मोध घांची (मोढ़ / मोदी / साहू / तेली / गनिगा / गान्दला ) गुजरात, और भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाली एक वैश्य जाति है। मोढ़ घांची की तरह से साहू, तेली, गनिगा, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाया जाने वाला अन्य पिछड़ा वैश्य वर्ग हैं
मोध घांची नाम भारतीय मूल का हैं, मोध घांची लोग जो की गुजरात में तेल और घी आदि का व्यापार करते हैं. मोध घांची लोग सामान्यतः अहमदाबाद, नवसारी, सूरत, वलसाड, बिलिमोरा में, मोढ़ घांची मूलतः मोढेरा गुजरात से निकले हुए हैं. सौराष्ट्र, अमरेली, बगासरा, बिलखा , भावनगर, जूनागढ़, कलोल, कादी, के कुछ हिस्सों में मोढ़ घांची पाये जाते है । कर्नाटक में गनिगा, गान्दला के नाम से जाने जाते हैं.
नरेंद्र मोदी, भारत के 15 वें प्रधानमंत्री, मोढ़ घांची समुदाय के अंतर्गत आते है, उत्तर प्रदेश और बिहार में तेली जाति गुजरात की घांची जाति के समकक्ष हैं.
साभार: विकिपीडिआ
HISTORY
Ancient Vaidik Era
# Birth of Modh Samaj:
The information available from vaidik history about emergence of Modh samaj reveals that the Modhera of present era was known as Dharmar’nya in Vaidik era . To establish Dharmar’nya as a centre of the vaidik sanskruti , Brahma, Vishnu and Mahesh created three thousand Brahmins each total eighteen thousand Brahmins who were master in three Vedas. According to ancient historians Brahmins created by Brahma were of sober & honest “RAJAS” nature, Brahmins created by Vishnu were of “SATVIK” nature and Brahmins created by Mahesh were of angry “TAMAS” nature.
Brahmaji ordered Kamdhenu cow to create thirty six thousand skilful and religious natured “SEVAK” to assist Brahmins created by him in their religious activities like “TAP” and “YGNA”. Kamdhenu cow created those Vaniks by digging earth’s crust with its leg’s hoof. They were called “Gobhuja” or “Gobhva” vaniks and they settled in Gabhu village beside Modhera. Adhalja, Mandaliya, Madhukara, Modh Modi, Teli Modi, Champaneri Modi, Prema Modi all were parts of Modh Vaniks. Among the Modh Vaniks those who settled in right hand of Brahmins were known as “DASHA” and left hand of Brahmins were known as “VISHA” . Those who joined farming were known as Modh Patel.
# Modheswari Mataji.:
According to ancient sayings , in and around the area of Modhera Raxasha called Karnat was creating trouble for Brahmins and disturbing in their worship of god called “YAGNA”. All the Brahimns got together and prayed to the goddess and urged her to free them from the terror of Karnat. On hearing this Goddess got angry and in anger the flames of fire bursted from her mouth, and she transformed herself in the ferocious angry avtar with eighteen hands, each hand holding weapon like Trishul, Sankh, Chakra, Kamandal ect. This avtar of Goddess was called “Matangi” or “Modheshwari”. Angry Goddess “Modheshwari” destroyed the Karnat Raxas and ended his terror. The residents of Modhera accepted Goddess “Modheshwari” as their Kuldevi and started worshiping her.
Medival Era
The era saw the rule of various Rajput & Hindu kings in Modhera and Gujarat. This was the era in which various muslims rulers were establishing in north India. In Vikram Savant 1356 Afzal Khan a general of sultan Alaudin Khilji attacked Gujarat and defeated last Rajput king Karandev Vaghela. The Muslims started ruling Gujarat. They destroyed many temples including Somnath and attacked Modhera to conquer it. The Modh Brahmins were not only educated but also they were brave fighters and also Jayesthimal Brahmins were leading fighters of Gurjareswar army.They closed the gates of the Modhera fort and fought bravely with muslims for about six months. The muslims who conquered Gujarat were about to face defeat by Modhs. The muslims agreed to sign a treaty with them and agreed to leave on receipt of 5000 gold coins.
