प्रिय मित्रो यह चिटठा हमारे महान वैश्य समाज के बारे में है। इसमें विभिन्न वैश्य जातियों के बारे में बताया गया हैं, उनके इतिहास व उत्पत्ति का वर्णन किया गया हैं। आपके क्षेत्र में जो वैश्य जातिया हैं, कृपया उनकी जानकारी भेजे, उस जानकारी को हम प्रकाशित करेंगे।
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Saturday, February 24, 2018
मयंक अग्रवाल के बल्ले से बरसी ‘आग’, इतने रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी बने
मयंक अग्रवाल के बल्ले से बरसी ‘आग’, इतने रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी बने
मयंक अग्रवाल विजय हजारे ट्रॉफी के 7 मैचों में 102 की औसत से 633 रन बना चुके हैं। इससे पहले रणजी ट्रॉफी में 8 मैचों में मयंक अग्रवाल ने 1160 रन बनाए थे।
कर्नाटक के बल्लेबाज मयंक अग्रवाल के बल्ला आग उगल रहा है। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने एक बार फिर से अपने बल्ले से घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया है। मयंक अग्रवाल की धमाकेदार बल्लेबाजी की बदौलत कर्नाटक की टीम ने सेमीफाइनल में महाराष्ट्र की टीम को हराकर विजय हजारे ट्रॉफी टूर्नामेंट के फाइनल में जगह पक्की कर ली है। मयंक अग्रवाल के साथ करुण नायर की साझेदारी के चलते कर्नाटक ने महाराष्ट्र को 9 विकेट से हराकर फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली। इसके साथ ही मयंक अग्रवाल ने विजय हजारे ट्रॉफी टूर्नामेंट में एक नया रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। वह इस ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बन गए हैं। उन्होंने इस रेस में टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली को भी पीछे छोड़ दिया है। सिर्फ कोहली ही नहीं मयंक ने दिनेश कार्तिक, रॉबिन उथप्पा जैसे खिलाड़ियों को भी पछाड़ा है।
मयंक इस पूरे सत्र में शानदार फार्म में रहे हैं। उन्होंने खूबसूरत कवर और ऑन ड्राइव से शानदार पारी खेली जिससे वह 633 रन बनाकर राष्ट्रीय एकदिवसीय चैम्पियनशिप के एक सत्र में सबसे ज्यादा रन जुटाने वाले खिलाड़ी भी बन गए।
मयंक अग्रवाल विजय हजारे ट्रॉफी के 7 मैचों में 102 की औसत से 633 रन बना चुके हैं। इससे पहले रणजी ट्रॉफी में 8 मैचों में मयंक अग्रवाल ने 1160 रन बनाए थे। इसमें उन्होंने एक तिहरा शतक भी जड़ा था। वहीं मुश्ताक अली ट्रॉफी में भी उन्होंने 9 मैचों में 258 रन बनाए थे।
Wednesday, February 21, 2018
Friday, February 16, 2018
Sunday, February 11, 2018
Friday, February 9, 2018
मराठा साव तेली समाज के सरनेम ( कुलनाम )
मराठा साव तेली समाज मे आने वाले कुछ कुलनाम, कुळनाम, सरनेम ( आडनाव) की जानकारी.
१) सातपुते २) किरमे ३) घोगडे ४) बारसागढे ५) भुरसे ६) बोदलकर ७) चापळे ८) भांडेकर ९) कुकडकर १०) कुनघाडकर ११) सोनटके १२) देवरमले १३) दुधबडे १४) दुधबावरे १५) सोमनकर १६) लटारे १७) जुआरे १८) चलाख १९) बुरांडे २०) वासेकर २१) टिकले २२) वैरागडे २३) चिलांगे २४) खोबे २५) कोहळे २६) कोठारे २७) सहारे २८) नरताम २९) शेटे ३०) धोडरे ३१) वासकर 3२) येलोरे ३३) पिपरे ३४) चिचघरे ३५) सोनवाने ३६) काटवे ३७) उरकुडे ३८) येलोरे ३९) पिपंले ४०) भुरे ४१) झाडे ४२) गोहने ४३) मोगककर ४४) गडेकर ४५) गडकरी ४६) सुरजागढे ४७) गव्हारे ४८) नैताम ४९) बोबाटे ५०) भुरले ५१) देवतळे ५२) उडान ५३) खोडवे ५४) खोडतकर ५५) बोटरे ५६) डहाके ५७) गाजरे ५८) डोबरे ५९) हडदे ६०) भोवरे ६१) मिसाळ ६२) बाराहाते ६३) कुकडे ६४) चापेकर ६५) चिखलखुदे ६६) लिडबे
साभार: teliindia.com
ORIGIN OF TELI VAISHYA CASTE - तेली साहू जाति की उत्पत्ति संबंधित प्रचलित कथाएं
तेली साहू जाति की उत्पत्ति संबंधित प्रचलित कथाएं
अंग्रेज इतिहासकार श्री आर. व्ही. रसेल एवं राय बहाद्दुर हीरालाल ने वृहद ग्रंथ में तेली जाति का वर्णन किया है । इसमें उत्पति संबंधित चार कथाएं दी गई है :-
