Pages

Tuesday, October 11, 2022

Monday, October 3, 2022

SHALINI AGRAWAL IAS

 SHALINI  AGRAWAL IAS



SHREEMAL VAISHYA - श्रीमाली वैश्य

SHREEMAL VAISHYA - श्रीमाली वैश्य

पण्डित ज्वालाप्रसाद मिश्र ने पुराणों, ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड आदि ग्रंथों के सन्दर्भ से अपनी पुस्तक ‘जातिभास्कर’ में श्रीमाली समाज की उत्पत्ति का वर्णन किया है। स्कंद पुराण के कल्याण खंड में लिखा है कि एक समय गौतम ऋषि ने हिमालय के समीप भृगुतुंग क्षेत्र में शिवजी की आराधना की। शिवजी ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो गौतम ऋषि बोले , ऐसा स्थान बताइये जहाँ निर्भय होकर तपस्या करूँ। तब शिव जी ने कहा सौगन्धिक पर्वत के उत्तर अर्बुदारण्य से वायव्य कोण की ओर जाओ, वहां त्र्यंबक सरोवर के समीप आश्रम बनाओ, वह विश्वप्रसिद्ध तीर्थ होगा। तब गौतम जी ने वहां जाकर कठिन तपस्या की। तब ब्रह्मादिक सब देवताओं ने आकर वर दिया कि आज से यह गौतम आश्रम नाम से विख्यात होगा और सब देवता यहां निवास करेंगे यह कहकर देवता चले गए। आश्रम का नाम श्रीमाल क्षेत्र हुआ। इस नाम का कारण यह है कि भृगु ऋषि की अद्वैतरूपिणी श्री नाम की एक कन्या थी। नारद जी ने विष्णु भगवान के निमित्त वह कन्या देने को कहा। भृगु ऋषि सम्मत हुए तब भगवान विष्णु ने नारद के वचन से माघ शुक्ल एकादशी को उसका पानीग्रहण किया। तब नारद जी बोले, भगवन् ! अब इस वधू को त्र्यम्बक सरोवर में स्नान कराया जाए तब यह अपने स्वरूप को पहचानेगी। स्नान करते ही वह कन्या लक्ष्मी स्वरुप को प्राप्त हो गई। सब देवता विमानों में बैठ स्तुति करने लगे। तब लक्ष्मी ने देवताओं से कहा जैसा यहां का आकाश विमानों सुशोभित है, वैसी यहां की पृथ्वी घरों से शोभित हो जाए। अनेक गोत्र के ऋषि मुनि यहां आवें। मैं उनको यह भूमि दान करुंगी, अपने अंश से मैं यहां निवास करूंगी। देवताओं ने तथास्तु कहा। विश्वकर्मा ने वहां सुंदर नगर बनाया, तब ब्रह्मा जी बोले – श्री के उद्देश्य से देवताओं की विभाग माला से यह पृथ्वी व्याप्त हुई है। इस कारण श्रीमाल नाम से यह नगर विख्यात होगा।

तब भगवान् विष्णु के दूत अनेक ऋषि-मुनियों को बुला कर लाए। कौशिकी, गंगा तटवासी गयाशीर्ष, कालिंजर, महेन्द्राचल, मलयाचल, गोदावरी, प्रभास, उज्जयंत, गोमती, नंदिवर्द्धन,सौगन्धिक पर्वत, पुष्कर, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, हेमकूटआदि अनेक तीर्थों से 45 हजार ब्राह्मण आये। उनको बड़े सत्कार के साथ घरों में सब सामग्री रखकर लक्षदान करने लगी, और सबसे पहले गौतम की पूजा की इच्छा की। इसका सिंध देशवासी ब्राह्मणों ने विरोध किया, तब आंगिरस ब्राह्मणों ने कहा तुम महातपस्वी गौतम का विरोध करते हो इस कारण तुमसे वेद पृथक हो जाएगा। वह यह सुन कर चले गए वे सिंधुपुष्करणा ब्राह्मण कहलाते हैं।

जब लक्ष्मी ने कहा पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी और साथ में चार लाख गायें दी। वरुण देवता ने उस समय देवी लक्ष्मी को 1008 स्वर्ण के कमलों की माला पहनाई। माला के पत्रों में स्त्री-पुरुषों के प्रतिबिंब दिखने लगे। और वह प्रतिबिंब के स्त्री-पुरुष भगवती की इच्छा से कमलों से बाहर प्रकट हो गए।उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि हमारा नाम और कर्म क्या है ? भगवती बोली, हे प्रतिबिम्बोत्पन्न ब्राह्मणों ! तुम नित्य सामगान किया करो, और श्रीमाल क्षेत्र में कलाद नाम वाले (जिनको त्रागड सोनी कहते हैं) होंगे; और ब्राम्हणों की स्त्रियों के आभूषण बनाना तुम्हारा काम होगा।

