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Wednesday, September 30, 2020

बनिया बुद्धि

बनिया बुद्धि 

एक बनिया मोटरसाइकिल से जा रहा था. उसकी मोटरसाइकिल एक आदमी के कुछ ज्यादा ही पास से गुजरी और उसकी धोती थोड़ी फट गई, तो उसने बनिये का हाथ पकड़ लिया और बोला जाता कहां है मेरी धोती फाड़ के... धोती के पैसे दे.

बनिया बोला कितने की है... तो उस आदमी ने जवाब दिया सत्तर रुपए की.

बनिये ने चुपचाप जेब से सत्तर रुपए निकाले और उस आदमी को दे दिए. 

वह आदमी सत्तर रुपए लेकर जाने लगा... अब बनिये नें उस आदमी का हाथ पकड़ लिया... बोला... जाता कहां है? सत्तर रुपए दिए हैं धोती के. धोती दे... 

तब तक वहां पर काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी. सभी बोले कि जब उसने धोती के पैसे दे दिए तो धोती हो गई उसकी. दे भाई धोती.

उस आदमी ने कहा धोती दे दूंगा तो भरे बाजार नंगा घर कैसे जाऊंगा? 

बनिया बोला भाई इससे मुझे क्या मतलब... धोती अब मेरी है तू तो धोती दे.

भाई गिड़गिड़ाने पर आ गया और बोला भैया अपने सत्तर रुपए वापस ले ले मैं तो अपनी फटी धोती पहन के ही चला जाऊंगा.

बनिया बोला धोती मेरी हो गई है अब तो मैं इसे 700 में दूंगा. चाहिए तो बोल.
जिसकी धोती फटी थी उसने पूरी भीड़ के सामने अपनी खुद की... सत्तर रुपए की... वह भी अब फटी हुई... धोती के... सात सौ रुपए बनिये को दिए.

सबक : बानिये से धंधा और पंगा संभल के करने का.

BANIAS HOLD IN MUMBAI - मुंबई में कारोबार में बनियों का वर्चस्व

BANIAS HOLD IN MUMBAI - मुंबई में कारोबार में बनियों का वर्चस्व 

#मुंबई में 90% कारोबारी मारवाड़ी, गुजराती, हरयाणवी, मालवी या सिंधी बनिए हैं। देश के सभी तरह के कारोबार पर इन पश्चिम के बनियो का वर्चस्व है। पारसी भी इन्हीं में आ जाते हैं। देश के टॉप हजार कुबेरपतियो में 80% इन्हीं में से होंगे। 

मुंबई का कारोबार इन्हीं की वजह से है। मूलत: सर्विस क्लास और एंटी उद्यमी मानसिकता वाला शहरी महाराष्ट्रीयन समाज इन्हीं के कारण फायदे में है। लेकिन ये लोग सबको भगाने की बात करते रहते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि देश की कारोबारी राजधानी गुजरात में कही शिफ्ट कि जाए।

इससे भारतीय कारोबार पर अंडरवर्ल्ड का दखल तो कम होगा ही, साथ ही मुंबई के महाराष्ट्रीय चिरकालीन श्रमिक वर्ग की गुंडागर्दी से छुट्टी मिलेगी और पश्चिम महाराष्ट्र के कतिपय नेताओ की भारतीय राजनीति में धौंसपट्टी बंद होगी। महाराष्ट्रीय नेताओ की अंडरवर्ल्ड से गहरे तक सांठगांठ और मुंबई के कारोबारी राजधानी होने के कारण उनके अप्राकृतिक शक्ति संचयन ने देश का काफी नुकसान पहुंचाया है। अमित शाह के एजेंडे में यह पहले से है, इसे जितना शीघ्र किया जाए उतना बेहतर है। 

अमित शाह द्वारा मुंबई के अपने कारोबारी भाईयो के लिए महाराष्ट्र में सरकार बनाने में इन्वेस्ट करने कि जगह कारोबार का केन्द्र बदलना ज्यादा श्रेयस्कर होगा।

इसी तरह हिंदी भाषी क्षेत्र में वैकल्पिक फिल्म उद्योग स्थापित करने के प्रयास किए जाएं। इसके लिए इंदौर या भोपाल सबसे श्रेष्ठ रहेंगे। हिंदी पट्टी में कला संस्कृति और संस्कार के मामले में यह क्षेत्र सबसे उर्वर है। गुंडागर्दी और अपराध भी सबसे कम है। 

बॉलीवुड को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भले ही कहा जाता रहा हो और भले ही हिंदी भाषा में फिल्में बनती रही हो लेकिन हिंदी का यहां इससे ज्यादा कुछ नहीं है। यह कॉस्मोपोलिटन फिल्म उद्योग है। यहां की ऑफिशियल भाषा अंग्रेजी है। काम करने वालो में हिंदी भाषियों से ज्यादा पंजाबी, उर्दू भाषी, मराठी, बंगाली, गुजराती और यहां तक कि दक्षिण भारतीय हैं।

अब पिछले एक दो दशक से हिंदी पट्टी से लोग बड़ी संख्या में जाने शुरू हुए हैं। एक समय 80 और 90 के दशक में हर तीसरी चौथी फिल्म के निर्माता और निर्देशक दक्षिण भारतीय होते थे। ये अलग बात है कि इन सभी क्षेत्रों के लोग बॉलीवुड के नाम पर हिंदी पट्टी वालो को चिढ़ाते हैं। बॉलीवुड में कभी भी हिंदी पट्टी का ढंग से चित्रण नहीं किया गया जिस तरह अन्य क्षेत्रीय सिनेमा में वहां के स्थानीय समाज, संस्कृति, राजनीति और समस्याओं का सटीक चित्रण होता है क्योंकि वहां लेखक कलाकार सब स्थानीय होते हैं। 

बॉलीवुड कॉस्मोपोलिटन सिनेमा है लेकिन उसकी वजह से हिंदी पट्टी में कोई क्षेत्रीय सिनेमा ढंग से डेवलप नहीं हो पाया। कुछ साल से रिएलिटी के नाम पर हिंदी पट्टी के शहरों में based फिल्में बनाई जा रही हैं लेकिन राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय कॉस्मोपोलिटन बाज़ार के चक्कर में वो बेहद फेक सतही और भौंडा पन होता है। 

मुंबई के मुकाबले वैकल्पिक फिल्म उद्योग बनाने से ना केवल अंडरवर्ल्ड के दखल से मुक्ति मिलेगी बल्कि अंग्रेजी अभिजात्य वर्ग के प्रभाव से भी मुक्ति मिलेगी जो अनेकों समस्याओं की जड़ है।

लेख साभार : Pushpendra Rana

AMITABH GUPTA - PUNE POLICE COMISSIONER


AMITABH GUPTA - PUNE POLICE COMISSIONER



 

SONAL GOYAL - देश की टॉप 25 महिलाओं में शुमार हैं ये IAS

SONAL GOYAL - देश की टॉप 25 महिलाओं में शुमार हैं ये IAS


अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने, योजना बनाने उन्हें जमीनी हकीकत में उतारने वाली देश की टॉप 25 महिलाओं में फरीदाबाद की नगर निगम कमिश्नर सोनल गोयल चुनी गई हैं। इन 25 शख्सियतों की दिल्ली नीति आयोग ने देश की 1000 महिलाओं में से चुना है। जानें कौन हैं सोनल गोयल...

- सोनल गोयल 2008 बैच की आईएएस हैं, इनकी देशभर में 13वी रैंक थी।
- इन्होंने बीकॉम ऑनर्स, सीएस (कंपनी सेक्रेटरी), एलएलबी और एम (पब्लिक पॉलिसी) में की है।

- सोनम मूलत: हरियाणा के पानीपत जिले की रहने वाली हैं।
-कमिश्नर के पति आदित्य यादव भी आईआरएस हैं। इनके तीन साल की एक बेटी है।
-दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरफ से इन्हें एम (पब्लिक पॉलिसी) में गोल्ड मेडल भी मिला हुआ है।

- इसके अलावा सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ में भी अवार्ड मिल चुका है।

- मिनिस्ट्री रूलर डेवलपमेंट की तरफ से इन्हें नेशनल मनरेगा अवार्ड भी मिल चुका है।

- गोमती जिले में डीएम रहते हुए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में बेहतर काम करने के लिए इन्हें मिनिस्ट्री ऑफ वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट की तरफ से अवार्ड देकर सम्मानित किया जा चुका है।

- डीएम के इस प्रयास के बाद त्रिपुरा के गोमती जिले को टॉप फाइव जिलों में शामिल किया गया था।


त्रिपुरा में थी डीएम, किया था बेहतर काम

- सोनम फरीदाबाद में नगर निगम कमिश्नर का पदभार संभालने से पहले त्रिपुरा की डीएम रह चुकी हैं।

