कैसे इस इंसान ने अपने ठप्प पड़े उद्योग को 2,500 करोड़ के सौदे में किया तब्दील
आज की कहानी एक ऐसे शख्स की है जिन्होंने एक व्यापारी के रूप में साधारण शुरुआत से शीर्ष तक पहुंचने में सफल रहे। लेकिन सफलता के शिखर तक पहुँचने के बाद भी यह परोपकारी व्यवसायी एक बहुत ही सरल और सजीव जीवन का नेतृत्व कर रहे हैं। हालांकि इस व्यक्ति ने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा था लेकिन परिस्थितियों के तले दब कर इन्हें अपना सपना छोड़ना पड़ा और व्यापार की दुनिया में आ फंसे। आज हम इतने बड़े उद्योगपति, परोपकारी और शिक्षाविद को भले ही नहीं जानते होंगें लेकिन इनके द्वारा बनाए उत्पाद को तो पूरा इंडिया जानता है।
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दामजी भाई ‘एंकरवाला’ यह कोई साधारण नाम नहीं बल्कि इस नाम में ही मिलियन डॉलर की एक नामचीन कंपनी छिपी है। अब आप समझ ही गए होंगे कि हम किस कंपनी की बात कर रहें हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं एंकर इलेक्ट्रॉनिक्स की आधारशिला रखने वाले दामजी भाई की सफलता के बारे में। यह ब्रांड आज लगभग देश के हर घर का हिस्सा है। छोटे स्तर एक नामी राष्ट्रीय स्तर की कंपनी बनाने में तरह-तरह की बाधाएँ आई लेकिन दामजी भाई की कठिन मेहनत के सामने यह टिक नहीं सका।
दामजी भाई बताते हैं कि यह सफलता उनके भाई जाधवजी के विश्वास और कड़ी मेहनत की बदौलत ही मिल पाई।
दामजी भाई कच्छ के उसी कुंदरोड़ी गांव से ताल्लुक रखते हैं जहां प्रसिद्ध संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी का जन्म हुआ था। इनके पिता लालजीभाई पैसे लेन-देन का कारोबार करते थे। महज 6 साल की उम्र में दामजी भाई अपने पिता के साथ मुंबई आ गये। इनके पिता मुंबई में खातौ मिल के पास भाखला में एक छोटी सी दुकान शुरू की। दुकान और आवास दोनों एक ही कमरे में था। पूरे दिन दुकान चलाते और फिर रात को उसी कमरे में सोया करते थे। यह सिलसिला करीबन एक वर्ष तक चला।
फिर इन्होंने गांव की ओर पलायन किया लेकिन कुछ ही महीनों बाद पूरा परिवार एक बार फिर से मुंबई में ही आ बसे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक थी क्योंकि गांव में खेती से भी आमदनी होती थी और शहर में बिज़नेस से भी। दामजी भाई ने स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर बनने का सपना लिए मुंबई के खालसा कॉलेज में दाखिला लिया। इसी दौरान इनकी तबियत बुरी तरह बिगड़ गई और कई महीनों तक इन्हें अस्पताल में ही रहना पड़ा। कई महीनों तक पढ़ाई से दूर रहने की वजह से इनका पढ़ाई के प्रति रुची खत्म हो गई और इन्होंने फिर कारोबार में ही हाथ आजमाने का फैसला लिया।
दामजी भाई बताते हैं कि 1960 का दसक में हमारे दुकान के पास एक बंगाली बाबू रहते थे जिनके साथ हमारी अच्छी दोस्ती थी। अपनी मित्रता को बिज़नेस पार्टनर में तब्दील करते हुए इन्होंने मिलकर ‘केबी इंडस्ट्रीज’ नाम से एक कंपनी खोली। मुंबई के मलाद में 900 वर्ग फुट में शुरू हुई यह कंपनी एक वर्ष में ही घाटे में चली गई और ताले लग गये।
अक्सर विफलता सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होती है। केबी इंडस्ट्रीज के बंद होने के बाद दामजी भाई के दिमाग में कुछ नया करने की इच्छा उत्पन्न हुई। इनका अब एकमात्र ही सपना था और वो था कारोबारी सफलता। लेकिन दामजी भाई ने इस बार अकेले कारोबार करने का फैसला करते हुए बाज़ार स्टडी से नई और अनोखी संभावनाओं की तलाश शुरू कर दी। इन्होंने पाया कि उन दिनों इटली से आयात किए जाने वाले इलेक्ट्रिकल स्विच भारत में बेहद लोकप्रिय थे। यहीं से इनके दिमाग में बिजली से संबंधित सामान बनाने का विचार आया।
साल 1963 में इन्होंने उसी बंद पड़े कारखाने में फैंसी स्विच का निर्माण शुरू किया। शुरुआत में लोगों ने इस नए ब्रांड को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया। लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और मुंबई में दुकान-दुकान घूमकर सबसे पहले दुकानदारों को अपने विश्वास में लिया। फिर इन्होंने बाहरी कंपनियों से थोड़े सस्ते पैसे में अच्छी गुणवत्ता के सामान उपलब्ध कराते हुए देश के हर एक घर तक पहुँच गये। कुछ ही वर्षों में उसी छोटे कारखाने से 1.5 करोड़ रूपये की वैल्यूएशन के उत्पादन होने लगे और महज 8 साल में यह आंकड़ा 1100 करोड़ तक पहुँच गया।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में आज यदि कोई कंपनी प्रति दिन 4 लाख स्विच की बिक्री करती है तो वह एंकर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड है। देश की एक नामचीन इलेक्ट्रिकल ब्रांड बनाने के बाद दामजी भाई ने कुछ और कारोबार शुरू करने के बारे में सोचा और इसी कड़ी में इन्होंने एंकर का सौदा जापानी कंपनी पैनासोनिक के हाथों कर दिया।
दामजी भाई बताते हैं कि व्यापक विचार-विमर्श के बाद हमनें कंपनी को जापान के पैनासोनिक को बेचने का फैसला किया। ‘मेरे बेटे अतुल ने बातचीत की और अंत में कंपनी को 2500 करोड़ रुपये में बेच दिया गया। हालांकि यह सौदा मेरे लिए बेहद दर्दनाक था।
एंकर इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड को बेचने के बाद इन्होंने एफएमसीजी सेक्टर में कदम रखते हुए आम आदमी के दैनिक इस्तेमाल की चीजें बनाने शुरू किये। साबुन और टूथपेस्ट जैसी चीजें बनाते हुए इन्होंने कुछ ही वर्षों में इस सेक्टर में भी अपनी पहचान बना ली। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 450 करोड़ के पार है।
दामजी भाई की सफलता से हमें यह सीख मिलती है कि असफलता ही सफलता की कुंजी है। हमें असफलता से कभी हार नहीं माननी चाहिए बर्शते सीख लेते हुए नए शिरे से शुरुआत करनी चाहिए।
साभार: hindi.kenfolios.com/success-story-of-damjibhai/ by Abhishek SumanMarch
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