1) एक बार भगवान शिव महल (कैलाश पर्वत) से बाहर गये थे । महल की सुरक्षा की सुरक्षा के लिए कोई द्वारपाल नही थे, जिसके कारण माता पार्वती चिंतित हुई और आपने शरीर के पसीने की मैल से गणेश जी को जन्म देकर महल के दक्षिण द्वार पर तैनात किया । भगवान शिव, जब महल लौटे तब गणेश जी ने उन्हें नही पहचाना और महल में प्रवेश से रोक दिया, जिससे क्रोधित होकर,. भगवान शिव ने गणेश जी का सिर तलवार से काटकर मस्तक को भस्म कर दिया । जब रक्तरंजीत तलवार को माता पार्वती देखी ओर अपने पुत्र की हत्या की बात सुनी, तब वे दुखी हुई । माता पार्वती ने भगवान शिव से अपने पुत्र को जीवित करने का अग्रह किंया किन्तु भगवान शिव ने मस्तक के भस्म हो जाने से जीवित कर पाने में असमर्थता बताई किन्तु अन्य उपाय बताया कि यदि कोई पशु दक्षिण दिशा मे मुंह किया मिला जाये तो गणेश जी को जीवित किया जा सकता है । उसी समय महल के बाहर एक व्यापारी अपने हाथी सहित विश्राम कर रहा था और हाथी का मुंह क्षिण दिशा में थे । भगवान शिव ने तत्काल हाथी का सिर काट गणेश जी के धड से जोडकर जीवित कर दिये । हाथी के मर जाने से व्यपारी दुखी हुआ तब भगवान शिव ने मुसल एंव ओखली से एक यंत्र बनाया (कोल्हू) और उससे तेल पेरने की विधि बताई । व्यपारी उस यंत्र से तेल पेरने लगा, वही प्रथम तेली कहलाया ।
2) अंग्रेज इतिहासकार, श्री क्रूक ने मिर्जापर में प्रचलित कहानी को उल्लेखित किया है कि एक किसान के परास 52 महुआ के वृक्ष और 03 पुत्र थे । किसन ने अपने तीनों पुत्रों से इस संपत्ति का बंटवारा कर लेने कहा, तीनों पुत्र आपस बातचीत कर वृक्षों का बंटवारा न कर उत्पाद का बंटवारा कर लिया । जिसे पत्ती मिला वह पत्तिसों से भट्टी जला कर अन्न भुनने का काम किया और भडभुजा कहलाया । जिसे फुल मिला वह फूलों से रस निकालकर शराब बनाया, और कलार कहलाया । जिसे फल मिला वह फल से तेल निकाला और तेली कहलाया ।
3) मंडला के तेली व्यपारियों ने लेखक को बताया कि वे राठोर राजपूतों के वंशज है, जिन्हे मुसलमान शासकों ने पराजित कर, तलवार छिनकर निर्वासित कर दिया था ।
साभार: teliindia.com
SMART VAISHYA - चतुर व्यापारी
तेनाली हमारे समाज के चार वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में सबसे ज्यादा होशियार और तेज दिमाग वाले कौन हैं और किस वर्ण के लोग सबसे सरल हैं ?
महाराज वैश्य वर्ण के लोग अत्यंत चतुर और होशियार होते हैं जबकि ब्राह्मण अत्यंत सरल व सीधे स्वभाव के होते हैं।
तेनालीराम ने जवाब दिया।
तेनालीराम की बात काटते हुए महाराज बोले, यह कैसी बात कह रहे हो तेनाली ?
ब्राह्मण तो इतना पढ़े-लिखे होते हैं, फिर वे होशियार कैसे नहीं होंगे और वैश्य तो अधिकतर अनपढ़ गंवार होते हैं, फिर उन्हें तुम चतुर और होशियार कैसे बता रहे हो ?
तेनालीराम बोला महाराज! मैं अपनी बात साबित कर सकता हूँ।
शर्त यह है कि मैं कुछ भी करूं, आप बीच में नहीं बोलेंगे।
राजा कृष्णदेव राय मान गये।
एक हप्ते बाद, तेनालीराम राजगुरु तथाचार्य के पास गया और आदर से बोला, राजगुरु जी! महाराज ने आपकी छोटी मंगवाई है।
क्या मैं इसे काट कर ले जाऊँ ?
यह बात सुनकर राजगुरु परेशान हो गये।
हिन्दुधर्म में छोटी कटवाने की अनुमति नहीं है। यह उनके धर्म और सदाचार का प्रतीक होती है।
अपनी मोटी लम्बी छोटी को कटवाने के लिए बहुत नाजों से संभाल कर रखी है। मैं इसे कैसे कटवा सकता हूँ।
आप जो चाहें, मैं आपको दूंगा। तेनालीराम ने राजगुरु को लालच दिया।
अब तो राजगुरु सोच ने पड़ गये। हालाँकि वे चोटी कटवाना नहीं चाहते थे, पर लालच बुरी बला है। फिर भी अपनी नाक ऊँची रखने के लिए उन्होंने थोड़ी नानुकुर करते हुए तेनाली से कहा, तेनाली क्योंकि यह राजाज्ञा है, मैं इसे टाल तो नहीं सकता। हालाँकि मैं ऐसा बिल्कुल नहीं चाहता हूँ पर क्या करूं मजबूर हूँ।
तुम ऐसा करो चोटी काट लो, पर मुझे इसके बदले में तुम्हें दस स्वर्णमुद्राएँ देनी होगी।
अवश्य राजगुरु मैं अभी लेकर आता हूँ। तेनाली तुरंत गया और शाही खजाने से दस स्वर्णमुद्राएँ ले आया।
दस स्वर्णमुद्राओं के बदले में राजगुरु ने नाइ से अपनी चोटी कटवा ली। वह छोटी जिसे उन्होंने इतने वर्षों से तेल लगाकर और बेहद प्यार से इतना लम्बा किया था। पल भर में साफ़ हो गयी।
फिर तेनालीराम ने शहर के मशहूर व्यापारी सुकुमार को बुलावा भेजा। उसके सिर पर भी अच्छी लम्बी चोटी थी।
तेनालीराम ने उससे भी वही कहा कि राजा कृष्णदेव राय को उसकी चोटी चाहिए, उसे कोई आपत्ति तो नहीं है ?
