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Monday, July 28, 2014

Shaheed Major Vivek Gupta - शहीद मेजर विवेक गुप्ता





Maj Gupta and six others from his team captured the Pt 4950 peak at Tuloling before they were killed in fierce combat. 


The bodies of the soldiers from the 2nd Rajputana Rifles, who were killed on the icy heights on the intervening night of June 12 and 13, were flown to Delhi and accorded a ceremonial farewell. 


Among those to bid farewell were several retired officers from the same unit including Lt Gen O P Kaushik, former Colonel of the regiment. “Vivek was an extremely endearing young man. Exceptionally tall and handsome, he had a certain dynamism. He has done the regiment proud and his sacrifice is in line with our tradition. The Second is the first regiment in the Indian Army to be awarded the Victoria Cross. In the 1965 conflict, we snatched Dera Baba Nanak. Exceptionally difficult tasks have been entrusted to our boys and we have always proved our mettle,” said Lt Gen Kaushik. The 2nd Rajputana Rifles is the sixth highly decorated unit of Indian Army.



FAREWELL HERO: Capt Jayashree saluting the mortal remains of her husband, Major Vivek Gupta, who was killed in the Army operations in the Kargil sector. Photo: Subhendu Ghosh


While a grief stricken Capt Jayshree barely contained her sorrow, it was left to Maj Gupta’s relatives to remember him. “Vivek had last come on leave in May. His unit was in the Valley but it was only after he returned that they were asked to move to Kargil. Only one word can describe him: he was a dynamite,” said his cousins Ravi and Shailendra Singhal. 

After all the ceremonies, she came forward slowly, saluted him in an immaculate drill, laid a wreath, said a silent goodbye and was gone. Her personal moments with him would be reserved for later.

What was going on in the mind of Captain (Dr) Rajshree Gupta as she paid respects to her husband Major Vivek Gupta of Rajputana Rifles who laid down his life fighting in Kargil on June 14 can be well imagined, but she never let her composure desert her.


Shaheed Major Vivek Gupta's wife paying tearful tributes to her husband

MAJOR VIVEK GUPTA

2 Rajputana Rifles

Doon Devil

MISSION: Like so many company commanders, Gupta was leading a dangerous uphill assault against entrenched intruders. He captured two bunkers before being cut down. 

Only a few days ago Major Vivek Gupta was having the time of his life in Drass. He said as much in a letter of June 8 to his father, Lt-Colonel (retd) B.R.S. Gupta. "You should feel proud of me ... I am contributing something for the nation in this uniform I have worn ... being a company commander at this time is the greatest experience one can have." Ironically, the elder Gupta was to receive the letter in his Dehradun house only at noon on June 17. By then the Army band had played out Dead Body Slow March. And his son's last rites had been completed, just half an hour before.

Vivek died on June 12 after capturing two difficult posts the same day on the wind-swept, icy slopes of the Drass sector. He perished on the battlefront when a fusillade of bullets from the Pakistanis tore open his torso, but not before he and his company men had slain seven members in the enemy camp. Death came swiftly, said a colleague, who saw Vivek mowed down by that first burst from a bunker and from the hills. Death can be very lonely in Kargil. The major lay in the snow alongside dead colleagues for two days. It was only on June 15 that a team could keep the enemy fire at bay and secure his body from the slopes. It ended, literally, exactly seven years of army life for "Vicky" who was commissioned in the 2nd Rajputana Rifles on June 13, 1992.

Vivek Gupta hadn't made up his mind about joining the army until he was settled in Dehradun after his father retired from the forces. He would chat up cadets and go swimming at the Indian Military Academy and soon made up his mind about which way his future would go. Says Anup Kumar, a close friend who edits a Dehradun-based monthly: "It was during those days in Dehradun when he had just entered college that we talked a lot about his joining the army. He knew that was the life for him."

In his hometown Dehradun, friends, relatives and armymen gathered to pay their last respects to a man they admired in life and death. Even his estranged doctor wife, Captain Rajshree Bisht, was there, sobbing quietly and saluting the man she had married in June 1997.

A National Defence Academy graduate, Vivek once told his father that he wasn't just interested in "counting socks and trousers" in the army. That was in response to his father's attempts to get him a posting in one of the safer divisions like Ordnance. "I am proud of my son, in my eyes he died a hero," wept the senior Gupta. Vivek would have liked that

Sayantan Chakravarty 

Courtesy: INDIA TODAY

Nation's second highest wartime gallantry award MAHA VIR CHAKRA was awarded to Major Vivek Gupta on 15th August 1999. 



SAABHAAR : Kargil War Heroes  http://ikashmir.net/ 

Thursday, July 24, 2014

वैश्य समाज के बारे में भ्रान्तिया

हमारे वैश्य समाज के बारे में लोगो को बहुत सारी भ्रान्तिया व भ्रम हैं. दूसरी जाति के लोगो में  तो है ही, अपितु अपने वैश्य समाज के लोगो को पूरी जानकारी नहीं हैं. एक दिन में कुछ लोगो के बीच में बैठा हुआ था, वंहा पर हमारे समाज के काफी लोग थे, वंहा पर एक सज्जन अग्रसेन भवन के कार्यक्रम के पत्रक बाँट रहे थे. मुझे उन्होंने वह पत्रक नहीं दिया, केवल समाज के जो धनी-मानी लोग हैं उन्हें दिया. कोइ बात नहीं, मैं वह पत्रक पढने लगा, उस पत्रक में मुझे नगर के केवल अग्रवाल समाज के लोगो के नाम नज़र आये, मैंने  उन सज्जन से  पूछा की इसमें जैन समाज के लोगो के नाम नहीं दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने छुटते ही बोला, कि जैन बनिए नहीं होते. मैंने प्रतिवाद किया की जैन समाज भी वैश्य समाज का ही एक अंग हैं. और अधिकतर जैन भी अग्रवाल ही हैं, उनमे और हम में रोटी बेटी का सम्बन्ध हैं. इससे वे  महानुभाव नाराज हो गए, और मुझे खरी खोटी सुनादी. मैंने चुपचाप वंहा से निकलने में ही भलाई समझी. 

