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Thursday, December 24, 2020

ऋतू राठी बनी गुजरात वैश्य महासम्मेलन गुजरात की प्रभारी

 

ऋतू राठी बनी गुजरात वैश्य महासम्मेलन गुजरात की प्रभारी 


Friday, December 18, 2020

DR. AMIT MAHESHWARI

DR. AMIT MAHESHWARI - जिसके पास फीस भरने के पैसे नहीं थे, आज 200 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं


अमित ने महज 19 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। अभी 42 साल के हैं और 200 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं।

कभी होम ट्यूटर थे, फिर खुद का कोचिंग इंस्टीट्यूट शुरू किया, मोबाइल सुधारना भी सीखा, अब मेटास ओवरसीज लिमिटेड के CEO हैं

जब कोचिंग पढ़ाते थे, तब महीने का 15 हजार रुपए कमाते थे फिर इंस्टीट्यूट शुरू किया तो कमाई 4 लाख तक पहुंची, फिर अपनी कंपनी बनाई

बचपन से ही मुझे लगता था कि मैं एक रईस परिवार से हूं, क्योंकि हम भाई-बहनों के पास पहनने को दो-दो, तीन-तीन शूज होते थे। तीन-तीन यूनिफॉर्म होती थीं, लेकिन जब मैंने 12वीं पास की और कॉलेज में एडमिशन लेने का वक्त आया, तब पता चला कि हम रईस नहीं हैं, बल्कि हमें जरूरत की सब चीजें मां-बाप ने उपलब्ध करवाई हैं। सच्चाई ये थी कि हमारे पास बीकॉम फर्स्ट ईयर में 12 हजार रुपए फीस भरने को नहीं थे और हम जेजे कॉलोनी में रहते थे। उस दिन लगा कि दुनिया हम से बहुत आगे है और अब हमें भी अपने पैरेंट्स को सपोर्ट करने के लिए कुछ करना होगा।

ये कहानी है दिल्ली के डॉ. अमित माहेश्वरी की। वो कहते हैं, 'मुझे कॉलेज की फीस भरनी थी और मैं सोचने लगा था कि क्या किया जाए, जिससे पैसे आएं। मैं अकाउंट में अच्छा था। मैंने सोचा अकाउंट की कोचिंग लेता हूं। उससे जो पैसा आएगा, वो कॉलेज में जमा कर दूंगा। कई कोचिंग इंस्टीट्यूट में गया, लेकिन किसी ने काम नहीं दिया। उनका कहना था कि तुम खुद ही अभी 12वीं पास हुए हो, ऐसे में तुम्हें टीचर की नौकरी कैसे दे सकते हैं। कई दिनों घूमने के बाद मैंने दीवारों पर होम ट्यूटर के पोस्टर लगे देखे। उन्हें देखकर मैंने भी अपने नाम के पोस्टर और नंबर इधर-उधर चिपका दिए।'


अमित कहते हैं कि किसी भी काम को शुरू करने की क्लोजिंग डेट पहले डिसाइड होना जरूरी है।

1200 रुपए की फीस में पढ़ाना शुरू किया

वो बताते हैं कि पोस्टर चिपकाने के कुछ दिन बाद कॉल आना शुरू हुए। एक पैरेंट ने बुलाया। उन्हें मेरे पढ़ाने का तरीका अच्छा लगा तो उन्होंने 1200 रुपए फीस में अपने बच्चे को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी। फिर और भी कॉल आए। मैं कई घरों में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगा। 1200 की जगह 1500 रुपए फीस लेने लगा। जब काम बढ़ा तो कोचिंग वालों का लगा कि ये लड़का कॉम्पीटिशन दे रहा है तो उन्होंने उनकी कोचिंग में मुझे टीचिंग के लिए ऑफर दिया, लेकिन फिर मैं उन इंस्टीट्यूट में नहीं गया, जिन्होंने मुझे पहले रिजेक्ट किया था। एक दूसरे इंस्टीट्यूट में गया। वहां 40 बच्चों के बैच को पढ़ाने का मौका मिला। इसके बाद मुझे आइडिया आया कि क्यों न खुद का ही कोचिंग इंस्टीट्यूट खोल लिया जाए।

