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Saturday, August 8, 2020

वैश्य समाज का कृष्ण जन्मभूमि के लिए योगदान

कृष्ण_जन्मभूमि का इतिहास

(अग्रवाल समाज के महान् बैंकर राजा पटनीमल अग्रवाल और माहेश्वरी और अग्रवाल समाज के उद्योगपतियों के संघर्ष)

यह 1949 में ली गई मथुरा की शाही ईदगाह की तस्वीर है- शाही ईदगाह के चारों ओर और इसके चारों ओर एक नष्ट मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं- इन खंडहरों के ऊपर एएसआई द्वारा एक अधिसूचना बोर्ड है जो 'कृष्ण जन्मभूमि' के रूप में पढ़ता है- इसके अलावा, एएसआई बोर्ड का कहना है कि 'यह वह जगह है जहां हिंदुओं का मानना ​​है कि उनके भगवान कृष्ण का जन्मस्थान था- यह विश्वास हजारों साल पहले का है- '

यह स्थान कभी एक शानदार कृष्ण मंदिर था - 1618 में, #ओरछा के #सूर्यवंशी_राजपूत राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने तैंतीस लाख की लागत से एक मंदिर बनाया था- 

याद रखें, उन दिनों में 1 रुपए में 296 किलोग्राम चावल मिलता था- कोई केवल कल्पना कर सकता है कि उन दिनों के दौरान 33 लाख क्या रहे होंगे- 1670 में, औरंगजेब ने कृष्ण मंदिर को नष्ट कर दिया और इस शाही ईदगाह को अपने खंडहरों के शीर्ष पर बनवाया.. 

1804 में, मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया- ईआईसी ने जमीन की नीलामी की और इसे #बनारस के एक अमीर #अग्रवाल बैंकर 'राजा पटनीमल अग्रवाल' ने 45 लाख में खरीदा (जिसमें वर्तमान शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन भी शामिल थी) मुसलमानों ने अदालत में भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1935 में राजा पटनीमल के वंशज के पक्ष में फैसला सुनाया- राजा पटनीमल के वंशजों के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद भी वे कृष्ण मंदिर का निर्माण शुरू नहीं कर पाये थे, स्थानीय मुसलमानों द्वारा लगातार धमकियों के कारण जब भी ऐसी कोई योजना सामने आई उपद्रवों व बाधायें पैदा होती रहीं.. 

1947 के बाद, #शेखावाटी अंचल के #माहेश्वरी रत्न बिड़ला जी ने जमीन खरीदी और कृष्णा जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन किया। अग्रकुल के महान उद्योगपतियों श्री जयदयाल डालमिया जी और गोयनका घराने ने वर्तमान केशवदास मंदिर (श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर) का निर्माण करवाया। 

1992 में जब हिंदुत्व पुरोधा श्री अशोक सिंहल जी के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद गिराई थी तब कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ की मुक्ति की भी शपत राम भक्तों ने ली थी और सिंहल जी ने नारा दिया था - "अयोध्या तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।"

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