इस प्रकार यह प्रतिबिंब से उत्पन्न ने 8064 कलाद त्रागड ब्राह्मण हुए। उनमें से वैश्यधर्मी, बसोनी हुए, यह पठानी सूरती अहमदाबादी खम्बाती ऐसे अनेक भेद वाले हुए। यह जिन ब्राह्मणों के पास रहे उन्हीं के नाम से कलाद त्रागड ब्राह्मणों का गोत्र चला इस प्रकार यह त्रागड ब्राह्मण भी अध्ययन करते और भूषण बनाते। फिर ब्राह्मणों के धन आदि की रक्षा के लिए विष्णु ने अपनी जंघा से गूलर, दण्डधारी दो वैश्य उत्पन्न किए और उनको ब्राह्मणों की सेवा में लगाया। गोपालन व्यापार उनका कार्य हुआ और 90 हजार वैश्यों ने वहां निवास किया और उनके स्वामी ब्राह्मणों के गोत्र से उन वैश्यों के गोत्र हुए। उस नगर के पूर्ववासी प्राग्वाट पोरवाल कहलाये, दक्षिण के पटोलिया, पश्चिम के श्रीमाली और उत्तर के उर्वला कहलाए।

श्रीमाली वैश्य :

जब लक्ष्मीजी ने श्रीमालनगर का निर्माण कराके वहाँ श्रीमाली ब्राह्मणों तथा त्रागड सोनियों को बसा दिया तब व्यापार कर्म के लिए भगवान् विष्णु ने वैश्यों को उत्पन्न किया और श्रीमाल क्षेत्र में वाणिज्य पशुपालन तथा खेती करने का आदेश दिया –ततो मनोगतं ज्ञात्वा देव्या देवो जनार्दनः | उरु विलोकयामास सर्गकृत्ये कृतादरः || यज्ञोपवीतिनः सर्वे वणिज्योऽथ विनिर्ययुः | ते प्रणम्य चतुर्बाहुमिदमूचुरतन्द्रिताः || अस्मानादिश गोविन्द कर्मकाण्डे यथोचिते | तत् श्रुत्वा प्रणतान् विष्णुर्वनिजः प्राह तानिदं | पाशुपाल्यं कृषि र्वार्ता वाणिज्यं चेति वः क्रियाः || प्राग्वाटादिशि पूर्वस्यां दक्षिणस्यां धनोत्कटाः | तथा श्रीमालिनो याम्यांमूत्तरस्या मथो विशः ||

वैश्यों के बिना श्रीमाल वासियों का जीवननिर्वाह कैसे होगा ? इस चिंता से चिन्तित लक्ष्मीजी का मनोभाव भगवान् विष्णु जान गए। उन्होंने सृष्टि रचना के प्रयोजन से अपनी जंघाओं पर दृष्टिपात किया। वहाँ यज्ञोपवीत धारी वैश्य प्रकट हो गए। उन्होंने भगवान् विष्णु को प्रणाम करके अपने लिए कर्तव्य कर्म की अभिलाषा प्रकट की। भगवान् विष्णु बोले, तुम वाणिज्य कृषि और पशुपालन का काम करो।

वे वैश्य श्रीमाल नगरी में बस गए। जो श्रीमाल शहर के पूर्विभाग में रहे वे पोरवाल कहलाए। दक्षिणी भाग में बसने वाले श्रीमाली और उत्तर वाले उवला कहलाए।एवमेते स्वर्णकाराः श्रीमालिवणिजस्तथा | प्राग्वडा गुर्जराश्चैव पट्टवासास्तथापरे ||

इस प्रकार श्रीमाल क्षेत्र में सोनी, श्रीमाली वैश्य, पोरवाल, गूजर पटेल पटवा आदि वैश्य हुए।
श्रीमाली वैश्य कुलदेवी –कृषिगोरक्ष्यवाणिज्य स्वर्णकार क्रियास्तथा | तेषां व्याघ्रेश्वरी देवी योगक्षेमस्यकारिणी |

वे सब खेती, पशुपालन, वाणिज्य और सुनारकर्म करने वाले वैश्य हुए। उनकी कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी है।

MODH BANIA VANIK - मोध बनिया वनिक

MODH BANIA VANIK - मोध बनिया वनिक 

मोध वाणिक जाति का इतिहास

बनिया शब्द का उपयोग वैश्यों की सामाजिक-सांस्कृतिक वर्ग को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो पुजारियों /विद्वानों (ब्राह्मणों), योद्धाओं /शासकों (क्षत्रिय) के बाद और मजदूर/ वर्ग (शूद्रों) के ऊपर, तीसरे स्थान पर आते हैं. वैश्य एक वर्ग का गठन करते हैं जो विभिन्न जातियों द्वारा निर्मित है. मोढ बनिया/मोध वाणिक वैश्य समुदाय के तहत सबसे प्रसिद्ध जातियों में से एक है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का संबंध भी इसी महान जाति से है. आइए जानते हैं मोढ मोध वाणिक जाति के बारे में.

