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Tuesday, July 19, 2022

DR. ARVIND GOYAL - A GREAT DONOR OR UP & MORADABAD

DR. ARVIND GOYAL - A GREAT DONOR OR UP & MORADABAD

उद्योगपति ने 600 करोड़ की संपत्ति दान की:अरविंद गोयल ने अपने पास सिर्फ घर रखा, 50 साल की मेहनत से कमाई थी प्रॉपर्टी.

मुरादाबाद के उद्योगपति डॉ. अरविंद कुमार गोयल ने अपनी पूरी संपत्ति गरीबों के लिए दान कर दी है। दान की गई संपत्ति की कीमत करीब 600 करोड़ रुपए है। गोयल ने अपने पास सिर्फ घर रखा है। उन्होंने 50 साल की मेहनत से यह प्रॉपर्टी बनाई थी।

देशभर में चलते हैं सैकड़ों अनाथ आश्रम और स्कूल
डॉ. गोयल बिजनेसमैन होने के साथ ही समाजसेवा में भी लगे रहते हैं। गोयल के सहयोग से पिछले करीब 20 साल से देशभर में सैकड़ों वृद्धाश्रम, अनाथ आश्रम और फ्री हेल्थ सेंटर चलाए जा रहे हैं। साथ ही उनकी मदद से चल रहे स्कूलों में गरीब बच्चों को फ्री शिक्षा दी जा रही है। कोविड लॉकडाउन में भी करीब 50 गांवों को गोद लेकर उन्होंने लोगों को मुफ्त खाना और दवा दिलवाई।

मुरादाबाद के सबसे बड़े उद्योगपति और प्रख्यात समाजसेवी डॉ. अरविंद कुमार गोयल को सम्मानित करते राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद।

राजस्थान में भी हैं कई स्कूल-कॉलेज
डॉ. अरविंद गोयल ने 50 साल की कड़ी मेहनत से यह संपत्ति अर्जित की है। मुरादाबाद के अलावा प्रदेश के अन्य हिस्सों और राजस्थान में भी उनके स्कूल-कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। मुरादाबाद के सिविल लाइंस की अपनी कोठी को छोड़कर उन्होंने बाकी पूरी संपत्ति दान देने की घोषणा की है। उन्होंने यह दान सीधे राज्य सरकार को दिया है, ताकि वास्तविक जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाई जा सके।


पिछले 20 सालों से भी अधिक समय से डॉ. अरविंद कुमार गोयल गरीब और असहाय लोगों की सेवा में जुटे हैं।

बंगले पर लगी भीड़
मुरादाबाद के सिविल लाइंस में डॉ. अरविंद कुमार गोयल का बंगला है। सोमवार रात को जैसे ही उन्होंने अपना सब कुछ दान करने का ऐलान किया, पूरे शहर में सिर्फ उनकी ही चर्चा होने लगी। मंगलवार सुबह से ही उनके बंगले पर लोगों की भीड़ जुट गई।

पत्नी और बच्चों ने भी दिया फैसले में साथ
डॉ. गोयल के परिवार में उनकी पत्नी रेनू गोयल के अलावा उनके दो बेटे और एक बेटी है। उनके बड़े बेटे मधुर गोयल मुंबई में रहते हैं। छोटे बेटे शुभम प्रकाश गोयल मुरादाबाद में रहकर समाजसेवा और बिजनेस में पिता का हाथ बंटाते हैं।

बेटी शादी के बाद बरेली में रहती है। उनके बेटों या परिवार के किसी भी सदस्य से संपर्क नहीं हो पाया है। हालांकि तीनों बच्चों और पत्नी ने उनके इस फैसले का स्वागत किया है।

राष्ट्रपति रहते हुए प्रतिभा देवी पाटिल ने भी डॉ. गोयल को सम्मानित किया था।

डॉ. अरविंद बोले- जीवन का भरोसा नहीं, इसलिए लिया फैसला
डॉ. अरविंद गोयल ने कहा, "वह चाहते हैं उनकी सारी पूंजी गरीबों की सेवा में काम आए। जीवन का कोई भरोसा नहीं है। इसलिए जीवित रहते हुए ही अपनी संपत्ति को सही हाथों में सौंप दिया। इससे अनाथ, गरीब और बेसहारा लोगों के काम आ सकेंगे।"

माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी, बहनोई रहे हैं देश के मुख्य चुनाव आयुक्त
डॉ. अरविंद कुमार गोयल का जन्म मुरादाबाद में हुआ था। उनके पिता प्रमोद कुमार और मां शकुंतला देवी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके बहनोई सुशील चंद्रा देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रह चुके हैं। इससे पहले वह इनकम टैक्स यानी CBDT के चेयरमैन भी रह चुके हैं। उनके दामाद आर्मी में कर्नल हैं और ससुर जज थे।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी डॉक्टर गोयल को उनकी समाजसेवा के लिए सम्मानित कर चुके हैं।

डॉ. गोयल को 4 राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित
डॉ. अरविंद कुमार गोयल के समाजसेवा के जज्बे को देश और दुनिया में कई मंचों से सम्मानित किया जा चुका है। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम समाजसेवा के लिए उनको सम्मानित कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी डॉ. गोयल के सेवा कार्यों के लिए उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।

बॉलीवुड इंडस्ट्री भी डॉक्टर गोयल के समाजसेवा के जज्बे को सलाम कर चुकी है।

हजारों गरीब मानते हैं मसीहा
अरविंद गोयल को गरीब किसी मसीहा से कम नहीं मानते हैं। यहां वृद्धाश्रम और अनाथ आश्रम में रह रहे सैकड़ों बेसहारा और अनाथ उन्हें भगवान कहते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि अरविंद गोयल की दिनचर्या पिछले 20 सालों में कभी नहीं बदली।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अनूठे और अतुलनीय सामाजिक कार्यों की वजह से प्रदेश में कई कार्यक्रमों के शुभारंभ में डॉ. गोयल को बतौर स्पेशल गेस्ट इनवाइट कर चुके हैं।

शीर्ष उद्योगपति फिर भी जीवन सादगी भरा
​​​डॉ. गोयल की मुरादाबाद ही नहीं, बल्कि उत्तरप्रदेश के जाने-माने उद्योगपतियों में भी गिनती होती है। प्रदेश के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके स्कूल-कॉलेज हैं। मुरादाबाद के शीर्ष उद्योगपति होने के बावजूद वो एकदम साधारण तरीके से जीवन जीते हैं।

क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने भी डॉ. गोयल की समाजसेवा को सराहा।

सोशल मीडिया पर दानवीर कर्ण से तुलना कर रहे लोग
सोशल मीडिया पर लोग उनके इस कदम की जमकर सराहना कर रहे हैं। कई यूजर लिखते हैं, "उद्योगपति के इस दान पर वह निशब्द हैं।" कई उनकी तुलना दानवीर कर्ण से कर रहे हैं। एक यूजर्स ने लिखा, ‘‘डॉ. गोयल का यह कदम समाज के लिए आइना है। बाकी पूंजीपतियों को भी इनसे प्रेरणा लेकर समाज और देश के बारे में सोचना चाहिए।’’

5 सदस्यों की कमेटी करेगी निगरानी
डॉ. गोयल ने राज्य सरकार से इच्छा जाहिर की है कि उनकी संपत्ति को बेचकर जो पैसा मिलेगा, उससे गरीबों की मदद की जाए। साथ ही पांच सदस्यीय कमेटी बनाई जाए। इसमें तीन सदस्य वह नामित करेंगे। बाकी दो सरकार की ओर से नामित होंगे। यह कमेटी पूरी संपत्ति को सही रेट पर बेचकर उससे आने वाले पैसे से अनाथ और बेसहारा लोगों के लिए फ्री शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था करेगी।

तस्वीरों में देखिए डॉ. अरविंद कुमार गोयल का सफरनामा

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ देश में प्रदूषण कम करने के मुद्दे पर भी वह काम कर चुके हैं।

देश में विभिन्न मंचों से सम्मानित होने के साथ-साथ डॉक्टर गोयल को कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी सम्मानित किया जा चुका है।

बॉलीवुड इंडस्ट्री ने सामाजिक कार्यों के लिए डॉ. गोयल को आइफा अवॉर्ड में बतौर स्पेशल गेस्ट इनवाइट किया।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी डॉ. अरविंद गोयल को सम्मानित किया था।