सुकुमार ने जवाब दिया, इस साम्राज्य की हर वस्तु महाराज की सम्पत्ति है हमारी चोटी क्या हमारा तो जीवन भी महाराज का ही है।
महाराज जो चाहें वह ले सकते हैं पर भैया याद रहे मैं एक गरीब आदमी हूँ।
चिंता मत करो। तेनाली उसे आश्वासन देते हुए बोला, तुम्हें तुम्हारी चोटी की उचित कीमत मिलेगी।
आपकी बड़ी कृपा है परन्तु। ...... सुकुमार कहते हुए चुप हो गया।
तेनालीराम थोड़ा परेशान-सा होते हुए सुकुमार से बोला परन्तु क्या। ...... साफ़-साफ़ कहो।
ऐसा है, अपनी इस चोटी के ही कारण मुझे अपनी पुत्री के विवाह में दस हजार स्वर्णमुद्राएँ खर्च करनी पड़ी। यह चोटी मेरी इज्जत का प्रतीक है न। गए साल जब मेरे पिता जी का देहांत हुआ था, तो उनके क्रियाकर्म पर पांच हजार का खर्चा हुआ था क्योंकि समाज में इस चोटी का नाम तो रखनी ही था।
तो भाई यह चोटी काफी कीमती है। सुकुमार ने अपनी चोटी पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। इसका मतलब तुमने इस चोटी के लिए पन्द्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ खर्च की हैं।
ठीक है हम तुम्हें शाही खजाने से पन्द्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ दिला देते हैं। अब तो तुम अपनी चोटी दे दोगे। तेनालीराम ने पूछा।
जब तेनालीराम ने सुकुमार को पन्द्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ दिला देते हैं। अब तो तुम अपनी चोटी दे दोगे तेनालीराम ने पूछा।
जब तेनालीराम ने सुकुमार को पन्द्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ की थैली थमा दी, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी जाकर नाई के सम्मुख बैठ गया।
नाई ने काटने से पहले सुकुमार के बाल गीले किये।
जैसे ही उसने उस्तरा निकाला, सुकुमार जोर से बोला, ओ नाई! जरा संभाल कर। जानते हो न यह चोटी आज से महाराज की सम्पत्ति है।
इसे इस प्रकार काटना जैसे कि महाराज कृष्णदेव राय की चोटी काट रहे हो।
राजा कृष्णदेव राय निकट ही बैठे यह सब कुछ देख रहे थे।
सुकुमार की बातों से उनका खून खौल उठा। वे जोर से चिल्लाए ले जाओ इस बत्तमीज व्यक्ति को हमारे सामने से। इस व्यापारी को उठाकर बाहर फेंक दो।
सैनिक ने सुकुमार को उठा कर बाहर फेंक दिया। उसे थोड़ी चोट तो लगी पर थैला में खनखनाती पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ ने सारा दर्द भुला दिया।
कुछ देर बाद जब महाराज का क्रोध शांत हुआ तो तेनालीराम उनके पास गया और बोला, कहिए महाराज कौन होशियार निकला।
ब्राह्मण राजगुरु, जिन्होंने मात्र दस स्वर्णमुद्राएँ के लिए अपनी चोटी मुड़वा दी या यह वैश्य व्यापारी सुकुमार, जो आपसे पंद्रह हजार भी ले गया और अपनी चोटी भी बचा ली।
अब महाराज के पास तेनालीराम की बात मानने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
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KANNAGI DEVI - वनिया चेट्टीयार तेली समाज कुलभूषण "माता कन्नगी देवी
वानिया चेट्टीयार तेली समाज कुलभूषण "माता कन्नगी देवी"
आज से लगभग हज़ारो वर्ष पूर्व तमिलनाडु में मदुरई के पास एक गांव में कोवलन नामक वानिया चेट्टीयार ( तेली समाज वैश्य ) रहता था। कोवलन की पत्नी का नाम कन्नगी था। कन्नगी कोवलन से असीमित प्रेम करती थी। कन्नगी वेदों शास्त्रो की ज्ञाता थी और उच्च कोटि की पतिव्रता थी। कोवलन एक व्यापारी था और व्यापार के कारण अक्सर उसे बाहर जाना पड़ता था। एक बार कन्नगी ने अपने हाथ के सोने के कंगन कोवलन को बेचने हेतु दिए। कोवलन व्यापार के लिये बाहर गया। एक नर्तकी जिसका नाम माधवी था, कोवलन उसी के यहाँ रुक गया और उस स्त्री से उसके सम्बन्ध बन गए। लेकिन कुछ दिन बाद कोवलन को ऐसा एहसास हुआ की मेरी पत्नी कन्नगी मेरी राह देख रही होगी। जो मैं कर रहा हूँ, वह गलत है। ऐसा विचार कर कोवलन वापिस घर लौटने की सोचने लगा।
मदुरई पहुंचकर कोवलन ने कन्नगी के सोने के कंगन मदुरई के व्यापारियो को बेच दिया। मदुरई में उस समय महाराजा पांड्य का शासन था। राजा पांड्य की पत्नी के कंगन चोरी हुए थे। राजा ने रानी के चोर को पकड़ने हेतु सिपाही फैला रखे थे। सिपाहियो ने अपने राज्य में कोवलन को देखा और उसके कंगनों को देखा जो हु बहु महारानी के कंगन जैसे थे। कोवलन को गिरफ्तार कर लिया गया। राजा पाण्ड्य ने कोवलन को मृत्युदंड दिया। उस ज़माने में चोरी, रेप इत्यादि पर सीधा गर्दन कलम होती थी। कोवलन की गर्दन धड़ से अलग कर दी गयी। उसे अपनी बात कहने का मौका ही नहीं दिया गया।
