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Tuesday, September 26, 2023

ANUSH AGRAWAL -ASIAN GAMES GOLD WINNER

#ANUSH AGRAWAL -ASIAN GAMES GOLD WINNER

Asian Games 2023: भारत को गोल्ड दिलाने वाले अनुष अग्रवाला ने 7 साल की उम्र में संभाल ली थी घोड़े की लगाम

हांगझू एशियन गेम्स के घुड़सवारी ड्रेसेज टीम इवेंट में भारत को 41 साल बाद स्वर्ण पदक जिताने वाली टीम के सदस्य कोलकाता के अनुष अग्रवाला जब पहली बार घोड़े पर चढ़े थे तब उनकी उम्र महज सात साल थी। तभी से उन्हें घुड़सवारी से अटूट प्रेम हो गया था। मां प्रीति अग्रवाल छोटे से अनुश को अक्सर अपने साथ टालीगंज क्लब ले जाया करती थीं।



हांगझू एशियन गेम्स के घुड़सवारी ड्रेसेज टीम इवेंट में भारत को 41 साल बाद स्वर्ण पदक जिताने वाली टीम के सदस्य कोलकाता के अनुष अग्रवाला जब पहली बार घोड़े पर चढ़े थे, तब उनकी उम्र महज सात साल थी।

तभी से उन्हें घुड़सवारी से अटूट प्रेम हो गया था। मां प्रीति अग्रवाल छोटे से अनुश को अक्सर अपने साथ टालीगंज क्लब ले जाया करती थीं। एक दिन वहां खड़े एक घोड़े को देखकर अनुश ने उसपर चढ़ने की जिद कर डाली और बिना डरे उसकी पीठ पर बैठ गए और कसकर लगाम संभाल ली।

Friday, September 15, 2023

PAYAL GUPTA - OCEAN GLOB RACER

#PAYAL GUPTA - OCEAN GLOB RACER

देहरादून,उत्तराखंड की पायल गुप्ता समुद्र पर 27000 मिल की दूरी ओशन ग्लोब रेस(ओसीआर) से पूरी करेंगी।उनके साथ उनकी टीम मेडेन फैक्टर की 12 अन्य सदस्य भी होगी।भारतीय नौसेना ने 50 साल बाद ओशन ग्लोब रेस में हिस्सा लिया है,पायल गुप्ता सदियों पुराने तरीके से दुनिया घूमेंगी।पायल गुप्ता ने समुद्र की गहराईयां पढ़ने में महारत हासिल है।उनके नाम पर कई रेकॉर्ड दर्ज हैं और भारतीय नौसेना में इतिहास भी लिखा है।अब भारतीय नौसेना की लेफ्टिनेंट कमांडर पायल ओशन ग्लोब रेस के लिए ब्रिटेन के साउथेम्प्टन से रवाना हुईं।




देहरादून की पायल गुप्ता 'सॉल्ट इन माई वेन्स'-नौका मेडन की सभी महिला चालक दल का हिस्सा है।इतना ही नहीं चालक दल किसी भी आधुनिक नेविगेशन तकनीक की सहायता के बिना नौकायन कर रहा है।जैसा कि नाविक सदियों पहले किया करते थे।टीम अपनी यात्रा में ग्रहों और सितारों की स्थिति का उपयोग करके पोत की स्थिति की गणना करने के लिए सेक्सटेंट और खगोलीय नेविगेशन का उपयोग कर रही है।जहाज पर कोई जीपीएस,कोई उपग्रह सहायता और कोई कंप्यूटर नहीं है।रेस 10 सितम्बर को साउथम्प्टेन से शुरू होगी।रेस में हिस्सा लेने वाली सभी नौकाएं 1988 से पहले की तकनीक से निर्मित है।
 
यह रेस कुल पांच चरणों में पूरी होगी-
पहले चरण-10 सितंबर 6650 समुद्री मील
दूसरा चरण-5 नवंबर 6650 मील
तीसरा चरण-14 जनवरी 8370 मील
चौथा चरण-5 मार्च 5430 मील
समापन-10 अप्रैल

पायल गुप्ता इस काम के लिए नई नहीं हैं।वह दुनिया भर में यात्रा करने वाली भारत की पहली महिला चालक दल का हिस्सा थीं।यह उपलब्धि उन्हें मई 2018 में हासिल की हुई थी।उस यात्रा की तरह, ओशन ग्लोब रेस में आठ महीने की यात्रा की आवश्यकता होती है।यह दौड़ गोल्डन ग्लोब रेस की तरह है।पायल गुप्ता ने 2014 में भारतीय नौसेना की पांच अन्य महिला सदस्यों संग स्वदेशी निर्मित पल नौका तारिणी के जरिए 254 दिनों में 40000 समुद्री मील की दूरी तय कर दुनिया का चक्कर लगाने का रिकॉर्ड भी कायम किया था।पायल ने इस रेस के लिए विदेश में अपने दल के साथ विभिन्न चरणों की तैयारी कर ली है।
 
ओशन ग्लोब रेस मूल व्हिटब्रेड राउंड द वर्ल्ड रेस को फिर से बनाने का एक प्रयास है।प्रतियोगिता में 300 नाविकों के साथ 14 नौकाएं हैं।दुनिया भर में 27,000 मील की यात्रा में अप्रैल 2024 में साउथेम्प्टन में वापस समाप्त होने से पहले नौकाओं को दक्षिणी महासागर और केप टाउन, ऑकलैंड और पुंटा डेल एस्टे में स्टॉपओवर के साथ तीन ग्रेट कैप को पार करते हुए देखा जाएगा।पायल गुप्ता नौसेना में एक शिक्षा अधिकारी हैं, लेकिन पानी के साथ उनकी पहली यात्रा के कारण उन्हें आईएन एस मंडोवी में तैनात किया गया, जहां उन्होंने नाविका सागर परिक्रमा अभियान के लिए प्रशिक्षण लिया।

