेश देसाई

300 रुपये की नौकरी से बनाया 2,500 करोड़ का साम्राज्य, देंगें कैडबरी-नेस्ले जैसे दिग्गजों को टक्कर


कहते हैं कि अगर व्यक्ति के अंदर लगन और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। हमें इस बात का बखूबी अहसास है कि युवा शक्ति का लोहा दुनिया भर में माना जाता है लेकिन युवा शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना बहुत बड़ी चुनौती होती है और जहाँ इस शक्ति को सही दिशा में मोड़ा जा सका है वहीं नई ऊँचाइयाँ नापी जा सकी है। आज हम एक ऐसे शख्सियत की कहानी लेकर आये हैं जिनकी सफलता युवा वर्गों को यह विश्वास दिलाती है कि इस दुनिया में हर कोई सफल हो सकता है बर्शते की राह में आने वाली तमाम चुनौतियों का मुकाबला करने की हिम्मत खुद में पैदा करनी होगी।

हम बात कर रहे हैं 2,500 करोड़ के राजहंस समूह की आधारशिला रखने वाले जयेश देसाई की सफलता के बारे में। जयेश भावनगर जिले के गारिहार नामक एक ऐसे गांव से ताल्लुक रखते हैं जो मुलभुत सुविधाओं से कई दशकों तक वंचित रहा है। एक वैष्णव बानिया के घर में जन्में और पले-बढ़े जयेश के पिता एक छोटी किराने की दुकान चलाते थे। चार बेटियों के बाद चौथे बच्चे के रूप में जयेश पैदा हुए। इतने बड़े परिवार के भरण-पोषण के लिए किराने की दुकान बहुत छोटी थी।

परिवार के सामने बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए पैसे नहीं थे। जयेश को बचपन से ही प्रत्येक मोर्चे पर कमी का सामना करना पड़ा। जयेश को बचपन से ही कारों का बेहद शौक था लेकिन उन्हें पता था कि उनकी आर्थिक हालातों से तो सिर्फ गाड़ियों को देखकर ही संतोष करना पड़ेगा। दरअसल उन दिनों कई परिवार गांव से सूरत चले गए और ढ़ेर सारा पैसा बनाया। जब वे कारों में छुट्टी के दौरान गांव जाते तो जयेश उन्हें देख बहुत उत्साहित होते और उनके भीतर भी बड़ा बनने की प्रेरणा उत्पन्न होती थी।

जयेश बताते हैं कि धीरे-धीरे हमारे समुदाय के अधिकांश लोगों का पलायन भी मुंबई की ओर होना शुरू हो गया। अपनी बड़ी बहन भावना की मदद से इन्होंने भी मुंबई का रुख किया और नगदेव के नारायण ध्रुव स्ट्रीट पर 300 रुपये की मासिक वेतन पर एक बॉल-बियरिंग की दुकान में काम करने शुरू कर दिए। 30 रुपये प्रति माह की दर पर भोजन और 6-7 रूममेट्स के साथ कांदिवली में एक छोटे से कमरे में फर्श पर सोते हुए अपने जिंदगी की शुरुआत की। किसी तरह छह महीने व्यतीत करने के बाद जयेश को फिर से गांव की याद आ गई और पिता को पत्र लिखकर इन्होंने वापस घर आने की इच्छा बताई।

साल 1989 में जयेश वापस गांव जाकर पिता के छोटे दुकान को ही आगे बढ़ाने की दिशा में काम करने लगे। करीबन तीन साल तक तेल और साबुन बेचते-बेचते जयेश को इस बात का एहसास हो गया था कि किराये की दूकान चलाकर महंगी गाड़ियों की सवारी करने का उनका सपना अधूरा रह जायेगा। इसी दौरान इनके बचपन के एक मित्र छुट्टी के दौरान गांव पधारे। वो सूरत में हीरा व्यापार की दलाली करते हुए बहुत पैसे बनाये थे। उन्होंने जयेश को एक बार फिर से सूरत आने के लिए राजी कर दिया।

और एक बार फिर, जयेश बिना किसी योजना के 500 रुपये साथ लेकर सूरत की ओर रवाना हो गये। सूरत पहुँचने तक उनकी जेब में 410 रुपये ही शेष बचे। दोस्त के बताये हीरा व्यापारी के यहाँ कुछ महीनों तक काम किया लेकिन इसी दौरान इनके दिमाग में एक आइडिया सूझा। इन्होंने एक मित्र की सहायता से वचहार रोड पर एक दुकान किराए पर लेते हुए तेल बेचने का धंधा शुरू किये। पावाडी के पास धस्सा में एक तेल मिल से सीमित समय के लिए उधार तेल से दुकान शुरू हुई थी। फिर जब जयेश के पिता को इस बात का पता चला तो वे खुद तेल भेजते थे और जयेश उसे बेच वापस पैसे अपने पिता को भेज देते थे। यह धंधा अच्छा चला और पहले ही महीने 10,000 रुपये का मुनाफा हुआ।


इसी आइडिया के साथ आगे बढ़ते हुए जयेश ने पहले ही वर्ष 5 लाख का मुनाफा किया। शुरूआती सफलता से इनके हौसले को नई ताकत मिली और फिर इन्होंने अध्ययन और अनुभव की बदौलत कामरेज में एक छोटे से शेड में दो टैंकों के साथ अपने स्वयं के ब्रांड राजहंस तेल की शुरुआत की।