अमित कहते हैं, 'फिर घर के फर्स्ट फ्लोर पर एक कमरा था, उसमें कोचिंग पढ़ानी शुरू कर दी। काम अच्छा चल पड़ा। महीने का 15 से 20 हजार रुपए कमा लेता था। दो साल बाद बहन ने भी 12वीं पास कर ली तो वो इंग्लिश पढ़ाने लगी। जो बच्चे मेरे पास अकाउंट और इंग्लिश पढ़ने आते थे, वो फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ्स के लिए दूसरी जगह जाते थे। तो मैंने अपने दोस्तों से बात की। उन्हें अपने यहां पढ़ाने के लिए कहा। कुछ तैयार हो गए और हम सभी सब्जेक्ट्स अपने इंस्टीट्यूट में ही पढ़ाने लगा। फिर दो साल बाद सबसे छोटी बहन भी हमारे साथ आ गई।'

वो कहते हैं कि मेरे एग्जाम थे तो मैंने दूसरे टीचर्स को इंस्टीट्यूट संभालने का कहा। उन्होंने बढ़िया काम किया तो लगा कि जब ये संभाल ही सकते हैं तो क्यों न कोचिंग की और ब्रांच बढ़ाई जाएं। मैंने एक ब्रांच और खोल दी। फाइनल ईयर में आते-आते मेरे इंस्टीट्यूट की आठ ब्रांच हो गई थीं। 350 से 400 स्टूडेंट्स आ रहे थे। मंथली अर्निंग करीब 4 लाख रुपए हो गई थी।

उन्होंने कहा, 'इंस्टीट्यूट्स को मैनेज करने के लिए मैंने नोकिया का एक सेकंड हैंड फोन खरीदा। उसमें कुछ दिक्कत आई तो रिपेयर करवाने ले गया। टेक्नीशियन ने 10 मिनट में फोन ठीक कर दिया और 2 हजार रुपए लिए। मुझे लगा मैं महीनेभर एक बच्चे को पढ़ाकर दो हजार कमा पाता हूं और इसने 10 मिनट में 2 हजार कमा लिए। उस समय मोबाइल मार्केट में बूम भी आ रहा था। मैंने उस टेक्नीशियन से पूछा कि तुम महीने का कितना कमा लेते हो तो उसने कहा 25 से 30 हजार हो जाता है। मैंने कहा मैं 30 हजार और दूंगा, तुम मुझे मोबाइल रिपेयर करना सिखाओ।'

वो बताते हैं कि टेक्नीशियन ने कई चीजें मुझे सिखाईं। फिर मैंने इसके टेक्निकल पार्ट की ऑनलाइन स्टडी की। सबकुछ समझने के बाद मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स का सिलेबस तैयार किया और अपनी कोचिंग में इसे लॉन्च कर दिया। पहली ही बैच में बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। 40 बच्चों का बैच था और एक से हम 15 हजार रुपए फीस ले रहे थे। हमारा प्रॉफिट पांच गुना बढ़ गया। कुछ ही महीनों में मैंने अपनी सभी ब्रांच पर ये कोर्स शुरू करवा दिया।

अमित ने कहा, 'काम अच्छा मिलने लगा तो हमने फ्रेंचाइजी देने का प्लान किया। एक न्यूज चैनल में 22 हजार रुपए का स्लॉट बुक किया और फ्रेंचाइजी का विज्ञापन दिया। इससे पूरे दिल्ली से मेरे पास इंक्वायरी आईं और कई फ्रेंचाइजी शुरू हो गईं। इससे करीब 8 लाख रुपए मुझे मिले। जिससे मैंने अपनी कंपनी में कॉरपोरेट सिस्टम शुरू किया। ऑफिस का रिनोवेशन किया। बहुत सी नई चीजें शुरू कर दीं। इस दौरान मेरी पढ़ाई भी चल रही थी। एमकॉम, एमफिल, पीएचडी की और फिर एमबीए भी किया। ये सब होते-होते 2012 आ गया। ये वो दौर था, जब फोन की टेक्नोलॉजी का मार्केट डाउन होने लगा था तो हम लैपटॉप, टेबलेट, डिजिटल कैमरा रिपेयरिंग में एंटर हुए। इसकी फीस 50 हजार रुपए थी यानी मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स से भी ज्यादा।'

