सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य या केवल हेमू (१५०१-१५५६) एक हिन्दू राजा था, जिसने मध्यकाल में १६वीं शताब्दी में भारत पर राज किया था। यह भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण समय रहा जब मुगल एवं अफगान वंश, दोनों ही दिल्ली में राज्य के लिये तत्पर थे। कई इतिहसकारों ने हेमू को 'भारत का नैपोलियन' कहा है |
16वीं शताब्दी में एक नाम हेमू का आता है। महाराज हेमचन्द्र विक्रमादित्य वह विद्युत की भांति चमके और देदीप्यमान हुए। हेमू दोसर वैश्य भार्गव वंश के गोलिश गोत्र में उत्पन्न राय जयपाल के पौत्र और पूरनमाल के पुत्र थे। हेमू का एक दूसरा नाम हेमू बनिया बक्कल भी था. हेमू 16वीं शताब्दी का सबसे अधिक विलक्षण सेनानायक था । राजा विक्रमाजीत हेमू जन्म से मेवात स्थित रिवाड़ी के हिंदू थे जो अपने वैयक्तिक गुणों तथा कार्यकुशलता के कारण यह सूर सम्राट् आदिलशाह के दरबार का प्रधान मंत्री बन गया थे। यह राज्य कार्यो का संचालन बड़े योग्यता पूर्वक करते थे। आदिलशाह स्वयं अयोग्य थे और अपने कार्यों का भार वह हेमू पर डाले रहते थे।
जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय आदिलशाह मिर्जापुर के पास चुनार में रह रहे थे। हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर हेमू अपने स्वामी की ओर से युद्ध करने के लिए दिल्ली की ओर चल पड़े। वह ग्वालियर होते हुए आगे बढे और उसने आगरा तथा दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया। तरदीबेग खाँ दिल्ली की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया था। हेमू ने बेग को हरा दिया और वह दिल्ली छोड़कर भाग गया।
इस विजय से हेमू के पास काफी धन, लगभग 1500 हाथी तथा एक विशाल सेना एकत्र हो गई थी। उन्होंने अफगान सेना की कुछ टुकड़ियों को प्रचुर धन देकर अपनी ओर कर लिया। तत्पश्चात् उन्होंने प्राचीन काल के अनेक प्रसिद्ध हिंदू राजाओं की उपाधि धारण की और अपने को 'राजा विक्रमादित्य' अथवा विक्रमाजीत कहने लगे। इसके बाद वह अकबर तथा बैरम खाँ से लड़ने के लिए पानीपत के ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र में जा डटे। 5 नवंबर, 1556 को युद्ध प्रारंभ हुआ। इतिहास में यह युद्ध पानीपत के दूसरे युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। हेमू की सेना संख्या में अधिक थी तथा उसका तोपखाना भी अच्छा था किंतु एक तीर सम्राट हेमचन्द्र की आँख को छेदता हुआ सिर तक चला गया। हेमचन्द्र ने हिम्मत न हारते हुए तीर को बाहर निकाला परन्तु इस प्रयास में पूरी की पूरी आँख तीर के साथ बाहर आ गई। आपने अपने रूमाल को आँख पर लगाकर कुछ देर लड़ाई का संचालन किया, परन्तु शीघ्र ही बेहोश होकर अपने ``हवाई´´ नामक हाथी के हौदे में गिर पड़े।
शहर के कतोपुर स्थित साधारण परिवार से निकलकर अंतिम हिंदू सम्राट होने का गौरव प्राप्त करने वाले राजा हेमचंद विक्रमादित्य 7 अक्टूबर 1556 को मुगलों को हराकर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुए थे।
आपका महावत आपको युद्ध के मैदान से बाहर निकाल रहा था कि मुगल सेनापति अली कुली खान ``हवाई´´ हाथी को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा और बेहोश हेमू को गिरफ्तार करने में कामयाब हो गया। इस प्रकार दुर्भाग्यवश सम्राट हेमचन्द्र एक जीता हुआ युद्ध हार गये और भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र दोसर वैश्य (भार्गव) वंश का शासन 29 दिन के बाद समाप्त हो गया।
बैराम खाँ के लिए यह घटना एकदम अप्रत्याशित थी। बैराम खाँ ने अकबर से प्रार्थना की कि हेमू का वध करके वह `गाज़ी´ की पदवी का हक़दार बने। आनन-फानन में अचेत हेमू का सिर धड़ से अलग कर दिया। जिससे हेमू के समर्थकों की हिम्मत या भविष्य के विद्रोह की संभावना को पूरी तरह कुचल दिया जाय।
