ज़मीन से आसमान तक जाने के तो हजारों किस्से हैं लेकिन यह किस्सा उसमें खास है। भारत का एक कारोबारी जो आज सारी दुनिया में हलचल मचा रहा है, दरअसल लोहे के कबाड़ बेचता था। उसने कॉलेज का मुंह तक नहीं देखा था।
जी हां, आज वही शख्स बिज़नेस की दुनिया में नए-नए मुकाम बनाता जा रहा है। उसने कई ऐसे काम किए हैं और उद्योग लगाए हैं जिससे उसकी कुल दौलत 6.4 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। जी हां, आपने सही समझा, ये हैं वेदांत समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल। आज वेदांत समूह बहुराष्ट्रीय कंपनी केयर्न के भारत में 40 शेयर खरीदने की तैयारी में है। इस सौदे के बाद वेदांत समूह भारत ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े समूहों में शामिल हो जाएगा।
अनिल अग्रवाल के पास अपने विमान हैं, दुनिया के कई शहरों में ऑफिस हैं लेकिन एक समय था कि उनके पास एक साइकिल खरीदने के पैसे भी नहीं थे। उनके पिता ने जब उन्हें साइकिल खरीदकर दी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज भी वह उस साइकिल को भूलते नहीं है। उन्होंने एक सामाचार पत्र को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि साइकिल पाना मेरी जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिन था।
पटना के रहने वाले अनिल अग्रवाल के पिता लोहे के ग्रिल वगैरह बनाया करते थे। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई बमुश्किल पूरी की। लेकिन कॉलेज का मुंह तक नहीं देखा। पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए अनिल अग्रवाल लोहे के कबाड़ खरीदने-बेचने के लिए 1976 में मुंबई चले गए थे जहां से उनकी जिंदगी में बदलाव आ गया। वहां उन्होंने तांबा, जस्ता, अल्युमिनियम और लौह अयस्क का विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया।
1976 में उन्होंने स्टर्लाइट इंडस्ट्रीज की स्थापना की और उसके बाद लगातार आगे बढ़ते गए। बाद में वह इंग्लैंड चले गए और वहां अपनी कंपनी वेदांत की शुरूआत की। इस कंपनी के वे एक्जीक्युटिव चेयरमैन हैं। वेदांत समूह के अलावा वह बाल्को, एचजेडएल और वेदांत अल्युमीना के भी डायरेक्टर हैं। वेदांत रिसोर्सेज लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली प्रथम भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। इसका सालाना राजस्व 8 अरब डॉलर का है। उनका काम काज यूरोप, अफ्रीका और एशिया में है और वे अपने प्राइवेट जेट में इन जगहों पर आते-जाते हैं।
साभार : दैनिक भास्कर
No comments:
Post a Comment
हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।