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Wednesday, September 13, 2023

Anupriya Goenka Struggle Story

#Anupriya Goenka Struggle Story

Anupriya Goenka Struggle Story; Tiger Zinda Hai | Padmavati And War

कॉलेज के साथ कॉल सेंटर में काम किया, रोज 12 ऑडिशन देती थीं अनुप्रिया गोयनका,  

बिजनेस डूबा तो 14 कमरे का बंगला छोड़ना पड़ा:कॉलेज के साथ कॉल सेंटर में काम किया, रोज 12 ऑडिशन देती थीं अनुप्रिया गोयनका


फिल्म टाइगर जिंदा है में एक्ट्रेस अनुप्रिया गोयनका का एक डायलॉग था- मेरी मां को बोलना, मैंने हार नहीं मानी, मैंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी। ये डायलाॅग भले ही अनुप्रिया पर रील में फिल्माया गया था, लेकिन उन्होंने इसे रियल लाइफ में भी जिया है।


ये सीन फिल्म 'टाइगर जिंदा है' का है। फिल्म में अनुप्रिया ने पूर्णा नाम की लड़की का किरदार प्ले किया था। लीड रोल में सलमान खान और कटरीना कैफ थीं।

उनके इसी संघर्ष को करीब से जानने के लिए मैं कई दिनों से अनुप्रिया से मुलाकात करने की कोशिश कर रही थी। बिजी शेड्यूल के कारण मुलाकात तो नहीं हो सकी, लेकिन हमारी बात टेलिफोनिक हुई।

बात शुरू होते ही उन्होंने देरी के लिए माफी मांगी। थोड़ी औपचारिकता के बाद मैंने उनके बचपन के बारे में जानना चाहा।

वो कहती हैं, कानपुर के एक सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में मेरा जन्म हुआ। पापा का गारमेंट एक्सपोर्ट बिजनेस था। हम 4 भाई-बहन हैं। हमारा परिवार 14 कमरों वाले बंगले में रहता था। 4-5 गाड़ियां थीं। नौकर-चाकर भी थे। कभी किसी ने नहीं सोचा था कि ये सब कुछ एक झटके में हमसे छिन जाएगा।

मैं लगभग 8 साल की थी। पापा के बिजनेस में गिरावट आ गई। धीरे-धीरे बहुत कुछ हमसे छिनता चला गया। ज्यादा बड़ी तो नहीं थी, लेकिन इस बात का आभास जरूर था कि चीजें सही नहीं चल रही हैं। स्थिति में जब सुधार आने की सारी उम्मीदें खत्म हो गईं, तब पापा पूरे परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए।

वो कहते हैं ना कि बुरा समय भी अपने साथ कुछ अच्छा ही लेकर आता है। कानपुर में हम बड़े घर में रहते थे। हमारी देख-रेख करने के लिए अलग से लोग रखे गए थे। जब हम दिल्ली आए तो यहां पर सिर्फ एक कमरे में पूरा परिवार रहता था। बाकी दो कमरों को ऑफिस में तब्दील कर दिया गया था। एक कमरे में रहने से हम पहले से ज्यादा करीब आ गए। मां और बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने को मिला।

मुझे याद है, जब मैं 10वीं में थी तभी से एक तरह से मैं पापा के बिजनेस में आ गई थी। इस वक्त मैं स्कूल के बाद फैक्ट्री जरूर जाया करती थीं। 12वीं के बाद पूरा बिजनेस ही मैं देखने लगी।

पापा की मदद के लिए बिजनेस के साथ मैंने काॅल सेंटर में भी काम करना शुरू कर दिया था। मम्मी की सख्त हिदायत थी कि बिजनेस तो देखना ही है। मम्मी का कहना टाल भी नहीं सकती थी। यही कारण था कि दिन में ऑफिस जाती और रात में कॉल सेंटर। बहुत मुश्किल से 3-4 घंटे ही सो पाती।

इन कामों में इतना व्यस्त रहती थी कि 12वीं के बाद सिर्फ पेपर देने ही काॅलेज गई। पढ़ाई भी ज्यादा नहीं कर पाई। मगर इसे कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी।

समय बीतता जा रहा था, लेकिन बिजनेस उस मुकाम तक नहीं पहुंच सका जैसा कानपुर में था। नतीजतन, मुझे इस बिजनेस को बंद करना पड़ा। दिल्ली थोड़ा खर्चीला शहर है, इसलिए मां-पापा को कुछ समय के लिए राजस्थान शिफ्ट किया।

एक सांस में अनुप्रिया ने ये सारी बातें बताईं। मैंने उनसे सवाल किया कि वो मुंबई कैसे पहुंची?

