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Monday, December 17, 2018

वैश्य समाज के बारे में कुछ जानकारी

वैश्य समाज के बारे में कुछ जानकारी,,,,,

वैश्य समाज के बारे में मुझे जानकारी देने को आवश्यता नही है ,,,

दुनियां जानती है वैश्य समाज के बारे में ,,,,,

फिर भी वैश्य समाज से अंजान या जलने वाले या घृणा करने वाले लोगों को बता रहा हूँ ये समाज के बारे में कुछ भ्रांतियां है जिन्हें दूर करना चाहता हूँ ,,,

जो लोग समाज के बारे में भ्रांतियां फैलाते है वो या तो वैश्य समाज की शख्सियत , कामयाबी से जलते है या फिर अंजान बने रहना चाहते है ,,


उन्हें बता हूँ वैश्य समाज कभी भी किसी भी समाज का अहित नही चाहता है वो सबको सम्मान देता है सभी को अपनी तरफ सुखी देखने की कामना करता है ये वो ही समाज है जो सबसे कम धन होने के बाबजूद भी अपने खर्चो में फिजूल खर्ची को खत्म करके सभी वर्गों के हितों के लिए कुछ न कुछ करता है ये वही समाज है जिसने अपने साथ-2 सभी के लिए ऐसी परम्पराए विकसित की है जिससे सभी की रोजी रोटी सुचारू रूप से चल सके ,,, फिर भी सभी ये कहते है कि वैश्य समाज ने हमारे लिए क्या किया है अरे मूर्खो ,,,,,

जो पंडित ये समझते है कि हम पूज्यनीय है तो ये मत भूलो की आज भी तुम्हारा कोई आदर कर रहा है तो वो सिर्फ वैश्य समाज की बजह से , जो तुम अहंकार दिखाते हो जरा सा ज्ञान होने का उससे ज्यादा ज्ञान तो एक तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी लिए फिरता है तुम्हे लेकिन जो तबज्जो मिलती है वो सब वैश्य समाज की बजह से ,,,,, वो तुम्हे अपने से भी श्रेष्ठ रखता है ,,,अन्य जातियां भी तभी तुम्हारा सम्मान करती है न तो तुम्हे कौन पूछता था ,,, वैश्य समाज ने ही हर जाति के उत्तान के लिए कुछ न कुछ परम्पराए बनाई है जैसे विवाह के अवसर पर दूल्हे की हजामत के लिए नाई , मिट्टी के बर्तनों के लिए कुम्हार,,,,हवन पूजन के लिए पंडित, काजी, ,,,,बैंड बाजे के लिए मुसलमान, खाने के लिए हलवाई, हर वर्ग को उन्नति में लाने के लिए कुछ न कुछ अवश्य रखा है फिर भी चंद चोर नेताओ , कर्मचारियों , विशेषकर फिल्म जगत के लोगों ने इस समाज के बारे में उल्टा सीधा चित्रण किया है जिसके परिणामस्वरूप ही आज हर समाज वैश्य वर्ग को घृणा की दृष्टि से देखता है बिना कुछउसके बारे में इतिहास जाने ,,,,

वो वर्ग ऐसा वर्ग है जो अपनी मेहनत - की एक-एक पाई पाई को इकट्ठा करके करोड़ो का चंदा किसी को भी दान में देता है ,,,,,,वैश्य समाज को मुझे परिचय देने की आवश्यकता नही है वो किसी परिचय का मोहताज नही है तमाम कुप्रथाओ को खत्म करने में हमेशा अग्रणी ,,,,,,,,

देश आजादी से लेकर आज तक वैश्य समाज ने जो योगदान दिया है वो अविस्मरणीय है ,,, देश आजादी में क्रांति के लिए धन बल जुटाने सेठ जमुनालाल बजाज , बिरला परिवार , देश आजादी की लड़ाई में भी वैश्य समाज के प्रमुख क्रांतिकारियों का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिसे भुलाया नही जा सकता जैसे - लाला लाजपत राय , मनमंथ गुप्ता, महात्मा गांधी, श्यामलालगुप्ता पार्षद इतियादी अनेक ऐसे जांबाजों हुए है जिनका महत्वपूर्ण योगदान है ,,,,