अमित मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। उनका लक्ष्य 2025 तक कंपनी का आईपीओ लॉन्च करने का है।

स्टील को समझने जर्मनी गए
उन्होंने बताया कि इन सबके बीच मेरे मन में हमेशा ये चलता रहता था कि हम और क्या कर सकते हैं। कैसे और आगे बढ़ सकते हैं। मैंने ऑब्जर्व किया कि इंडिया में स्टील का यूज बहुत तेजी से बढ़ रहा है। स्टील मार्केट की स्टडी की तो पता चला कि स्टील किंग तो जर्मनी है। वहीं से सब जगह फैला है। मैं जर्मनी गया और देखा कि वहां काम कैसे होता है। पूरी प्रॉसेस समझी। वहीं मैं डिसाइड कर चुका था कि इस फील्ड में काम करना है। वापस लौटकर स्टील मैन्यूफैक्चरिंग का काम शुरू कर दिया। 2014 में मेरी बन कंपनी Mettas ओवरसीज लिमिटेड बन चुकी थी।

'हमने स्टेनलेस स्टील मॉड्यूलर किचन, वार्डरोब, बाथरूम वैनिटी, और स्टील इंटीरियर का काम शुरू किया। मुझे फ्रेंचाइजी का एक्सपीरियंस था। प्रोडक्ट भले ही अलग हो, लेकिन ये पता था कि बेचना कैसे है। इसके बाद मैंने फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम शुरू किया और 25 लाख रुपए के विज्ञापनों के जरिए कई जगह फ्रेंचाइजी दी। 2014 में हमारी कंपनी के 22 शोरूम हो गए थे। 2020 आते-आते 33 एक्सक्लूसिव शोरूम, 150 डीलरशिप शोरूम, 16 हजार से ज्यादा बिजनेस एसोसिएट पार्टनर और 126 इम्प्लॉई हो गए। पिछले फाइनेंशियल ईयर में कंपनी का टर्नओवर 220 करोड़ रुपए था। अब मेरा विजन 2025 तक कंपनी का आईपीओ लॉन्च करने का है।'

अमित कहते हैं कि लोग अक्सर पूछते थे कि फ्रेंचाइजी कैसे देते हैं, तो मैंने इसका भी एक कोर्स शुरू किया और कंसल्टिंग करने लगा। जिंदगी से मैंने यही सीखा है कि, हर काम की ओपनिंग नहीं, बल्कि क्लोजिंग डेट तय करो। कब किस काम को पूरा करना है, ये आपको पता होना चाहिए। जिस भी काम में आप अपना सौ प्रतिशत देंगे, उसमें आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। जब हम नया काम शुरू करते हैं तो शुरूआत में थोड़ा पीछे भी जाते हैं, कठिनाइयां भी आती हैं, लेकिन सफलता भी मिलती है। यहां मेरी सिर्फ ऊपर जाने की कहानी है, इन सबके बीच में कई दिक्कतें आईं, लेकिन हर दिक्कत ने एक नई राह मुझे दिखाई।

साभार: दैनिक भास्कर 

Thursday, December 17, 2020

ABHIJITA GUPTA - अभिजिता गुप्ता - देश की सबसे छोटी उम्र की लेखिका

ABHIJITA GUPTA - अभिजिता गुप्ता 

मिलिए देश की सबसे छोटी लेखिका अभिजिता गुप्ता से,महज़ 7 साल की उम्र में अपने नाम दर्ज़ किये कई रिकॉर्ड


