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Saturday, July 31, 2021

BHAVISH AGRAWAL OLA CABS

BHAVISH AGRAWAL OLA CABS 

ओला के ब्रांड बनने की कहानी:12 हजार करोड़ खर्च करके पहले कैब को जरूरत बनाया, फिर शुरू हुई बंपर कमाई; अब ई-स्कूटर पर दांव


एक टैक्सी ड्राइवर के साथ झगड़े से निकला ओला कैब का आइडिया

ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूके में भी चलती है भारत की ओला कैब

आपने कभी न कभी ओला कैब से सफर जरूर किया होगा। करीब 60% मार्केट शेयर के साथ ये भारत की सबसे बड़ी कैब एग्रीगेटर कंपनी है। 2010 में IIT बॉम्बे के दो इंजीनियर्स ने इसकी शुरुआत की थी। आज इस कंपनी की वैल्युएशन 330 करोड़ डॉलर, यानी करीब 24 हजार करोड़ रुपए है। 15 जुलाई को ओला इलेक्ट्रिक स्कूटर की बुकिंग शुरू होने के बाद से ये ब्रांड चर्चा में है। आइए, ओला के 11 साल के सफर को शुरू से शुरू करते हैं...

टैक्सी ड्राइवर के झगड़े से निकला आइडिया

ओला के फाउंडर भाविश अग्रवाल हैं। उन्होंने 2008 में IIT बॉम्बे से बीटेक की पढ़ाई की। कॉलेज के बाद माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च में दो साल तक नौकरी की। इसके बाद उन्होंने एक ऑनलाइन वेबसाइट Olatrip.com शुरू की जो हॉलीडे पैकेज और वीकेंड ट्रिप प्लान करती थी।

एक दिन भाविश ने बेंगलुरु से बांदीपुर के लिए टैक्सी बुक की। रास्ते में टैक्सी ड्राइवर ने ज्यादा किराया देने की बात कही। भाविश ने इनकार किया तो ड्राइवर उन्हें बीच रास्ते छोड़कर चला गया। इस परेशानी से उन्हें एक आइडिया क्लिक किया।

उन्हें महसूस हुआ कि ऐसी समस्या का सामना करोड़ों लोग करते होंगे। भाविश ने अपनी ट्रैवल वेबसाइट को कैब सर्विस में बदलने का फैसला किया। उन्होंने IIT बॉम्बे के ही अंकित भाटी के साथ ये आइडिया शेयर किया। दोनों ने मिलकर 3 दिसंबर 2010 को ओला कैब्स लॉन्च कर दिया।


ओला का पहला ऑफिस एक 10*12 फीट का कमरा था। इसमें भाविश, अंकित और शुरुआती दिनों के साथी काम करते थे।

पेरेंट्स को नहीं, लेकिन इन्वेस्टर्स को पसंद आया आइडिया

शुरुआत में भाविश के पेरेंट्स उनके स्टार्टअप से सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि IIT से पढ़ने के बाद 'ट्रैवल एजेंट' बनोगे, लेकिन इन्वेस्टर्स को ये आइडिया पसंद आया। ओला को पहले राउंड की फंडिंग स्नैपडील के फाउंडर कुनाल बहल, रेहान यार खान और अनुपम मित्तल से मिली।

इसके बाद फंडिंग का सिलसिला शुरू हो गया। ओला को अब तक 26 राउंड की फंडिंग में 48 इन्वेस्टर्स से 430 करोड़ डॉलर, यानी करीब 32 हजार करोड़ रुपए की फंडिंग मिल चुकी है। 9 जुलाई 2021 को एक प्राइवेट इक्विटी से 3,700 करोड़ की लेटेस्ट फंडिंग मिली है।

भाविश अग्रवाल का कहना है कि इन्वेस्टर्स तीन चीजें चाहते हैं। क्लियर विजन, सस्टेनेबल बिजनेस मॉडल और एग्जिक्यूशन प्लान। जिस स्टार्टअप के पास ये चीजें हैं, उसे कभी फंड की कमी नहीं होगी।

ओला के पिछले 11 साल के सफर को फाउंडर भाविश तीन फेज में बांटते हैं...

फेज-1: ये 2011 से 2014 का स्ट्रगल वाला वक्त था। न ज्यादा लोग थे, न ज्यादा पैसे। भाविश खुद प्रचार करने जाते थे। कभी-कभी खुद ड्राइवर भी बन जाते थे।

फेज-2: 2014 से 2017 तक का स्केलिंग वाला वक्त था। कॉम्पिटीटर्स पैसे झोंक रहे थे। ओला ने भी इन्वेस्टर्स तलाशे और पैसे झोंकने शुरू कर दिए। इस फेज में सिर्फ बिजनेस का स्केल बढ़ाने पर जोर था।

फेज-3: ये 2017 के बाद शुरू हुआ कंसॉलिडेशन का वक्त था। इसमें ओला ने बेहतर ऑर्गेनाइजेशन स्ट्रक्चर बनाया। कमाई और मुनाफे पर फोकस किया।

भाविश का मानना है कि भारत की नई जनरेशन कार खरीदना नहीं, उसे एक्सपीरिएंस करना चाहती है। वो इसी क्लियर विजन के साथ आगे बढ़े। उन्होंने शुरुआती 7 साल में इन्वेस्टर्स के पैसे सिर्फ बिजनेस का स्केल बढ़ाने पर खर्च किए। ज्यादा इन्सेंटिव देकर ड्राइवर्स बढ़ाए और छूट देकर कस्टमर बढ़ाए। एक बार जब ओला कैब लोगों की जरूरत में शामिल हो गई, तब उससे कमाई करने के बारे में सोचा।


ओला की अपनी कार नहीं, फिर पैसे कैसे कमाती है?

