साभार : दैनिक जागरण
प्रिय मित्रो यह चिटठा हमारे महान वैश्य समाज के बारे में है। इसमें विभिन्न वैश्य जातियों के बारे में बताया गया हैं, उनके इतिहास व उत्पत्ति का वर्णन किया गया हैं। आपके क्षेत्र में जो वैश्य जातिया हैं, कृपया उनकी जानकारी भेजे, उस जानकारी को हम प्रकाशित करेंगे।
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Wednesday, September 27, 2017
Tuesday, September 26, 2017
भारत के सौरव कोठारी ने पूर्व विश्व चैंपियन को हराकर जीता स्वर्ण पदक
कोठारी का क्यूस्पोर्ट में इस साल यह पहला खिताब है, जिसे जीतने के लिए उन्होंने धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया।
एशगाबात (तुर्कमेनिस्तान), पीटीआइ। भारत के बिलियर्ड्स खिलाड़ी सौरव कोठारी ने एशियन इंडोर खेलों में पूर्व वर्ल्ड बिलियर्ड चैंपियन थाईलैंड प्राप्रुत चैतानासकुन को 3-1 से पराजित कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। कोठारी का क्यूस्पोर्ट में इस साल यह पहला खिताब है, जिसे जीतने के लिए उन्होंने धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया।
कोठारी ने पहले दो फ्रेम 100-80 और 101-0 से जीते। लेकिन प्राप्रुत ने तीसरा फ्रेम 101-29 से अपने नाम किया। चौथे फ्रेम में प्राप्रुत की गलती का फायदा उठाते हुए कोठारी ने 101-88 से बाजी मारकर मैच जीत लिया।
कोठारी ने तीसरे गेम में अच्छा मौका गंवाया और प्राप्रुत को जीतने का अवसर उपलब्ध कराया, जिसकी मदद से वह लगातार 57 अंक लेने में सफल रहे और इस गेम को उन्होंने 101-29 से अपने नाम किया।
इसके बाद कोठारी ऑफ गार्ड पाए गए और प्राप्रुत के अच्छा खेल दिखाने से उनपर दबाव आ गया। प्राप्रुत ने अच्छी शुरुआत की लेकिन चौथे गेम में दोनों खिलाड़ियों ने मौके गंवाने का काम किया। प्राप्रुत के पास चौथे गेम को जीतकर मैच को अगले गेम में ले जाने का मौका था, लेकिन उन्होंने अप्रत्याशित गलती करते हुए कोठारी को जीत सौंप दी। इसके बाद कोठारी ने शांत स्वभाव दिखाते हुए इस गेम को 101-88 से अपने नाम किया और स्वर्ण पदक भी जीत लिया।
साभार: दैनिक जागरण
Sunday, September 17, 2017
Saturday, September 16, 2017
Thursday, September 14, 2017
Wednesday, September 13, 2017
ASHA KHEMKA - BUSINESS WOMEN OF THE YEAR - आशा खेमका
नहीं आती थी अंग्रेजी, आज बिहार की इस बेटी को पूरी दुनिया कर रही सलाम
बिहार के सीतामढ़ी की रहनेवाली आशा खेमका को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित बिजनेस वूमेन पुरस्कार से नवाजा गया है। आशा की शादी 15 साल की आयु में ही हो गई थी। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी।
बिहार की एक बेटी ने दुनिया में फिर से राज्य का नाम रौशन किया है। सीतामढ़ी की रहनेवाली भारतीय मूल की महिला शिक्षाविद् को ब्रिटेन का प्रतिष्ठित एशियन बिजनेस वूमेन पुरस्कार दिया गया है। 65 वर्षीय आशा को शुक्रवार को यहां एक समारोह में सम्मानित किया गया।
इससे पहले बिहार के सीतामढ़ी में जन्मीं आशा वर्ष 2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर' का सम्मान भी पा चुकी हैं। इससे पूर्व भारतीय मूल की धार स्टेट की महारानी लक्ष्मी देवी बाई साहिबा को 1931 में डेम पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
नहीं आती थी अंग्रेजी
सीतामढ़ी की रहने वाली आशा खेमका का अंग्रेजी से कोई सरोकार नहीं रहा था। आशा खेमका की सफलता की कहानी भी काफी दिलचस्प है। शादी के बाद आशा जब ब्रिटेन गईं, तो उसे अंग्रेजी तक नहीं आती थी। लेकिन अाशा ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी की पढ़ाई शुरु कर दी।