 कहते है उम्र आपकी काबिलियत की पहचान नहीं होती महज़ 7 साल की इस बच्ची ने इस बात को साबित कर दिया। जिस उम्र में आप और हम माटी में सने रहते थे और मोहल्ले भर की खाक छानते फिरते थे उस उम्र में अभिजिता ने पूरी किताब लिख दी। जी हाँ आप भी हैरान रह गए न ये कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।


दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस के ऑक्सफ़ोर्ड बुक स्टोर में सबसे युवा लेखिका अभिजीता की किताब “हेप्पीनेस आल अराउंड ” का विमोचन हुआ। इस किताब को महज़ 7 साल की नन्ही लेखिका अभिजिता गुप्ता ने लिखी है। इस किताब में कहानियो और कविताओं का संग्रह है। अभिजिता को इस किताब के लिए कई सारे अवार्ड्स मिल चुके है। अभिजिता अपने नाम कई रिकार्ड्स भी कर चुकी है। एशिया बुक ऑफ़ रेकॉर्डस,इंटरनेशनल बुक ऑफ़ रेकॉर्डस में अपना नाम दर्ज़ करवा चुकी है। अभिजीता ने इस किताब को महज़ 3 महीनो में लिखी है। अभिजिता की किताब बच्चो के बिच में काफी पसंद की जा रही है।


अभिजीता ने बातचीत में बताया उन्होंने ये किताब 3 महीने में पूरी की जिसमे उनके मम्मी पापा ने उनकी खूब मदद की। आगे वह एक नोबल लिखना चाहती है जिसमे वह यह बताना चाहती है की लॉकडाउन के समय बच्चो के जीवन में क्या बदलाव आये।

वही जब उनकी मम्मी अनुप्रिया जी से बातचीत की तो उन्होंने बताया की अभिजिता जब 5 साल की थी तभी पहली बार उसने मुझे कहा की मुझे कहानी लिखनी है उसके बाद इस पेन्डामिक के समय हमें काफी समय मिला तो अभिजिता ने अपनी किताब को लिखा। वही पिता आशीष जी ने बताया की हमारे समय में हमारे पेरेंट्स हमें बताते थे हमें क्या करना है लेकिन आज की पीढ़ी अपने माता पिता को बताती है। इस किताब के नाम के लिए हम काफी परेशान थे इसका नाम भी अभिजीता ने हमें सुझाया। वही किताब के पब्लिशर ने बातचीत में बताया की ये काफी चैलेंजिंग था लेकिन हम लकी है की हमें अभिजिता की किताब पब्लिश करने का मौका मिला

जश्न इवेंट के डायरेक्टर सिमा सक्सेना जी ने बातचीत में बताया की जब पहली बार हमें पता चला तो हमें यकीं नहीं हुआ लेकिन जब मै अभिजिता से मिली तो मैं हैरान थी की कैसे महज़ 7 साल की उम्र में कोई किताब लिख सकता है।

सभी लोगो ने अभिजीता को बधाई सन्देश भेजे। आपको बता दे अभिजिता राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त और संत कवी श्री सियाराम शरण गुप्त की तीसरी पीढ़ी है।

AGASTYA JAYSWAL - अगस्त्य जयसवाल

 अगस्त्य जयसवाल 


14 साल की उम्र में।
बी.ए जनरलिज्म की परीक्षा।
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है।
अगस्त्य जयसवाल।14 साल में। स्नातक। प्राप्त करने वाला हिंदुस्तान का यह पहला लड़का बना जो कि कम उम्र में। journalism में। स्नातक किया।

Sunday, December 6, 2020

SOUMYA AGRAWAL IAS

SOUMYA AGRAWAL IAS वतन की मोहब्बत ने आसान कर दिया जिंदगी का सफर, साॅफ्टवेयर इंजीनियरिंग छोड़ बनीं IAS


पावर कॉरपोरेशन की एमडी आइएएस सौम्या अग्रवाल ने लंदन से नौकरी छोड़कर शुरू की थी यूपीएससी की तैयारी। प्रथम बार में ही पास की थी यूपीएससी की परीक्षा दो जिलों में रह चुकीं हैं जिलाधिकारी। 2008 बैच की हैं आइएएस ऑफीसर।

