उनके हौसले के आगे विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट भी छोटी पड़ गई. आज इनकी उम्र 55 साल हो चुकी है.
ये भारत की पहली महिला हैं, जिनके नाम 50 साल की उम्र में विश्व के सात सर्वोच्च शिखरों को फतह कर उन पर तिरंगा फहराने का रिकॉर्ड है. साथ ही ये भारत की सबसे उम्रदराज महिला पर्वतारोही भी रही हैं.
इन्होंने 2011 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह किया. जी हां! हम बात कर रहे हैं प्रेमलता अग्रवाल की.
आइए जानते हैं इस पर्वतारोही की रोमांचित कर देते वाली कहानी –
एक क्षण में बदल गया जीवन का नजरिया
1963 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के एक छोटे से गांव सुखिया पोखरी में पैदा हुईं प्रेमलता के पिता रामअवतार एक बिजनेसमैन थे. पढ़ाई सामान्य बच्चों की तरह हुई और शुरुआती जीवन भी काफी साधारण रहा.
स्कूल के दिनों में भी उन्होंने कुछ खास खेलों में हिस्सा नहीं लिया था, सिवाय रनिंग के. महज हायर सेकेंडरी शिक्षा हासिल करने के बाद बहुत कम उम्र में उनकी शादी विमल अग्रवाल से कर दी गई, जो कि पेशे से एक पत्रकार थे.
फिर 18 साल की उम्र में ही वह दो बेटियों की मां बन गईं. शुरुआत से लेकर अब तक हर चीज साधारण तरीके से ही चल रही थी. प्रेमलता के पति और बेटियों ने उस समय सोचा भी नहीं होगा कि आगे आने वाले समय में उनकी पति व मां वो कारनामा कर दिखाएंगी कि उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा जाएगा.
प्रेमलता के जीवन में बदलाव उनकी उम्र के 35वें साल में आया. इसकी शुरुआत एक वाकिये से हुई, जब प्रेमलता अपनी बेटी को जे.आर.डी. टाटा स्पोर्ट्स काॅम्पलेक्स जमशेदपुर में टेनिस की ट्रेनिंग के लिए लेकर गई थीं.
यहां उन्होंने नोटिस बोर्ड पर डालमा हिल ट्रेक का एक नोटिस लगा देखा, जिसे टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की ओर से आयोजित किया गया था. इसे देखकर वह काफी प्रभावित हुईं और उनके मन में इस आयोजन का हिस्सा बनने का खयाल आया.
Premlata Agarwal Saluting heros of Our Independence. (Pic: )
बछेंद्री पाल ने दिखाया नया रास्ता
जिसके बाद प्रेमलता ने इस ट्रेक में हिस्सा और 500 प्रतिभागियों में से तीसरा नंबर हासिल किया. उनकी इस जीत के लिए उन्हें प्रमाण पत्र से सम्मानित किया जाना था. जिसके लिए वह टीएसएएफ कार्यालय पहुंचीं.
यहां उन्हें प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया.
इस दौरान प्रेमलता ने कार्यालय में लगी लेजेंडरी पर्वतारोही बछेंद्री पाल की ढेरों तस्वीरों को देखा, जो उन्होंने पर्वतारोहन के दौरान ली थीं. इन तस्वीरों को देख प्रेमलता इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्होंने फैसला कर लिया कि वह अपनी बेटी को एडवेंचर स्पोर्टस में शामिल कराएंगी.
इसके बाद वह सीधे बछेंद्री पाल के ऑफिस मिलने चली गईं और उनसे इस बारे में बात की. प्रेमलता की बातों को सुनने के बाद बछेंद्री पाल ने उन्हें कहा कि अपनी बेटी की बजाए आप खुद क्यों नहीं इसे ज्वाइन करतीं.
Premlata is The First Indian Woman To Conquer The Top Peaks of Seven Summits. (Pic: )
खुद से पहले परिवार को दी तवज्जो
बछेंद्री पाल की यह बात सुनकर प्रेमलता ने झट से इसके लिए हां कर दी और उनके प्रशिक्षण के अधीन साल 2000 तक उन्होंने अपना बुनियादी पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा कर लिया.
प्रशिक्षण खत्म करने के बाद प्रेमलता अपने पहले अभियान के तहत साल 2004 में बछेंद्री पाल के साथ नेपाल की आइसलैंड पीक पर गईं. इसके बाद 2008 में उन्होंने साउथ अफ्रिका के माउंट किलिमेनजारो की ट्रेकिंग की.
धीरे-धीरे पर्वतारोहण उनका जुनून सा बन गया और वह इसमें काफी अच्छी भी हो गईं.
