पूज्य श्री क्रन्तिकारी राष्ट्रसंत मुनिश्री तरुणसागरजी महाराज आचार्य कुंद कुंद और आचार्य जिनसेन के पशचात दो हज़ार वर्षो के इतिहास में पहली बार १३ वर्ष की सुंकुमार वे में दीक्षा लेने वाले देश के प्रथम मुनि हैं दिल्ली के एतिहासिक लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करने वाले देश के प्रथम मुनि. जी टीवी सहित अन्य टीवी चेनलो के माध्यम से "महावीर वाणी" को भारत सहित १२२ देशो में पहुचाने वाले देश के प्रथम मुनि. भारतीय सेना को संबोधित करने वाले व् सेना द्वारा "गोर्ड - ऑफ़ - आनर" पाने वाले देश के प्रथम मुनि. हर जिले के पुलिस मुख्यालय पर पुलिस अधिकारियो और जवानों को संबोधित करने वाले देश के प्रथम मुनि. गुरुमंत्र दीक्षा देकर जैन परंपरा में विधिवत गुरुदीक्षा की शुरुआत करने वाले देश के प्रथम मुनि. जिनकी बहुचर्चित पुस्तक "कड़वे प्रवचन" की देश की छह भाषाओ में पॉँच लाख पुस्तकों का प्रकाशन जैन इतिहास में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले देश के प्रथा मुनि. म.प्र. गुजरात, कर्णाटक, और महाराष्ट्र सर्कार द्वारा "राजकीय अतिथि" का सम्मान पाने वाले और अब "जेड़ प्लस" जैसी सुरक्षा पाने वाले देश के प्रथम मुनि. अपने कड़वे प्रवचनों और सत्संगों के हर जगह, हर रोज़ ५०-५० हज़ार श्रोताओ को सम्बोथित करने वाले देश के प्रथम मुनि. देश के सर्वाधिक चर्चित, ख्याति प्राप्त और दिगंबर मुनि की पहचान बन चुके देश के प्रथम मुनि. राजभवन (बंगलोर) जाकर वहां अतिविषिस्ट लोगो को संबोधित करने वाले व् राजभवन में आहारचर्या करने वाले देश के प्रथम मुनि. भगवन महावीर के मंदिरों और जैनियो से मुक्त करने वाले तथा जन-जन के बनाने वाले देश के प्रथम मुनि. दिगंबर जैन और श्वेताम्बर जैन जिनके नाम मात्र एक हो जाते हैं और जिनके कार्यक्रम सकल जैन समाज के बेनर टेल होते हैं ऐसे देश के प्रथम मुनि. जिनके कड़वे प्रवचनों की मिठास की चर्चा देश भर में होती हैं और कड़वे बोल पसंद किये जाते हैं, देश के प्रथम मुनि. "आनंद यात्रा" कार्यक्रम की शुरुआत करने वाले व् इस कार्यक्रम में लोगो को ठहाके लगाने के लिए मजबूर कर देने वाले देश के प्रथम मुनि. |
तरुण सागर जी महाराज परिचय |
पूर्व नाम : श्री पवन कुमार जैन जन्म तिथि : २६ जून, १९६७, ग्राम गुहजी (जि.दमोह ) म. प्र. माता-पिता : महिलारत्न श्रीमती शांतिबाई जैन एव श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चन्द्र जी जैन लौकिक शिक्षा : माध्यमिक शाला तक गृह - त्याग : ८ मार्च , १९८१ शुल्लक दीक्षा : १८ जनवरी , १९८२, अकलतरा ( छत्तीसगढ़) में मुनि- दीक्षा : २० जुलाई, १९८८, बागीदौरा (राज.) दीक्षा - गुरु यूगसंत आचार्य पुष्पदंत सागर जी मुनि लेखन : हिन्दी बहुचर्चित कृति : मृत्यु- बोध मानद-उपाधि : 'प्रज्ञा-श्रमण आचार्यश्री पुष्पदंत सागरजी द्वारा प्रदत क्रांतिकारी संत कीर्तिमान : आचार्य भगवंत कुन्दकुन्द के पश्चात गत दो हज़ार वर्षो के इतिहास मैं मात्र १३ वर्स की वय में जैन सन्यास धारण करने वाले प्रथम योगी | : रास्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले (दिल्ली) से सम्बोधा | : जी.टी.वी. के माध्यम से भारत सहित १२२ देशों में ' महावीर - वाणी ' के विश्व -व्यापी प्रसारण की ऐतिहासिक सुरुआत करने का प्रथम श्रेय | मुख्य - पत्र : अहिंसा - महाकुम्भ (मासिक) आन्दोलन : कत्लखानों और मांस -निर्यात के विरोध में निरंतर अहिंसात्मक रास्ट्रीय आन्दोलन | सम्मान : ६ फरवरी ,२००२ को म.प्र. शासन द्वारा' राजकीय अतिथि ' का दर्जा | २ मार्च , २००३ को गुजरात सरकार द्वारा ' राजकीय अतिथि 'का सम्मान | साहित्य : तिन दर्जन से अधिक पुस्तके उपलब्ध और उनका हर वर्स लगभग दो लाख प्रतियों का प्रकाशन | रास्ट्रसंत : म. प्र. सरकार द्वारा २६ जनवरी , २००३ को दशहरा मैदान , इन्दोर में संगठन : तरुण क्रांति मंच .केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली में देश भर में इकाईया प्रणेता : तनाव मुक्ति का अभिनव प्रयोग ' आंनंद- यात्रा ' कार्यक्रम के प्रणेता पहचान : देश में सार्वाधिक सुने और पढ़े जाने वाले तथा दिल और दिमाग को जकजोर देने वाले अधभुत प्रवचन | अपनी नायाब प्रवचन शैली के लिए देसभर में विखाय्त जैन मुनि के रूप में पहचान | मिशन : भगवान महावीर और उनके सन्देश " जियो और जीने दो " का विश्व व्यापी प्रचार -प्रसार एवम जीवन जीने की कला प्रशिक्षण | |
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Saturday, August 11, 2012
आचार्य तरुण सागर जी-ACHARYA SRI TARUN SAGAR JI
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ReplyDeleteWhy not write Hindi in India's simplest Nuktaa and shirorekha free Gujarati script .
ReplyDeleteHemaachandra muni was early pioneer of Gujarati script.Holy Devanagari script was not taught to masses in the past so why teach now? The pundits of Sanskrit were able to chant but not fluent in language.
Isn't an easy writing Gujarati a Vaishya Script??
Gujarati script is descended from Brahmi and is part of the Brahmic family.
The Gujarātī script was adapted from the Devanāgarī script to write the Gujarātī language. The earliest known document in the Gujarātī script is a handwritten manuscript dating from 1592, and the script first appeared in print in a 1797 advertisement. Until the 19th century it was used mainly for writing letters and keeping accounts, while the Devanāgarī script was used for literature and academic writings. It is also known as the śarāphī (banker's), vāṇiāśāī (merchant's) or mahājanī (trader's) script.[1]
http://en.wikipedia.org/wiki/Gujarati_alphabet
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