श्री बलभद्र जन्म कथा
द्वापर के अंत की बात है। शूरसेन देश के यदुवंशीय नरेशों की राजधानी मथुरा में आहुक नाम के एक यदुवंशी क्षत्रिय नरेश राज्य करते थे। इनकी स्त्री का नाम काश्या था। देवक और उग्रसेन इनके दो पुत्र थे राजकुमार देवक की सात कन्यायें थीं। उनमें सबसे छोटी का नाम देवकी था कालान्तर में मथुरापुरी का राजा उग्रसेन को प्राप्त हुआ। कंस इन्हीं का पुत्र था। वह बड़ा अत्याचारी था। जब उग्रसेन ने कंस को अत्याचार करने से रोका तो उसने उन्हीं को बन्दी बना लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा । अब वह प्रजा पर भीषण अत्याचार करने लगा। लेकिन अपनी चचेरी बहन देवकी उसे अत्यंत प्रिय थी।
उसी मथुरापुरी में अत्यंत धर्मनिष्ठ एवं सज्जन एव यदुवंशीय राजकुमार वसुदेव रहते थे। ये शूरसेन देश के भूतपूर्व अधिपति राजा शूरसेन के वंशज थे। राजकुमार वसुदेव का प्रथम विवाह रोहण की कन्या रोहिणी से हुआ था| फिर उन्होंने राजकुमार देवक की कन्या देवकी आदि सातों कन्याओं का भी पाणिग्रहण किया। विवाह के उपरान्त वर-वधू की विदाई के समय उग्रसेननंदन कंस ने देवकी को ससुराल पहुँचाने के लिए कुछ दूर स्वंय ही सारथी बनकर रथ चलाया। उस समय आकाशवाणी हुई “अरे निर्वोध! तू जिसका रथ चला रहा है, उसी देवकी का आठवाँ गर्भ तेरा विनाश करेगा”। यह सुनते ही कंस ने तत्काल देवकी का वध करने के लिए तलवार उठाई. परन्तु वसुदेव ने दीनतापूर्वक यह वचन देकर उसकी जान बचाई कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न जितनी भी संतानें होंगी, उनको वे उनके हाथ सौंप देंगे उनकी बात का विश्वास कर कंस ने अपने को निरापद रखने के लिए देवकी, वसुदेव दोनों को बन्दी बनाकर रख लिया और निश्चिन्त हो गया।
कंस के अत्याचारों से सभी त्रस्त थे। उसके राज्य में राजाओं के रूप में करोड़ों दैत्य आत्माओं का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने पृथ्वी को भयानक भार से दबा दिया। उनके अत्याचारों से पीड़ित हो पृथ्वी ने ग्रुप धारण कर ब्रह्मादि देवताओं सहित क्षीरशायी भगवान विष्णु के पास जाकर अपना सारा दुखड़ा कह सुनाया। तब आकाशाणी हुई “हे देवगन चिन्ता न कीजिए। हम शीध ही अपने शेषादि अंशों सहित वसुदेव-देवकी के गर्भ से उत्पन्न हो पृथ्वी का भार हल्का करेंगे। आप लोग अपनी स्त्रियों सहित ब्रज मंडल में जाकर यदुवंशियों तथा गोप-गोपियों के रूप में जन्म लें” देवताओं ने वैसा ही किया। देवर्षि नारद भला कब मानने वाले थे। उन्होंने यह खबर कंस को दी। बस क्या था ?’ कंस यदुवंशियों का समूल नाश करने पर उतारू हो गया उसके भय से यदुवंशी मथुरा त्याग कर जहाँ-तहीं छिप गये वसुदेव की रोहिणी आदि पलियों ने गोकुल (ब्रज) में उनके मित्र गोपराज नंद के घर शरण ली।
इधर बन्दी गृह में देवकी के क्रमशः छः पुत्र उत्पन्न हुए उन सबों को कंस ने मार डाला। उनके सातवें गर्भ में विष्णु के अंश साक्षात अनंत (शेष) जी आये। विष्णु की आज्ञा से योगमाया ने इस गर्भ को खींचकर (कर्षण) ब्रज में रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। अतः वे संकर्षण. कहलाए। मथुरा के लोगों ने देवकी के गर्भ लुप्त हो जाने पर आश्चर्य प्रकट किया। उधर ब्रज में गए गर्भ के पाँच ही दिनों के बाद रोहिणी के गर्भ से नन्द के भवन को उद्भासित करते हुए, भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि (काशी के चन्द्र पंचांग के अनुसार) को अत्यंत सुन्दर गोरवर्ण पुत्र रत्न का जन्म हुआ (कल्याण के अग्नि पुराण गर्ग संहिता अंक के अनुसार यह जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ। जो स्वाति नक्षत्र और बुधवार से युक्त थी। मध्यमान का समय था। तुला लग्न से पाँच ग्रह उच्च होकर स्थित थे]
तत्पश्चात् देवकी के आठवें गर्भ से साक्षात् भगवान विष्णु भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र, इर्षण योग, वृष लग्न में अर्द्धरात्रि के समय चंद्रोदय काल में कृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए। उसी समय योगमाया भी यशोदा के गर्भ से देवी अनंशा कन्या के रूप में उदित हुई। योगमाया के प्रभाव से सारा संसार सो गया था भगवान कृष्ण की आज्ञा से वसुदेव ने इरा आठवें पुत्र को कंस से बचाने के लिए भादो की अंधेरी रात में यमुना के उसपार बृन्दावन में नन्द के धर यशोदा के शयनागार में गुप्त रीति से रख दिया और उसके बदले यशोदा की कन्या को लाकर कंस के हवाले कर दिया कंस ने उसे मारने के लिए जैसे ही पत्थर पर पटकना चाहा कि वह उनके हाथ से छूट गई और योगमाया के रूप में परिणत हो गई। एक गगनचारिणी अष्टभुजी मूर्ति की आकृति धारण कर यह कहती हुई आकाश में विलिन हो गई ‘अरे मूर्ख ! तेरा शत्रु अन्यत्र उत्पन्न हो चुका है। व्यर्थ निर्दोष शिशुओं का बध न कर वेचारे वसुदेव-देवकी को व्यर्थ कष्ट न दे।’ इसपर कंस ने देवकी वसुदेव को छोड़ दिया और पूतनादि दैत्यों को बुलाकर दस दिन के अंदर पैदा हुए सभी बालकों को मार डालने का आदेश दिया।
इस प्रकार नन्द के घर अत्यन्त सुन्दर दो बालक बलराम और कृष्ण परिदर्शित थे वसुदेव द्वारा भेजे गए यादवों के पुरोहित गर्ग जी ने नन्द के घर जाकर दोनों का नामकरण संस्कार किया, उन्होंने रोहिणी के पुत्र का नाम राम, बलराम, बलभद्र. संकर्षण आदि रखा तथा देवकी के पुत्र का नाम कृष्ण रखा। ब्रजवासी यह गुप्त रहस्य न जानने के कारण श्री कृष्ण को नन्द-यशोदा का ही पुत्र समझते थे।
संकलित: “ब्याहुत वंश दर्पण” इस पुस्तक को अपने घर पर फ़ोन से आर्डर दे कर मंगवाएं लेखक: श्री परशुराम प्रसाद ब्याहुत, मुजफ्फरपुर मूल्य मात्र 100/- मोबाइल : 80841 44845
No comments:
Post a Comment
हमारा वैश्य समाज के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।