- उनके बारे में कहा जाता है कि वो काम को लेकर लापरवाही कत्तई बर्दाश्त नहीं करती है।

- हाल ही में उन्होंने सख्त तेवर दिखाते हुए एक्साइज ब्रांच के अधिकारियों की बैठक लेते हुए सभी के सामने तयशुदा समय के भीतर अपना टारगेट हासिल करने को कहा है।

- सोनल के इस आदेश के बाद आबकारी शाखा के अधिकारियों में हड़कंप मचा हुआ है।

- डीएम रहते हुए उन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर के उपन्यास में शामिल नंदनी नाम का कैंपेन गोमती जिले में चलाया था।

- इसके अंतर्गत अपने ऑफिस में महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए क्रेच खोला। यहां बेटियों को विशेष सुविधाएं दी गईं।

- इसके अलावा एक पार्क को गोद लेकर उसे डेवलप किया। इसमें बेटियों का अहम योगदान रहा। पीएनडीटी एक्ट, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में पूरे जिले को शामिल किया गया।

- आंगनवाड़ी सेंटर की दशा सुधारी गई, वहां बच्चों का आना सुनिश्चित किया गया। टॉप 25 में शामिल सोनल गोयल एकमात्र आईएएस हैं, बाकी अन्य क्षेत्रों से हैं।

वूमेन ट्रांसफार्मिंग इंडिया अवार्ड्स 2016 से हुई सम्मानित
- शुक्रवार को दिल्ली के तीनमूर्ति भवन में आयोजित वूमेन ट्रांसफार्मिंग इंडिया अवार्ड्स 2016 में नगर निगम कमिश्नर सोनल गोयल को आईसीआईसीआई की सीईओ चंदा कोचर, किरण मजूमदार जैसी देश की 25 बड़ी शख्सियतों के साथ सम्मानित किया गया।

- बता दें गुरुवार को ही कमिश्नर को स्मार्ट सिटी के दो प्रोजेक्ट टॉप 100 में शामिल किए जाने पर हैदराबाद में अवार्ड दिया गया है।

MAHARAJA AGRASEN & AGRAWAL COMMUNITY - महाराज अग्रसेन और अग्रवाल समुदाय

MAHARAJA AGRASEN & AGRAWAL COMMUNITY - महाराज अग्रसेन और अग्रवाल समुदाय 

अग्रवाल वो कौम है जिसने विश्व को प्रथम मानवतावादी "एक ईंट और एक रुपये" का सिद्धान्त दिया था जिसमें राज्य में बसने वाले प्रत्येक गरीब को बिना मांगे और बिना किसी के उपकार जताने के इतनी धनराशि मिल जाती थी की वो अपना व्यापार चला सके और अपना घरबना सके।

अग्रवालों के कुलपिता महाराज अग्रसेन ने मात्र 16 वर्ष की आयु में महाभारत जैसे महायुद्ध में सम्मलित हुए और अपने पिता को खो देने के बाद भी युद्ध में अत्यंत पराक्रम दिखाया और भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त किया।

अग्रवालों के ही आग्रेय गणराज्य और यौधेय गणसंघ ने वर्षों तक विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटाई और सिंकंदर जैसे विश्वविजेता तक की सेना को को युद्ध में गंभीर चोट पहुंचाई। भारत का सर्वप्रथम जौहर और साका आग्रेय गणराज्य के पुरुषों और महिलाओं ने किया था।

अग्रवालों ने गुप्तवंश के रूप में भारत के सबसे शक्तिशाली और सबसे श्रेष्ठ साम्राज्य की नींव रखी। जिस राज्य को भारतीय शाषन का स्वर्णकाल कहा जाता है जिसने भारत को सोने की चिड़िया बनाया। उन्होंने ही बौद्ध और जैन समय की कुरीतियों को दूर करके विशुद्ध वैदिक हिन्दू राज्य की नींव रखी। नालंदा और तक्षिला जैसे विश्विद्यालयों की नींव रखी और भारत को विश्वगुरु बनाया..

रोमन साम्राज्य जैसे अनेकों साम्राज्यों को निगलने वाले, विदेशी शकों और हूणों का सामना जब अग्रवालों (स्कन्दगुप्त) से हुआ तो मानों बाजी पलट गयी और स्कन्दगुप्त ने समरांगण में अकेले अपने पराक्रम से हूणों और शकों का सम्पूर्ण नाश किया भारत हिन्द केसरी की उपाधि पायी।

राज्य भारत में जानें जाते हैं अपने राजा के नाम से लेकिन भारत में एक ऐसा भी राज्य था जो अपने व्यापारियों की वजह से जाना जाता था। उसकी नींव किसी और ने नहीं बल्कि शेखावाटी के अग्रवालों ने रखी थी। जिस राज्य को उसके सेठों के नाम पर रामगढ़ सेठान कहा गया जो अपने समय के सबसे अमीर राज्यों में से एक था और भारत के 50% मारवाड़ी उद्योगपतियों की जन्मभूमि है।

अनेकों युद्धों की तरह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अग्रवालों ने क्रांतिकारियों और भामाशाह दोनों तरह की भूमिका निभाई। जहां एकओर रामजी दास गुड़वाला और लाला मटोलचंद अग्रवाल अपनी अरबों की संपत्ति क्रांतिकारियों को लुटा कर फांसी के फंदे पर चढ़े वहीं दूसरी ओर लाला झनकूमल सिंहल और लाला हुकुमचंद जैन अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हुए।

अग्रवालों ने ही गीताप्रेस गोरखपुर, वेंकेटेश्वर प्रेस, चौखम्बा प्रकाशन जैसी धार्मिक प्रेसों की स्थापना करके वेदों, पुराणों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों को प्रत्येक हिंदुओं के घर-घर पहुंचाया।

विश्व के सबसे लंबे समय तक चलने वाले रामजन्मभूमि आंदोलन को नेतृत्व, कलम और आर्थिक सहायता अग्रवालों ने ही दी। जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल, डालमिया जी, श्री अशोक सिंहल, हनुमान प्रसाद पोद्दार, जयभगवान गोयल, सीताराम गोयल जैसी महान् हस्तियों ने रामलला के लिए जो बलिदान दिया वो उन्हें भगवान राम का सच्चा वंशज साबित करता है।

और आखिरी में अग्रवालों ने भारत वर्ष में मित्तल, जिंदल, बजाज, डालमिया, सिंघानिया, गनेड़ीवाल आदि आद्योगिक घराने स्थापित करके भारत में आद्योगिक विकास में महान् क्रांति की। मोदीनगर और डालमियानगर जैसी इंडस्ट्रियल टाउनशिप की स्थापना भी अग्रवालों द्वारा की गयी है..

© लेखक - प्रखर अग्रवाल,  साभार 

|| जय महाराजा अग्रसेन | जय अग्रोहा धाम | जय कुलदेवी महालक्ष्मी ||

Tuesday, September 29, 2020

THE GREAT AGRAWALS - अग्रवाल गाथा

THE GREAT AGRAWALS - अग्रवाल गाथा 

❤️ अग्रे-अग्रे अग्रवाल!! जो हर क्षेत्र में अग्रणी है, वही अग्रवाल है!! ❤️

वैश्य किसी भी राष्ट्र के आधार होते है। भारतीय राष्ट्र के निर्माण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था के तो ये आधार है। कृषि, गोरक्षा, वाणिज्य इनके प्रमुख कर्तव्य माने गए थे। इतिहास साक्षी है कि जब संपूर्ण विश्व अंधकार के गर्त्त में डूबा था, उस समय भारत इन्हीं वैश्य शूरमाओं के कारण वैभव एवं संपन्नता के चरमोत्कर्ष पर था। भारत ‘सोने की चिड़ियात कहलाता था। और यहां दूध और दही की नदियां बहती थीं। सुख-समृद्धि, ज्ञान-विज्ञान, सभ्यता-संस्कृति, वैभव-सम्मान सभी क्षेत्रों में भारत का बोलबाला था। भारत को ‘विश्वगुरु’ की उपाधि प्राप्त थी और यहां के वैश्यों द्वारा स्थापित नालंदा और तक्षशिला के विश्वविद्यालयों में विश्व के लोग अध्ययन करने आया करते थे।’

इसी समाज में महाराज अग्रसेन उत्पन्न हुए, जिन्होंने ‘एक रुपया-एक ईट’ परंपरा का उद्घोष किया और 18 गोत्रों पर आधारित शासन का प्रचलन कर गणतंत्र शासन की नींव रखी थी। उन जैसी आदर्श समाजवादी व्यवस्था आज तक न तो संभव हो पाई है और आने वाला युग कैसी शासन व्यवस्था दे सकेगा, इसकी कल्पना करना ही कठिन लगता है।

