स्वतन्त्रता प्रेमी वीर बालक : उदयचन्द जैन
15 अगस्त, 1947 भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, चूँकि इसी दिन देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था; पर इसके लिए न जाने कितने बलिदानियों ने अपने जीवन को होम कर डाला। ऐसा ही एक वीर बालक था उदयचन्द, जिसने 16 अगस्त, 1942 को आत्माहुति देकर स्वतन्त्रता की यज्ञ ज्वाल को धधका दिया।
1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन जोरों पर था। हजारों लोगों ने सत्याग्रह कर जेल स्वीकार की। कुछ लोगों को अंग्रेजों की पुलिस घर से ही उठाकर ले गयी। मध्य प्रदेश के मण्डला जिला कांग्रेस के तत्कालीन जिलाध्यक्ष पण्डित गिरजाशंकर अग्निहोत्री को भी पुलिस ने 9 अगस्त, 1942 को रक्षा अधिनियम के अन्तर्गत बन्द कर दिया।
यह समाचार सुनते ही बाजार स्वयंस्फूर्त ढंग से बन्द हो गये। अगले दिन से सभी विद्यालयों में भी हड़ताल हो गयी। मण्डला के आसपास के क्षेत्र में लोगों ने टेलीफोन की तारें काट दीं, रेल की पटरियाँ उखाड़ दीं, कई पुलों को ध्वस्त कर दिया। इससे बाहर की पुलिस मण्डला शहर में नहीं आ सकी।
उन दिनों रेडियो पूरी तरह सरकारी कब्जे में था, वहाँ से निष्पक्ष समाचार प्राप्त करना असम्भव था। अतः लोग बर्लिन रेडियो सुनते थे। यद्यपि उसे सुनने पर भी प्रतिबन्ध था; पर लोग चोरी छिपे उसे सुनकर समाचारों को कानाफूसी द्वारा सब ओर फैला देते थे। दो चार दिन की शान्ति के बाद 15 अगस्त, 1942 को पूरे मण्डला शहर में पुलिस की गाड़ियाँ घूमने लगीं। पुलिसकर्मी घरों व बाजार से लोगों को सन्देह के आधार पर ही पकड़ने लगे।
इससे जनता में आक्रोश फैल गया। लोग डरने की बजाय सड़कों पर निकल आये और शासन के विरुद्ध नारे लगाने लगे। ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ ‘वन्दे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों से आकाश गूँजने लगा। लोग शहर के एक प्रमुख चौराहे पर आ गये। इनमें युवकों की संख्या बहुत अधिक थी। पुलिस अधिकारी ने संख्या बढ़ती देख और पुलिस बुला ली।
धीरे-धीरे दोनों ओर से तनाव बढ़ने लगा। कमानियाँ गेट और फतह दरवाजा स्कूल के पास पुलिस ने मोर्चा लगा लिया। 17 वर्षीय मन्नूमल मोदी हाथ में तिरंगा लेकर एकत्रित लोगों को सम्बोधित करने लगे। इस पर पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लोग डरने की बजाय और जोर से नारे लगाने लगे। इस पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया।
इस लाठीचार्ज में कई लोग घायल हुए। कुछ युवकों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। इसी बीच कक्षा 11 के छात्र उदयचन्द ने तिरंगा सँभाल लिया। उसने सबसे पथराव न करने और शान्तिपूर्वक नारे लगाने को कहा। पुलिस अधिकारी ने उससे कहा कि भाग जाओ, अन्यथा गोली मार देंगे। इस पर उदयचन्द ने अपनी कमीज फाड़कर सीना खोल दिया और कहा मारो गोली।
पुलिस अधिकारी भी काफी गरमी में था। उसने गोली चलाने का आदेश दे दिया। पहली गोली उदयचन्द के सीने में ही लगी। खून से लथपथ वह वीर बालक धरती पर गिर पड़ा। पुलिस वाले उसे उठाकर अस्पताल ले गये, जहाँ सुबह होते-होते उस वीर ने प्राण त्याग दिये। अगले दिन उसकी शवयात्रा में पूरा शहर उमड़ पड़ा। उसके बलिदान से केवल मण्डला ही नहीं, तो पूरे मध्य प्रदेश में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन और प्रबल हो गया। जहाँ उस वीर को गोली लगी, उसे आजकल ‘उदय चौक’ कहा जाता हैं.
साभार: राजेश लालवानी की फेसबुक वाल से.....
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र तय करने वाले सर्वप्रिय अटल जी को सादर नमन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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