जयेश बताते हैं कि शुरुआत में हम फ़िल्टर्ड मूंगफली और कपास के तेल का इस्तेमाल करते थे। साल 1995 तक मुंबई में हमारे आधार मजबूत हो चुके थे और फिर हमने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र को कवर करते हुए शीर्ष पांच कंपनियों में शामिल हो गये।

तेल क्षेत्र में सफलता हासिल करने के बाद, उन्होंने अन्य क्षेत्रों में पैठ ज़माने के उद्देश्य से साल 1999 में एक कपड़ा मिल का अधिग्रहण किया। और इस तरह साल-दर-साल आगे बढ़ते हुए जयेश देश के एक नामचीन उद्योगपति के रूप में शूमार होने शुरू हो गये।

शुद्ध शाकाहारी परिवार से संबंध रखने वाले जयेश ने शिरडी, वैष्णो देवी और तिरुपति में तीन शुद्ध पांच सितारा शाकाहारी रेस्तरां भी खोली। हाल ही में इन्होंने 200 करोड़ के निवेश से कैडबरी और नेस्ले जैसी अंतराष्ट्रीय कंपनी को टक्कर देने के लिए चॉकलेट इंडस्ट्री में भी कदम रखा है। आज जयेश के राजहंस समूह का सालाना टर्नओवर 2500 करोड़ के पार है।

जो बच्चा कभी दूसरों की गाड़ी देखकर उससे प्रेरणा लेते हुए खुद के भीतर बड़ा बनने की सकारात्मक सोच पैदा की थी, आज अपनी सफलता से कई लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/300-रुपये-की-नौकरी-से-बनाया-2500-क, kenfolios

GANESH PRASAD AGRAWAL - प्रिया फ़ूड प्रोडक्ट्स

GANESH PRASAD AGRAWAL - प्रिया फ़ूड प्रोडक्ट्स 
किराने की दुकान से हुई एक मामूली शुरुआत, आज है 100 करोड़ का टर्नओवर


यह कहानी ऐसे ही एक शख्स की सफलता को लेकर है। उन्होंने अपने बचपन की शुरुआत कोलकत्ता में एक छोटे से किराने की दुकान पर अपने पिता के साथ काम करते हुए व्यतीत किया और आज भारत के सबसे बड़े क्षेत्रीय खाद्य ब्रांड के कर्ता-धर्ता हैं। ऐसा कर इस शख्स ने सिद्ध कर दिया कि जो लोग बड़ा सोचते हैं और उसे साकार करना जानते हैं उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

यह कहानी भारतीय फ़ूड ब्रांड प्रिया फ़ूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड की आधारशिला रखने वाले कारोबारी गणेश प्रसाद अग्रवाल की है। सिर्फ तीन दशकों में ही अग्रवाल कंपनी विकसित होकर पूर्वी भारत के सबसे बड़े ब्रांड के रूप में उभरा है। आज इनका सालाना टर्न-ओवर 100 करोड़ रूपयों का है। बर्तमान में कंपनी के नौ प्लांट्स हैं और 100 टन का इनका रोज़ का उत्पादन है। इनके द्वारा बनाये 36 प्रकार के बिसकिट्स और पंद्रह तरीके के स्नैक्स आइटम पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और ओडिशा के बाज़ारों में उपलब्ध है।


कोलकाता से बीस किलोमीटर दूर एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में गणेश के पिता किराने की दुकान चलाते थे। घर की माली हालात ठीक नहीं रहने पर भी उनके पिता हमेशा शिक्षा के महत्त्व पर जोर देते थे।

अग्रवाल अपने पिता के साथ दुकान में बैठते थे और कुछ प्राइवेट ट्यूशन्स करते थे, पर उनके पिता उन्हें अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने को कहते थे। अपना स्नातक नार्थ कोलकत्ता के सिटी कॉलेज से पूरा करने के बाद वे अपने पिता की दुकान में मदद करने लगे क्योंकि सात लोगो के परिवार को चलाने के लिए इसकी सख्त जरुरत थी। लगभग 14 सालों तक इन्होंने यह काम जारी रखा।

आखिर में कुछ अलग करने की उनकी सोच ने उन्हें आज इस मक़ाम पर खड़ा कर दिया। किराने की दुकान पर काम करने से उन्हें यह बात तो समझ में आ गई कि खाने के सामान में कभी भी मंदी नहीं आती। सितंबर 1986 में इन्होंने एक बिस्कुट बनाने की फैक्ट्री शुरू करने का निश्चय किया। पूंजी जुटाना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी लेकिन इन्होंने अपने हिस्से की प्रॉपर्टी को गिरवी रखकर और दोस्तों से कुछ उधार लेकर पूंजी जुटाई। अपने दोस्तों से और बैंक से उन्होंने कुल 25 लाख रुपये जुटाए और अपने बिज़नेस की आधारशिला रखी।

बिस्कुट के उद्योग में जरुरी उपकरण,ओवन और बहुत सारे काम करने वाले चाहिए होते है अग्रवाल हमेशा बड़ा सोचते थे, इसलिए इन्होंने दो एकड़ जमीन अपने घर पानीहाटी के पास ली और 50 बिस्कुट बनाने वाले कारीगर नौकरी पर रखे। और इस तरह भारत के मशहूर बिस्कुट ब्रांड प्रिया का जन्म हुआ।

अग्रवाल अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैं “अधिक से अधिक काम मैं स्वयं ही करता था। और दिन भर ऑफिस से फैक्ट्री घूमता रहता था। कभी-कभी मेरा काम सात बजे सुबह से लेकर रात के एक बजे तक चलता था। वह समय मेरे लिए बहुत ही कठिन था।”

