NEERAJ GUPTA - MERU CABS - नीरज गुप्ता
उधार के 50 हज़ार रुपये, गेराज से हुई शुरूआत, सालाना 100 करोड़ की हो रही कमाई
एक बेरोजगार के द्वारा एक लाख डॉलर की कंपनी खड़ी करने की यह कहानी सच में अविश्वसनीय है। इस शख़्स ने अपनी पत्नी से 50,000 रुपये उधार लेकर अपना पहला बिज़नेस शुरू किया। उन्होंने आंधेरी में एक गेराज खोला जहाँ वे मोटर गाड़ियों के लिए सेवा प्रदान करते थे और बाद में उन्होंने एक ऐसे बिज़नेस की स्थापना की जो आज भारत की अग्रणी ब्रांड में से एक है।
जी हाँ हम बात कर रहे हैं मेरु कैब्स के संस्थापक नीरज गुप्ता की। एक बिज़नेस फैमली में पले-बढ़े नीरज ने अपना ग्रेजुएशन मुम्बई के मीठबाई कॉलेज से किया था। पढ़ाई में बहुत ज्यादा तेज न होने की वजह से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन सामान्य नंबरों से पास किया और तत्पश्चात वे अच्छी नौकरी भी नहीं ढूंढ पाए। बाद में उनके पिता ने अपने दोस्त की टेक्सटाइल मैनुफैक्चरिंग कंपनी में उनके लिए नौकरी ढूंढ दी। शादी के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरे समय घर पर ही रहते। उनकी पत्नी जेट एयरवेज में काम करती थी और पांच साल तक नीरज केवल अपनी पत्नी को एयरपोर्ट छोड़ने और लेने जाने का ही काम करते थे।
मेरी पत्नी को कॉलेज के तुरंत बाद ही जेट एयरवेज में नौकरी मिल गई थी और पांच साल मेरा सिर्फ अपनी पत्नी को एयरपोर्ट लेने और छोड़ने जाने का ही काम था — नीरज गुप्ता
पांच साल के बाद नीरज ने कुछ अपना बिज़नेस करने की सोची उसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी पत्नी से 50,000 रुपये उधार लेकर उन्होंने आंधेरी में एक गेराज खोला। 1999 में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक कंपनी खोली जिसका नाम दिया इलीट क्लास, जिसमे उन्होंने अपने ग्राहकों को गाड़ियों की रिपेयरिंग और ऑटोमोबाइल्स की वार्षिक मेंटेनेंस सेवा प्रदान करते थे। और चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए इन्होंने कॉरपोरेट के साथ लॉन्ग -टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स में अपना सिक्का जमाया। और फिर 8 -9 महीनों में ही बड़ी-बड़ी कंपनियों जैसे ब्लू डार्ट, सोनी इनके ग्राहक बन गए थे। 2001 में उन्होंने यह योजना बनाई कि कॉरपोरेट कर्मचारियों के आने जाने के लिए बस सेवा शुरू करेंगे वी -लिंक के द्वारा। उन्होंने 14 लाख लोन लेकर एक बस ख़रीदा और टाटा ग्रुप के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर उन्हें शटल सर्विस उनके पांच ओफ़फिसेस में प्रदान करनी शुरू कर दी। 6 साल बाद आखिर में उन्होंने मेरु कैब्स की शुरुआत की।
मेरु कैब्स शुरू होने के बाद भारत की पहली मीटर से चलने वाली रेडियो कैब्स सर्विस के लिए सबसे बड़ी समस्या उसके लिए पैसे जुटाने की थी। प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टमेंट को आकर्षित करने के लिए नीरज ने तय किया कि दो छोटी कंपनिया खोली जाए। पहली थी वी -लिंक फ्लीट सोलूशन्स जिसमें अलग-अलग बीपीओ में लोगों को ले जाने का काम था और दूसरी वी -लिंक टैक्सिस जिसमे एयर कंडीशन्स गाड़ी मुम्बई की सड़कों में दौड़ेगी।
नीरज का आइडिया इतना दमदार था कि कंपनी के लांच के कुछ ही महीनों बाद साल 2006 में इनकी कंपनी में पहला इन्वेस्टमेंट 200 करोड़ की इंडिया वैल्यू फण्ड ने किया। आज मेरु कैब्स की लगभग 9,000 कारें, रोजाना 6 शहरों में 30,000 ट्रिप्स कर रही हैं। और इनका सालाना कारोबार 800 करोड़ रुपये है और रेवेन्यू 100 करोड़ के पार। उन्होंने महिलाओं के लिए एक स्पेशल कैब सर्विस भी शुरू किया जिसमे महिला ही चालक होती।
नीरज ने यह साबित कर दिया कि अगर कुछ अलग इरादे हो, लगातार कोशिश हो, लगन हो और कड़ी मेहनत हो तो कोई भी असंभव सा लगने वाला काम आसान हो जाता है। इनकी यह इंटरप्रेन्यर वाली यात्रा बड़ी रोचक और प्रेरणा देने वाली है।
साभार: KENFOLIOS
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