On the day of Holi the treaty was signed , the doors of Modhera were opened. Muslims did not abide by the treaty and attacked the town , looted and damaged the parts of Sun temple, which can be seen still today. When they attacked the temple the Brahmins immersed the “Modheswari Mata Murty” in the Dharma Vav so that Muslims cannot damage it. The modhs migrated to different parts of Gujarat and now the members of Modh samaj are spread in in different parts of Gujarat like Visnagar, Viramgam, Amdavad,Vadodra, Siddhpur, Bharuch, Ankleshwar, Surat, Valsad and Billimora The resident of Surat are called “Surati Modh Vaniks”
Post Independence Era
The members of Modh samaj continued to visit modhera and worship the Dharma Vav, where the “Modheswari Mata Murty” was immersed. But by the efforts of Modh samaj devotees in Vikram Savant 1962 the construction work of the temple could start again and on Maha Sud 13 day of Vikram Savant 1966 the Pran Pratishtha of “Modheswari Mata Murty” was done.
साभार: suratimodhvanik.com/history.php
आप को यह बताना चाहता हूं कि राजस्थान में रहने वाली क्षत्रिय घांची जाति का मोद या साहू जाति से कोई सम्बन्ध नहीं है क्यू की राजस्थान की क्षत्रिय घांची जाति जो मूल-तह राजपूत जाति से ही बनी है जिसका हमारे पास लिखित सबूत भी है जबकि साहू ,मोद गनिग व् गंदला मूल तेली जाति है इस लिए आप से निवदेन है कि आप हम सभी क्षत्रिय समाज से अपनी इस ब्लॉग में जबरदस्ती तेलि या वैशय मत बनाये
ReplyDeleteहमारी जाती एक राजपूत जाती से मिलकर क्षत्रिय घांची जाती बाबी हे जो की एक सरदार राजपूत थे जो युद्ध के समय में अग्रिम पंक्ति के सैनिक सरदार थे जो बाद में क्षत्रिय घांची बने
आपके पास जो सबूत है कृपया मुझे भैजने का कष्ट करे। यह बताने का कषट करे कि कचेलिया तेली भी क्षत्रिय मे आते है या वैश्य है।
DeleteBhai mai muslim ghanchi rajasthan se hu nivedan hai ki hum kaHa se aagaye hum muslim ghanchi kah se aaye .. ?.hum rajasthan gujrat border par hain
Deleteआप को यह बताना चाहता हूं कि राजस्थान में रहने वाली क्षत्रिय घांची जाति का मोद या साहू जाति से कोई सम्बन्ध नहीं है क्यू की राजस्थान की क्षत्रिय घांची जाति जो मूल-तह राजपूत जाति से ही बनी है जिसका हमारे पास लिखित सबूत भी है जबकि साहू ,मोद गनिग व् गंदला मूल तेली जाति है इस लिए आप से निवदेन है कि आप हम सभी क्षत्रिय समाज से अपनी इस ब्लॉग में जबरदस्ती तेलि या वैशय मत बनाये
ReplyDeleteहमारी जाती एक राजपूत जाती से मिलकर क्षत्रिय घांची जाती बाबी हे जो की एक सरदार राजपूत थे जो युद्ध के समय में अग्रिम पंक्ति के सैनिक सरदार थे जो बाद में क्षत्रिय घांची बने
बलवंत सिंह जी राम राम, राजस्थान में घांची अपने आप को क्षत्रिय मानते होंगे, लेकिन वे मूलतः तेली-वैश्य होते हैं. गुजरात के घांची, तेली, उ. प्र., बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ के तेली घांची वैश्य माने जाते हैं, घांची शब्द तेली का ही पर्याय वाची हैं. घांची का मतलब है, घानी या तेल निकालने वाला या तेल का व्यापार करने वाला. https://en.wikipedia.org/wiki/Ghanchi