दिल्ली पर अधिकार हो जाने के बाद बैराम खाँ ने हेमू के सभी वंशधरों का क़त्लेआम करने का निश्चय किया। हेमू के समर्थक अफ़ग़ान अमीर और सामन्त या तो मारे गए या फिर दूर-दराज़ के ठिकानों की तरफ भाग गए। बैराम खाँ के निर्देश पर उसके सिपहसालार मौलाना पीर मोहम्मद खाँ ने हेमू के पिता को बंदी बना लिया और तलवार के वार से उनके वृद्ध शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। और उसने हेमू के समस्त वशधरों यानी सम्पूर्ण ढूसर भार्गव कुल को नष्ट करने का निश्चय किया। अलवर, रिवाड़ी नारनौल, आनौड़ आदि क्षेत्रों में बसे हुए दोसर वैश्य कहलाए जाने वाले भार्गव जनों को चुन-चुन कर बंदी बनाया। साथ ही हेमू के अत्यन्त विश्वास पात्र अफ़गान अधिकारियों और सेवकों को भी नहीं बक्शा।
अपनी फ़तह के जश्न में उसने सभी बंदी ढूसर भार्गवों और सैनिकों के कटे हुए सिरों से एक विशाल मीनार बनवाई।
यह बात इतिहास में कुछ इस तरह कही जाती है-
साह कहीं बनियन को लाओ, मारो सबन जहाँ लगि पावो |
आहिदी गये पकड़ सब लाये, लाय झरोखों तारे दिखाए |
तब उजीर ने विनती किन्ही , चुक सबे दुसर सिर किन्ही |
उन्हें छोर तब दुसर ही पकडे, पकड़ पकड़ बेरहीन में जकडे |
हेमू के बाद दुसर वैश्य समाज के लोग हरियाणा व् दिल्ली से पूर्व की ओर पलायन करने लगे और गंगा के किनारे वर्तमान कानपूर एवं उन्नाव तथा रायबरेली के बैसवारा के क्षेत्रों में बस गये |
साभार : http://dosarvaish.com/
हेमू विक्रमादित्य के सम्बन्ध में इस सुन्दर लेख को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। वास्तव में समस्त हिन्दूओं विशेषतया वैश्य समाज को अपने इस वीर महापुरुष पर गर्व का अनुभव करना चाहिए, जो ३५० वर्ष की विदेशी हुकूमत के दौरान दिल्ली के राज्यसिंहासन पर अपनी बहादुरी के बल पर आरूढ़ हुआ। चूँकि हेमू का जन्म एक वैष्णव दोसर वैश्य परिवार में हुआ था इसलिए आज भी दोसर वैश्य वैष्णव मत को मानते हैं। एक पुस्तक गुमनाम विक्रमादित्य के अनुसार हेमू और उसकी पत्नी राजवती दोनों को कृष्णजी की गीता का गहरा ज्ञान था।
ReplyDeleteYe galat h vo banjara tha Yha history hi galat h
DeleteHemu ek baniya tha aur rauniyar jati ka tha
ReplyDeleteहेमू रौनियार समाज का था।
ReplyDeleteमित्रों आज आप से महान हेमू के विषय मे सविस्तार पता चला,अन्यथा उन्हें सिर्फ़ एक आदिली सेनापति के रूप में जनता था। मेरा अगला आलेख हमारे इसी वीर नायक पर होगा।वंदे...
ReplyDeleteहेमू नायक भूकिय था जो बनज करने वाली जाति में बंजारा कहलाता है वो बंजारा समाज से थे इतिहास में बंजारा स आज का बड़ा योगदान रहा है
ReplyDeleteHa bha
Deleteसमरथ हेमचंद वीर विक्रमादित्य को किसी जातिय सम्प्रदाय मै बांधना उचित नही है।
ReplyDeleteउनंहे भारतीय पूर्वज देश भक्त हिन्दू सम्राट मान कर उनकी518 जन्म जयन्ती 2 अक्टूबर2019 पर उनके बलिदान को याद करें। अधिकांश सुनने मैं आता है कि यह प्राग्वाट पोरवाल जाति से थे। जयजिनेन्द्र-जयभारत
समरथ हेमचंद वीर विक्रमादित्य को किसी जातिय सम्प्रदाय मै बांधना उचित नही है।
ReplyDeleteउनंहे भारतीय पूर्वज देश भक्त हिन्दू सम्राट मान कर उनकी518 जन्म जयन्ती 2 अक्टूबर2019 पर उनके बलिदान को याद करें। अधिकांश सुनने मैं आता है कि यह प्राग्वाट पोरवाल जाति से थे। जयजिनेन्द्र-जयभारत
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हेमचंद्र विक्रमादित्य बंजारा समाज से थे भुखिया राठौर इनकी गोत्र थी सत श्री अकाल जय सियाराम सब भाइयों ने राम-राम इतिहास के साथ कोई छेड़खानी ना करें
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