वैश्य समाज के संस्कारों के बारे में बात करे तो इसके कहने ही क्या है ,,,,,

बड़े से बड़े उधोयपतियों को देख लो एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अमबानी से लेकर , सुनील भारती मित्तल , वेदान्ता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल , आदित्य बिड़ला ग्रुप के मालिक इतियादी में से किसी को भी देख लो अहंकार,अभिमान छू कर भी नही गुजरा है ,,,

हमेशा राष्ट हिट में कुछ न कुछ बड़ा करते रहते है 

जैसे अगर सुनील मित्तल एयरटेल के मालिक की बात करें तो बिज़नेस यूनिवरसिटी के लिए 7000 करोड़ का चंदा देना , अनिल अमबानी का 

Bsuiness स्कूल के लिए 10000 करोड़ देना , अनिल अग्रवाल का 20000 करोड़ का दान करना अनेकों ऐसे उदाहरण है दान पुण्य के कार्यों के किस्सों में तो ये समाज अग्रणी है ही ये समाज दिखावा के लिए दान नही करता है ना ही राजनीति करने के लिए राजनीति से इस वर्ग का कोई लेना देना नही है ,,,,

इसका जीता जागता उदाहरण है मिस्टर मुकेश अमबानी एशिया के डब्से धनाढ्य व्यक्ति अपनी बेटी के शादी समारोह में सपरिवार गरीबों को , दिव्यांगों को अपने हाथों से भोजन करा रहे है इनका राजनीति से कोई लेना देना नही है ये इनके माता पिता के संस्कार है जो इनमे झलक रहे है वार्ना अपने सुना ही होगा ,,,,की पैसा , पद ,या प्रतिष्ठा अगर बढ़ती है तो इंसान का अहंकार भी बढ़ता है पर वो इन पर फिट नही बैठता है मित्रो,,,,,,, ये है हमारा वैश्य समाज और उसके संस्कार सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक के,,,,

Monday, November 5, 2018

महान स्वतन्त्रता सेनानी - नीरा आर्य

इतनी #यातनाएं दी गईं और नेहरू कहता है चरखा से आजादी मिली? #नीरा_आर्य की कहानी। जेल में जब मेरे #स्तन काटे गए ! स्वाधीनता संग्राम की #मार्मिक_गाथा। एक बार अवश्य पढ़े, नीरा आर्य (१९०२ - १९९८) की संघर्ष पूर्ण जीवनी:


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नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में #सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी |

नीरा ने अपनी एक #आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक #ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -

5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य #आजाद_हिन्द_फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था।

इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता सेठ छज्जूमल अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई।

नीरा नागिन और इनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे | 1998 में इनका निधन हैदराबाद में हुआ।

नीरा आर्य का #विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था |

नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की #जान_बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर #पति श्रीकांत जयरंजन दास की #हत्या कर दी थी।

आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में #काले_पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई।

आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।

नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है - 
‘‘मैं जब कोलकाता जेल से #अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी।

हमें रात के 10 बजे #कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है?

जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो #कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया।

अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।

‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की #सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार #हथौड़ी_से_पैरों_की_हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है।

मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्या #अंधा है, जो पैर में मारता है?’’‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’

उसने मुझे कहा था।‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ...’’ फिर मैंने उनके ऊपर #थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’

#जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’

‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’

‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। 
‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’

‘‘तो कहाँ हैं...।’’

‘‘मेरे #दिल में जिंदा हैं वे।’’

जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे #आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी #आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया...#लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई #पत्तियाँ_काटने के काम आता है, उस #ब्रेस्ट_रिपर को उठा लिया और मेरे #दाएँ_स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था...लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और #उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे #छाती_से_अलग कर दिए जाएँगे...’’

उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी #नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’ 

#सलाम हैं ऐसे देश भक्त को। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या #पेंशन स्वीकार नहीं की।

जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!