बिजनेस तो बंद कर दिया था, लेकिन उससे रिलेटेड थोड़े काम थे, जिनको पूरा करना बाकी था। कोर्ट से जुड़े मामलात भी थे। सब कुछ मुझे ही देखना पड़ता था। इसी दौरान मेरा मुंबई जाना हुआ। ये शहर मुझे बहुत अच्छा लगा। पूरे परिवार को यहां शिफ्ट कराने का फैसला किया। उस वक्त तो नौकरी भी नहीं थी। फिर भी मैंने जुटाए हुए पैसों से एक फ्लैट खरीदा, फिर वहीं के एक काॅल सेंटर में नौकरी करनी शुरू की। धीरे-धीरे फ्लैट के सारे लोन भी चुका दिए।

काम अच्छा था तो प्रमोशन होता गया। इसी दौरान एक दोस्त की एक सलाह मेरे लिए लकी साबित हुई। उसने मुझसे कहा कि मैं एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट बन जाऊं। काम का अनुभव था ही जिसकी बदौलत इस पोजिशन पर नौकरी मिल गई। सैलरी भी बेहतर हो गई।

क्या कभी सोचा था कि एक्ट्रेस बनेंगीं?
सच बताऊं तो मन में कभी ख्याल भी नहीं आया था। एक बार मैंने 12वीं की गर्मी की छुट्टी में दो महीने NSD की वर्कशाॅप अटेंड की थी। ये बस मैंने शौक में किया था। मैं काॅर्पोरेट लाइफ में बहुत खुश थी, इसलिए कभी एक्टिंग को प्रोफेशन बनाने के बारे में सोचा नहीं।

सब अच्छा चल ही रहा था, पर एक वक्त आया कि मैंने इस काम से ब्रेक लेने के बारे में सोचा। बिजनेस से संबंधित कुछ काम भी बाकी थे और मैं थोड़ा क्रिएटिव फील्ड में वक्त गुजारना चाहती थी। क्रिएटिव फील्ड में सबसे पहले ऑप्शन था थिएटर करना। ये मेरी लाइफ का सबसे बड़ा डिसीजन था।

मैंने ऑफिस में बात की और बताया कि मुझे 2-3 महीने का ब्रेक चाहिए। उन्होंने मुझसे पूछा कि अगर मैं टीम स्विच करना चाहती हूं तो कर सकती हूं, लेकिन ब्रेक लेना बड़ी बात है। उस वक्त मेरी सैलरी भी अच्छी-खासी थी। ऐसा करना किसी रिस्क से कम नहीं था। हालांकि मैंने अपना इरादा नहीं बदला। वहां अरसे से काम कर रही थी तो 2-3 महीने बाद वापस जाकर काम दोबारा शुरू कर सकती थी।

काम से ब्रेक लेने के बाद मैंने बिजनेस रिलेटेड काम पर फोकस किया। 3 महीने में काम नहीं बना और ऐसे ही डेढ़ साल बीत गया। इस दौरान मैं छोटे-मोटे नाटक में काम करती रही। समय के अंतराल पर मैंने नौकरी भी की। मैं कन्फ्यूज थी कि काॅर्पोरेट और एक्टिंग लाइन में से क्या चुनूं। इसी उथल-पुथल में एक-एक दिन बीत रहा था।

इसी दौरान मैंने नीरज कबीर के साथ एक्टिंग वर्कशाॅप की। उनके साथ 10 दिन की इस वर्कशॉप ने पूरी जिंदगी ही बदल दी। इन 10 दिनों में, मुझे एक्टिंग से प्यार हो गया।

अब सामने समस्या ये भी थी कि मैं कॉर्पोरेट लाइफ के साथ थिएटर मैनेज नहीं कर सकती थी। मतलब मुझे अगर एक्टिंग करनी हो तो इसी को अपना प्रोफेशन बनाऊं जिससे कमाई हो सके। बहुत विचार करने के बाद एक्टिंग को करियर के तौर पर चुना।

एक्टिंग की शुरुआत में संघर्ष कैसा रहा?
ये दुनिया दूर से देखने पर बहुत खूबसूरत है, लेकिन यहां हर कदम पर संघर्ष है। इस संघर्ष से मैं भी अछूती नहीं रही। जब मैं जाॅब छोड़ थिएटर कर रही थी, तब कई नाटक नहीं चले, जिनमें मैंने एक्ट किया था। कुछ शुरू होने से पहले ही बंद हो गए।

आम स्टार्स की तरह मैंने भी बहुत ऑडिशन दिए। एक दिन में 12-12 ऑडिशन देती थी। बहुत मुश्किल से 12 ऑडिशन में से एक में मेरा सिलेक्शन होता था। ये चीजें मुझे अंदर से तोड़ती थीं और परेशान भी करतीं। कुल जमा ये रिस्क भरा सफर था।


मुझे याद है, पहली फिल्म करने के बाद YRF प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले मैंने एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए ऑडिशन दिया था। पहली बार पता चला था कि ऑडिशन का सही प्रोसेस क्या होता है। मैंने इसे खूब इंजॉय किया था। YRF की कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने मेरी बहुत मदद की थी। सिलेक्शन हो जाने की उम्मीद भी थी।

