देश को सबसे बड़ा बिजनेस ग्रुप देनेवाले धीरूभाई अंबानी के जीवन से प्रेरित फिल्म 'गुरु' में जब अभिषेक बच्चन कहते हैं, ' बनिया हूं साब, सब कुछ बहुत सोच-समझ कर खर्च करता हूं... आपने 5 मिनट का वक्त दिया और मैंने साढ़े चार मिनट में सब खत्म कर दिया यानी 30 सेकंड का मुनाफा...' तो कोई भी समझ सकता है कि बात वैश्य यानी बनिया समुदाय की हो रही है। सॉफ्ट नेचर और कंजूस... यही पहचान होती थी वैश्यों की, पर अब तस्वीर बदल रही है। तकनीक का सहारा लेकर वे अपने पुश्तैनी कारोबार को सारी दुनिया में दूर-दूर तक फैला रहे हैं, तो मल्टिनैशनल कंपनियों में भी पैठ बना रहे हैं। भारत के बड़े राजवंश इसी समुदाय से थे, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन, हेमू विक्रमादित्य आदि.
अपने देश में 20 करोड़ के करीब वैश्य होंगे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी इसी कम्युनिटी से थे। वैदिक काल में भी वैश्य समुदाय की बात कही गई है। उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का जिक्र है। वैश्य का मतलब था कारोबार करनेवाला। कहा जाता है कि आज से करीब पांच हजार से ज्यादा साल पहले मौजूदा हिसार के अग्रोहा में महाराजा अग्रसेन ने बड़ा बदलाव किया। अखिल भारतीय अग्रवाल वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने बताया कि वह क्षत्रिय थे लेकिन बाद में वैश्य कम्युनिटी में आए और उन्होंने ही वैश्यों में अग्रणी अग्रवाल की शुरुआत की। उनके 18 बेटों के गुरूओं के नाम पर अग्रवाल के 18 गौत्र रखे गए। इसके बाद अग्रवालों में 18 गौत्र शामिल हो गए। इन गौत्र वाले ही अपने नाम के पीछे अग्रवाल लगा सकते हैं। अग्रवाल वैश्य में सबसे बड़ी जाति हैं. करीब ४ करोड़ अग्रवाल हैं. इसके बाद वैश्यों के 366 और जातिया आयी। इनमें माहेश्वरी, खंडेलवाल और औसवाल से लेकर अभी तक का अंतिम 367वि जाति तोंडलीकर जैसे घटक शामिल हुए।
कॉमन अजेंडा
माना जाता है कि वैश्य लोग थोड़े सॉफ्ट, और सहनशील होते हैं। काफी हद तक यह सच भी है क्योंकि ये लोग किसी से फालतू उलझने में विश्वास नहीं रखते और चुपचाप शांति से अपने काम में लगे रहते हैं। कारोबार पर फोकस करना और हिसाब-किताब में महारथ रखने के लिए मैथ्स पर ये खास तवज्जो देते हैं। हिसाब-किताब तो इतना मजबूत होता है कि मुंहजुबानी हिसाब रखा जा सके। जहां तक पैसे को खर्च करने की बात तो माना जाता है कि ये लोग एक कौड़ी भी बेकार खर्च नहीं करते और पाई-पाई वसूलते हैं। शायद यही वजह है कि करोड़ों की कोठियों में रहनेवाले कई वैश्य परिवारों की महिलाएं आज भी सब्जी खरीदते वक्त जबरदस्त मोलभाव करते नजर आ जाएंगी। यह उस परंपरा का नतीजा है, जिसमें वैश्य परिवार में बच्चे को बचपन से ही सिखाया जाता है कि पैसा कितनी मुश्किल से कमाया जाता है और एक-एक रुपये को कैसे संजोकर रखा जाता है। उन्हें बताया जाता है कि बनिए का एक मतलब यह भी होता है कि बनिए, बिगड़िए मत। यानी वही काम करो, जिसकी बुरी लत न लगे और पैसा बर्बाद न हो। लेकिन समाज हितों के कामों में ये खूब खर्च करते नजर आते हैं। बड़े-बड़े अस्पताल, कॉलेज, स्कूल, धर्मशाला, मंदिर आदि बनवाने में वैश्य समाज सबसे आगे रहता हैं और रहा है। आप भारत के किसी भी नगर, कसबे, व तीर्थस्थान पर जाओगे वंहा पर ८० प्रतिशत से ज्यादा धार्मिक, व सामाजिक कार्य वैश्य समाज के द्वारा ही किया मिलेगा. अपने अलावा दूसरे धर्म, जाति और समुदाय के लोगों की भी मदद करने में ये पीछे नहीं रहते। फिर चाहे गरीब कन्याओं की शादियां हों या रामलीला जैसे बड़े धार्मिक आयोजन कराना।
पुश्तैनी धंधे ने बांधे हाथ
पहले वैश्य समाज बच्चों की पढ़ाई पर जोर नहीं देता था क्योंकि उनका मानना था कि कौन-सी नौकरी करनी है? घर का कारोबार ही संभालना है। इसका नुकसान यह रहा है कि आगे बढ़ने का रास्ता तंग हो गया। अब इससे बाहर निकलकर वैश्य कम्युनिटी के लोग आईटी, मेडिकल, फाइनैंस से लेकर एमएनसी तक में अपनी पहचान बना रहे हैं। जो लोग खानदानी कारोबार से जुड़े रहना चाहते हैं, वे भी पहले पूरी तालीम हासिल कर रहे हैं ताकि पढ़-लिखकर अपने कारोबार को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकें।
दुल्हा बिकता था!