(साभार अमित त्रिपाठी जी )

दीपावली - श्री महालक्ष्मी वरदान पर्व



साभार: अग्रभाग्वत 






Sunday, October 14, 2018

SAHU TELI VAISHYA HISTORY - साहू तेली वैश्य समाज का इतिहास

विद्धान अभी तक यह मानते हैं कि सिंधु सभ्यता काल जिसे पूर्व वैदिक काल भी कहा जाता है. सप्त सैंघव प्रदेश ( पुराना पंजाब, जम्मू कश्मीर एवं अफगानिस्थात का क्षेत्र) में, जो मनुष्य थे वे त्वचा रंग के आधार पर दो वर्ग में विभाजित थे । श्वेत रंग वाले जो घाटी के विजेता थे आर्य और काले रंग वाले जो पराजित हुये थे दास कहलाये । विद्वान आर्य का अर्थ श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि वे युद्ध के विजेता थे । ये मूलत: पशु पालक ही थे । कालांतर में इन दोनों वर्गो में रक्त सम्मिश्रण भी हुआ और वृहत्तर समाज वर्णे मे बंटते गया, जा संघर्ष की जीविविषा है । जिन्होंने पराजय स्वीकार कर लिशे और विजेता जाति की रिति-निती अपना लिये वे आर्यो के चतुर्वर्णीय व्यवस्था में शामिल हो गये । जिस पराजित समूह ने आर्यें की व्यवस्था स्वीकार नीं किये वे दास, दस्यु, दैत्य, असुर, निषाद इत्यादि कहलाये । तब तक जाति नहीं बनी थी और वर्ण स्थिर नहीं था । 

महाभारत में तुलाधर नामक तत्वादर्शी का उल्लेख लिता है जो तेल व्यवसायी थे किन्तु इन्हें तेली न कहकर वैशस कहा गया, अर्थात तब तक (ईसा पूर्व 3 री - 4 थी सदी) तेली जाति नहीं बनी थी । वाल्मिकी के रमकथा में भी तेली जाति का कोई उल्लेख नहीं है तथा अन्य वैदिक साहित्यों में भी तेल पेरने वाली तेली जाति का प्रय्तक्ष प्रसंग हीं मिलता है । पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में विष्णु गुप्त नाम तेल व्यपारी की विद्धता का उल्लेख है ।

आर्य सभ्यता के चतुर्वर्णीय व्यवस्था में ब्राम्हण, और क्षत्रिय के बीच श्रेष्ठता के लिये स्पर्धा थी । वैश्य के उपर कृषि, पशुपालन एवं व्यपार अर्थात उत्पाद का वितरण का दायित्व था, इन पर यज्ञ एवं दान की अनिवार्यता भी दी गई । जिससे समाज मैं अशांति थी। तब भगवान महावीर आर्य, जो क्षत्रिय थे, जिन्होंने यज्ञों में होने वाले असंख्य पशुयों की हत्या का विरोध किया, साथ ही जबरदस्ती दान की व्यवस्था का विरोध कर अपरिगृह ि सिद्धांत प्रतिपादित किया । इसके बाद शक्य मुनि गौतम बुद्ध हुये, जिन्होंने भगवान महावीरके सिद्धांतो को आगे बढाते हुए, वर्णगत/जातिगत/लिंगगत भेदभाव का विरोध किया । गौतम बुद्ध भी क्षत्रिय थे और उन्हे, क्षकत्रय, वैश्य एवं शुद्र वर्ण का सहज समर्थन मिला । इसी दौरान सिंधु क्षेत्र में ग्रिक आक्रमण हुआ और अतं में चंद्रगुप्त मौर्य मगध के शासक बने। इनके वंशज आशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया , जिसमें एक लाख मनुष्य मारे गये तथा डेढ लाख मनुष्य घायल हुए । युद्ध के विभत्स दृश्य को देखकर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और वे बुद्ध धर्म के अनुयायी हो गये थे । महावीर एवं गौतम बुध के कारण प्रचलित चतुर्वर्णीय व्यवस्था की श्रेणी बद्धता में परिवर्तन हुआ । नवीन व्यवस्था में ब्राह्मण के स्थान पर क्षत्रिय श्रैष्ठतम हो गये और ब्राम्हण, वैश्य एवं शुद्र समान स्थरपर आ गये । फलस्वरूप वर्ण मे परिवर्तन तीव्र हो गया । ईसा के 175 वर्ष पूर्व मग के अंतिम सम्राट मौर्य राजा वृहदरथ को मारकर, उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुंग राजा बने जो ब्राह्मण थै । माना जाता है पुष्पमित्र शुंग के काल में ही किसी पंउीत ने मनुस्मृति की रचना की थी । शुंग वंश का 150 वर्षै में ही पतन हो जाने से मनुस्मृति का प्रभाव मगध तक ही रहा । 

