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Sunday, August 9, 2020

CHAMPAT RAI BANSAL - जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चम्पत राय बंसल

जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव  चम्पत राय बंसल


1975 इँदिरा गाँधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर एस एम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय बंसल, बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे, तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है। पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।

प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये में बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा। पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन  को जानते थे  अतः वे लौट गए।क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर  प्रोफेसर चंपत राय घर पहुँचे, माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।

18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना और राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।

चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ दिया और राम काज में जुट गए। वे अवध के गाँव गाँव गये हर द्वार खटखटाया।स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी। अयोध्या के हर गली कूँचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया। उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें "अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया" उपनाम से बुलाने लगे।

बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर "डॉक्यूमेंटल एविडेंस" जुटाने प्रारम्भ किये। लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया, साथ ही हर जानकारी उंन्हे कंठस्थ भी हो गई। के परासरण और अन्य साथी वकील जब जन्म भूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।

6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। तमाम निर्देश दिए जा रहे थे। बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं, उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे। एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा "अब क्या होगा?" उन्होंने हँस कर उत्तर दिया "ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी...ये जो करने आयी हैकरके ही जाएगी."

इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और... इतिहास रचा गया। आदरणीय चंपत राय बंसल को यूंही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है। उन्होंने रामलला के श्री चरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग "राम लला का पटवारी" भी कहते हैं। यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है। कोई मुंह फाड़ बकवास करता कोई कायर नहीं।

बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याणसिंह जी के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय जी कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िमेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे"।

जय श्री सीयाराम!!!

Saturday, August 8, 2020

वैश्य समाज का कृष्ण जन्मभूमि के लिए योगदान

कृष्ण_जन्मभूमि का इतिहास

(अग्रवाल समाज के महान् बैंकर राजा पटनीमल अग्रवाल और माहेश्वरी और अग्रवाल समाज के उद्योगपतियों के संघर्ष)

यह 1949 में ली गई मथुरा की शाही ईदगाह की तस्वीर है- शाही ईदगाह के चारों ओर और इसके चारों ओर एक नष्ट मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं- इन खंडहरों के ऊपर एएसआई द्वारा एक अधिसूचना बोर्ड है जो 'कृष्ण जन्मभूमि' के रूप में पढ़ता है- इसके अलावा, एएसआई बोर्ड का कहना है कि 'यह वह जगह है जहां हिंदुओं का मानना ​​है कि उनके भगवान कृष्ण का जन्मस्थान था- यह विश्वास हजारों साल पहले का है- '

यह स्थान कभी एक शानदार कृष्ण मंदिर था - 1618 में, #ओरछा के #सूर्यवंशी_राजपूत राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने तैंतीस लाख की लागत से एक मंदिर बनाया था- 

याद रखें, उन दिनों में 1 रुपए में 296 किलोग्राम चावल मिलता था- कोई केवल कल्पना कर सकता है कि उन दिनों के दौरान 33 लाख क्या रहे होंगे- 1670 में, औरंगजेब ने कृष्ण मंदिर को नष्ट कर दिया और इस शाही ईदगाह को अपने खंडहरों के शीर्ष पर बनवाया.. 

1804 में, मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया- ईआईसी ने जमीन की नीलामी की और इसे #बनारस के एक अमीर #अग्रवाल बैंकर 'राजा पटनीमल अग्रवाल' ने 45 लाख में खरीदा (जिसमें वर्तमान शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन भी शामिल थी) मुसलमानों ने अदालत में भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1935 में राजा पटनीमल के वंशज के पक्ष में फैसला सुनाया- राजा पटनीमल के वंशजों के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद भी वे कृष्ण मंदिर का निर्माण शुरू नहीं कर पाये थे, स्थानीय मुसलमानों द्वारा लगातार धमकियों के कारण जब भी ऐसी कोई योजना सामने आई उपद्रवों व बाधायें पैदा होती रहीं.. 