बिस्कुट का बिज़नेस आसान नहीं था क्योंकि बाजार में पहले से ही पारले-जी और ब्रिटानिया का दबदबा था। उन्होंने यह महसूस किया कि अगर मार्केटिंग बहुत अच्छी होगी तभी लोगों के मन में इस ब्रांड के लिए सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


गणेश ने बिना वक़्त गवायें तुरंत ही पांच लोगों की टीम बनाई जो घर-घर जाकर प्रिया के प्रोडक्ट के बारे में लोगों को जानकारी देने शुरू कर दिए। इन्होंने पहले ग्लुकोस और नारियल के बिस्कुट बनाए। बहुत ही कम दाम में अच्छी क्वालिटी के बिस्कुट मुहैया करना इनके बिज़नेस की रणनीति थी और यह सफल भी हुई। इसके बाद अग्रवाल ने दूसरे क्षेत्रों में भी हाथ आजमाए।

2005 में उन्होंने रिलायबल नाम का एक प्लांट शुरू किया जिसमें आलू के चिप्स और स्नैक्स तैयार किये जाते थे। 2012 में उन्होंने सोया नगेट्स का प्लांट डाला। आज उनके दोनों बेटे इनकी कंपनी के डायरेक्टर है।

गणेश प्रसाद अग्रवाल जिन्होंने अपनी ऊँची सोच और कड़ी मेहनत के बल पर आज इस मक़ाम पर पहुंचे। उनके सफलता की यह यात्रा युवा उद्यमीयों के लिए बेहद प्रेरणादायक है।

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/किराने-की-दुकान-से-हुई-एक-म, kenfolios

VIVEK GUPTA - विवेक गुप्ता

VIVEK GUPTA - विवेक गुप्ता
दो दोस्त, एक शानदार आइडिया, पहले ही महीने 1300 आर्डर मिले, आज है करोड़ों का कारोबार


यदि आप अपने शौक को अपने बिज़नेस का रूप देते हैं तो सफलता आपके कदम निश्चित तौर पर चूमेगी। इसी विचार को सत्यार्थ किया है बंगलुरु में रहने वाले दो युवकों ने जिन्होंने अपनी मीट के प्रति दीवानगी को अपने व्यवसाय में बदला और मात्र 2 सालों में अपने व्यापार को 15 करोड़ तक पंहुचा दिया। 

हमारी कहानी है पहली पीढ़ी के उद्यमी अभय हंजूरा और उनके दोस्त विवेक गुप्ता के बारे में। इकतीस वर्षीय अभय जम्मू के रहने वाले हैं, वर्ष 2004 में स्नातक करने के लिये वह बंगलुरु आ गये। स्नातक करने के बाद उन्होंने बिज़नेस और रिस्क मैनेजमेंट में भी डिग्री हासिल की। वहीं विवेक चंडीगढ़ के रहने वाले हैं और पेशे से चार्टेड अकाउंटेंट हैं। वो भी वर्ष 2004 में नौकरी के सिलसिले में बंगलुरु आ गये थे। वह दोनों एक-दूसरे से काम के सिलसिले वर्ष 2010 में मिले और काफी अच्छे दोस्त बन गये और अक्सर खाली समय में लंच या डिनर पर किसी होटल या रेस्टोरेंट में मिलने लगे। यहाँ वह दोनों खाने में सिर्फ मीट का ही आर्डर देते थे और ऐसी कई मुलाकातों ने उनको एहसास कराया कि दोनों का स्वाभाव एक सा है और दोनों को मीट खाना बेहद पसंद है। हालांकि दोनों ही जॉब कर रहे थे लेकिन इनके मन में बिज़नेस करने की प्रबल इच्छा थी और दोनों को ही लगता था कि नौकरी छोड़ कर उन्हें साथ में कुछ अपना करना चाहिये। 



इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए अभय ने विवेक के साथ साल 2015 में मीट का बिज़नेस करने की सोची। विवेक के अनुसार उन्हें उस समय मीट के बारे में कुछ भी नहीं पता था लेकिन अभय ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह इसकी चिंता छोड़ दे। जब दोनों के परिवारों को उनकी इस सोच का पता चला तो सभी ने उनके नौकरी छोड़ कर बिज़नेस में जाने का विरोध किया और मीट के बिज़नेस में तो बिलकुल ही नहीं। कहते है न “एक और एक ग्यारह होता है ” दोनों दोस्तों को एक दूसरे पर पूरा विश्वास था और सारे विरोधों को दरकिनार करते हुए “लिशस ब्रांड” के बैनर तले अपने सपनों की नींव रखी।

इनकी कंपनी मीट और मांसाहारी उद्पाद बनाती है जिनमे मछली ,सीफ़ूड और मांस के उत्पाद की कई श्रेणियां है, जो कि रॉ और मैरीनेड उत्पादों में उपलब्ध है। लिशस के जरिये ऑनलाइन आर्डर बुक किये जाते है। अपनी लगन और मेहनत के बलबूते पर पहले ही महीने में उन्हें 1300 आर्डर मिले और आज मीट की फ्रेश और अच्छी क़्वालिटी के चलते सिर्फ बंगलुरु में ही एक महीने में 50 हज़ार आर्डर पूरे करते हैं। शुरू में उनके पास मीट रखने की केवल 30 यूनिट थी जो अब बढ़कर 90 हो गयी है। 