अग्रे-अग्रे अग्रवाल! वैसे तो राष्ट्र के विकास में संपूर्ण समाज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है किंतु अग्रवाल समाज की भूमिका तो इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित करने योग्य है। इस समाज का राष्ट्र की आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति में तो उल्लेखनीय योगदान रहा ही किंतु जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो उसके योगदान से गौरवाान्वित न हुआ हो।

यदि हम अतीत को छोड भी दें तो आज भी राष्ट्र के आर्थिक विकास में अग्रवाल समाज के उद्योगपति एवं व्यवसायी जो भूमिका निभा रहे हैं, उसके कारण आज भारत दुनिया के विकासशील देशों की अग्रिम पंक्ति में अपना परचम फहरा रहा है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की होड में सबसे आगे है और अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा तक ने उसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।

इस समाज के लक्ष्मीनिवास मित्तल आज विश्व के धनी व्यक्तियों में तीसरा स्थान रखते हैं और विश्व में सर्वाधिक स्टील उत्पादन का श्रेय प्राप्त है। इसी प्रकार भारत में टेलीकॉम (मोबाइल) क्रांति के मसीहा सुनील भारती मित्तल (भारती एअरटेल), मनोरंजन जगत के बादशाह सुभाष गोयल (जी. टी. वी), खनिज उत्पादन एवं उर्जा के आधार स्तंभ अनिल अग्रवाल (वेदांत समूह), टायरों से लेकर खाद्य पदार्थों के व्यवसाय के शहंशाह आर. पी. गोयन्का, रिटेल-व्यवसाय के सरताज रवि एवं शशि रुइया (एस्सार समूह), क्रिकेट क्रांति के जनक जगमोहन डालमिया और ललित मोदी, स्टील के उत्पादन में अग्रणी नवीन एवं सज्जन जिंदल (जिंदल समूह), द्विपहिया वाहनों के निर्माण में विश्व में विशिष्ट स्थान प्राप्त राहुल बजाज आदि भारत के उद्योग क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, उसका नामोल्लेख ही पर्याप्त होगा, वैसे भारत का संपूर्ण उद्योग एवं व्यवसाय जगत इस प्रकार के उद्योगपतियों से भरा पड़ा है और आज ये उद्योगपति केवल भारत में ही नहीं, दुनिया के कोने-कोने में अपना वर्चस्व स्थापित करने में संलग्न है। अग्रवाल समाज के अनेक ऐसे उद्योगपति हैं, जिनकी गणना विश्व के शीर्षस्थ उद्योगपतियों में होती है और दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगपति जिनके साथ व्यापारिक संबंध करने के लिए लालायित है और उनकी क्षमता एवं प्रतिभ का लोहा पूरी दुनिया मानने लगी है। भारत के ऑनलाइन स्टार्टअप्स के जनक भी अग्रवाल ही हैं- ओला, जोमाटो से लेकर फ्लिपकार्ट और स्नैपडील तक.

अग्रवालों ने ही भारत के पहले व्यापारी राज्य रामगढ़ शेखावाटी की नींव रखी थी, जो अपने समय के सबसे धनी और वैभवशाली नगरों में से एक था। अग्रवालों ने मोदीनगर और डालमिया नगर जैसी इंडस्ट्रियल टाउनशिप की नींव रखी थी।

देश के स्वतंत्रता आंदोलन से इस समाज के लोगों का योगदान निकाल दिया जाए तो गौरव करने योग्य शेष बहुत कम बचेगा। इस समाज के ही लाला मटोलचंद थे, जिन्होंने अपनी संपूर्ण संपत्ति छकड़ों में भर-भर कर बहादुरशाह को अर्पित कर दी थी और 1857 की क्रांति को सफल बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई। इसी प्रकार इस समाज के लाल झनकूमल सिंहल, रामजीदास गुड़वाले, हिसार के हुकुमचंद जैन असंख्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे इस क्रांति को बल प्रदान किया और हंसते-हंसते मृत्यु के फंदों पर झूल गए।

स्वतंत्रता युद्ध में इस समाज के लाला लजपतराय, जमनालाल बजाज, राममनोहर लोहिया, देशबंधु गुप्ता, सीताराम सेकसरिया, वसंतलाल मुरारका, प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका, राधामोहन गोकुल जी, शिवप्रसाद गुप्त जैसे असंख्य योद्धा थे जिन्होंने अपने-अपने ढंग से आंदोलन में आहुति दी और भारत की स्वतंत्रता को संभव बनाया। सेठ जमनालाल बजाज इसी समाज के थे, जिनकी कर्मभूमि सेवाग्राम (वर्धा) को गांधीजी ने परतंत्र भारत की राजधानी बनाया और सेठ जमनालाल बजाज की मृत्यु पर्यन्त (1942) तक सम्पूर्ण आजादी के आंदोलन को वहाँ से चलाया। इस आंदोलन में न केवल उन्होंने अपनी सम्पूर्ण संपत्ति गांधीजी को अर्पित कर दी थी। उन्होंने अपितु संपूर्ण परिवार को आजादी के आंदोलन में झोंक दिया। उनके परिवार का कोई सदस्य ऐसा नहीं था, जो इस आंदोलन में जेल न गया हो। अकेले रामकृष्ण डालमिया ने इस आंदोलन में करोड़ों रुपए देकर भामाशाह की भूमिका निभाई परंतु यह पूरा समाज ही इस प्रकार के भामाशाहों से भरा पड़ा है।

स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भी इस समाज ने अपने उच्चतम आदर्शों एवं नैतिकता से राजनीति को पवित्र बनाए रखने का प्रयत्न किया। डॉ. राम मनोहर लोहिया, डॉ. धर्मवीर, डॉ. रघुवीर, पीताम्बरदास, डॉ. श्री श्रीप्रकाश, डॉ. सीताराम रघुकुल तिलक, बनारसीदास गुप्त, शांतिभूषण, जुगलकिशोर, डॉ. भगवानदास, ईश्वरदास जालान, श्रीमन्ननारायण अग्रवाल, वेदप्रकाश गोयल, वृषभानु गुप्त, सुदर्शन अग्रवाल जैसे असंख्य नेताओं ने राजनैतिक पतन की दुरावस्था में भी राजनीति में उच्च मूल्यों एवं आदर्शों की बागडोर संभाली। इस समाज के डॉ. राममनोहर लोहिया ही विपक्ष के ऐसे प्रबल नेता थे, जिनकी जुझारू प्रवृत्ति वाला नेता आज तक देश में दूसरा पैदा नहीं हुआ। कांग्रेस के एकछत्र शासन का विरोध कर भारत में गैर-कांग्रेसी शासन की नींव रखने वाले वे प्रथम नेता थे। देश में यही केवल ऐसा वर्ग है, जो राजनीति को कभी जातियों, वर्णो, समुदायों मे विभक्त करने की कोशिश नहीं करता और जिस देश की सार्वभौमिकता एवं अखंडता की सदैव रक्षा की है।

इस समाज का साहित्य के क्षेत्र में योगदान तो और भी अधिक है। इस समाज के ही कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध नवजागरण की लहर पैदा की और खड़ी बोली हिन्दी साहित्य को नवस्वरूप प्रदान करके एक नये आधुनिक युग का सूत्रपात किया। वे 'आधुनिक हिंदी के जन्मदाता’ कहे जाते हैं। बृजभाषा में काव्य रचना करने वाले जगन्नाथप्रसाद रत्नाकर और राजस्थानी साहित्य को समृद्ध बनाने वाले शिवचंद्र भरतिया का नाम साहित्य जगत में आज भी अमर है। वैसे इस समाज ने बालमुकुंद गुप्त, कन्हैयालाल पोद्दार भारतभूषण अग्रवाल, केदारनाथ अग्रवाल, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, काका हाथरसी, ज्योतिशरण अग्रवाल, रघुवीरशरण मित्र, रामावतार, रामरिख मनोहर जैसे अनगिनत साहित्यकार समाज को दिए हैं, जिन पर कोई भी साहित्य गौरव का अनुभव कर सकता है।

डॉ. रघुवीर ने हिन्दी भाषा में लाखों नये शब्दों और अनेक शब्दकोषों का निर्माण कर हिंदी साहित्य की जो अमूल्य सेवा की उसका अन्यत्र उदाहरण मिलना कठिन है।

विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में भारत को एक से एक बढ़कर वैज्ञानिक और चिकित्सा-विज्ञानी इस समाज ने प्रदान किए है। आधुनिक अग्नि प्रक्षेप्रास्त्र के जनक डॉ. रामनारायण अग्रवाल भारत में ‘हरित क्रांति’ के जनक इंजीनियर सर गंगाराम, राजस्थान नहर जेसी विशाल योजना एवं भारत में भाखड़ा बांध जैसी परियोजनाओं के सूत्रधार डॉ. कंवरसेन, भूकंप विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. जयकृष्ण अग्रवाल, सुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. के. के. अग्रवाल, अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. एच. आर. झुंझनूवाला, भारत मे पोलियो अभियान के जनक एवं दिल्ली में तंबाकू विरोधी अभियान के प्रवर्तक डॉ. हर्षवर्धन, विकलांग चिकित्सा के मसीहा डॉ. आर. के. अग्रवाल एवं कैलास मानव आदि इस समाज के वे गणमान्य वैज्ञानिक, इंजीनियर, चिकित्सक हैं, जिन्होंने राष्ट्र की अमूल्य सेवा कर विज्ञान जगत को गौरवान्वित किया है।