मोढेरा के मूल निवासी

मोध समुदाय एक विशाल समुदाय है जिसकी उत्पत्ति गुजरात के मोढेरा से मानी जाती है. मोढेरा के मूल निवासी होने के कारण इन्हें “मोध या मोढ” कहा जाता है. इसमें कई हिंदू समुदाय जैसे कि मोध ब्राह्मण, मोध पटेल, मोध घांची (मोदी) और मोध बनिया आदि शामिल हैं. मोढ बनिया‌ भगवान विष्णु और उनके स्वरूपों को आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय है. भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण में इनकी विशेष आस्था है. मोढ समाज की कुलदेवी मातंगी देवी हैं.

मोध वाणिक उत्पत्ति की उत्पत्ति कैसे हुई?

“ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड” नामक पुस्तक के अनुसार मोढ/मोध वाणिक जाति की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित कथा प्रचलित है. भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए. भगवान विष्णु के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो दैत्य उत्पन्न हुए जो ब्रह्मा जी को मारने दौड़े. ब्रह्मा जी की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने दैत्यों का वध कर दिया और ब्रह्मा जी से वरदान मांगने को कहा. ब्रह्मा जी बोले, इस धर्मारण्य में सर्वोत्तम तीर्थ बने. भगवान विष्णु ने इस कार्य के लिए भगवान शिव को भी प्रेरित किया. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महादेव ने ब्राह्मणों को बनाया, जो वेदों के ज्ञानी थे, ताकि वे धर्मारण्य को वेद संस्कृत के केंद्र में बदल सकें. भगवान विश्वकर्मा को ब्राह्मणों के लिए घर, किले और मंदिर बनाने के लिए कहा गया. विश्वकर्मा जी ने ब्राह्मणों के लिए माहेरपुर/मोढेरा नामक सुंदर नगर का निर्माण किया. ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने छह-छह हजार ब्राह्मण यानी कि कुल 18000 ब्राह्मण बनाए और उन्हें गोत्र और गोत्रदेवी दिया. यह ब्राह्मण मोढ ब्राह्मण कहलाए. किंवदंती के अनुसार, विष्णु द्वारा बनाए गए लोग शांत और ईमानदार थे; ब्रह्मा द्वारा बनाए गए लोगों में रजस गुण की प्रधानता थी; और शिव द्वारा बनाए गए लोग क्रोधी स्वभाव के थे. ब्राह्मणों के सुख-सुविधा के लिए ब्रह्मा जी ने कामधेनु गाय की रचना की और मोढ वैश्यों को उत्पन्न करने को कहा. ब्रह्मा जी के आदेश पर कामधेनु ने अपने आगे के पैर के खुर से पृथ्वी को खुरच कर 36,000 लोगों की रचना की. और इस प्रकार से शिखा और यगोपवितधारी मोढ वैश्यों या मोध वणिकों की उत्पत्ति हुई. कामधेनु गाय की भुजा के प्रताप से उत्पन्न होने के कारण यह गोभुजा भी कहलाए.

मोध वाणिक जाति का इतिहास

मोध वाणिक समाज का इतिहास अत्यंत ही गौरवशाली रहा है. मोढ मोढेरा में बस गए, इसलिए गाँव को गभु के नाम से जाना जाने लगा. कई पत्रकारों का मत है कि यह समुदाय पारंपरिक रूप से समृद्ध रहा है. मुख्य रूप से यह कपड़ा, किराना, वित्त और हीरे के व्यापार में हैं. अधलजा, मांडलिया, मधुकरा, वेनिशा, मोध मोदी, तेली मोदी, चंपानेरी मोदी और प्रेमा मोदी सभी मोध वानिको के समूह थे. मोध किसान मोध पटेल के नाम से जाने जाते थे. कई हिंदू समुदाय मोढेरा से अपना नाम लेते हैं, जैसे मोध ब्राह्मण, मोध पटेल, मोध मोदी और मोध बनिया. इस समाज भारत के स्वतंत्रता संग्राम में तथा आजादी के बाद देश के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. व्यापार और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देकर भारत को एक आर्थिक शक्ति बनाने में इस जाति का महत्वपूर्ण योगदान है. रिलायंस ग्रुप के संस्थापक धीरूभाई अंबानी इसी जाति से आते थे.

मोध वाणिक के प्रसिद्ध व्यक्ति

महात्मा गांधी:

ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के अहिंसक स्वतंत्रता आंदोलन के नेता, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शिखर पुरुष महात्मा गांधी, मोध-बनिया जाति के थे.

आचार्य हेमचंद्र:

अपने समकालीनों द्वारा एक विलक्षण के रूप में विख्यात आचार्य हेमचंद्र एक जैन संत, विद्वान, कवि, गणितज्ञ, दार्शनिक, योगी, व्याकरणविद, कानून सिद्धांतकार, इतिहासकार और तर्कशास्त्री थे. इन्हें अपने समय में “सभी ज्ञान के ज्ञाता” की उपाधि प्राप्त थी. इन्हें गुजराती भाषा के पिता के रूप में जाना जाता है.

नरेंद्र मोदी

भारत के 14 वें वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, मोध-घांची जाति के हैं.

अंबानी परिवार

दुनिया के सबसे अमीर परिवारों में से एक अंबानी परिवार का संबंध गुजरात के मोध वाणिक जाति से है.

साभार: Ranjeet Bhartiya