“मनु-स्मृति”में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के पूर्व ही ब्रम्हाजी ने मनुष्य जाति के लिए कुछ जीवन मूल्यों को निर्धारित करके उपदेश के रूप में महाराज मनु को प्रदान किया, जिसे महर्षि भृगु ने उन्हीं के शब्दों में धर्मशास्त्र के रूप में अन्य ऋषियों को प्रदान किया। सात्विक जीवन यापन एवं स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था हेतु एक नियमावली तय की गई थी जिसमे कहा गया था…..
धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह
धी विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्
धृतिः – धैर्य; प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य न खोना।
क्षमा – बिना बदले की भावना से किसी को भी क्षमा करना।
दमो – मन को नियंत्रित कर मन का स्वामी बनना।
अस्तेय – किसी अन्य के स्वामित्व की वस्तुओं एवं सेवा का
उपयोग न करना या चोरी न करना।
शौचं – विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता।
इन्द्रिय निग्रह- इन्द्रियों को नियंत्रित करके स्वतंत्र होना।
धी। – विवेक, जो कि मनुष्य को सही एवं गलत में
अंतर बताये।
विद्या – भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान।
सत्य – जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना।
अक्रोधो- क्रोध न करना क्योंकि क्रोध से हिंसा पैदा होती है।
यही वे दस नियम थे जिनका अक्षरशः नियम से पालन करने के कारण हम ‘नेमा’कहलाये।
(2)हमारी गौत्र व्यवस्था………..
“नेमा” और “नीमा” वैश्य समुदाय की उपजातियाँ हैं जो मुख्यतः भारत के मध्यप्रदेश में पायी जाती हैं।कहते हैं यह नाम हमें हमारे पूर्वज राजा “निमी” से प्राप्त हुआ है।पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महिर्षि परशुराम क्षत्रियों का नाश कर रहे थे, तब महिर्षि भृगु ने लगभग 30 क्षत्रियों को अपने आश्रम में पनाह दी और अपने गुरुकुल में उन्हें स्वयं की रक्षा करने के लिए वणिक जाति के गुणधर्मों की शिक्षा-दीक्षा दी।भृगु ऋषि ने अपने इन शिष्यों को 14 ऋषियों में नियोजित किया और इन्हीं ऋषियों के नाम के अनुसार नेमाओं को 14 गोत्रों में वर्गीकृत किया गया है………
1. सेठ मोरध्वज
2. पटवारी कैलऋषि
3. मलक रघुनंदन
4. भौंरिया वासन्तन
5. खिरा बालानंदन
6. ड्योढ़िया शांडिल्य
7. चंदरेहा संतानी तुलसीनंदन
8. ट्योंठार गर्ग
9. रावत नंदन
10. भंडारी विजयनंदन
11. खंडेरेहा सनकनंदन
12. चौसहा शिवनंदन
13. किरमनिया कौशलनंदन
14. औगान वशिष्ठ
नीमा और नेमाओं की अन्य उपाधियों में लगभग एक समान गोत्रों का ही प्रचलन है जिसका उपयोग वैवाहिक परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। मध्यभारत में ज्यादातर लोग नाम के साथ ‘नेमा’ कुलनाम प्रयोग करते हैं जबकि यही मालवा एवं गुजरात में ‘नीमा’ शब्द से उच्चारित किये जाते हैं।
(3) ऐतिहासिक पृष्ठभूमी………