Deleteghanchi samaj k dharm guru shree purandas ji maharaj from sojat city in big temple
DeletePraveen gupta tum faltu ki bt krne ki bajay ye dekho ki insaan apna sarname bdal bhi de lekin gotra kyu bdlega Or Ksahtriya teli aka kacheliyan teli bhati chohan, bhati, rathore, parihaar, parmar, solanki Or bhi kai rajput gotra hai jo hoti hai woh kese iska bhi jwab dedo
Deleteपरवीन भाई आपने लिंक में विकी पेड़िया का लिंक attached किया हैं मगर हक़ीक़त कुछ ओर है
ReplyDeleteModh मोदी ओर क्षत्रिय घाँची कभी भी एक हीं जाती नहि थी ओर ना होगी
क्षत्रिय घांचियो में गोत्र चेक कर लो ओर modh मोदीयो में उनके गोत्र चेक कर लो आप हक़ीक़त सामने आजाएगी
ओर दूसरी बात घाँचीओ में मोदीयो के साथ बेटी वहेवार नहि होता हैं
श्रीमान् प्रवीण गुप्ताजी आप निश्चय ही बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं आपने वैश्य समाज की बहुत उपयोगी व उत्तम जानकारियां दी हैं हमारा समाज पूर्व में बहुत ही बँटा हुआ था यहां तक कि एक ही जाति के लोग भी जैसे। (साहू, ओमर, राठौर) आदि उपनाम गोत्र आदि के कारण एक दूसरे से रोटी बेटी का सम्बन्ध नहीं रखते थे पर मूलतः सभी वैश्य एक ही है समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। वैसे अब समय बदल रहा है अब वैश्य समाज के कुछ जागरूक लोग एक दूसरे के साथ रोटी बेटी का सम्बन्ध भी कर रहे हैं। कुछ सम्बन्धों का तो मैं स्वयं ही गवाह हूँ।
ReplyDeleteAapne ek dam sahi bataya sir ji
ReplyDeleteराजस्थान मे रहने वाली क्षत्रिय(घाँची) जाति क्षत्रिय वर्ण की जाति है यह जान लो आप और जो तुम विकिपीडिया का जिक्र कर हो न वो बकवास है क्यों की विकिपीडिया मे कोई भी कुछ भी लिख सकता है जिसको इतिहास का पता होता नही है और गूगल से कॉपी पेस्ट करते है जैसे तूने किया है
ReplyDeleteऔर तू हमे जबरदस्ती वैश्य क्यों बनाना चाहता है हमे नही बनना वैश्य हम क्षत्रिय वर्ण में ही ठीक हे
आप से नम्र निवदेन है की आप क्षत्रिय(घाँची) जाति को ओर साहू,तेली,मोढ़घाँची को मिलाने की कोशिश नही कर इनका इतिहास अलग है
और जिन साहू मोढ़ को तू घाँची बता रहा है वो हमारे शहर मे भी रहते है फिर अलग अलग राज्य में अलग नाम से पुकारने की बात कहा से आ गयी
हम इन्हें हिन्दू तेली नाम से पुकारते है
श्रीमान भाटी जी, बड़े भाई इतना नाराज क्यों हो रहे हो, जो आप बदतमीजी पर उतर आये हो. यह सत्य हैं की वैश्यों की कुछ जातिया किसी राज्य में वैश्य, किसी राज्य में क्षत्रिय कही जाती हैं. वैश्य की अधिकतर जातिया पहले क्षत्रिय ही थी. इन लोगो ने धर्मपरिवर्तन करने की बजाये वैश्य कर्म अपना लिया था, पर अपना धर्म नहीं छोड़ा था. आप से मैं कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा हूँ . आप कम से कम भाषा का संयम तो रखे. राजस्थान के राजपूत आप लोगो को क्षत्रिय मानते हैं क्या, आज की तारीख में क्षत्रिय जाती केवल राजपूत हैं.
