BANIAS HOLD IN MUMBAI - मुंबई में कारोबार में बनियों का वर्चस्व
#मुंबई में 90% कारोबारी मारवाड़ी, गुजराती, हरयाणवी, मालवी या सिंधी बनिए हैं। देश के सभी तरह के कारोबार पर इन पश्चिम के बनियो का वर्चस्व है। पारसी भी इन्हीं में आ जाते हैं। देश के टॉप हजार कुबेरपतियो में 80% इन्हीं में से होंगे।
मुंबई का कारोबार इन्हीं की वजह से है। मूलत: सर्विस क्लास और एंटी उद्यमी मानसिकता वाला शहरी महाराष्ट्रीयन समाज इन्हीं के कारण फायदे में है। लेकिन ये लोग सबको भगाने की बात करते रहते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि देश की कारोबारी राजधानी गुजरात में कही शिफ्ट कि जाए।
इससे भारतीय कारोबार पर अंडरवर्ल्ड का दखल तो कम होगा ही, साथ ही मुंबई के महाराष्ट्रीय चिरकालीन श्रमिक वर्ग की गुंडागर्दी से छुट्टी मिलेगी और पश्चिम महाराष्ट्र के कतिपय नेताओ की भारतीय राजनीति में धौंसपट्टी बंद होगी। महाराष्ट्रीय नेताओ की अंडरवर्ल्ड से गहरे तक सांठगांठ और मुंबई के कारोबारी राजधानी होने के कारण उनके अप्राकृतिक शक्ति संचयन ने देश का काफी नुकसान पहुंचाया है। अमित शाह के एजेंडे में यह पहले से है, इसे जितना शीघ्र किया जाए उतना बेहतर है।
अमित शाह द्वारा मुंबई के अपने कारोबारी भाईयो के लिए महाराष्ट्र में सरकार बनाने में इन्वेस्ट करने कि जगह कारोबार का केन्द्र बदलना ज्यादा श्रेयस्कर होगा।
इसी तरह हिंदी भाषी क्षेत्र में वैकल्पिक फिल्म उद्योग स्थापित करने के प्रयास किए जाएं। इसके लिए इंदौर या भोपाल सबसे श्रेष्ठ रहेंगे। हिंदी पट्टी में कला संस्कृति और संस्कार के मामले में यह क्षेत्र सबसे उर्वर है। गुंडागर्दी और अपराध भी सबसे कम है।
बॉलीवुड को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भले ही कहा जाता रहा हो और भले ही हिंदी भाषा में फिल्में बनती रही हो लेकिन हिंदी का यहां इससे ज्यादा कुछ नहीं है। यह कॉस्मोपोलिटन फिल्म उद्योग है। यहां की ऑफिशियल भाषा अंग्रेजी है। काम करने वालो में हिंदी भाषियों से ज्यादा पंजाबी, उर्दू भाषी, मराठी, बंगाली, गुजराती और यहां तक कि दक्षिण भारतीय हैं।
अब पिछले एक दो दशक से हिंदी पट्टी से लोग बड़ी संख्या में जाने शुरू हुए हैं। एक समय 80 और 90 के दशक में हर तीसरी चौथी फिल्म के निर्माता और निर्देशक दक्षिण भारतीय होते थे। ये अलग बात है कि इन सभी क्षेत्रों के लोग बॉलीवुड के नाम पर हिंदी पट्टी वालो को चिढ़ाते हैं। बॉलीवुड में कभी भी हिंदी पट्टी का ढंग से चित्रण नहीं किया गया जिस तरह अन्य क्षेत्रीय सिनेमा में वहां के स्थानीय समाज, संस्कृति, राजनीति और समस्याओं का सटीक चित्रण होता है क्योंकि वहां लेखक कलाकार सब स्थानीय होते हैं।
बॉलीवुड कॉस्मोपोलिटन सिनेमा है लेकिन उसकी वजह से हिंदी पट्टी में कोई क्षेत्रीय सिनेमा ढंग से डेवलप नहीं हो पाया। कुछ साल से रिएलिटी के नाम पर हिंदी पट्टी के शहरों में based फिल्में बनाई जा रही हैं लेकिन राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय कॉस्मोपोलिटन बाज़ार के चक्कर में वो बेहद फेक सतही और भौंडा पन होता है।
मुंबई के मुकाबले वैकल्पिक फिल्म उद्योग बनाने से ना केवल अंडरवर्ल्ड के दखल से मुक्ति मिलेगी बल्कि अंग्रेजी अभिजात्य वर्ग के प्रभाव से भी मुक्ति मिलेगी जो अनेकों समस्याओं की जड़ है।
लेख साभार : Pushpendra Rana
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