प्रोजेक्ट की सभी स्टार कास्ट से मुलाकात भी हुई थी। फिर कुछ दिन बाद शानू शर्मा मुझसे मिलीं और उन्होंने बताया कि कुछ वजहों से मैं इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकती। इस फिल्म का हिस्सा ना होने पर बहुत बुरा लगा था। पर एक रिजेक्शन को लेकर हम बैठ तो नहीं सकते, आगे बढ़ेंगे तभी कुछ बेहतर कर पाएंगे। मैंने भी यही किया। ठोकरों से कभी खुद को टूटने नहीं दिया।

टाइगर जिंदा में काम कैसे मिला?
मैं पूर्णा का रोल प्ले करना चाहती थी। मैंने ये बात अली अब्बास को बताई थी, जब YRF की ऑफिस में मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। उस वक्त तो उन्होंने कुछ नहीं बोला था। इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि मेरे पास शानू शर्मा की काॅल आई और उन्होंने बताया कि मैं इस रोल के लिए सही हूं। मैंने ऑडिशन दिया और सिलेक्शन हो गया।

फिल्म पद्मावत का हिस्सा कैसे बनीं?
संजय लीला भंसाली का कास्ट करने का तरीका थोड़ा अलग है। सबसे पहले मेरी उनसे मुलाकात हुई। जब उन्हें लगा कि मैं इस रोल के लिए परफेक्ट हूं तब मेरा ऑडिशन हुआ और फाइनली मैं इस फिल्म का हिस्सा बनी।


ये सीन फिल्म पद्मावत का है। इसमें अनुप्रिया ने रानी नागमति का किरदार निभाया था। लीड रोल में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह थे।

एक्टिंग लाइन में आने पर परिवार का क्या रिएक्शन था?
मैं ऐसे परिवार में पैदा हुई थी, जहां पर इन चीजों को लेकर कुछ पता नहीं था। मगर जब माली हालत बिगड़ी तो कम उम्र में ही मुझे जिम्मेदारियां उठानी पड़ीं। इसके बाद मां-पापा को पता था कि मैं कुछ ना कुछ करके परिवार की जिम्मेदारियां संभाल लूंगीं।

जब मैंने एक्टिंग में आने का फैसला किया था, तो ये बात बिल्कुल क्लियर थी कि अगर इस फील्ड में काम नहीं बना और लगा कि अगले महीने खाने के पैसे नहीं रहेंगे तो मैं उसी वक्त एक्टिंग करना छोड़ दूंगी। खाली बैठने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।

मां-पापा को मुझ पर बहुत भरोसा था। उनका ये भरोसा हमेशा बना रहा। उन्हें पता ही नहीं था कि मैं एक्ट करती हूं। उन दोनों को लगता था कि इंडस्ट्री में कुछ कर रही हूं, लेकिन क्या, ये बिल्कुल नहीं पता था।

फिल्मों में आने से पहले मैंने भारत निर्माण का ऐड किया था, जिसे प्रदीप सरकार ने डायरेक्ट किया था। इस ऐड को लोगों ने बहुत पसंद किया। टाइम्स ऑफ इंडिया में ये खबर पब्लिश भी हुई। पहली बार मैं अखबार में दिखी। इसे देखकर रिश्तेदारों ने मां-पापा को कॉल किया और बताया कि ऐड के सिलसिले में अखबार में मेरी तस्वीर छपी है। तब जाकर दोनों को पता चला कि मैं एक्टिंग कर रही हूं।

क्या स्किन कलर रिजेक्शन का कारण बना?
अगर किसी फिल्म के लिए मैं रिजेक्ट हुई तो कभी ये नहीं जानना चाहा कि रिजेक्शन का आधार क्या रहा। हां कभी-कभी ऐसा हुआ है कि लोगों ने कहा कि आप बहुत सुंदर हैं इसलिए फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकतीं।

मैं अलग-अलग तरह के रोल करना चाहती हूं। गांव की छवि पर बनी फिल्म में भी मैं काम करना चाहती हूं, मगर कोई इस रोल में कास्ट ही नहीं करता। मेकर्स का कहना है कि इस तरह के रोल के हिसाब से मेरे फीचर काफी शार्प है। मैं उन्हें कैसे बताऊं कि मैं उस रोल को भी परफेक्ट तरीके से कर सकती हूं।

जहां तक स्किन कलर की बात है, मुझे अपना रंग बेहद पसंद है। सांवली रंग की तो काजोल, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल सभी हैं, जो बेस्ट एक्ट्रेस का उदाहरण हैं। जब मैं नई-नई फिल्मों में आई थी, तभी मेकअप आर्टिस्ट को बता दिया था कि मेरी स्किन को एक शेड भी मेकअप से गोरा ना करें। मैं इसी रंग के साथ पर्दे पर आना चाहती हूं।

एक बार स्किन डॉक्टर के पास गई थी। उन्होंने फेयर कलर के लिए एक दवा के बारे में बताया। मैंने उनसे कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मैं जैसी हूं वैसी ही दिखना चाहती हूं। मैंने इन चीजों का कभी उपयोग नहीं किया, जिससे मेरा रंग निखर जाए। वैसे कभी जरूरत भी नहीं पड़ी और ना करना है। सिर्फ परफेक्ट एक्टिंग करना ही एकमात्र उद्देश्य है।

साभार दैनिक भास्कर 

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