 वतन की मोहब्बत और मेरा पहला इम्तिहान। जिसे मैंने गंभीरता से लिया। उसने मेरी जिंदगी के सफर को इतना आसान बना दिया कि मैंंने पिताजी के भरोसे को फतह किया और दादाजी की ख्वाहिश पूरी कर दी। नौकरी को अलविदा कहने के दो वर्ष बाद नई पारी की शुरुआत हुई और मैं करियर में एसडीएम, सीडीओ, डीएम से लेकर एमडी तक की ऊंचाई पर सुखद अहसास के साथ चढ़ गई।

यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि आइएएस व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (डीवीवीएनएल) की प्रबंध निदेशक (एमडी) सौम्या अग्रवाल की है। उन्होंने दैनिक जागरण से साथ बचपन से लेकर एमडी की कुर्सी तक पहुंचने के सफर की दांस्ता बयां की है। सौम्या की प्राथमिक शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में पूरी हुई। पिता ज्ञानचंद अग्रवाल रेलवे में सिविल इंजीनियर थे। उनका परिवार आलमबाग की रेलवे कालोनी में रहता है। वह हमेशा साइकिल से स्कूल जाती थीं।


सेंट मैरी कांवेंट स्कूल से इंटरमीडिएट पास करने वाली अग्रवाल परिवार की बेटी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया, लेकिन दिल्ली पहुंचने तक भी पढ़ाई की अहमियत को गंभीरता से नहीं समझा। दोस्तों के साथ रहते-रहते दिल्ली में ही साफ्टवेयर इंजीनियर बन गईंं और वर्ष 2004 में पुणे की एक निजी कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ दिन पुणे में रहना हुआ। फिर कंपनी ने ही लंदन भेज दिया। पढ़ाई पूरी हुई और नौकरी मिली जरूर, पर सौम्या के मन को संतुष्टि नहीं मिली। उन्हें लंदन में हमेशा अपने देश की याद सताती रही और देश की वह अवाम याद आती रही, जिसके लिए वह कुछ करना चाहती थीं। इसके अलावा मां-बाप से इतना दूर चला जाना भी उन्हें भड़का रहा था। दो वर्ष की नौकरी में ही कीबोर्ड पर ऊंगलियां कतराने लगीं और सौम्या उसकी टपटप से ऊब चुकी थीं। उन्होंने सारा माजरा पिता को बताते हुए पूछ लिया कि भारत में सबसे उच्च स्तर की नौकरी कौन सी है तो उनके पिता ने आइएएस का जिक्र कर दिया। सौम्या ने उसी वक्त ठान ली, कि आइएएस बनना है। उन्होंने पिता को आश्वास्त किया और वर्ष 2006 में नौकरी छोड़ भारत लौट आईं। लखनऊ में ही सौम्या ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि तीन माह दिल्ली के बाजीराव संस्थान में जरूर कोचिंग की थी। उन्होंने एक वर्ष की कड़ी मेहनत से पहली बार में ही यूूपीएससी का इम्तिहान को समेट कर रख दिया। परीक्षा के परिणाम की सूची में 24वें नंबर पर उनका नाम था और वर्ष 2008 में नवनियुक्त आइएएस सौम्या अग्रवाल ने कानपुर मेंं एसडीएम का कार्यभार संभाल लिया।

सिविल सर्विस में नहीं था परिवार का दूसरा सदस्य

सौम्या की बड़ी बहन पूजा अग्रवाल ने एमटेक करके निजी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। उनकी छोटी बहन जया अग्रवाल ने बिजनेस इकोनोमिक्स में पढ़ाई पूरी की और वह भी प्राइवेट नौकरी करने लगीं। सौम्या बताती हैं कि उनके दादाजी पीसी अग्रवाल पीडब्ल्यूडी में नौकरी करते थे। वे हमेशा कहते थे कि एक बार यूपीएससी की परीक्षा जरूर देनी चाहिए। मैने उनकी ख्वाहिश पूरी की है।