ओला सिर्फ कैब बुकिंग की सर्विस उपलब्ध कराती है। कंपनी के पास अपनी कोई कार नहीं है। ऐप के जरिए वो कस्टमर्स को कैब और ड्राइवर्स को कस्टमर से जोड़ती है। ऐप पर हुई सभी बुकिंग्स पर किराए का 15% कंपनी कमीशन लेती है।

ओला के सामने चुनौतियां कम नहीं

ओला सीधे तौर पर यूएस की लीडिंग कंपनी ऊबर से मुकाबला करती है। ऊबर की वैल्युएशन 82 बिलियन डॉलर है जो ओला से 25 गुना ज्यादा है। इसके अलावा भारत में अन्य कॉम्पिटीटर्स में मेरू कैब, जूमकार और रैपिडो शामिल हैं। ओला ने अब तक कुल 6 अधिग्रहण किए हैं। उनमें टैक्सी फॉर श्योर, जियोटैग, क्वार्थ, फूडपांडा, रिडलर और पिकअप शामिल हैं।

कैब सर्विस को ग्लोबल बनाने और इलेक्ट्रिक व्हीकल पर फोकस

ओला ने भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूके में अपनी कैब सर्विस शुरू की है। भाविश अग्रवाल का कहना है कि हमने भारत में एक सस्टेनेबल बिजनेस मॉडल बना लिया है। अब हम इसे ग्लोबल स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं।

कंपनी का दूसरा फोकस मोबिलिटी को इन्वायरनमेंट फ्रेंडली बनाने पर है। भाविश का कहना है कि भारत की ज्यादातर आबादी टू व्हीलर या थ्री व्हीलर वाहनों पर चलती है। अगर इसे इलेक्ट्रिक कर दिया जाए तो इसका बड़ा इम्पैक्ट दिखेगा। हम अगले कुछ साल में 10 लाख इलेक्ट्रिक व्हीकल रोड पर देखना चाहते हैं।
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क्लैट 2021 टोपर

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RAKESH JHUNJHUN WALA A GREAT SHARE MARKET TYCOON

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आर्थिक तंगी के बीच एंट्री लेगी 'आकासा':शेयर बाजार के बिग बुल राकेश झुनझुनवाला नई एयरलाइन कंपनी लाएंगे, बेड़े में शामिल होंगे 70 प्लेन

शेयर बाजार के बिग बुल राकेश झुनझुनवाला जल्द ही नई एयरलाइन कंपनी खोलने वाले हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वे नए एयरलाइन वेंचर में 3.5 करोड़ डॉलर (लगभग 260.7 करोड़ रुपए) का निवेश कर सकते हैं। एयरलाइन कंपनी में अगले 4 साल में 70 एयरक्राफ्ट्स को शामिल करने की बात भी सामने आ रही है। फोर्ब्स के मुताबिक झुनझुनवाला की नेटवर्थ 4.6 अरब डॉलर (लगभग 34.21 हजार करोड़ रुपए) है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक नई एयरलाइन के पीछे भारत के ज्यादा से ज्यादा लोगों को हवाई यात्रा मुहैया कराने की मंशा है। झुनझुनवाला को कंपनी में 3.5 करोड़ डॉलर के निवेश पर 40% हिस्सेदारी मिलेगी। ब्लूमबर्ग को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि हमें अगले 15 दिन में एविएशन मिनिस्ट्री से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) की उम्मीद है।

स्पाइसजेट और जेट एयरवेज में हिस्सेदारी

रिपोर्ट के मुताबिक नई एयरलाइन कंपनी का नाम 'आकासा' (Akasa Air) हो सकता है। नई एयरलाइन कंपनी की टीम के साथ डेल्टा एयरलाइंस के पूर्व सीनियर एग्जीक्युटिव भी शामिल होंगे। राकेश झुनझुनवाला ने बताया कि एयरलाइन के बेड़े में शामिल होने वाले प्लेन की क्षमता 180 पैसेंजर्स तक की हो सकती है। झुनझुनवाला के पास स्पाइसजेट और ग्राउंडेड एयरलाइन कंपनी जेट एयरवेज में 1-1% की हिस्सेदारी है।


राकेश झुनझुनवाला के पास स्पाइसजेट और जेट एयरवेज की 1-1% हिस्सेदारी है।

कोरोना के बाद पैसेंजर डिमांड बढ़ेगी

कोरोना महामारी से एविएशन इंडस्ट्री की हालत पहली ही खस्ता है। साथ ही कोरोना की तीसरी लहर की संभावना भी है। दूसरी ओर महामारी से बिगड़े हालात के बावजूद राकेश झुनझुनवाला को आने वाले दिनों में एविएशन इंडस्ट्री में डिमांड बढ़ने की उम्मीद है। उनका कहना है कि भारतीय बाजार में बढ़त जारी रहेगी और जल्द ही महंगाई भी काबूू में आएगी।

आर्थिक तंगी से जूझ रहा एविएशन सेक्टर

महामारी के पहले भी एविएशन सेक्टर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। उदाहरण के तौर पर किंगफिशर कभी देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई थी, लेकिन 2012 में कंपनी को अपना कारोबार ठप करना पड़ा। इसी तरह जेट एयरवेज भी 2019 से ग्राउंडेड है, जो अब एक फिर उड़ान भरने की तैयारी में है। टाटा ग्रुप और सिंगापुर एयरलाइन लिमिटेड के जॉइंट वेंचर वाली कंपनी विस्तारा और इंडिगो भी कोरोना महामारी के चलते आर्थिक तंगी में हैं।
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WE ARE AGRAWAL - WE MAKE HISTORY

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MOHAN LAL SUKHADIA JI - A GREAT LEADER

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Saturday, July 17, 2021

THE TEMPLES OF BIDLA FAMILY - बिरला परिवार ने पूरे भारत में बनाए 19 भव्य मंदिर

THE TEMPLES OF BIDLA FAMILY - बिरला परिवार ने पूरे भारत में बनाए 19 भव्य मंदिर


बिरला परिवार ने पूरे भारत में बनाए 19 भव्य मंदिर । 20 वीं शताब्दी से लेकर आज तक बिरला परिवार के अलावा किसी और परिवार ने इतने भव्य मंदिर नहीं बनाए... परंपरा में बिरला परिवार वैष्णव था लेकिन पंचदेवों के भव्य मंदिर बनवाए... बिरला परिवार मारवाड़ी बनिया समुदाय का रत्न है...