इसके बाद फिर क्या था खेमका ने जज्बे के दम पर अंग्रेजी को अपने वश में कर लिया।लेकिन उसने अपनी काबिलियत से अपना यह मुकाम तय किया है। 65वर्षीय आशा को शुक्रवार को यह पुरस्कार दिया गया है। आशा खेमका ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
दिलचस्प रहा है सफलता का सफर
आशा 13 वर्ष की कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। 15 साल की उम्र में आशा की शादी डॉक्टर शंकर अग्रवाल से हो गयी। घर परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद घर परिवार संभालते 25 की उम्र में वो ससुराल पहुंच गयी।
डॉक्टर पति ने इस बीच इंगलैंड में अपनी नौकरी पक्की कर ली थी। फिर वो अपने पति के पास अपने बच्चों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं। अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं होने के कारण उसे काफी परेशानी होती थी। तब आशा ने टीवी पर बच्चों के लिए आने वाले शो को देख अंग्रेजी सीखने शुरू किया।
टूटी-फूटी अंग्रेजी से पाया अंग्रेजी पर फतह
शुरुआत में टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही सही, साथी युवा महिलाओं से बात करती थीं। लेकिन वो इससे परेशान नहीं होती और फिर वो हर दिन आगे बढ़ती गयी। इससे उसका आत्मविश्र्वास बढ़ता गया।
फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों बाद कैड्रिफ विवि से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर योगदान दिया। अब वो इसी कॉलेज की प्रिसिंपल हैं।
यह विश्वास करना कि इतनी कम शिक्षा के बावजूद कोई कैसे ऐसी सफलता हासिल कर सकता है आसान नहीं है लेकिन आशा खेमका की कहानी ही इस सवाल का जवाब है। आशा सीतामढ़ी बिहार की निवासी हैं। पुराने ज़माने में ग्रामीण इलाकों में जब लड़कियों का मासिक-धर्म शुरू होता था, तब उन्हें उनके माता-पिता स्कूल से निकाल दिया करते थे। आशा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। तेरह वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़ देने के बाद उनकी शादी पंद्रह वर्ष की उम्र में एक 19 वर्षीय लड़के के साथ कर दी गई। उनके पति शंकर खेमका उस समय एक मेडिकल के विद्यार्थी थे। 25 वर्ष की उम्र में वे अपने बच्चों और पति के साथ इंग्लैंड चली गईं। यह परिवर्तन उनके लिए बहुत बड़ा था। कुछ समय के बाद वे उस माहौल में ढलने सी लगी।
वे अपने बच्चों के साथ किड्स शो देखती और कुछ-कुछ अंग्रेजी समझने का प्रयास करती। अपनी स्पोकन स्किल को बढ़ाने के लिए साहस जुटाकर वे दूसरे बच्चों की माताओं से अंग्रेजी में बात करने की कोशिश करतीं। लगातार कोशिश और अंग्रेजी सीखने का उनका हठ ही उनके बदलाव का कारण बना। कुछ सालों में आशा धारा-प्रवाह अंग्रेजी बोलने लगी। बाद में जब उनके बच्चे स्कूल जाने लगे तब उन्होंने यह निश्चय किया कि वे भी आगे पढ़ाई करेंगी। उन्होंने बिज़नेस डिग्री के लिए कार्डिफ यूनिवर्सिटी में दाख़िला लिया।
आशा एक शिक्षाविद बनीं और वे व्याख्याता के तौर पर काम करने लगीं। साल 2006 में आशा ने वेस्ट नोटिंघमशायर कॉलेज, जो यूके का जाना-माना कॉलेज है, में प्रिंसिपल और सीईओ का पद संभाला। 2008 में डेम आशा ने द इंस्पायर एंड अचीव फाउंडेशन की स्थापना की। इसके द्वारा, जिन्होंने कोई भी शिक्षा या ट्रेनिंग नहीं ली है ऐसे युवा लोगों के जीवन को संवारने का प्रयास किया जाता है और लोगों की जरूरत के हिसाब से स्पेशल वॉकेशनल प्रोग्राम बना कर हजारों लोगों की मदद भी करता है।
69 वर्षीय आशा खेमका को 2013 में उनके काम के लिए ब्रिटेन टॉप सिविलियन अवार्ड से सम्मानित किया गया। उसी साल उन्होंने प्रतिष्ठित बिज़नेस वुमन का ख़िताब भी जीता। खेमका ने बच्चों के टेलीविज़न शो के जरिये और दूसरी माताओं के साथ बातचीत कर अपनी अंग्रेजी सुधारी। उन्हें कोई भी अवसर आसानी से नहीं मिला परन्तु उन्होंने अपने रास्तों में आए सारे अवसरों को अपना बना लिया।
साभार: दैनिक जागरण, केन फोलिओस हिंदी.