ये है एमडी तक का सफर

सौम्या की नौकरी की शुरुआत कानपुर से हुई। सर्वप्रथम वह कानपुर में उप जिलाधिकारी (एसडीएम) के पद पर तैनात हुईं। महाराजगंज में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) और जिलाधिकारी (डीएम) रहीं। फिर उन्नाव में डीएम रहीं। फिर से उनकी तैनाती कानपुर में केस्को में बतौर एमडी हो गईंं और अब वह डीवीवीएनएल की प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं। 

लेख साभार: दैनिक जागरण 

Saturday, December 5, 2020

Arham Om Talsania - youngest computer programmer

Arham Om Talsania - worlds youngest computer programmer


अहमदाबाद के छह साल के अरहम ओम तलसानिया ने दुनियाभर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर को चौंका दिया है। उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे युवा कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में दर्ज हो गया है। उसने कम उम्र में पायथन प्रोग्रामिंग भाषा की परीक्षा को उत्तीर्ण कर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया है। उसने पहले से दर्ज पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश छात्र सात वर्षीय मुहम्मद हमजा शहजाद के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है। कक्षा 2 के छात्र अरहम ओम तल्सानिया ने पियर्सन वीयूई परीक्षण केंद्र में Microsoft प्रमाणन परीक्षा को मंजूरी दे दी है। तलसानिया ने बताया, “मेरे पिता ने मुझे कोडिंग सिखाई। जब मैंने 2 साल की थी तब मैंने उपयोग शुरू कर दिया था। 3 साल की उम्र में, मैंने iOS और विंडोज के साथ गैजेट्स खरीदे। बाद में, मुझे पता चला कि मेरे पिता पायथन में काम कर रहे थे। जब मुझे पायथन से मेरा प्रमाण पत्र मिला, तो मैं छोटे खेल बना रहा था। कुछ समय बाद, उन्होंने मुझे काम के कुछ सबूत भेजने के लिए कहा। कुछ महीने बाद, उन्होंने मुझे मंजूरी दी और मुझे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट मिला। तल्सानिया ने कहा, “मैं एक उद्यमी बनना चाहता हूं और सभी की मदद करना चाहता हूं। मैं कोडिंग के लिए ऐप, गेम और सिस्टम बनाना चाहता हूं।

मैं जरूरतमंदों की मदद करना चाहता हूं।अरहम तल्सानिया के पिता ओम तल्सानिया जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने कहा कि उनके बेटे ने कोडिंग में रुचि विकसित की थी और उन्होंने उसे प्रोग्रामिंग की मूल बातें सिखाईं। “जब वह बहुत छोटा था तब से उसे गैजेट्स में बहुत दिलचस्पी थी। वह टैबलेट डिवाइस पर गेम खेलता था। वह पहेलियों को भी हल करता था।

जब उन्होंने वीडियो गेम खेलने में रुचि विकसित की, तो उन्होंने इसे बनाने के लिए सोचा। वह मुझे कोडिंग करते देखते थे, ”उन्होंने कहा। “मैंने उसे प्रोग्रामिंग की मूल बातें सिखाईं और उसने अपने छोटे खेल बनाने शुरू कर दिए। उन्हें Microsoft प्रौद्योगिकी सहयोगी के रूप में भी पहचान मिली। हमने गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए भी आवेदन किया था। यह परीक्षा 23 जनवरी 2020 को माइक्रोसाफ्ट द्वारा अधिकृत पियर्सन व्यू टेस्ट सेंटर में आयोजित की गई थी। यह परीक्षा बहुत ही कठिन होती है।

इसे बड़े-बड़े इंजीनियर भी उत्तीर्ण नहीं कर पाते। लेकिन अरहम ने इसे कर दिखाया। इस परीक्षा में अरहम ने 900 अंक हासिल किए और उसे माइक्रोसफ्ट टेक्नोलॉजी एसोसिएट के रूप में मान्यता मिली है। उसके पिता ओम तलसानिया पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और माता तृप्ति तलसानिया शिक्षक हैं। अरहम ने कहा कि पिता ने कोडिंग सिखाई।