Friday, July 16, 2021

DEEPAK KABRA - दीपक काबरा बने ओलिम्पिक में जज

 

DEEPAK KABRA - दीपक काबरा बने ओलिम्पिक में जज  



MARVADI VAISHYA - मारवाड़ी व्यापारी के प्रमुख व्यापारिक गुण क्या हैं?

MARVADI VAISHYA - मारवाड़ी व्यापारी के प्रमुख व्यापारिक गुण क्या हैं?

वैसे तो किसी एक समुदाय के लोग में सिर्फ़ एक ही तरह के गुणगान लोग निकलेंगे ऐसा कहना कठीन है। हर समुदाय में योग्य और अयोग्य लोग भरे पड़ें हैं। इसिलिए generalize करना कठीन है। मेरे हिसाब से हर व्यापारी के लिए ये निम्नलिखित गुण श्रेष्ठ व्यापारिक गुण हैं, मारवाड़ी व्यापारियों में भी यह गुण पाये जातें हैं।

१) पैसे की समझ -

धन, पूँजी, संपत्ति की समझ रखना एक व्यापारी के लिए बहुत आवश्यक है। व्यापारी की निजी राय या विचारधारा मार्क्सवादी हो या समाजवादी या पूँजीवादी हो पर पूँजी की समझ उसके लिए अत्यावश्यक है। you don’t need to be a capitalist to understand “capital” but just a businessman to understand it. यह पूँजी केवल पैसा नहीं, कोई सामग्री हो सकती है, कोई idea हो सकता है या कोई मेटीरियल हो सकता है। इस पूँजी को सम्भालकर और इसके बलबूते पर धंधा करना ही व्यापारीक तंत्र है। इसके अलावा पैसे की समझ भी बहुत ज़रूरी है। अकसर इंसान खुद के पैसे से धंधा नहीं करता है, क़र्ज़े के पैसे से ही धंधा होता है। क़र्ज़ लेना और चुकाने का सामर्थ्य रखना हर व्यापारी के लिए अनिवार्य है।

२) कर्मचारी और प्रतिनिधियों की निगरानी

कर्मचारी और व्यापार के प्रतिनिधी करने वालों और सह मददगार लोगों पर trust करना बहुत मुश्किल काम है। tragedy of commons नाम का फ़लसफ़ा है - जिसमें यह बताया गया है की आम आदमी में ख़ामी यह है की वह परिस्थितियों से विवश है, इच्छाओं का दास है। ऐसे में हर इंसान का इमानदार होना नामुम्कीन है और व्यापारी को किस पर कितना भरोसा करना चाहिए, इस बात की जानकारी होना अत्यावश्यक है। मारवाड़ी व्यापारियों में यह ख़ास गुण है की वे उनके अपने मारवाड़ इलाक़े के कर्मठ और भरोसेमंद कर्मचारी सहजता से ढूँढ लेते हैं और उनका अच्छा ख़्याल भी रखतें हैं।

३) स्थानीय तहज़ीब का मान रखना

हर व्यापारी को स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का मान रखते हुए धंधा करना पढ़ता है। उदाहरणत: हमारे चेन्नई शहर के साहूकारपेट इलाक़े में क़रीब १०० साल से भी अधिक समय से मारवाड़ी व्यापारी रहतें हैं और स्थानीय भाषा तामिल में बात करतें हैं और तामिल त्योहार जैसे कार्तिक महीना और पोंगल के दिनों अपने दुकान पर विशेष डिस्काउंट रखतें हैं। एक जैन ज्वेलेरस दुकान थी नारी मैडरास के इक जिल्हे में और वहाँ पर मैंने देखा था की एक ग्राहकों ने उसके विवाह के लिए कुछ गहने ख़रीदे थे। जैन ज्वेलेरस के मालिक ने स्वर्ण चैन और कंगन को दुकान में उनके कॉउंटर के पीछे रखे मीनाक्षी और मुरुगन भगवान के सामने रखकर पूजा की और अपने एक औरत स्टॉफ को बुलाकर कहा की पूजा करके इसे ग्राहक को सोंप दो। एक बार सौंपने के बाद जैन साहब बोले, “हम प्रार्थना करते हैं की आपका विवाह जीवन सुखद रहे - बेस्ट ऑफ़ लक्क !” मैं मुंबई से वहाँ गया था और जैन साहब को पहचानता था तो मैंने पूछा उनसे की आप हर वक़्त ऐसा पूजा करने के बाद ही गहने बेचते हो? तो जैन साहब का जवाब था - “कोई लोकल हिन्दु कस्टमर हो तो करता हूँ - वैसे मैं मारवाड़ी जैन हूँ पर लोकल तामिल लोगों के आस्था का ध्यान रखना पड़ता है - इसिलिए तामिल भी सिखा और उनको जैसा चाहिए वैसे अपने दुकान में चिज़ें रखता हूँ। यहॉं पर superstitions बहुत है, इसिलिए मेरा एक विवाहित स्त्रि जो स्टॉफ है उसके हाथ से गहने डेलिवर करता हूँ।” यह एक बहुत महत्वपूर्ण व्यापारिक गुण है।