यह दौड़ अलग है क्योंकि पायल गुप्ता पचास वर्षों में इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाली पहली भारतीय हैं।'दिसंबर में नौसेना से सेवानिवृत्त होने के कारण पायल गुप्ता समुद्री नौकायन को एक अंतिम मौका देना चाहती थीं।पायल कहती हैं कि नौकायन एक प्रकार की स्वतंत्रता है पायल बताती हैं'मैं खुद को कंप्यूटर के सामने बैठकर कॉर्पोरेट नौकरी करते हुए नहीं देखती।

पायल ने कहा कि उन्होंने कहा, "मैंने नौकायान को बहुत याद किया और यही कारण है कि मैं समुद्र में वापस आई।मैं तीन साल तक समुद्र से दूर थी और मैंने सोचा कि मुझे वापस जाना चाहिए और अपने कौशल का थोड़ा और उपयोग करना चाहिए।उन कौशलों की कड़ी परीक्षा ली जा रही है क्योंकि पायल को दुनिया की परिक्रमा करनी है।वर्ष 2018 में पायल को राष्ट्रपति द्वारा तेनज़िंग नोरगे नेशनल एडवेंचर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

SABHAR: NARSINGH ZEMS

Wednesday, September 13, 2023

Anupriya Goenka Struggle Story

#Anupriya Goenka Struggle Story

Anupriya Goenka Struggle Story; Tiger Zinda Hai | Padmavati And War

कॉलेज के साथ कॉल सेंटर में काम किया, रोज 12 ऑडिशन देती थीं अनुप्रिया गोयनका,  

बिजनेस डूबा तो 14 कमरे का बंगला छोड़ना पड़ा:कॉलेज के साथ कॉल सेंटर में काम किया, रोज 12 ऑडिशन देती थीं अनुप्रिया गोयनका


फिल्म टाइगर जिंदा है में एक्ट्रेस अनुप्रिया गोयनका का एक डायलॉग था- मेरी मां को बोलना, मैंने हार नहीं मानी, मैंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी। ये डायलाॅग भले ही अनुप्रिया पर रील में फिल्माया गया था, लेकिन उन्होंने इसे रियल लाइफ में भी जिया है।


ये सीन फिल्म 'टाइगर जिंदा है' का है। फिल्म में अनुप्रिया ने पूर्णा नाम की लड़की का किरदार प्ले किया था। लीड रोल में सलमान खान और कटरीना कैफ थीं।

उनके इसी संघर्ष को करीब से जानने के लिए मैं कई दिनों से अनुप्रिया से मुलाकात करने की कोशिश कर रही थी। बिजी शेड्यूल के कारण मुलाकात तो नहीं हो सकी, लेकिन हमारी बात टेलिफोनिक हुई।

बात शुरू होते ही उन्होंने देरी के लिए माफी मांगी। थोड़ी औपचारिकता के बाद मैंने उनके बचपन के बारे में जानना चाहा।

वो कहती हैं, कानपुर के एक सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में मेरा जन्म हुआ। पापा का गारमेंट एक्सपोर्ट बिजनेस था। हम 4 भाई-बहन हैं। हमारा परिवार 14 कमरों वाले बंगले में रहता था। 4-5 गाड़ियां थीं। नौकर-चाकर भी थे। कभी किसी ने नहीं सोचा था कि ये सब कुछ एक झटके में हमसे छिन जाएगा।

मैं लगभग 8 साल की थी। पापा के बिजनेस में गिरावट आ गई। धीरे-धीरे बहुत कुछ हमसे छिनता चला गया। ज्यादा बड़ी तो नहीं थी, लेकिन इस बात का आभास जरूर था कि चीजें सही नहीं चल रही हैं। स्थिति में जब सुधार आने की सारी उम्मीदें खत्म हो गईं, तब पापा पूरे परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए।

वो कहते हैं ना कि बुरा समय भी अपने साथ कुछ अच्छा ही लेकर आता है। कानपुर में हम बड़े घर में रहते थे। हमारी देख-रेख करने के लिए अलग से लोग रखे गए थे। जब हम दिल्ली आए तो यहां पर सिर्फ एक कमरे में पूरा परिवार रहता था। बाकी दो कमरों को ऑफिस में तब्दील कर दिया गया था। एक कमरे में रहने से हम पहले से ज्यादा करीब आ गए। मां और बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने को मिला।

मुझे याद है, जब मैं 10वीं में थी तभी से एक तरह से मैं पापा के बिजनेस में आ गई थी। इस वक्त मैं स्कूल के बाद फैक्ट्री जरूर जाया करती थीं। 12वीं के बाद पूरा बिजनेस ही मैं देखने लगी।

पापा की मदद के लिए बिजनेस के साथ मैंने काॅल सेंटर में भी काम करना शुरू कर दिया था। मम्मी की सख्त हिदायत थी कि बिजनेस तो देखना ही है। मम्मी का कहना टाल भी नहीं सकती थी। यही कारण था कि दिन में ऑफिस जाती और रात में कॉल सेंटर। बहुत मुश्किल से 3-4 घंटे ही सो पाती।

इन कामों में इतना व्यस्त रहती थी कि 12वीं के बाद सिर्फ पेपर देने ही काॅलेज गई। पढ़ाई भी ज्यादा नहीं कर पाई। मगर इसे कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी।

समय बीतता जा रहा था, लेकिन बिजनेस उस मुकाम तक नहीं पहुंच सका जैसा कानपुर में था। नतीजतन, मुझे इस बिजनेस को बंद करना पड़ा। दिल्ली थोड़ा खर्चीला शहर है, इसलिए मां-पापा को कुछ समय के लिए राजस्थान शिफ्ट किया।

एक सांस में अनुप्रिया ने ये सारी बातें बताईं। मैंने उनसे सवाल किया कि वो मुंबई कैसे पहुंची?