1947 के बाद, #शेखावाटी अंचल के #माहेश्वरी रत्न बिड़ला जी ने जमीन खरीदी और कृष्णा जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन किया। अग्रकुल के महान उद्योगपतियों श्री जयदयाल डालमिया जी और गोयनका घराने ने वर्तमान केशवदास मंदिर (श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर) का निर्माण करवाया। 

1992 में जब हिंदुत्व पुरोधा श्री अशोक सिंहल जी के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद गिराई थी तब कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ की मुक्ति की भी शपत राम भक्तों ने ली थी और सिंहल जी ने नारा दिया था - "अयोध्या तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।"

VAISHYA COMMUNITY TOPPERS IN IAS 2020 EXAM

HEARTIEST CONGRATULATIONS TO THE SUCCESSFUL VAISHYA CANDIDATES IN UPSC CIVIL SERVICES EXAM MAIN 2020.

S.NO. RANK NAME

1 4 HIMANSHU JAIN
2 8 ABHISHEK SARAF
3 9 RAVI JAIN
4 11 NUPUR GOEL
5 12 AJAY JAIN
6 13 RAUNAK AGARWAL
7 14 ANMOL JAIN
8 23 NIDHI BANSAL
9 24 ABHISHEK JAIN
10 25 SHUBHAM AGGARWAL
11 27 HIMANSHU GUPTA
12 29 MAYANK MITTAL
13  30 PARI BISHNOI (BISHNOI VAISHYA)
13 35 KANCHAN
14 39 RUCHI BINDAL
15 41 AYUSHI JAIN
16 43 SHUBHAM BANSAL
17 48 DEEPAK BABULAL KARWA
18 50 SHISHIR GUPTA
19 60 DIVYANSHU SINGAL
20 62 AVADH SINGHAL
21 65 AASHIMA GOYAL
22 69 NAVNEET MITTAL
     80 DARPAN AHLUWALIA (KALWAR VAISHYA)
     81 ANIL KUMAR RATHOR ( TELI VAISHYA)
83 SHIVENDU BHUSHAN
23 87 MUSKAN JINDAL
24 96 HARDIK AGARWAL
25 100 AMIT JAIN
26 101 BISHAKHA JAIN
27 102 SIDHARTHA GUPTA
28 104 ADITYA BANSAL
29 106 MAYUR KHANDELWAL
30 112 SIZAL AGARWAL
31 125 NABAL KUMAR JAIN
32 127 RAGHAV JAIN
33 128 AGRAWAL JITENDRA MURARILAL
34 130 KUNAL AGGARWAL
35 131 PAWAN KUMAR GOEL
36 139 NEHA GOYAL
37 140 AKARSHI JAIN
38 147 DEEPTI GARG
39 148 SUNNY GUPTA
40 154 ABHISEK OSWAL
41 159 TANYA SINGHAL
42 160 CHIRAG JAIN
     161 ANGAD MEHTA (GUJRATI VAISHYA)
43 162 UMESH PRASAD GUPTA
44 164 AHINSA JAIN
45 165 HARSHA PRIYAMVADA
46 168 RAHUL GOEL
47 179 SAMBHAV JAIN
48 181 NIKHIL AGARWAL
     192 YASHPRATAP SHRIMAL (RAJASTHANI VAISHYA)
49 205 ANKUR KUMAR JAIN
50 212 GAUTAM GOEL
51 215 CHIRAG JAIN
52 219 NITESH KUMAR JAIN
53 223 SHUBHAM AGARWAL
     224 SARANSH MAHAJAN ( JAMMU - HIMACHAL VAISHYA)
54 236 ANKITA AGARWAL
55 240 PARTH GUPTA
56 253 SALONI JAIN
57 262 VARUN SINGHAL
58 269 ANKIT KUMAR JAIN
     277 GAJRAJ BACHAWAT ( MARWADI VAISHYA)
59 280 SHUBHAM BAJAJ
     282 ABHIJIT BHANAWAT (MARWADI VAISHYA)
     298 JAYANT NAHATA (MARWADI VAISHYA)
60 321 AMRIT JAIN
     322 VINAYAK CHAMADIA ( MARWADI VAISHYA)
61 324 SAURABH GOYAL
62 325 ANKIT AGARWAL
63 338 ASHUTOSH GARG
64 348 SUJATA AGRAWAL
65 351 AKANKSHA GUPTA
66 356 PRATIK JAIN
67 364 ANKIT JAIN
68 374 SUGANDHA JINDAL
69 408 AASHISH AGARWAL
70 420 RAHUL MODI
71 429 ANKUSH KOTHARI
72 456 ABHISHEK KUMAR GARG
73 472 ABHINAV KUMAR GUPTA
74 482 SHUBHAM JAISWAL
     500 ANKIT KUMAR CHOKSEY (GUJRATI VAISHYA )
     521 KUSHAL CHOKSEY (GUJRATI VAISHYA)
     532 PRAFUL DESAI (GUJRATI VAISHYA)
75 545 BHARATH K R
76 557 RAHUL GUPTA
77 558 HIMANSHU GUPTA
     567 MANAS RANJAN SAHU (TELI VAISHYA)
78 693 PRAKHAR JAIN
79 703 PRABAL GARG
80 707 HARSH BANSAL
81 709 AASMA GARG
82 792 ABHISHEK SINGHAL
83 808 SAHIL BANSAL
84 809 SALONI MITTAL
85 813 KARTIK KANSAL
११४ 828 SHUBHAM AGARWAL