धार्मिक क्षेत्र में श्री जयदयाल गोयन्दका एवं हनुमान पोद्दार ने गीताप्रेस एवं कल्याण के माध्यम से जो कार्य किया है, वह अप्रतिम है। गीता प्रेस ने गीता, रामायण, भागवत, उपनिषद, वेद, पुराण, महाभारत आदि धर्मग्रंथो का सस्ते मूल्य में प्रकाशन और उन्हें घर-घर जनसाधारण में पहुंचा कर वैदिक सनातन धर्म की रक्षा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार का जो कार्य किया है, उसका उदाहरण मिलना कठिन है। खेमराज श्रीकृष्णदास एवं अन्य प्रकाशन संस्थाओं का भी इस दिशा में उल्लेखनीय सहयोग रहा है। ऋषिकेश स्थित स्वर्गाश्रम के तट पर बना गीताभवन आज भी भारत के लाखों श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है। इसके अलावा इस समाज ने देश के कोने-कोने में मंदिरो, धर्मस्थलों, मठों आदि की स्थापना कर धर्मप्रचार के कार्य में अभूतपूर्व योगदान दिया है। आर्य समाज, जैन, बौद्ध, सिक्ख-कोई धर्म ऐसा नहीं है, जो इसके योगदान से अछूता हो। हाल ही में श्री सत्यनारायण गोयनका एवं सुभाष गोयल ने मुंबई में ‘विपश्यना पगोडा’ का निर्माण कर विपश्यना पद्धति के उद्धार का महान कार्य किया है। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल का रामजन्मभूमि आंदोलन में जो योगदान रहा है, उसे सरलता से भुलाया नही जाना संभव नहीं है।

दान धर्म के क्षेत्र में तो इस समाज का कोई सानी नही है। इस समाज द्वारा निर्मित चिकित्सालयों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, प्याउओं, अन्नक्षेत्रों आदि का पूरे देश में जाल बिछा हुआ है और अब युग की मांग को देखते हुए इस समाज के सेवा कार्यो का नये-नये क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है। अब इस समाज द्वारा समय की आवश्यकता को देखते हुए स्थान-स्थान पर पोलियो, अंधता, कैंसर, मधुमेह आदि रोगों के निवारण के लिए नि:शुल्क शिविर लगाए जा रहे हैं, आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित विशालकाय अस्पतालों का निर्माण कराया जा रहा है, ज्ञान-विज्ञान की आधुनिक शिक्षा के लिए उच्च अध्ययन के लिए छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्तियां प्रदान की जा रही हैं, विकलांगो की सेवा के लिए नि:शुल्क कैम्प लगाए जा रहे हैं और बैसाखियां आदि उपलब्ध कराई जा रही है, जो इस समाज की मानवीय सेवा की भावना के श्रेष्ठ निदर्शन हैं।

पत्रकारिता एवं प्रकाशन के क्षेत्र में इस समाज का पूरा वर्चस्व है। भारत में सर्वाधिक बिक्री वाले इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, जागरण, अमर उजाला, विश्वमित्र, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स जैसे जितने समाचार-पत्र, पत्रिकाएं हैं, इस समाज द्वारा संचालित होते हैं। इस क्षेत्र में रामनाथ गोयनका, नरेंद्र मोहन, रमेशचंद्र अग्रवाल, विवेक गोयनका, समीर जैन, शोभना भरतिया, विनीत जैन, शेखर गुप्ता, शिवकुमार गोयल, वेदप्रताप वैदिक जैसे असंख्य पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता की मशाल को अपने सशक्त हाथों में थामा हुआ है। रामनाथ गोयनका भारत में सत्ता परिवर्तन के वाहक समझे जाते थे और उन्होंने राजकीय तानाशाही से सदैव लोहा लिया।

मीडिया के क्षेत्र में जी. टी. वी. ने जो कुछ किया है, उसका सानी नहीं। समाचार-प्रसारण से लेकर फिल्म निर्माण तक उसका कोई मुकाबला नहीं। आज श्री सुभाष चंद्रा मनोरंजन जगत के बादशाह माने जाते हैं और पूरे विश्व के 140 देशों में उनके चैनलों द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों को देखा जाता है। उन्होंने प्रसारण के लिए ‘अग्रणी’ सेटेलाइट की स्थापना कर इस दिशा में महान कार्य किया है।

कला, फिल्म एवं अभिनय के क्षेत्र में भी इस समाज की प्रतिभाएं अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। कला, संगीत, नृत्य के क्षेत्र में रश्मि अग्रवाल, शालू जिन्दल, निष्ठा अग्रवाल आदि ने पर्याप्त प्रसिद्धि अर्जित की है। शालू जिन्दल ने कुचिपुडी नृत्य में अ. भा. स्तर पर प्रतिष्ठा अर्जित की है। इसी प्रकार विभिन्न फिल्मों एवं टी. वी. सीरियलों में अनु अग्रवाल, स्मिता बंसल, सोनिया अग्रवाल, आरती अग्रवाल, काजल अग्रवाल, बिपाशा अग्रवाल आदि ने उत्कृष्ट प्रदर्शन कर कला क्षेत्र में भी अग्रवाल समाज के नाम को ऊचा किया है। अब केवल हिन्दी फिल्मों में ही नहीं, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ फिल्मों में भी अग्र-प्रतिभाएं श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं।

खेलकूद के क्षेत्र में विभिन्न खेलों में आशा अग्रवाल, संध्या अग्रवाल, किरण अग्रवाल, सुरेश गोयल, पुष्पेन्द्र गर्ग, अशोक गर्ग, ओम अग्रवाल आदि ने खेल जगत का सर्वोच्च अर्जुन पुरस्कार अर्जित कर समाज के नाम को गौरावन्वित किया है। श्री जगमोहन डालमिया ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भारतीय क्रिकेट की बुलंदियों तक पहुंचाने का जो उल्लेखनीय कार्य किया, वह खेल जगत की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। ललित मोदी इंडियन प्रीमियर लीग के चेयरमैन तथा भारतीय क्रिकेट बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। उनके निर्देशन में भारतीय क्रिकेट ने नई ऊँचाईयां छुईं। नेहा अग्रवाल ने बीजिंग में आयोजित ओलम्पिक खेलों में प्रथम टेबल टेनिस महिला खिलाड़ी के रूप में भाग लेकर अग्रवाल समाज के नाम को ऊँचा किया है। जी. टी. वी. के सुभाष गोयल ने इंडिया क्रिकेट लीग की स्थापना करके क्रिकेट खेल में जबरदस्त प्रतिस्पर्धी उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है। महान उद्योगपति एल. एन. मित्तल, मोबाइल जगत के शिरोमणि सुनील भारती मित्तल, जिंदल समूह के उदीयमान नक्षत्र नवीन जिंदल ने ओलम्पिक स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों के उत्कृष्ठ प्रदर्शन हेतु विशेष प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था की है। हाल ही में निशानेबाजों ने श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा को मित्तल चैम्पियन ट्रस्ट द्वारा उल्लेखनीय सहायता प्रदान की गई थी।

इसी प्रकार न्याय, विधि, राष्ट्र रक्षा, कृषि, पर्यावरण, जादू-कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जो अग्रवाल समाज के योगदान से गौरवान्वित न हुआ हो। अब अमेरिका जैसे महान देशों में बॉबी पीयूष जिंदल, प्रीता बसंल, मंजू गनेडीवाल आदि ने उच्च पदों पर प्रतिष्ठापित होकर अंतरराष्ट्रीय जगत में स्थान बनाया है। इस समाज की अनेक विभूतियों पर डाक टिकट प्रकाशित कर और उन्हें भारत रत्न, पदमविभूषण, पदमभूषण, पदमश्री, शौर्य चक्र, महावीर चक्र, राष्ट्रपति पदक आदि अलंकरण प्रदान कर उनके विशिष्ट कृति को मान्यता प्रदान की गई है।

निष्कर्ष रूप में अग्रवाल समाज ने भारत राष्ट्र को प्रत्येक क्षेत्र में गौरवान्वित किया है और भारत को प्रतिष्ठा की उंचाइयों तक पहुंचाने एवं विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बनाने में उसने महत्वपूर्ण भूमिका है। सबसे बडी बात यह है कि यही एकमात्र समझ है, जो कभी जाति, पाति, धर्म, संप्रदाय, आदि संकीर्ण बातें न करता और जिसके लिए संपूर्ण भारत अपना परिवार, विश्व कुटुम्ब है एवं प्राणिमात्र के कल्याण की भावना जिसकी रग-रग मे समाई है। अब तक की उपलब्धियों के आधार पर यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि अग्रवाल समाज भारत के ही नहीं, विश्व के श्रेष्ठतम समाजों में से एक है और उस पर गौरव अनुभव करने प्रत्येक अग्रवाल को अधिकार है।