शाहरुख ने कहा था, सक्षम लोग आपकी तरह सोचने लगें, तो देश से गरीबी शब्द मिट जाए।

अपने बेटों के साथ उद्योगपति और समाजसेवी डॉ. अरविंद गोयल।

SABHAR: DAINIK BHASKAR

AASHI CHOUKSEY WORLD CHAMPION

AASHI CHOUKSEY WORLD CHAMPION

दक्षिण कोरिया में चल रहे ISSF 2022 विश्व कप में वैश्य महाजन सेठ समाज की बेटी आशी चौकसे(पहली फोटो में तीसरे नंबर पर और दूसरी फोटो में पहले नंबर पर मेडल के साथ) ने अपनी सहखिलाड़ियों अंजुम मौदगिल और सिफ्ट कौर सामरा के साथ मिलकर सोमवार को आईएसएसएफ विश्व कप की महिला 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता




दक्षिण कोरिया में चल रहे ISSF 2022 विश्व कप में सेठ समाज की बेटी आशी चौकसे(पहली फोटो में तीसरे नंबर पर और दूसरी फोटो में पहले नंबर पर मेडल के साथ) ने अपनी सहखिलाड़ियों अंजुम मौदगिल और सिफ्ट कौर सामरा के साथ मिलकर सोमवार को आईएसएसएफ विश्व कप की महिला 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता.

भारतीय तिकड़ी ने कांस्य पदक मुकाबले में आस्ट्रिया की टीम को 16-6 से मात दी।क्वालिफिकेशन स्टेज एक और दो में भारत को 1324-71 और 872-39 के स्कोर के साथ चौथा स्थान हासिल हुआ था।

आशी चौकसे को बहुत-बहुत शुभकामनाएं और उज्जवल भविष्य की कामना।भगवान श्री नृसिंह नारायण की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहे।

Sunday, July 17, 2022

ANIKA GUPTA & KANISHKA MITTAL - ICSC INDIA TOPPER - 2022

ANIKA GUPTA &  KANISHKA MITTAL - ICSC INDIA TOPPER - 2022 

कानपुर की अनिका_गुप्ता व लखनऊ की कनिष्का_मित्तल ने 500 में 499 अंक लाकर किया देश टॉप वैश्य समाज की ओर से दोनों को बधाई

ANIKA GUPTA 


आइसीएसइ बोर्ड ने दसवीं का रिजल्ट जारी कर दिया है। शहर में शीलिंग हाउस स्कूल की छात्रा अनिका गुप्ता का नाम नेशनल टॉपर की सूची में पहले पायदान पर है। वहीं स्कूलों के सफल छात्र-छात्राओं में खुशी की लहर है।

 काउंसिल फार इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीई) की ओर से आयोजित हुई इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकेंड्री एजूकेशन परीक्षा का परिणाम रविवार शाम जारी हो गया। इसमें खलासी लाइन स्थित शीलिंग हाउस स्कूल की 10वीं की छात्रा अनिका गुप्ता ने 500 में से 499 अंक हासिल करके देश की टापर होने का गौरव हासिल किया है।

KANISHKA MITTAL 


आइसीएसई 10वीं के नतीजे रविवार शाम को जारी कर दिये गए। जारी हुए नतीजों के अनुसार लखनऊ के सीएमएस का डंका देशभर में बजा। सीएमएस कानपुर रोड की कनिष्का मित्तल 99.80 अंक हासिल कर नेशनल टापर बनीं।

 काउंसिल फार द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीई) की ओर से 10वीं (आइसीएसई) के नतीजों में लखनऊ के मेधावी छात्र- छात्राओं ने ऊंची छलांग लगाई है। सिटी मांटेसरी स्कूल कानपुर रोड लखनऊ की कनिष्का मित्तल ने 99.80 प्रतिशत अंक हासिल कर नेशनल टापर बनीं हैं। उन्होंने 500 में 499 अंक हासिल किया है।

Friday, July 15, 2022

मारवाड़ के बनिये कभी नही बदले

मारवाड़ के बनिये कभी नही बदले

सभी को बदलते हुए देखा है मैंने; बस मारवाड़ के बनिये कभी नही बदले। सब जातियों में यहां कन्वर्टेड भी मिल जाएंगे। सिंध, अमरकोट, बलूचिस्तान से आए हुए लोग भी। लेकिन मारवाड़ी बनियो में नही मिलता कोई। आज भी कराची में मोहता परिवार की छूटी हुई हवेली गवाह है इस बात की।

इसलिए उनके प्रति मेरा सम्मान बहुत अधिक है। ये मेरे निजी अध्ययन है की क्यों एक व्यापार में इतने सफल होते हैं:-
1) वो बचपन से व्यापार में हाथ बढ़ाना शुरू कर देते है
2) अधिकांश लड़के लड़कियां CA, ईकोनोमिक्स, कॉमर्स लेते हैं। ये पढ़ाई में रुचि कम लेते है और व्यापार में अधिक। सभी कम उम्र के लड़के अपनी दुकानों पर जाकर ज़रूर बैठते हैं। आज के टाइम भी सबसे अधिक स्टार्ट अप इनके ही हैं।
3) लड़ाई झगड़ा बिल्कुल नही करते, अगर कहीं लड़ाई का माहौल दिखे तो भी साइड हो जाते है। मेंरे बैचमेट लड़के तक मुझे आकर शिकायत कर देते थे किसी मुद्दे पर,लेकिन खुद लड़ाई नही करते थे
4) लड़की को लक्ष्मी स्वरूप मानते है। घर में बेटी हो तो प्रसन्नता इतनी अधिक की व्यक्त नही कर सकते।
5) शुरू से ही नए व्यापार की बातें करते रहते है इनके लड़के, स्कूल कॉलेज से ही।
6) अन्य जातियों को स्नेह देते हैं किन्तु सबसे अधिक क्षत्रिय समाज को, क्षत्रिय लड़कियो को विशेष स्नेह देते हैं।
7) साधारण सी लाईट ऑन ऑफ करते वक्त भी जय श्री कृष्णा बोलते हैं।
😎
सबसे अधिक भागवत कथाएँ, मेलो जागरणों पे पैसा यही समाज खर्च करता है। ऐसा कोई तीर्थ स्थल नही होगा जहां बनिया के डोनेशन के पैसे से धर्मशाला नही बनी हुई हो।
9) बिड़ला परिवार ने सबसे सुंदर मंदिरों को निर्माण करवाया।
10) एक से बढ़कर एक जैन मंदिर बनाये गए।
11) हॉस्पिटल, स्कूल, ऐसा कोज सार्वजनिक स्थल या कार्य नही। जहां ये सामने नही आते।
12) बहुत ही सात्विक जीवन जीते हैं। भोजन शाकाहारी रहता है हमेशा। लेकिन होते चटोरे ही हैं।
13) इनकी महिलाएं बहुत ही अधिक धर्म भीरू होती है। एक एक दंतकथा, याद रहती है
14) सबसे अधिक गुप्त दान करने वाला समाज भी यही है। अपनी कमाई के एक हिस्सा ज़रूर धर्म कर्म पर लगाते हैं, नियमित तौर पर।
15) अपने जात भाईयों को कभी नीचे नही गिरने देते, व्यापार में घाटा हो तो वापस पैसा उधार देकर खड़ा कर देते हैं। ये गुण सभी समाजों को बनियो से सीखना चाहिए।
मैंने सभी जातियों में धर्म विरुद्ध बातें करते हुए लड़के लड़की देखे है मारवाड़ में। लेकिन बनिया को कभी नही। अभी चौमासे पे सबसे अधिक भागवत कथाओं का आयोजन बनिया और जैन मुनियों द्वारा उनके पंथ के बड़े कार्यक्रम होते है हमारे यहां।

लेख साभार: भारती पंवार जी

ICAI CA Final Toppers List May 2022 - ALL OF THREE FROM VAISHYA COMMUNITY

ICAI CA Final Toppers List May 2022 - ALL OF THREE FROM VAISHYA COMMUNITY

ICA CA Final AIR I

MEET Anil Shah

642/ 800

Mumbai


ICA CA Final AIR II

Akshat Goyal

639/ 800

Jaipur


ICA CA Final AIR III

Shrushti Keyurbhai Sanghavi

611/ 800

Surat


CA Topper 2022: Mumbai student is national CA topper, मीत शाह  देश में पहले स्थान पर 

Meet Shah, 22, who graduated from HR College, Mumbai last year, said that he was only hoping for a good rank, but getting the first rank in the country was totally unexpected. He said, "I studied hard for it, but the exams are very unpredictable."


