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Tuesday, December 30, 2014

PIYUSH GOYAL - पियूष गोयल




 एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ, पीयूष गोयल, नवगठित मोदी सरकार में बिजली, कोयला और नई और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री हैं। गोयल एक मशहूर निवेश बैंकर हैं और प्रबंधन रणनीतियों और विकास के अवसरों पर शीर्ष बैंकिंग पेशेवरों की सलाह देते हैं।

पीयूष गोयल के परिवार और व्यक्तिगत पृष्ठभूमि

पीयूष गोयल का जन्म 13 जून 1 9 64 को महाराष्ट्र के मुंबई में वेद प्रकाश गोयल और चंद्रकांत गोयल से हुआ था। उनके पिता ने बहुत लंबे समय के लिए भाजपा खजांची के तौर पर काम किया था। वेद वाजपेयी सरकार में नौवहन के लिए केंद्रीय मंत्री की स्थिति पर कब्जा कर चुके हैं। उनकी मां महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य थे।बचपन से मजबूत इंटेलिजेंस होने के कारण, पीयूष गोयल ने अपने सीए में भारत में दूसरा रैंकधारक बनकर रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने सीमा से विवाह किया है और दंपति को एक बेटा और एक बेटी के साथ आशीष है।

पीयूष गोयल के राजनीतिक कैरियर

पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट, राज्य सभा के सदस्य बनने से पहले, गोयल एक निवेश बैंकर थे। अपने पिता के नक्शेकदम के बाद, वह 1 9 84 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए। भाजपा के सदस्य के रूप में अपने करियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा कर लिया। वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य भी थे।

वर्तमान में, वह राज्य सभा के सदस्य हैं। इससे पहले, उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के रूप में सेवा की, जैसे उनके पिता गोयल पार्टी की सूचना संचार अभियान समिति की अध्यक्ष भी थीं। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान, गोयल ने सभी विज्ञापन अभियान और सोशल मीडिया पर ध्यान दिया। 1991 के आम चुनाव के दौरान उन्हें प्रचार और अभियान का भी प्रभार दिया गया। उन्होंने पार्टी के प्रचार में एक प्रमुख भूमिका निभाई। दरअसल, वह मोदी के विचार को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने वाले पहले व्यक्ति थे। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) संचार उप-समिति का नेतृत्व करना, गोयल प्रधानमंत्री के लिए साइटों को नामो प्राप्त करने और शीर्ष क्रम में 272+ मिशन के लिए मोदी के एजेंडा को पूरा करना चाहता है। दूसरे शब्दों में, वह सोशल मीडिया के माध्यम से सभी पार्टी के पहलुओं की देखरेख करते हैं।

आर्थिक मामलों में पूरा हुआ, गोयल ने वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के लिए सलाहकार समिति की स्थिति पर संसदीय स्थायी समिति की स्थिति आयोजित की, जबकि वह राज्य सभा के सदस्य थे। उन्होंने संसद में कई आर्थिक प्रवचनों में भाग लिया। उन्हें मुंबई में भाजपा के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। ऐसा माना जाता है कि गोयल नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली दोनों के करीबी हैं।

एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, वह भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के सदस्य थे। वर्तमान में ओपीएम (स्वामी / राष्ट्रपति प्रबंधन) कार्यक्रम का पीछा करते हुए, गोयल ने 2011 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में और 2011 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में येल विश्वविद्यालय में नेतृत्व कार्यक्रमों में भाग लिया।

एक महान सामाजिक कार्यकर्ता गोयल ने खुद को कई गैर-सरकारी संगठनों के साथ जोड़ा है। ये गैर सरकारी संगठन समाज के निचले वर्गों को शिक्षा प्रदान करते हैं और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की आवश्यकताओं और कल्याण के बाद दिखते हैं।

पीयूष गोयल की राजनीतिक यात्रा-

2001 से 2004 तक वह बैंक ऑफ बड़ौदा के निदेशक थे। वह भारत सरकार में नदियों के इंटरलिंकिंग के लिए टास्क फोर्स के सदस्य भी थे।
2004 में उन्हें भारतीय स्टेट बैंक के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।
गोयल 2010 में भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने। उसी वर्ष, वे राज्यसभा के लिए चुने गए।
2012 के बाद से वह राज्यसभा के सदस्यों के लिए कंप्यूटर के प्रावधान के बारे में समिति के सदस्य बने।
पियुष गोयल 27 मई, 2014 को ऊर्जा, कोयला और नई और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने।

पीयूष गोयल का पूरा नाम पीयूष वेदप्रकाश गोयल है उनका जन्म 13 जून 1964 में मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। वह एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और वर्तमान में भारत सरकार में रेल मंत्री और कोयला के रूप में सेवारत हैं। उन्हें 3 सितंबर, 2017 को कैबिनेट मंत्री के रूप में दर्जा दिया गया है। वह वर्तमान में राज्य सभा संसद सदस्य हैं और इसके पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष थे। उन्होंने भाजपा की सूचना संचार अभियान समिति का नेतृत्व किया।

पियूष गोयल स्वर्गीय श्री वेद प्रकाश गोयल के पुत्र हैं जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केन्द्रीय कैबिनेट मत्री के रूप में सेवा की थी और वह लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे। उनकी मां महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य रहीं। बचपन से ही आर्थिक रूप से मजबूत और बुद्धमान होने के कारण, पीयूष गोयल ने सीए करने के दौरान भारत में दूसरा रैंक बनकर रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने सीमा से विवाह किया है और अब वह एक बेटा और एक बेटी के पिता है।

गोयल एक मशहूर निवेश बैंकर हैं और प्रबंधन रणनीतियों और विकास के अवसरों पर शीर्ष बैंकिंग पेशेवरों की सलाह देते हैं। उन्होंने येल विश्वविद्यालय (2011), ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय (2012) और प्रिंसटन विश्वविद्यालय (2013) में नेतृत्व कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने डॉन बॉस्को हाई स्कूल, माटुंगा से अपनी पढ़ाई पूरी की।

व्यवसाय-

पियूष गोयल एक प्रसिद्ध निवेश बैंकर हैं, उन्होंने management strategy और विकास पर बड़ी-बड़ी कंपनियों सलाह देते हैं। उन्होंने भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा में भी सेवा की है।

अपने 28 साल के राजनीतिक जीवनकाल में, उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में काम किया और भाजपा में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। उन्होंने वर्ष 1991 के चुनाव में अहम भूमिका निभाई थी इसके साथ ही उन्होंने 2004 से सभी चुनावों में केंद्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।

पियू, 3 जून 2016 में राज्य सभा के लिए महाराष्ट्र के भाजपा उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए।

पीयूष गोयल की राजनीतिक यात्रा –

2001 से 2004 तक वह बैंक ऑफ बड़ौदा के निदेशक थे। वह भारत सरकार में नदियों के इंटरलिंकिंग के लिए टास्क फोर्स के सदस्य भी थे।
2004 में उन्हें भारतीय स्टेट बैंक के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।
गोयल 2010 में भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने। उसी वर्ष, वे राज्यसभा के लिए चुने गए।
2012 के बाद से वह राज्यसभा के सदस्यों के लिए कंप्यूटर के प्रावधान के बारे में समिति के सदस्य बने।
पियुष गोयल 27 मई, 2014 को ऊर्जा, कोयला और नई और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने।
अब उन्हें 3 सितंबर, 2017 को कैबिनेट मंत्री के रूप में दर्जा दिया गया है।

साभार: ajabgajabjankari.com/piyush-goyal-biography-in-hindi

DHEERUBHAI AMBANI - धीरूभाई अंबानी



धीरजलाल हीराचंद अंबानी (जन्म- 28 दिसंबर, 1932, जूनागढ़ ज़िले, सौराष्ट्र - मृत्यु- 6 जुलाई2002, मुंबई) भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति थे।

जन्म एवं परिवार

धीरूभाई अंबानी का जन्म सौराष्ट्र के जूनागढ़ ज़िले में मोध वैश्य परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था। भारत की सबसे बड़ी निजी उद्योग कंपनी रिलायंस के, जिसका कारोबार 65,000 करोड़ रुपये तक पहुंचा, के मालिक धीरूभाई अंबानी का जीवन असाधारण रूप से घटना-प्रधान रहा है। पिता हीराचंद एक प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक थे। धीरूभाई अंबानी के परिवार में इनकी पत्नी कोकिला बेन तथा इनकी चार संतान पुत्र मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, पुत्री नीना कोठरी, दीप्ति सल्गाओकर है। व्यवसाय का आरंभ 

आर्थिक कठिनाई के कारण छोटे-मोटे काम करते हुए धीरूभाई कक्षा 9 तक की पढ़ाई कर सके। उसके बाद वे मुंबई आए और यहाँ आजीविका के लिए सड़क पर फल बेचने के सहित दुकानों में काम किया। फिर वे अदन चले गए। यहां भी उन्हें एक रिफाइनरी में मजदूरी और पेट्रोल पंप में तेल भरने का काम मिला। 


फिर एक चक्कर अमेरिका का लगाया और स्वयं अपना व्यवसाय आरंभ करने का निश्चय करके स्वदेश लौटने पर उन्होंने 1958 में ‘रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन’ नामक कंपनी बनाई। इस कंपनी ने आरंभ में पश्चिमी देशों में अदरक, हल्दी तथा अन्य मसालों का निर्यात किया। बाद में पालियस्टर धागे, वस्त्र उद्योग, पेट्रो रसायन, तेल और गैस, टेलिकॉम आदि क्षेत्रों में असाधारण उन्नति की। अंबानी ने जनता में शेयर बेचकर धन एकत्र किया और शेयरधारकों का विश्वास सदा बनाए रखा। 