टोटल ११४  वैश्य आईएएस इस लिस्ट में हैं कम से कम १५ या २० जिनका उपनाम नहीं हैं वो होगे.

Friday, August 7, 2020

Maithili Sharan Gupt - मैथिलिशरण गुप्त

Maithili Sharan Gupt - मैथिलिशरण गुप्त 
MAITHILI SHARAN GUPT 
“भारत भारती” के अमर गायक मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) राष्ट्र , राष्ट्रभाषा , राष्ट्र की वैविध्यपूर्ण संस्कृति , उसके प्राचीन गौरव , उसकी उद्दात चिन्तनधारा को वाणी देने वाले एक अप्रतिम कवि थे | उन्होंने न केवल भारत के जन-मन में राष्ट्रीय चेतना का जागरण कर उसे स्वाधीनता आन्दोलन के लिए प्रेरित किया ,बल्कि स्वयं भी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेकर बहुत कुछ झेला और जेल भी गये | एक सच्चे देशभक्त का हृदय लेकर गुप्तजी (Maithili Sharan Gupt) ने तत्कालीन भारत की दीन दशा का इस मार्मिक ढंग से चित्रण किया कि उससे पूरा युग-मानस झंकृत हो द्रवित हो उठा | अपने समकालीन समाज से उनका गहरा जुड़ाव था | इतना कि वे एक युग को नेतृत्व देने और उसमे जागरण मन्त्र फूंक पुनुरुत्थान का पथ प्रशस्त करने में सफल हुए | गुप्तजी का काव्य जिस प्रकार महान राष्ट्र की इतिहासव्यापी जातीय जीवन का सर्वांगीण चित्रण प्रस्तुत कर सका ,वैसा आधुनिक भारतीय भाषाओं में अन्यत्र दुर्लभ है |

मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) का जन्म झांसी के पास एक छोटे से गाँव चिरगांव में बाप-दादों की बड़ी सी हवेली में 3 अगस्त 1886 को हुआ था | पिता सेठ रामचरण एक संस्कारी वैष्णव थे कविता प्रेमी रईस , जिन्होंने अंग्रेज सरकार द्वारा दी गयी “राय बहादुर” की उपाधि उनके शासन के विरोध में लौटा दी थी | बालक मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) में कविता और अंगरेजी शासन के विरोध के संस्कार पिता से आये थे और रामायण-प्रेम एवं संयम-मर्यादा का संस्कार तुलसी रामायण का नियमित पाठ करने वाली माँ काशी देवी से | तीसरे दर्जे तक गाँव के स्कूल में पढाकर मैथिलीशरण को मेक्डोनल हाई स्कूल , झांसी में पढने भेजा गया | पर इस मस्तमौला बालक का मन पढाई में रमता नही था |

मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) अपनी एक बाल-मंडली बनाकर लोक-कला , लोकनाट्य , लोकसंगीत में रस लेता रहता था | तंग आकर पिता ने वापस चिरगांव बुला लिया | पूछने पर मैथिलीशरण का गुप्त का उत्तर होता था “मै दुसरो की किताबे क्यों पढू ? मै स्वयं किताबे लिखूंगा और लोग पढ़ेंगे” उस समय सब इस उत्तर से हैरान हुए | बाद में सचमुच यह भविष्यवाणी सच सिद्ध हुयी | वही बालक , जो बचपन में गीतों की तुकबन्दिया किया करता था बड़ा होकर न केवल राष्ट्रकवि बल्कि सन 1952 से 1964 तक राज्यसभा में सांसद रहकर संसद की हर कारवाई में भाग लेने के लिए कविता में भाषण देता था और प्रश्नों के उत्तर भी कविता में दिया करता था जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है |

पढाई केवल स्कूल-कॉलेज में ही नही होती , जीवन के खुले परिसर में भी होती है और यही पढाई किसी भी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है किसी रचनाकार के लिए तो अति महत्वपूर्ण | न जाने बालक मैथिलीशरण (Maithili Sharan Gupt) को यह अंतर्ज्ञान कैसे हुआ था ? उसने पिता से कह दिया था कि “मै स्वयं पढूंगा और कविता करूंगा” उसने यही किया | घर में जितने धर्मग्रन्थ थे श्रीमद्भागवत , गीता ,तुलसी रामायण सब पढ़ डाले | महाभारत घर में नही था तो बाहर से लाकर पढ़ लिया | संस्कृत , हिंदी ,बांगला , गुजराती भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था | बंगवासी , वेंकटेश्वर समाचार , भारत मित्र आदि घर में आने वाली पत्रिकाए नियमित पढ़ी , बाहर से मंगवाकर उस समय की सुप्रसिद्ध पत्रिका “सरस्वती” से लेकर अन्य पत्रिकाए भी | अपने दोस्ते मुंशी अजमेरी से संगीत की बारिकिया समझी , छंद , पद कंठस्थ करने लगा |

चन्द्रकान्ता संतति , भूतनाथ आदि उपन्यास भी मैथिलीशरण जी (Maithili Sharan Gupt) ने पढ़ डाले | पंचतन्त्र , हितोपदेश , भतृहरी के शतक ग्रन्थ , चाणक्य निति आदि अनेक संस्कृत पोठिया भी पढ़ते चले गये | शेरो-शायरी में रूचि मुंशी अजमेरी ने जगाई तो लोक संगीत की आल्हा गायकों ने | साधू संतो के संगत भी की | इस तरह उन्होंने जहां से जो मिला ,पढ़ा | विद्वानों से सुना | आचार्य महावीर प्रसाद जैसे गुरु से प्रारम्भिक छन्दों में सुधार करवाया , सीखा और स्वाध्याय की जमीन पुख्ता करके की काव्य-रचना में उतरे , उसे उत्र्रोत्र विकसित भी करते गये | परिणाम था 26 वर्ष की उम्र में “भारत भारती” जैसी प्रभावी कृति का सृजन |

वैष्णव संस्कार , सुसंगति और स्वाध्याय ने उन्हें अच्छी रचना के लिए प्रेरित ही नही किया ,अच्छा व्यकित बनने की ओर भी अग्रसर किया | एक बहुर्श्रुत ,सुसंगठित व्यक्तित्व जिसे “अजातशत्रु” की कहा जा सकता है | किसी संघर्ष , किसी संकट के समय जिसे किसी से कोई गिला नही , जिसका कोई शत्रु न हो | हर स्थिति में अविचलित ,उद्दात | 18 वर्ष की आयु में एक एक करके पिता ,माता और पत्नी की मृत्यु | कोमल कवि-मन को धक्के पर धक्के | फिर पुरखो का जमा-जमाया व्यापार भारी घाटे के कारण ठप्प और भारी कर्ज का बड़ा धक्का | पुस्तको के रॉयल्टी के नाम पर कुछ नही या नाम मात्र की आय | ऐसी स्थिति में भी धीरज नही खोया , स्वभावगत उदारता नही छोड़ी | श्रम करके अपनी पुस्तके आप छापी , बेची और निरंतर लेखन एवं उसकी लोकप्रियता के सम्बल से आगे बढ़ते गये | प्रेरक व्यक्तित्व ही प्रेरक रचनाये देकर लाखो लाख पाठको के हृदय सम्राट बन सकते है |