Meet Shah, CA topper for 2022.

MUMBAI: Twenty-two-year-old Meet Shah from Mahalaxmi, Mumbai, topped the chartered accountancy (CA) final exams in the country. The Institute of Chartered Accountants of India (ICAI) announced the results on Friday morning.

अक्षत गोयल देश में दुसरे स्थान पर


श्रुति  सिंघवी देश में तीसरे स्थान पर



जयपुर में सारे  टोपर वैश्य समाज से 


Thursday, July 14, 2022

GURDAS RAM AGRAWAL - A GREAT REVOLUTIONARY

GURDAS RAM AGRAWAL - A GREAT REVOLUTIONARY

वैश्य शिरोमणि अमर क्रांतिकारी गुरदास राम अग्रवाल की जयंती 14 जुलाई को मनाई जाएगी मात्र 17 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में अपना सर्वस्व लुटाने वाले एकमात्र अग्रवाल क्रांतिवीर है वैश्य शिरोमणि लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए पूरी तैयारी के साथ गुरुदास राम अग्रवाल दौड़ पड़े जहां लाला जी की हत्या हुई थी इस क्रांतिकारी ने जब देखा है कि भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने सांडर्स का वध कर दिया है गुरदास राम अग्रवाल देश को आजाद कराने के लिए कोई बड़ा काम बड़ी क्रांति करना चाहते थे अंग्रेज अफसरों की एक बैठक में बम फेंककर कई अंग्रेज अफसरों को मौत की नींद सुला देने वाले इस क्रांतिकारी ने अपने चार साथियों को भगाकर और स्वयं को ब्रिटिश पुलिस के हवाले कर दिया जेल में अनेक यातनाएं सहकार 15 15 दिन भूख और प्यास सहने के बाद भी साथियों के नाम नहीं बताए जल्लाद ब्रिटिश हुकूमत के अफसरों ने 17 साल के इस क्रांतिवीर को इतने कोड़े मारे के इनकी चमड़ी के रेशे हवा में लहराने लगे लेकिन यह क्रांतिवीर अंतिम समय तक अपने साथियों के नाम ना बता कर हमेशा हमेशा के लिए जेल में शहीद हो गया आइए हम सब मिलकर इस महान क्रांतिकारी की जयंती को पूरी श्रद्धा के साथ मनाएं

लाला जानकीदास का तालाब

लाला जानकीदास का तालाब, बेरी, झज्जर, हरियाणा
 
जानकीदास के तालाब की मार्मिक दास्तान. जो पिछले साल बेमौत ही प्रापर्टी डीलरों के हत्थे चढ़ गया। बेरी कस्बे के धनी महाजन लाला जानकीदास ने 50 लाख लाखौरी ईंटों से इस तालाब का निर्माण 1900 के आसपास करवाया था। जिसकी चारदीवारी के अंदर एक 32 दरवाज़ों और 64 नक्काशीदार पिलरों वाला हवादार रंगमहल, एक शेखावाटी स्टाइल का कुआं, एक 30 फीट गहरा चकोर तालाब और साथ में एक भित्ति चित्रों से सजी दो मंजिला यादगार छतरी इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती थी। लेकिन अब ये सब हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है।

Beri is a town, Village, and a Municipal committee in the Jhajjar district in northern Indian state of Haryana, which previously fell under District Rohtak, Haryana, is now a part of newly created District Jhajjar from 15 July 1997 onwards. The City is located 60 kilometres (37 mi) northwest of Delhi and is a trading center. Beri is one of the largest tehsils of Haryana State including 77 villages. Beri City is situated on Road Connecting Gurgaon to Hisar and Kosli(Rewari) to Rohtak. This is the mid of These four Cities. The First Chief Minister of Haryana, Bhagwat Dayal Sharma, was from Beri village. The Town has a World's Famous temple dedicated to the goddess Mata Bhimeshwari Devi.The "Beri Pashu Mela" or "Beri Cattle Fair" is celebrated in the days of Navratra every year.




The elders of Haryana often tell an anecdote, when Chinese traveler Hiuen Tsang asked for water from a Haryanvi woman during her travels, she gave it instead of water by filling a bottle of milk. Hiuen Tsang said that he had asked for water. In response, the Haryanvi woman said, "We do not have the tradition of providing water to the guests. But the manner in which the traditional water structures have been ruined in the recent past, it seems that a serious water crisis will arise in Haryana, far away from milk.

History of Janki Das Talab

During the neglect of the ponds, the ponds here made for public use turned into encroachment, filth and sewage pits of the town. There were no such special ponds, which Seth used for himself or which were princely. Seeing the condition of Lala Jankidas's pond near the police station situated on Kalanaur road of Beri town of Jhajjar district, it seemed like this. But after a long struggle, finally this pond also got lost in the pages of history last year forever. Due to the rising property prices, this pond was in the vulture-like eyes of the dealers who wanted to earn money by selling it. The boundary wall of this very grand pond remained in ruins till last year, but its condition was not good. Bricks were starting to come out of them. The trees with very beautiful and deep shade were still there. This was the only pond among the Beri ponds, for whose maintenance the outer boundary wall was made and arrangements were made for the watchman. Till now 12-15 feet of water was standing in this pond, about 30 feet deep, but all the four Ghats started sinking inwards.

Panoramic view of Seth Janki Das's Talab.
"It was built by Seth Jankaki Das, a wealthy Mahajans of Beri Town sometimes in early 1900's. "

It is estimated that more than 50 lakh Lakhuri bricks used for the construction of these Ghats and the inner boundary wall. Its watchman's responsibility rests with the family of 55-year-old Bhateri. The family of his son, the mason Pradeep, also lives here. According to Bhateri, there was no maintenance of this pond for a long time. Although many people are of the opinion that this pond was built by the Seths for themselves. But most elders do not agree with this. Local people say that till about 60 years ago, the water in the cauldron on this pond was hot in winter. The people who used to come here to take a bath, used to bring a bucket of water from the pond and put it in the cauldron and instead take a bucket of hot water. Gau Ghat was also built on the pond. This pond was also used for swimming competition. These three things confirm that this pond was also for public use.

Aerial head over view of Janki Das's Cenotaph

Inner view of Janki Das Palace

Looking at the structure of the pond and the arrangements for its maintenance, it seemed that it is a specimen of architecture that is several hundred years old. According to experts, this pond was made of bricks of potters who were expert in making ponds of beri. The masons here built it, but seeing its artistic craft and strength, it seems as if it was built by the Mughal masons.

A little away from the pond, there was a bungalow like a palace about five feet high. It has 16 doors to enter. There are several dozen skylights and windows. More than 250 mirrors installed in these skylights show how much money Seth Jankidas must have spent to increase the beauty and usefulness of this pond. However, many of these glasses were now broken. It had 32 beautiful doors around it. 64 pillars made of stone added to the beauty and strength of the verandahs. This pond was a group of buildings which included a windy palace, a square pond, a well and a two-storey memorial chhatri. In the octagonal chhatri, the remains of the frescoes on the walls were present till the last time. The date of its construction was marked on the walls of this chhatri, which tells its construction year 1902 AD (Samvat 1959). Many local people are of the opinion that this pond was built around 1885, about 17 years before this Chhatri.

Beautiful small houses were also built on one side of the pond. Experts say that after water sports, people used to rest in the bungalow. It was also an important center of group discussion on social issues. Surrounded by dense trees from all sides, this very beautiful pond was built around 1900. The eminent Seth Jankidas here built it in the memory of his brother with the help of a trust.

SABHAR : 
The Haryana Junction
theharyanajunction.com/jankidas.html

Wednesday, July 13, 2022

BHANDASAR JAIN MANDIR - BIKANER

BHANDASAR JAIN MANDIR - BIKANER

एक ऐसा मंदिर जिसके निर्माण में पानी के जगह शुद्ध देशी घी का प्रयोग हुआ...



हाँ जी, राजस्थान के बीकानेर मे भांडासर या भांडाशाह जैन मंदिर, एक ऐसा मंदिर है जिसको बनाने मे मिश्रण के लिए पानी की जगह देशी घी का उपयोग किया गया था इस मंदिर का निर्माण 15 वी शताब्दी के एक व्यापारी भांडाशाह ओसवाल द्वारा करवाया गया था...