दूरदर्शी व्यक्ति 

वे बड़े दूरदर्शी व्यक्ति थे। उद्योग की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगा कर वे समय रहते उस क्षेत्र में काम आरंभ कर देते थे। उन्होंने स्वयं अकूत संपत्ति अर्जित की और शेयरधारकों को भी उसमें साझीदार बनाया। आधुनिक भारत में अपनी सूझबूझ से कुछ ही वर्षों में इतना सफल उद्योग-व्यवसाय समूह स्थापित करने वाले वे अद्वितीय व्यक्ति थे। निधन 

सिर की शिरा फट जाने के कारण 6 जुलाई, 2002 को मुंबई के एक अस्पताल में उनका देहांत हो गया। 

Friday, December 26, 2014

Raghubar Das - Chief Minister of Jharkhand



Raghubar Das, an Indian politician belongs to Bharatiya Janata Party. He, originally from state of Chhattisgarh, is current chief minister designate of Bharatiya Janata Party in the state of Jharkhand. He held the office of Deputy Chief Minister of Jharkhandstate, India, from 30 December 2009 to 29 May 2010. Raghubar Das, a former employee with Tata Steel, is the four-time BJP MLA from Jamshedpur East since 1995 and also the Urban Development Minister during the NDA government in the state. He has shown assets to the tune of around Rs. 21 lakh.



Early life

Das hails from a Teli  vaishya bania family.

In January 2010, a report by a high powered committee set up by Jharkhand Assembly indicted Raghubar Das of colluding with and rewarding favours to a private firm. Meinhardt, a Singapore-based company, was asked to prepare a detailed project report (DPR) for the state capital’s sewage and drainage system for a whopping Rs 21.4 crore but the project was a non-starter. Das was then urban development minister in the Munda government of 2004-2005. In year 2005, when Das was the urban development minister a contract worth Rs 200 crore was awarded to Meinhardt for building and managing the sewage drainage system of entire Ranchi city. On of the conditions laid down for bidding for contract was that the firm must have declared profits for three consecutive years starting from 2002 to 2005. However, as documents show Meinhardt never disclosed the returns from 2004 to 2005. Amongst the four firms who were bidding for the contract, Meinhardt was not the only company violating the laid down norms. Another firm, Barchill Partners Pvt Ltd also did not disclose returns for the last year. On the same grounds while Barchill was thrown out, Meinhardt was not only retained but also awarded the highest ranking.

Earlier, in the year 2009, a PIL filed at the Ranchi High Court, Mohammad Tahir, a social worker, requested the court to direct the state vigilance department to probe the awarding of the contract given to the foreign firm. It was alleged that Rs.6 crore was paid to the Singapore firm Meinhardt as consultants to the project, but the drainage system in Ranchi saw no improvement.

In March 2010, then deputy Chief Minister Raghubar Das defended an obvious violation of 'conflict of interest' when Jharkhand Rural Works Minister Haji Hussain Ansari faced allegations of favouring his son, Tanvir Ansari, in awarding a contract worth Rs.1.41 crore from his department. Mr Ansari was awarded the contract for road construction by the tender committee of the rural works department of the district Deoghar.

A Cobrapost investigation in Dec 2014 revealed how politicians have been using chartered aircraft, with some of them flouting Election Commission norms. Raghubar Das along with former Jharkhand chief minister Arjun Munda and then state BJP party in-charge Vinod Pandey flew from Ranchi to Chaibasa (in Jharkhand) on 25th March 2014, by a Summit Aviation charter plane. On 31st March 2014, Das and Munda went from Ranchi to Godda (in Jharkhand) again in a Summit Aviation aircraft.



Monday, December 1, 2014

Ramesh Chandra Agarwal - रमेश चन्द्र अग्रवाल


Ramesh Chandra Agarwal is a Media proprietor of India. He owns the Dainik Bhaskar group of newspapers that has a presence in 26 cities and six states of India and has an estimated[by whom?] readership of over 15 million. He has been on the Board of D.B. Corp Limited since December 10, 2005. He holds a post-graduate degree (Master’s in Arts) in Political Science from Bhopal University, Bhopal. He has more than 42 years of experience in the publishing and newspaper business and has been engaged in the running of the organization for over four decades.

He is also the Chairman of the Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry - Madhya Pradesh. He had been awarded the Rajeev Gandhi Life time Achievement Award in Journalism. He was awarded within 50 most powerful Business houses by India Today Magazine in 2003, 2006 and 2007 

He was ranked 95 on the forbes list of India’s Richest in 2012. 

He has three sons actively involved in his business- Girish Agarwal (Non executive director DB corp ltd), Sudhir Agarwal (MD DB Corp Ltd), Pawan Agarwal (Dy M D DB Corp ltd).

Narendra Mohan - नरेन्द्र मोहन


Narendra Mohan was an Indian industrialist, chairman and managing director of the Rs 874-crore Jagran Prakashan publisher for India's largest selling Hindi newspaper Dainik Jagran. The late Narendra Mohan was renowned for his dedicated journalism and deep simplicity and sincerity and was champion in steering the business to its unsurpassable position today – 30 editions, a massive 19-odd million readers, apart from being one of the most influential newspapers in the country. Guptas have 59.2% family holding in JagranGroup.The late Narendra Mohan's eldest son Sanjay Gupta is editor and CEO of Jagran.


Mohan kept a low profile away from the public gaze. But he had tremendous influence both as a newspaper baron and at a personal level. He was drawn into politics as a BJP MP by his 'political mentor' Mr. Lal Krishna Advani. From his humble beginnings when in early 1940s, as a youngster in Kanpur, he didn't have enough money to buy a bicycle and, therefore, had to rely on traditional public transport in the district – the bullock-cart,his determination,vision and foresight mixed with diligence and hard-work he took Jagran group to a meteoric rise.

The group's founder was Mohan's father, the late Puran Chand Gupta, who never faltered in his determination to become a newspaper baron.

Jagran, started from Jhansi, was his third attempt at being a powerful news lord. But Mr Mohan, who took over the paper while his father was still alive, almost certainly deserves the credit for turning it into the potent force that it is today.

He made full use of the technological advances in the newspaper industry to boost the Dainik Jagran's circulation and clout. It was one of the first to switch to colour and printing satellite editions. The newspaper employs about 2,000 journalists and even introduced the concept of 'mohalla' correspondents.

During his heyday, Mr. Mohan was an extremely hands-on editor and wrote editorials, a column and one poem each week in Dainik Jagran. He could fluently dictate an editorial over the phone without notes – never pausing for a moment.

He toured USA, and almost all countries of the world for getting first hand knowledge of working and other socio-economic conditions of newspapers and other industries; 

Patron 

Associated Chambers of Commerce and Industries of Uttar Pradesh
Shri Puran Chandra Gupta Smarak Trust (which runs CBSE approved Puranchandra Vidyaniketan); 
was President, 
Rotary Club, Kanpur
Associated Chamber of Commerce and Industries of Uttar Pradesh
Kanpur Leprosy Eradication Association 
Vice-President 
Chinmaya Mission, Kanpur (formerly) 
Sadhna Manch 
was chairman 
Uttar Pradesh Sangeet Natak Academy 
Institutional Finance Committee, Uttar Pradesh
Press Trust of India 
Chairman of various trusts and charitable institutions; 
was Director 
National Small Scale Industries Corporation, Delhi
Uttar Pradesh Electronics Corporation Limited 
Director of various companies and Bank of Rajasthan Limited 
Chief Editor, Jagran Group of Newspapers 
Founder Secretary, Kanpur Press Club 
was Treasurer, Himalayan Institute of Yoga Sciences and philosophy 
was Member of the Executive of 
All India Newspaper Editors Conference 
Uttar Pradesh Hindi Saansthan 
National Sangeet Akademy 
Upper India Chamber of Commerce, Kanpur
Various Government, Semi-Government and Social Committees and Associations 
Member 
National Integration Council
Committee on Finance 
Committee on Communications 
Consultative Committee for the Ministry of Home Affairs 
elected to the Rajya Sabha in November 1996. 
Accomplishment in Arts and Science

Awarded 

Dr. Ram Manohar Lohia Award, 1986 for outstanding contribution to Journalism 
Matrushree Award (Delhi), 1989 for outstanding contribution to Journalism, 
Sita Award (Delhi) 
Sanskriti Award by Hindi Academy (New_delhi|Delhi). 

He was an avid reader and writer and wrote thousands of articles on different subjects/ He was author of numerous poems and short stories in Hindi/ He also authored and got published three anthologies of poems titled 
Amrit Ki Oar 
Dasatva Se Ubaaro 
Thumara Sangeet 

He authored four books 
Dharm Aur Sampradayikta 
Aaj Ki Rajniti aur Bhrashtachar 
Bharatiya Sanskriti 
Hindutva. 

Special interest

Defence, finance, culture and foreign affairs.

Sunday, November 30, 2014

Gulab Kothari - गुलाब कोठारी



Gulab Kothari is an Indian author, journalist and editor-in-chief of Indian daily newspaper Rajasthan Patrika. He is the winner of Moortidevi Award – 2011, the annual literary award presented by Bharatiya Jnanpith, for his book Mein Hi Radha, Mein Hi Krishna. Dr. Kothari is known for his contributions to Vedic Studies prominent among which is Maanas.