AJAY AGRAWAL - MAX MOBILE - अजय अग्रवाल मैक्स
9वीं फैल होने के बाद छोड़ी पढ़ाई, शुरू किया कारोबार, 10 वर्ष के भीतर ही बना ली 1500 करोड़ की कंपनी
ब्रांड का नाम तभी बड़ा होता है जब उसके प्रचार के लिए बड़े से बड़े लोकप्रिय चेहरों का इस्तेमाल किया जाए। जब महेंद्र सिंह धोनी ने साल 2009 में मैक्स मोबाईल के साथ करार कर उनके ब्रांड एम्बेसडर बने तब सभी लोग जान गए कि वे प्रोडक्ट की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होकर रहेंगे। टी-20 विश्व कप के दौरान इसका प्रचार -प्रसार इतना जोर-शोर से हुआ कि यह सभी की नजरों में आ गया और उसकी बिक्री में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई जैसा कि अजय अग्रवाल चाहते थे। परन्तु इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बिज़नेस की फील्ड में महारत हासिल की।
मैक्स मोबाइल के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अजय अग्रवाल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने चौदह वर्ष की उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। चिल्ड्रन अकादमी स्कूल में पढ़ते हुए जब वे नवमीं कक्षा में फेल हो गए तब उन्होंने इस औपचारिक शिक्षा प्रणाली को छोड़ने का तय किया। बाद में वे मुंबई स्थित अपने पिता के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेड बिज़नेस के साथ काम करने लगे। इसलिए नहीं कि कोई आर्थिक संकट था या परिस्थितियों के दबाव में आकर, बल्कि अजय को बिज़नेस से लगाव था और वे अपना पूरा समय इसे देना चाहते थे।
वे अपने पिता के बिज़नेस में एकाउंट्स सँभालते थे और उन्हें इसके लिए महीने में 4000-5000 रूपये दिए जाते थे। वे समझते थे कि आज के तकनीकी क्रांति के समय वे अपने पिता की मदद करें और उनके बिज़नेस को बढ़ाने के लिए म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, मोबाइल फ़ोन एक्सेसरीज, गैजेट्स आदि की शुरुआत करें। बिज़नेस को सीखने और समझने के लिए उन्होंने मलेशिया और चीन का दौरा भी किया।
2004 में अजय ने यह निश्चय किया कि वे उत्पादन के क्षेत्र में हाथ आज़माएंगे और उन्होंने मोबाइल एक्सेसरीज जैसे चार्जर, बैटरीज, इयरफोन आदि का उत्पादन करना शुरू किया। पहले साल उनकी कमाई पाँच लाख रूपये हुई जो अजय को यह महसूस कराने के लिए काफ़ी था कि इस इंडस्ट्री में क्षमता और अवसर दोनों हैं। उन्होंने अपनी सारी बचत, लाभ और अपने दोस्तों, परिवार वालों और पिता से उधार लेकर बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू किया। 2006 में उनका लाभ 50 करोड़ रूपये था। सभी के लिए यह आश्चर्य का विषय था कि उन्होंने दो वर्ष के भीतर ही 5 लाख रूपये से 50 करोड़ बना लिए।
उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया कि वे मोबाइल फ़ोन का उत्पादन शुरू करेंगे और उन्होंने 2008 में मैक्स मोबाइल की नींव रखी। उस समय बहुत कम हीभारतीय इस उद्योग में थे। शुरू के 6 महीने उन्होंने अपने वितरण चैनल्स और ग्राहकों से फीडबैक लेने में लगा दिया। इस फीडबैक के आधार पर उन्होंने अगले 6 महीनों में मोबाइल के 20 मॉडल्स बाजार में उतारे। उन्होंने दो सिम स्लॉट वाले फ़ोन लांच किये जो उस समय नया-नया था। यह लोगों के बीच बहुत ही लोकप्रिय रहा।