तीन मंज़िला मंदिर को बनाने मे लाल और पीले पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, इस की दीवारों, खिड्कियों और छत पर आपको उस समय की नायाब कारीगरी देखने को मिलेगी, पत्ती नुमा चित्रकारी, फ्रेसको चित्रकारी, शीशा पर की गयी कारीगरी देख कर आप सिर्फ और सिर्फ देखते ही रह जाएगे पांचवे तिर्थांकर को समर्पित इस जैन मंदिर की ख्याति देश ही नहीं अपितु विदेशो तक है।

भांडाशाह ओसवाल ने पानी की जगह घी से मंदिर का निर्माण क्यों करवाया इससे जुड़ी कुछ कहानियाँ वहाँ के पुजारी ने बताई जो कितनी सत्य है कोई नहीं जानता, पर रोचक बहुत है।

1. भांडाशाह ओसवाल घी के व्यापारी थे उनकी जब मंदिर के निर्माण को लेकर मिस्त्री के साथ अंतिम निर्णय की बैठक चल रही थी तब दुकान मे रखे घी के पात्र मे एक मक्खी गिर कर मर गयी तो सेठ जी ने मक्खी को उठा कर अपने जूते पर रगड़ लिया और मक्खी को दूर फेक दिया, पास ही बैठा मिस्त्री ये सब देख कर आश्चर्यचकित हो गया की सेठ कितना कंजूस है मक्खी मे लगे घी से भी अपने जूते चमका लिए, फिर मिस्त्री ने सेठ की दानवीरता की परीक्षा लेने की ठानी, मिस्त्री बोला सेठ जी मंदिर को शताब्दियों तक मजबूती देने के लिए इसमे इस्तेमाल होने वाले मिश्रण मे पानी की जगह घी का उपयोग करना उचित रहेगा, सेठ जी भोले-भाले थे, उन्होने घी का इंतजाम भी करवा दिया, जब मंदिर का निर्माण शुरू किया जा रहा था उस समय मिस्त्री ने सेठ जी से क्षमा मांगी और कहा कि मैंने एक दिन आपको घी मे पड़ी मक्खी से अपने जूते चमकाते देखा तो सोचा की आप बहुत कंजूस हो पर सेठ जी आप तो बहुत बड़े दिल के दानवीर हो मुझे माफ कर दीजिये। ये घी वापस ले जाइए मै मंदिर निर्माण मे पानी का ही इस्तेमाल करूंगा, तब सेठ जी ने कहा कि वो तुम्हारी ना समझी थी कि तुमने मेरी परीक्षा ली अब ये घी भगवान के नाम मैंने दान कर दिया है सो अब इसका इस्तेमाल तुमको मंदिर निर्माण मे करना ही होगा, मिस्त्री ने मंदिर निर्माण मे 40 हज़ार किलो घी का इस्तेमाल किया, आज भी तेज गर्मी के दिनो मे इस जैन मंदिर की दीवार और फर्श से घी रिसता है।

2. राजस्थान के कई इलाके शताब्दियों से पानी की कमी को झेल रहे है, उनमे से एक ये गाँव भी था, जहां सेठ भांडाशाह ओसवाल रहते थे, जब सेठ जी ने मंदिर निर्माण के विचार को सभी गाँव वालों से साझा किया तो सभी ने कहा की पानी की बहुत समस्या है, आप ये मंदिर निर्माण कही अन्य जगह करवा लीजिये यहाँ ग्रामीणो को पीने तक को पानी नहीं है। पानी की समस्या को देखते हुए सेठ जी ने मंदिर निर्माण मे देशी घी का प्रयोग करवाया और मंदिर का निर्माण अपने ही गाँव मे करवाया।।

Sunday, July 10, 2022

Thursday, July 7, 2022

सबसे अच्छे नागरिक "बनिए"

सबसे अच्छे नागरिक "बनिए"

टवेनिएर ने अपनी पुस्तक में वैश्य समाज के बारे ये लिखा है -
~ ये समाज अपनी व्यापारिक सूझबूझ से चतुर यहूदियों को भी पछाड़ सकता है।
~ ये अपने बालको को बचपन से ही चतुर बनाने के लिए सड़को पर खेलने कूदने नहीं देते और साथ रख इन्हे बारीकियां सिखाते है।
~ बाकी बालको के तुलना में इस समाज के बच्चे न कलम और न कोई काउंटर चलाते है वरन याददाश्त के सहारे बड़े बड़े गणित के सवाल सुझला लेते है।
~ पिता सदैव अपने बच्चो को साथ रख व्यापार करता है।
~ इस समाज के चलाये हुए अंक पूरे भारत में प्रचलित है।
~ यदि इस समाज के किसी व्यक्ति से कोई झगड़ा करता है तो ये बड़ी शांति से सुनते है - प्रतिउत्तर नहीं देते।
~ ये समाज कभी वो पदार्थ नहीं खायेगा जिसमे कभी भी जान रही हो।
~ ये लोग आपस में कभी मार पिटाई नहीं करते - कभी युद्ध में भाग नहीं लेते।


टवेनिएर अपनी पुस्तक में इन व्यापारियों की एक खास तकनीक का उल्लेख करता है - लिखता है - ये व्यापार कुशल लोग केवल सांकेतिक भाषा में डील करते है। एक मुट्ठी का मतलब पांच सौ , एक ऊँगली सौ , आधी मुड़ी हुई ऊँगली पचास। ग्राहक केवल सर हां या ना में हिला कर डील करता है। अनेको जगह - गोलकोण्डा से आगरा से दिल्ली से ढाका से पटना तक टवेनिएर ने ऐसे ही सौदे किये है !

एक दो जगह वैश्व समाज के बारे में लिखा है - ये लोग केवल दाल, चावल, खिचड़ी खा कर गुजारा कर लेंगे , अच्छा न पहनेगे लेकिन कर आदि देके अपने दायित्व पूर्ण करेंगे ।

(Brahman Baniya Hegemony)
ये समाज ब्राह्मण और पुजारियों का बड़ा सम्मान करता है। जब मथुरा के कृष्ण मंदिर के बड़े पुजारी का देहांत हो गया तो आगरा के सबसे बड़े व्यापारी विट्ठल दास ने खाना पीना तज दिया और चार दिन में अपने प्राण त्याग दिए। पुजारी के प्रति इस व्यापारी की सम्पूर्ण निष्ठां थी।

इसलिए सबसे अच्छे नागरिक "बनिए"।

SETH BIHARI LAL KA MANDIR

SETH BIHARI LAL KA MANDIR

सेठ बिहार लाल ने 160 वर्ष पहले करवाया था इस मंदिर का निर्माण, जहां अंग्रेज अपनी प्रतिमा स्थापित करवाने पर अड़ा था।


कानपुर से 60 किमी की दूरी पर स्थित घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव बुढ़वां में करीब 160 साल पुराना श्रीराधा-कृष्ण का मंदिर है।इसकी नींव अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान जमीनदार सेठ बिहारी लाल ने रखवाई थी।मंदिर की लंबाई करीब डेढ़ सौ फिट ऊंची और यहां पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर बड़ा मेला लगता है।इस दिन यहां पर प्रेमी जोड़े आते हैं और श्रीराधा मां-कृष्ण के दरवार पर माथा टेक कर विवाह की मन्नत मांगते हैं।

जब जमीनदार यहां पर कुएं का निर्माण करवा रहे थे, तब जमीन के नीचे से श्रीराध-कृष्ण की मूर्ति निकली थी। उन्होंने अपने घर को तोड़ाकर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।इसकी भनक अंग्रेज जनरल हैवलॉक को हुई तो वह आ धमका और मंदिर के गुंबद पर अपनी प्रतिमा विराजमान कराने के लिए अड़ गया।अंग्रेज ने प्रतिमा गुंबद पर रखते ही वह जमीन पर गिर गई।बावजूद जनरल हैवलॉक ने नहीं माना और एक माह तक मंदिर परिसर पर डटा रहा।आखिरकार हार कर उसने श्री राधाकृष्ण से माफी मांगी और वहां से चला गया। फिर गांववालों ने वहां पर राधा मां की मूर्ति रखवाई।

