हिंदुत्व के रक्षक - सिख के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह जी
जय अग्रसेन। हम सभी में शायद हैं ही सभी इस बात से अभिज्ञ हो कि अग्रहरियों का एक ऐसा भी समुदाय हैं जो सिख धर्म को मानते हैं। जी हाँ चौकिये नहीं, बिलकुल सही सुना आपने। इन्हें अग्रहरि सिख कहते हैं। स्वयं को हमारी ही भांति महाराजा अग्रसेन का संतान बताने वाले अग्रहरि सिखों की क्या दास्तान हैं, इनका क्या इतिहास रहा हैं। कैसे अग्रहरियो का एक कुनबा सिख धर्म अपना लिया, इसकी पूरी कहानी हम समझने की कोशिश करते हैं।
मूल रूप से अग्रहरि सिख बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल से आते हैं, क्योंकि सदियों से अग्रहरि सिख बिहार में रहते थे। इस कारण इन्हें बिहारी सिख भी कहते हैं। हालाकि वर्तमान में ये महज बिहार, झारखण्ड या पश्चिम बंगाल तक ही सिमित नही रहे, देश के अन्य कई स्थानों की और रोजगार या अन्य कारणों से फ़ैल चुके हैं।
क्या हैं इनका इतिहास
इनके इतिहास के बारे में बताया जाता हैं कि मुग़ल शासन में जब हिन्दुओ को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था तब उन्हने अपने धर्म और बहु-बेटियों की रक्षा के लिए खालसा अपनाकर तलवार उठाया था। इसी काल में कई अग्रवालों ने हार मानकर इस्लाम कबुल किया, लेकिन स्वाभिमानियो के इस कुनबे को मुसलमान होना मंजूर नहीं था। वे सभी नौवे गुरु तेग बहादुर सिंह जी की उपस्तिथि में खालसा धारण कर सिख धर्म में परिवर्तित हुए और अपने धर्म की रक्षा के लिए सतत संघर्षरत रहे।
इतिहासकारों के मत
इनके सम्बन्ध में जानकारी जुटाने के दौरान ऑनलाइन ही हमें एक श्रोत मिला जिसमे यह उल्लेख किया गया हैं कि सिख अग्रहरि, गुरु तेग बहादर की असम यात्रा के समय से अहोम (अहोम एक असामी समुदाय जो ताई जाति के वंशज हैं) का एक समुदाय सिख धर्म में परिवर्तित हो गया है। हालांकि हम इस बात की पुष्टि नहीं करते। क्योंकि अहोमो से इनका सम्बन्ध तर्कसंगत नही प्रतीत होता।
यह सिख समुदाय करीब 200 साल पहले बिहार में सासाराम, गया आदि से आए थे। वे हिंदी और बंगाली बोलते हैं, अलग-अलग गुरुद्वार होते हैं, और उनके पास कोलकाता के पंजाबी-भाषी सिखों के साथ कोई सामाजिक संबंध नहीं है।
द आइडेंटिटी ऑफ़ नॉर्थ ईस्ट सिख के लेखक श्री हिमाद्री बनर्जी इनके सम्बन्ध में लिखते हैं कि करीब 200 साल पहले बिहार में सासाराम और गया आदि से (कोलकाता के बारा बाजार) आए थे। वे हिंदी और बंगाली बोलते हैं। इनका अलग सा गुरुद्वारा भी होता हैं। कोलकाता के पंजाबी-भाषी सिखों के साथ इनका कोई सामाजिक संबंध नहीं है।
इनकी परम्पराएं और वर्तमान स्थिति
वें सिख परंपरा का बखूबी पालन करते हैं। गुरबानी, सिख इतिहास, कीर्तन और गुरुमुखी को अग्रहरि सिखों के बच्चों के लिए नियमित रूप से पढ़ाया जाता है। वे वास्तव में सिख धर्म का अनुसरण करते हैं, अग्रहरि सिख अन्य सिखों की भांति किरपान को अपने साथ रखने और अपने केश नहीं कटाते। आजकल अग्रहरि सिख के बहुत से युवा अमृतधारी (being baptized as a Khalsa by taking Amrit or nectar water) हैं। अमृत संचार नियमित रूप से सासाराम, केदली, और कोलकाता के गुरुद्वाराओ में होता हैं। वर्तमान में इन्होने में पंजाबी भाषी सिखों के साथ भी सामाजिक संबंध स्थापित कर लिए हैं। इसके अलावा वे पवित श्री गुरुगन्था साहिब जी के अनुसार ही सभी अनुष्ठानों को पूरा करते हैं।
वे हिंदू अग्रहरि और सिख अग्रहरि दोनों में विवाह करते हैं। सिख परिवार में अरोड़ा, अहुवालिया में भी शादी-ब्याह के सम्बन्ध हैं। आज इस समुदाय के लोग अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यू. के. यूरोप और गल्फ देशों में भी जा बसे हैं।
साभार: allaboutagrahari.com/2017/07/Who-is-Agrahari-Sikh.html
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हिंदी पत्रकारिता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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