राज्यसभा के सदस्य के रूप में जब तक दिल्ली रहे | उनके घर पर दद्दा दरबार लगा रहता था जिसमे राजधानी के साहित्य-प्रेमी नेताओं से लेकर सभी साहित्यकार पहुचते रहते थे | अब तो कवियों के बीच वैसी पारिवारिकता समाप्तप्राय होती जा रही है | सन 1964 में राज्यसभा में उनका दूसरा कार्यकाल समाप्त था | इस बीच सं 1955 एवं 1959 में उन्होएँ दो बार बीमारी के बड़े झटके झेले | सन 1954 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया था | सन 1960 में उनके अमृत वर्ष में तत्कालीन राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया | सन 1962 में वे सरस्वती पत्रिका की स्वर्ण जयंती पर इलाहाबाद गये | 29 मार्च 1963 को अपने छोटे भाई सियारामशरण गुप्त के निधन का झटका झेला और 7 दिसम्बर 1964 को चिरगांव से लौटकर 12 दिसम्बर 1964 को इस संसार को छोड़ गये |

अपनी हिम्मत से , अपनी ताकत से और अपने ही संघर्ष के बल पर जीवन में यश सफलता अर्जित करने वाले वे एक सर्वप्रिय कवि थे | फिर भी उनकी सरलता एवं विनम्रता बेजोड़ थी | “वही मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे” बहुत कम कवि -साहित्यकार इस स्तर तक पहुचते है जिनकी व्यक्तिगत प्रेरणा और कविता सम्मान के रूप में जन जन तक जाकर अपनी रोशनी बिखेरती हो | मित्रो, पाठको ,स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर आम नेताओं और आम जनता तक उनकी कविता एवं उसकी प्रेरणा की पैठ रही | साहित्य और स्वातन्त्र्य संघर्ष दोनों के इतिहास में उनकी कीर्ति अमर है |

biographyhindi.com/maithili-sharan-gupt-biography-in-hindi

Wednesday, August 5, 2020

रामजन्मभूमि आंदोलन की अग्रवाल विभूतियां

रामजन्मभूमि आंदोलन की अग्रवाल विभूतियां



महाराज अग्रसेन का जन्म मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पुत्र कुश की 34वीं पीढ़ी में प्रतापनगर के राजा वल्लभसेन के घर में हुआ था। अग्रभागवत के अनुसार परम शुद्ध इक्ष्वाकु वंश में द्वापर के अंत में महाराज अग्रसेन के जन्म हुआ था। महाराज अग्रसेन वंशकर राजा थे। (अर्थात जिनके नाम पर उनके वंशजों के जाना जाए) इसीलिए महाराज अग्रसेन के वंशज अग्रवाल कहलाते हैं। रामजन्मभूमि आंदोलन में अग्रवालों की अहम भूमिका थी उन्हीं में से कुछ अग्रकुल वंशजों का नाम नीचे उल्लेखित किया है-