जमीन से निकली थी मूर्ति

घाटमपुर और जहानाबाद के बीच स्थित बुढ़वा गांव में यह एतिहासिक श्रीराधा-कुष्ण मंदिर है।जो करीब 160 साल पुराना है।मंदिर के मंदिर श्रीराध-कुष्ण की प्रतिमा विराजमान है।यहां पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बड़ा मेला लगता है।हजारों की संख्या में भक्त मंदिर परिसर पर आकर श्रीराधा-कृष्ण के दर पर माथा टेक मन्नत मांगते हैं।पुजारी बताते हैं कि जमीनदार सेठ बिहारी लाल अपने घर के बाहर कुआं खुइवा रहे थे, तभी जमीन से करीब तीस फिट नीचे श्रीराधा-कृष्ण की मूर्ति मिली। मजदूरों ने सेठ को जाकर इसकी जानकारी दी।सेठ ने घर को ढहा कर कुएं के पास करीब डेढ़ सौ फिट ऊंचे मंदिर का निर्माण करवाया। विधि-विधान से मंदिर के अंदर श्रीराधा-कृष्ण की मूर्ति की स्थापना करवाई। गांववालों के कहने पर सेठ ने गुबंद पर बाजार से खरीदकर एक और मूर्ति मंगवाई और उसे वहां स्थापित करवाने लगा।

तभी आ धमका अंग्रेज जनरल हैवलॉक

कानपुर छावनी में जनरल हैवलॉक तैनात था।इसी दौरान क्रांतिकारियों और गोरों की फौज के बीच साढ़ नदी के पास यु़द्ध होने लगा।जानकारी मिलते ही जनरल हैवलॉक अपनी टुकटी के साथ वहां पहुंची और क्रांतिकारियों का कत्लेआम करने के बाद वह सीधे बुढ़वा गांव पहुंच गया। जनरल हैवलॉक ने सेठ को बुलवाया और मंदिर के गुंबद पर अपनी मूर्ति लगवाने को कहा।सेठ के साथ गांववालों से इसका विरोध किया तो जनरल ने सौ से ज्यादा लोगों को अरेस्ट कर घाटमपुर भिजवा दिया।जनरल हैवलॉक ने गांववालों को छोड़ने के बदल मंदिर पर अपनी प्रतिमा स्थापित करवाने की शर्त रख दी।गांववालों को अंग्रेज की बात माननी पड़ी और उसकी मूर्ति को मंदिर के गुंबद पर जैसे स्थापित करने के लिए बढ़े वैसे ही वह टूट कर जमीन पर गिर गई।पूरे एक माह तक जनरल हैवलॉक अपनी मूर्ति को गुंबद पर स्थापित करवाने के लिए जद्दोजहद करता पर कामयाबी नहीं मिली।जनरल हैवलॉक को श्रीराधाकृष्ण की शक्ति के आगे सरेंडर करने के साथ ही वहां से माफी मांगकर निकलना पड़ा।

क्रांतिकारियों की बना शरणस्थली

पुजारी ने बताया कि जनरल हैवलॉक के जाने के बाद तात्या टोपे, नान पेशवा, सैयद माल्टा सहित दर्जनों क्रांतिकारी अंग्रेज सेना से बचने के लिए मंदिर के अंदर रहते थे। इसकी जानकारी जब अंग्रेजों को हुई तो जहानाबाद के थानेदार ने मंदिर का घेराव कर लिया। क्रांतिकारियों को समर्पण के लिए कहा, पर जब अंदर से उन्होंने फायरिंग की तो सिपाही भागे। इसी की फाएदा उठाते हुए क्रांतिकारी पीछे के दरवाजे से निकल गए। कुछ देर के बाद अंग्रेज फौज आ धमकी। फौजियों ने मंदिर के अंदर जैस कदम रखा वैसे उन पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया। इस दौरान कई अंग्रेज फौजी मारे गए तो कई घायल हो गए। बदले में अंग्रेजों ने मंदिर का क्षति पहुंचाने के लिए उसमें गोले दागे, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं।

यहां टूटे रिश्ते जुड़ते हैं

मंदिर के पुजारी ने बताया कि जमीनदार की मौत के बाद उनके बेटे ने मंदिर की देखरेख की और उनके निधन के बाद अब सेठ राजाराम जी मंदिर के जीर्णोव्द्धार के लिए पैसे देते हैं। वह परिवार सेमत स्वरूप नगर में रहते हैं और एक बड़े सराफा कारोबारी हैं।पुजारी ने बताया कि यहां पर जन्माष्टमी की दिन भक्तों की अटूट भीड़ उमड़ती है। प्रेमी जोड़े दूर-दराज से आते हैं और मंदिर पर पूजा-अर्चना करने के बाद अपने विवाह की मन्नत मांगते हैं।पुजारी बताते हैं कि जिन युवतियों की शादी के बाद ससुराल पक्ष से अनमन हो जाती है तो वह यहां आकर श्रीराधा-कृष्ण के दर पर पूजा करती हैं। महज कुछ दिन के बाद ससुरालवाले झगड़ा भूलकर बहू को विदा करा ले जाते हैं। पुजारी ने बताया कि तलाकशुदा महिला-पुरूष मंदिर में आते हैं और श्रीराधा-कृष्ण में हाजिरी लगाकर मिलने की प्रार्थना करते हैं।

साभार : नरसिंह सेना 

Sunday, July 3, 2022

AJIT BAJAJ - DIYA BAJAJ - पिता पुत्री ने विजयी की सात सबसे ऊँची चोटिया

AJIT BAJAJ - DIYA BAJAJ - पिता पुत्री ने विजयी की सात सबसे ऊँची चोटिया 



Chaitanya Gupta Honored With Harvard World Records London

Chaitanya Gupta Honored With Harvard World Records London

Chaitanya Gupta Honored With Harvard World Records London For Outstanding Work As A Vocalist And Guitarist Award


Chaitanya Gupta of Khaliyar Ward of Mandi, Municipal Corporation of Himachal Pradesh has registered his name in the Harvard World Records in the field of music. Chaitanya was awarded the Harvard World Records London for Out Standing Work as a Vocalist and Guitarist Award for his outstanding work in the field of music. Chaitanya has been honored with a medal and certificate. Chief Minister Jai Ram Thakur honored Chaitanya Gupta by wearing this medal and congratulated him and wished him a bright future. Chaitanya said that after online verification, the team of Harvard World Records of London inspected his songs and guitar playing for about six hours.

After this he was selected for this award. Chaitanya credits this achievement to his mother, grandmother and maternal uncle. Chaitanya Gupta is the first young artist of the state to make this record. Chaitanya, who has a passion for singing since childhood, is a civil engineer. He has completed two years’ Diploma in Guitar and six years’ Vocal degree from Prayag Sangeet Samiti, Allahabad. Singing has been received from Umesh Bhardwaj, Director of Sangeet Sadan Academy Mandi and Guitar education from Mukesh Bhatt, Praveen Guleria and Gopinath Kamal in Punjab. Told that he has also got an opportunity to give guest lecture at IIT Mandi.

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Chaitanya Gupta of Khaliyar Ward of Mandi, Municipal Corporation of Himachal Pradesh has registered his name in the Harvard World Records in the field of music. Chaitanya was awarded the Harvard World Records London for Out Standing Work as a Vocalist and Guitarist Award for his outstanding work in the field of music. Chaitanya has been honored with a medal and certificate. Chief Minister Jai Ram Thakur honored Chaitanya Gupta by wearing this medal and congratulated him and wished him a bright future. Chaitanya said that after online verification, the team of Harvard World Records of London inspected his songs and guitar playing for about six hours.

After this he was selected for this award. Chaitanya credits this achievement to his mother, grandmother and maternal uncle. Chaitanya Gupta is the first young artist of the state to make this record. Chaitanya, who has a passion for singing since childhood, is a civil engineer. He has completed two years’ Diploma in Guitar and six years’ Vocal degree from Prayag Sangeet Samiti, Allahabad. Singing has been received from Umesh Bhardwaj, Director of Sangeet Sadan Academy Mandi and Guitar education from Mukesh Bhatt, Praveen Guleria and Gopinath Kamal in Punjab. Told that he has also got an opportunity to give guest lecture at IIT Mandi.