बिजनेस तो बंद कर दिया था, लेकिन उससे रिलेटेड थोड़े काम थे, जिनको पूरा करना बाकी था। कोर्ट से जुड़े मामलात भी थे। सब कुछ मुझे ही देखना पड़ता था। इसी दौरान मेरा मुंबई जाना हुआ। ये शहर मुझे बहुत अच्छा लगा। पूरे परिवार को यहां शिफ्ट कराने का फैसला किया। उस वक्त तो नौकरी भी नहीं थी। फिर भी मैंने जुटाए हुए पैसों से एक फ्लैट खरीदा, फिर वहीं के एक काॅल सेंटर में नौकरी करनी शुरू की। धीरे-धीरे फ्लैट के सारे लोन भी चुका दिए।

काम अच्छा था तो प्रमोशन होता गया। इसी दौरान एक दोस्त की एक सलाह मेरे लिए लकी साबित हुई। उसने मुझसे कहा कि मैं एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट बन जाऊं। काम का अनुभव था ही जिसकी बदौलत इस पोजिशन पर नौकरी मिल गई। सैलरी भी बेहतर हो गई।

क्या कभी सोचा था कि एक्ट्रेस बनेंगीं?
सच बताऊं तो मन में कभी ख्याल भी नहीं आया था। एक बार मैंने 12वीं की गर्मी की छुट्टी में दो महीने NSD की वर्कशाॅप अटेंड की थी। ये बस मैंने शौक में किया था। मैं काॅर्पोरेट लाइफ में बहुत खुश थी, इसलिए कभी एक्टिंग को प्रोफेशन बनाने के बारे में सोचा नहीं।

सब अच्छा चल ही रहा था, पर एक वक्त आया कि मैंने इस काम से ब्रेक लेने के बारे में सोचा। बिजनेस से संबंधित कुछ काम भी बाकी थे और मैं थोड़ा क्रिएटिव फील्ड में वक्त गुजारना चाहती थी। क्रिएटिव फील्ड में सबसे पहले ऑप्शन था थिएटर करना। ये मेरी लाइफ का सबसे बड़ा डिसीजन था।

मैंने ऑफिस में बात की और बताया कि मुझे 2-3 महीने का ब्रेक चाहिए। उन्होंने मुझसे पूछा कि अगर मैं टीम स्विच करना चाहती हूं तो कर सकती हूं, लेकिन ब्रेक लेना बड़ी बात है। उस वक्त मेरी सैलरी भी अच्छी-खासी थी। ऐसा करना किसी रिस्क से कम नहीं था। हालांकि मैंने अपना इरादा नहीं बदला। वहां अरसे से काम कर रही थी तो 2-3 महीने बाद वापस जाकर काम दोबारा शुरू कर सकती थी।

काम से ब्रेक लेने के बाद मैंने बिजनेस रिलेटेड काम पर फोकस किया। 3 महीने में काम नहीं बना और ऐसे ही डेढ़ साल बीत गया। इस दौरान मैं छोटे-मोटे नाटक में काम करती रही। समय के अंतराल पर मैंने नौकरी भी की। मैं कन्फ्यूज थी कि काॅर्पोरेट और एक्टिंग लाइन में से क्या चुनूं। इसी उथल-पुथल में एक-एक दिन बीत रहा था।

इसी दौरान मैंने नीरज कबीर के साथ एक्टिंग वर्कशाॅप की। उनके साथ 10 दिन की इस वर्कशॉप ने पूरी जिंदगी ही बदल दी। इन 10 दिनों में, मुझे एक्टिंग से प्यार हो गया।

अब सामने समस्या ये भी थी कि मैं कॉर्पोरेट लाइफ के साथ थिएटर मैनेज नहीं कर सकती थी। मतलब मुझे अगर एक्टिंग करनी हो तो इसी को अपना प्रोफेशन बनाऊं जिससे कमाई हो सके। बहुत विचार करने के बाद एक्टिंग को करियर के तौर पर चुना।

एक्टिंग की शुरुआत में संघर्ष कैसा रहा?
ये दुनिया दूर से देखने पर बहुत खूबसूरत है, लेकिन यहां हर कदम पर संघर्ष है। इस संघर्ष से मैं भी अछूती नहीं रही। जब मैं जाॅब छोड़ थिएटर कर रही थी, तब कई नाटक नहीं चले, जिनमें मैंने एक्ट किया था। कुछ शुरू होने से पहले ही बंद हो गए।

आम स्टार्स की तरह मैंने भी बहुत ऑडिशन दिए। एक दिन में 12-12 ऑडिशन देती थी। बहुत मुश्किल से 12 ऑडिशन में से एक में मेरा सिलेक्शन होता था। ये चीजें मुझे अंदर से तोड़ती थीं और परेशान भी करतीं। कुल जमा ये रिस्क भरा सफर था।


मुझे याद है, पहली फिल्म करने के बाद YRF प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले मैंने एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए ऑडिशन दिया था। पहली बार पता चला था कि ऑडिशन का सही प्रोसेस क्या होता है। मैंने इसे खूब इंजॉय किया था। YRF की कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने मेरी बहुत मदद की थी। सिलेक्शन हो जाने की उम्मीद भी थी।