Deleteमानना नही मानना वो अलग मुद्दा है आप सही कह रहे है भाटी सा हुकुम
ReplyDeleteगुस्सा नही करे तो और क्या करें आप फिर अपना वैश्य राग अलाप रहे है यह अब भाटी सा का नही पुरे क्षत्रिय(घाँची) समाज का मुद्दा बन गया है आप फिर भी यह मानने को तैयार नही की हम मूलत क्षत्रिय ही है अलग अलग राज्यो में अलग पहचान का कोई औचित्य ही नही है
और रही बात मानने की है तो कुछ राजपूत के मानने नही मानने से क्या साबित होने वाला है
ReplyDeleteलेकिन आप भी हमे वैश्य बताकर क्या साबित करना चाहते है
आप को कोई गलत फहमी हुई है क्योंकि हम भी अपने जाति में घाँची लिखते है और साहू भी लिखते है पर हमारे समाज में घाँची का अर्थ होता है अपने दासो से घाणी चलवा कर अपने बंधू राजा की रुद्रमाल मंदिर बनवाने की चिन्ता दूर की इस लिये हम इसे उपाधि मानते है और साहू इस शब्द को अपनी उपजाति मानते है
और रही बात वर्तमान में सिर्फ राजपूतो को ही क्षत्रिय की तो हमारा समाज हमेसा से क्षत्रिय ही था और सिर्फ उपाधि मिलने के कारण हम अपनी जाति क्षत्रिय(घाँची) लिखते है
और हमारा समाज को उपाधि मिली 10वी शताब्दी मे और उस समय में राजपूत शब्द था ही नही तब हमने क्षत्रिय(घाँची) शब्द अपना लिया और राजपूत शब्द प्रचलित नही था इसलिये हमने राजपूत नही लिखा
क्या क्षत्रिय घाँची समाज जनेऊ पहनते हैं?
ReplyDeleteवैसे एक सवाल और- क्या क्षत्रिय घाँची समाज जनरल कास्ट है । दक्षिण भारत की वानिया-तेली , वानिया चेट्टीयार और वानिया क्षत्रिय दोनों होते हैं । चोल ,पाण्ड्य,पल्लव ,चेर,नायक इत्यादि राजवंश वानिया क्षत्रिय है । इनको कभी बुरा नहीं लगता पर आप लोगों को बुरा क्यों लग जाता है?
ReplyDeleteAlag alag jgh unki categories me rkha hai.
DeleteMaharashtra me gen me aate hai ghanchi
Agar tum hindu ho Or tumhe bewjh kisi karan se muslim kha jaye jo thopa gya ho to kya tumhe khushi ya garv mhsoos hoga kya bt krte ho.
Delete
ReplyDeleteदक्षिण भारत के वानियार-तैलिक राजवंश :
1.चोल वानियाकुल राजवंश :
शासनकाल - (848-1279) 431वर्ष तक
क्षेत्रफल - 36 लाख वर्ग किलोमीटर (13,89,968 sq mi)
(सीमा - वर्तमान में भारत, श्रीलंका, बंग्लादेश, बर्मा, थाईलैण्ड, मलेशिया, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, सिंगापुर, मालदीव )
इन्होंने हिन्दु धर्म को विदेशों में फैलाया।
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2. चालुक्य तैलव - तेली राजवंश (पश्चिमी) -
शासनकाल - 479 वर्ष तक
क्षेत्रफल - 11लाख वर्ग किमी
1) वातापी के चालुक्य शासक
(550-753) 203 वर्ष
2) कल्याणी के चालुक्य वंश
(973-1189)226 वर्ष
3) उचेहरा (खोह) के चालुक्य वंश-
(1331-1381) 50 वर्ष
.........&&&&&.......