बिज़नेस करते-करते उन्होंने यह सीखा कि अगर उसमें उपयोग के सामान की कीमत कम हो जाये तो लाभ ज्यादा मिलेगा। शुरू में 95% पुर्जा आयात किया जाता था पर धीरे-धीरे वे देश के भीतर ही इन सामानों को खरीदने लगे और बाद में तो अजय लगभग 50% पुर्जों का उत्पादन खुद ही करने लगे। अजय ने अपनी पहली फैक्ट्री मुंबई में शुरू की, उसके बाद उन्होंने हरिद्वार में खोली और उनकी तीसरी फैक्ट्री 2009 में फिर से मुंबई में ही शुरू की। धीरे -धीरे पूरे भारतीय बाज़ार में उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। अब इनके उत्पाद की बिक्री भारतीय उप महाद्वीप, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में भी शुरू हो गई। अब वे भारतीय बाज़ार के धुरंधर खिलाड़ी बन चुके हैं। उनके फ़ोन की 80% बिक्री उनके फीचर फ़ोन की वजह से हुई है।
मैक्स मोबाइल को उस व्यक्ति ने ईजाद किया जो हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के पैमाने पर दसवीं कक्षा में पढ़ने के काबिल नहीं थे। उनका लगाव बिज़नेस से था और वे उससे ज्यादा लाभ कमाना चाहते थे और उन्होंने यह कर दिखाया। अजय की कंपनी का यह विश्वास है कि 2017 के अंत तक उनका टर्न-ओवर 1500 करोड़ रूपये का हो जायेगा।
साभार: ntnews
http://ntinews.com/9th-class-failure-made-1500-crore-business-empire
Tuesday, September 12, 2017
RITU MAHESHWARI IAS - देश में अरबों रुपयों की बिजली चोरी रोकने का रास्ता दे गई यह महिला आईएएस
गाजियाबाद की डीएम रितु माहेश्वरी।
देश में हर साल करीब 64,000 करोड़ रुपये की बिजली चोरी हो जाती है। रितु माहेश्वरी नाम की एक महिला नौकरशाह सरकारी खजाने को हो रहा इतना बड़ा नुकसान रोकने में दिलोजान से जुट गईं। साल 2011 में उनकी नियुक्ती कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाइ कंपनी में हुई। तब से उन्होंने कंपनी के एक तिहाई ग्राहकों के यहां नए स्मार्ट मीटर लगा दिए। ये मीटर बिजली खपत को डिजिटली रिकॉर्ड करते हैं जिससे बिजली वितरण प्रणाली में पल-पल हो रहे घपले उजागर हो रहे हैं। लेकिन, महज 11 महीने के बाद ही उनका ट्रांसफर गाजियाबाद हो गया।
पिछले छह साल से भ्रष्टाचार और स्त्रि विरोधी माहौल के खिलाफ जंग लड़ रही 39 साल की रितु बड़े पैमाने पर हो रही बिजली चोरी को रोकने के लिए टेक्नॉलजी की जरूरत पर जोर दे रही हैं। कुछ दिनों पहले तक वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को घाटे से उबारकर करोड़ों घरों, किसानों और फैक्ट्रियों को लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिशों को बल दे रही थीं।
उन्होंने बताया, 'मैंने बिजली चोरी करनेवाले ग्राहकों के विरोध के बावजूद 5 लाख में से 1 लाख 60 हजार मीटर बदल दिए। इससे शहर (कानपुर) में बिजली चोरी की घटना बहुत कम हो गई जो पहले 30 प्रतिशत थी।' बिजली मंत्रालय की वेबसाइट से पता चलता है कि रितु की रणनीति से कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाइ कंपनी या केस्को का वितरण घाटा आधा होकर 15.6 प्रतिशत पर आ गिरा।
