वैश्य वर्ण(वर्ण शब्द का अर्थे है-"जिसको वरण किया जाय" वो समुदाय ) का इतिहास जानना के पहले हमे यह जानना होगा की वैश्य शब्द कहा से आया है। वैश्य शब्द विश से आया है,विश का अर्थे है प्रजा,प्राचीन काल मे प्रजा(समाज) को विश नाम से पुकारा जाता था। विश के प्रधान सरक्षक को विशपति (राजा) कहते थे,जो निरवचन से चुना जता था। विश शब्द से भगवान विष्णु (" विश प्रवेशने " तथा " वि+अश " ) नाम कि सिद्धि होती है। विष्णु सृष्टि के संचालक हैं, वे हमारी हर आवश्यकता की पूर्ति करते हैं,वैश्य भी समाज मे व्यापार से रोजगार के अवसर प्रदान करता है, तथा अन्य सामाजिक कार्य मे दान के से समाज कि अवाशाकता कि पुर्ती कर्ता है। विष्णु भगवान दुनियादारी या गृहस्थी के भगवान हैं,वैश्य वर्ण को गृहस्थी का वर्ण कहाँ जता है। इस सृष्टि के तीन प्रमुख भगवान हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव। ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं,विष्णु उसका संचालन और पालन और शिव संहार। वास्तव मे सृष्टि के तीन प्रमुख भगवान हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव एक हि परमेश्वर का विभिन्न नाम है, तथा उनके कार्य है रचनाकरना,संचालन और पालन करना,और संहार करना। अब हम वैश्य वर्ण पर आते है,सिन्धु- घटी की सभ्यता का निर्माण तथा प्रशार दुर के देशो तक वैश्यो से हुआ है। सिन्धु- घटीकी सभ्यता मे जो विशालकाय बन्दरगाह थे वे उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका,युरोप के अलग-अलग भाग तथा एशिया (जम्बोदीप) आदि से जहाज़ दवरा व्यापार तथाआगमन का केन्द्र थे।
विशेष—'वैश्य' शब्द वैदिक विश् से निकला है । वैदिक काल में प्रजा मात्र को विश् कहतेथे । पर बाद में जब वर्णव्यवस्था हुई, तब वाणिज्य व्यसाय और गोपालन आदि करनेवालेलोग वैश्य कहलाने लगे । इनका धर्म यजन, अध्ययन और पशुपालन तथा वृति कृषि औरवाणिज्य है । आजकल अधिकांश वैश्य प्रायः वाणिज्यव्यवसाय करके ही जीविकानिर्वाहकरते हैं ।अर्थ की दृष्टि से इस "वैश्य" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका मूलअर्थ "बसना" होता है।