Friday, December 4, 2020

Thursday, December 3, 2020

GOUTAM ADANI - बिल गेट्स को भी पीछे छोड़ा अडाणी ने

बिल गेट्स को भी पीछे छोड़ा अडाणी ने:कमाई के मामले में अंबानी हुए पीछे, गौतम अडाणी ने हर रोज कमाया 456 करोड़ रुपए


दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में मुकेश अंबानी 11वें स्थान पर पहुंचे
ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स में गौतम अडाणी इंडेक्स में 40वें स्थान पर काबिज

महामारी के दौरान देश में प्रतिदिन सबसे ज्यादा कमाई करने वाले शख्स गौतम अडाणी हैं। उन्होंने प्रतिदिन कमाई के लिहाज से कई दिग्गजों के पछाड़ दिया है। इसमें रिलायंस ग्रुप के ओनर मुकेश अंबानी और माइक्रोसॉफ्ट के ओनर बिल गेट्स समेत कई अन्य शीर्ष कारोबारी शामिल हैं। ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स के मुताबिक 2020 में गौतम अडाणी ने अबतक प्रतिदिन 456 करोड़ रुपए कमाए। इस लिस्ट में एलन मस्क टॉप पर हैं। मस्क ने प्रतिदिन 2.12 हजार करोड़ रुपए कमाए।

सबसे आगे एलन मस्क

इंडेक्स के मुताबिक जनवरी 2020 से 21 नवंबर तक एलन मस्क की संपत्ति 69 लाख करोड़ रुपए बढ़ी है। वहीं, गौतम अडाणी की नेटवर्थ में 1.48 लाख करोड़ रुपए की बढ़त दर्ज की गई। मुकेश अंबानी और बिल गेट्स की संपत्ति में भी 1 से 1.07 लाख करोड़ रुपए की बढ़त हुई है। दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में मुकेश अंबानी कुल नेटवर्थ 5.35 लाख करोड़ नेटवर्थ के साथ 11वें स्थान पर आ गए हैं, जो 8 अगस्त को चौथे स्थान पर थे। दूसरी ओर, गौतम अडाणी इंडेक्स में 40वें स्थान पर काबिज हैं।


नेटवर्थ में बढ़ोतरी
कंपनियों में प्रमोटर्स की हिस्सेदार अधिक होती है, तो मुनाफे में भी भागीदारी अधिक होती है। इससे कंपनी के मुनाफे से प्रमोटर्स यानी ओनर की नेटवर्थ भी बढ़ती है। इस लिहाज से गौतम अडाणी की कंपनियों ने शानदार मुनाफा कमाया है।

अडाणी की नेटवर्थ में बढ़त क्यों?

बाजार में अडाणी ग्रुप की 6 कंपनियां लिस्ट हैं। दूसरी तिमाही में अडाणी ग्रीन और अडाणी ट्रांसमिशन को छोड़ अन्य चार को अच्छा मुनाफा हुआ है। इसमें अडाणी गैस, अडाणी इंटरप्राइजेज, अडाणी पोर्ट और अडाणी पावर शामिल है।
ग्रुप की कंपनियों के शेयरों ने जनवरी से अबतक शानदार बढ़त दर्ज किया है। अडाणी ग्रीन का शेयर 550% तक ऊपर चढ़ा है। अडाणी गैस और अडाणी इंटरप्राइजेज के शेयरों में भी शानदार बढ़त देखने को मिली।
फोर्ब्स के मुताबिक अडाणी ग्रुप की आय 13 बिलियन डॉलर है, जो डिफेंस, पावर जनरेशन और ट्रांसमिशन, एडिबल ऑयल और रियल एस्टेट से आता है।

क्यों पिछड़े अंबानी?