लेख साभार: राष्ट्रीय अग्रवाल सभा

मुकेश अम्बानी नौवी बार लगातार भारत के सबसे बड़े धनपति कुबेर

मुकेश अम्बानी नौवी बार लगातार भारत के सबसे बड़े धनपति कुबेर 


 साभार: दैनिक भास्कर 

SIZAL AGARWAL IPS - सिज़ल अग्रवाल

SIZAL AGARWAL IPS - सिज़ल अग्रवाल 











Saturday, September 26, 2020

रामगढ़ शेखावटी : #अग्रवाल_हेरिटेज

रामगढ़ शेखावटी : #अग्रवाल_हेरिटेज


रामगढ़ सेठान बंसल गोत्र के अग्रवाल महाजनों ने बसाया था। ये अपने समय के सबसे अमीर नगरों में से एक था। वैसे तो शहर अपने राजा के नाम से जाने जाते हैं लेकिन राजस्थान का #रामगढ़_सेठान या रामगढ़ सेठोका जाना जाता है अपने सेठों की वजह है । इसके इतिहास से एक बहुत ही दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है । पोद्दार चुरू में व्यापार करते थे । वो बहुत ही सम्पन्न व्यापारी थे । उनके आलीशान हवेलियां उसमे की गई नक्काशी उनके रुतबे को दर्शाती थीं । अब वहाँ के जागीरदारों को इनकी अमीरी देख के जलन हुई उन्होंने इनपे टैक्स बड़ा दिए और वो टैक्स इतने ज्यादा थे कि सेठों ने कहा ये गलत है और इसका विरोध किया । और विरोध इतना ज्यादा बढ़ गया कि पोद्दारों ने कहा "हम चुरू छोड़ के जा रहे हैं और जहाँ भी जाएंगे वहाँ इससे भव्य और आलीशान नगर बसायेंगे ।" 

रामगढ़ 1791 में सेठान #रामदास_पोद्दार परिवार ने बसाया था । ये राजस्थान के #सीकर जिले में पड़ता है । रामदास पोद्दार ने #राजस्थानी कि इस कहावत 'गांव बसायो #बाणियों ,पार पडे़ जद जाणियों ' को असत्य सिद्ध कर दिया । उस समय दूसरे शहरों से संपन्न सेठ वहां आकर बसे । फतेहपुर के बंसल वहां आकर बसे जिनका रुई का व्यवसाय होने के कारण रुईया कहलाये । वहां के सेठ ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ व्यवसाय करने लगे ।1860 ई. के आसपास रामगढ़ के पोद्दारों की प्रथम पंजीकृत कम्पनी 'ताराचंद- घनश्याम ' 'थी ।उसी कम्पनी के साथ पिलानी की शिवनारायण बिड़ला (घनश्याम दास बिड़ला के दादा )ने नाममात्र की हिस्सेदारी के साथ प्रथम बार स्वतंत्र व्यापार में प्रवेश किया ।घनश्यामदास बिड़ला की जीवनी 'मरुभूमि का वह मेघ' में कंपनी का नाम 'चेनीराम जेसराज 'लिखा है ।वे बंबई में अफीम का व्यवसाय चीन के साथ करते थे । ध्यातव्य है कि शिवनारायण के पिता शोभाराम तो पूर्णमल गनेडी़वाले सेठों की गद्दी पर अजमेर में 7 रुपये महीने पर नौकरी करते थे । रामदास पोद्दार #बंसल_गोत्र का #अग्रवाल महाजन था । उनके पूर्वज शासन में पोतदार (खजांची ) थे। अतः वे पोद्दार कहलाए ।प्राचीन भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं थी ।वर्ण का निर्धारण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता था। वैदिक युग में वैवस्वत मनु के पुत्र नाभानिर्दिष्ट की कथा प्रसिद्ध है । जिन्होंने अपने पिता के क्षत्रिय वर्ण को छोड़ कर वैश्य वर्ण का वरण कर लिया था । #अग्रवाल, #महेश्वरी, खंडेलवाल, विजयवर्गी, ओसवाल आदि कुल के #महाजन पहले #क्षत्रिय थे परंतु उनके पूर्वज क्षत्रीय कर्म छोड़कर वैश्य कर्म करने लगे ।अतःवैश्य कहलाए । वह अपने क्षत्रीय अतीत को याद रखते हुए अपनी व्यवसाय पीठ को आज भी गद्दी कहते हैं। #शेखावाटी में बसने से पहले उनका #पंजाब और हरयाणा क्षेत्र में व्यवसाय था । पंजाब और #हरयाणा प्रारंभ से ही क्षेत्र सिंचित क्षेत्र होने के कारण संपन्न थे वहां व्यापार वाणिज्य खूब फला फूला । वहां के व्यापारियों के अफ़गानिस्तान ,चीन ,फारसआदि से व्यापारिक रिश्ते थे ।वह 'बलदां खेती' घोड़ा राज 'का जमाना था ।काबुल के व्यापारी घोड़े ,पिंडखजूर आदि लेकर के आते थे ।#रवींद्रनाथ_टैगोर की सुप्रसिद्ध कहानी 'काबुलीवाला' कहानी का कथानक भी यही है। काबुल के घोड़े बड़े प्रसिद्ध होते थे । कहा भी है -केकाण(घोड़े) काबुल भला । महाराणा प्रताप का घोडा़ चेटक (अर्थ-सेवक) भी काबुल का ही था ।कालांतर में उत्तर की ओर से विदेशी हमले होने लगे तो उन्होंने किसानों की आबादी से घिरे दुर्गम, शांत व असुन्दर स्थानों को अपने बसने के लिए चुना । इसी क्रम में शेखावाटी में आबाद हुए ।मरुभूमि का मतलब मृतभूमि होता है परंतु यहां के वीरों -दानवीरों ने इसे अमृतभूमि बना दिया । #कन्हैयालाल_सेठिया ने इसीलिए लिखा -आ तो सुरगां ने सरमावै, इण पर देव रमण ने आवै ,धरती धोरां री -----।उन्होंने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियां बनाई जो सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत होने के साथ-साथ रहने के लिए भी काफी अच्छी थी । रामगढ़ सेठान की हवेलियां भी बडी़ चित्त -आकर्षक हैं । सीकर के राजमहल में रामगढ़ के सेठों का बड़ा सम्मान था। एकबार किसी गांव के एक गांववाले ने सीकर के महाराज से शिकायत की आप रामगढ़ वालों पे इतना ज्यादा ध्यान क्यों देते हैं । राजा ने उनकी परीक्षा ली कहा कि तुमलोग 1 करोड़ रुपये का प्रबन्द करो अभी । और पूरे सीकर में । लोगों ने मना कर दिया कहा ऐसा नहीं हो सकता है । फिर राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि रामगढ़ जाओ और सेठों को बोलो की महाराज को इस समय एक करोड़ रुपये चाहियें (इस समय के करीब अरबों में ) । मंत्री गए और सेठों को बताया । सेठों ने कहा कि राजा से पूछो की रुपये ,अन्ना ,पैसे किसमे चाहिए ? मंत्री आये और राजा को बताया । राजा ने कहा अब समझे मैं रामगढ़ सेठान का इतना ध्यान क्यों रखता हूँ । 

1835 के रामगढ़ की एक झलक #लेफ्टिनेंट_बोइलू की डायरी में मिलती है ।जिसने मरू प्रदेश की उस वर्ष यात्रा की उसने रामगढ़ को एक समृद्ध सीमा स्थित कस्बे के रूप में जो स्वच्छता के साथ साथ घेरे के अंदर स्थित है और साहूकारों से भरा हुआ बताया है जिनकी कमाई पर अब तक किसी को न बक्शने वाली कैंची नहीं पड़ी है। सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर कैप्टन वेब जो 1934 से 38 तक सीकर ठिकाने का सीनियर अफसर रहा ,ने 'सीकर की कहानी 'नामक अंग्रेजी में पुस्तक में अपने प्रवास के दौरान सीकर ठिकाने के संस्मरण लिखें हैं ।उसमें #कैप्टन_वेब ने रामगढ़ के सेठों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बताया है है ।इसी कारण राज दरबार में भी उन्हें पूरा सम्मान मिलता था तथा विशेष कुर्सी रामगढ़ के क्षेत्रों को उपलब्ध करवाई जाती थी । 

