नरसिंह गुप्त के बाद कुमारगुप्त द्वितीय पाटलिपुत्र के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
कुमारगुप्त द्वितीय ने भी 'विक्रमादित्य' की उपाधि ग्रहण की।
कुमारगुप्त द्वितीय अन्य गुप्त सम्राटों के समान वैष्णव धर्म का अनुयायी था, और उसे भी 'परम भागवत्' लिखा गया है।
कुमारगुप्त द्वितीय ने कुल चार वर्ष राज्य किया।
477 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
सम्राट स्कन्दगुप्त के बाद दस वर्षों में गुप्त वंश के तीन राजा हुए।
इससे स्पष्ट प्रतीत होता है, कि यह काल अव्यवस्था और अशान्ति का था।
अपने चार वर्ष के शासन काल में कुमारगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य' ने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
कुमारगुप्त द्वितीय ने वाकाटक राजा से युद्ध किए, और मालवा के प्रदेश को जीतकर फिर से अपने साम्राज्य में मिला लिया।
वाकाटकों की शक्ति अब फिर से क्षीण होने लगी।
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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