प्रोजेक्ट की सभी स्टार कास्ट से मुलाकात भी हुई थी। फिर कुछ दिन बाद शानू शर्मा मुझसे मिलीं और उन्होंने बताया कि कुछ वजहों से मैं इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकती। इस फिल्म का हिस्सा ना होने पर बहुत बुरा लगा था। पर एक रिजेक्शन को लेकर हम बैठ तो नहीं सकते, आगे बढ़ेंगे तभी कुछ बेहतर कर पाएंगे। मैंने भी यही किया। ठोकरों से कभी खुद को टूटने नहीं दिया।

टाइगर जिंदा में काम कैसे मिला?
मैं पूर्णा का रोल प्ले करना चाहती थी। मैंने ये बात अली अब्बास को बताई थी, जब YRF की ऑफिस में मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। उस वक्त तो उन्होंने कुछ नहीं बोला था। इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि मेरे पास शानू शर्मा की काॅल आई और उन्होंने बताया कि मैं इस रोल के लिए सही हूं। मैंने ऑडिशन दिया और सिलेक्शन हो गया।

फिल्म पद्मावत का हिस्सा कैसे बनीं?
संजय लीला भंसाली का कास्ट करने का तरीका थोड़ा अलग है। सबसे पहले मेरी उनसे मुलाकात हुई। जब उन्हें लगा कि मैं इस रोल के लिए परफेक्ट हूं तब मेरा ऑडिशन हुआ और फाइनली मैं इस फिल्म का हिस्सा बनी।


ये सीन फिल्म पद्मावत का है। इसमें अनुप्रिया ने रानी नागमति का किरदार निभाया था। लीड रोल में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह थे।

एक्टिंग लाइन में आने पर परिवार का क्या रिएक्शन था?
मैं ऐसे परिवार में पैदा हुई थी, जहां पर इन चीजों को लेकर कुछ पता नहीं था। मगर जब माली हालत बिगड़ी तो कम उम्र में ही मुझे जिम्मेदारियां उठानी पड़ीं। इसके बाद मां-पापा को पता था कि मैं कुछ ना कुछ करके परिवार की जिम्मेदारियां संभाल लूंगीं।

जब मैंने एक्टिंग में आने का फैसला किया था, तो ये बात बिल्कुल क्लियर थी कि अगर इस फील्ड में काम नहीं बना और लगा कि अगले महीने खाने के पैसे नहीं रहेंगे तो मैं उसी वक्त एक्टिंग करना छोड़ दूंगी। खाली बैठने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।

मां-पापा को मुझ पर बहुत भरोसा था। उनका ये भरोसा हमेशा बना रहा। उन्हें पता ही नहीं था कि मैं एक्ट करती हूं। उन दोनों को लगता था कि इंडस्ट्री में कुछ कर रही हूं, लेकिन क्या, ये बिल्कुल नहीं पता था।

फिल्मों में आने से पहले मैंने भारत निर्माण का ऐड किया था, जिसे प्रदीप सरकार ने डायरेक्ट किया था। इस ऐड को लोगों ने बहुत पसंद किया। टाइम्स ऑफ इंडिया में ये खबर पब्लिश भी हुई। पहली बार मैं अखबार में दिखी। इसे देखकर रिश्तेदारों ने मां-पापा को कॉल किया और बताया कि ऐड के सिलसिले में अखबार में मेरी तस्वीर छपी है। तब जाकर दोनों को पता चला कि मैं एक्टिंग कर रही हूं।

क्या स्किन कलर रिजेक्शन का कारण बना?
अगर किसी फिल्म के लिए मैं रिजेक्ट हुई तो कभी ये नहीं जानना चाहा कि रिजेक्शन का आधार क्या रहा। हां कभी-कभी ऐसा हुआ है कि लोगों ने कहा कि आप बहुत सुंदर हैं इसलिए फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकतीं।

मैं अलग-अलग तरह के रोल करना चाहती हूं। गांव की छवि पर बनी फिल्म में भी मैं काम करना चाहती हूं, मगर कोई इस रोल में कास्ट ही नहीं करता। मेकर्स का कहना है कि इस तरह के रोल के हिसाब से मेरे फीचर काफी शार्प है। मैं उन्हें कैसे बताऊं कि मैं उस रोल को भी परफेक्ट तरीके से कर सकती हूं।

जहां तक स्किन कलर की बात है, मुझे अपना रंग बेहद पसंद है। सांवली रंग की तो काजोल, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल सभी हैं, जो बेस्ट एक्ट्रेस का उदाहरण हैं। जब मैं नई-नई फिल्मों में आई थी, तभी मेकअप आर्टिस्ट को बता दिया था कि मेरी स्किन को एक शेड भी मेकअप से गोरा ना करें। मैं इसी रंग के साथ पर्दे पर आना चाहती हूं।

एक बार स्किन डॉक्टर के पास गई थी। उन्होंने फेयर कलर के लिए एक दवा के बारे में बताया। मैंने उनसे कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मैं जैसी हूं वैसी ही दिखना चाहती हूं। मैंने इन चीजों का कभी उपयोग नहीं किया, जिससे मेरा रंग निखर जाए। वैसे कभी जरूरत भी नहीं पड़ी और ना करना है। सिर्फ परफेक्ट एक्टिंग करना ही एकमात्र उद्देश्य है।

साभार दैनिक भास्कर 

Tuesday, September 12, 2023

SWATI VARSHNEYA - THE INTERNATIONAL SKY DIVER

#SWATI VARSHNEYA - THE INTERNATIONAL SKY DIVER

Skydiving:2025 में रिकॉर्ड बनाएंगी भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति वार्ष्णेय; समताप मंडल से लगाएंगी छलांग -


भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति वार्ष्णेय साल 2025 में एक कीर्तिमान बनाने की तैयारी में हैं। वे पृथ्वी से 42.5 किमी की ऊंचाई पर समताप मंडल(stratospheric) से पहली स्काइ डाइविंग करके विश्व रिकॉर्ड तोड़ने की तैयारी कर रही हैं। वे ऐसा करने वाली वे विश्व की पहिला महिला होंगी। एक गैर-लाभकारी संगठन राइजिंग यूनाइटेड की हेरा राइजिंग पहल के एक हिस्से के रूप में वे ये स्काई डाइविंग करेंगी।

इस स्काई डाइविंग का आयोजन एक गैर-लाभकारी संगठन राइजिंग यूनाइटेड करेगा। संगठन ने इसके लिए तीन युवा महिला खोजकर्ताओं को चुना है। समताप मंडल पृथ्वी के वायुमंडल की दूसरी परत है जो पृथ्वी की सतह से लगभग 12 से 50 किलोमीटर (7 से 31 मील) की ऊंचाई तक है। समताप मंडल में न्यूनतम तापमान लगभग माइनस 80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने की तैयारी कर रही अन्य दो फाइनलिस्ट में कोलंबियाई मूल की एलियाना रॉड्रिक्वेज़ और कोस्टा रिकान मूल की डायना वेलेर एन जिम नेज हैं। इन तीनों लोगों को 18 महीने के कठोर प्रशिक्षण से गुजरना होगा। ट्रेनिंग के बाद इनमें से केवल एक ही ऐतिहासिक छलांग लगाएगा, जबकि अन्य दो खोजकर्ता जमीनी समर्थन और शैक्षिक आउटरीच के लिए टीम में रहेंगे।इस ऐतिहासिक छलांग को लेकर एनजीओ ने कहा कि हम महिलाओं को आगे बढ़ाने और एसटीईएएम शिक्षा में युवा महिलाओं की रुचि को प्रेरित करने के लिए रिकॉर्ड और सीमाओं को तोड़ते हुए एक ऐतिहासिक यात्रा शुरू कर रहे हैं।

बता दें कि भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक स्वाति वार्ष्णेय ने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मैटेरियल साइंस में पीएचडी की है। उन्होंने बताया कि उनके करियर की यात्रा स्काइ डाइविंग के करीब रही है। स्वाति ने वर्टिकल फ्रीफॉल में विशेषज्ञता के साथ 1,200 से अधिक बार स्काई डाइविंग की है।

SURYAKANT AGRAWAL - VRIKSH MITRA

 

#SURYAKANT AGRAWAL - VRIKSH MITRA




THE GREEN MAN - PROF. S.L.GARG

THE GREEN MAN - PROF. S.L.GARG


 

GUJARAT MAYOR ELECTION-BOTH MAYOR FROM VAISHYA COMMUNITY

GUJARAT MAYOR ELECTION-BOTH MAYOR FROM VAISHYA COMMUNITY


 

BANIA ATTACKS ZAMINDAR

 #BANIA ATTACKS ZAMINDAR


घटना सिंध में 1934 की है जब एक बनिया महानुभाव अपने उधार लेन देन का हिसाब चुकता करने मुस्लिम जमींदार के पास गये।


मुस्लिम जमींदार ने कहा या तो उसका बही खाता जला दो या फिर उसके आंगन में बंधी गाय को तलवार से काट दो।
अब हिंदू मन और चेतन, अघन्या मां स्वरूपिणी गौ की हत्या तो दूर उनके ऐसे अवस्था की कल्पना भी कैसे करे।
बहुत कहा लेकिन जमींदार नही माना अंत में बनिया जी ने तलवार उठायी और गोमाता की तरफ दिखाते हुये, उस मुस्लिम जमींदार के शरीर के आरपार कर दिया।
उन्होनें वही किया जो वेद निहित है शास्त्र सम्मत है।
गौ हत्या की कल्पना करने वाले और हत्यारे का संहार किया जाये।
यदि नो गां हंसि यद्यश्वम् यदि पूरुषं
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नो सो अवीरहा

अर्थववेद 1।16

हमारे पुरखे धर्मरक्षा के लिए ना हथियार उठाने से चूके ना मस्तक कटाने से। सनातन के मानबिन्दुओं गौ, गंगा और गायत्री पर आंच नही आने दी।
इसी कड़ी में गीता प्रेस के संस्थापक स्वर्गीय श्री जयदयाल गोयनका और संचालकों को कैसे भूल सकते हैं जिनकी वजह से गीता, रामायण, उपनिषदों, पुराणों, आदि के भाष्य व अन्य धर्मावलंबी पुस्तकें कम कीमत उपलब्ध है और सर्वसाधारण के लिए सुलभ है। जिन्होंने आज हिंदू सिद्धांत घर घर तक पहुंचाया है।

Monday, September 11, 2023

MOURYA VANSHYA - A VAISHYA DYNESTY - मौर्य वंश के वैश्य होने के प्रमाण

 MOURYA VANSHYA - A VAISHYA DYNESTY - मौर्य वंश के वैश्य होने के प्रमाण 

मौर्य वंश महान भारत के महान राजवंशो में से एक हैं. यह वंश भारत का पहला सबसे बड़े राज्य का  राजवंश था. इस वंश का पहला सबसे प्रतापी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य था. सम्राट अशोक, बिन्दुसार, सम्राट सम्प्राती इसी वंश के थे. ओर  भारत के सबसे महान सम्राटो में से एक थे. आज की तिथि में कई ओर  जातिया अपने आप को मौर्य वंश का वंशज बताने लगी हैं.  उनका नाम यंहा पर लेना बेकार हैं. और  सबको पता हैं वो कौन जातिया हैं. मैं नीचे मौर्य वंश के वैश्य होने के कुछ प्रमाण दे रहा हूँ.

१. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का असली नाम चन्द्रगुप्त हैं. गुप्त उपनाम आदि काल से केवल और केवल वैश्य समुदाय के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा हैं. मुरा चन्द्रगुप्त की माता का नाम था. मुरा के नाम पर ही चाणक्य ने मुरा का बेटा मौर्य उपनाम दिया था. चन्द्र गुप्त के पिता का नाम सूर्य गुप्त था. जो की नन्द वंश के समय में एक छोटे राज्य के राजा थे. जिन्हें घनानंद ने मरवा दिया था. और उनके राज्य में कब्जा कर लिया था. 

२. चन्द्रगुप्त के बहनोई का नाम पुश्प् गुप्त था. जो की उस समय में सौराष्ट्र के राज्यपाल थे. उनका शिलालेख आज भी वंहा पर हैं जिसमे उनके वैश्य पुष्प गुप्त कहा गया हैं.

३. अपने अंतिम समय में चन्द्रगुप्त जैन पंथ का पालन करने लगा था. जैन १०० प्रतिशत वैश्य होते हैं.

४. सम्राट अशोक की धर्मपत्नी महारानी विदिशा के एक वैश्य नगर सेठ की पुत्री थी.

५. अशोक के पौत्र सम्राट सम्प्रति भी जैन हो गए थे. 

६. अधिकतर इतिहास कारो, और आर्य मंजुश्री कल्प और विष्णु पुराण  ने भी इस वंश को वैश्य बताया हैं. 

७. वैश्य तेली समुदाय भी मौर्य वंश को अपना पूर्वज होने का दवा करता हैं.

८. बिहार में एक वैश्य जाति माहुरी चन्द्रगुप्त मौर्य की वंशज होने का दावा करती हैं.

९. सम्राट चाहे किसी भी वर्ण का हो पर उसे क्षत्रिय ही कहा जाता था. 

इससे ज्यादा और क्या प्रमाण चाहिए.

Friday, September 8, 2023

SUDI, SODI, SOUNDIK VAISHYA

SUDI, SODI, SOUNDIK VAISHYA

उत्पत्ति: 

सुंडी या सुनरी लोगों को शौंडिका, सुंडिका और शाहा या साहू के नाम से जाना जाता था  यह एक वैश्य बनिया जाति हैं सुंडी संस्कृत शब्द शौंडिका का व्युत्पन्न हो सकता है जिसका अर्थ है "आत्मा विक्रेता" वर्ष 1891 में, श्री एच.एच. रिस्ले ने उल्लेख किया था कि सुनरी, शौंडिका और सुंदिका एक बड़ी और व्यापक रूप से फैली हुई जाति है जो पूरे बिहार, बंगाल और उड़ीसा के अधिकांश जिलों में पाई जाती है। ऐसा माना जाता था कि उनका पेशा आध्यात्मिक मदिरा का निर्माण और बिक्री था। इनका कुछ उल्लेख विभिन्न पुराणों में भी मिलता है। लेकिन विवरण अभी उपलब्ध नहीं है।

प्रवासी: 

उनमें से कुछ अतीत में बिहार और बंगाल से, विशेष रूप से उड़ीसा और आंध्र के उत्तरी हिस्सों में चले गए हैं, 1981 की जनगणना के अनुसार बिहार और बंगाल में उनकी जनसंख्या 20, 52, 331 थी। वे मुख्य रूप से ग्रामीण आधारित समुदाय थे। नाक का आकार और "मेसोसेफेलिक" प्रकार। 

व्यापार: 

इसके कई सदस्यों ने व्यापारिक गतिविधियों को अपना लिया, जिन्हें शाहा या साहू की उपाधि से बुलाया जाता था और उन लोगों के साथ सभी संबंधों को अस्वीकार कर दिया, जो अभी भी जाति के अपने विशिष्ट व्यवसाय का पालन करते थे। बिहार और बंगाल में साहा या साहू नामक सुंडियों के एक वर्ग ने खुद को "साधु बनिक" होने का दावा करते हुए 1931 की जनगणना के दौरान खुद को अलग से सूचीबद्ध कराया। उन्होंने वैश्य होने का दावा किया। साहू की सामाजिक स्थिति के इस उत्थान ने सुंडियों को प्रेरित किया, विशेष रूप से उन लोगों को, जो अब उच्चतर की आकांक्षा करने के लिए अपनी पारंपरिक जाति का पालन नहीं करते थे। स्थिति।

भोजन की आदतें: 

सुंडी या सोंडी पूरी तरह से मांसाहारी हैं, लेकिन गोमांस या सूअर का मांस नहीं खाते हैं। पहले सुंडी महिलाओं को चिकन-मटन लेने से मना किया जाता था. उन्हें केवल मछली और मछली उत्पाद खाने की अनुमति थी। यह इस विशेष समुदाय में ही एक अजीब प्रथा थी। लेकिन वर्तमान समय में वह प्रतिबंध हटा दिया गया और महिलाओं को मटन, चिकन और मछली खाने की भी अनुमति दे दी गई। इनका मुख्य अनाज चावल है। उनके कुछ पुरुष सदस्य नियमित रूप से एल्कोलिक, पेय पदार्थ लेते हैं, बीड़ी, सिगार, सिगरेट पीते हैं और जर्दा के साथ पान चबाते हैं।