कोवलन की मृत्यु की खबर सुनकर कन्नगी को बहुत बड़ा झटका लगा। उसने राजा पांड्य के दरबार में प्रवेश किया और रानी के कंगन के समान 4 कंगन और दिखाए। और कहा की "ये कंगन मेरे है , मेरे पति चोर नहीं थे उनके पास आपकी रानी के कंगनों जैसे कंगन थे,आपने एकपक्षीय फैसला देकर मुझसे मेरा सुहाग छीन लिया"
राजा ने जाँच करायी तो मालूम पड़ा की रानी के कंगन तो महल में ही है। राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ मगर अब चिड़िया खेत चुग गयी थी।
रोती बिलखती कन्नगी ने कहा--- अगर मैंने मन वचन कर्म से अपने पति की सेवा की है तो हे अग्निदेव मेरे निर्दोष पति की ह्त्या करने वाले इस राज्य का विनाश कर दीजिये। बच्चों और बूढो को छोड़कर इस राज्य में सब कुछ जलकर राख हो जाये। धिक्कार है ऐसे न्यायतंत्र को जहाँ मेरे पति को झूठे आरोप में मृत्युदंड दे दिया गया। कन्नगी ने ऐसा बोला ही था की पूरा मदुरई राज्य धू-धू कर जल उठा। राजा पांड्य गिड़गिड़ाने लगे मगर कुछ न हुआ। और चारो तरफ हाहाकार मच गया।
उधर कन्नगी पागलो की तरह खुले केश किये हुए रोती हुयी भटकने लगी। इतिहासकारो के अनुसार कन्नगी सशरीर एक विमान पर बैठकर स्वर्ग गयी थी और उसको लेने उसका पति स्वयं आया था। आज भी जब मदुरई जाते है तो रास्ते में कई किलोमीटर का क्षेत्रफल अग्नि से जला हुआ साफ साफ दिखता है। कांचीपुरम का शिव मंदिर भी इसी आग की चपेट में आ गया था।
ये घटना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर बल देती है। ये घटना वर्तमान समय में व्याप्त "Contempt of court" नामक व्यवस्था पर एक प्रहार है। अगर लोगो को न्याय नहीं मिलेगा तो वो न्यायपालिका का अनादर करेंगे ही..
वर्तमान में देवी कन्नगी की पूजा तमिलनाडु में होती है।
Tuesday, February 6, 2018
Monday, February 5, 2018
USIK GALA - उसिक गाला
311 रुपये से शुरुआत कर 650 करोड़ का बिज़नेस एम्पायर बनाने वाले 27 वर्षीय युवा उद्यमी
सफलता किसी को भी आसानी से नहीं मिलती। कठिन मेहनत, कभी न हार मानने वाले ज़ज्बे और सही रणनीति का पालन करने से ही सफलता का स्वाद चखा जा सकता है। हम में से अधिकांश यह नहीं समझा पाते कि सफलता की कोई परिभाषा नहीं है और इसे सामाजिक मानदंडों पर नहीं मापा जा सकता। यदि हम सफलता के कारको को मापने की कोशिश करते हैं, तो यह 10 प्रतिशत भाग्य और 90 प्रतिशत कड़ी मेहनत का प्रतिफल है।
मुंबई के उशिक महेश गाला की कुछ ऐसी ही कहानी है। जिन्होंने अपने जीवन के संघर्षों का डट कर सामना किया और परिवार के बीमार व्यवसाय को एक रॉकेट की तरह ऊंची उड़ान भरने के काबिल बनाया। एक व्यवसायी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले उशिक ने देखा था कि व्यापार कैसे काम करता है; हालांकि, उन्हें इसके रणनीति के मॉडल में अपने हाथों को आजमाने का मौका तब मिल पाया जब उनके पिता ने इसके लिए उन्हें उपयुक्त पाया।
उशिक कॉलेज के दौरान ही अपने पिता के वस्त्र व्यवसाय की बारीकियों को समझ लिया था। लेकिन यह 2006 से 2008 तक की मंदी का शुरुआती वक्त था, जो उनके परिवार के लिए वास्तविक रुप में एक कठिन दौर साबित हुआ। इस अवधि का प्रभाव इतना तीव्र था कि उसने व्यापार को धरातल पर पहुंचा दिया और उसे बंद करना पड़ा। परिवार में कोई भी उस बिजनेस मॉडल की कोशिश करने के लिए तैयार नहीं था।
जब उशिक ने 2010 में कारोबार जगत में प्रवेश किया, तो उनकी जेब में केवल 311 रुपये थे। अब भी वही उनकी वित्तीय आवश्यकता पूरी कर रहा था। ऐसे में उन्होंने फैसला किया कि जो भी हो सकता हो वह व्यापार को डूबने नहीं दे सकते। लेकिन एक योजना बनाना एक बात थी, और योजनाओं का क्रियान्वयन करना एक दूसरी बात थी। पूँजी सीमित थी और बाजार टेढ़े-मेढ़े घुमावदार चरणों से गुजर रहा था जहां किसी भी प्रकार का निवेश करना, अपनी आजीविका को जोखिम में डालने के समान हो सकता था।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उशिक अपनी दूरदर्शिता से व्यापार को नई ऊंचाई तक बढ़ाना चाहते थे, जिससे व्यापार संचालित करने के तरीकों में बदलाव लाना था। अतः 2012 में, मंदी के खत्म होने के बाद, उन्होंने दुल्हन के परिधानों के साथ बाजार में फिर से प्रवेश करने का फैसला किया।
“यह एक निर्मम प्रतियोगिता से भरा व्यापार साबित हुआ क्योंकि बाजार में कई कठिन खिलाड़ी थे। हर कोई इस मॉडल की कोशिश कर रहा था, इस प्रकार यह एक कड़ा संघर्ष बन गया। पूरे बिजनेस मॉडल को बदलने के लिए, मुझे यह जोखिम उठाना पड़ा क्योंकि यदि मैं असफल हो जाता, तो मुझे मेरे परिवार को देने के लिए कुछ नहीं रहता। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और फैसला कर लिया। हम पहले केवल खुदरा बिक्री में थे, इसलिए मैंने एक खाका डिजाइन किया जो व्यवसाय को व्यापार करने के साथ ही विनिर्माण के क्षेत्र में भी बढ़ाया,
