जी-चैनल के सुभाष गोयल से लेकर एयरटेल के सुनील मित्तल तक सभी बनिए ही हैं। आचार्य रजनीश ने दुनिया को दीवाना बनाकर रखा था वह भी बनिए (जैन) ही थे। चंद्रा स्वामी ने तो चूना लगाने के क्षेत्र में नए रिकार्ड बनाए, वे भी बनिए हैं। कौनसा ऐसा क्षेत्र है जो उनसे बचा हुआ है?
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है।
अखबारों में आ रहे तमाम परीक्षा परिणामों के नतीजों पर नजर डालें तो इस कालम में बनियों यानी वैश्य व्यापारी वर्ग पर लिखने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। हाई स्कूल से लेकर आईआईटी, पीएमटी यहां तक की सिविल सेवा तक के नतीजों में सफलता पाने वालों की सूची चौंकाती है। जिधर नजर डालंे तो उसमें आधे से ज्यादा नामों के आगे गुप्ता, गोयल, जैन, अग्रवाल, सिंघल, बसंल, कंसल आदि सरनेम देखने को मिलेंगे। जो बनिए कभी केवल दुकान और व्यापार तक सीमित रहते थे, आज हर क्षेत्र में अव्वल आ रहे हैं। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो, जहां उन्होंने सफलता हासिल नहीं की हो। कुशाग्रता तो उनके खून में पाई जाती है और मानो गणित पर उनका एकाधिकार सा है। शायद ही इस वर्ग का कोई छात्र ऐसा हो, जो गणित में कमजोर हो। चंद वर्ष पहले तक सीपीडब्ल्यूडी में ही बनिया इंजीनियरों की भरमार दिखती थी, पर अब यह अतीत की बात हो चुकी है।
मनु स्मृति में भी वैश्यों को व्यापार का काम सौंपा गया था और अपना देश आजाद हुआ तो उससे पहले से ही वे सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करने लगे थे। बिड़लाजी महात्मा गांधी के फाइनेंसर माने जाते थे। यह अलग बात है कि इस देश को आजादी दिलावाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी खुद भी गुजरात के बनिया ही थे। जमना लाल बजाज, डालमिया सभी ने स्वतंत्रता संग्राम में जितना संभव हो सका, उतनी उनकी मदद की। उस दौरान मनमथनाथ गुप्त की गिनती बहुत बड़े क्रांतिकारियों में होती थी। साहित्य के क्षेत्र में भी मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि कहलाए। काका तो जाने माने हास्य कवि थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इस जाति का ही कारोबारी एकाधिकार रहा है। लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिक बनिए ही हैं। इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, दैनिक जागरण, भास्कर, पत्रिका, प्रभात खबर से लेकर हाल ही में बिक जाने वाला नई दुनिया तक शामिल है।
पत्रकार के रूप में बनियों ने विशेष ख्याति हासिल की। समकालीन पत्रकारिता में शेखर गुप्ता इसका जीता जागता उदाहरण है। एक समय तो ऐसा था जब कि मजाक में यह कहा जाने लगा था कि इंडियन एक्सप्रेस में ‘गुप्त काल’ रहा है। क्योंकि तब शेखर गुप्ता के अलावा वहां नीरजा (गुप्ता), हरीश गुप्ता, शरद गुप्ता, शिशिर गुप्ता भी पत्रकारिता कर रहे थे।
जब सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो पत्रकार निर्मल पाठक ने उनसे चुटकी लेते हुए कहा था, चचा, भाजपा के लिए तो समस्या पैदा हो जाएगी, क्योंकि अब बनियों को सोचना पड़ेगा कि वे आपको वोट दें या भाजपा को। केसरीजी ने पूछा वह कैसे तो उसने शरारती अंदाज में कहा कि आपने जगह-जगह दीवारों पर लिखा यह नारा तो पढ़ा ही होगा कि ‘भाजपा के सदस्य बनिए’।
बनियों का भाजपा से विशेष लगाव रहा हैं। एक समय था, जब हर शहर में पार्टी का स्थानीय दफ्तर किसी बाजार में होता था। नीचे दुकान होती थी व पहली मंजिल पर कार्यालय हुआ करता था। जब राजग सत्ता में थी तो दैनिक जागरण के मालिक नरेंद्र मोहन भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा में आ गए थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैश्य समाज का एक भी मंत्री नहीं था। विजय गोयल भी सरकार के अंतिम महिनों में कैबिनेट में लिए गए थे। नरेंद्र मोहन अपने अखबार में अक्सर यह खबर छपवाते रहते थे कि राजग में बनियों की उपेक्षा हो रही है। उनका एक भी मंत्री नहीं हैं। इस पर एक बार प्रमोद महाजन ने किसी कार्यक्रम में उनसे कटाक्ष करते हुए कहा कि हम पर तो बनियों की सरकार होने का आरोप लगाया जा रहा है और आप का अखबार लिख रहा है कि सरकार में बनियों की उपेक्षा हो रही है।