Dr. Kothari received D. Litt. in philosophy from Intercultural Open University in 2002. In March 2004, Dr. Kothari was nominated as the chairman and professor of Pandit Madhusudan Ojha chair to promote research on Vedas at the University of Rajasthan. In view of his contributions to Yoga, he was conferred with Doctor of Philosophy in 2008 by OkiDo Global Research Institute, Italy. He is international advisor to the IOUF and OkiDo Global Research Institute Italy. In 2014, Dr. Kothari received Honorary Doctorate of Literature by Amity University. In August 2014, Dr. Kothari was awarded PhD in administration from Universidad Central de Nicaragrua (UCN) and Universidad Azteca (UA).

Manas : patterns of human mind. Rajasthan Patrika, 2004. ISBN 818632600159.
Manas : individual and society. Rajasthan Patrika, 2005. ISBN 818632600164.
Maanas : human body : the gross and the subtle. Rajasthan Patrika, 2006. ISBN 818632600165.
Communication: The Soul of Evolution : the Indian Perspective of Principles and Practice. Rajasthan Patrika, 2002.
Body Mind Intellect: Triggering The Soul Force. Rajasthan Patrika, 2002. ISBN 9788186326015. 
Newspaper management in India. Intercultural Open University, 1995. 
Samachar-Patra Prabandhan. Rajkamal Prakashan Pvt Ltd, 2008.ISBN 9788183611794 
Awards & recognition
Moorthidevi Award (2011) 
Maharana Mewar Foundation's Haldi Ghati Award (2011)
Brahmrishi Ashram Tirupati's Rastriya Gaurav Award (2007) 
IOU Peace Award of the Year (2007)
Nanda Foundation's Moral Ethics Award (2006)
Vishnu Teerth Foundation Award (2004)
Acharya Tulsi Award (2003)
Bhartendu Harishchandra Award (2000)
Govt. of India's National Unity Award (1993)

Shobhana Bhartia - शोभना भरतिया



Shobhana Bhartia (born 1957) is the Chairperson and Editorial Director of the Hindustan Times Group, one of India's newspaper and media houses, which she inherited from her father. She has also recently taken charge as the Pro Chancellor of Birla Institute of Technology and Science, Pilani (founded by her grandfather) and is the current chairperson of Endeavor India. Closely associated with the Congress party, Shobhana served as a nominated member of the Rajya Sabha, the upper chamber of the Indian parliament from 2006 to 2012. Her name is sometimes written Shobhana Bharatiya or Bhartiya, but the preferred spelling is Bhartia.

Bhartia is the daughter of the industrialist KK Birla, industrialist and Congress party loyalist, and the grand-daughter of GD Birla, one of the Birla family patriarchs. The KK Birla family owned 75.36 per cent stake in HT Media, valued at Rs 8.34 billion in 2004. She grew up in Kolkata and had her schooling at Loreto House. She is a graduate of Calcutta University, and is married to Shyam Sunder Bhartia, Chairman of the Rs. 14-billion pharmaceutical firm Jubilant LifeScience Limited (a spinoff from the earlier chemicals venture Vam Organics). Shyam Sunder Bhartia is son of Late Mohan Lal Bhartia. Their son Shamit Bhartia is also a Director at the HT Media group, and also looks after lifestyle businesses such as the Domino's Pizza franchise and also convenience store chain Monday to Sunday in Bangalore. In 2012, Shamit Bhartia married Nayantara Kothari. daughter of Bhadrashyam Kothari, a Chennai-based industrialist, and his wife Nina, daughter of Dhirubhai Ambani.

Media career

When Bhartia joined Hindustan Times in 1986, she did so directly as the chief executive. She was the first woman chief executive of a national newspaper and probably one of the youngest. She is considered to be one of the motive forces behind the transformation of the Hindustan Times "into a bright, young paper."She looks after editorial as well as financial aspects, and is credited with raising Rs. 4 billion through a public equity launch of HT Media in September 2005.

She has received the Global Leader of Tomorrow award from the World Economic Forum (1996). She is also the recipient of the Outstanding Business Woman of the Year, 2001, by PHD Chamber of Commerce & Industry, and National Press India Award, 1992. She has also won the Business Woman award, The Economic Times Awards for Corporate Excellence awards 2007.[citation needed] She was named one of Forbes Asia's 50 Women in the Mix. She has received the Delhi Women of the Decade Achievers Award 2013 from the ASSOCHAM Ladies League in recognition for her Excellence in Nation Building through Media & Leadership.

Political career

Shobhana was one of the first Padma Shri award nominees in 2005. The award was given for journalism. The following year, in February 2006, Shobhana was nominated to the Rajya Sabha, the upper house of parliament, on a recommendation by the ruling United Progressive Alliance headed by Sonia Gandhi. The nomination, reserved for eminent people from the fields of literature, science, art and social service, was challenged in the Supreme Court of India on the grounds that she was a "media baron" and not a journalist, and that she was politically affiliated with the Indian National Congress. However, the court dismissed the appeal at the admission stage itself, saying that the scope of "social service" was broad enough to include her.  She has been quite active in the Rajya Sabha, asking frequent questions and also introducing "The Child Marriage (Abolition) and Miscellaneous Provisions Bill, 2006".

Monday, November 24, 2014

VENUGOPAL DHOOT - वेणुगोपाल धूत


भारत में रंगीन टेलीविजन बनाने का लाइसेंस लेने वाली वीडियोकॉन पहली कंपनी है। इस कंपनी को प्रोमोट करने में वेणुगोपाल धूत ने अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने साबित किया है कि उपलब्धियों की आकांक्षा हो तो आकाश भी छोटा पड़ जाता है…

वेणुगोपाल धूत भारत के एक सुप्रसिद्ध व्यवसायी,भारत के 18 वें सबसे धनी व्यक्ति और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष हैं। वेणुगोपाल का जन्म 30 सितंबर,1951 को मुंबई में मारवाड़ी माहेश्वरी परिवार में  हुआ। माहेश्वरी समुदाय मुख्यता राजस्थान से संबंधित होता है। इनके पिता नंदलाल धूत भी एक व्यवसायी ही थे,जिन्होंने अपना व्यवसाय गन्ने और रूई उद्योग से शुरू किया था। उन्होंने ही वीडियोकॉन कंपनी की स्थापना की थी। इस कंपनी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसे भारत में रंगीन टेलीविजन बनाने का सबसे पहला लाइसेंस मिला। वेणुगोपाल ने कालेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री हासिल की। यह कालेज देश के पुराने इंजीनियरिंग कालेजों मंे से एक है। इसकी स्थापना 1854 ई.में हुई। कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एक स्वायत्त इंजीनियरिंग कालेज है, जो पुणे यूनिवर्सिटी से संबद्ध है। वेणुगोपाल एक व्यवसायी होने के साथ-साथ क्रिकेट के भी बड़े प्रशंसक हैं। इन्होंने कोलकाता मंे वीडियोकॉन स्कूल ऑफ क्रिकेट भी खोला है, जिसमें 10 से 17 साल तक की उम्र के बच्चों को भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली ट्रेनिंग देते हैं। वेणुगोपाल के कार्यक्रमों में एक कार्य पौधारोपण का भी है। उन्होंने पूरे भारत में पौधारोपण की एक मुहिम छेड़ी और इस दौरान लगभग 20 लाख टीक के पौधे लगाए। उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप ऑफ कंपनीज को प्रोमोट किया। 1 सितंबर,2005 से वह कंपनी के अध्यक्ष हैं। वेणुगोपाल इंडो-जापान एसोसिएशन के अध्यक्ष होने के साथ-साथ ओडिशा सरकार के औद्योगिक विकास के सलाहकार भी हैं। वीडियोकॉन कंपनी एयर लाइंस और तेल के क्षेत्र में भी अपने व्यवसाय का विस्तार कर रही है। वीडियोकॉन कंपनी अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत को वर्ष 2005-2006 में  भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दिए गए अद्वितीय योगदान के लिए एलसिना मैन ऑफ दि ईयर से नवाजा गया। भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ सरपट दौड़ाने वालों की फेहरिस्त वेणुगोपाल धूत के बिना अधूरी मानी जाएगी।

कुमार मंगलम बिड़ला


कुमार मंगलम बिड़ला (जन्म 14 जून 1967) एक भारतीय उद्योगपति और आदित्य बिड़ला ग्रुप के अध्यक्ष हैं, भारत में जिनकी कंपनियों में शामिल हैं ग्रासिम, हिंडाल्को, अल्ट्राटेक सीमेंट, आदित्य बिरला नुवो, आइडिया सेल्युलर, आदित्य बिरला रिटेल और कनाडा में आदित्य बिरला मिनिक्स और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स पिलानी) के वे कुलाधिपति हैं। कुमार मंगलम बिरला विभिन्न नियामक और व्यावसायिक बोर्डों पर कई महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पदों पर प्रतिष्ठित रहे हैं और अभी भी हैं।

कुमार मंगलम बिड़ला का जन्म राजस्थान राज्य के प्रतिष्ठित  मारवाड़ी व्यवसायी बिड़ला परिवार में हुआ था। चार्टर्ड एकाउंटेंट कुमार मंगलम बिड़ला ने लंदन बिजनेस स्कूल से एमबीए (MBA) की डिग्री हासिल की, जहां के वे एक मानद सदस्य भी हैं। श्री बिरला और उनकी पत्नी, श्रीमती नीरजा कस्लीवाल के तीन बच्चें हैं, अनन्याश्री, आर्यमन विक्रम और अद्वैतेषा.
पुरस्कार और सम्मान