मेरे मित्र जनकवि रामेश्वर बगड़िया ने मुझे कहा कि रामगढ़ को गर्भ को देखने चलें ।अतः 7 जनवरी, 2019 को हम दोनों रामगढ़ सेठान गए ।रामगढ़ में पुरातन वस्तुओं के संग्रहालय कई व्यक्तियों ने बना रखे हैं ।उनके माध्यम से वह अपना व्यवसाय करते हैं ।देश -विदेश के पर्यटक उन्हें देखने व खरीदने आते हैं ।ऐसे ही एक संग्रहालय व फैक्ट्री के मालिक श्री मनोज जौहरी हैं । हम उनकी फैक्ट्री में गए ।उन्होंने हमें फैक्ट्री व उनके संग्रहालय में पुरातन वस्तुएं दिखाई ।पुरातन शैली में नवनिर्मित वस्तुएं भी देखी ।उसके बाद वे हमें रामगढ़ की हवेलियां दिखाने ले गए ।श्री मनोज ने हमें बताया की हर वैश्य सेठ नहीं कहलाता है ।सेठ एक पदवी है जो विभिन्न जनहितार्थ एवं संस्थाओं के निर्माण करने के बाद ब्रहमपुरी करके पंडितों द्वारा दी जाती है ।वे हैं , हवेली, बैठक, नोहरा ,बगीचा ,बगीची, कुआ ,बावड़ी ,तालाब प्याऊ ,पाठशाला आदि का बनवाना आवश्यक था । उन हवेलियों एवं सेठों से जुड़ी कई दंत कथाएं हैं ।एक हवेली के बारे में हमें श्री मनोज ने बताया कि यह मस्जिद वाली हवेली कहलाती है । इसके अंदर मजार बनी हुई है ।हम उसे देखने के लिए गए। हवेली में एक कमरे के नीचे सीढ़ियां उतर रही थी। श्री मनोज ने कहा ,इसी के नीचे मजार है ।श्री रामेश्वर बगड़िया, हम दोनों के मना करने पर भी उसमें टॉर्च लेकर उतर गए । उन्होंने कहा यह कोई मजार नहीं है बल्कि एक छोटा कमरा है ।दरअसल वह तहखाना था । लोगों को भ्रमित करने के लिए शायद सेठ ही ऐसा प्रचार कर देते थे ।दूसरी हवेली में हमने रंग महल देखा बहुत ही सुंदर चित -आकर्षक चित्र उस रंग महल में बने हुए थे जो आज भी मुंह बोल रहे थे ।हवेली में बादल महल,हवामहल ,पोल़ी,रसोई आदि बने हुए थे । उन्हें देख कर लगा कि 'खंडहर कह रहे हैं,इमारत कभी बुलंद थी '।वह हवेलियां आज इतनी विरान हैं कि वहां चमगादड़ भी नहीं रहते हैं ।उनसे जुड़ी हुई कई दंत कथाएं आज भी क्षेत्रीय बुजुर्गों की जुबान पर हैं । प्राचीन समय में रामगढ़ छोटी काशी के नाम से ख्यात था ।वहां अनेक पाठशालाएं थी ।

मैंने लिखा -
हवेली पहेली चित्र, लघु काशी पहचान ।
रामगढ़ सेठान विगत, शेखावाटी शान ।।

वहां के सेठों के बारे में भी अनेक दंत कथाएं हैं। एक सेठ ने सर्दियों में सियार बोलते हुए सुने तो मुनीम से पूछा सियार क्यों बोल रहे हैं तो मुनीम ने कहा यह सर्दी में ठिठुर रहें हैं ,इसलिए बोल रहे हैं ।सेठ ने दूसरे ही दिन सियारों के लिए रजाइयों की व्यवस्था कर दी । रूस के सुप्रसिद्ध लेखक रसूल हमजातोव ने अपनी मातृभूमि 'मेरा दागिस्तान ' पर एक पुस्तक लिखी है ।मुझे शेखावाटी के गर्भ को देखकर' मेरा दागिस्तान'का वर्णन याद आ गया । उन्होंने भारत के बारे में लिखा है कि वहां की पुरातन संस्कृति, उसके दर्शन में मुझे किसी रहस्यमय कंठ की ध्वनि सुनाई देती है ।रामगढ़ की उन वीरान हवेलियों में हमें भी रहस्यमय कंठ ध्वनियाँ सुनाई दे रही थी । 
शेखावाटी के बारे में राजस्थानी के कवि सुमेरसिंह शेखावत ने लिखा है --

#शेखाजी_की_शेखावाटी, डीघा डुंगर बाल़ू माटी ।
बुध री भूर #बाणियां बांटी,जण में जाट जंगलां जांटी ।।

अर्थात बुद्धि शेखावाटी के हिस्से में आई उसे तो बणियों ने ही आपस में बांट लिया । किसी का भी शासन हो सेठों ने अपनी तराजू के बल पर तख्त से सांठगांठ रखी । मुगल काल में शेखावाटी मे बनाए सेठों के कुएं के ऊपर उन्होंने मीनारें बना दी ताकि मुस्लिम शासक मस्जिद की मीनारों की तरह ही उन्हें भी पवित्र मानते हुए पानी को प्रदूषित नहीं करें ।व्यापारिक दक्षता उनमें बहुत अच्छी रही इसलिए राजस्थानी में एक कहावत है 'बिणज करेला वाणिया और करेला रीस'। #गीता में कहा है -'कृषिगौरक्षदाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्' ।

यहां के धन्ना सेठ धोरों से हिलोरों तक गये परंतु मातृभूमि के प्रति भाव हिलोरें हमेशा उनके ह्रदय में उमड़ती रही ।कहा है #जननी_और_जन्मभूमि_स्वर्ग_से_भी_बढ़कर_होत_हैं उन्होंने अपनी जन्मभूमि को स्वर्ग माना । हर साल वे जन्म भूमि की तीर्थ यात्रा पर आते । उनकी भावनाओं को दर्शाने वाला एक गीत है 

'देश ने चालो जी ढोला मन भटके, काकड़ी मतीरा खास्यां खूब डटके ।'

वे दिन चले गए, वे लोग चले गये परन्तु रेत पर सुकेत बना अमिट हस्ताक्षर छोड़ गये ।आज सातवीं -आठवीं पीढ़ी सेठों की अपनी मातृभूमि को भूलते जा रही है। हवेलियां तो आज भी 'पधारो म्हारे देश' का आह्वान कर रही हैं ।इसी को वर्णित करते हुए एक कवि ने लिखा है ।

सेठ बस #कोलकाता ,#मुंबई #डिब्रूगढ़ #आसाम ।
जाकर ठाड़े बैठ्या, काटे उम्र तमाम ।।
कुण सूं मुजरो करे #हवेलियां ,बरसां मिले न #राम ।
बाटड़ली जोवे आवण री,गोखे बैठी शाम ।

साभार: राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा

AGRASEN JAYANTI IN SURAT - अग्रसेन जयंती सूरत

 


Thursday, September 3, 2020

PAWAN GARG - A GREAT SW ENGINEER

 PAWAN GARG - A GREAT SW ENGINEER




KAVIN BHARTI MITTAL - HIKE

देश के दिग्गज कारोबारी के बेटे हैं यह युवा उद्यमी, लेकिन खुद की बदौलत बनाया 10,000 करोड़ का साम्राज्य


अबतक हमने शून्य से शिखर तक का सफ़र तय करने वाले कई युवा उद्यमियों के सफलता की कहानियां पढ़ी। लेकिन आज की कहानी एक ऐसे उद्यमी के बारे में है जिन्होंने अपने पिता के खरबों डॉलर के कारोबार का उत्तराधिकारी बनने के बजाय खुद की काबिलियत से अपनी करोड़ों रुपये की कंपनी बना डाली। इस शख्स ने न सिर्फ करोड़ों रूपये की कंपनी बनाई बल्कि भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों को एक शानदार तोहफा भी दिया। इंटरनेट के जरिये संदेशों के आदान-प्रदान की सुविधा देने वाली दुनिया की सबसे लोकप्रिय ऐप व्हाट्सअप को भारतीय बाज़ार में टक्कर देने के उद्देश्य से उन्होंने एक ऐप का निर्माण किया जिसकी मार्केट वैल्यूएशन आज 10 हज़ार करोड़ रुपये के पार है। 

यह कहानी है ‘हाईक’ ऐप बनाने वाले 29 साल के कविन भारती मित्तल की। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कविन, देश के दिग्गज कारोबारी और भारती एयरटेल समूह के सस्थापक सुनीत भारती मित्तल के बेटे हैं। अन्य करोड़पति के बेटे की तरह कविन ने लक्ज़री जिंदगी का मज़ा लेने की जगह अपनी पढ़ाई पर फोकस रखा। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कविन ने यॉर्क विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने लंदन के प्रसिद्ध इंपीरियल कॉलेज से साल 2009 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और प्रबंधन में मास्टर की डिग्री हासिल की। 


