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Friday, July 16, 2021

MARVADI VAISHYA - मारवाड़ी व्यापारी के प्रमुख व्यापारिक गुण क्या हैं?

MARVADI VAISHYA - मारवाड़ी व्यापारी के प्रमुख व्यापारिक गुण क्या हैं?

वैसे तो किसी एक समुदाय के लोग में सिर्फ़ एक ही तरह के गुणगान लोग निकलेंगे ऐसा कहना कठीन है। हर समुदाय में योग्य और अयोग्य लोग भरे पड़ें हैं। इसिलिए generalize करना कठीन है। मेरे हिसाब से हर व्यापारी के लिए ये निम्नलिखित गुण श्रेष्ठ व्यापारिक गुण हैं, मारवाड़ी व्यापारियों में भी यह गुण पाये जातें हैं।

१) पैसे की समझ -

धन, पूँजी, संपत्ति की समझ रखना एक व्यापारी के लिए बहुत आवश्यक है। व्यापारी की निजी राय या विचारधारा मार्क्सवादी हो या समाजवादी या पूँजीवादी हो पर पूँजी की समझ उसके लिए अत्यावश्यक है। you don’t need to be a capitalist to understand “capital” but just a businessman to understand it. यह पूँजी केवल पैसा नहीं, कोई सामग्री हो सकती है, कोई idea हो सकता है या कोई मेटीरियल हो सकता है। इस पूँजी को सम्भालकर और इसके बलबूते पर धंधा करना ही व्यापारीक तंत्र है। इसके अलावा पैसे की समझ भी बहुत ज़रूरी है। अकसर इंसान खुद के पैसे से धंधा नहीं करता है, क़र्ज़े के पैसे से ही धंधा होता है। क़र्ज़ लेना और चुकाने का सामर्थ्य रखना हर व्यापारी के लिए अनिवार्य है।

२) कर्मचारी और प्रतिनिधियों की निगरानी

कर्मचारी और व्यापार के प्रतिनिधी करने वालों और सह मददगार लोगों पर trust करना बहुत मुश्किल काम है। tragedy of commons नाम का फ़लसफ़ा है - जिसमें यह बताया गया है की आम आदमी में ख़ामी यह है की वह परिस्थितियों से विवश है, इच्छाओं का दास है। ऐसे में हर इंसान का इमानदार होना नामुम्कीन है और व्यापारी को किस पर कितना भरोसा करना चाहिए, इस बात की जानकारी होना अत्यावश्यक है। मारवाड़ी व्यापारियों में यह ख़ास गुण है की वे उनके अपने मारवाड़ इलाक़े के कर्मठ और भरोसेमंद कर्मचारी सहजता से ढूँढ लेते हैं और उनका अच्छा ख़्याल भी रखतें हैं।

३) स्थानीय तहज़ीब का मान रखना

हर व्यापारी को स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का मान रखते हुए धंधा करना पढ़ता है। उदाहरणत: हमारे चेन्नई शहर के साहूकारपेट इलाक़े में क़रीब १०० साल से भी अधिक समय से मारवाड़ी व्यापारी रहतें हैं और स्थानीय भाषा तामिल में बात करतें हैं और तामिल त्योहार जैसे कार्तिक महीना और पोंगल के दिनों अपने दुकान पर विशेष डिस्काउंट रखतें हैं। एक जैन ज्वेलेरस दुकान थी नारी मैडरास के इक जिल्हे में और वहाँ पर मैंने देखा था की एक ग्राहकों ने उसके विवाह के लिए कुछ गहने ख़रीदे थे। जैन ज्वेलेरस के मालिक ने स्वर्ण चैन और कंगन को दुकान में उनके कॉउंटर के पीछे रखे मीनाक्षी और मुरुगन भगवान के सामने रखकर पूजा की और अपने एक औरत स्टॉफ को बुलाकर कहा की पूजा करके इसे ग्राहक को सोंप दो। एक बार सौंपने के बाद जैन साहब बोले, “हम प्रार्थना करते हैं की आपका विवाह जीवन सुखद रहे - बेस्ट ऑफ़ लक्क !” मैं मुंबई से वहाँ गया था और जैन साहब को पहचानता था तो मैंने पूछा उनसे की आप हर वक़्त ऐसा पूजा करने के बाद ही गहने बेचते हो? तो जैन साहब का जवाब था - “कोई लोकल हिन्दु कस्टमर हो तो करता हूँ - वैसे मैं मारवाड़ी जैन हूँ पर लोकल तामिल लोगों के आस्था का ध्यान रखना पड़ता है - इसिलिए तामिल भी सिखा और उनको जैसा चाहिए वैसे अपने दुकान में चिज़ें रखता हूँ। यहॉं पर superstitions बहुत है, इसिलिए मेरा एक विवाहित स्त्रि जो स्टॉफ है उसके हाथ से गहने डेलिवर करता हूँ।” यह एक बहुत महत्वपूर्ण व्यापारिक गुण है।