ईसा के प्रथम सदी के प्राप्त शिला लेखों में तेलियों के श्रेणियों / संघों (गिल्ड्स) का उल्लेख मिलता है । ईसा पश्चात महान गुप्त वंश का उदय हुआ। जिसने लगभग 500 वर्ष तक संपुर्ण भारत को अधिपत्य में रखा । इतिहास कारों ने गुप्त वंश को वैश्य वर्ण का माना है । राजा समुद्रगुप्त एवं हर्षवर्धन के काल को साहित्य एवं कला के विकास के लिए स्वर्णिम युग कहा जाता है , गुप्त काल में पुराणों एवं स्मृतियों रचना हुई । गुप्त वंश के राजा बालादित्य गुप्त के काल में नालंदस विश्वविद्यालय के प्रवेश वार पर भव्य स्तूप का निर्माण हुआ, चीनी यात्री व्हेनसांग ने स्तूप के निर्माता बालादित्य को तेलाधक वंश का बताया है । तिहासकार ओमेली एवं जेम्स ने गुप्त वंश को तेली होने का संकेत किया है । इसी के आधार पर उत्तर भारत का तेली समाज गुप्त वंश मानते हुये अपने ध्ज में गुप्तों के राज चिन्ह गरूढ को स्थापित कर लिया । गुप्त काल में सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्मालोंबियो समान दर्जा प्राप्त था । इसी काल में 05 वी सदी में अहिंसा पर अधिक जोर देते हुए, हल चलान तथा तेल पेरने को हिंसक कार्यवाही माना जाने लगा, जिससे वैश्य वर्ण में विभाजन प्रारंभ हुवा । हल चलाकर तिलहन उत्पन्न करने वाले तेली जाति को स्मृतिकारों ने शुद्र वर्ण कहा । इतना ही नहीं, तिलहन के दाने में जीव होने तथा तेल पेरने कोभी हिंसक कार्यवाही कहा गया । गुजरात - महाराष्ट्र-राजस्थान का क्षेत्र जहां सर्वाधिक तेल उत्पादन होता था, घांची के नामसे जाना जाता था । जैन मुनियों के चतुर्मास काल में घानी उद्योग को बंद रखने का दबाव बनाय गया फलस्वरूप तेलियों एवं शासकों के मध्य संघर्ष हुआ । जिन तेलियों ने घानी उद्योग को बचाने शस्त्र उछाया वे घांची क्षत्रिय कहलाये गये । जिन्होंने केवल तेल व्यवसाय किया वे तेली वैश्य, तथा जिन्होंने सुगंधित तल का व्यापार किया वे मोढ बनिया कहलाये । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पूर्वज मोढ बनिया थे । जिन्होंने हल चलाकर तिलहन उत्पादन किया । तेली जाती की उत्पत्ति का वर्णन विष्णुधर्म सूत्र, वैखानस स्मार्तसूत्र, शंख एवं सुमंतू मै है । 

साभार: teliindia.com/news.php

Tuesday, October 9, 2018

सूरत में महाराजा अग्रसेन जयंती पर फैशन शो


साभार: दैनिक भास्कर 

अग्रवाल गोत्र परंपरा



साभार: मरुधर के स्वर, पत्रिका, जमशेदपुर 

अग्रसेन जयंती का शुभारम्भ कबसे हुआ?






साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका, जमशेदपुर 

अग्रवाल झंडा गान






साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका

अग्र मंत्र


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

AGROHA - पुण्य धाम अग्रोहा





साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

अग्रोहा के जलने की कथा


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

SHREE AGRASEN CHALISA - श्री अग्रसेन चालीसा


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

महाराजा अग्रसेन का समाज वाद


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

अग्रसेन के वैश्य कुल का इतहास

साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

गर्ग गोत्र के जनक

साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

अग्रसेन जी पर जानकारी


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

माता लक्ष्मी का वरदान



साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

अग्रोहा में ताम्बे का तालाब





साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका

अग्रोहा का विध्वंश और समरजीत



साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 

सूर्यवंशी अग्रवाल वैश्य समाज की विशेषताए


साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका

अग्रसेन - अग्रोहा - अग्रवाल





साभार: मरुधर के स्वर पत्रिका 







Monday, October 8, 2018

BHAI JI HANUMAN PRASAD PODDAR JI

भाईजी और भारतरत्न (जन्म 6 अक्टूबर)
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इस राष्ट्र में असङ्ख्य "भाई" हुए हैं। यथा : बल्लभ भाई, केशुभाई, धीरूभाई और अंत में में नरेंद्र "भाई"।

"भाई" की सही परिभाषा राष्ट्र के भीतर के ही राष्ट्र "महाराष्ट्र" से अधिक बेहतर कौन जान सकता है।

इतना ही नहीं, "मुम्बई" महाराष्ट्र की राजधानी और राष्ट्र की आर्थिक राजधानी होने के साथ ही "भाइयों" की भी राजधानी है!

बहरहाल, बहरक़ैफ़।

"भाई" असङ्ख्य हुए, किन्तु "भाईजी" सिर्फ एक ही हुए हैं।

वे हैं : "श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार"।

निस्संदेह, वे "भाई" ही हैं सनातन शास्त्र परंपरा के। किसी भी रूप में शास्त्र परिशीलन में संलग्न लोग उन्हें आदर से "भाईजी" का संबोधन देते हैं।

"भाईजी" ने कभी किसी उपाधि या सम्मान का लोभ नहीं किया। उनके लिए सब संगीसाथियों द्वारा दिया गया संबोधन की सबसे बड़ा रहा।

इस संबंध में एक रोज़ एक अनोखी घटना घटी!

ये घटना उन्नीस सौ साठ के आसपास की है।

गीतावाटिका, गोरखपुर के पते पर एक पत्र आया। पत्र का मौजूं कुछ यूँ था :

"श्रीमान हनुमानप्रसाद पोद्दार जी, ये पत्र आपको सूचित करने हेतु है। आपके उत्तर प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री श्री गोविन्द बल्लभ पन्त आपसे भेंट करने के आशय से गोरखपुर आना चाहते हैं। आप अपने उपलब्ध समय के अनुसार दिन दिनाङ्क सूचित कर दीजिये ताकि आप दोनों ही को कोई असुविधा न हो।"

"भाईजी" दिल के धनी थे। वे सामान्य जनों से यों ही घंटों भेंट करते थे। किसी राजनेता के लिए भी कोई रुकावट न थी। उन्होंने लिख भेजा : "जब पन्त जी पास समय हो, पधारें। वाटिका में स्वागत है उनका।"

पन्त जी आये। और बस खो गए उस विराट व्यक्तित्व के सम्मुख!

उनदिनों, गोरखपुर रेलवे स्टेशन से तीन किलोमीटर की दूरी पर लगभग छः सात एकड़ भूमि में फैला एक लघु वनस्थल हुआ करता था। उसका नाम था "गीतावाटिका"।

यही था "भाईजी" का निवास और पन्त जी का "डेस्टिनेशन"!

पन्त जी ने चारों ओर से आम्र, अमरुद, लीची, कदली आदि के वृक्षों से घिरी एक सुन्दर, सुव्यवस्थित वाटिका को देखा। वाटिका के मध्य में बने भवन को भी देखा।

इस भवन में ही पत्रिका "कल्याण" और "कल्याण-कल्पतरु" का प्रधान कार्यालय है। कार्यालय में टंगी लालटेनों को देखकर पन्त जी बोले, भाईजी, क्या यहां विद्युत् प्रकाश नहीं पहुंचा है?