रुपए पैसे के हिसाब-किताब रखने की उनकी योग्यता गजब की होती है। इसी योग्यता के कारण सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे थे। उनके बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि ‘‘न खाता न बही, जो कहें केसरी वही सही’’। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कोषाध्यक्ष भी बनिया ही हैं। पहले पार्टी के कोष को वेदप्रकाश गोयल संभालते थे। अब अध्यक्ष बदलने के बाजवूद भाजपा का खजाना उत्तराधिकारी के रुप में उनके बेटे पीयूष गोयल को सौंप दिया गया है।
पड़ोसी राज्य हरियाणा में बनियों व जाटों का बहुत पुराना बैर माना जाता है। न्याय युद्ध के दौरान देवीलाल अक्सर भजनलाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एक किस्सा सुनाते थे कि उन्होंने किसी जाट से पूछा कि अगर हर किलोमीटर एसवाईएल नहर बनाने में भजनलाल एक लाख रुपए कमा रहा हो तो पूरी हरियाणा में नहर बनवा कर वह कितनी कमाई कर डालेगा? इस पर उस लड़के ने जवाब दिया कि हम कोई ‘बणिए’ के छोरे हैं जो यह हिसाब किताब करते फिरे? यह अलग बात है कि तब बीडी गुप्ता उनके साथ हुआ करते थे जो कि वैश्य समाज के एक बहुत बड़े संगठन के अध्यक्ष थे। हरियाणा की राजनीति में ओम प्रकाश जिंदल की काफी अहम भूमिका रही। पहले उन्होंने भजनलाल का साथ निभाया व फिर बंसी लाल का।
आपातकाल के दौरान बंसीलाल अपने शहर भिवानी के एक संपन्न वैश्य व्यापारी से नाराज हो गए। उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए शहर के सबसे चर्चित स्थान घंटाघर में स्थित उसकी संपत्ति पर बुलडोजर फिरवा दिया। वह लाला इतना होशियार था कि जब उसे यह पता चला कि कार्रवाई होने वाली है तो उसने उस युग में जब कि लोगों के पास साधारण कैमरे भी नहीं होते थे, मुंबई से फिल्म बनाने वाले मूवी कैमरे व फोटोग्राफर का इंतजाम किया। उस इलाके में स्थित एक ऊंची इमारत में उसे छिपाकर पूरी फिल्म तैयार करवाई। जब आपातकाल समाप्त हुआ और जनता पार्टी ने उस दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया तो उसने उसके समक्ष वह फिल्म पेश कर दी। आयोग ने उसकी जमीन वापस लौटाने का आदेश दिया। इस घटना के कई साल बाद जब मैं उस बुजुर्ग व्यापारी से मिला तो उसने बताया कि बंसीलाल के इस कदम से उसके भाग्य खुल गए क्योंकि उसकी जिस बिल्डिंग को ध्वस्त किया गया था, वह काफी पुरानी थी। उसमें दरजनों किराएदार थे, जो डेढ़, दो रूपए महिला किराया देते थे। उसे खाली भी नहीं करते थे। बुलडोजर चलने के बाद उसे उनसे मुक्ति मिल गई। जब मैं वहां गया तो उस स्थान पर बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र बन चुका था। जिसमें दर्जनों बैंक व बीमा कंपनियों के दफ्तर खुले हुए थे। जिनसे तब उसे लाखों रूपए महीना किराया मिल रहा था। हालांकि जब लाला ने अनुरोध कर मुझे पीछे स्थित अपने बाग में खाना खिलवाया तो मैंने पाया कि हमें स्टील की जिन कटोरियों में खाना परोसा गया था, वे टूटी हुई थीं। मैंने अपने जीवन में पहली व अंतिम बार स्टील के टूटे हुए बर्तन वहीं देखे।
जी-चैनल के सुभाष गोयल से लेकर एयरटेल के सुनील मित्तल तक सभी बनिए ही हैं। आचार्य रजनीश ने दुनिया को दीवाना बनाकर रखा था, वह भी बनिए (जैन) ही थे। चंद्रा स्वामी ने तो चूना लगाने के क्षेत्र में नए रिकार्ड बनाए, वे भी बनिए है। कौन सा ऐसा क्षेत्र है, जो उनसे बचा हुआ है? हिंदू धर्म में सबसे चर्चित कथा सत्य नारायण की है, जो यह बताती है कि आदमी किस तरह से भगवान तक को मूर्ख बनाता है। पहले उसे प्रसाद का लालच देकर काम करवाता है, फिर अपना वादा पूरा करना भूल जाता है। उसका मुख्य पात्र भी बनिया ही है।
बनिए पूजा पाठ में बहुत ज्यादा रूचि लेते हैं। दीवाली पर सबसे लंबी पूजा वही करवाते हैं। वे ही सबसे ज्यादा मथुरा और वृंदावन जाते हैं। लक्ष्मी को भी उनके यहां ही रहना पसंद आता है। इस बारे में हरियाणा में किसी जाट मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि एक जाट ने अपने घर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर ली। एक दिन शाम को खूंटा नजर नहीं आया तो उसने भैंस की जंजीर हनुमानजी की टेढ़ी वाली टांग में बांध दी। कुछ देर बाद भैंस का घूमने का मन हुआ, उसने कुछ झटके मारकर मूर्ति उखाड़ डाली व बाहर चल पड़ी। मूर्ति उसके साथ घिसटती चली जा रही थी। रास्ते में एक मंदिर था, जहां लक्ष्मी की मूर्ति लगी थी। वे हनुमानजी की हालत देखकर हंस पड़ी। इस पर हनुमानजी नाराज होकर कहा, ज्यादा न हंस। वह तो तेरी किस्मत अच्छी है कि बनिया के यहां रहती है। अगर किसी जाट के पल्ले पड़ी होती तो कब की यह हंसी निकल गई होती।
साभार : नया इंडिया, लेखक विनम्र