इतिहासकारों ने जितनी सजगता एवं तत्परता राजवंशों के लेखन में दिखायी है उतनी जातीय इतिहास लेखन में नहीं। यही कारण है कि जातीय एवं उपजातीय इतिहास विशुद्ध रूप से सामने नहीं आ पाया।नेमा मुख्यतः व्यापार एवं वाणिज्य के लिए जाने जाते रहे हैं। राजवंशों के शासनकाल में जब विभिन्न प्रकार की मुद्राओं का चलन था तब ये ‘सेठ’ और ‘महाजन’ कहे जाते थे।अलग-अलग व्यवसाय के अनुसार आड़त का धंधा करने वाले आड़तिया, सोने-चाँदी का धंधा करने वाले सराफ, मंडी में क्रय विक्रय की मध्यस्थता करने वाले ठडवाल, औषधि विक्रेता महाजन पंसारी कहलाते थे। राज्य तथा जागीरों की प्रशासनिक व्यवस्था से सम्बद्ध महाजनों को वेतन के बदले भूमि दी जाती थी तो कुछ कृषि कार्य भी करने लगे थे। वैश्यो की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। जागीरों की प्रशासन व्यवस्था चलाने, सामंतों को ऋण प्रदान करने में, ब्रिटिश सरकार को खिरज चुकाने तथा राजपूतों को अपनी सामाजिक रूढ़ियों और गौरव का निर्वाह करने के लिए समय समय पर सेठ साहूकारों की शरण लेना पड़ता था। इससे वैश्य महाजनों का सामाजिक और राजनितिक रुतबा भी था।
(4)मूल निवास और पलायन……………
नेमाओं की उत्पत्ति जयपुर,राजस्थान रियासत मानी जाती है।18 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध से ब्रिटिश संरक्षण की स्थापना तक अंतरराज्यीय युद्धों, उत्तराधिकार संघर्ष, महाराणा और उसके सामंतो के पारस्परिक संघर्ष के चलते राज्य की आर्थिक स्थिति अस्तव्यस्त हो गयी थी और पारंपरिक व्यवसाय करना पहले जैसी मर्यादा न रह गया था। प्रमाण मिलता है कि राजपूतों के पतन के बाद खिन्न,एक विशाल वैश्य समुदाय पलायन करके मध्यभारत आ गया। ये लोग शांतिपूर्ण एवं खुशहाल जीवन जीना चाहते थे तो इन्होंने गोंडवाना के उपजाऊ क्षेत्र, जो कि नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के आसपास थे को चुना और आकर बस गए।उपनिवेशवाद के दौर में विश्व युद्ध के दौरान अंतर्देशीय विद्रोह के बाद कई लोग आफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, मॉरिसस आदि देशों में चले गए।नतीजतन आज नेमा पूरी दुनिया में मौजूद हैं। उन्होंने अपने रहने और भाषा के हिसाब से अपनी संस्कृति को बदला है किन्तु आज भी उनकी विरासत के मद्देनजर कहा जाता है कि नेमा पूरी दुनिया में कहीं भी रहें उनका एक न एक रिश्तेदार नरसिहपुर का अवश्य ही रहता है।
(5) सामाजिक भेद……बीसा, दसा और पचा समाज………
नेमा उपजाति की संख्या 10 से 15 हजार होने का अनुमान है जिसमे अधिकांशतः सागर, दमोह, नरसिंहपुर, सिवनी जिलों में रहते है। कुछ नेमा उपजातियां मध्यभारत के निमार से बुंदेलखंड में आ बसी हैं जो बगैर पानी में पकाया हुआ भोजन करती हैं उन्हें गोलापूर्व बनिया कहा जाता है। ये मुख्यतः हिन्दू हैं,जैनों की मिश्रित जातियां।
अन्य वैश्य समाजों की तरह नेमा भी बीसा, दसा, और पचा शाखाओं में बंटे हुए हैं। राजपूत काल में समाज उपेक्षित जातियों के लोगों ने जैन धर्म अंगीकार कर लिया था। धीरे-धीरे जाति मिश्रण प्रक्रिया के फलस्वरूप इनमें शाखा,प्रशाखा, गौत्र आदि के भेद उत्पन्न हो गए थे। जातिवादी अलगाव की भावना प्रबल होती गयी। ऊँच-नीच का सामाजिक भेद-विभेद विवाह संबंधों में मापा जाने लगा था, जो कि मान्यता स्वरुप आज भी जारी है। बीसा शुद्ध रूप,जबकि दसा अनियमित समुदाय माना जाता है।महाजनों द्वारा अन्य जाति की स्त्रियों से उत्पन्न सदस्य अर्धजातिक होते थे, जिन्हें पंचाल या पांचड़ा(पचा) कहा जाने लगा था। कुछ पीढ़ियों के बाद पूर्वजों का विवरण भुला दिया गया फलतः कुछ पचा भी दसा समाज में मिश्रित हैं।