अभय बताते हैं कि भारत में मीट का कारोबार लगभग 30 -35 अरब डॉलर का है लेकिन सही गुणवत्ता वाला मीट एक बड़ी समस्या थी। दुकानों पर मिलने वाला मीट जिस ढंग से रखा जाता है उससे बीमारी फैलने की बहुत आशंका रहती है इसलिए ग्राहकों को अच्छी क़्वालिटी वाला मीट देने के लिए दोनों कंपनी में एंटीबायोटिक्स से लेकर स्टेरॉयड्स तक का निरक्षण करते हैं और कई तरह के प्रयोग और रिसर्च के बाद फार्म टू टेबल का मॉडल तैयार किया। इतना ही नहीं गुणवत्ता और लगातार ताज़गी को बरक़रार रखने के लिये कोल्ड चेन को मजबूत किया। साथ ही अपनी कंपनी को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने के लिए अभय और विवेक ने निओपल्क्स टेक्रॉलोजी फंड, सिस्टेमा एशिया फंड, 3 वन4 कैपिटल और मेफील्ड इंडिया के नेतृत्व में एक करोड़ डॉलर की सीरीज-बी का फंड जुटाया। दिसंबर 2015 में इसने मेफिल्ड कैपिटल और 3वन4 कैपिटल से 30 लाख डॉलर का सीरीज-ए का फंड जुटाया था। इससे पहले इस कंपनी ने अगस्त 2015 में इन्फोसिस बोर्ड के पूर्व सदस्य टीवी मोहनदास पई और हीलियन वेंचर्स के सहसंस्थापक कंवलजीत सिंह समेत ऐंजल इन्वेस्टर्स से पांच लाख डॉलर जुटाए थे।

मांस की उच्च क्वालिटी के लिये उन्होंने सीधे मुर्गी पलकों से गठजोड़ कर उनको मुर्गी के बच्चे को उसकी खास उम्र, वजन, आकार और उसके आहार के बारे जानकारी दी और इन मुर्गियों को तैयार करके हर रोज चार घंटों के अंदर तापमान नियंत्रित वाहनों में संसाधन केंद्रों तक पहुंचाया जाता है। कंपनी का अपने स्टॉक पर पूरा नियंत्रण रहता है। हर खेप को लैब में परखा जाता है, उसके बाद ही उसे पैक किया जाता है और कोल्ड चेन से व्यवस्थित डिलिवरी केंद्रों पर भेजा जाता है। विवेक कहते हैं कि इस कोल्ड चेन को शुरू से लेकर आखिर तक कहीं भी नहीं तोड़ा जाता है। यानी प्रॉडक्ट को हर समय ठंडे तापमान पर रखा जाता है। लिशस 30 विक्रेताओं के साथ काम करती है और हर रोज करीब तीन टन मांस खरीदती है।

विवेक बताते है पहले उन लोगों को लगता था जैसे-जैसे काम बढ़ेगा तब आवश्यकता के अनुसार ज्यादा मॉस ख़रीदना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन बाजार की समझ और कुशल नेतृत्व के कारण यह हमेशा ही बहुत आसान रहा। अभय कहते हैं लिशस ब्रांड कभी भी गुणवत्ता से समझौता नहीं करती। हम समुद्र तट से सी फूड लेते हैं और कोल्ड चेन में उसकी गुणवत्ता कायम रखते हैं। आज कंपनी का एक रिसर्च सेंटर बेंगलुरु में है और हैदराबाद में इसके तीन डिलिवरी केंद्र हैं। कीमत के बारे अभय बताते हैं कि हमारे कुछ प्रोडक्ट देखने में खुले में उपलब्ध मीट की तुलना में 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा लगते है लेकिन ऐसा है नहीं। परंपरागत बाजार में वजन के बाद मांस टुकड़ों में काटा जाता है और अंतिम खरीद की मात्रा 10-15 प्रतिशत कम होती है। लेकिन हम पूरी तौल और अच्छे से साफ-सफाई के बाद ही मीट को ग्राहक को देते हैं।

बंगलुरु शहर में मिली अपार सफलता और नयी फंडिंग के बाद इनके हौसले काफी बुलंद हैं और आने वाले सालों में वे कंपनी को देश के कई बड़े शहरो में ले जायँगे। इसकी मौजूदा बिक्री ज्यादातर ऑनलाइन हो रही है, वहीं एक बार फ्रंटएंड पर विश्वास हासिल करने के बाद कंपनी रीटेल पर भी ध्यान देगी। अभय बताते हैं कि आज इनके सामने दो प्रमुख चुनौतियां है पहली ग्राहकों को बताना सही मीट क्या है और दूसरा कम दाम में उच्च गुणवत्ता वाला मीट प्रोडक्ट लांच करना। अपने मजबूत इरादों एवं इच्छाशक्ति के चलते 2016-17 में दोनों दोस्तों की कंपनी का कुल टर्नओवर 15 करोड़ था। विवेक और अभय का लक्ष्य इसे बहुत जल्द हर महीने 6-7 करोड़ रुपये करने का है। 

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/दो-दोस्त-एक-शानदार-आइडिया, kenfolios

ARVIND MEHTA - अरविंद मेहता

ARVIND MEHTA - अरविंद मेहता 

5 रुपये का पैकेट बेच बनाया 850 करोड़ का कारोबार, घरेलू बाज़ार में विदेशी ब्रांड के छुड़ाए पसीने


