स्वाभिमान के मामले में समझौता करने वाले लोगों पर अक्सर लोग व्यंग्य कसते सुने जा सकते है कि- “बनिये की मूंछ का क्या ? कब ऊँची हो जाये और कब नीची हो जाय ?”
राजस्थान में तो एक कहावत है –गाँव बसायो बाणियो, पार पड़े जद जाणियो” कहावत के जरिये बनिए द्वारा बसाये किसी गांव की स्थिरता पर ही शक किया जाता रहा है|
उपरोक्त कहावतों से साफ है कि अपने व्यापार की सफलता के लिए व्यापारिक धर्म निभाने की बनिए की प्रवृति को लोगों ने उसकी कायरता समझ लिया जबकि ऐसा नहीं है बनिए ने अपनी मूंछ कभी नीची की है यानी कहीं समझौता किया है तो वह उसकी एक व्यापारिक कार्यविधि का हिस्सा मात्र है| कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यापार में सौम्य व्यवहार, मृदु भाषा व संयम के बिना सफल नहीं हो सकता और बनियों ने अपने इन्हीं गुणों के आधार पर व्यापार के हर क्षेत्रों में सफलता चूमी है|
बनियों के इन्हीं गुणों की वजह से उनको कायर मानने वाले लोग यह क्यों नहीं समझते कि आज तो व्यापार करना आसान है, ट्रांसपोर्ट के साधनों से एक जगह से दूसरी जगह माल लाना ले जाना, बैंकों के जरिये धन का स्थानांतरण करना एकदम आसान है जबकि पूर्व काल में जब न बैंक थे न आवागमन के साधन थे तब भी बनिए अपने घर से हजारों मील दूर ऊंट, बैल गाड़ियों में माल भरकर यात्राएं करते हुए व्यापार करते थे रास्ते में डाकुओं द्वारा लुटे जाने का पूरा खतरा ही नहीं रहता था बल्कि कई छोटे शासक भी डाकुओं की भूमिका निभाते हुए व्यापारिक काफिलों को लुट लिया करते थे फिर भी अपने धन व जान की परवाह किये बगैर बनिए बेधड़क होकर दूर दूर तक अपने काफिले के साथ व्यापार करते घूमते रहते थे| उनका यह कार्य किसी भी वीरता व साहस से कम नहीं था|
व्यापार ही क्यों युद्धों में भी बनियों ने क्षत्रियों की तरह शौर्य भी दिखा इस क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहे जोधपुर जैसलमेर का इतिहास पढ़ते हुए ऐसे कई उदाहरण पढने को मिल जाते है| इन पूर्व राज्यों में कई बनिए राज्य के सफल प्रधान सेनापति रहे है जिनकी वीरता व कूटनीति का इतिहासकारों ने लोहा माना है|
राजस्थान का प्रथम इतिहासकार मुंहता नैणसी (मोहनोत नैणसी) जो जैन था और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह का सफल प्रधान सेनापति था जिसने जोधपुर राज्य की और से कई युद्ध अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया| जोधपुर राज्य में महाराजा भीमसिंह व उनके बाद महाराजा मानसिंह के समय में इंद्रराज सिंघवी नामक बनिया जोधपुर का सेनापति रहा जिसकी वीरता, राजनैतिक समझ और कूटनीति इतिहास में भरी पड़ी है| इंद्रराज सिंघवी ने अपनी राजनैतिक कूटनीति व समझदारी से जोधपुर राज्य को ऐसे बुरे वक्त में युद्ध से बचाया था जब जोधपुर महाराजा के ज्यादातर सामंत विरोधियों से मिल जयपुर व बीकानेर की सेनाओं को जोधपुर पर चढ़ा लाये थे और जोधपुर की सेना में सैनिक तो दूर तोपें इधर उधर करने के लिए मजदुरों तक की कमी पड़ गयी थी| ऐसी स्थिति में इंद्रराज सिंघवी ने अपने बलबूते जोधपुर किले से बाहर निकल ऐसी चाल चली कि जयपुर, बीकानेर की सेनाओं को जोधपुर सेना के कमजोर प्रतिरोध के बावजूद मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा|
आजादी के कुछ समय पहले भी जब जयपुर की सेना ने सीकर के राजा को गिरफ्तार करने हेतु सीकर पर चढ़ाई की तो शेखावाटी की समस्त शेखावत शक्तियाँ एकजुट होकर जयपुर सेना के खिलाफ आ खड़ी हुई यदि वह युद्ध होता तो भयंकर जनहानि होती पर शेखावाटी के सेठ जमनालाल बजाज की सुझबुझ व कूटनीति ने शेखावाटी व जयपुर के बीच होने वाले इस भयंकर युद्धपात से बचा लिया|
इन उदाहरणों के अलावा राजस्थान के पूर्व राज्यों के इतिहास में आपको कई ऐसे सफल सेनापतियों के बारे में पढने को मिलेगा जो बनिए थे और उन्होंने अपना परम्परागत व्यापार छोड़ सैन्य सेवा में अपनी वीरता व शौर्य का लोहा मनवाया| ज्ञान दर्पण पर जल्द ही आपको ऐसे शौर्य पुरुषों का परिचय भी पढने को मिलेगा|
साभार : SRI RATAN SINGH SHEKHAWAT
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