एक बार ऐसे ही मैं कही बैठा हुआ था, तो हमारे प्रधानमन्त्री जी की जाति का जिक्र आ गया. मैंने बोला की मोदी जी तैल्लिक वैश्य हैं, और गुजरात में उनकी जाति को मोढ घांची कहा जाता हैं. तो एक सज्जन बोले की वो तो पिछड़ी जाति से हैं, मैं कहने लगा की वैश्य - बनियों की अधिकतर जातिया पिछडो में आती हैं. तो वो बोले अगरवाल तो अगड़े होते हैं. और बनिए केवल अग्रवाल होते हैं, मैंने कहा की वैश्य समुदाय के अन्दर करीब ३५० जातिया हैं. और करीब २० करोड़ आबादी हैं तो वो बोले ऐसा हो ही नहीं सकता. फिर मैंने उन्हें अलग अलग वेब-साइट व पत्रिकाए दिखाई, तब जा कर वे माने. 

एक जगह फिर ऐसा ही वाकया हुआ. मेरे एक दोस्त जो की जाट हैं. वे मुझे कहने लगे की तुम तो अपना उपनाम गुप्ता लिखते हो, तुम्हारा भाई अग्रवाल लिखता हैं और तुम्हारे पिता गर्ग लिखते हैं. ये क्या चक्कर हैं, मै उसे बोला कि गर्ग हमारा गोत्र हैं, अग्रवाल हमारी जाति है, और चूँकि हम लोग वैश्य हैं, इसलिए हर वैश्य को गुप्त या गुप्ता लिखने का अधिकार हैं, क्योंकि गुप्त उपनाम केवल वैश्यों के लिए प्रयुक्त हुआ हैं. इसलिए मैं गुप्ता लिखता हूँ. तब जा कर हमारे जाट देवता शांत हुए. वो कहने लगे  तुम बनियों की माया कोई नहीं समझ सका आज तक. भगवान् बचाए तुम बनियों से, तुमसे तो मुग़ल बादशाह भी पार नहीं पा सके. मैं हंसने लगा और हंसता चला गया...वन्देमातरम....   

Thursday, July 17, 2014

AMIT SHAH - अमित शाह


अमित शाह (जन्म: 22 अक्तूबर 1964) एक भारतीय राजनेता और भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष हैं। वे भारत के गुजरात राज्य के गृहमंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के महासचिव रह चुके हैं। वे गुजरात सरकार मेँ विधायक है।

शाह का जन्म 22 अक्तूबर 1964 को महाराष्ट्र के मुंबई में एक व्यापारी के घर हुआ था। वे गुजरात के श्री नवगम विसानगर बनिया   वैश्य रईस परिवार से ताल्लुक रखते है। मेहसाणा में शुरुआती पढ़ाई के बाद बॉयोकेमिस्ट्री की पढ़ाई के लिए वे अहमदाबाद आए, जहां से उन्होने बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी की, उसके बाद अपने पिता का बिजनेस संभालने में जुट गए। राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक बिजनेस संभालते थे। वे बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हुयी। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना।

राजनीतिक करियर

शाह 1986 में भाजपा में शामिल हुये। 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। दूसरा मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए। 2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 2003 से 2010 तक उन्होने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला। 

2012 में नारनुपरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने तीन बार सरखेज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार क्रमश: 1997 (उप चुनाव), 1998, 2002 और 2007 से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाते हैं। शाह तब सुर्खियों में आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हुई थी। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी। हालांकि 15 मई, 2014 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शाह के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।

एक समय ऐसा भी आया जब सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें 25 जुलाई 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया। सोलहवीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थी। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा तब लगा जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत ‌थी। इस करिश्माई जीत के‌ शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रदान किया गया।

चुनावी उपलब्धियाँ

1989 से 2014 के बीच शाह गुजरात राज्य विधानसभा और विभिन्न स्थानीय निकायों के लिए 42 छोटे-बड़े चुनाव लड़े, लेकिन वे एक भी चुनाव में पराजित नही हुये।गुज रात के विधान सभा चुनाव मे उनकी उपलब्धियां इसप्रकार है-

चुनाववर्षनिर्वाचन क्षेत्रपरिणाममत % मत प्रतिशतस्त्रोत

गुजरात विधानसभा चुनाव (उप-चुनाव)) 1997 सरखेज विजयी 76839 56.10% 
गुजरात विधानसभा चुनाव 1998 सरखेज विजयी 193,373 69.81% 
गुजरात विधानसभा चुनाव 2002 सरखेज विजयी 288,327 66.98% 
गुजरात विधानसभा चुनाव 2007 सरखेज विजयी 407,659 68.00% 
गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 नरनपुरा विजयी 103,988 69.19% 

व्यक्तिगत जीवन

शाह का विवाह सोनल शाह से हुई, जिनसे उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम जय है। वे अपनी माँ के बेहद करीब थे जिनकी मृत्यु उनकी गिरफ्तारी से एक माह पूर्व 8 जून 2010 को एक बीमारी से हो गयी।

साभार: विकिपीडिया