उन्होंने बाजार पर अपनी एक पकड़ महसूस की। साल 2014 में उन्होंने ‘सुमाया लाइफस्टाइल’ नाम के तहत एक नया उद्यम शुरू करने का फैसला किया। वास्तव में, बदलते बाजार की गति इतनी तेज़ थी कि वह मुश्किल से इसके साथ तालमेल कर पा रहे थे। इस यात्रा में उन्होंने एक बात यह सीखी थी कि शिकायत करने के लिए कोई जगह नहीं है। इसमें या तो वह बन सकते हैं या बिखर सकते हैं इसलिए उन्होंने पहले विकल्प को चुना और सफलता की दिशा में व्यवसाय पर एक कड़ा जोर लगाया।
11 अगस्त 2011 में सुयामा लाइफस्टाइल की आधारशिला अस्तित्व में आईं लेकिन 2014 में 2 लाख रुपए के निजी पूँजी निवेश के साथ आधिकारिक सूत्रपात स्वीकार किया गया। 2012 से 2014 की अवधि में उशिक ने दुल्हन परिधानों की बिक्री की। 2014 में यह बदल गया जब उन्होंने नई मांग के प्रवाह के अनुसार महिलाओं के अनौपचारिक पहनावे की ओर रुख़ किया। यह व्यवसाय उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ और उन्होंने सिर्फ तीन-चार साल के क्रियान्वयन में ही भारी-भरकमपैसे कमाए।
मुंबई में एक विनिर्माण इकाई के साथ, उन्होंने किफायती और गुणवत्ता वाले वस्त्रों पर काम किया और भारत और विदेशों में उनका विपणन किया। ‘सुुमाया लाइफस्टाइल’ ने गति पकड़ा और आज यह भारत में सबसे बड़ा परिधान निर्माता है। 2017 में इसका बैलेंस शीट 214 करोड़ रुपये पर बंद हुआ। समय की इस अल्पावधि में अब कर्मचारियों की संख्या का आकार 3,000 तक बढ़ गया।
सुयामा लाइफस्टाइल की सफलता के बाद उन्होंने कपड़ा निर्माण कंपनी ‘सुमाया फैब्रिक’ के साथ शुरुआत की जो ‘सुयामा लाइफस्टाइल’ की एक ग्रुप कंपनी है और इसमें 50-60 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है। मार्च 2018 में, दोनों कंपनियों का अनुमानित कारोबार करीब 614 करोड़ रुपये का है।
अपने उद्यमी यात्रा में सफल होने के बाद, उन्होंने वर्ष 2014-2015 में एंजेल निवेशक के रूप में एक यात्रा ऐप ‘गाईडदो टेक्नोलाॅजी प्राइवेट लिमिटेड’ में भी निवेश किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक क्लोजड ग्रुप चैट ऐप, द हॉउज़ में भी निवेश किया है उन्होंने करीब 250 करोड़ रूपये, वित्तीय सेवा ऋण के रूप में बाजार में भी दिए हैं। स्व-वित्तपोषित कंपनी सुुमाया समूह ने कारोबार में 110 करोड़ रुपये का निवेश किया है और ऐसा करना जारी है। पूरे समूह कपड़ों, वित्तपोषण और अन्य व्यवसायों के रूप में सुुमाया की शुद्ध संपत्ति करीब 650 करोड़ रुपये हैं।
ग्राहक आधार के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, “हम समस्त भारत में आपूर्ति करते हैं। सांस्कृतिक वस्त्रों के बाजार क्षेत्र में हमारे पास लगभग 65 प्रतिशत का हिस्सा है। सुयामा लाइफस्टाइल का बाजार आधार अब काफी बड़ा हो गया है और दुबई, ओमान और यूएस में विस्तार किया गया है। पूरे भारत में विस्तारित करने के अलावा अब कारोबारी कार्यालय दुबई, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में भी है। यह फैशन आधारित एक भारतीय कंपनी का पहला उदाहरण है जिसकी विदेशों में शाखाएं हैं।
मुंबई में 3,50,000 वर्ग फुट भूमि पर निर्मित सुमाया लाइफस्टाइल की एकमात्र विनिर्माण इकाई उच्चतम आधुनिक तकनीक युक्त इकाई है। यह 85 प्रतिशत स्वचालित है और यहीं से इसके वस्त्रों का निर्यात विदेशों में अपने कार्यालयों में किया जाता है।
परिधान व्यवसाय में महत्वपूर्ण सफलता के लिए पेरिस में, उशिक को गारमेंट उद्योग में सबसे छोटे सीईओ के रुप में उत्कृष्टता पुरस्कार के रूप में नामित किया गया है और जैन समुदाय में सबसे कम उम्र के अरबपतियों के लिए नामांकित किया गया है। वे जैन इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन (JIO) के ग्लोबल डायरेक्टर भी हैं।
सफलता के बारे में उनका एकमात्र मंत्र है, “कड़ी मेहनत करें और आपके कर्म आपको उसके बदले उचित फल देगा।”
साभार: hindi.kenfolios.com/27-yr-olds-journey-rs-311-building-business-worth-rs-650-cr-read/ by Amit Kumar
DAMJI BHAI SHAH ANCHOR WALA - दामजी भाई एंकर वाला
कैसे इस इंसान ने अपने ठप्प पड़े उद्योग को 2,500 करोड़ के सौदे में किया तब्दील