बिजली चोरी के खिलाफ अभियान छेड़ने का नतीजा यह हुआ कि रितु बड़े-बड़े लोगों की नजरों में चढ़ गईं। कुछ नेता उनके दफ्तर में आकर धमकियां देने लगे। यहां तक कि उनके अपने ही स्टाफ बिजली चोरी की जांच की योजना पहले ही लीक कर देते थे। इससे बिजली चोर सर्च टीम के पहुंचने से पहले ही अवैध कनेक्शन उतार लेते।
उन्होंने कहा, 'जो कदम उठाए जा रहे थे, उससे छोटे-बड़े स्टाफ सारे स्टाफ खुश नहीं थे, वह चाहे नए मीटर लगाने की बात हो या छापेमारी की। हमारे लोग ही बिजली चोरों को राज बता देते थे।' रितु माहेश्वरी कहती हैं, 'लोगों को लगता था कि मुझे इसलिए आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है या बहकाया जा सकता है क्योंकि उनकी नजर में एक महिला को बिजली और जटिल ग्रीड्स के बारे में कुछ पता नहीं होता।'
साल 2000 में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज से ग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने 2003 में आईएएस जॉइन कर ली। जुलाई 2017 तक वह केंद्र सरकार के बिजली मंत्रालय के अधीन ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की कार्यकारी निदेशक रहीं। इस दौरान वह उस कार्यक्रम से जुड़ी रहीं जिसका मकसद अन्य माध्यमों के साथ-साथ तकनीक के इस्तेमाल से साल 2019 तक कुल टेक्निकल और कमर्शल लॉस घटाकर औसतन 15 प्रतिशत पर लाना है, ताकि बिजली वितरण कंपनियों को घाटे से उबारा जा सके। पिछले सप्ताह उन्हें गाजियाबाद का डीएम बना दिया गया है। रितु कहती हैं, 'अगला दो साल बहुत महत्वूर्ण है क्योंकि कई राज्यों को मौजूदा कमजोर मीटरिंग व्यवस्था से स्मार्ट मीटरिंग सिस्टम में शिफ्ट होना है।'
गौरतलब है कि बिजली वितरण कंपनियां और सरकारें डिजिटाइजेशन पर जोर दे रही हैं। नई दिल्ली में बिजली वितरण करनेवाली कंपनी टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लि. मार्च 2018 से एक साल के अंदर 2.5 लाख स्मार्ट मीटर लगाएगा। कंपनी का लक्ष्य 2015 तक 18 लाख घरों में स्मार्ट मीटर लगाने का है। इधर, सरकार ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के लिए 50 लाख स्मार्ट मीटर खरीदने का पहला टेंडर निकल चुका है। देश में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम संचालित करने की जिम्मेदारी वाली सराकारी एजेंसी एनर्जी एफिशंसी सर्विसेज लि. स्मार्ट मीटर बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोलियां मंगवाने जा रही है।
दरअसल, मोदी सरकार पांच सालों में पावर ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन इंडस्ट्री में करीब 3 लाख 30 हजार करोड़ रुपये निवेश करने पर विचार कर रही है। बिजली उपकरण बनानेवाली फ्रांसीसी कंपनी की भारतीय यूनिट स्नेइडर इलेक्ट्रिक के मुताबिक, भारत में अब तक कुल बिजली खपत के महज 10 प्रतिशत हिस्से का ही डिजिटाइजेशन हो पाया है। कंपनी के वाइस प्रेजिडेंट और एमडी प्रकाश चंद्राकर ने कहा, 'एक राज्य बिजली वितरण कंपनी ने मुझसे कहा कि ग्रामीण इलाकों में उनका ट्रांसमिशन और कमर्शल लॉस 25 से 30 प्रतिशत है, जिसमें 1 प्रतिशत की भी कटौती हो जाए तो उनका करीब 12 हजार करोड़ रुपये बच सकता है।'
साभार: नवभारत टाइम्स
Monday, September 11, 2017
Sunday, September 10, 2017
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