इन दस वर्षों में जबसे वे आदित्य बिड़ला समूह के मुख्य संचालक हैं, उन्होंने उद्योग में अपने योगदान के लिए और प्रबंधन के व्यवसायीकरण के लिए पहचान प्राप्त की है। एक सांकेतिक सूची निम्नानुसार है:

2006 
जून 2006 में, मोंटे कार्लो मोनाको के अर्न्स्ट एण्ड यंग उद्यमी पुरस्कार में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जहां उन्हें अर्न्स्ट एण्ड यंग वर्ष के विश्व उद्यमी अकादमी के एक सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। 

2005 
"वर्ष के अर्न्स्ट एण्ड यंग उद्यमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया - भारत" 
बिजनेस टूडे द्वारा "सीईओ श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ युवा प्रदर्शन" के लिए नामित किया गया 
पीएचडी चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री - उद्योग रत्न 

2004 
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डावोस) के द्वारा उन्हें यंग ग्लोबल लीडर्स में से एक के रूप में चुना गया। इस हैसियत से कुमार मंगलम बिरला अगले पांच वर्षों में "उम्मीद, प्रगति और सकारात्मक परिवर्तन" के भविष्य के लिए प्रवेशक के रूप में अपने ज्ञान, विशेषज्ञता और ऊर्जा को साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 
दुनिया भर से इकट्ठा हुए 8000 उम्मीदवारों में से चुना गया, जिनमें से फिर 600 को चुना गया और अंततः 237 नामों को सूचीबद्ध किया गया, 28 ग्लोबल मीडिया लीडर्स के नामांकन समिति द्वारा यंग ग्लोबल लीडर्स को चुना गया था। 

भारतीय कारोबार के लिए अपने अनुकरणीय योगदान के सम्मान में, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने बिड़ला को डी. लिट (होनोरिस कौजा) डिग्री से सम्मानित किया। 

भारतीय व्यापार में अपनी उद्यमी उत्कृष्टता और अनुकरणीय योगदान के अभिवादन के लिए, ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन ने उन्हें अपनी "मानद फैलोशिप" प्रदान की. 

2003 
कॉर्पोरेट उत्कृष्टता के लिए इकोनॉमिक टाइम्स अवार्ड्स द्वारा "द बिजनेस लीडर ऑफ द इयर" का पुरस्कार दिया गया। 

इकोनोमिक्स टाइम्स के "द बिज़नेस लीडर ऑफ़ द इअर" पुरस्कार के तुरंत बाद उन्हें बिजनेस इंडिया के "बिज़नेस मैन ऑफ़ द इअर - 2003" चुना गया। यह वास्तव में ऐतिहासिक है, क्योंकि किसी अध्यक्ष/सीईओ को आज तक एक ही साल में दोनों प्रतिष्ठित पुरस्कार नहीं मिला है। 

द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रीअल इंजीनियरिंग (NITIE) - "द लक्ष्य - बिजनेस विज़नरी पुरस्कार" 
भारत-अमेरिकी सोसायटी के "यंग अचिवर पुरस्कार" 

"उत्कृष्टता के लिए 2003 विपणन और प्रबंधन संस्थान पुरस्कार". 

2002 
क्विमप्रो फाउंडेशन के "क्विमप्रो प्लेटिनम स्टैंडर्ड पुरस्कार" 
सीएनबीसी/आईएनएसईएडी प्रायोजित "एशियाई बिजनेस लीडर पुरस्कार 2002" के लिए पहले पांच एशियाई व्यापार लीडर में स्थान 

2001 
मुंबई प्रदेश युवा कांग्रेस द्वारा "व्यावसायिक उत्कृष्टता और देश के लिए उनके योगदान के लिए" राजीव गांधी पुरस्कार 

द नैशनल एचआरडी नेटवर्क (पुणे) - "द आउटस्टैंडिंग बिजनेस मैन ऑफ द इयर" 

"व्यावसायिक उत्कृष्टता और उद्योग में उनके योगदान" के लिए द जायंट्स इंटरनेशनल पुरस्कार 

द इंस्टीट्यूट ऑफ डाइरेक्टर्स का "बिजनेस लीडरशीप के लिए गोल्डेन पिकोक नेशनल पुरस्कार" 

रोटरी क्लब का "अवार्ड फॉर वोकेशनल एक्सीलेंस" 

2000 
बॉम्बे मैनेजमेंट एसोसिएशन ने बिरला को "द मैनेजमेंट मैन ऑफ द इयर 1999-2000" के रूप में सम्मानित किया 

1999 
लायंस क्लब इंटरनेशनल के "द अचिवर ऑफ द मिलेनियम" 

अहमदाबाद के रोटरी क्लब द्वारा "द लेजेंड ऑफ़ द कॉर्पोरेट वर्ल्ड" 

1998 
कुमार मंगलम बिरला एकमात्र ऐसे उद्योगपति थे जिन्हें वित्त मंत्रालय द्वारा भारत के प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के शासी बोर्ड (सेबी) पर एक सार्वजनिक पद के उम्मीदवार के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने सेबी के कोर्पोरेट नियमन पर 17 सदस्यीय समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना योगदान दिया जिसका गठन 1999 के मध्य में हुआ था और इनसाइडर ट्रेडिंग पर सेबी समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया 
निगमित प्रशासन (कॉर्पोरेट गवर्नेन्स) पर कुमार मंगलम बिरला की रिपोर्ट भारत में निगमित प्रशासन प्रथाओं की आधारशिला बन गई 

रोटरी क्लब के "अवार्ड फॉर वोकेशनल एक्सीलेंस" के प्राप्तकर्ता 

मीडिया ने भी कुमार मंगलम बिड़ला का काफी गुणगान किया है। 1997 से आज तक, एनडीटीवी, स्टार प्लस "इंडिया बिजनेस वीक" ने उन्हें "द बिजनेसमैन ऑफ द इयर" के रूप में पदांकित करते हैं। ग्लोबल फाइनेंस ने उन्हें कॉरपोरेट फाइनेंस के 10 सुपर स्टार में उद्धृत किया है। बिजनेस वर्ल्ड ने उन्हें भारत के शीर्ष 10 सर्वाधिक प्रशंसित और सम्मान प्राप्त सीईओ के बीच और आने वाली सहस्राब्दी के शीर्ष सीईओ के रूप में दर्जा दिया है और हिंदुस्तान टाइम्स ने उन्हें "द बिजनेस मैन ऑफ द इयर" के रूप में भी नामित किया है।

शिक्षा के लिए सर्जनात्मक योजनाएं

बिट्स पिलानी विश्वविद्यालय के कुलपति बनने के बाद, उन्होंने बिट्स को दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक बनाने के लिए मिशन 2012 और विजन 2020 तैयार किया है। भारत की पहली इनोवेशन फेस्ट - क्वार्क (QUARK) 2010 की शुरूआत के लिए बिट्स परिसर का पहली बार मुआयना करने के लिए वे गोवा परिसर गए थे। क्वार्क, भारत का शीर्ष तकनीकी उत्सव है जिसका आयोजन हर साल किया जाता है, जिसमें भारत भर के कॉलेजों के छात्र भाग लेने के लिए आते हैं।

ANIL AGRAWAL - अनिल अग्रवाल


ज़मीन से आसमान तक जाने के तो हजारों किस्से हैं लेकिन यह किस्सा उसमें खास है। भारत का एक कारोबारी जो आज सारी दुनिया में हलचल मचा रहा है, दरअसल लोहे के कबाड़ बेचता था। उसने कॉलेज का मुंह तक नहीं देखा था।

जी हां, आज वही शख्स बिज़नेस की दुनिया में नए-नए मुकाम बनाता जा रहा है। उसने कई ऐसे काम किए हैं और उद्योग लगाए हैं जिससे उसकी कुल दौलत 6.4 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। जी हां, आपने सही समझा, ये हैं वेदांत समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल। आज वेदांत समूह बहुराष्ट्रीय कंपनी केयर्न के भारत में 40 शेयर खरीदने की तैयारी में है। इस सौदे के बाद वेदांत समूह भारत ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े समूहों में शामिल हो जाएगा।

अनिल अग्रवाल के पास अपने विमान हैं, दुनिया के कई शहरों में ऑफिस हैं लेकिन एक समय था कि उनके पास एक साइकिल खरीदने के पैसे भी नहीं थे। उनके पिता ने जब उन्हें साइकिल खरीदकर दी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज भी वह उस साइकिल को भूलते नहीं है। उन्होंने एक सामाचार पत्र को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि साइकिल पाना मेरी जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिन था।

पटना के रहने वाले अनिल अग्रवाल के पिता लोहे के ग्रिल वगैरह बनाया करते थे। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई बमुश्किल पूरी की। लेकिन कॉलेज का मुंह तक नहीं देखा। पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए अनिल अग्रवाल लोहे के कबाड़ खरीदने-बेचने के लिए 1976 में मुंबई चले गए थे जहां से उनकी जिंदगी में बदलाव आ गया। वहां उन्होंने तांबा, जस्ता, अल्युमिनियम और लौह अयस्क का विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया।