आज की कहानी एक ऐसे शख्स की है जिन्होंने एक व्यापारी के रूप में साधारण शुरुआत से शीर्ष तक पहुंचने में सफल रहे। लेकिन सफलता के शिखर तक पहुँचने के बाद भी यह परोपकारी व्यवसायी एक बहुत ही सरल और सजीव जीवन का नेतृत्व कर रहे हैं। हालांकि इस व्यक्ति ने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा था लेकिन परिस्थितियों के तले दब कर इन्हें अपना सपना छोड़ना पड़ा और व्यापार की दुनिया में आ फंसे। आज हम इतने बड़े उद्योगपति, परोपकारी और शिक्षाविद को भले ही नहीं जानते होंगें लेकिन इनके द्वारा बनाए उत्पाद को तो पूरा इंडिया जानता है।
दामजी भाई ‘एंकरवाला’ यह कोई साधारण नाम नहीं बल्कि इस नाम में ही मिलियन डॉलर की एक नामचीन कंपनी छिपी है। अब आप समझ ही गए होंगे कि हम किस कंपनी की बात कर रहें हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एंकर इलेक्ट्रॉनिक्स की आधारशिला रखने वाले दामजी भाई की सफलता के बारे में। यह ब्रांड आज लगभग देश के हर घर का हिस्सा है। छोटे स्तर एक नामी राष्ट्रीय स्तर की कंपनी बनाने में तरह-तरह की बाधाएँ आई लेकिन दामजी भाई की कठिन मेहनत के सामने यह टिक नहीं सका।
दामजी भाई बताते हैं कि यह सफलता उनके भाई जाधवजी के विश्वास और कड़ी मेहनत की बदौलत ही मिल पाई।
दामजी भाई कच्छ के उसी कुंदरोड़ी गांव से ताल्लुक रखते हैं जहां प्रसिद्ध संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी का जन्म हुआ था। इनके पिता लालजीभाई पैसे लेन-देन का कारोबार करते थे। महज 6 साल की उम्र में दामजी भाई अपने पिता के साथ मुंबई आ गये। इनके पिता मुंबई में खातौ मिल के पास भाखला में एक छोटी सी दुकान शुरू की। दुकान और आवास दोनों एक ही कमरे में था। पूरे दिन दुकान चलाते और फिर रात को उसी कमरे में सोया करते थे। यह सिलसिला करीबन एक वर्ष तक चला।
फिर इन्होंने गांव की ओर पलायन किया लेकिन कुछ ही महीनों बाद पूरा परिवार एक बार फिर से मुंबई में ही आ बसे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक थी क्योंकि गांव में खेती से भी आमदनी होती थी और शहर में बिज़नेस से भी। दामजी भाई ने स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर बनने का सपना लिए मुंबई के खालसा कॉलेज में दाखिला लिया। इसी दौरान इनकी तबियत बुरी तरह बिगड़ गई और कई महीनों तक इन्हें अस्पताल में ही रहना पड़ा। कई महीनों तक पढ़ाई से दूर रहने की वजह से इनका पढ़ाई के प्रति रुची खत्म हो गई और इन्होंने फिर कारोबार में ही हाथ आजमाने का फैसला लिया।
दामजी भाई बताते हैं कि 1960 का दसक में हमारे दुकान के पास एक बंगाली बाबू रहते थे जिनके साथ हमारी अच्छी दोस्ती थी। अपनी मित्रता को बिज़नेस पार्टनर में तब्दील करते हुए इन्होंने मिलकर ‘केबी इंडस्ट्रीज’ नाम से एक कंपनी खोली। मुंबई के मलाद में 900 वर्ग फुट में शुरू हुई यह कंपनी एक वर्ष में ही घाटे में चली गई और ताले लग गये।
अक्सर विफलता सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होती है। केबी इंडस्ट्रीज के बंद होने के बाद दामजी भाई के दिमाग में कुछ नया करने की इच्छा उत्पन्न हुई। इनका अब एकमात्र ही सपना था और वो था कारोबारी सफलता। लेकिन दामजी भाई ने इस बार अकेले कारोबार करने का फैसला करते हुए बाज़ार स्टडी से नई और अनोखी संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी। इन्होंने पाया कि उन दिनों इटली से आयात किए जाने वाले इलेक्ट्रिकल स्विच भारत में बेहद लोकप्रिय थे। यहीं से इनके दिमाग में बिजली से संबंधित सामान बनाने का विचार आया।
साल 1963 में इन्होंने उसी बंद पड़े कारखाने में फैंसी स्विच का निर्माण शुरू किया। शुरुआत में लोगों ने इस नए ब्रांड को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया। लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और मुंबई में दुकान-दुकान घूमकर सबसे पहले दुकानदारों को अपने विश्वास में लिया। फिर इन्होंने बाहरी कंपनियों से थोड़े सस्ते पैसे में अच्छी गुणवत्ता के सामान उपलब्ध कराते हुए देश के हर एक घर तक पहुँच गये। कुछ ही वर्षों में उसी छोटे कारखाने से 1.5 करोड़ रूपये की वैल्यूएशन के उत्पादन होने लगे और महज 8 साल में यह आंकड़ा 1100 करोड़ तक पहुँच गया।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में आज यदि कोई कंपनी प्रति दिन 4 लाख स्विच की बिक्री करती है तो वह एंकर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड है। देश की एक नामचीन इलेक्ट्रिकल ब्रांड बनाने के बाद दामजी भाई ने कुछ और कारोबार शुरू करने के बारे में सोचा और इसी कड़ी में इन्होंने एंकर का सौदा जापानी कंपनी पैनासोनिक के हाथों कर दिया।
दामजी भाई बताते हैं कि व्यापक विचार-विमर्श के बाद हमनें कंपनी को जापान के पैनासोनिक को बेचने का फैसला किया। ‘मेरे बेटे अतुल ने बातचीत की और अंत में कंपनी को 2500 करोड़ रुपये में बेच दिया गया। हालांकि यह सौदा मेरे लिए बेहद दर्दनाक था।