इन सब चीज़ों के अलावा एक महत्वपूर्ण चीज है - PLANNING. यह व्यापारिक गुण अगर एक व्यापारी में श्रेष्ठ है याने अगर वो अच्छी बिज़नेस प्लानिंग कर सकतें हैं मतलब उनके लिए तरक़्क़ी करने के लिए कोई सिमा नहीं है। एक बार एक मारवाड़ी व्यापारी दोस्त ने मुझे यह उदाहरण दीया था १९९५ के टैम। फ़र्ज़ करो एक मारवाड़ी तिरुप्पुर जो दक्षिण तामिलनाडू का एक शहर है और अपने टॉवल्स व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। फ़र्ज़ करो की एक मारवाड़ी तिरुप्पुर से हर महीने १०० रुपये के ५०० टॉवल ख़रीदता है और मुंबई में अपनी दुकान पर बेचने लगा देता है तो purchasing cost हुआ ५०,००० रुपये प्रति महीना। हर टॉवल को मुंबई में वह ३०० रुपये में बेचता है याने २०० का मुनाफ़ा प्रति टॉवल और यदि wholesale ऑर्डर मिले तो वो १५० में बेचता है याने ५० रुपये प्रति टॉवल। अगर उसके १७० टॉवल ग्राहक के पास बीक जाएँ तो उसके उपर का उसका मुनाफ़ा है - चलिए २०० टॉवल पकड़ें - यदि वो २०० टॉवल बेचेगा तो ६०,००० बनते हैं। बाक़ी बचे ३०० टॉवल जिसमें फ़र्ज़ करो की वो कम से कम २०० टॉवल wholesale में बेचने का टॉरगट रखता है। इसमें हुआ wholesale पर मुनाफ़ा १०,००० रुपये प्रति महीने। वैसे कोशिश तो यही करेगा की वो individual ग्राहक को २०० से अधिक टॉवल बेचे पर डिमांड अनुसार। २०० टॉवल का threshold और wholesale की सेल पर वह कहता की धंधा “ठीक ठाक” चल रहा है। बाक़ी के १०० टॉवल गोडॉउन में पड़े रहतें हैं। इस तरह साल भर में “ठीक ठाक” वाले धंधे में उसका फ़ायदा होता है प्रतिमाह २०,००० रुपये और बाक़ी के १०० टॉवल परतिमाह बचतें हैं तो १२०० टॉवल गोडॉउन में रहता है। याने अब तक हमारे व्यापारी दोस्त ने २,४०,००० तो बना लीया है। साल के अंत में - याने दिवाली के पहले वो मुंबई के किसी exhibition हॉल में टॉवल का एक स्टॉल लगाता है। इसमें वह एक टॉवल यदि १५० रुपये या bargaining करने पर १२० में भी बेचेगा तो उसका फ़ायदा होता है २४००० रुपये (१२० रेट के हिसाब से) या ६०,००० रुपये (१५० रेट रेल हिसाब से)। अगर वह टॉवलों को तीन अलग प्रकार में छटनी कर तीन अलग वेराईटी में भी बेच सकता है याने - ४०० टॉवल लक्सरी २०० रुपये के, ४०० टॉवल १५० रुपये के डिलक्स और ४०० टॉवल १२० रुपये के एकोनॉमी। तो भले सारे टॉवल तिरुप्पुर के एक वेराईटी के हीं क्यों न हो पर उस व्यापारी को मुनाफ़ा मिला २०० वालों में ४०००० रुपये, १५० वालों में २०००० रुपये और १२० वालों में २४००० रुपये - कुल मिलाकर exhibition से कमाई हुई ८४००० रुपये। सालभर में देखें तो मुनाफ़ा मिला ३,२४,००० रुपये और निवेश कीया ६,००,००० रुपये। अगर २५००० का ख़र्चा ट्रेन और भागदौड़ और करमचारी पर लग जायें तब भी ३,००,००० का सालाना मुनाफ़ा होता है।

ऐसे कमाल के प्लानिंग के साथ वे किसी भी तरह का नुक़सान झेल लेतें हैं। यदि महँगाई बढ़ गई और ग्राहक कम मिले तो गोडाउन में टॉवल जमा रखो और साल में एक से अधिक भी exhibition करो तो “ठीक ठाक” वाला धंधा तो चल सकता है।

लेख साभार: कृष्णन लक्ष्मीनारायणन, ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में काम किया है

Thursday, July 15, 2021

लाला शब्द को क्यों बदनाम करते हो ?

लाला शब्द को क्यों बदनाम करते हो ? 

अक्सर बाबा रामदेव को लाला , व्यापारी और बनिया कहा जाता रहा है ।

मैं खुद भी एक व्यापारी हूं , लाला हूं और जन्म और कर्म दोनों से बनिया हूं ।

और मैंने सदैव इस बात पर गर्व का अनुभव किया है कि मैं उस समुदाय से आता हूं जो भारत के आर्थिक चक्र को गतिमान रखने में सूक्ष्म योगदान देती है ।

लेकिन आजकल ऐसा वातावरण बनाए जा रहा है कि यह सब विशेषण एक गाली की लग रहे हैं ।

मैं अक्सर सोचता था कि सारे बड़े बिलेनियर या बड़ी बडी कंपनी अमेरिका में क्यों होती हैं जैसे गूगल , माइक्रोसॉफ्ट , एप्पल , फेसबुक , अमेजॉन , टेसला , वॉलमार्ट , बर्क शायर हेथवे , डोमिनोज , मैकडोनाल्ड , पिज़्ज़ा हट , KFC , एडोब , डेल , IBM , हेवलेट पेकर्ड, ऑरेकल , कोग्निजेंट, फोर्ड , जनरल मोटर्स , जे पी मोर्गेंन, सिटी ग्रुप , अमेरिकन एक्सप्रेस , पे पाल , नाइके , फायजर आदि आदि ।
 
इसका कारण यह था कि वहां पर एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा दिया जाता है जबकि हमारे देश में बच्चों को शुरू से ही यह सिखाया जाता है कि तुम्हारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी हासिल करना है ।

व्यापारी या लाला की छवि सदैव एक लालची व्यक्ति की बनायी गई है ।

आज भी अंबानी अदानी जैसे उद्योगपति इतना टैक्स भरने के बावजूद और इतने लोगों को रोजगार देने के बावजूद कुछ लोगों के निशाने पर बने रहते हैं और गाली खाते रहते हैं ।

जहां तक बाबा रामदेव की बात है तो चूंकि उनकी कर्मभूमि उत्तराखंड है ,इस लिये मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता हूं कि हरिद्वार में हजारों घरों का चूल्हा बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के कारण चलता है ।
बाबा की कंपनी में हजारों कर्मचारी हैं जिनका वेतन उनकी योग्यता के अनुसार ₹10000 से लेकर लाखों रुपए महीने तक है ।
 