पढ़ाई पूरी करने के बाद पिता के खरबों डॉलर की भारती समूह में ज्वाइन करने के बजाय उन्होंने ऋण पूंजी बाजार (डीसीएम) और टेलीकॉम, मीडिया और प्रौद्योगिकी (टीएमटी) क्षेत्रों में पकड़ की खातिर इंटर्नशिप कर ली। इंटर्नशिप पूरी करने के बाद उन्होंने गेमिंग इंडस्ट्री का रुख करते हुए अपने अंदर सॉफ्टवेयर डिजाईन करने की काबिलियत पैदा की। कई छोटे-बड़े आईटी कंपनियों के साथ काम करने के बाद कविन ने भारत लौट खुद की एक कंपनी शुरू करने की योजना बनाई। 

कविन का सबसे पहला प्रोजेक्ट एपस्पार्क के नाम से सामने आया, जो खास तौर पर एप्पल मोबाइल इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए डिजाईन की गई थी। मूवीटिकट्स डॉट कॉम नाम की एक वेबसाइट के साथ साझेदारी कर उन्होंने मूवीज नाउ नाम के एक एप को लांच किया जो उपयोगकर्ताओं को मूवी टिकट खरीदने के लिए एक मोबाइल प्लेटफार्म मुहैया कराती थी। इतना ही नहीं उन्होंने रेस्टोरेंट में लोकप्रिय आइटम का सुझाव देने के लिए फ़ूडस्टर नाम का एक एप बनाया। 

सॉफ्टवेयर और तकनीक में बेहद दिलचस्पी की बदौलत कविन ने दिसम्बर 2012 में हाईक नाम के एक एप को लांच किया, जो इंटरनेट के जरिये संदेशों के आदान-प्रदान की सुविधा मुहैया कराती है। अपनी अलग डिजाईन और कुछ देशी सुविधाओं से लैस यह एप जल्द ही भारतीय इंटरनेट जगत में लोकप्रिय हो गई। इतना ही नहीं अपनी लोकप्रियता से बड़े-बड़े निवेशकों का ध्यान आकर्षित करते हुए कंपनी ने कई चरणों में करोड़ों की फंडिंग उठाई। 


10 मिलियन डाउनलोड के साथ आज यह एप भारत में दुनिया की सबसे लोकप्रिय मेसजिंग एप व्हाट्सअप को टक्कर देती है और यह दुनिया की छठी सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाली एप है। एक महीने में 40 अरब से भी ज्यादा संदेशों का आदान-प्रदान करते हुए इस कंपनी की वैल्यूएशन आज 10 हजार करोड़ रुपये के पार है। 

कविन चाहते तो पिता के अरबों डॉलर के बिज़नेस का उत्तराधिकारी आसानी से बन सकते थे। इसके लिए उन्हें न कोई पढ़ाई करने की जरुरत होती और न ही दिन-रात एक कर कोई एप्लीकेशन डिजाईन करने की। लेकिन उन्होंने ऐसा न करते हुए जुनून के साथ मेहनत की और खुद का करोड़ों का साम्राज्य बनाया। उनकी कहानी वाक़ई में बेहद प्रेरणादायक है। 

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/देश-के-दिग्गज-कारोबारी-के

RISHI SHAH - SHRADDHA AGARWAL, OUTCOME HEALTH

RISHI SHAH - SHRADDHA AGARWAL, OUTCOME HEALTH 

बहन की खराब सेहत से मिला स्टार्टअप आइडिया, कॉलेज छोड़ बनाई कंपनी, 10 वर्ष के भीतर ही बन गये अरबपति


हर इंसान को सपने देखना चाहिए और उसे पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश करनी चाहिये और तब तक करते रहनी चाहिये जब तक आप सफल न हो जाए। इस कथन पर विश्वास रखने वाले भारतीय अमरीकी ऋषि शाह आज अरबों की कंपनी के मालिक हैं। ऋषि शुरू से एक आंत्रप्रन्योर बनना चाहते थे और उसे पूरा करने के लिए 10 साल पहले 2006 में अपनी पढ़ाई छोड़ कर अपनी दोस्त श्रद्धा अग्रवाल के साथ मिलकर शिकागो में हेल्थ केयर टेक कंपनी ‘आउटकम हेल्थ‘ की स्थापना की। तब इसकी लागत 600 मिलियन डॉलर (करीब 3856 करोड़ रुपये) आई थी और अब इसका वैल्युएशन 5.6 बिलियन डॉलर (करीब 35,990 करोड़ रुपये) पर पहुंच चुका है।


शाह के पिता एक डॉक्टर हैं जो भारत से अमेरिका जा बसे। शाह शिकागो के उपनगरीय इलाके ओक ब्रूक में पले-बढ़े। उन्हें डॉक्टरों के दफ्तरों में कॉन्टेंट मुहैया करानेवाली कंपनी का शुरुआती विचार बहन की बीमारी से प्ररेणा ले कर आया। शाह कहते हैं कि, ‘मेरी बहन को टाइप 1 डायबिटीज है। वह अपने ब्लड शुगर को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने के लिये इंसुलिन पम्प का इस्तेमाल करती है, जिससे वह अपना ब्लड शुगर की जांच ज्यादा प्रभावी तरीके से कर पाती है। उनके आइडिया का फायदा आज डिवाइस बनानेवाले, इंसुलिन बनानेवाले, ब्लड ग्लूकोमीटर, डॉक्टर सबों को मिला है, लेकिन सबसे ज्यादा फायदे में हैं मरीज। ऋषि शुरू से ही आंत्रप्रन्योर बनना चाहते थे और बहन की बीमारी ने उन्हें मेडिकल इनफार्मेशन की दिशा में कुछ रचनात्मक प्रयास करने का मार्ग प्रशस्त किया।

शाह ने बतौर ट्रांसफर स्टूडेंट नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, जहां वह श्रद्धा अग्रवाल नाम की एक महिला से मिले जो आज उनकी कंपनी की प्रेजिडेंट हैं। दरअसल, एक कैंपस मैगजीन के लिए काम करते हुए दोनों ने साल 2006 में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए कॉन्टेक्स्टमीडिया नाम की एक कंपनी की नींव रखी। कंपनी बिना किसी बाहरी निवेश के फिजिशियनों और अस्पतालों को वीडिओ मॉनिटर सर्विसेज बेचने लगी। अगले 10 सालों में कंपनी का विस्तार तेज़ी से होने लगा और बड़े-बड़े निवेशकों की नज़र इन पर पड़ने लगी। किन्तु शाह और अग्रवाल ने मालिकाना हक़ खुद के पास रखने का निर्णय लिया। दोनों ने ही सारे ऑफर्स ठुकरा दिए फिर कंपनी को जब पहली बड़ी फंडिंग मिलने वाली थी तो इन्होने कंपनी का नाम बदल कर “आउटकम हेल्थ” रख दिया।

आउटकम हेल्थ का उद्देश्य टेक्नोलॉजी के द्वारा डॉक्टर्स और मरीजों को किसी भी बीमारी अथवा मेडिकल कंडीशन के बारे में नई से नई और ज्यादा से ज्यादा जानकारी देना तथा आगे वह उपचार के लिए किस दिशा में जाएं जैसी जानकारियां विडिओ के द्वारा, टेबलेट्स डिवाइस पर और डॉक्टर्स के वेटिंग रूम में लगी स्क्रीन पर देकर बतायी जाती है। आज आउटकम हेल्थ लगभग 40 हज़ार से ज्यादा स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों में अपना योगदान दे रही है और अमेरिका में कार्य कर रहे लगभग 20 प्रतिशत डॉक्टर्स के ऑफिस में अपनी जगह बना चुकी है। अब तक इस के साथ 2 लाख 30 हज़ार हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स जुड़ चुके हैं और करीब 585 मिलियन लोग हर साल इनकी सेवाओं का लाभ लेते है।


आज “आउटकम हेल्थ” एक नई यूनिकॉर्न कंपनी है, जिसे इसी वर्ष जुलाई माह में एक बिलियन डॉलर (करीब 64.26 अरब रुपये) मूल्य की करीब 200 कंपनियों की सूची में टॉप 30वां स्थान हासिल हुआ है।

कंपनी को पिछले साल तक 13 करोड़ डॉलर से ज्यादा का रेवेन्यू मिला और इनका ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन लगभग 40 फीसदी रही। शाह चाहते हैं कि भविष्य में उनकी कंपनी “आउटकम हेल्थ” के द्वारा दी जाने वाली जानकारियां दुनिया के हर डॉक्टर के क्लिनिक में उपस्थित हो और उन्हें यह विश्वास है कि वर्ष 2020 तक यह संभव हो जाएगा। आज ऋषि सिर्फ 31 साल की उम्र में न सिर्फ एक सफल बिजनेसमैन है बल्कि लाखों करोड़ों युवाओं के लिए रोल मॉडल भी। सच में ऋषि ने एक असंभव से दिखने वाले काम को अपनी लगन व मेहनत से बड़ा ही सहज बना दिया है।