हिंदुत्व पुरोधा श्रद्धेय श्री अशोक सिंहल -माननीय अशोक सिंहल जी ने विश्व के सबसे बड़े आंदोलन राम जन्मभूमि आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। अशोक सिंघल जी रामजन्मभूमि आंदोलन के हनुमान थे। उन्होंने राम जन्म भूमि न्यास के नाम से ट्रस्ट की स्थापना की थी। क्या आप जानते हैं की वो कोई बाबा या साधु नहीं बल्कि IIT BHU से पासआउट इंजीनियर थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन में प्रण लिया था की वो हिंदुओं के मस्तक पर जो कलंक लगा है (बाबरी मस्जिद) उसे मिटाकर ही दम लेंगे। उन्होंने सर्व प्रथम 1989 में एक ईंट अपने सर पर रखकर राम जन्मभूमि आंदोलन का शिलान्यास किया और उसी के ठीक 30 वर्ष पश्च्यात सुप्रीम कोर्ट से राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में फैसला आया। अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में विहिप ने पूरे देश में बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जिसमें अशोक जी की तेजस्वी वाणी से लोगों में जोश भरा। अशोक सिंघल जी ने अपना पूरा जीवन राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था। ये रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान कई बार पुलिस की लाठियों से घायल हुए लेकिन उन्होंने अपनी राम जन्मभूमि के प्रति लगन कम नहीं होने दी। जब तथाकथित हिंदूवादी लोगों ने भी रामजन्मभूमि आंदोलन से अपना पल्ला झाड़ लिया था तब भी अशोक सिंहल जी अपनी अंतिम सांस तक रामजन्मभूमि आंदोलन के साथ बने रहे। उन्होंने बीजेपी की सरकार में भी, जिस समय माननीय श्री अटल बिहारी जी स्वयं प्रधान मंत्री थे, रामलला के मंदिर निर्माण के लिए अनशन पर बैठे थे। सुब्रमनियम स्वामी ने भी राम मन्दिर का फैसला आने के बाद श्री अशोक सिंघल जी के लिए भारत रत्न की मांग की थी।

नित्यलीलालीन हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाई जी'- अयोध्याधाम में जो भगवान श्री रामलला सरकार का विग्रह है उसका निर्माण स्वयं भाई जी ने अष्टधातु में करवाया था। 1949 में जब श्रीरामलला सरकार का प्राकट्य हुआ था उसमें श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की महती भूमिका थी। पोद्दार जी ने जन्मभूमि के वास्तविकता को साबित करने के लिए बहुत ही तथ्यपूर्ण ढंग अपने कल्याण में "रामजन्मभूमि अंक" निकाला था।कल्याण पत्रिका उस समय बहुत लोकप्रिय हुआ करता था।कांग्रेस को इसकी भनक लगी उसने कल्याण के 'रामजन्मभूमि ' अंक पर बैन लगा दी साथ में उसके मूलप्रति को भी जब्त कर लिया था। उन्होंने कल्याण पत्रिका में खुल कर राम जन्म भूमि के पक्ष में रिपोर्टिंग की थी।

देवकी नंदन अग्रवाल - इन्होंने श्री रामलला सरकार के विग्रह को जन्मभूमि का पैरोकार बनाने के लिए कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था और कोर्ट में खुद को रामलला सरकार के निकटतम मित्र के तौर पर पेश किया था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति एक जीवित इकाई है और अपना मुकदमा लड़ सकती है। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति नाबालिग मानी जाती है, इसलिए उनका मुकदमा लड़ने के लिए किसी एक व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है। न्यायालय ने रामलला का मुकदमा लड़ने के लिए देवकीनंदन अग्रवाल को रामलला के अभिन्न सखा के रूप में अधिकृत किया। न्याय प्रक्रिया संहिता की धारा 32 मानती है कि विराजमान ईश्वर (मूर्ति) को एक व्यक्ति माना जाता है। उसे एक व्यक्ति मानकर पक्षकार बनाया जा सकता है। इससे जन्मभूमि परिसर में फालतू में दावा करने वालों और मंदिर निर्माण में बाधा डालने वालों को रोका गया।

सीताराम गोयल और रामस्वरूप अग्रवाल जी - सीताराम गोयल जी का मंदिर आंदोलन में अद्वितीय योगदान था। सीताराम गोयल जी ने भारत भर में आक्रान्ताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों की पूरी सूची, तथ्यों और तस्वीरों के साथ संकलित की थी, व इसमें सप्रमाण सभी तोड़े गए मंदिरों की पूरी डिटेल हिन्दू समाज के सामने रखी थी, जिसमें अयोध्या का श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर भी था।