उन सब कर्मचारियों के वेतन का एक हिस्सा लोकल मार्केट मे जाता है जिस से अर्थिक चक्र चलता रहता है और समाज मे खुश हाली बनी रहती है ।
फिर उस से इतनी चिड क्यों ।

------ गोविन्द अग्रवाल जी

MAHARAJA AGRASEN JI - अग्रसेन जी के १८ सिद्धांत

MAHARAJA AGRASEN JI - अग्रसेन जी के १८ सिद्धांत 



PIYUSH GOYAL - राज्यसभा में संसदीय दल के नेता

 PIYUSH GOYAL - राज्यसभा में संसदीय दल के नेता 



Thursday, July 1, 2021

KUNAL GUPTA - A YOUNG ENTERPRENEUR

KUNAL GUPTA - A YOUNG ENTERPRENEUR

पुणे के कुनाल ने दोस्तों के साथ 2 साल पहले शुरू किया ई-बाइक्स का बिजनेस, आज देश-विदेश से 70 करोड़ रु. का टर्नओवर


पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, इस कहावत को सार्थक कर दिखाया पुणे के कुनाल गुप्ता ने। उन्होंने साल 2014 में अपने मास्टर्स के दौरान अपना पहला स्टार्टअप शुरू किया। जिसकी सफलता के बाद उन्होंने 2020 में ई-बाइक्स का बिजनेस शुरू किया और भारत की एकमात्र डुअल सस्पेंशन ई-बाइक बनाई। अपने फील्ड से जुड़े दोस्तों के साथ कुनाल इस बिजनेस को शुरू कर न सिर्फ प्रदूषण से जुड़ी परेशानियों का समाधान निकाल रहे हैं बल्कि करोड़ों का बिजनेस भी कर रहे हैं।


कुनाल ने 2014 में सबसे पहला बतौर एक्सपेरिमेंट एक स्टार्टअप शुरू किया। इस बिजनेस ने थोड़े ही समय में मार्केट में अपनी जगह बना ली और कंपनी जल्द ही ढाई सौ करोड़ के वैल्यूएशन पर पहुंच गई। कुनाल इस कंपनी के सीईओ बने और साल 2019 में एक नामी कंपनी ने इस स्टार्टअप को हायर कर लिया।

इसकी सक्सेस के बाद कुनाल एक बार फिर कुछ नया करने को तैयार थे। उन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल से जुड़ी चीजों के बारे में रिसर्च की। जिसके बाद साल 2020 में पुणे से शुरुआत हुई ई-साइकिल स्टार्टअप ‘ई-मोटोरैड’ की। जिसके जरिए कुनाल और उनके तीन पार्टनर राजीव गंगोपाध्याय, आदित्य ओझा, सुमेध बाटेवर भारत समेत 72 से ज्यादा देशों के लिए किफायती ई- साइकिल बना रहे हैं।

4 अलग-अलग फील्ड के दोस्त प्रोडक्ट के लिए हुए एक

कुनाल की बिजनेस और फाइनेंस में दिलचस्पी रही है। ऐसे ही कंपनी के को-फाउंडर आदित्य मार्केटिंग, राजीव इंटरनेशनल सेल्स और सुमित बिजनेस डेवलपमेंट देखते हैं। राजीव और कुनाल की दोस्ती एक प्रोजेक्ट के दौरान हुई। वहीं ई-मोटोरैड के तीसरे फाउंडर आदित्य से कुनाल की दोस्ती मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान हुई थी। उनके चौथे और आखिरी को-फाउंडर सुमित वैंडर रह चुके हैं। एक असाइनमेंट के दौरान दोनों की मुलाकात हुई। धीरे-धीरे एक दूसरे का काम समझा और आज वो कंपनी के को- फाउंडर हैं। चारों की खूबियां मिली और शुरुआत हुई ई-मोटोरैड की।


कुनाल के मुताबिक उनके पास भारत के साथ-साथ दुनिया के 72 देशों में 110 डीलर हैं।

पहले विदेश, फिर देश में शुरू किया बिजनेस

कुनाल बताते हैं कि ‘यूएस और यूरोप में लोगों को ई-बाइक्स के बारे में काफी जानकारी है। हम भारतीय को भी इस बारे में जागरूक करना चाहते थे, जिससे देश में बढ़ते प्रदूषण को कम किया जा सके। हम टू व्हीलर के हब रहे इंडिया को अब ई- बाइक्स का भी हब बनाना चाहते थे। यहीं से शुरुआत हुई ई-मोटोरैड की। इसका आइडिया सबसे पहले हमारे को-फाउंडर और इंटरनेशनल सेल्स के जानकार राजीव को आया। उन्होंने यूरोप, यूएस, चाइना जैसे डेवलप देशों में इस्तेमाल हो रही ई-बाइक्स के बारे में जानकारी जुटाई।’

अपने रिसर्च वर्क का जिक्र करते हुए कुनाल बताते हैं कि ‘जब टीम ने इंडियन मार्केट पर रिसर्च शुरू की तो हमारे सामने टू-व्हीलर की एक अलग तस्वीर बनी। हीरो हॉन्डा, बजाज जैसे ब्रांड्स ने पूरी दुनिया में भारत की टू-व्हीलर के लिए एक अलग पहचान बना दी है। इन्हीं से प्रेरणा लेकर हमने निर्णय किया कि हम भारत में ई-मोटर्स का एक बड़ा ब्रांड खड़ा करेंगे जो पूरी दुनिया तक ई-व्हीकल पहुंचाएगा। इसी के चलते हमने हेड ऑफिस भारत में रखा है, जहां से विदेश में बैठी सभी टीमों को ऑपरेट किया जाता है।