साभार: tribe.kenfolios.com/hindi/story/बहन-की-खराब-सेहत-से-मिला-स्

Wednesday, September 2, 2020

HIMANSHU JAIN IAS



अग्रवालों द्वारा बनाई गई हिन्दू समाज की महान् धरोहर - गीताप्रेस गोरखपुर

अग्रवालों द्वारा बनाई गई हिन्दू समाज की महान् धरोहर - गीताप्रेस गोरखपुर
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दो दिन पहले #ब्लूम्सबरी प्रकाशन ने दिल्ली दंगे पर #मोनिका_अरोरा की पुस्तक को #इलसामी #कमिनिस्टों #पोटेंशियल_टेरोरिस्ट के दवाब के कारण प्रकाशित करने से पीछे हट गई है। परिणामस्वरूप हर कोई राष्ट्रवादी हिन्दू हित प्रकाशन की बात कर रहा है। इसी मुद्दे पर कल #ट्रू_इंडोलॉजी ने गीता प्रेस प्रकाशन पर एक अत्यन्त प्रभावी ट्विटर सूत्र लिखा था। जिसे मैं हिन्दी में अनुवाद कर साझा करना चाहता हूं। आप सब पढ़ें। 

भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े गैर वामपंथी प्रकाशक: #गीता_प्रेस, गोरखपुर है। गीता प्रेस की स्थापना 1923 में #श्री_जय_दयाल_गोयंका द्वारा की गई थी। #हनुमान_प्रसाद_पोद्दार इसके संस्थापक संपादक थे। इसकी पहली पत्रिका कल्याण 1927 में प्रकाशित हुई थी। जबकि इस अवधि की अधिकांश पत्रिकाएँ पुस्तकालय और अभिलेखागार तक ही सीमित हैं, गीता प्रेस और कल्याण अभी भी लाखों प्रतियों के साथ मौजूद हैं। जब अन्य प्रकाशन नहीं थे, तब भी गीता प्रेस अपनी पुस्तकों को बहुत ही उचित मूल्य पर प्रकाशित करता है। आज भी उदाहरण के लिए, भगवद गीता को 30 रुपये में खरीदा जा सकता है। हनुमान चालीसा की एक प्रति सिर्फ रु। 2 (हर साल छपी 50 लाख प्रतियां)। फिर भी, मुद्रण, कवर और सामग्री की गुणवत्ता श्रेष्ठ है। 

लेकिन क्यों गीता प्रेस इतने न्यूनतम मूल्य पर उत्कृष्ट पुस्तकों को क्यों प्रकाशित करता है? जो अनिवार्य रूप से सृजन लागत के बराबर या उससे अधिक नहीं है? 

इस प्रश्न का उत्तर यह है कि गीता प्रेस की स्थापना एक लाभ कमाने वाले उद्यम के रूप में नहीं की गई थी। इसके लक्ष्य दूरगामी थे। 

गीता प्रेस की स्थापना ऐसे समय में हुई थी जब #इसाई_मिशनरियों ने हिंदुओं के धर्मांतरण में तेजी से प्रगति की थी। वे हिंदू धर्म पर हमले कर रहे थे। मिशनरी किसी को भी बाइबल की प्रतियां वितरित करते थे जो इसे स्वीकार करने के लिए थोड़ी सी भी झुकाव दिखाते हैं। बाईबिल की बाढ़ आ गयी थी। इसके विपरीत, कुछ पंडितों को छोड़कर जो क्षेत्र के विशेषज्ञ थे, एक साधारण हिंदू के पास उनकी किसी भी पुस्तक की कोई मुद्रित प्रति नहीं थी। साधारण हिंदू को अपने धर्म की पुस्तकों का कोई अच्छा ज्ञान नहीं था। 

गीता प्रेस की स्थापना केवल धर्म के प्रचार और बचाव के लिए की गई थी।

गीता प्रेस के प्रमुख कथावाचक #कृपाशंकर_रामायणी थे। वे गांव-गांव घूमते थे। काम के बाद शाम में आसपास लोगों को इकट्ठा करें और #रामचरितमानस का पाठ करते थे। उनका वेतन शून्य था। भोजन और यात्रा गीताप्रेस द्वारा आयोजित की गई थी। गीता प्रेस की सफलता अतुलनीय है। 2014 तक, उन्होंने गीता की 72 मिलियन से अधिक प्रतियां, रामचरितमानस की 70 मिलियन प्रतियां और पुराणों की 19 मिलियन प्रतियां बेंची। गीता प्रेस आज भारत का सबसे बड़ा प्रकाशक है। इस संख्या के आधार पर अन्य प्रकाशन बौने सिद्ध होते हैं। 

यह केवल गीता प्रेस के कारण था कि एक साधारण हिंदू के घर भी #रामचरितमानस या #भगवद गीता की प्रति उपलब्ध है। यह गीता प्रेस के कारण था कि एक सामान्य हिंदू अपने धर्म के बारे में पढ़ और जान सकता था। यह गीता प्रेस था जिसने मिशनरीयों के बायबल प्रसार को चुनौती दी थी।

जितने भी बड़े प्रकाशन हैं उनका आज अपना एक शानदार और पॉश ऑफिस है? लेकिन गीता प्रेस हाउस बहुत छोटी मकान है। यह बहुत छोटे मंदिर जैसा दिखता है। यह निश्चित रूप से "भारत के सबसे बड़े प्रकाशक" से कोई अपेक्षा नहीं करेगा।। 

आप में से कितने लोग जानते हैं कि गीता प्रेस के संस्थापक संपादक एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे? 

मात्र 22 साल की उम्र में, हनुमान प्रसाद पोद्दार को गिरफ्तार किया गया था और उन्हें #अनुशीलन_समिति के क्रांतिकारी भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को हथियार की आपूर्ति करने का दोषी ठहराया गया था, जो भारत को आजाद कराना चाहते थे और ब्रिटिश के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ दिया था। उनके साथ कई मारवाड़ी अग्रवालों को उनके साथ जेल की सजा हुई थी। 

आप में से कितने लोग जानते थे कि उसने अंग्रेजों के साथ सीधा युद्ध किया था। रामचरितमानस की लाखों प्रतियों के विपरीत, उनके अपने संस्थापक संपादक पर शायद ही कोई गीता प्रेस प्रकाशन हो। क्यों? क्यों गीता प्रेस ने अपने संपादकीय संस्थापक के बारे में कुछ भी क्यों नहीं प्रकाशित किया? इसका उत्तर गीता प्रेस के आदर्श वाक्य में है। हनुमान प्रसाद पोद्दार कहते थे "मुझे आत्म प्रशंसा कभी स्वीकार नहीं। गीता प्रेस ने व्यक्तियों की आत्म प्रशंसा और पूजा को बंद कर दिया।" हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने पद-रत्नाकर जैसे ग्रंथों की रचना की लेकिन उसके एक भी पद में अपना नाम नहीं दिया। 

सोचिए जब लाखों लोग गीता प्रेस के प्रकाशनों का उपयोग करते हैं, तब भी गीता प्रेस बारे में शायद ही कुछ जानते हैं। कितनी सरल सहज स्वभाव की है यह संस्था कि गीता प्रेस के बारे में जो भी जानकारी उपलब्ध है, चाहे वह ऑनलाइन हो या कहीं अन्य स्थान पर, वह सब ज्यादातर पार्टियों और व्यक्तियों द्वारा इसका तथाकथित मूल्यांकन के रूप में ही है। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गीता प्रेस के संस्थापक संपादक, हनुमान प्रसाद पोद्दार को तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने #भारत_रत्न के लिए अनुशंसा की थी। लेकिन पोद्दार ने इसे स्पष्ट रूप से मना कर दिया। अपने पूरे जीवन में, पोद्दार ने किसी भी प्रकार का सत्कार स्वीकार नहीं किया।

बड़े-बड़े प्रिंट मीडिया हाउस खुले और बन्द हो गए, किन्तु गीताप्रेस और उसकी ‘कल्याण’ पत्रिका आज भी जीवित है। इतनी बड़ी संस्था बिना ईश्वरीय कृपा के भला कैसे चल सकती है! गीताप्रेस के संस्थापक श्री जयदयाल गोयन्दका कहा करते थे कि ‘यदि मेरे द्वारा किया जानेवाला कार्य अच्छा होगा, तो भगवान् उसकी सम्भाल अपने आप करेंगे।"

गीता प्रेस के संस्थापक संपादक एवं सभी कर्मचारियों को नमन रहेगा। 

यदि आपके घर गीता प्रेस की पुस्तक या ग्रन्थ नहीं तो आपको पुनः अपने जीवन को लेकर विचार करने की आवश्यकता है।