उनकी इस काबिलियत को देखकर बछेंद्री पाल ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करनी चाहिए. असल में एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए जो कुछ भी गुण एक पर्वतारोही में होने चाहिए, वह सब उनमें मौजूद हैं.
यहां तक कि अगर प्रेमलता माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए हां कहतीं, तो टाटा स्टील की और से उन्हें स्पोंसरशिप भी दी जाती. लेकिन प्रेमलता ने इस चुनौती को कुछ समय के लिए टालने का फैसला किया.
क्योंकि वह इस बारे में अपने परिवार से विचार-विमर्श करना चाहती थीं.
Premlata Agarwal at Mount McKinley USA. (Pic: )
जिम्मेदारियां निभाने के बाद शुरू किया सफर
फैसला लेने में उन्हें पूरे पूरे 2 साल का समय लगा. इस बीच उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी कर दी और छोटी बेटी को पढ़ाई के लिए आगे भेजा.
परिवार की सभी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद प्रेमलता ने इस बारे में अपने पति विमल से बात की, जिस पर उन्होंने हां में सर हिलाते हुए कहा कि अगर बछेंद्री पाल को लगता है कि तुम ये कर सकती हो, तो तुम्हें जरूर जाना चाहिए.
यहां तक कि इस फैसले में प्रेमलता के सास-ससुर ने भी उनका समर्थन किया था.
आखिरकार, अपनी उम्र के 48वें साल में बछेंद्री पाल के विश्वास के सहारे प्रेमलता ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जाने का अपना प्रशिक्षण शुरू कर दिया.
इस प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद प्रेमलता ने अपनी टीम के साथ 25 मार्च को नेपाल के काठमांडू से इस अभियान की शुरूआत कर दी.
शुरुआत में तो सब ठीक रहा, मगर जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे वातावरण का बदलाव अपना असर दिखाने लगा. उम्रदराज होने के कारण प्रेमलता को सबसे अधिक दिक्कत पेश आ रही थी. इस दौरान उनके पांव में तेज दर्द होने लगा.
ये तो सिर्फ शुरूआत थी, आगे और भी कठिन हालात इनका इंतजार कर रहे थे.
Premlata Agarwal at Mount Everest NEPAL. (Pic: )
दिक्कतों के बावजूद नहीं मानी हार
प्रेमलता इतनी कमजोर नहीं थीं कि शुरूआत में ही हार मान बैठें. उनका हौसला अडिग था, और दर्द के बावजूद वह लगातार आगे बढ़ती रहीं. इस बीच उनके साथ चल रही पर्वतारोही ने उन्हें बार-बार कहा कि उनकी उम्र ऐसी नहीं है कि वह इस तरह का वातावरण झेल सकें.
इसलिए उन्हें वापस चले जाना चाहिए. इस बीच उनका एक दस्ताना भी कहीं गिर गया. ऐसे में वह ठंड का शिकार हो सकती थीं. सभी ने उन्हें वापस चले जाने का सुझाव दिया. लेकिन उन्होंने किसी की एक न मानी.
यहां-वहां ढूंढने पर उन्हें अपना दस्ताना भी मिल गया और उन्होंने अपना अभियान जारी रखा.
इस दौरान जब प्रेमलता व उनकी टीम 26 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचे, मौसम बिगड़ गया और उन्होंने वापस जाने का फैसला कर लिया. लेकिन थोड़ी देर बाद ही मौसम ठीक हो गया और सभी ने अपनी चढ़ाई फिर से शुरू कर दी.
पूरे रास्ते उन्होंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया, पर अंत में वह दुनिया के सात सबसे ऊंचे शिखरों में से एक की चोटी तक पहुंचने में सफल रहीं. जहां उन्होंने तिरंगा लहरा कर न सिर्फ अपना बल्कि पूरे भारत का नाम रौशन कर दिया.
Premlata Agarwal Receiving an Award By President of India. (Pic: tsafindia)
प्रेमलता ने अपने अद्भुत साहस की बदौलत भारत की सबसे उम्रदराज पर्वतारोही का खिताब हासिल किया. मई, 2018 तक ये खिताब प्रेमलता के नाम ही था, मगर अब संगीता बहल इस खिताब की हकदार बन गईं. इन्होंने 53 साल की उम्र में यह कारनामा कर दिखाया.
प्रेमलता को उनकी इस उपलब्धि के लिए 2013 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. बहरहाल, प्रेमलता अब टाटा स्टील में काम करते हुए वहां अपने जैसे ही जोशीले पर्वतारोहियों को प्रशिक्षित देती हैं, और उनमें ऊंचे पहाड़ों को फतह करने का हौसला भी.