1976 में उन्होंने स्टर्लाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना की और उसके बाद लगातार आगे बढ़ते गए। बाद में वह इंग्लैंड चले गए और वहां अपनी कंपनी वेदांत की शुरूआत की। इस कंपनी के वे एक्जीक्युटिव चेयरमैन हैं। वेदांत समूह के अलावा वह बाल्को, एचजेडएल और वेदांत अल्युमीना के भी डायरेक्टर हैं। वेदांत रिसोर्सेज लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली प्रथम भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। इसका सालाना राजस्व 8 अरब डॉलर का है। उनका काम काज यूरोप, अफ्रीका और एशिया में है और वे अपने प्राइवेट जेट में इन जगहों पर आते-जाते हैं।

साभार : दैनिक भास्कर

Sunday, November 23, 2014

SUNEEL MITTAL - सुनील मित्तल


देश में आर्थिक उदारीकरण ने अनेक उद्यमियों को अपनी प्रतिभा को दिखाने का मौका दिया। उनमें सुनील भारती मित्तल खास हैं। देश की मोबाइल सेवा देने वाली सबसे बड़ी कंपनी भारती एयरटेल के प्रमुख सुनील भारती मित्तल ज्ञानी किस्म के इंसान हैं। वे जब किसी सवाल पर अपनी राय रखते हैं तो उसे सुना जाता है। अनसुना नहीं किया जा सकता। वे सच्चे उद्यमी हैं- पहली पीढ़ी के उद्यमी। एक बार उन्होंने कहा था कि मैंने जीवन के शुरुआती दौर में ही व्यापार के संसार में जाने का मन बना लिया था। जब पढ़ाई में मन लगता नहीं था तो दो ही विकल्प बचते थे। एक राजनीति में जाने का और दूसरा व्यापार करने का। लुधियाना शहर में व्यापार करने का अच्छा माहौल था। मैंने भी 18 साल की उम्र में व्यापार करना शुरू किया। सबसे पहले ब्रजमोहन मुंजाल साहब की हीरो साइकिल कंपनी के लिए साइकिल के पार्ट्स बनाने शुरू किए। भारती के लिए वर्ष 1982 विशेष था। वे कहते हैं उस समय में जापान से आयातित पोर्टेबल जेनरेटरों की बिक्री का मेरा भरा-पूरा व्यवसाय था। इससे मुझे विपणन और विज्ञापन जैसी गतिविधियों में शामिल होने का अवसर मिला। चीजें बिल्कुल सही तरीके से चल रही थीं, लेकिन सरकार ने जेनरेटर के आयात पर रोक लगा दी, क्योंकि दो भारतीय कंपनियों को देश में ही जेनरेटर बनाने का लाइसेंस दे दिया गया था। तब मैंने तय किया कि आगे जब भी इस तरह का अवसर आएगा, मैं उसे लपकने के लिए तैयार रहूंगा। क्रांतिकारी परिवर्तन 1992 में आया, जब सरकार पहली बार मोबाइल फोन सेवा के लिए लाइसेंस बांट रही थी। उस अवसर को मैंने लपक लिया।

सुनील भारती मित्तल को विश्व के सबसे पुराने व्यापारिक संगठनों में से एक इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) का भी उपाध्यक्ष चुना जा चुका है। वे भारतीय उद्योग संगठन (सीआईआई) के साल 2008 में अध्यक्ष थे।

वे धीरू भाई अंबानी और जेआरडी टाटा को अपना आदर्श मानते हैं। वे कहते हैं कि ये सभी जमीन से जुड़े हुए ही थे, क्योंकि ये नीचे से उठे। मैंने 30-35 घंटे की रेलवे यात्रा बैठकर की है। ट्रकों में गोदी से माल उठाकर उसे बाजार में लाकर बेचा है। कुछ साल पहले भारती एयरटेल ने अफ्रीका में भी अपनी दस्तक दे दी है। अफ्रीका के एक दर्जन से ज्यादा देशों में भी भारती एयरटेल बड़ी मोबाइल सेवा देने वाली कंपनी के रूप में उभरी है। भारती एयरटेल अपना विदेशी कारोबार अपनी सहायक कंपनी भारती एयरटेल इंटरनेशनल (नीदरलैंड) बी वी (बीएआईएन) के जरिए चलाती है। स्टील की छड़ों को गर्म करके साइकिल के हिस्से बनाए जाते थे। आपके लिए सफलता की परिभाषा क्या है? भारती कहते हैं कि हर आदमी के लिए सफलता के पैमाने बदलते रहते हैं। आज जो सफलता है वह कल आपके लिए एक सामान्य घटना होती है। पहले मेरे लिए सफलता के पैमाने कुछ और थे आज कुछ और हैं। बीस हजार रुपए से मैंने व्यवसाय शुरू किया था आज मैं 20 बिलियन का लक्ष्य बना सकता हूँ लेकिन इस सबके बीच मुझे लगता है कि सफलता वह है कि जब आप शाम को अपना काम पूरा कर लें तो आपको लगे कि कुछ किया। 

वे कहते हैं कि सफलता आसानी से नहीं मिलती, क्योंकि आसान सफलता जैसी कोई चीज नहीं होती। लेकिन मेरा एक मूल मंत्र है सफलता के लिए जो मैं स्कूल कॉलेज के युवाओं कोे बताता हूं। मैं उनसे कहता हूं कि अगर मौका मिले तो जो आप जिंदगी में करना चाहते हैं वही करिए। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो कोई औसत जिंदगी तो जी सकता है लेकिन बड़ी सफलता नहीं पा सकता। बड़ी सफलता तो तभी मिलेगी जब डॉक्टर की चाहत रखने वाला डॉक्टर बने, इंजीनियर बनने की चाह रखने वाला इंजीनियर बने और व्यवसायी बनने की चाहत रखने वाला आदमी व्यवसायी बने। मेरे लिए प्रत्येक सोमवार की सुबह बहुत खूबसूरत होती है। मैं अपनी कुर्सी पर बैठकर अपना काम शुरू करता हूं। सुनील भारती मित्तल में यह भारती क्या है? वे बताते हैं कि भारती हमारे परिवार के लिए एक उपनाम बनाया गया था। दरअसल मेरे पिता जी ने उस जमाने में अपनी मर्जी से जाति से बाहर प्रेम विवाह किया था। उन्होंने ही तय किया कि उनके बच्चों के नाम के पीछे मित्तल नहीं भारती लगेगा। हमारे विद्यालय के प्रमाणपत्र, पहले के पासपोर्ट में भारती ही लिखा था। और जान लेते हैं भारती की सफलता के सूत्र।

भारती यह भी मानते हैं कि बड़े सपने देखने चाहिए। हर चीज की शुरुआत एक छोटे से कदम से होती है, लेकिन लंबी छलांग लगाने के लिए आपको बड़े सपने देखने होंगे। मैंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक किया। स्नातक के बाद 1970 के दशक में मैंने 20,000 रुपए का कर्ज लिया और अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटा-सा साइकिल व्यवसाय शुरू किया। 1979 आते-आते मुझे यह महसूस हुआ कि यह व्यवसाय ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता। मैं लुधियाना से बाहर निकला और दूसरी चीजें करने की कोशिश की, ताकि लोग मुझे पहचान सकें। भारती अंत में नए उद्यमियों को सलाह देते हैं कि वे खुद पर भरोसा करें, उन्हें सफलता मिलेगी। 

साभार: पाञ्चजन्य 

ANIL AMBANI- अनिल अंबानी



अनिल अंबानी (४ जून, १९५९ को जन्मे) एक भारतीय व्यवसायी हैं। ६ अक्टूबर २००७ को उनके पास ४२ अरब अमरीकी डालर मूल्य की संपत्ति है, जिसके अनुसार वे विश्व के ६ठे सबसे धनी व्यक्ति हैं। प्रतिशत के आधार पर वे विश्व के सबसे तेज गति से प्रगति करने वाले बहु-अरब-डॉलर वाले समृद्धशाली व्यक्ति हैं क्योंकि उनकी संपत्ति १ वर्ष में तीन गुनी हो गई. अनिल अंबानी रिलायंस कैपिटल और रिलायंस कम्युनिकेशंस के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक और रिलायंस एनर्जी तथा पूर्व में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के उप अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक थे। रिलायंस इंडस्ट्रीज में उनकी व्यक्तिगत हिस्सेदारी ६६% है।

अनिल के स्वर्गीय पिता धीरूभाई अंबानी द्वारा स्थापित रिलायंस समूह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक घराना है। उनकी माता कोकिलाबेन अंबानी है। उनका विवाह टीना मुनीम अंबानी से हुआ है जो १९८० के दशक के प्रारम्भिक समय की एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री थी और जिनसे उन्हें दो पुत्र, जय अनमोल तथा जय अंशुल हुए। अनिल अंबानी समूह की चार फर्मों -- रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCOM), रिलायंस कैपिटल (RCL), रिलायंस एनर्जी (REL) और रिलायंस नेचुरल रेसौरसेस लिमिटेड (RNRL) में निवेशकों की कुल संपत्ति १,४२,३८४ करोड़ रुपए तक पहुँच गई है, जबकि प्रवर्तकों की कुल अनुमानित धारिता करीब ८७,००० करोड़ रुपये हैं। अनिल की ज्यादातर संपत्ति RCOM में इनके ६५% अंशों से बनी है, जिसका बाजार मूल्य १,०३,००० करोड़ रुपये हैं। उनके पास RCL में ५० प्रतिशत से अधिक (बाजार मूल्य २४,००० करोड़ रुपये), REL में ३५ प्रतिशत (बाजार मूल्य १२,७०० करोड़ रुपये) और RNRL में करीब ५४ प्रतिशत है, जिसका बाजार मूल्य करीब २,६०० करोड़ रुपए है। अंबानी ने मुंबई विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की है तथा पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से एमबीए की उपाधि प्राप्त की। इन दिनों वे व्हार्टन बोर्ड ऑफ़ ओवरसीअर्स के सदस्य हैं।