कायदे से देखें साल 2020 तक भारत में नमकीन का व्यवसाय 35,000 करोड़ रुपये के पार होगा। ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र में एक बड़ी कारोबारी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। और इसी कारोबारी संभावना को भांपते हुए कई क्षेत्रीय ब्रांड भी आगे आ रहे हैं। आप विश्वास नहीं करेंगे, इन क्षेत्रीय ब्रांडों ने भी अपने स्वाद से लोगों का दिल जीतते हुए न सिर्फ करोड़ों रुपये का टर्नओवर कर रहा बल्कि घरेलू बाज़ार में विदेशी ब्रांडों को काँटे की टक्कर भी दे रहा।

आज हम ऐसे ही एक क्षेत्रीय नमकीन ब्रांड की सफलता से आपको रूबरू करा रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि हममें से ज्यादातर लोग इस ब्रांड का नाम तक नहीं सुने होंगे लेकिन यह कंपनी आज सालाना 850 करोड़ रुपये का टर्नओवर कर रही है। इंदौर स्थित स्नैक फूड कंपनी प्रताप नमकीन ने जब नमकीन के छल्ले बनाने शुरू किये तो उन्हें भी मालूम नहीं था कि एक दिन वे इस सेगमेंट के अग्रणी कंपनियों में से एक होंगे। साल 2003 में अमित कुमात और अपूर्व कुमात ने अपने दोस्त अरविंद मेहता के साथ मिलकर इस कंपनी की नींव रखी थी और आज यह देशभर में चार कारखानों के साथ 24 राज्यों में 168 स्टोर हाउस और 2,900 वितरकों का एक विशाल नेटवर्क बन चुका है।

एक स्नैक्स कंपनी में 10 वर्ष तक काम काम करने के बाद, अमित ने साल 2001 में कारोबारी जगत में घुसने का फैसला लिया और उन्होंने रसायन विनिर्माण का क्षेत्र चुना। व्यवसाय शुरू करने के एक साल के भीतर ही कंपनी के ऊपर 6 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया और फिर उन्होंने कारोबार बंद करने का निश्चय किया। शुरूआती असफलता से उन्हें बेहद धक्का लगा। उन्होंने न केवल अपनी सारी बचतें गंवा दीं बल्कि इंदौर क्षेत्र के अपने साथी व्यापारियों के बीच सम्मान भी। उन्होंने किसी तरह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार लेकर सारे लेनदारों का भुगतान किया। लेकिन अमित अपना खुद का बिज़नेस एम्पायर बनाने के सपने को इतनी आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे। साल 2002 में उन्होंने अपने भाई अपूर्व और मित्र अरविंद से इंदौर क्षेत्र में नमकीन का व्यवसाय शुरू करने का आइडिया साझा किया। तीनों ने अपने परिवार वालों पर काफी दबाव बनाने के बाद 15 लाख रुपये इकट्ठा कर प्रताप स्नैक्स के रूप में अपने सपने की नींव रखी।


हमेशा उद्यमी बने रहना चाहता था और स्नैक्स बाजार में मुझे दिलचस्पी थी क्योंकि मैं सभी बड़े ब्रांडों से परिचित था। मुझे एहसास हुआ कि इंदौर जैसे शहरों में उनकी पहुंच बड़ी नहीं थी और इसी वजह से मैंने इस क्षेत्र को चुना। — अमित

कारोबार की शुरुआत करने के लिए उन्होंने एक स्थानीय खाद्य प्रसंस्करण और विनिर्माण संयंत्र में रिंग स्नैक्स के कुल 20,000 बक्से का आर्डर दिया। शुरुआती दिनों के दौरान, वे उत्पादन को स्थानीय निर्माताओं से ही ख़रीदा करते और अपना सारा ध्यान मजबूत वितरण नेटवर्क के निर्माण पर केंद्रित किया। कम पूंजी की वजह से उनके पास सीमित उपकरण थे और साथ ही संयंत्र लगाने के लिए प्रयाप्त जगह भी नहीं थी। पहले साल कंपनी ने कुल 22 लाख रुपये बनाये, दूसरे साल यह लाभ 1 करोड़ रुपये तक पहुँच गया और तीसरे साल तो टर्नओवर 7 करोड़ के पार रहा।

शुरूआती सफलता को देखकर उन्हें इस बात का अहसास हो चुका था कि यह क्षेत्र कितना फायदेमंद है। सफलता की अपार संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने साल 2006 में अपने व्यापार को मुंबई में विस्तारित किया। लेकिन 2006 और 2010 के बीच की अवधि में हल्दीराम और बालाजी वेफर्स जैसे कई घरेलु ब्रांड आगे आकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का आगाज़ किया। इन ब्रांडों से मुकाबला करने के लिए अमित ने एक ही समय में संपूर्ण देश को लक्षित करने के बजाय एक क्षेत्र में विस्तार कर अपनी मजबूत पैठ ज़माने पर ज्यादा जोर दिया। साल 2011 में कंपनी ने खुद का विनिर्माण संयंत्र स्थापित करते हुए येलो डायमंड नाम से ब्रांड पेश किया और टर्नओवर को 150 करोड़ के पार पहुँचाया।


साल-दर-साल स्नैक्स फूड मार्केट में कंपनी का शेयर बढ़ता चला गया। 2010 से 2015 तक, उनकी बाजार हिस्सेदारी एक प्रतिशत से बढ़कर चार प्रतिशत हो गई। आने वाले समय में अमित देश के स्नैक्स मार्केट में कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहते हैं। और इसके लिए उनकी पूरी टीम अपने प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर खासा ध्यान दे रही है। बिलियन डॉलर क्लब में शामिल होने के लिए कंपनी ने अपना आईपीओ भी निकाला है।