MAHARASHTRIAN VAISHYA COMMUNITY - महाराष्ट्रियन वैश्य समुदाय

MAHARASHTRIAN VAISHYA COMMUNITY - महाराष्ट्रियन वैश्य समुदाय 

कोंकणस्थ वैश्य:

इस समुदाय की मूल बस्ती गोदावरी तिरी मुंगीपैठन में थी। देवी दुर्गा के द्वारा किये गए सूखे के दौरान, यह समुदाय तितर-बितर हो गया था और ये लोग विभिन्न घाटों के माध्यम से कोंकण आए और वहां बस गए, इसलिए उन्हें "कोंकणस्थ वैश्य" कहा जाता है।

कोंकण में दो प्रमुख व्यापारिक वर्ग हैं। वर्तमान समुदाय रत्नागिरी जिले के प्रभानवल्ली और संगमेश्वर में आया  और फिर अन्य जिलों जैसे करवीर (कोल्हापुर) और कोलाबा (रायगढ़) में चला गया। ऐसी जानकारी वैश्य संदर्भ पुस्तक में है।

बीजापुर के दरबार से विभिन्न परिवारों को मुस्लिम आप्रवास का चार्टर मिला और बाद में उनका उपनाम शेट्टी पड़ा। इसे आज भी इसी नाम से जाना जाता है। विशालगढ़ संस्थानों में वैकुल परिवार के पुराने अभिलेखागार में अभी भी कई चार्टर हैं।

रायगढ़ जिले के वैश्य

मराठी सत्ता के उदय से पहले आदिलशाह, निजामशाह, नवाब सिद्दी ने शासन किया। महाड, मानगाँव, पोलादपुर का क्षेत्र आदिलशाह के नियंत्रण में था जबकि पश्चिमी तट पर मुरुद, श्रीवर्धन, म्हसला, रोहा के क्षेत्र सिद्दी के अधीन थे। वैश्य इस क्षेत्र में सुपारी, नारियल, मसाले आदि का व्यापार करने आते थे, उन्हें रायगडी वैश्य कहा जाता है।

वैश्यवाणी

समुदाय मुख्यतः अलीबाग, श्रीवर्धन, अडगांव, बोरली पंचायत में पाया जाता है। इस क्षेत्र में अंतिम नाम मापुस्कर, कोकाटे, खाटू, पोवार, गांधी, देवलेकर हैं।आखिरकार जब रेलवे शुरू हुआ तो कुछ व्यापारियों ने मुंबई की ओर रुख करना शुरू कर दिया।जब वे मुंबई आए तो कुछ लोगों ने प्रिंटिंग प्रेस और पत्ते के गोदाम शुरू कर दिए। देवलेकर और हिगिष्टे ने अच्छा काम किया, जबकि मापुस्कर और खाटू ने पान और तंबाकू के गोदाम पूरी तरह से चलाए। अन्य किराना और कपड़ा व्यवसाय में हैं।

कुदाल वैश्य

जब व्यापारी समूह  घाट से कोंकण में उतरे, तो उनमें से कुछ कुदाल प्रांत में चले गए। उस समय कुदाल प्रांत रत्नागिरी जिले में था। सावंतवाड़ी संस्थान से पहले से ही कुदाल इस प्रांत का नाम रहा है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को कुदल वाणी या कुदाली वैश्य कहा जाता है। उनकी मुख्य बस्तियां सावंतवाड़ी शहर, कुदाल, बंदे, अरवंडे, मनगाँव, अकेरी, दापोली, दानोली, अंबोली, अंब्राड, कासल, कुंभावडे, अंबावड़े घोडगे और अन्य छोटे गाँव हैं, साथ ही पणजी, म्हापसे, दिचोली, सकली, फोंडे, पेडने गोवा आदि में और बेलगाम, कोल्हापुर जिले में है। इसके अलावा मुंबई और पुणे में बड़ी संख्या में नौकरियां हैं।

पटनास्थ वैश्य: 

पाटन के वैश्य समुदाय पहले रायपाटन और खरेपाटन में बसे होंगे। खरेपाटन प्राचीन काल से फल-फूल रहा है। यह एक व्यापारिक केंद्र और खाड़ी बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था। तो यहाँ के वैश्य समुदाय को पाटन से वैश्य नाम मिला होगा। उनकी आबादी सीधे गगनबावड़ा, भुईबावड़ा, पन्हाला, भूदरगढ़ तालुका और राधानगरी-चांडे रोड से कोल्हापुर तक पाई जाती है। घाटों पर इनकी आबादी अधिक है। यह रत्नागिरी, राजापुर और देवगढ़ तालुकों के केंद्रीय विभाजन में भी पाया जाता है। इसके अलावा यह पुणे और मुंबई शहर में पाया जाता है। अतीत में, ये लोग बड़ी मात्रा में खाद्य पत्ते, केले, हल्दी और लिनन का व्यापार करते थे। बामने गांव के लाडने, कोकटेवाड़ी, जैतपकरवाड़ी में वैश्य समुदाय  के घर और मंदिर हैं. इनके  मालिक और पुजारी पाटन के वैश्य हैं। उनके उपनाम हैं - कांडे, कुदतरकर, कोरगांवकर, धवन, तनवड़े, नारकर, महाजन, लाड, कोड़े, खड़े, फोंडगे, बिदे, शिरसाट, शिरोडकर, सपले, कामेरकर, कुडलकर, कोकटे, खवाले, खेतल, जैतापकर, नर, हल्दे आदि। ..

ठाणेकर वैश्य:

ठाणेकर वैश्य समाज अंबरनाथ, अतगाँव, अंबाड़ी, बेलापुर, भिवंडी, बदलापुर, चिंचघर, डोंबिवली, दुगड़, वसई, कुलगाँव, कल्याण, खतिवली, खरदी, मुरबाद, पड़घा, शाहपुर, टिटवाला, ठाणे, वासिन्द, विक्रमगढ़, वाडा, वज्रेश्वरी, जवाहर यहाँ फैला हुआ है। यह समाज यहां कब आया, इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। वह करीब 150 साल पहले नासिक नगर और बोरघाट से व्यापार के सिलसिले में यहां आया होगा। ठाणेकर वैश्य किराने का सामान, चीरघर, कपड़ा, मिठाई का व्यापार करते थे। मुंबई जैसे औद्योगिक शहर के करीब होने के बावजूद, समुदाय के पास इस समुदाय का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

ठाणेकर वैश्यों के  उपनाम:

तेलवणे, दलाल, पाटकर, गुजरे, महाजन, सोंताके, मालाबारी, कोथिमबारे, शेठे, पांडव, म्हात्रे, खड़कबन, पनवेलकर, खिस्ताराव, शेटे, गांधे, पथरी, बिड़वी, मुरबडकर, तंबोली, कोंडलकर, अंबवाने, रोज, उबाले, जगे लाजे , हरदास, कबड्डी, भरणुके, बड़े, चौधरी, मनोर, पुण्यार्थी, मुंडे, सिगसाने, आंग्रे, जुकर, शहाणे, शेरेकर, राखाडे, भोपात्राव, गोरी, वाणी, ज़िंजे, निकेते, रोठे, पेनकर, पुनेकर, आनंद, दुगड़े, पक्के , दामोदर, ठाकेकर, लोखंडे, झुगारे, ठाकरे, पोते, दुगड़े, गोरे, भुसारी, लाड, तांबडे, टोडलीकर भालू

कश्यप अधिकांश ठाणेकर वेश्याओं की जनजाति है। देवता तुलजा भवानी और जेजुरी के खंडोबा हैं। अन्य हो सकते हैं

कुछ उपनाम सभी वैश्य समुदायों में समान हैं लेकिन जैसे-जैसे निवास स्थान बदल गया है, कुल और गोत्र अलग-अलग देखे गए हैं।

बेलगाम वैश्य / करवारी वैश्य:

सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों के उत्पीड़न के कारण कई वैश्य गोवा से पलायन कर गए। इनमें से कुछ परिवार रामदुर्ग अंबोली (रामघाट) चोरले घाट के रास्ते बेलगाम चले गए। इस समाज में तीन मुख्य प्रकार के वैश्य हैं। नार्वेकर वैश्य, बांदेकर वैश्य, पेडनेकर वैश्य।

नार्वेकर वैश्य:

वर्तमान में यह बेलगाम, खानापुर, नंदगढ़, लोंधा, अलनवर, बीड़ी, कालघाटगी, दांडेली, यल्लापुर, अंगोल, तुडे, मुरुकुंबी, कडोली आदि में निवास करता है। उनके गांव से उपनाम हैं।