अंबानी सहायक प्रमुख कार्यकारी अधिकारी के रूप में १९८३ में रिलायंस में शामिल हुए और भारतीय पूंजी बाजार में अनेक वित्तीय सुधार लाने का श्रेय उन्हें जाता है। उदाहरण के लिए, वैश्विक अमानती प्राप्तियां, विनिमय तथा बांड के अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक निर्गम के साथ उन्होंने विदेशी पूंजी बाजारों में भारत की और से पहली घुसपेठ की. उन्होंने १९९१ के बाद, रिलायंस को विदेशी वित्तीय बाजारों से लगभग २ अरब अमरीकी डॉलर जुटाने के प्रयासों में निर्देशित किया; जनवरी १९९७ में १०० वर्षीया एक यंकी बांड निर्गम के साथ जो एक उच्चतम बिन्दु था, जिसके बाद लोग उन्हें एक वित्तीय जादूगर समझने लगे. उन्होंने रिलायंस समूह को भारत की अग्रणी वस्त्र, पेट्रोलियम, पेट्रोरसायन, बिजली और दूरसंचार कंपनी के रूप में इसकी वर्तमान स्थिति तक प्रशस्त किया। अनिल उत्तर प्रदेश विकास परिषद (यह परिषद अब रद्द कर दिया गया है) के सदस्य थे। वे DA- IICT गांधीनगर के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर के अध्यक्ष हैं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर के सदस्य भी हैं। वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, अहमदाबाद के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर के सदस्य हैं। वे केन्द्रीय सलाहकार समिति, केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग के एक सदस्य भी हैं। जून २००४ में, समाजवादी पार्टी के सहयोग से अनिल भारतीय संसद में, राज्य सभा- ऊपरी सदन के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में चुने गए। मार्च २००६ में, उन्होंने इस्तीफा दे दिया। हाल ही में अपने भाई मुकेश अंबानी के बाद खरबपतियों की पुस्तक में उनका भी नाम दर्ज हुआ है। उनकी १५ साल के लंबे कैरियर में अनिल का नाम उनकी वर्तमान पत्नी सहित अनेक तारिकाओं के साथ जोड़ा गया है। वे फिल्म सितारे अमिताभ बच्चन के एक करीबी दोस्त हैं। मनोरंजन उद्योग में उनकी प्रमुख उपलब्धियों में एक है, फ़िल्म निर्माण एवं वितरण में सलंग्न मल्टीप्लेक्स कंपनी एडलैब्स (Adlabs) का अधिग्रहण, जो मुंबई के इकलौते गुंबद थियेटर के मालिक है। ३ अगस्त २००८ को, अंबानी इंग्लिश प्रीमियर लीग टीम, यूनाईटेड न्यूकासेलके अधिग्रहण के २३० मिलियन पाउंड के एक सौदे में एक प्रमुख प्रतियोगी के रूप में उभरे।


टाइम्स ऑफ इंडिया TNS चुनाव  द्वारा वर्ष २००६ के लिए बिज्नेस्मन ऑफ़ दी इयर चुने गए।
२००४ के लिए प्रतिष्ठित प्लेत्ट्स ग्लोबल एनर्जी अवार्ड्स हेतु सीईओ ऑफ़ दी इयर घोषित किए गए।
सितंबर २००३ में 'एमटीवी यूथ आइकोन ऑफ़ दी इयर' चुने गए।
बॉम्बे मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा अक्टूबर २००२ में 'दशक के उद्यमी पुरस्कार' से सम्मानित.
रिलायंस को इसके अनेक व्यवसाय क्षेत्रों में विश्व स्तर पर अग्रणी रूप में स्थापित करने में इनके योगदान के लिए दिसम्बर २००१ में व्हार्टन इंडिया इकनॉमिक फोरम (Wharton India Economic Forum) (WIEF) द्वारा पहले भारतीय व्हार्टन अलुमिनी अवार्ड से पुरस्कृत.
भारत की प्रमुख व्यापार पत्रिका बिजनेस इंडिया द्वारा दिसम्बर १९९७ में 'बिज्नेस्स्मन ऑफ़ दी इयर १९९७ ' पुरस्कार से सम्मानित.

अंबानी का विवाह पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री टीना मुनीम (Tina Munim) से हुआ है। उनके दो पुत्र हैं जो परिवार के स्वामित्व के धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल (Dhirubhai Ambani International School) में न होकर वर्तमान में कैथेड्रल एंड जॉन कन्नन स्कूल (Cathedral and John Connon School) मुंबई और लंदन के पास सेवेनोआक्स स्कूल (Sevenoaks School) में अध्ययनरत है।


एक बार अंबानी का वजन ११५ किलोग्राम था, परन्तु एक बार वजन के लिए बोर्डरूम बैठक में मजाक बनने के बाद उन्होंने वजन कम किया और अब स्वयं को "फिटनेस सनकी" के रूप में प्रचारित करते हैं।
अनिल के करीबी मित्रों में अनेक प्रमुख भारतीय सामाजिक हस्तियों, फिल्मी सितारें तथा व्यापारियों के अतिरिक्त बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन और राजनीतिज्ञ अमर सिंह (Amar Singh) शामिल हैं।
२००६ में, उनकी समूह की कंपनी NIS Sparta के वरिष्ठ लोग भारती जैसे बड़े आन्दोलन में सम्मलित हुए

साभार: विकिपीडिया 

Thursday, November 20, 2014

SHYAMLAL GUPTA 'PARSHAD' - -श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'




श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ (अंग्रेज़ी: Shyamlal Gupta 'Parshad', जन्म: 16 सितम्बर 1893 - मृत्य: 10 अगस्त 1977) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद', भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' के रचयिता थे।

जीवन परिचय

श्यामलाल गुप्त का जन्म 16 सितम्बर 1893 को कानपुर ज़िले के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर पर हुआ था। ये अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इन्होंने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। जिसके पश्चात ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल का बॉन्ड (अनुबंध) भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1921 में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। आपने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। आपने वर्ष 1924 में झंडागान की रचना की जिसे 1925 में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया। यह झंडागीत इस प्रकार है-


विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा उंचा रहे हमारा
सदा शक्ति बरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
शांति सुधा सरसाने वाला
मातृभूमि का तन मन सारा
झंडा उंचा रहे हमारा 

कार्यक्षेत्र

वे बचपन से ही प्रतिभासंपन्न थे। प्रकृति ने उन्हें कविता करने की क्षमता सहज रूप में प्रदान की थी। जब वे पाँचवी कक्षा में थे तब उन्होंने यह कविता लिखी:-


परोपकारी पुरुष मुहिम में पावन पद पाते देखे,
उनके सुंदर नाम स्वर्ण से सदा लिखे जाते देखे।

प्रथम श्रेणी में मिडिल पास होने के बाद उन्होंने पिता के कारोबार में सहयोग देना आरंभ कर दिया। साथ ही किसी प्रकार पढ़ाई भी जारी रखी और हिंदी साहित्य सम्मेलन की विशारद परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। 15 वर्ष की अवस्था से ही वे हरिगीतिका, सवैया, घनाक्षरी आदि छंदों में सुंदर रचना करने लग गए थे। पार्षदजी की साहित्यिक प्रतिभा और देशभक्ति की भावना ने उन्हें पत्रकारिता की ओर उन्मुख कर दिया। उन्होंने 'सचिव' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन संपादन आरंभ कर दिया। सचिव के प्रत्येक अंक के मुखपृष्ठ पर पार्षदजी की निम्न पंक्तियाँ प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं -


राम राज्य की शक्ति शांति सुखमय स्वतंत्रता लाने को
लिया 'सचिव' ने जन्म देश की परतंत्रता मिटाने को