एक वक्त था, जब वैश्य कम्युनिटी में लड़के की शादी की जाती थी तो अपने स्टेटस के हिसाब से लड़की वालों को ढूंढा जाता था। दहेज के रूप में मोटा पैसा लेकर ही रिश्ता होता था। कुंडली मिलाना भी बहुत अहम होता था। साथ ही, ये लोग अपनी ही कम्युनिटी में शादी करने पर जोर देते रहे हैं। लेकिन अब यह क्राइटेरिया बदल रहा है और दहेज के लालच में न पड़कर वैश्य कम्युनिटी के बहुत-से लोग लड़का-लड़की की खुशी को ज्यादा तवज्जो देने लगे हैं। अब अपने समाज से बाहर निकलकर ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्मों तक में भी शादियां की जा रही हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या अभी बेहद कम है और पुराने ढर्रे पर चलने वालों की ज्यादा।
जियो शान से
नई पीढ़ी फैमिली बिजनेस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखती। वह या तो मोटी तनख्वाह वाली नौकरी चाहती है या फिर नए तरह का कारोबार। अब वैश्य कम्युनिटी दिल खोलकर खर्च करने, बल्कि शो-ऑफ करने में पीछे नहीं है। खासतौर से शादी, पार्टी करने और घर बनाने में। खर्चीली शादियों में वैश्य कम्युनिटी अव्वल रहता है। अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन के अध्यक्ष सुशील गुप्ता बताते हैं कि पैदल और साइकिल पर चलने वाले वैश्य लोग आज बीएमडब्ल्यू, मर्सडीज और ऑडी जैसी सुपर लग्जरी कारों में चलने लगे हैं। घर बनाने में शानो-शौकत दिखाते है और ब्रैंडेड कपड़े पहनने का चलन बढ़ रहा है। महंगे रेस्तरां और होटल में जाना ये अपना स्टेटस सिंबल मानने लगे हैं। जिम जाकर अपने आपको फिट रखते हैं। अब इस समाज के लिए शो-ऑफ की लत बड़ी समस्या बन गई है।
समस्या भी
आमतौर पर वैश्य कम्युनिटी को पैसेवाला (हालांकि सब पैसे वाले नहीं हैं) माना जाता है। इस वजह से देश की जीडीपी में अहम योगदान देने वाला यह वर्ग तरह-तरह से परेशान होता है। यह कम्युनिटी फिरौती और रंगदारी की समस्या को सबसे ज्यादा झेलती है। एक जमाना था, जब वैश्य समुदाय के लोग अपने बच्चों के नाम के पीछे गौत्र (अग्रवाल, गुप्ता आदि) लिखने से बचते थे ताकि बदमाशों की निगाह से बच सकें। अब कुछ लोग जरूर अपने गौत्र हाईलाइट करने लगे हैं, मगर वैश्य कम्युनिटी पर हो रहे क्राइम की यह समस्या आज भी बरकरार है, बल्कि बढ़ गई है।
ग्लोबल सिटिजन
देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां वैश्य कम्युनिटी के लोग न रहते हों। इस कम्युनिटी के बारे में एक पुरानी कहावत है कि जिस गांव में दो-चार बनियों के घर होते हैं, उसे संभ्रात और अच्छा माना जाता है। यानी उस गांव में बदतमीजी और अपराध का बहुत ज्यादा बोलबाला नहीं होगा। अब गांव-देहात से निकल ये लोग देश के बड़े-बड़े शहरों, अमेरिका, इंग्लैंड, हॉन्गकॉन्ग, थाइलैंड, जापान, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के ऐसे तमाम मुल्कों में सेटल होने लगे हैं, जहां अच्छी जॉब्स और बिजनेस के मौके हों।हर तरफ इनका बोलबाला हैं. बिजनेस में आज भी ये लोग छाये हुए हैं. किसी भी तरह का थोक व्यापार हो, मंडिया हो, शेयर बाज़ार, कोमोडिटी, उद्योग धंधे, करीब ८० से ९० प्रतिशत तक इनका कब्जा है, फिर चाहे आयरन किंग के नाम से फेमस लक्ष्मी मित्तल हों, मुकेश अम्बानी, अनिल अम्बानी, या देश के टॉप मीडिया हाउस या दूसरी इंडस्ट्रीज़ के मालिक। अब ओ देश का प्रधानमन्त्री भी वैश्य हैं, जी हाँ माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी साहू तैल्लिक वैश्य समुदाय से सम्बंधित हैं. श्री अमित शाह भी जैन वैश्य हैं. श्री अरविन्द केजरीवाल जी भी वैश्य हैं.
साभार: नवभारत टाइम्स
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