जय भगवान गोयल - अग्रवंशी जय भगवान गोयल वो शेरदिल शख्शियत जिसने सबसे पहले नेशनल टेलीविजन पर स्वीकारा की हाँ हमने तोड़ी थी बाबरी मस्जिद जो प्रतीक थी गुलामी की। इन्होंने कोर्ट में ये कहा था कि वह ढांचा मैंने ढहाया जो सजा देनी है मुझे दो।

चम्पत राय जी - बहुत कम लोग जानते हैं चम्पत राय जी को जो आज कल रामजन्मभूमि न्यास का कुशलतापूर्वक संचालन व सब व्यवस्थओं की देखरेख कर रहे हैं। वे हमेशा से जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले संघ के प्रचारक रखे हैं जिन्होंने पूरा जीवन रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए खपा दिया। वे अशोक सिंघल जी के राइट हैंड माने जाते थे इससे उनके योगदान का अंदाजा हो जाता है।

पवन सिंहल - ये अशोक सिंघल जी के भतीजे हैं और 5 अगस्त को अयोध्या में होने वाले भूमिपूजन के मुख्य जजमान है। पवन जी बहुत धार्मिक हैं और ये स्वयं का वेद विश्वविद्यालय भी चलते हैं।

उपरोक्त जन्में सभी साकेतवासी महापुरुषभगवान् राम के वंशज थे। इन सभी का जन्म अग्रोहानरेश महाराज अग्रसेन की कुलपरम्परा में हुआ था। लाखों अग्रवाल व्यापारी और उद्योगपतियों ने रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए तन-मन-धन तीनों से सहयोग किया... विहिप के पूर्व अध्यक्ष और भारत के जाने माने उद्योगपति श्री विष्णु हरि डालमिया तो आजीवन रामजन्मभूमि मंदिर के कोषाध्यक्ष बने रहे और आंदोलन को आर्थिक सहायता प्रदान की। कहते हैं बाबरी मस्जिद को ढहाने के बाद सर्वाधिक अग्रकुल वंशजों की गिरफ्तारी हुई थी। इस तरह अनेकों अग्रवालों ने अपने बलिदान से खुद को श्री राम का वंशज होना चरितार्थ किया।

अनंत कोटि ब्रम्हाण्ड नायक रघुकुल चूड़ामणि भानुकुल दिवाकर राजीवनयन राजा रामचंद्र सरकार की जय


साभार: राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा 

MUSKAN JINDAL - हिमाचल की 22 वर्षीय मुस्‍कान जिंदल बनी आइएएस

हिमाचल की 22 वर्षीय मुस्‍कान जिंदल बनी आइएएस अधिकारी

IAS MUSKAN JINDAL 
हिमाचल के जिला सोलन के बद्दी से मुस्कान जिंदल ने संघ लोक सेवा आयोग की सिवि‍ल सेवा परीक्षा उत्‍तीर्ण कर पूरे देश में 87वां रैंक हासिल किया है। मुस्‍कान ने पहले प्रयास में ही आइएएस की परीक्षा उत्‍तीर्ण कर ली है। अब वह देश के लिए प्रशासनिक सेवाएं देंगी। उनका फाइनल इंटरव्यू दिल्ली में 28 जुलाई को हो चुका है और अब मेडिकल के परिणाम आने के बाद आइएएस परीक्षा का अंतिम रिजल्ट जारी कर दिया गया है। मुस्कान जिंदल के आइएएस बनने से पूरे बद्दी क्षेत्र सहित हिमाचल में खुशी का माहौल है।

मुस्कान जिंदल के पिता पवन जिंदल बद्दी में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते हैं। मुस्कान की माता ज्योति जिंदल गृहणी हैं। मुस्कान जिंदल की दो बहनें और एक भाई है। मुस्कान के पिता पवन जिंदल ने बताया उनकी बेटी बद्दी के वीआर पब्लिक स्कूल से पढ़ी हैं और 10वीं और 12वीं कक्षा में उन्होंने 96 फ़ीसद नंबर लेकर स्कूल में टॉप किया था। उसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ के एसडी कॉलेज से बीकॉम किया।

