उत्तराँचल वैश्य महाकुम्भ, दिनांक ३/३/१३, दिन रविवार, आप सभी वैश्य बंधू सादर आमंत्रित
प्रिय मित्रो यह चिटठा हमारे महान वैश्य समाज के बारे में है। इसमें विभिन्न वैश्य जातियों के बारे में बताया गया हैं, उनके इतिहास व उत्पत्ति का वर्णन किया गया हैं। आपके क्षेत्र में जो वैश्य जातिया हैं, कृपया उनकी जानकारी भेजे, उस जानकारी को हम प्रकाशित करेंगे।
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Monday, February 25, 2013
Wednesday, February 13, 2013
मधेशिया बनिया समाज - MADHESHIYA VAISHYA
Madhesiya Baniya Samaj
मद्धेशिया वैश्य वस्तुत: कानू, कान्दू (कन्दोइ) और हलवाइ एक ही जाति है। जिसका मुख्य व्यवसाय मिठाइ बनाना होता है साथ ही भुजा भुजने वाले भी कानू, कान्दू जाति के ही लोग हैं।
कानू, कान्दू, कन्दोइ हलवाइ एक ही श्रेणी में होने के नाते एक ही कुल देवता की पूजा करते है। वैवाहिक सम्बन्ध और अन्य धार्मिक अनुष्ठान में समानता होने के साथ ही शादी में मूल-डीह को मान्यता देते है।
प्राचीन काल से मुगल कालीन व अंग्रेजों के शासन काल में लिखे गये अनेकों ग्रन्थों और अभिलेखों में इस जाति समूह को कानू-कान्दू (कन्दोइ) नाम से उल्लेख किया गया है।
सन 1891 में जनगणना आयुक्त एच.एस.रिस्ले ने अपनी पुस्तक जन जातियां एवं जातियां (ट्राइब्स एण्ड कास्टस) में इस जाति समूह की व्याख्या की है। तथा इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि हलवाइ तथा 34 जातियां कानू या कान्दू (कन्दोइ) का ही अंश है।
पराधीनता की लंबी अवधि में इस जाति समूह के स्तर में काफी गिरावट आर्इ फलस्वरूप समाज के प्रति समर्पण के भाव नष्ट होने लगे, व्यकित स्वेरूछाचारी हो गया स्वामि विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक, बहन एनी बेसेण्ट आदि महापुरूषों के भारतीय संस्कृति के गुण-गान करने का अत्यधिक प्रभाव सभी जाति व्यवस्था पर स्पष्ट दिखाइ देने लगा। सभी जातियां अपने सुधार की नइ दिशाए ढुंढने लगी।
सौभाग्य से हनुमानगंज बलिया उ.प्र. के श्री विष्णु कुमार गुप्त मुजफरपुर बिहार में डिप्टी क्लेक्टर थे। उन पर तत्कालीन परिसिथतियों का विषेष प्रभाव पड़ा फलस्वरूप सन 1905 र्इ. में महात्मा गणीनाथ जयंति के अवसर पर मुजफफरपुर नगर (बिहार) में एक स्वजाति सभा का विशाल आयोजन हुआ। सभा में दूर-दूर से आये हुए समाज बंधूओं ने एक स्वर में माननीय विष्णु कुमार गुप्त के विचारों का समर्थन किया। उनकी समाज के प्रति निष्ठा, लगन, त्याग, उच्चभाव को देखकर उन्हे इस जाति समूह (कानू-कांदू-कन्दोर्इ-हलवार्इ-भूर्जी, कान्यकुब्ज, क्रोंच, चेचड़ सहित 34 जाति समूह) को अखिल भारतीय मध्यदेशीयवैष्य के नाम सें विभूषित कर अपना प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया।
History of Madhesiya Samaj
Baba Ganinath
Madhesiya has been formed with the combination of two Sanskrit words i.e. "Madhya" and "Desh" hence some times also referred as "Madhyadeshiye" meaning who belonged to central part of the country.
Currently, members of the community are spread throughout India and overseas as well. They have earned respect in the society due to their tenderness and ability to make gold out of wastes that means they are highly skilled businessmen.
These are the some surnames generally used by our Vaisya Madhesia Samaj are as follows Shah, Shaw,Sah,Gupta,Prasad,Kanu,Madhesiya,Seth,Kannaujiya,Rai BahadurAgarwal etc.
There are many deities which are worshipped among Madhesiya Kanu and other vaisya community. Prominent among them are:Sri Baba Ganninath Sri Ganninath is one of the 14 deities of the community and great saint of the communitySome of them are Sri Govind Ji,Braham Baba, Mata sati.etc.
साभार : http://baniyasamaj.blogspot.in,
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