इन सब चीज़ों के अलावा एक महत्वपूर्ण चीज है - PLANNING. यह व्यापारिक गुण अगर एक व्यापारी में श्रेष्ठ है याने अगर वो अच्छी बिज़नेस प्लानिंग कर सकतें हैं मतलब उनके लिए तरक़्क़ी करने के लिए कोई सिमा नहीं है। एक बार एक मारवाड़ी व्यापारी दोस्त ने मुझे यह उदाहरण दीया था १९९५ के टैम। फ़र्ज़ करो एक मारवाड़ी तिरुप्पुर जो दक्षिण तामिलनाडू का एक शहर है और अपने टॉवल्स व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। फ़र्ज़ करो की एक मारवाड़ी तिरुप्पुर से हर महीने १०० रुपये के ५०० टॉवल ख़रीदता है और मुंबई में अपनी दुकान पर बेचने लगा देता है तो purchasing cost हुआ ५०,००० रुपये प्रति महीना। हर टॉवल को मुंबई में वह ३०० रुपये में बेचता है याने २०० का मुनाफ़ा प्रति टॉवल और यदि wholesale ऑर्डर मिले तो वो १५० में बेचता है याने ५० रुपये प्रति टॉवल। अगर उसके १७० टॉवल ग्राहक के पास बीक जाएँ तो उसके उपर का उसका मुनाफ़ा है - चलिए २०० टॉवल पकड़ें - यदि वो २०० टॉवल बेचेगा तो ६०,००० बनते हैं। बाक़ी बचे ३०० टॉवल जिसमें फ़र्ज़ करो की वो कम से कम २०० टॉवल wholesale में बेचने का टॉरगट रखता है। इसमें हुआ wholesale पर मुनाफ़ा १०,००० रुपये प्रति महीने। वैसे कोशिश तो यही करेगा की वो individual ग्राहक को २०० से अधिक टॉवल बेचे पर डिमांड अनुसार। २०० टॉवल का threshold और wholesale की सेल पर वह कहता की धंधा “ठीक ठाक” चल रहा है। बाक़ी के १०० टॉवल गोडॉउन में पड़े रहतें हैं। इस तरह साल भर में “ठीक ठाक” वाले धंधे में उसका फ़ायदा होता है प्रतिमाह २०,००० रुपये और बाक़ी के १०० टॉवल परतिमाह बचतें हैं तो १२०० टॉवल गोडॉउन में रहता है। याने अब तक हमारे व्यापारी दोस्त ने २,४०,००० तो बना लीया है। साल के अंत में - याने दिवाली के पहले वो मुंबई के किसी exhibition हॉल में टॉवल का एक स्टॉल लगाता है। इसमें वह एक टॉवल यदि १५० रुपये या bargaining करने पर १२० में भी बेचेगा तो उसका फ़ायदा होता है २४००० रुपये (१२० रेट के हिसाब से) या ६०,००० रुपये (१५० रेट रेल हिसाब से)। अगर वह टॉवलों को तीन अलग प्रकार में छटनी कर तीन अलग वेराईटी में भी बेच सकता है याने - ४०० टॉवल लक्सरी २०० रुपये के, ४०० टॉवल १५० रुपये के डिलक्स और ४०० टॉवल १२० रुपये के एकोनॉमी। तो भले सारे टॉवल तिरुप्पुर के एक वेराईटी के हीं क्यों न हो पर उस व्यापारी को मुनाफ़ा मिला २०० वालों में ४०००० रुपये, १५० वालों में २०००० रुपये और १२० वालों में २४००० रुपये - कुल मिलाकर exhibition से कमाई हुई ८४००० रुपये। सालभर में देखें तो मुनाफ़ा मिला ३,२४,००० रुपये और निवेश कीया ६,००,००० रुपये। अगर २५००० का ख़र्चा ट्रेन और भागदौड़ और करमचारी पर लग जायें तब भी ३,००,००० का सालाना मुनाफ़ा होता है।

ऐसे कमाल के प्लानिंग के साथ वे किसी भी तरह का नुक़सान झेल लेतें हैं। यदि महँगाई बढ़ गई और ग्राहक कम मिले तो गोडाउन में टॉवल जमा रखो और साल में एक से अधिक भी exhibition करो तो “ठीक ठाक” वाला धंधा तो चल सकता है।

लेख साभार: कृष्णन लक्ष्मीनारायणन, ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में काम किया है

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