इंदौर जैसे छोटे से शहर से निकलकर अपने आइडिया से मल्टीनेशनल कंपनी को कांटे की टक्कर देने वाले इन युवाओं की सोच को सच में सलाम करने की जरुरत है। 

साभार:  tribe.kenfolios.com/hindi/story/5-रुपये-का-पैकेट-बेच-बनाया-850-क, kenfolios

VIKAS GUTGUTIA - विकास गुटगुटिया

VIKAS GUTGUTIA -  विकास गुटगुटिया 

मात्र 5 हज़ार रुपये, लेकिन आइडिया कमाल का था, सालाना 360 करोड़ की हो रही है कमाई


गम हो या खुशी के पल हो फूल हर अंदाज को बयां करने का सबसे आसान और खुबसूरत जरिया होते हैं। ताजे फूलों में खुशी को दोगुना और गम को हल्का करने की ताकत होती है। इन्हीं फूलों के छोटे से गुलदस्ते में कारोबारी संभावनाओं को देखा बिहार के विकास गुटगुटिया ने। महज 5 हज़ार रुपये की रकम से शुरुआत कर देश के फ्लोरिकल्चर इंडस्ट्री में क्रांति लाते हुए अंतराष्ट्रीय स्तर की एक नामचीन ब्रांड स्थापित करने वाले विकास आज हजारों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

कायदे से देखें तो भारत की फ्लोरिकल्चर इंडस्ट्री की सालाना कुल ग्रोथ 30 फीसदी की रफ्तार से भी तेज हो रही है। वहीं इंडस्ट्री बॉडी एसोचैम की माने तो आने वाले कुछ वर्षों में इस इंडस्ट्री का मार्केट कैप 10,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। ऐसे स्थिति में इस क्षेत्र में कारोबार की बड़ी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।


आज हम बात कर रहे हैं एक छोटे फ्लोरिस्ट से अंतरराष्ट्रीय बाजार में में पहचान बना चुके बड़े ब्रांड फर्न्स एन पेटल्स की आधारशिला रखने वाले विकास गुटगुटिया की सफलता के बारे में। पूर्वी बिहार के एक छोटे से गांव विद्यासागर में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मे विकास ने स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई पश्चिम बंगाल से की। पढ़ाई के दौरान विकास अपने चाचा के फूलों की दुकान पर मदद भी किया करते थे और यहीं से उन्होंने व्यापार करने की बारीकियों को सीखा।

पढ़ाई खत्म होने के बाद दो साल उन्होंने मुंबई व दिल्ली में रोजगार व व्यापार की संभावना खोजी और फिर साल 1994 में 5 हजार रुपये की शुरूआती पूंजी से दिल्ली में पहली बार फूलों की एक शॉप खोली। हालांकि उस दौर में देश के भीतर फूलों से संबंधित व्यापार में ज्यादा तरक्की के आसार नहीं थे लेकिन फिर भी विकास ने अपना सफ़र जारी रखा। संयोग से उन्हें एक भागीदार मिल गया जिसने इस बिजनेस में 2.5 लाख रुपए निवेश किए। भागीदारी लंबी नहीं चली और 9 साल तक उन्हें मुनाफ़े का इंतजार करना पड़ा। इस दौरान फूलों का निर्यात करके उन्होंने रिटेलिंग को किसी तरह जारी रखी।

इस असंगठित सेक्टर में जितने भी फ्लोरिस्ट मौजूद थे उनसे हटकर बेहतर सर्विस, फूलों की वेराइटी और आकर्षक फूलों की सजावट पर विकास ने जोर दिया। और विकास का गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देने की उनकी कोशिश कामयाब हुई। इसी दौरान ताज पैलेस होटल में एक भव्य शादी के लिए उन्हें फूलों की सप्लाय का ऑर्डर मिला और इस तरह बिज़नेस के एक नए रास्ते खुले। साथ ही विकास ने कारोबार में नयापन लाने हेतु फुलों के गुलदस्ते के अलावा फुलों के साथ चॉकलेट्स, सॉफ्ट टॉइज, केक्स, गिफ्ट हैंपर्स जैसे प्रोडक्ट के साथ अपनी रेंज बढ़ाते गये।

करीबन 7 साल तक कारोबार को चलाने के बाद उन्होंने अपने रिटेल व्यापार को देशव्यापी बनाने की योजना बनाई और फर्न्स एन पेटल्स बुटीक्स की फ्रेंचाइजी देना शुरू किया। फ्रेंचाइजी के लिए उन्होंने 10-12 लाख रुपये के निवेश और शोरूम के लिए 200-300 वर्गफीट की जगह का न्यूनतम मापदंड रखा। इस निवेश में कंपनी ब्रैंड नेम, इंफ्रास्ट्रक्चरल सपोर्ट, डिजाइन और तकनीकी जानकारियां, फूलों के सजावट की ट्रेनिंग के साथ स्टोर चलाने के लिए लगने वाली इंवेटरीज जैसे फूल, एक्सेसरीज और गिफ्ट आइटम मुहैया करवाती है।