ई-व्हीकल की ओर बढ़ता सरकारों का रुझान

ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री के एक्सपर्ट बाइक्स का भविष्य इलेक्ट्रिक बाइक्स के रूप में देखते हैं। कई देश की सरकारें इलेक्ट्रिक बाइक्स और कार को इस इंडस्ट्री का भविष्य मानते हुए मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे रही हैं। इसके पीछे छिपी एक बड़ी वजह क्लाइमेट चेंज है। कुनाल बताते हैं कि ‘हमारे पास अभी 72 देशों में 110 डीलर हैं। विदेश की बात करें तो यूएस और यूरोप और भारत की बात करें तो दिल्ली, मुंबई और चेन्नई से सबसे ज्यादा लोग ई-बाइक्स में दिलचस्पी दिखाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल कम से कम करना होगा।'

कुनाल की टीम ने इस तरह से ई बाइक्स की डिजाइनिंग की है ताकि महिलाएं भी आसानी से उसका इस्तेमाल कर सकें।

भारत के लिए 28 में से चुने सिर्फ 4 प्रोडक्ट

कुनाल बताते हैं कि ‘हमने अपने स्टार्टअप की सेल्स और सप्लाई मार्केट के साथ शुरुआत की। बिजनेस इस्टैब्लिश होते ही हमने ई-बाइक्स मैन्युफैक्चर करना शुरू किया। भारत में हमारी 48 लोगों की टीम है जो हर देश के बारे में रिसर्च करती है जिसके बाद देश के मुताबिक ऑर्डर प्लेस किए जाते हैं।’

अपने 4 खास प्रोडक्ट का जिक्र करते हुए कुनाल कहते हैं कि भारत विविधता वाला देश है। यहां समुद्र से लेकर पहाड़, ग्लेशियर, बीच, रेगिस्तान आपको सब कुछ मिल जाएगा। इतनी अलग-अलग चीजों को एक धागे में पिरोने वाले भारत का एक प्रोडक्ट से काम नहीं चल पाता। इसलिए हमने भारत के लिए 28 तरह के अलग-अलग प्रोडक्ट डिजाइन करवा कर टेस्ट किए। इनमें से क्लाइमेट और जमीन की क्वालिटी के हिसाब से सिर्फ 4 ई-व्हीकल्स को ही फाइनल किया गया। हर प्रदेश, जिले, शहर में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग डिमांड होती है। हम हर इलाके के अनुसार अपने प्रोडक्ट को डिजाइन करते हैं। ऑफिस वर्कर से लेकर, ट्रैकर और डिलीवरी बॉय के हिसाब से ई-बाइक्स को डिजाइन किया गया है। फिलहाल हमारी 2000 से ज्यादा ई-बाइक्स भारतीय रोड पर दौड़ रही हैं।

भारत के लिए खास हैं ये 4 ई-बाइक्स

भारत के इलाकों और अलग-अलग इकोनॉमिक क्लास देखते हुए कंपनी ने देश में 4 तरह की ई-बाइक्स लॉन्च की है।

ईएमएक्स - ये भारत की एकमात्र डुअल-सस्पेंशन ई-बाइक है। बाइक और कार में सस्पेंशन दोनों तरफ होता है लेकिन साइकिल में ऐसा नहीं होता। जिससे ये चलाते समय काफी अनकंफर्टेबल हो जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए ईएमएक्स में डुअल-सस्पेंशन दिया गया है, जिससे यह भारतीय इलाकों में आराम से चल सके।

स्पीड - 25 किलोमीटर प्रति घंटा
रेंज - एक चार्ज में 50+ किलोमीटर
मोटर- 250 वोल्ट
कीमत- 54,990 रुपए


इस ई-बाइक को टियर 2 और टियर 3 शहरों के लिए डिजाइन किया गया है। इसकी स्पीड 25 किमी. प्रतिघंटा है।

टीरेक्स - इस ई-बाइक को टियर 2 और टियर 3 शहरों के लिए डिजाइन किया गया है। कीमत को भी बाकी प्रोडक्ट के मुकाबले थोड़ा कम रखा गया है। कुनाल बताते हैं, ‘देश की 6% महिला साइकिल चलाती हैं। हमने इसलिए टीरेक्स की हाइट महिलाओं के कंफर्ट के हिसाब से थोड़ी कम रखी है। सिर्फ इतना ही नहीं इसमें आगे की तरफ एक स्टिक लगाई गई है जिससे इसे कंट्रोल करना आसान हो जाता है। खास बात ये है कि इसे महिलाएं साड़ी पहनकर भी आसानी से चला सकती हैं।

स्पीड - 25 किलोमीटर प्रति घंटा
रेंज - 35+ किलोमीटर (पैडल असिस्ट के साथ 60+)
बैटरी- 35 वोल्ट
कीमत- 38,990 रुपए

डूडल - ये एक लग्जरी आइटम है। इसके टायर को मोटा रखा गया है जिससे इसे फार्म हाउस, ट्रेकिंग पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्पीड - 25 किलोमीटर प्रति घंटा
रेंज - 40+ किलोमीटर (पैडल असिस्ट के साथ 60+)
बैटरी- 36 वोल्ट
कीमत- 75,990 रुपए


कुनाल और उनकी टीम ने बाइक और कार की तरह भारत की एकमात्र डुअल- सस्पेंशन ई-बाइक ईएमएक्स बनाई है।

कॉसमॉस - देश के 30 लाख लोग फूड से लेकर, कपड़े, कुरियर और ग्रॉसरी की घर-घर जाकर डिलीवरी करते हैं। इस तबके के लिए कॉसमॉस को डिजाइन किया गया है। जिससे ना सिर्फ वो अपनी इनकम का सही तरीके से इस्तेमाल कर सकेंगे बल्कि पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से उनकी रोजी पर भी फर्क नहीं पड़ेगा।

कुनाल बताते हैं, ‘विदेश में लाल से लेकर पीले रंग के टायर इस्तेमाल किए जाते हैं क्योंकि वहां के रोड भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा बेहतर और साफ हैं। हमने भारतीय इलाकों को देखते हुए ई-बाइक्स के टायर का रंग काला और ब्राउंड रखा है। हम अपने ई-बाइक्स के जरिए भारत के लोगों को जागरूक करने के साथ ट्रैफिक के शोर-शराबे से भी दूर कर सकते हैं।’