एंकर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड को बेचने के बाद इन्होंने एफएमसीजी सेक्टर में कदम रखते हुए आम आदमी के दैनिक इस्तेमाल की चीजें बनाने शुरू किये। साबुन और टूथपेस्ट जैसी चीजें बनाते हुए इन्होंने कुछ ही वर्षों में इस सेक्टर में भी अपनी पहचान बना ली। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 450 करोड़ के पार है।
दामजी भाई की सफलता से हमें यह सीख मिलती है कि असफलता ही सफलता की कुंजी है। हमें असफलता से कभी हार नहीं माननी चाहिए बर्शते सीख लेते हुए नए शिरे से शुरुआत करनी चाहिए।
साभार: hindi.kenfolios.com/success-story-of-damjibhai/ by Abhishek SumanMarch
PIYUSH BANSAL LESNKART - पियूष बंसल
माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी छोड़ बनाई थी कंपनी, आज है देश की सबसे सफल ई-कॉमर्स बिज़नेस
भारत में तीन सबसे बड़ी ई-कॉमर्स पोर्टल फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और मिंत्रा डॉट कॉम की आधारशिला रखने वाले बंसल से ज्यादातर लोग परिचित हैं लेकिन एक और बंसल हैं जिन्होंने ई-कॉमर्स कारोबार के लिए एक ऐसे क्षेत्र को चुना जो अपार कारोबारी संभावनाओं के बावजूद भी औरों की नज़र से दूर था। जी हाँ, साल 2010 में लेंसकार्ट डॉट कॉम नामक ऑन लाइन ऑप्टिकल स्टोर की शुरुआत करने वाले पीयूष बंसल आजदेश के सबसे सफल स्टार्टअप कारोबारियों की सूची में शुमार कर रहे हैं। लेकिन सफलता के इस पायदान तक पहुँचने में उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।
पीयूष के चार्टर्ड अकाउंटेंट पिता चाहते थे कि उनका बेटा खूब पढ़े और शानदार नौकरी करे। पिता ने बेटे की पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं होने दी। पीयूष ने भी पिता को निराश न करते हुए भरपूर पढ़ाई की और कनाडा से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद यूएसए में माइक्रोसॉफ्ट ज्वाॅइन किया। यहाँ उनकी सालाना पैकेज भी काफी अच्छी थी लेकिन कुछ सालों तक काम करने के बाद नौकरी से मन ऊब गया। साल 2007 में उन्होंने वापस भारत लौटने का निश्चय किया। पीयूष के इस फैसले से उनके माता-पिता बेहद नाराज थे। उन्होंने बेटे को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन पीयूष नहीं माने।
स्वदेश लौटने के बाद पीयूष ने किसी कंपनी में नौकरी करने की बजाय खुद का कारोबार शुरू करने की योजना बनाने लगे। उस दौर में ई-कॉमर्स भारत में एक नया कांसेप्ट था और इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं थी। पीयूष ने भी इस क्षेत्र में हाथ आजमाने के उद्येश्य से एक क्लासिफाइड वेबसाइट सर्च माय कैंपस डॉट कॉम की शुरुआत की। यह वेबसाइट छात्रों को आवास, पुस्तकें, कारपूल सुविधा, पार्ट टाइम जॉब अवसर आदि सुविधाएं मुहैया कराती थी। यह वेबसाइट तीन सालों तक चला। साल 2010 तक भारत में ऑनलाइन कारोबार काफी तेजी से बढ़ चुका था। इसी सेक्टर अपनी पैठ ज़माने के लिए उन्होंने आईवियर, ज्वेलरी, घड़ी और बैग्स की ऑनलाइन सेल के लिए लेंसकार्ट डॉट कॉम, ज्वेलरी डॉट कॉम, वाॅचकार्ट डॉट कॉम और बैग्स डॉट कॉम नामक चार वेबसाइट को लांच किया।
धीरे-धीरे बदलते समय के साथ पीयूष ने सिर्फ लेंसकार्ट डॉट कॉम पर फोकस रखा और उसे देश का सबसे बड़ा ऑन लाइन ऑप्टिकल स्टोर बनाने में कामयाबी हासिल की। आज लेंसकार्ट सभी आधुनिक सुविधाओं के पूर्ण देश के तमाम बड़े शहरों में अपनी ऑफलाइन स्टोर भी खोल चुकी है। इतना ही नहीं वर्तमान में कंपनी 1500 से ज्यादा शहरों के 1000 लोगों को हर रोज आईवियर्स और 500 से ज्यादा लोगों को उनके घर पर ही आई चेक-अप सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। फ्रेंचाइजी मॉडल को अपनाते हुए लेंसकार्ट पूरे देश में अपने कारोबार का विस्तार कर रहा है।
जानकारों का मानना है कि लेंस का कारोबार काफी लाभप्रद होता है। कभी-कभी 500 फीसदी तक की मार्जिन संभव होती है। और इतने लाभप्रद कारोबार को तकनीक के माध्यम से बड़े स्तर पर शुरू करना सच में बेहद क्रांतिकारी है। और इसी वजह से लेंसकार्ट दिनोंदिन तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है और आज 100 करोड़ के सालाना टर्नओवर वाली क्लब में शामिल है। इतना ही नहीं आने वाले तीन वर्षों में लेंसकार्ट आईपीओ लाने की तैयारी में भी है।
साभार: hindi.kenfolios.com/peyush-bansal-lenskart/ by Abhishek Suman
PRITHVI SHAW - पृथ्वी शाह