आज फर्न्स एन पेटल्स की चेन्नई, बैंगलोर, दिल्ली, मुंबई, कोयंबटूर, आगरा, इलाहाबाद सहित देश के 93 शहरों में 240 फ्रेंचाइज स्टोर फैली हुई है। इतना ही नहीं फर्न्स एन पेटल्स आज भारत में सबसे बड़ा फूल और उपहार खरीदने वाली श्रृंखला है जिसका सालाना टर्नओवर 360 करोड़ के पार है। आज यह सिर्फ भारत में ही कारोबार नहीं कर रही बल्कि एक वैश्विक ब्रांड बन चुकी है। 

फूलों के संगठित रिटेल व्यापार में सबसे बड़े उद्यमी के रूप में जाना जाने वाले विकास की सफलता से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। विकास जब फूलों का कारोबार शुरू किये थे तो उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वे देश के सफल कारोबारियों की सूची में शुमार करेंगें। अपने आइडिया के साथ आगे बढ़ते हुए उन्होंने हमेशा कुछ नया करने को सोचा और सफल हुए। 

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/मात्र-5-हज़ार-रुपये-लेकिन-आइ

USHIK MAHESH GALA - उशिक महेश गाला

USHIK MAHESH GALA - उशिक महेश गाला


जेब में मात्र 311 रुपये, किन्तु रणनीति शानदार थी, आज 650 करोड़ का कारोबार है




सफलता किसी को भी आसानी से नहीं मिलती है।इसमें बहुत सारी मेहनत लगती है और सही रणनीति का पालन करने से हमें सफलता के फल मिलते हैं। हम में से अधिकांश यह बात समझ नहीं पाते हैं कि सफलता की कोई परिभाषा नहीं है और इसे सामाजिक मानदंडों पर नहीं मापा जा सकता है। यदि हम सफलता के कारको को मापने की कोशिश करते हैं, तो यह 10 प्रतिशत भाग्य और 90 प्रतिशत कड़ी मेहनत है।

मुंबई के उशिक महेश गाला की कुछ ऐसी ही कहानी है। जिन्होंने अपने जीवन के संघर्षों का डट कर सामाना किया और परिवार के बीमार व्यवसाय को एक रॉकेट की तरह ऊंची उड़ान भरने में कामयाब बनाया। एक व्यवसायी परिवारिक पृष्टभूमि वाले उशिक ने देखा था कि व्यापार उद्योग कैसे काम करता है; हालांकि, उन्हें इसके रणनीति के मॉडल में अपने हाथों को आजमाने का मौका तब मिला पाया जब उनके पिता ने इसके लिए उन्हें उपयुक्त पाया।

उशिक जबकि अभी भी कॉलेज में ही थे उन्होंने अपने पिता के वस्त्र लघु व्यवसाय की बारीकियों को समझ लिया था। लेकिन यह 2006 से 2008 तक की मंदी का शुरुआती वक्त था, जो उनके परिवार के लिए वास्तविक रुप में एक कठिन दौर साबित हुआ। इस अवधि का झटका इतना तीव्र था कि उसने व्यापार को शून्य तक नीचे खींच ले आया, जिसके बाद उसे बंद करना पड़ा। परिवार में कोई भी अब उस बिजनेस मॉडल की कोशिश करने के लिए तैयार नहीं था।

जब उशिक ने 2010 में कारोबार में प्रवेश किया था, तो उनकी जेब में केवल 311 रुपये थे, अब भी वही उनकी वित्तीय आवश्यकता पूरी कर रहा था। ऐसे में उन्होंने फैसला किया कि जो भी हो सकता हो वह व्यापार को डूबने नहीं दे सकते। लेकिन एक योजना बनाना एक बात थी, और योजनाओं का क्रियान्यवन करना एक दूसरी बात थी। पूँजी सीमित थी और बाजार टेढ़े-मेढ़े घूमावदार चरणों से गुजर रहा था जहां किसी तरह का निवेश किया जाना अपनी आजीविका को जोखिम में डालने के समान हो सकता था।

प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उशिक की एक दूरदर्शिता थी कि वे व्यापार को नई ऊंचाई तक बढ़ाना चाहते थे, जिससे व्यापार संचालित करने के तरीकों में बदलाव लाना था। अतः 2012 में, मंदी के खत्म होने के बाद, उन्होंने दुल्हन के परिधानों के साथ बाजार में फिर से प्रवेश करने का फैसला किया।

“यह एक निर्मम प्रतियोगिता से भरा व्यापार साबित हुआ क्योंकि बाजार में कई कठिन खिलाड़ी थे। हर कोई इस मॉडल की कोशिश कर रहा था, इस प्रकार यह एक कड़ा संघर्ष बन गया। पूरे बिजनेस मॉडल को बदलने के लिए, मुझे यह जोखिम उठाना पड़ा क्योंकि यदि मैं असफल हो जाता, तो मुझे मेरे परिवार को देने के लिए कुछ नही रहता। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और फैसला कर लिया।

हम पहले केवल खुदरा बिक्री में थे, इसलिए मैंने एक खाका डिजाइन किया जो व्यवसाय को व्यापार करने के साथ ही विनिर्माण के क्षेत्र में भी बढ़ाया, “उन्होंने केनफ़ोलिओ़ज के साथ विशेष वार्ता में यह बात कही।

उन्होंने बाजार पर अपनी एक पकड़ महसूस किया। 2014 में उन्होंने ‘सुमाया लाइफस्टाइल’ नाम के तहत एक नया उद्यम शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने बाजार का विश्लेषण किया कि पहले महिलाओं के सांस्कृतिक परिधान और व्यापार महिलाओं के लिए अच्छे नहीं थे क्योंकि बाजार नए क्षितिज की ओर उभर रहा था।