"भाईजी" ने विनम्रता से कहा, सम्पूर्ण अवध प्रान्त को विद्युत् से प्रकाशित करने का कार्य चल रहा है। यत्रतत्र प्रकाश पहुंचा भी था, किन्तु सर्वत्र नहीं।

इस भवन के पीछे अनेक कुटियाएँ बनी थीं। जिनमें संपादक विभाग के अनेक लोग व साधकगण रहते थे।

चतुर्दिक सुन्दर वृक्ष, लताएं, पुष्प, कोकिलादिक का गायन!

कुलमिला कर सर्वत्र पूर्ण सात्त्विक वातावरण को देख पन्त जी में परिहास में कहा, भाईजी, इनमें से एक कुटीर मेरे लिए भी शेष रखिये, मैं जल्द अपने भर से मुक्त होकर आऊंगा।

अंततोगत्वा, पन्त जी जिस कार्य से आये थे, उसके लिए "भाईजी" को लेकर उनके कार्यालय में जा बैठे।

"भाईजी" को एक कागज़ देते हुए बोले, हम इस पत्र के संबंध में आपसे स्वीकृति लेने आये हैं।

"भाईजी" ने पत्र खोला तो मालूम हुआ कि ये तो "भारतरत्न" की उपाधि का प्रस्ताव है। एतदर्थ "भाईजी" की अनुमति मांगी गयी है।

"भाईजी" असहमत हो गए। बोले, ये उपाधि मेरे लिए व्याधि है। पन्त जी, आप मेरे सच्चे हितैषी हैं न, आप मुझे इस व्याधि से बचाएं।

पन्त जी में कहा, भाईजी, ये आग्रह न केवल मेरा है बल्कि राजेंद्र बाबू ने विशेष तौर पर आपको सम्मानित करना चाहा है। आपको उनके आग्रह को मनाना ही चाहिए।

किन्तु "भाईजी" निश्चय कर चुके थे। बोले, राजेंद्र बाबू के प्रति मेरे मन में बड़ा आदरभाव है किंतु उनका यह अनुरोध मैं स्वीकार नहीं कर पाऊंगा। यह उपाधि मेरी भावना के प्रतिकूल है।

"भाईजी" के हृदय की व्यथा देख, पन्त जी बोले, अवश्य आग्रह नहीं करेंगे। इसके एवज में आपसे एक प्रसाद लेंगे।

"भाईजी" ने प्रश्नवाचक मुद्रा से देखा।

पन्त जी कहते रहे, भाईजी, आप अपनी लेखनी मुझे देने की कृपा करें। आपका यह पेन ही मुझे प्रसाद के रूप में चाहिए।

"भाईजी" मंदहास के साथ बोले, हां हां ले जाइए, इसमें भी भला पूछना क्या!

पन्त जी चले गए, उनके साथ वही हुआ : "आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास।" पुरस्कार देने आये थे, प्रसाद लेकर गये।

उन्होंने दिल्ली पहुँचकर संबंधित कागज़ी कार्यवाही की और "भाईजी" को एक पत्र लिखा :

"भाईजी! आप इतने महान हैं, इतने ऊंचे महामानव हैं कि भारतवर्ष क्या, सारी दुनिया को इसके लिए गर्व होना चाहिए। मैं आपके स्वरूप को, महत्त्व को न समझकर ही आपको "भारतरत्न" की उपाधि देकर सम्मानित करना चाहता था। आपने इसे स्वीकार नहीं किया, यह बहुत अच्छा किया। आप इस उपाधि से बहुत-बहुत ऊंचे स्तर के हैं। मैं तो आपको हृदय से नमस्कार करता हूँ।"

भाईजी के अनगिनत प्रसङ्ग रसमयी है। उनकी शख्सियत ही रसपूर्ण थी। न मोह, न लोभ, न लालच।

यदि आपको भी रस आया हो तो शनै: शनै: आप लोगों के साथ साझा करूँगा। अभी तो ये शुरुआत है। उनके संस्मरणों से अटा पड़ा है, मेरे दिल का एक कोना!

