सबसे अच्छे नागरिक "बनिए"
टवेनिएर ने अपनी पुस्तक में वैश्य समाज के बारे ये लिखा है -
~ ये समाज अपनी व्यापारिक सूझबूझ से चतुर यहूदियों को भी पछाड़ सकता है।
~ ये अपने बालको को बचपन से ही चतुर बनाने के लिए सड़को पर खेलने कूदने नहीं देते और साथ रख इन्हे बारीकियां सिखाते है।
~ बाकी बालको के तुलना में इस समाज के बच्चे न कलम और न कोई काउंटर चलाते है वरन याददाश्त के सहारे बड़े बड़े गणित के सवाल सुझला लेते है।
~ पिता सदैव अपने बच्चो को साथ रख व्यापार करता है।
~ इस समाज के चलाये हुए अंक पूरे भारत में प्रचलित है।
~ यदि इस समाज के किसी व्यक्ति से कोई झगड़ा करता है तो ये बड़ी शांति से सुनते है - प्रतिउत्तर नहीं देते।
~ ये समाज कभी वो पदार्थ नहीं खायेगा जिसमे कभी भी जान रही हो।
~ ये लोग आपस में कभी मार पिटाई नहीं करते - कभी युद्ध में भाग नहीं लेते।
टवेनिएर अपनी पुस्तक में इन व्यापारियों की एक खास तकनीक का उल्लेख करता है - लिखता है - ये व्यापार कुशल लोग केवल सांकेतिक भाषा में डील करते है। एक मुट्ठी का मतलब पांच सौ , एक ऊँगली सौ , आधी मुड़ी हुई ऊँगली पचास। ग्राहक केवल सर हां या ना में हिला कर डील करता है। अनेको जगह - गोलकोण्डा से आगरा से दिल्ली से ढाका से पटना तक टवेनिएर ने ऐसे ही सौदे किये है !
एक दो जगह वैश्व समाज के बारे में लिखा है - ये लोग केवल दाल, चावल, खिचड़ी खा कर गुजारा कर लेंगे , अच्छा न पहनेगे लेकिन कर आदि देके अपने दायित्व पूर्ण करेंगे ।
(Brahman Baniya Hegemony)
ये समाज ब्राह्मण और पुजारियों का बड़ा सम्मान करता है। जब मथुरा के कृष्ण मंदिर के बड़े पुजारी का देहांत हो गया तो आगरा के सबसे बड़े व्यापारी विट्ठल दास ने खाना पीना तज दिया और चार दिन में अपने प्राण त्याग दिए। पुजारी के प्रति इस व्यापारी की सम्पूर्ण निष्ठां थी।
इसलिए सबसे अच्छे नागरिक "बनिए"।
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