झंडागीत की रचना

सन 1923 में फ़तेहपुर ज़िला काँग्रेस का अधिवेशन हुआ। सभापति के रूप में पधारे मोतीलाल नेहरू को अधिवेशन के दूसरे दिन ही आवश्यक कार्य से बंबई जाना पड़ा। उनके स्थान पर सभापतित्व संभालने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी को अंग्रेज़ सरकार के विरोध में भाषण देने के कारण जेल जाना पड़ा। काँग्रेस ने उस समय तक झंडा तो 'तिरंगा झंडा' तय कर लिया था पर जन-मन को प्रेरित कर सकने वाला कोई झंडागीत नहीं था। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी पार्षद जी की देशभक्ति और काव्य-प्रतिभा दोनों से ही प्रभावित थे, उन्होंने पार्षदजी से झंडागीत की रचना करने को कहा। काव्य-रचना ऐसी चीज़ तो है नहीं कि जब चाहा हो गई। पार्षदजी परेशान, समय सीमा में कैसे लिखा जाए? काग़़ज-कलम लेकर लिखने बैठ गए। रात को नौ बजे कुछ शब्द काग़ज़ पर उतरने शुरू हो गए। कुछ समय बाद एक गीत तैयार हो गया जो इस प्रकार था - राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति राष्ट्रीय पताका नमो नमो। रचना बन गई थी, अच्छी भी थी, पर पार्षदजी को लगा बात बनी नहीं। लगा, गीत सामान्य जन-समुदाय के लिए उपयुक्त नहीं था। थककर वह लेट गए। पर व्यग्रता के कारण नींद नहीं आई। जागते-सोते, करवटें बदलते-बदलते रात दो बजे लगा- जैसे रचना उमड़ रही है। वह उठकर लिखने बैठ गए। कलम चल पड़ी। स्वयं पार्षदजी के अनुसार, "गीत लिखते समय मुझे यही महसूस होता था कि भारत माता स्वयं बैठकर मुझे एक-एक शब्द लिखा रही है।" इस तरह उनकी कलम से निकला ‘‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।’’ इस गीत को लेकर पार्षद जी अगले दिन सुबह ही विद्यार्थी जी के पास पहुंच गए। गणेश शंकर विद्यार्थी को यह गीत बहुत पसंद आया और उन्होंने पार्षद जी की जमकर तारीफ की। इसके बाद यह गीत महात्मा गांधी के पास भेजा गया जिन्होंने इसे छोटा करने की सलाह दी। सन1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसे झंडा गीत के रूप में स्वीकार किया और उनके साथ मौजूद पांच हजार से अधिक लोगों ने इसे पूरे जज्बे के साथ गाया। पार्षद जी के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए नेहरू जी ने कहा था- 'भले ही लोग पार्षदजी को नहीं जानते होंगे परंतु समूचा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से परिचित है।'

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी और साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र के सानिध्य में आने पर श्यामलाल जी ने अध्यापन, पुस्तकालयाध्यक्ष और पत्रकारिता के विविध जनसेवा कार्य किए। पार्षद जी 1916 से 1947 तक पूर्णत: समर्पित कर्मठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। गणेशजी की प्रेरणा से आपने फ़तेहपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और बाद में अपनी लगन और निष्ठा के आधार पर सन 1920 में वे फ़तेहपुर ज़िला काँग्रेस के अध्यक्ष बने। इस दौरान 'नमक आंदोलन' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रमुख संचालन किया तथा ज़िला परिषद कानपुर में भी वे 13 वर्षों तक रहे। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण पार्षदजी को रानी यशोधर के महल से 21 अगस्त 1921 को गिरफ़्तार किया गया। ज़िला कलेक्टर द्वारा उन्हें दुर्दांत क्रांतिकारी घोषित करके केंद्रीय कारागार आगरा भेज दिया गया। 1930 में नमक आंदोलन के सिलसिले में पुन: गिरफ़्तार हुए और कानपुर जेल में रखे गए। पार्षदजी सतत स्वतंत्रता सेनानी रहे और 1932 में तथा 1942 में फरार रहे। 1944 में आप पुन: गिरफ़्तार हुए और जेल भेज दिए गए। इस तरह आठ बार में कुल छ: वर्षों तक राजनैतिक बंदी रहे। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के दौरान वे चोटी के राष्ट्रीय नेताओं- मोतीलाल नेहरू, महादेव देसाई, रामनरेश त्रिपाठी और अन्य नेताओं के संपर्क में आए।

समाज सेवा

राजनीतिक कार्यों के अलावा पार्षदजी सामाजिक कार्यों में भी अग्रणी रहे। उन्होंने दोसर वैश्य इंटर कालेज एवं अनाथालय, बालिका विद्यालय, गणेश सेवाश्रम, गणेश विद्यापीठ, दोसर वैश्य महासभा, वैश्य पत्र समिति आदि की स्थापना एवं संचालन किया। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा व दहेज विरोध में आपने सक्रिय योगदान किया। आपने विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दिलाने में सक्रिय योगदान किया। पार्षदजी ने वैश्य पत्रिका का जीवन भर संपादन किया। रामचरितमानस उनका प्रिय ग्रंथ था। वे श्रेष्ठ 'मानस मर्मज्ञ' तथा प्रख्यात रामायणी भी थे। रामायण पर उनके प्रवचन की प्रसिद्ध दूर-दूर तक थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को उन्होंने संपूर्ण रामकथा राष्ट्रपति भवन में सुनाई थी। नरवल, कानपुर और फतेहपुर में उन्होंने रामलीला आयोजित की। भारत भूमि से उनका प्रेम आज़ादी के बाद उत्पन्न हुयी परिस्थितियों में उन्होंने एक नये गीत की रचना 1972 में की जिसे 12 मार्च को लखनऊ के कात्यायिनी कार्यक्रम में सुनाया।


देख गतिविधि देश की मैं
मौन मन से रो रहा हूं
आज चिंतित हो रहा हूं
बोलना जिनको न आता था,
वही अब बोलते है
रस नहीं वह देश के,
उत्थान में विष घोलते हैं
सम्मान और पुरस्कार

1973 में उन्हें 'पद्म श्री' से अलंकृत किया गया। उनकी मृत्यु के बाद कानपुर और नरवल में उनके अनेकों स्मारक बने। नरवल में उनके द्वारा स्थापित बालिका विद्यालय का नाम 'पद्मश्री श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' राजकीय बालिका इंटर कालेज किया गया। फूलबाग, कानपुर में 'पद्मश्री' श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' पुस्तकालय की स्थापना हुई। 10 अगस्त 1994 को फूलबाग में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। इसका अनावरण उनके 99वें जन्मदिवस पर किया गया। झंडागीत के रचयिता, ऐसे राष्ट्रकवि को पाकर देश की जनता धन्य है।

निधन

10 अगस्त 1977 की रात को इस समाजसेवी, राष्ट्रकवि का निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। स्वतंत्र भारत ने उन्हें सम्मान दिया और 1952 में लाल क़िले से उन्होंने अपना प्रसिद्ध 'झंडा गीत' गाया। 1972 में लाल क़िले में उनका अभिनंदन किया गया।

साभार: भारत डिस्कवरी 

DESHBANDHU GUPTA - देशबंधु गुप्त




देशबंधु गुप्त (जन्म- 14 जुलाई, 1900, पानीपत, हरियाणा; मृत्यु- 1951) प्रसिद्ध राष्ट्र भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। अपने विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े थे। उनसे प्रभावित होकर ही लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने साथ ले लिया था। गुप्त जी में संगठन करने की बड़ी क्षमता थी। वर्ष 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान इन्हें गिरफ़्तार किया गया और फिर 1945 में ही ये जेल से बाहर आ सके। एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त जाने जाते थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने इन्हें राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का सम्पादक नियुक्त किया था। 1948 में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन' के अध्यक्ष भी आप चुने गए थे। गुप्त जी हमेशा 'जाति प्रथा' का विरोध करते रहे।

जन्म

देशबंधु गुप्त जी का जन्म 14 जुलाई, 1900 ई. को पानीपत, हरियाणा के एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला शादीलाल पक्के आर्य समाजी थे। इनके घर में वैदिक रीति-रिवाजों का पूरी तरह से पालन होता था। इसका पूरा प्रभाव देशबंधु गुप्त के जीवन पर पड़ा।

शिक्षा

देशबंधु गुप्त की आरम्भिक शिक्षा उन दिनों व्यवसायी लिखा-पढ़ी में प्रचलित महाजनी लिपि में हुई। फिर वे नगरपालिका के स्कूल और अंबाला के 'आर्य वैदिक हाईस्कूल' में भर्ती हुए। देशबंधु गुप्त ने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के 'हिन्दू कॉलेज' में प्रवेश लिया। यह उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ था।

आन्दोलन तथा गिरफ़्तारी

जब गुप्त जी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तब उसी अवधि में कई इतिहास प्रसिद्ध घटनाएं घटीं। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में रॉलेट एक्ट के विरोध में पहला व्यापक आन्दोलन चला। जलियाँवाला बाग़ में भीषण हत्याकांड हुआ और भारत की प्रबुद्ध जनता ने एक स्वर से ब्रिटिश राजकुमार की भारत-यात्रा का विरोध किया। विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े और गिरफ़्तार कर लिये गए।

लालाजी का साथ

लाला लाजपत राय गुप्त जी की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। ये उनकी प्रतिभा ही थी, जिससे प्रभावित होकर लाला जी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। देशबंधु गुप्त को आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता तथा देशभक्त स्वामी श्रद्धानन्द के साथ जेल में रहने का भी अवसर मिला। महात्मा गाँधी के प्रेरक व्यक्तित्व से भी वे प्रभावित हुए। इस प्रकार उनके विचारों में प्राचीनता और आधुनिकता के संयुक्त दर्शन होते थे।

संगठन क्षमता

देशबंधु गुप्त में संगठन की बड़ी क्षमता थी। ब्रिटेन के राजकुमार की भारत यात्रा के समय सरकारी अधिकारियों ने उनके स्वागत के लिए दिल्ली में दलितों की एक सभा का आयोजन किया था। अपनी चतुरता से देशबंधु ने मंच पर कब्ज़ा करके सभा को भंग कर दिया। तभी से उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख कांग्रेस जनों में होने लगी। इसके बाद जितने भी राष्ट्रीय आन्दोलन हुए, उन सब में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की सज़ाएं भोगीं। 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान भी वे गिरफ़्तार हुए और फिर 1945 में ही जेल से बाहर आ सके।