इसी दौरान उन्होंने आईएएस परीक्षा के लिए भी तैयारियां शुरू कर दी थी। मुस्कान ने पहले प्रयास में ही आइएएस की परीक्षा उत्‍तीर्ण कर ली। लाखों लोगों की इस परीक्षा में उन्होंने टॉप 100 में अपनी जगह बना कर मिसाल कायम की है। 

साभार: दैनिक जागरण 

सिविल सेवा में चुने गए अग्रवाल बंधू

सिविल सेवा में चुने गए अग्रवाल बंधू 



साभार: अग्रज्योती 

Monday, August 3, 2020

JAISHANKAR PRASAD - जयशंकर प्रसाद

महान कवि लेखक, साहित्यकार जयशंकर प्रसाद 


श्री जय शंकर प्रसाद 

हिंदी में छायावाद के प्रवर्तक माने जाने वाले कवि ,नाटककार और उपन्यासकार जयशंकर “प्रसाद” (Jaishankar Prasad) का जन्म वाराणसी के एक धनी परिवार में 1889 में हुआ था | उनके पितामह शिवरतन शाह एक विशेष प्रकार की सूंघनी (तम्बाकू) बनाने के कारण “सुंघनी शाह” के नाम से प्रसिद्ध थे | प्रसाद (Jaishankar Prasad) के पिता के जीवन में भी परिवार में समृधि रही परन्तु माता-पिता और बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के कारण प्रसाद को 17 वर्ष की उम्र में ही परिवार का दायित्व वहन करना पड़ा और भारी कर्ज का बोझ उठाना पड़ा |

जयशंकर (Jaishankar Prasad) का बचपन का नाम झारखन्डी था | उनकी अधिकतर शिक्षा घर पर ही हुयी | स्कूल कक्षा 8 तक ही जा पाए | स्वाध्याय से इन्होने वेद , पुराण इतिहास ,साहित्य , शास्त्र आदि का गहन अध्ययन किया | ये संस्कृत ,हिंदी ,उर्दू और फ़ारसी भाषाओ के ज्ञाता थे | प्रसाद ने सभी विधाओं में साहित्य-सर्जना की | कहते है पारिवारिक वातावरण के कारण वे नौ वर्ष की उम्र में कविता लिखने लग गये थे | उन्होंने प्रारम्भ में व्ज्रभाषा की रचनाओं से किया फिर शीघ की खडी बोली को अपना लिया |

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) ने “इंदु” नामक पत्रिका का प्रकाशन किया | इनके प्रमुख काव्य-ग्रन्थ है – “चित्राधार” , “कानून कुसुम” , “प्रेमपथिक” , “करुनालय” , “महाराणा का महत्व”, “झरना” , “आंसू” , “लहर” और “कामयानी” | “कामयानी” कवि की सर्वोत्कृष्ट कृति मानी जाती है | इस प्रबंध काव्य में कवि ने आदि-मानव मनु और इड़ा की कथा को लेकर अपने युग की समस्याओं पर विचार किया है | इस पर कवि को “मंगलाप्रसाद” पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था |

प्रसाद के नाटको की संख्या लगभग बारह है इनमे प्रमुख है “जनमेजय का नागयज्ञ” “स्कंदगुप्त” “चन्द्रगुप्त” “ध्रुवस्वामिनी” आदि | “कंकाल” और “तितली” दो उपन्यास है | तीसरा उपन्यास “इरावती” अपूर्ण है | “छाया” , “प्रतिध्वनि” , “आकाशद्वीप” “इंद्रजाल” आदि कथा संग्रह है | क्षय रोग के कारण 15 नवम्बर 1937 को प्रसाद जी (Jaishankar Prasad) का निधन हो गया |

साभार: biographyhindi.com/jaishankar-prasad-biography-in-hindi

AGROHA & AGRAWAL

AGROHA & AGRAWAL 



साभार: महाराजा अग्रसेन सेवा समिति