कोरोना के बाद बिजनेस को मिला पॉजिटिव को रिस्पांस

कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा तो कई बिजनेस को बहुत नुकसान हुआ। लेकिन हेल्थ के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। कुनाल इस बारे में बताते हैं, ‘जहां कोरोना की वजह से लोगों के बिजनेस को बहुत नुकसान हो रहा था। वहीं हमारे बिजनेस को पॉजिटिव रिस्पांस मिला। महामारी के बाद लोगों की स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020 में 16 करोड़ साइकिल खरीदी गईं वहीं इससे पहले हर साल सिर्फ 6 करोड़ साइकिल खरीदी जाती थीं। कोरोना से साइकिल और ई-बाइक्स के बिजनेस को बहुत फायदा हुआ है।

कुनाल और उनके पार्टनर ने अपने सेविंग्स के साथ इस बिजनेस की शुरुआत की थी। वो इस स्टार्टअप में अभी तक 18 करोड़ रुपए इन्वेस्ट कर चुके हैं जिसका अब टर्नओवर सालाना 70 करोड़ रुपए है। अब उनकी टीम कनेक्टेड बाइक पर काम कर रही है। जिन्हें फोन से कनेक्ट किया जा सकेगा और साथ ही चोरी होने पर भी आसानी से ट्रैक किया जा सकेगा। साथ ही वो ई-बाइक्स के बाद भारत में ई-व्हीकल पर भी काम करने की तैयारी में हैं।

MUKUL GOYAL IPS - NEW DG OF UP POLICE

MUKUL GOYAL IPS - NEW DG OF UP POLICE

मुज़फ्फरनगर व शामली के रहने वाले है मुकुल गोयल, नगर की भारतीय कोलोनी में मुकुल गोयल जी का निवास.  


आईपीएस मुकुल गोयल उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक पद नियुक्त हो गए हैं। उनके डीजीपी बनने की सूचना से शामली का सीना गर्व से फूल गया। दरअसल, मुकुल गोयल मूल रूप से शामली के रहने वाले हैं।

वहीं बुधवार को शामली में यह खबर सुनते ही कि मुकुल गोयल को पुलिस विभाग के मुखिया पद पर नियुक्त किया गया है। इससे उनके परिवार सहित पूरे शहर में खुशी और जश्न का माहौल हो गया। परिवार में मिठाई बांटकर खुशी मनाई गई। लोगों का कहना था कि शामली के लाल ने प्रदेश में जिले का नाम ऊंचा किया है। आईपीएस मुकुल गोयल की पैदाइश शामली की है। शामली के मोहल्ला लाजपतराय शिवमूर्ति निवासी स्व. महेंद्र कुमार गोयल के पुत्र मुकुल गोयल का जन्म दो फरवरी 1964 को शामली में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा शामली में हुई। यहां की गलियों में उनका बचपन बीता। उनके पिता झारखंड के धनबाद जिले में किसी कंपनी में इंजीनियर थे। इसलिए उनकी शिक्षा धनबाद और उसके बाद जयपुर में हुई। दिल्ली से उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की।

बताया गया कि मुकुल गोयल इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक हैं, साथ ही उन्होंने एमबीए की शिक्षा प्राप्त की। 1987 बैच के आईपीएस मुकुल गोयल 1991 में सीनियर स्केल प्राप्त कर एसएसपी बने। इसके बाद वर्ष 2004 में डीआईजी पद पर प्रोन्नत हुए और 2008 में आईजी बने। उनके डीजीपी पद पर आसीन होने की सूचना से शामली में खुशी का माहौल बन गया था।

मुकुल गोयल के चाचा अरुण गोयल ने बताया कि जब उन्हें डीजीपी बनने की सूचना मिली तो पूरा परिवार खुशी से झूम उठा। उन्होंने बताया कि उनके बाबा मनोहर बजाज के नाम से पूरे परिवार को जाना जाता है। चाची पूनम गोयल व भाभी मीनू गोयल ने कहा कि मुकुल गोयल बहुत सरल स्वभाव के हैं और शुरू से ही होनहार हैं।

चचेरे भाई विकास गोयल ने बताया कि उनके डीजीपी बनने की सूचना पर बहुत खुशी हुई लेकिन, कुछ देर बाद पता चला कि अभी डीजीपी पद के लिए नाम की घोषणा नहीं हुई है। उनका कहना है कि इस खुशी के लिए परिवार को इंतजार कर रहा था। शाम को उनके डीजीपी बनाए जाने की खबर से परिवार खुशी से झूम उठा। मुकुल गोयल के भाई हितेश गोयल दिल्ली में सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हैं।

परिवार से रखते हैं पूरा लगाव

आईपीएस मुकुल गोयल के चाचा अरुण गोयल, अशोक गोयल और राकेश कुमार की शिव चौक पर कपड़े की दुकान है। अरुण गोयल ने बताया कि मुकुल गोयल का परिवार से पूरा लगाव रहता है। परिवार में होने वाले कार्यक्रम में वह शामिल होते रहते हैं। 2017 में भतीजे वैभव की शादी में शामली आए थे। वे बताते हैं कि शामली आने के दौरान वह अक्सर दुकान पर आते हैं।

मेरठ में 16 महीने एसएसपी रहे मुकुल गोयल

1987 बेंच के आईपीएस मुकुल गोयल मेरठ में 16 महीने एसएसपी रहे। इस दौरान इनका कार्यकाल बेहतर रहा और उन्होंने कई सराहनीय कार्य भी किए। बताया गया कि अपने बेहतर कुशल व्यवहार के चलते मेरठ के कई लोग आज भी मुकुल गोयल से जुड़े हुए हैं। उनके साथ पुरानी कुछ फोटो को सोशल मीडिया पर शेयर भी किया गया। मुकुल गोयल मेरठ में पांच मई 2002 से 24 सितंबर 2003 तक एसएसपी मेरठ रहे।

