नरसिंह गुप्त सुविख्यात गुप्त वंश का एक प्रमुख शासक था। वह सम्राट पुरुगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसके बौद्ध पिता ने एक बौद्ध आचार्य को उसकी शिक्षा के लिए नियत किया था। नरसिंहगुप्त ने अपने नाम के साथ 'बालादित्य' उपाधि प्रयुक्त की थी। उसके सिक्कों पर एक तरफ़ उसका चित्र है और 'नर' लिखा है, दूसरी तरफ़ 'बालादित्य' लिखा गया है। अपने गुरु की शिक्षाओं के कारण नरसिंह गुप्त ने भी बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। नरसिंहगुप्त बौद्ध धर्म का कट्टर अनुयायी था। उसने नालन्दा में, जो उत्तरी भारत में बौद्ध शिक्षा का विश्वविख्यात केन्द्र था, ईंटों का एक भव्य मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिर में 80 फुट ऊँची बुद्ध की ताम्र-प्रतिमा की स्थापना की गई थी। विद्वानों ने बालादित्य को ही हूण शासक मिहिरकुल का विजेता माना है, जिसकी सत्ता 533-534 ई. में समाप्त कर दी गई। उसके शासन काल में भी गुप्त साम्राज्य का ह्रास जारी रहा। पुरुगुप्त और नरसिंहगुप्त दोनों का राज्यकाल 467 से 473 ई. तक है।
साभार: भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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