अस्तु।

प्रखर अग्रवाल जी की फेसबुक वाल से साभार: 
साभार-योगी अनुराग

SHIPRA GOYAL -शिप्रा गोयल, प्रसिद्द गायिका

Shipra Goyal is an Indian singer, popular for her songs like Ishq Bulava, Ungli, Tutti Bole Wedding Di, Yadaan Teriyaan, Lovely VS PU, Mainu Ishq Lagaa, Paro and many more.

Though her paternal roots are in Mansa (Punjab) She was born and brought up in Delhi and belongs to a musical family. Her parents, Subhash and Anju Goyal are renowned Singers from Delhi. She started singing at a very early age and gathered various experiences while attending her parents live shows and recordings. In her school life she was among bright students, Not only in Academics but in music competitions also. Topped her school in 12th standard Board Exams (Arts) and participated in her 1st music competition when studying in 6th standard, for this she won 1st prize on State-level.


Career

All the experience she gained performing in competitions, helped her in doing her first show when she was studying in 12th standard. A regular name in Delhi's music circle, thought of shifting to Mumbai to pursue her career in Bollywood Playback singing when she turned 21 years old. After completing her graduation in classical music from Hindu College ( Delhi ) she then moved to Mumbai in 2013, and soon made her debut with Vishal-Shekhar's 'Ishq Bulaava' since then she has sung many songs in Bollywood and Pollywood.

Songs

SongFilmComposerCo Singer/sAkh Jatti Di Punjabi single Nick Dhammu Veet Baljit

Angreji Wali Madam Punjabi single Dr. Zeus Kulwinder Billa

Ishq Bulava Hasee Toh Phasee Vishal-Shekhar Sanam Puri

Tutti Bole Wedding Di Welcome Back (film) Meet Bros Meet Bros

Paro Pyaar Ka Punchnama 2 Hitesh Sonik Dev Negi

Ungli Pe Nachalein Ungli Aslam Key Dev Negi

Crazy Cukkad Crazy Cukkad Family Sidhartha-Suhaas Shahid Malya

Yeh Dil Jaane Na Crazy Cukkad Family Sidhartha-Suhaas Ankit Dayal

Lovely Vs PU Punjabi Single DJ Flow Ravinder Grewal

Yaadaan Teriyaan Hero (2015 Hindi film) Jassi Katyal Dev Negi

Yadaan Teriyaan Version Hero (2015 Hindi film) Arjuna Harjai Arjuna Harjai

Mainu Ishq Lagaa Shareek Jaidev Kumar Shaukat Ali, Sanj

Pari Punjabi Single DJ Flow Ravinder Grewal

Vela Aa Gaya Hai Chaar Sahibzaade Jaidev Kumar Jaspinder Narula

Goreyan Nu Daffa Karo Goreyan Nu Daffa Karo Jatinder Shah Amrinder Gill

Hatthan Vich Female Version Mr & Mrs 420 Jaidev Kumar NA

Puli Puli Puli (2015 film) Devi Sri Prasad Vijay Prakash

Bullet Nanna Care of Footpath 2 Kishan Shrikanth Girik Aman

Ki Kara One Night Stand Vivek Kar

Awards and nominations

Nominated in the category of Best Duet Vocalist for Lovely Vs PU alongside singer Ravinder Grewal ( PTC Punjab Music Awards 2105 

Nominated in the category of Best Female Singer for Hatthan VIch Luk Luk Ke ( Mirchi Music Awards Punjabi 2014 ) 

Nominated in the category of Most Popular Song Of The Year for Goreyan Nu Daffa Karo ( PTC Punjabi Film Awards 2015 )

Nominated in the category of Best Female Playback Singer for Mainu Ishq Lagga ( Mirchi Music Awards Punjabi 2015 )

Nominated in the category of Best Female Playback Singer for Mainu Ishq Lagga ( PTC Punjabi Film Awards 2016 )

BHAVNA GUPTA - मिसेज इंडिया भावना गुप्ता


साभार: नवभारत समाचारपत्र, नागपुर