बांदेकर वैश्य:

वे मूल बांध को छोड़कर कारवार, अकोला, हल्याल, कुम्था और होनावर में बस गए। बांदेकर को इसका नाम बांदा से मिला। बेलगाम शहर, पारसगड, अथानी, गोकक की आबादी सबसे ज्यादा है। उनके अंतिम नाम पोकले, ताइशते, शिरसैट, मुंगे, वेंगुर्लेकर, नवगी, तेली, कुशे आदि हैं।

पेडनेकर वैश्य म्हनून पेंडनेकर का कहना है कि वह पेडने से पलायन कर गए थे। ये लोग नाव के बगल में चादरें लगाते हैं। ये लोग किराना दुकान, मिठाई, नारियल, केला, सुपारी, चना, कुरुमुरे आदि का व्यापार करते थे।

अन्य वैश्य समुदाय की उपजातियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी -

लाड वाणी 

लाड वाणी बेलापुर, हल्याल और शिरसी में स्थित है। पहले ये लोग घोड़ों का व्यापार करते थे। अब वह कपड़े और किराने का सामान बेचने के कारोबार में है।

नगर जिले के नगर और शेवगांव तालुका से लाड वाणी गुजरात के लहर क्षेत्र से इस क्षेत्र में आए थे। उनके परिवार के देवता अशनाई में आशापुरी, तुलजाभवानी, शिंगणापुर में महादेव और पंढरपुर में विठोबा हैं। ये शाकाहारी हैं। पीढ़ी का पेशा दुकानदारी है।

वैश्य समाज के प्रकार

कोमाती वैश्य:

कसार वैश्य:

लिंगायत आवाज

चित्तोड आवाज

हंबड वानी

कुंकारी आवाज

कठोर आवाज

नेव वानी

कुलवंत वनिक

Saturday, July 2, 2022

RELIANCE GROUP A MEGA COMPANY - INDIAS GROWTH ENGINE

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मेगा एम्पायर:हर मिनट 11.54 लाख रुपए का मुनाफा, हर ढाई साल में निवेशकों के पैसे दोगुने करने वाला रिलायंस समूह


जितनी देर में आप यह खबर पढ़ेंगे, रिलायंस समूह करीब 33 लाख रुपए का मुनाफा कमा चुका होगा। दरअसल, रिलायंस ने पिछले फाइनेंशियल ईयर यानी 2021-22 में 60 हजार 705 करोड़ रुपए का नेट प्रॉफिट हासिल किया…यानी प्रति मिनट 11.54 लाख रुपए। लगभग 50 साल पुराने इस समूह की सफलताओं का राज है इसकी युवा सोच।

मुकेश अंबानी अक्सर अपने पिता धीरूभाई की एक बात दोहराते हैं- ‘रिलायंस की औसत उम्र हमेशा 30 साल रखना।’ मुकेश इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि भारत युवाओं का देश है और बिजनेस बढ़ाने के लिए सोच, कार्यशैली और हर स्तर पर अपनी उम्र 30 रखनी होगी। यही वजह है कि रिलायंस जियो के बोर्ड में अब 30 साल के आकाश चेयरमैन बन गए हैं। अगला नंबर ईशा और अनंत का है।

पॉलीएस्टर, ऑइल रिफाइनिंग से लेकर पेट्रोकेमिकल्स, ई-कॉमर्स, ग्रीन एनर्जी, इंटरनेट और अब रिटेल के रूप में देश पर राज कर रही रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का मार्केट कैप शुक्रवार को बाजार बंद होने तक 16 लाख 29 हजार 596 करोड़ रुपए था।

आज मेगा एम्पायर में जानिए रिलायंस के बारे में…

1000 रुपए की जमापूंजी से शुरू हुआ था बिजनेस, ऑफिस के नाम पर सिर्फ एक टेबल-कुर्सी थी...

धीरूभाई की बात किए बिना रिलायंस को पूरी तरह नहीं समझ सकते। जूनागढ़ के चोरवाड़ में पैदा हुए धीरूभाई (धीरजलाल हीराचंद अंबानी) महज दसवीं तक पढ़े थे, पर बिजनेस रगों में था, तो 1948 में यमन चले गए। अदन में धीरूभाई के बड़े भाई माणिक चंद फ्रेंच कंपनी में काम करते थे। धीरूभाई ने भी वहां पेट्रोल पंप पर काम करने से लेकर सिक्के पिघलाकर पैसे कमाए। फिर 1958 में धीरूभाई पत्नी कोकिला और दो साल के बेटे मुकेश के साथ भारत आ गए। महज एक हजार रुपए की जमापूंजी और एक टेबल रखकर धीरूभाई ने बिजनेस की शुरुआत की। इसके बाद अहमदाबाद के पास कपड़ा मिल शुरू की।

अब बात 1977 की करते हैं, जब रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज पैसा जुटाने के लिए शेयर मार्केट में उतरी। आज की तरह उस समय आईपीओ को लेकर उतना क्रेज नहीं था। फिर भी शेयर्स की सात गुना मांग रही। नौ साल बाद निवेशकों को धन्यवाद देने का मौका आया। 1986 में कंपनी के शेयरधारकों की सालाना मीटिंग में 30 हजार निवेशक शामिल हुए। भारत के कॉरपोरेट इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में लोग पहले कभी शामिल नहीं हुए थे। मार्केट कैप के हिसाब से रिलायंस आज देश की सबसे बड़ी कंपनी है। खास बात है कि कंपनी पूरी तरह से कर्जमुक्त यानी डेट फ्री (Debt Free) है।

रिलायंस... नाम में ही सबकुछ रखा है...

रिलायंस का मतलब ही है भरोसा। धीरूभाई ने यह नाम अपने दोस्त प्रवीणभाई ठक्कर से लिया था। प्रवीणभाई का रिलायंस नाम से बिजनेस था और ये चल पड़ा था। फिर धीरूभाई ने रिलायंस नाम के साथ कारोबार आगे बढ़ाया।


रिलायंस की शुरुआत मसाले से हुई मगर पॉलिएस्टर ने बनाया किंग

यमन में धीरूभाई, चंपकलाल दमानी के साथ काम करते थे। 1958 में भारत लौटे तो चंपकलाल के साथ ही रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन पार्टनरशिप फर्म की स्थापना की। शुरुआत में मसाले जैसे आइटम मध्य और पूर्वी अफ्रीका में निर्यात किए थे। साठ के दशक के बीच में कपड़े और हाथ से बने कपड़ों के व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया।

60-70 के दशक के बीच में धीरूभाई पॉलिएस्टर के व्यापार में बड़ा नाम बन गए थे। 1966 में धीरूभाई ने रिलायंस टेक्सटाइल इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाई। इसी साल अहमदाबाद के पास कपड़ा मिल शुरू की। 1969 में रिलायंस एक्सपोर्ट कंपनी, 1973 में विमल फैब्रिक्स और 1975 में अनिल फैब्रिक्स, दीप्ती टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज और नीना टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज की स्थापना की।

रिलायंस : पॉलिएस्टर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी

विमल, धीरूभाई के बड़े भाई रमणीकलाल के बेटे का नाम था। विमल 70 के दशक में ब्रांड बन गया था ‘ओनली विमल’ स्लोगन बनाया था। देश की टॉप क्लास होटल्स में इसकी ब्रांडिंग की जाती थी। 1991 में हजीरा प्लांट शुरू होने के साथ ही रिलायंस पॉलिएस्टर बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन गई।

रिलायंस दूरदर्शी सोच और सही समय पर सही निर्णय के चलते सफल कारोबारी समूह है...