उपनाम:

SUNDIS को मोटे तौर पर दो व्यावसायिक रूप से विशिष्ट उप समूहों में विभाजित किया गया था, अर्थात् SAHA (आसवन से जुड़ा नहीं) और साहू। वे एक समय अंतर्विवाही थे, लेकिन अब अंतर्विवाहित हैं। वे कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित थे जैसे सांडिल्य, कश्यप, गर्ग ऋषि आदि, पहले उनका केवल एक उपनाम था "साहु या साहू" लेकिन, अब उड़ीसा और आंध्र में बदली हुई परिस्थितियों के कारण, कई लोगों ने उपरोक्त राज्यों में निम्नलिखित उपनाम अपना लिए हैं . साहा या साहू. साहूकार या साहूकारी।

The word Sahugaru, is pronounced as 

SAHUKARU, SAHUKARA, SAHUKARI in ANDHRA.Ratnala

Labhala
Nalla
Nallana
Pandava
Senapathi
Paridala
Gajavilli/Gajarao
Mogilipuri / Mogili
Nemalipuri
Pumshottam
Bangaru / Bangarambandi
Bisoi
Kamsu
Kadambala
Loya
Das
Thulala/Tulo
Theegala
Uttarakawata / Uttarala
Patruni
Nilagiri
Behara
Sunnamudi

“Nageswara Gotram” is common to this clan.

विवाह रीति-रिवाज बिहार और बंगाल में सुंडी जाति पांच पीढ़ियों के भीतर विवाह को छोड़कर सामुदायिक अंतर्विवाह का अभ्यास करती थी। लड़कियों की शादी की उम्र 15 से 20 साल और लड़कों की 25 से 28 साल थी। बातचीत साथी प्राप्त करने का प्राथमिक तरीका था और "मोनोगैमी" विवाह का रूप था। दहेज नकद और वस्तु दोनों रूप में दिया जाता था। विवाह दूल्हे के निवास पर संपन्न हुआ। विवाह की मुख्य रस्में आशीर्वाद, पाणिग्रहण, सम्प्रदान और बाउ-भात थीं। शंख की चूड़ियाँ और सिन्दूर महिलाओं के लिए सुहाग के प्रतीक थे। विवाह के बाद, महिलाओं का निवास "पितृ-स्थानीय" था, पुरुषों और महिलाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति थी। तलाक की अनुमति थी, लेकिन इसकी घटना बहुत कम थी। उनके समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन विवाह की आयु में वृद्धि, दहेज की शुरूआत, एकल परिवारों का प्रसार हैं। महिलाएं आर्थिक गतिविधियों में अपने पुरुषों की मदद करती हैं। SUNDIS गर्भवती महिलाओं की आवाजाही पर प्रसव पूर्व प्रतिबंधों का पालन करता है और प्रसव पूर्व अनुष्ठान "साध-बक्शना" किया जाता था। प्रसव के बाद, जन्म प्रदूषण देखा गया और वे शांतिपूजा करते हैं। उन्होंने पहला चावल खाने का समारोह (अन्नप्रासन) मनाया। परिणाम: SUNDIS या SONDIS अपने मृतकों का दाह संस्कार करते हैं। वे मृत्यु के बाद ग्यारह दिनों तक मृत्यु और शरद संस्कार का पालन करते हैं, उड़िया प्रथा के अनुसार, वे मृत्यु के दसवें दिन की मध्यरात्रि में "झोल-जियोला I भूमि" चढ़ाते हैं और उनके बेटे उस बड़े बर्तन को दफनाने के लिए ले जाते हैं - गिउंड या किसी दूर एकांत स्थान या टैंकबंड में जाकर बड़े-बर्तन को वहीं समाप्त कर देते हैं और फिर उसी अंधेरे में घर लौट आते हैं। उनके ब्राह्मण पुजारी और नाई और धोबी के साथ पारंपरिक संबंध हैं जो हर औपचारिक अवसर पर उनकी सेवा करते हैं।

धर्म 

 सुंडी हिंदू धर्म को मानते हैं और कई लोग शैव आस्था को अपनाते हैं। वे निम्नलिखित देवताओं से प्रार्थना करते हैं। धार्मिक देवता शिव, दुर्गा, काली, बासुमति। पारिवारिक देवता लक्ष्मी, नारायण, चंडी आदि। ग्राम देवता:अम्मावरु, मनासा त्योहारों 1) दीपावली 2) दशहरा और 3) संक्रांति -दीपावली या दिवाई सुंडियों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक सुंडी या सोंडी परिवार रोशनी के इस त्योहार को अनिवार्य रूप से बहुत भक्ति के साथ मनाता है। उस दिन, वे अपने मृत माता-पिता, दादा और परदादा को याद करते हैं और एक ब्राह्मण पुजारी के माध्यम से पूजा करते हैं और उन आत्माओं के लिए वार्षिक भोजन के रूप में मृत पूर्वजों की याद में अनुष्ठान में उन्हें "पोथरा" वस्तुएं चढ़ाते हैं। सामान्य हालाँकि, उनका पारंपरिक व्यवसाय गाँवों और छोटे शहरों में शराब का आसवन है, लेकिन वे सभी अब इसमें संलग्न नहीं हैं। आंध्र में शराबबंदी लागू होने के बाद, उन्होंने अपना पेशा खो दिया और आजीविका से बाहर कर दिए गए। अब, उनमें से अधिकांश जो बड़े कस्बों और शहरों में चले गए हैं वे व्यापार, रक्षा सेवा, सरकारी सेवा, निजी सेवा और स्वरोजगार में कार्यरत हैं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी प्रगति की। विदेशों में भी उच्च योग्य प्रविष्टियाँ काम कर रही हैं। परिवार कल्याण उपायों को वे अच्छी तरह से स्वीकार करते हैं और आम तौर पर वे दो या तीन बच्चे पैदा करना पसंद करते हैं। वे स्वदेशी और आधुनिक मेडिकेयर दोनों का उपयोग करते हैं। वे डाकघर और बैंकों में बचत और जमा करते हैं। वे अब हर क्षेत्र में विकास की राह पर हैं।