उत्तर प्रदेशयूपी डीजीपी मुकुल गोयल ने मेरठ में बनाया था ताबड़तोड़ एनकाउंटर का रिकाॅर्ड

यूपी के नए डीजीपी आईपीएस मुकुल गोयल जितने शांत और सरल स्वभाव के हैं, अपराधियों पर उतने ही सख्त हैं। मेरठ में तैनाती के दौरान इन्होंने अपराधियों की कमर तोड़ दी थी। ताबड़तोड़ 24 से ज्यादा एनकाउंटर का रिकार्ड भी बनाया था। राजस्थान के अपराधी का सदर बाजार में एनकाउंटर कर दिया था और उसके पास से एके-47 बरामद की गई थी। इसके बाद वह चर्चाओं में आ गए थे। इसके अलावा दरोगा की हत्या के आरोपी और दो लाख के ईनामी बदमाश को भी मुठभेड़ में गिरफ्तार किया था।

आईपीएस मुकुल गोयल की मेरठ में तैनाती के समय राजस्थान के भरतपुर का अपराधी पुष्पेंद्र जाट मेरठ में आया था। पुलिस के पास इनपुट था कि किसी बड़े व्यक्ति की हत्या की प्लानिंग की गई है। दिल्ली पुलिस ने कुछ जानकारी मेरठ के एसएसपी मुकुल गोयल से साझा की थी और एक टीम को मेरठ के लिए रवाना भी किया गया था। इसी इनपुट के बाद पुष्पेंद्र जाट को घेर लिया गया था और सदर चाट बाजार में एनकाउंटर किया गया था। एनकाउंटर में पुष्पेंद्र की मौत हो गई थी और उसके पास से पुलिस को एके-47 मिली थी। पुष्पेंद्र जाट दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और यूपी में 37 से ज्यादा संगीन मामलों में आरोपी और वांटेड था। उस समय पुष्पेंद्र जाट के सिर पर 50 हजार रुपये का ईनाम था।

धर्मा गैंग के शूटर को किया था गिरफ्तार

आईपीएस मुकुल गोयल के मेरठ एसएसपी रहने के दौरान दूसरा चर्चित मामला अपराधी विजय उर्फ बबलू की गिरफ्तारी का था। विजय धर्मा गैंग का शार्प शूटर था और उस पर दरोगा की हत्या का आरोप था। पुलिस विभाग की ओर से दो लाख रुपये का ईनाम घोषित किया गया था। आरोपी को मेरठ में आईपीएस मुकुल गोयल की टीम ने गिरफ्तार किया था। मेरठ में ही एक चर्चित एनकाउंटर में आईपीएस मुकुल गोयल ने दौराला के बदमाश चमन और सुभाष ताऊ को ढेर किया था। चमन और वतन दोनों भाई थे और शातिर बदमाश थे। लोगों से वसूली और रंगदारी मांगना इनका धंधा था। चमन और सुभाष को एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराया था।

बावरियों का किया था एनकाउंटर

मेरठ के टीपीनगर में बावरियों ने तीन लोगों की हत्या कर दी थी। इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी और एनकाउंटर की कार्रवाई मुकुल गोयल की टीम ने की थी। इसके बाद पूरे गिरोह की धरपकड़ की गई थी। इसके बाद उनके कार्यकाल में कोई वारदात बावरियों ने नहीं की।

जब पथराव में हुए थे घायल

लिसाड़ी गेट में अंसारी एवं कुरैशी बिरादरी के बीच जमकर बवाल हुआ था। इसमें कई स्थानों का पुलिस फोर्स और पीएसी को लेकर आईपीएस मुकुल गोयल उतर आए थे और मोर्चा लिया था। इस दौरान उन्हें पत्थर लगा था। घंटों तक बवाल हुआ, लेकिन मुकुल गोयल ने मोर्चा नहीं छोड़ा। उनके साथ उस समय के इंस्पेक्टर सदर बाजार सीपी सिंह और दरोगा राजेंद्र सिंह भी डटे रहे। लापरवाही को लेकर लिसाड़ी गेट थाना प्रभारी पर कार्रवाई की और चार्ज राजेंद्र सिंह को दे दिया था। इसी मामले में तत्कालीन डीआईजी ने एसएसपी के खिलाफ रिपोर्ट शासन को भेजी थी, जिसे लेकर पुलिस टीम एसएसपी के साथ आ गई थी।

साभार: अमरउजाला व हिन्दुस्तान 

ANJALI GOYAL - अंजली गोयल ने संभाला डीरेका के महाप्रबंधक का कार्यभार, 1985 बैच की हैं आईआरएएस

ANJALI GOYAL - अंजली गोयल ने संभाला डीरेका के महाप्रबंधक का कार्यभार, 1985 बैच की हैं आईआरएएस


वाराणसी के डीजल रेल इंजन कारखाना (डीरेका) महाप्रबंधक का कार्यभार बुधवार को अंजली गोयल ने ग्रहण कर लिया। इसके पूर्व वह रेलवे बोर्ड नई दिल्ली में प्रधान कार्यकारी निदेशक व लेखा के पद पर कार्यरत थीं।

1985 बैच की भारतीय रेल लेखा सेवा (आईआरएएस) अधिकारी अंजली गोयल ने श्रीराम कॉलेज, दिल्ली से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से एडवांस इकोनोमिक्स में मास्टर डिग्री प्राप्त की।

मंडल रेल प्रबंधक जयपुर व रेलवे बोर्ड में कार्यकारी निदेशक फाइनेंस (बजट) कार्यकारी निदेशक फाइनेंस (स्थापना) सहित अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहकर कार्य किया है। वहीं प्रतिनियुक्ति पर नीति आयोग में एडवाइजर व केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विभाग में डायरेक्टर फाइनेंस के पदों पर भी रह चुकी हैं। इसके अलावा कई लेख भी विभिन्न विषयों जैसे हाई स्पीड रेलवे इन इंडिया, स्टे नेबल डेवलपमेंट ऑफ रेलवे एवं जनरल बजटिंग पर प्रकाशित कर चुकी हैं।

Source - Amar Ujala