दसा और बीसा एक साथ भोजन तो कर सकते हैं किन्तु आपस में विवाह नहीं कर सकते ऐसी मान्यता बना दी गई थी। यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि आज की अपेक्षा हमारे पूर्वज अधिक धार्मिक थे किन्तु वे सामाजिक मामलों में पूर्णतया बुद्धि, विवेक और सिद्धांतवादी थे। आज जैसी संकीर्णता उनमें न थी। उच्च गुण,कर्म, स्वभाव वाली कन्या के लिए वैसा ही वर ढूंढा जाता था। वर्ण में गुणों का मेल होना आवश्यक था, जाति-उपजाति और जो ये शाख़ाएँ हैं, बीसा, दसा, पचा उनमें नहीं।कन्याओं के लिए ही नहीं,लड़कों के लिए भी उच्च गुणों वाली लड़की ढूंढी जाती थी फिर वह भले ही निम्न कुल की क्यों न हो।प्रसन्नता पूर्वक इन विवाहों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती थी और इससे व्यक्ति की सामाजिक वरीयता और प्रतिष्ठा में कोई अंतर नहीं आता था। कहने का तात्पर्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आत्म विश्लेषण और सामाजिक विश्लेषण दोनों आवश्यक हैं।
(6) वर्तमान परिदृश्य………..
वर्तमान में नेमा अपनी ईमानदारी, कर्मठता और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं।आज वे विभिन्न कार्यक्षेत्रों में अग्रणी हैं। वकालत के क्षेत्र में, बैंकिंग में, चिकित्सा के क्षेत्र में, इंजिनियर और साफ्टवेअर प्रोफेशनल के रूप में हर जगह नेमा छाये हुए हैं।कुछ प्रतिष्ठित परिवार है जिन्होंने समाज को प्रभवित किया है जिनमें भोपाल का लहरी परिवार, सागर का चौधरी परिवार, नरसिंहपुर का बड़ा घर, मंझला घर, संझला घर, नन्हा घर,पुरावाले परिवार, नाजर, खिरा एवं खुरपे परिवार,वेदू का चौधरी परिवार जबलपुर का गुप्ता परिवार, सतना का नायक परिवार, करेली के भौंरिया,सेठ एवं मंदिर वाला परिवार, मेख का बाखर परिवार, पनारी का मोदी परिवार इत्यादि। आज नेमा भारत भर में हैं। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर, जबलपुर, सतना, सिवनी, घंसौर, छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, सागर, भोपाल में ये बहुतायत में निवासरत हैं।
हमारी आज की पीढ़ी को भूतकाल से अवगत कराने के लिए उक्त सभी जानकारियाँ इकट्ठी की गयी हैं। कई जानकारियाँ दोषपूर्ण भी हो सकती हैं किन्तु मुख्य उद्देश्य ये है कि हम हमारी विरासत से कौन सी अच्छी बातों को अपने वर्तमान परिवेश में स्थान दें और भावी पीढ़ी के चरित्र निर्माण और सामाजिक निर्माण में कौन सी बातों का अहम स्थान होना चाहिए इसका विश्लेषण कर सकें, आत्ममंथन कर सकें।समीक्षा अवश्य कीजियेगा, कोई त्रुटि हो तो वो भी अवश्य कहियेगा………
साभार:सिद्धार्थनेमा, http://nemasamajindia.com
आपकी जानकारी कलोप कल्पित कथानक जैसी है ।संदर्भ ग्रंथ सूची ना होने से प्रमाणिक जानकारी नही है ।
ReplyDeleteकृपया बताएं की कोई व्यक्ति बिसा है या दसा, कैसे जान सकते हैं ?
ReplyDeleteअब जब जाट गुर्जर जैसी जातिया भी खुद को क्षत्रिय कहने लगी है,तोह हम क्यूँ पीछे रहे। हमने ठेका नही ले रखा है धर्म का।
ReplyDeleteहम नीमा निमिवंशी राजपूत है। यह अटल सत्य है,कोई भी अपनी जाति को बदलना नही चाहता।
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