4) वेंगी का पूर्वी चालुक्य राजवंश (पूर्वी) -
शासनकाल - (615 -1118ई.) 503 वर्ष
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3.पल्लव वानियार् राजवंश :
शासनकाल - (275-901) 626वर्ष
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4.पाण्ड्य राजवंश के शासक :
शासनकाल - (575- 1618) 1043 वर्ष
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5.मदुरै के नायक राजवंश -
शासनकाल - (1528- 1736) 208 वर्ष
6.तंजावर के नायक राजवंश
शासनकाल -(1532–1673) 141 वर्ष
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7.चेर(केरलपुत्र) वानियार राजवंश-
शासनकाल - कुल 1112वर्ष तक;
810वर्ष (430ई.पू. -380 इसवी )
तथा 302 वर्ष (800 ई. -1102ई.)
क्षेत्रफल - केरल,दक्षिणी तमिल तथा कर्नाटक का दक्षिणी हिस्सा तक ।
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8.कडवा राजवंश-(1216-1279)
9.मज़ावर राजवंश-(3री सदी ई.पूर्व)
10.मलयमान राजवंश-( 2सदी से 3सदी )
11.संभुवरया राजवंश-(1236-1375ई.)
12.अदियमान राजवंश-(3सदी पू.-1ई.)
13.विजयनगर साम्राज्य (1336-1646ई.) यादवों के समय, सेनानायक बनकर मोर्चा सम्भालने में वानियार/तैलिक अग्रणी थे ।इस समय दक्षिण में सबसे ज्यादा सामंत व जमींदार भी तेली/वानियार ही थे ।
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1947 के समय दक्षिण के पाँचों राज्यों (तमिलनाडू , केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ) में 50% से ज्यादा जमींदार वानियार क्षत्रिय ( यानि तैलिक ) थे।
बौध्दधर्म तथा कूंग-फू को एशिया में फैलाने वाले 22 वर्षिय पल्लव राजकुमार भगवान् बोधिधर्म [जो बौध्दधर्म के 28वें कुलपिता थे ] एवं सम्राट राजेन्द्र चोल इंडोनेशिया ,मलेशिया सहित सात समुंदर पार जाकर हिन्दु धर्म को फैलाने वाले, तेली थे ।
वैसे एक सवाल और- क्या क्षत्रिय घाँची समाज जनरल कास्ट है । दक्षिण भारत की वानिया-तेली , वानिया चेट्टीयार और वानिया क्षत्रिय दोनों होते हैं । चोल ,पाण्ड्य,पल्लव ,चेर,नायक इत्यादि राजवंश वानिया क्षत्रिय है । इनको कभी बुरा नहीं लगता पर आप लोगों को बुरा क्यों लग जाता है?
ReplyDeleteवानिया तेली, वानिया चेट्टियार, वानिया क्षत्रिय बेसिकली एक ही जातिया हैं, यह जातिया क्षेत्र के हिसाब से अपने को क्षत्रिय या वैश्य बताने लगी. कुछ यह भी रहा हैं की, युद्ध के समय में शस्त्र उठा लिए, शान्ति काल में व्यापार अपना लिया, व्यापार करने वाली जाति कोई भी हो उसे वानिया या बनिया कहा गया हैं. अधिकतर वैश्य-बनिया जाति की पूर्व काल में वैश्य ही थी.