वास्तव में, बदलते बाजार की गति इतनी तेज़ थी कि वह मुश्किल से इसके साथ तालमेल कर पा रहे थे। इस यात्रा में उन्होंने एक बात यह सीखी थी कि शिकायत करने के लिए कोई जगह नहीं है। इसमें या तो वह बन सकते है या बिखर सकते है इसलिए उन्होंने पहले विकल्प को चुना और सफलता की दिशा में व्यवसाय पर एक कड़ा जोर लगाया।

11 अगस्त 2011 में सुमाया लाइफस्टाइल की आधारशिला अस्तित्व में आईं लेकिन 2014 में 2 लाख रुपए के निजी पूँजी निवेश के साथ आधिकारिक सूत्रपात स्वीकार किया गया। 2012 से 2014 की अवधि में उशिक ने दुल्हन परिधानों की बिक्री की। 2014 में यह बदल गया जब उन्होंने नई मांग के प्रवाह के अनुसार महिलाओं को अनौपचारिक पहनवे के लिए रुख़ किया। यह व्यवसाय उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ और उन्होंने सिर्फ तीन-चार साल के क्रियान्यवन में ही भारी-भरकम करोड़ो कमाए।

मुंबई में एक विनिर्माण इकाई के साथ, उन्होंने किफायती और गुणवत्ता वाले वस्त्रों पर काम किया और भारत और विदेशों में उनका विपणन किया। ‘सुुमाया लाइफस्टाइल’ ने गति पकड़ा और आज यह भारत में सबसे बड़ा परिधान निर्माता है। 2017 में इसका बैलेंस शीट 214 करोड़ रुपये पर बंद हुआ। समय की इस अल्पावधि में विनिर्माण ईकाई में कर्मचारियों की संख्या का आकार 3,000 तक बढ़ गया और कॉर्पोरेट कर्मचारी आकार में 150 तक का आंकड़ा हुआ।

सुमाया लाइफस्टाइल की सफलता के बाद उन्होंने कपड़ा निर्माण कंपनी ‘सुमाया फैब्रिक’ के साथ शुरुआत की जो ‘सुमाया लाइफस्टाइल’ की एक ग्रुप कंपनी है और इसमें 50-60 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है। मार्च 2018 में, दोनों कंपनियों का अनुमानित कारोबार करीब 614 करोड़ रुपये का है।

अपने उद्यमी यात्रा में सफल होने के बाद, उन्होंने वर्ष 2014-2015 में एंजेल निवेशक के रूप में एक यात्रा ऐप ‘गाईडदो टेक्नोलाॅजी प्राइवेट लिमिटेड’ में भी निवेश किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक क्लोजड ग्रुप चैट ऐप, द हॉउज़ में भी निवेश किया है उन्होंने करीब 250 करोड़ रूपये, वित्तीय सेवा ऋण के रूप में बाजार में भी दिए हैं।

स्व-वित्तपोषित कंपनी सुुमाया समूह ने कारोबार में 110 करोड़ रुपये का निवेश किया है और ऐसा करना जारी है। पूरे समूह कपड़ों, वित्तपोषण और अन्य व्यवसायों के रूप में सुुमाया की शुद्ध संपत्ति करीब 650 करोड़ रुपये हैं।

ग्राहक आधार के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, “हम समस्त भारत में आपूर्ति करते हैं। सांस्कृतिक वस्त्रों के बाजार क्षेत्र में हमारे पास लगभग 65 प्रतिशत का हिस्सा है। सुमाया लाइफस्टाइल का बाजार आधार अब काफी बड़ा हो गया है और दुबई, ओमान और यूएस में विस्तार किया गया है। व्यापार में पूरे भारत में विस्तारित करने के अलावा कारोबारी कार्यालय दुबई, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में हैं। यह फैशन आधारित एक भारतीय कंपनी का पहला उदाहरण है जिसकी विदेशों में शाखाएं है और दूसरे देशों में पूरी तरह कार्याशील कार्यालय हैं।

मुंबई में 3,50,000 वर्ग फुट भूमि पर निर्मित सुमाया लाइफस्टाइल की एकमात्र विनिर्माण इकाई उच्चतम आधुनिक तकनिक युक्त इकाई है। यह 85 प्रतिशत स्वचालित है और वहां से इसके वस्त्रों का निर्यात विदेशों में अपने कार्यालयों में किया जाता है। 

परिधान व्यवसाय में महत्वपूर्ण सफलता के लिए पेरिस में, उशिक को गारमेंट उद्योग में सबसे छोटे सीईओ के रुप में उत्कृष्टता पुरस्कार के रूप में नामित किया गया है और जैन समुदाय में सबसे कम उम्र के अरबपतियों के लिए नामांकित किया गया है। वे जैन इन्टरनेशनल आर्गनाईजेशन (JIO) के ग्लोबल डाईरेक्टर भी हैं। विनम्र उशिक अपने तरीके से आगे ही आगे बढ़ते जा रहे हैं। 27 वर्ष की उम्र में स्वयं के लिए एक मील का पत्थर रख रहे हैं।

सफलता के लिए अपने मंत्र के बारे में बताते हुए कहा, “कड़ी मेहनत करें और आपके कर्म आपको उसके बदले उचित फल देगा।” 

इस व्यक्ति के प्रेरणादायक कहानी को साझा करें, जिसने व्यवसाय की बुनियादी बातें सीख कर दुनिया भर में उसे फैलाया है।

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/जेब-में-मात्र-311-रुपये-किन्त, kenfolios