पत्रकार

एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त प्रसिद्ध थे। उनकी पत्रकारिता का लाला लाजपत राय के साथ आरंभ हुआ। लालाजी 'वंदेमातरम्' नामक पत्र के लिए बोल कर देशबंधु को लेख लिखवाया करते थे। तभी से उनकी भी इस क्षेत्र में रुचि बढ़ी। वर्ष 1923 में स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का उन्हें संपादक बना दिया था। आगे चलकर पत्रकार जगत में उन्होंने इतनी प्रसिद्धि पाई कि 1948 में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन' के अध्यक्ष चुन लिए गए।

जाति प्रथा के विरोधी

देशबंधु गुप्त जीवन-भर राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे। वे आर्य समाज के अनुयायी और सांप्रदायिकता की भावना से दूर थे, परंतु हिन्दुओं को दबाकर अन्य धर्मावलंबियों को आगे बढ़ाना उन्हें स्वीकार नहीं था। वे जाति-प्रथा के प्रबल विरोध थे।

निधन

दुर्भाग्य से वर्ष 1951 में एक विमान दुर्घटना में देशबंधु गुप्त का देहांत हो गया। यदि यह विमान दुर्घटना न घटी होती तो वही दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री बने होते।

साभार: भारत डिस्कवरी 

DR. BHAGWAN DAS - डॉ. भगवान् दास




डॉ. भगवान दास (जन्म- 12 जनवरी, 1869 वाराणसी - मृत्यु- 18 सितम्बर 1958) को विभिन्न भाषाओं के प्रकांड पंडित, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी और शिक्षा शास्त्री के रूप में, देश की भाषा, संस्कृति को सुदृढ़ बनने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, स्वतंत्र और शिक्षित भारत के मुख्य संस्थापकों में गिना जाता है।

जन्म

डॉ. भगवान दास का जन्म 12 जनवरी, 1869 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में  एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम साह माधव दास था। वे वाराणसी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और धनी व्यक्तियों में गिने जाते थे। धन और प्रतिष्ठा से डॉ. भगवान दास का संबंध उनके पूर्वजों के समय से ही था। कहा जाता है कि डॉ. भगवान दास के पूर्वज बड़े ही दानी और देशभक्त थे। इन सभी गुणों के साथ साथ वह कुशल व्यापारी भी थे। उन्होंने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर अथाह सम्पत्ति एकत्र कर ली थी। धनी और प्रतिष्ठित पतिवार में जन्म लेने के बाद भी डॉ. भगवान दास बचपन से ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति के सांचे में ढले थे।

शिक्षा

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में ही हुई। उस समय अंग्रेज़ी, शिक्षा, भाषा और संस्कृति का बहुत प्रसार था किंतु डॉ. भगवान दास ने अंग्रेज़ी के साथ साथ हिन्दी,अरबी, उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी, भाषाओं का भी गहन अध्ययन किया। शेख सादी द्वारा रची गयीं 'बोस्तां' और 'गुलिस्तां' इन्हें बहुत ही प्रिय थीं। बचपन से ही डॉ. भगवान दास बहुत ही कुशाग्र बुद्धि थे। वे पढ़ने लिखने में बहुत तेज़ थे। डॉ. भगवान दास ने 12 वर्ष की आयु में ही हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। इसके पश्चात वाराणसी के ही 'क्वींस कॉलेज' से इण्टरमीडिएट और बी.ए. की परीक्षा संस्कृत, दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान और अंग्रेज़ी विषयों के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें कोलकाता भेजा गया। वहाँ से उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया। सन् 1887 में उन्होंने 18 वर्ष की अवस्था में ही पाश्चात्य दर्शन में एम. ए. की उपाधि प्राप्त कर ली थी। एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करके पिता के कहने से उन्होंने अनिच्छा पूर्वक डिप्टी कलेक्टर के पद पर सरकारी नौकरी की। नौकरी करते हुए भी उनका ध्यान अध्ययन और लेखन कार्य में ही लगा रहा।

कार्यक्षेत्र

23 -24 वर्ष की आयु में ही उन्होंने 'साइंस ऑफ पीस' और 'साइंस ऑफ इमोशन' नामक पुस्तकों की रचना कर ली थी। लगभग 8 -10 वर्ष तक उन्होंने सरकारी नौकरी की और पिता की मृत्यु होने पर नौकरी छोड़ दी। इस समय एक ओर देश की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर अंग्रेज़ों के शासन के कारण भारतीय भाषा, सभ्यता और संस्कृति नष्ट भ्रष्ट हो रही थी और उसे बचाने के गंभीर प्रयास किये जा रहे थे। प्रसिद्ध समाज सेविका एनी बेसेंट ऐसे ही प्रयासों के अंतर्गत वाराणसी में कॉलेज की स्थापना करना चाह रही थीं। वह ऐसा कॉलेज स्थापित करना चाहतीं थीं जो अंग्रेज़ी प्रभाव से पूर्णतया मुक्त हो। जैसे ही डॉ. भगवान दास को इसका पता चला उन्होंने तन मन धन से इस महान उद्देश्य पूरा करने का प्रयत्न किया। उन्हीं के सार्थक प्रयासों के फलस्वरूप वाराणसी में 'सैंट्रल हिन्दू कॉलेज' की स्थापना की जा सकी। इसके बाद पं. मदनमोहन मालवीय ने वाराणसी में 'हिन्दू विश्वविद्यालय' स्थापित करने का विचार किया, तब डॉ. भगवान दास ने उनके साथ मिलकर 'काशी हिन्दू विद्यापीठ' की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और पूर्व में स्थापित 'सैंट्रल हिन्दू कॉलेज' का उसमें विलय कर दिया। डॉ. भगवान दास काशी विद्यापीठ के संस्थापक सदस्य ही नहीं, उसके प्रथम कुलपति भी बने।

लेखन

डॉ. भगवान दास ने हिन्दी और संस्कृत भाषा में 30 से भी अधिक पुस्तकों पर लेखन किया। सन् 1953 में भारतीय दर्शन पर उनकी अंतिम पुस्तक प्रकाशित हुई।

स्वतंत्रता में भाग

डॉ. भगवान दास ने देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को भी उसी भाव से निभाया। 1921 के 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' में भाग लेने पर वह गिरफ्तार होकर जेल गये। इसके बाद 'असहयोग आन्दोलन' में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाकर प्रमुख कांग्रेसी नेता के रूप में उभरे। शिक्षा शास्त्री तो वह थे ही, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी उभर कर सामने आये। असहयोग आन्दोलन के समय डॉ. भगवान दास काशी विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उसी समय देश के भावी नेता श्री लालबहादुर शास्त्री भी वहां पर शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। इस समय वह कांग्रेस और गांधी जी से पूर्णत: जुड़ गये थे। 1922 में वाराणसी के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनावों में कांग्रेस को भारी विजय दिलायी और म्यूनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष चुने गये। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक सुधार कार्य कराये। साथ ही वह अध्ययन और अध्यापन कार्य से भी जुड़े रहे, विशेष रूप से हिन्दी भाषा के उत्थान और विकास में उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किये। इन महत्त्वपूर्ण कार्यों के कारण उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधियों से अलंकृत किया गया। सन् 1935 के कौंसिल के चुनाव में वे कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। कालांतर में वे सक्रिय राजनीति से दूर रहने लगे और भारतीय दर्शन और धर्म अध्ययन और लेखन कार्य में व्यस्त रहने लगे। इन विषयों में उनकी विद्वत्ता, प्रकांडता और ज्ञान से महान भारतीय दार्शनिक श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी बहुत प्रभावित थे और डॉ. भगवान दास उनके लिए आदर्श व्यक्तित्व बने।

योगदान

डॉ. भगवान दास का योगदान जितना भारतीय शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ और विकसित करने में मानाजाता है, उतना ही योगदान देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण माना जाता है, और जितना योगदान देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण माना जाता है, उतना ही योगदान भारतीय दर्शन और धर्मशास्त्र को विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित करने में माना जाता है। 'वसुदैव कुटंबकम' अर्थात 'सारा विश्व एक ही परिवार है' की भावना रखने वाले डॉ. भगवान दास ने सम्पूर्ण विश्व के दर्शन और धर्म को प्राचीन और सामयिक परिस्थितियों के अनुरूप एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।

व्यक्तित्व

अपने जीवनकाल में ही अपार धन और सम्मान पाने के बाद भी डॉ. भगवान दास का जीवन भारतीय संस्कृति और महर्षियों की परम्परा का ही प्रतिनिधित्व करता है। वह गृहस्थ थे, फिर भी वह संयासियों की भांति साधारण खान पान और वेशभूषा में रहते थे। वह आजीवन प्रत्येक स्तर पर प्राचीन भारतीय संस्कृति के पुरोधा बने। सन् 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ, तब डॉ. भगवान दास की देशसेवा और विद्वत्ता को देखते हुए उनसे सरकार में महत्त्वपूर्ण पद संभालने का अनुरोध किया गया, किंतु प्रबल गाँधीवादी विचारों के डॉ. भगवान दास ने विनयपूर्वक अस्वीकार कर दर्शन, धर्म और शिक्षा के क्षेत्र को ही प्राथमिकता दी और वह आजीवन इसी क्षेत्र में सक्रिय रहे।

पुरस्कार

सन 1955 में भारत सरकार की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया।

निधन

भारत रत्न मिलने के कुछ वर्षों बाद 18 सितम्बर 1958 में लगभग 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। आज भले ही डॉ. भगवान दास हमारे बीच नहीं हैं, किंतु भारतीय दर्शन, धर्म और शिक्षा पर किया गया कार्य सदैव हमारे साथ रहेगा।

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