रिलायंस दिनोंदिन सफलता के पैमाने चढ़ती जा रही थी। फैब्रिक से लेकर तेल तक रिलायंस के पास अवसरों का भंडार था। मुकेश अंबानी कहते हैं कि 90 के दशक के आखिर में हमारे पास दो विकल्प थे। पॉलिएस्टर, प्लास्टिक, रिफाइनरी, ऑइल और गैस के बिजनेस को विस्तार देते हुए वैश्विक स्तर पर ले जाएं। या दूसरा कि अपने कैश फ्लो का इस्तेमाल करते हुए दूसरे बिजनेस में कदम रखें।

धीरूभाई ने निर्णय मुकेश पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कैश फ्लो का इस्तेमाल करोड़ों भारतीयों की जिंदगी बदलने के लिए होना चाहिए। भविष्य तुम्हें चुनना है। और इस तरह आगे की रणनीति तय हुई कि वर्तमान बिजनेस को मजबूत करते हुए भविष्य के व्यापार पर भी निवेश करेंगे।

इस तरह भविष्य के व्यापार यानी इंफोकॉम की स्थापना हुई। मुकेश अंबानी कहते हैं कि 1990 के दशक में हम सेल्युलर लाइसेंस की बोली लगाकर इस क्षेत्र में दाखिल हुए, पर मुझे महसूस हुआ कि असली वैल्यू तो सूचना और कम्युनिकेशन को मिलाने से ही पैदा होगी। इसलिए हमने बिजेनस वेंचर का नाम इंफोकॉम रखा।

पिता की मौत के बाद रिलायंस परिवार में हुआ बंटवारा

साल 2002 में धीरूभाई की मौत के बाद दोनों भाइयों को अरबों की संपत्ति विरासत में मिली। धीरूभाई अपने पीछे कोई वसीयतनामा नहीं छोड़ गए थे। धीरूभाई अंबानी के निधन के कुछ समय बाद ही यह प्रश्न उठने लगा कि इतने बड़े रिलायंस के साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा। इसके बाद मुकेश और अनिल के बीच दूरियां बढ़ती गईं।

मुकेश अंबानी 1981 और अनिल अंबानी 1983 में रिलायंस से जुड़े थे। जुलाई 2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद मुकेश अंबानी रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन बने। अनिल मैनेजिंग डायरेक्टर बने। नवंबर 2004 में पहली बार मुकेश और अनिल का झगड़ा सामने आया। जून 2005 में दोनों के बीच बंटवारा हुआ।

लेखक हेमिश मैक्डोनाल्ड ने अपनी किताब ‘अंबानी एंड संस’ में खुलासा किया कि जब 2002 के बाद मुकेश अंबानी रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन बने थे, तब छोटे भाई अनिल को मुकेश अंबानी से मिलने के लिए उनके सचिव से समय लेना होता था। जो अक्सर नहीं मिलता था। घर पर मुकेश कारोबार की कोई बात ही नहीं करते थे।

बंटवारे के बाद 15 साल में मुकेश की नेटवर्थ 9 गुना बढ़ी, अनिल की जीरो हुई

जून 2005 में बंटवारा तो हो गया, लेकिन किस भाई को कौनसी कंपनी मिलेगी इसका बंटवारा 2006 तक हो पाया था। बंटवारे के बाद मुकेश के हिस्से में पेट्रोकेमिकल के कारोबार रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन पेट्रो केमिकल्स कॉर्प लिमिटेड, रिलायंस पेट्रोलियम, रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां आईं।

छोटे भाई ने अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप बनाया। इसमें आरकॉम, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस एनर्जी, रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेस जैसी कंपनियां थीं। रिलायंस ग्रुप का बंटवारा होने से पहले तक मार्च 2005 में मुकेश और अनिल की ज्वाइंट नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी। उसके बाद 2006 से लेकर 2008 तक तो दोनों भाइयों की नेटवर्थ में ज्यादा अंतर नहीं था।

फिर 2009 में आर्थिक मंदी आई और पूरा खेल बदल गया। दुनियाभर के अमीरों की संपत्ति में गिरावट दर्ज की गई। मुकेश और अनिल अंबानी की संपत्ति में भी बड़ा फर्क यहीं से आना शुरू हुआ। 2008 में मुकेश 5वें और अनिल 6वें नंबर पर थे। लेकिन, 2019 आते-आते अनिल अंबानी तो अरबपतियों की लिस्ट से बाहर ही हो गए। 2006 से लेकर अब तक मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में 9 गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जबकि, फरवरी 2020 में ब्रिटेन की एक कोर्ट में अनिल कह चुके हैं कि उनकी नेटवर्थ जीरो है और वो दिवालिया हो चुके हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी भी रिलायंस समूह के पास

गुजरात के जामनगर में मौजूद रिलायंस की रिफाइनरी दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। 25 दिसंबर 2008 में रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड ने कंपनी चालू करने की घोषणा की थी। यह रिफाइनरी 7500 एकड़ में फैली हुई है और न सिर्फ आधुनिक सुविधाओं से लैस है, बल्कि यह प्राकृतिक सुंदरता से भी भरपूर है।

दुनिया के तीसरे सबसे बड़े मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर ‘जियो’ की कहानी

2012 में रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव्स से वीडियो कांफ्रेंसिंग करते हुए मुकेश अंबानी ने अपनी बात एक चेतावनी के साथ शुरू की- ‘जो चीज हमें यहां लेकर आई है, वो हमें भविष्य की ओर नहीं ले जाएगी।’ मुकेश का इशारा ऑइल की ओर था। वे चिंतित थे कि रिन्यूएबल एनर्जी के दौर में और बढ़ते वैश्विक टेंशन के समय में पेट्रोकेमिकल, क्रूड ऑइल का बिजनेस उन्हें भविष्य का लीडर नहीं बना सकता। साथियों से बात करते हुए मुकेश अंबानी के दिमाग में एक प्लान था। दरअसल 2011 में मुकेश अंबानी की बेटी ईशा छुटि्टयों में घर आई थीं। ईशा येल यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थीं। ईशा ने स्लो इंटरनेट की शिकायत की। और यहीं से जियो की शुरुआत हुई।

रिलायंस में 900 से ज्यादा वैज्ञानिक हैं, 51 फीसदी कर्मचारियों की औसत उम्र 30 साल

धीरूभाई अंबानी की दी हुई सीख- ‘दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अपने साथ जोड़ो’ मुकेश अंबानी हमेशा साथ रखते हैं। कर्मचारियों की संख्या के हिसाब से यह निजी क्षेत्र में टाटा समूह के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। रिलायंस में अभी 2,30,000 लोग काम कर रहे हैं। रिलायंस के कर्मचारियों की औसत उम्र 30 साल है। समूह के 51 फीसदी से ज्यादा कर्मचारी 30 साल से कम के हैं। रिलायंस ने बीते साल 2021 में रिसर्च और डेवलपमेंट पर 2500 करोड़ रुपए खर्च किए। रिलायंस के साथ फिलहाल 900 से ज्यादा शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है।

42 साल में निवेशकों के 10 हजार रु. हो गए 2.1 करोड़ रु.

1977 में रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज का आईपीओ बाजार में आया। 2017 की एजीएम मीटिंग में मुकेश अंबानी ने बताया था कि जिन निवेशकों ने 1977 में रिलायंस के एक हजार रुपए के शेयर खरीदे थे, 2017 में उनकी वैल्यू 16.50 लाख रुपए हो चुकी थी। इस हिसाब से अगर किसी ने 10 हजार रुपए का निवेश किया था, तो उसकी कीमत 2.1 करोड़ रुपए हो चुकी थी। अपनी स्थापना के बाद से रिलायंस के शेयर 2,09,900 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। मुकेश अंबानी ने इसी एजीएम में बताया था कि रिलायंस पिछले 40 साल से लगातार अपने निवेशकों का पैसा औसतन ढाई साल में डबल कर रही है।

रिलायंस के युवा चेहरे...

ईशा और आकाश अंबानी ने रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल बोर्ड 2014 में जॉइन किया था। ग्रैजुएट होने के महज चार दिन बाद ही आकाश ने कंपनी जॉइन कर ली थी।




आकाश अंबानी चेयरमैन-रिलायंस जियो..

पिछले कुछ सालों में आकाश और ईशा के नेतृत्व में रिलायंस ने 15 से ज्यादा कंपनियों का एक्विजिशन किया है। आकाश जियो स्ट्रेटजी टीम का हिस्सा हैं और जियो मार्ट के तकनीकी पक्ष को भी देखते हैं।

अनंत अंबानी...

शुरुआत जियो से ही की थी। ब्राउन यूनिवर्सिटी से पढ़े अनंत रिलांयस के दूसरे बिजनेस में ऑपरेशन गतिविधियों को देख रहे हैं।

ईशा अंबानी...

फैशन पोर्टल अजियो के पीछे इन्हीं का हाथ है। स्टैनफोर्ड और येल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाली ईशा रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल की ब्रांडिंग बॉस हैं। रिलायंस आर्ट फाउंडेशन की भी स्थापना की है।