Thursday, September 7, 2023

KRISHNA JANM BHUMI - कृष्ण जन्म भूमि - A CONTRIBUTION OF MARWADI SETH

#KRISHNA JANM BHUMI - कृष्ण जन्म भूमि - A CONTRIBUTION OF MARWADI SETH

❤️ मारवाड़ी सेठों ने किया था कृष्ण जन्मभूमि का पुनरोद्धार ❤️

आज जहाँ शाही ईदगाह के चारों ओर और इसके चारों ओर एक नष्ट मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं- इन खंडहरों के ऊपर एएसआई द्वारा एक अधिसूचना बोर्ड है जो 'कृष्ण जन्मभूमि' के रूप में पढ़ता है- इसके अलावा, एएसआई बोर्ड का कहना है कि 'यह वह जगह है जहां हिंदुओं का मानना ​​है कि उनके भगवान कृष्ण का जन्मस्थान था- यह विश्वास हजारों साल पहले का है- '

यह स्थान कभी एक शानदार कृष्ण मंदिर था - 1618 में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने तैंतीस लाख की लागत से एक मंदिर बनाया था-
 
याद रखें, उन दिनों में 1 रुपए में 296 किलोग्राम चावल मिलता था- कोई केवल कल्पना कर सकता है कि उन दिनों के दौरान 33 लाख क्या रहे होंगे- 1670 में, औरंगजेब ने कृष्ण मंदिर को नष्ट कर दिया और इस शाही ईदगाह को अपने खंडहरों के शीर्ष पर बनवाया..
 
1804 में, मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया- ईआईसी ने जमीन की नीलामी की और इसे बनारस के एक अमीर #वैश्य बैंकर '#राजा_पटनीमल_अग्रवाल' ने 45 लाख में खरीदा (जिसमें वर्तमान शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन भी शामिल थी) मुसलमानों ने अदालत में भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1935 में राजा पटनीमल अग्रवाल के वंशज के पक्ष में फैसला सुनाया- राजा पटनीमल के वंशजों के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद भी वे कृष्ण मंदिर का निर्माण शुरू नहीं कर पाये थे, स्थानीय मुसलमानों द्वारा लगातार धमकियों के कारण जब भी ऐसी कोई योजना सामने आई उपद्रवों व बाधायें पैदा होती रहीं..

 #जुगलकिशोर_बिड़ला जी ने जमीन खरीदी और कृष्णा जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन किया। ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहाँ रहनेवाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल कर दी। इसका निर्णय 1953 में आया। इसके बाद ही यहाँ कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। स्वामी अखंडानंद सरस्वती के सभापतित्व काल में मथुरा के युवक 15 अक्टूबर, 1953 से श्रमदान के रूप में कटरा-केशवदेव के पुनरुद्धार कार्य में जुट गए। बरसों तक वैश्य श्री #बाबूलाल_बजाज और श्री #फूलचंद_खंडेलवाल के नेतृत्व में कार्य चलता रहा। इसके बाद गर्भगृह तथा भव्य भागवत भवन का पुनरुद्धार हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। भागवत भवन के निर्माण में बड़ी धनराशि औद्योगिक घराने वैश्य #डालमिया परिवार द्वारा भी दी गई थी।

जन्मभूमि मंदिर परिसर का शिखर मस्जिद से ऊंचा होगा इसकी रूपरेखा नित्यलीलालीन वैश्य #हनुमान_प्रसाद_पोद्दार जी "भाई जी" और स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी ने बनाई थी... भाईजी ने ही कृष्णजन्मभूमि मंदिर परिसर में जजमान बनकर शिलान्यास और पूजन किया था...

1992 में जब वैश्य समाज के हिंदुत्व पुरोधा श्री #अशोक_सिंहल जी के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद गिराई थी तब कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ की मुक्ति की भी शपत राम भक्तों ने ली थी और सिंहल जी ने नारा दिया था - "अयोध्या तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।
#जय_श्री_कृष्णा
#जय_श्री_राम
#जय_वैश्य_समाज

Tuesday, September 5, 2023

NANDINI AGRAWAL - विश्व की सबसे कम उम्र की CA

 NANDINI AGRAWAL - विश्व की सबसे कम उम्र की CA

मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर मुरैना की #नंदनी_अग्रवाल ने प्रथम स्थान लाकर देश का नाम दुनियाभर में रोशन कर दिया है नंदिनी अग्रवाल दुनिया की सबसे कम #उम्र की महिला चार्टर्ड एकाउंटेंट यानी CA बन गई हैं। दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला सीए बनने की उपलब्धि हासिल करने के बाद नंदिनी अग्रवाल का नाम #गिनीज_वर्ल्ड_रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है




नंदिनी के भाई सचिन भी CA है जिनकी 18 रैंक थी नंदनी के पिता सुरेश चंद्र गुप्ता भी CA है CA मतलब वैश्य (बनिया)
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नंदनी अग्रवाल जी को ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं

AGRAWAL GOTRA - अग्रवालो की गोत्र परंपरा

 AGRAWAL GOTRA - अग्रवालो की गोत्र परंपरा