बिहार के बेहद साधारण वैश्य परिवार से हैं अंडर-19 के कप्तान, पिता ने गरीबी की वजह से छोड़ दिया था गांव
अंडर-19 टीम के कप्तान पृथ्वी शॉ चाइनीज फूड के दीवाने हैं, बचपन से उन्हें आलू की भजिया बेहद पसंद है, जब कोई साथी खिलाड़ी उनसे भजिया मांगता था, तो वो सीधे मना कर देते थे।
बीते दिन पृथ्वी शॉ के नेतृत्व में अंडर-19 टीम ने चौथी बार विश्वकप जीत इतिहास रच दिया, पूरा देश टीम इंडिया को बधाई दे रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि पृथ्वी कहां के रहने वाले हैं, आइये आज हम आपको उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में बताते हैं, पृथ्वी मुंबई नहीं बल्कि मूल रुप से बिहार के रहने वाले हैं, उनके पिता गरीबी से परेशान होकर गया के मानपुर से मुंबई आ गये थे, आज भी पृथ्वी के दादा अशोक गुप्ता की गया में कपड़ों की दुकान है। पृथ्वी के दादा ने बताया कि पंकज उनके इकलौते बेटे हैं, पोते उपलब्धि पर दादा बेहद खुश हैं।
दादा अशोक गुप्ता ने बताया कि करीब दो महीने पहले वो सर्जरी करवाने के लिये मुंबई गये थे, तो उनका पोता पृथ्वी शॉ ने उनसे शिकायती लहजे में कहा था कि वो अंडर-19 टीम का कप्तान बन गया, लेकिन उन्होने इस बात के लिये उन्हें बधाई तक नहीं दी। तब अशोक गुप्ता ने उनसे कहा था कि तुम विश्व कप जीत कर लाओ, मैं क्या तुम्हें पूरी दुनिया बधाई देगी।
4 साल की उम्र में मां को खोया
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पृथ्वी शॉ जब सिर्फ 4 साल के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया था, उन्होने सिर्फ 3 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया था।
15 साल की उम्र में हैरिस शील्ड टूर्नामेंट में शॉ ने 546 रनों की रिकॉर्ड पारी खेली थी, इसी पारी के बाद वो पूरे देश में चर्चा में आए थे।
चाइनीज फूड के दीवाने हैं भारतीय कप्तान
अंडर-19 टीम के कप्तान पृथ्वी चाइनीज फूड के दीवाने हैं, बचपन से उन्हें आलू की भजिया बेहद पसंद है, जब कोई साथी खिलाड़ी उनसे भजिया मांगता था,
तो वो सीधे मना कर देते थे, उनके बारे में कहा जाता है कि वो अपने कोच से भी भजिया शेयर नहीं करते थे, चाइनीज फूड के प्रति उनकी दीवानगी इतनी थी कि वो हर बैटिंग के बाद अपने कोच से चाइनीज या फिर सूप की डिमांड करते थे।
तीन साल की उम्र से सीख रहे क्रिकेट
पृथ्वी शॉ जब सिर्फ तीन साल के थे, तभी उनके पिता पंकज ने उनका एडमिशन संतोष पिंगुलकर की क्रिकेट अकादमी में करा दिया था, वो इतने छोटे थे कि अपना किट बैग तक उठा नहीं पाते थे, इसके बावजूद वो रोजाना प्रैक्टिस करने जाते थे और नेट पर अपनी उम्र से बड़े गेंदबाजों के पसीने निकाल देते थे।
संघर्षपूर्ण जीवन
अंडर-19 के कप्तान का बचपन बेहद संघर्षपूर्ण रहा है, जब उन्होने क्रिकेट खेलना शुरु किया था, तो उन्हें सुबह चार बजे उठना पड़ता था, उन्हें क्रिकेट एकेडमी जाने के लिये रोजाना साढे तीन घंटे ट्रैवल करना पड़ता था, हालांकि बाद में बेटे की परेशानी को देखते हुए उनके पिता ने क्रिकेट एकेडमी के पास ही शिफ्ट कर लिया था, ताकि उन्हें क्रिकेट एकेडमी जाने में ज्यादा परेशानी ना उठाना पड़े।
पिता तैयार करते थे नाश्ता
पृथ्वी शॉ के यहां तक पहुंचने में उनके साथ-साथ उनके पिता का भी भरपूर सहयोग है, जब पृथ्वी छोटे थे, तो उनके पिता सुबह उठकर उनके लिया नाश्ता तैयार करते थे,
ताकि वो खा सके, इसके साथ ही अपने बेटे को आगे बढाने में उन्होने काफी कुछ त्याग किया है। बेटे की वजह से ही उन्होने उनके क्रिकेट एकेडमी के पास ही घर शिफ्ट कर लिया था, ताकि उन्हें ज्यादा परेशानी ना उठाना पड़े।
आईपीएल में भी खेलेंगे
पृथ्वी शॉ को भारत का भविष्य कहा जा रहा है, आईपीएल-11 में वो दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम से खेलते हुए नजर आएंगे।
आपको बता दें कि पृथ्वी को दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम ने 1.2 करोड़ की बोली लगाकर खरीदा है। आईपीएल ऑक्शन में पृथ्वी का बेस प्राइस बीस लाख रुपये थे, उन्हें कई टीम अपने साथ जोड़ना चाहती थी।
सचिन ने की तारीफ
18 वर्षीय बल्लेबाज की क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने भी तारीफ की, उन्होने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें बल्लेबाजी करते हुए देखना अद्भुत है,
वो शानदार बल्लेबाज हैं, आपको बता दें कि विश्व कप जीतने के बाद मास्टर-ब्लास्टर ने टीम इंडिया को ट्वीट कर जीत की बधाई दी है।
साभार: indiabeyondnews.com/viral/prithvi-shaw-personal-life-0218/
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