Deleteआप सहीं कह रहे हो गुप्ता जी, मैं भी यही सोचता था कि एक ही जातियाँ क्षत्रिय और वैश्य कैसे हो जाते हैं ? आप इसी प्रकार से अपना लेख जारी रखे ।हमारी आपको आपके प्रयास के लिए शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteतेरे को जो लिखना है वो लिख गुप्ता जी आप भी कुछ भी लिख दो हम क्षत्रिय(घाँची) कल भी क्षत्रिय थे और आज भी क्षत्रिय है और रहेगे और तुम वैश्य व तेली लोग हमे क्यों वैश्य बनाने पर तुले हो क्या अपनी वेश्या समाज की जनसंख्या को ज्यादा बताने के लिए हमे क्षत्रिय(घाँची)समाज को भी क्षत्रिय वर्ण से वेश्य वर्ण में लिखदोगे
ReplyDeleteऔर तू ishwarsahu तुजे क्या पंचायती है बीच में हम क्षत्रिय(घाँची)राजस्थान के लोग मोदी या साहू जाति को अपनी जाति कभी नही मानते हैं और रही बात हमे बुरा लगने की तो तेरे जैसे चन्द लोगो के कहने से हम वैश्य नही होंगे हम क्षत्रिय है और क्षत्रिय ही रहेंगे
ReplyDeleteऔर तू ishwarsahu तुजे क्या पंचायती है बीच में हम क्षत्रिय(घाँची)राजस्थान के लोग मोदी या साहू जाति को अपनी जाति कभी नही मानते हैं और रही बात हमे बुरा लगने की तो तेरे जैसे चन्द लोगो के कहने से हम वैश्य नही होंगे हम क्षत्रिय है और क्षत्रिय ही रहेंगे
ReplyDeleteभाई साब गुजरात पाठन का इतिहास पलट के देखो राजा जयसिंह सोलंकी खुद घांची बने थे और उनोने घांची समाज कि इस्थापना कि थी
ReplyDeleteजिस ने भी घांची समाज का वैश्य समाज के साथ जिक्र किया है वो खुद ही वैश्य कि ओलाद हैं हम क्षत्रिय समाज हैं
ReplyDeleteगुप्ता वैश्य हि समाज हैं किया है आपका इतिहास किया हैं सबूत वैश्य कि ओलाद हो तुम हमारे पास सबूत हैं कि हम राजपूत समाज से घांची बने हैंघांची जाति का उदभव क्षत्रिय जाति से हुआ है इसलिये घांची समाज को क्षत्रिय घांची समाज के नाम से भी जाना जाता है इसके पीछे एक एतिहासिक कहानी है कि पाटण के राजा जयसिंह सिद्धराज सोलंकी के नवलखा बाग में रोज रात को देवलोक से परियां पुष्प चोरी करके ले जाती थी जिस पर पंडितों ने सलाह दी की देवलोक में बैंगन का पौधा अपवित्र माना जाता है इसलिये फुलों के पास में बैंगन का पौधा लगा देने से परियां पुष्प चोरी नहीं कर सकेगी।
ReplyDeleteराजा ने ऐसा ही किया तो एक परी के बैंगन का पौधा टच हो जाने से वो वापस इन्द्रलोक नहीं जा सकी उसने राजा को कहा कि तुम विविध धर्म पुन्य मेरे नाम से करो व पूनम एकादशी के उपवास करो तो मैं पाप से निवृत होकर वापस देवलोक जा सकती हुं राजा ने ऐसा ही किया तथा परी जब वापस जाने लगी तो राजा ने भी देवलोक की यात्रा करने की इच्छा प्रकट की इस पर परी ने इन्द्र से अनुमति लेकर राजा को सपने में देवलोक की यात्रा करवायी वंहा स्वर्ग में एक विशाल शिव मंदिर रूद्रमहालय था जिसका नक्शा राजा को पंसद आ गया उसने स्वपन से जाग कर अपने कारिगरों से इस मंदिर निमार्ण का पूछा तो पता चला कि ऐसा मंदिर 24 वर्ष में बन सकता है परन्तु ज्योतीष्यिों ने राजा की आयु 12 वर्ष ही शेष बतायी थी इस पर राजा ने रात व दिन दोनों समय निमार्ण करके मंदिर 12 वर्ष में ही बनाने की आज्ञा दी।उस समय बिजली नहीं थी तब मशालों से रात में काम होता था व मशालें तेल से जलती थी तथा तेली रात दिन काम करके दुखी थे । तेली भाग न जावे इसकी पहरेदारी के लिये विभिन्न गोत्रों के 173 सरदारों की टीम लगी थी परन्तु तेलियों ने चालाकी से इनको दावत में बुलाकर नशा दे दिया जिससे ये रात को सो गये व तेली भाग निकले इस पर राजा इन पहरेदारों पर कुपित हुआ तथा इनको तेलियों के स्थान पर काम करने की आज्ञा दे दी।
इन सरदारों ने तेली का काम करके राजा से इनाम लेने के लालच में तेली के कपडे पहन कर राजा की सभा में पहुचें तो अन्य सरदारों ने इनका उपहास किया जिससे ये नाराज होकर राजा जयसिंह का राज्य छोड कर आबू क्षत्र मे आ गये तथा घांची कहलाये इसका अर्थ हैः-
घाः- से घाणी चलाने वाले।
चीः- राजा जयसिंह की चिन्ता दूर करने से
घाणी का घा चिन्ता का ची मिलकर घांची कहलाये।
kshtriya ghanchi samaj ka itihas patan gujrat me solankiyo ka raaj tha yah baat jag jahir hai se churu hua hai yahi satya hai ho sakta hai vaishya kahane wale bhi kshtriya hi honge jisane apane itihas par dhyan nahi diya ho our kshtriya se kab vaishya ban gaye shayad unhe pata nahi hoga ya vaishya kahane wale ghanchiyo ka koi alag hi itihas raha hoga . par yah baat bhi satya hai charcha karne par hi nichod nikalta hai our charcha tu tu me me nahi ho kar ek helthy charcha honi hi chahiye .... shankar solanki
ReplyDeleteGhanchi Vaishya - घांची वैश्य
ReplyDeleteघांची (मोढ़ / मोदी / साहू / तेली / गनिगा / गान्दला ) गुजरात, राजस्थान और भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाली एक वैश्य जाति है। मोढ़ घांची एक अन्य उप-जाति है घांची की तरह से साहू, तेली, गनिगा, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाया जाने वाला अन्य पिछड़ा वैश्य वर्ग हैं
घांची नाम भारतीय मूल का हैं, घांची लोग जो की गुजरात में तेल और घी आदि का व्यापार करते हैं. घांची लोग सामान्यतः अहमदाबाद, नवसारी, सूरत, वलसाड, बिलिमोरा में, मोढ़ घांची मूलतः मोढेरा गुजरात से निकले हुए हैं. सौराष्ट्र, अमरेली, बगासरा, बिलखा , भावनगर, जूनागढ़, कलोल, कादी, राजस्थान में, पाली, सॉजत, सुमेरपुर, जोधपुर के कुछ हिस्सों में मोढ़ घांची पाये जाते है । कर्नाटक में गनिगा, गान्दला के नाम से जाने जाते हैं.
नरेंद्र मोदी, भारत के 15 वें प्रधानमंत्री
Or ek bt manushya apni kuldevi nhi bdlta chahe bhul gya ho pr bhato se pata lga kr dekhlo ki kshtriya teli aka kacheliyan teli ki kuldeviyaan rajput ki kuldevi same hoti hai ye sb sabit krte hai ki kshtriya teli rajput the
ReplyDeleteभाई नाराज क्यों होते हो, मैंने तो इसमें गुजरात के मोध घांची वैश्यों के बारे में बताया हैं. जिन्हें मोध वनिक भी कहा जाता हैं.
Deleteभाटी जी नाराज क्यों होते हो. मैंने तो विकिपीडिआ के आधार पर लिखा था.https://en.wikipedia.org/wiki/Ghanchi. मैं आप लोगो को इससे अलग कर रहा हूँ. आप अपनी जगह खुश हम अपनी जगह खुश, वैसे आजकल हर किसी जाति को क्षत्रिय, राजपूत, ब्राह्मण बन्ने का शौक चढ़ रहा हैं. आप भी बनो, राम राम...
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