पिछले साल की तुलना में सितंबर तिमाही में RIL का मुनाफा 15%घटा है।
16 सितंबर को RIL का शेयर 2,324.55 रुपए के भाव से ट्रेड कर रहा था, जो 20 नवंबर को 18% फिसलकर 1,899.50 पर बंद हुआ था।
NSE में 45 दिनों में रिलायंस ग्रुप का मार्केट कैप भी 15.68 लाख करोड़ रुपए से 2.97 लाख करोड़ रुपए घटकर 12.71 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
फोर्ब्स के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज का रेवेन्यू 88 बिलियन डॉलर का है। कंपनी का मुख्य कारोबार पेट्रोकेमिकल, ऑयल एंड गैस, टेलीकॉम एंड रिटेल का है।

देश के सबसे अमीर अंबानी के सामने कहा टिकते हैं अडाणी -

ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मुकेश अंबानी का टोटल नेटवर्थ 5.35 लाख करोड़ रुपए है। मुकेश एशिया के सबसे अमीर और दुनिया के 11वे सबसे अमीर शख्स हैं। वहीं, गौतम अडाणी का नेटवर्थ 2.32 लाख करोड़ रुपए है। दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में 40वें स्थान पर हैं।


कंपनियों का मार्केट कैप

रिलायंस ग्रुप के तहत 6 कंपनियां शेयर मार्केट में लिस्ट हैं। इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, डेन नेटवर्क, हैथवे केबल, नेटवर्क 18 मीडिया नेटवर्क, RIL इंडस्ट्रीयल इंफ्रा, हैथवे भवानी केबल शामिल हैं। BSE में केवल रिलायंस इंडस्ट्रीज का मार्केट कैप 12.84 लाख करोड़ रुपए है।
RIL में ऑयल, रिटेल, जियो और पेट्रोकेमिकल सहित अन्य प्रमुख कारोबार शामिल हैं।
अडाणी ग्रुप की कुल 6 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्ट हैं। BSE में अडाणी ग्रुप की इन कंपनियों का टोटल मार्केट कैप 3.89 लाख करोड़ रुपए है। इसमें अडाणी ग्रीन का मार्केट कैप 1.77 लाख करोड़ रुपए है।


अन्य प्रमुख कारोबार

रिलायंस ग्रुप का प्रमुख कारोबार एनर्जी क्षेत्र का है। 2016 में कंपनी ने टेलीकॉम सेक्टर में इंट्री ली। वर्तमान में 35% हिस्सेदारी के साथ मार्केट लीडर है। इसके अलावा RIL रिटेल कारोबार में भी कारोबार को तेजी से बढ़ा रहा है। इसके तहत उसने फ्यूचर ग्रुप के रिटेल बिजनेस का 24 हजार करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया है, जिसे CCI ने हाल ही मंजूरी दी है।

गौतम अडाणी को पोर्ट टायकून कहा जाता है। अडाणी गुजरात के सबसे बड़े और देश के सबसे व्यस्त मुंद्रा पोर्ट को ऑपरेट करते हैं। साथ ही कोल माइनिंग और अन्य नेचुरल रिसोर्सेस के क्षेत्र में अडाणी का कारोबार फैला हुआ है। गैस और बिजली वितरण, थर्मल पावर, रियल एस्टेट, ग्रॉसरी, एयरपोर्ट और एडिबल ऑयल सेगमेंट में भी ग्रुप की बड़ी हिस्सेदारी है। देश के सबसे व्यस्त मुंबई एयरपोर्ट में 74% हिस्सेदारी अडाणी के पास है।


अडाणी ग्रुप का फोकस

अडाणी ग्रुप आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम शहर में डेटा सेंटर के लिए अगले 20 सालों में 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगी।
अडाणी इंटरप्राइजेज एयरपोर्ट बिजनेस के विस्तार में अगले 5 सालों में 50 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा।
लगभग एक दशक के बाद 2019 में अडाणी ग्रुप को ऑस्ट्रेलिया के 16 बिलियन डॉलर के कोल प्रोजेक्ट मामले में जीत हुई है। इससे सालाना लगभग 6 करोड़ टन कोयला उत्पादन का अनुमान है।
अडाणी ग्रुप केरल के त्रिवेंद्रम इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अधिग्रहण पर काम कर रही है। यह अभी राज्य सरकार के साथ विवाद के चलते रुका हुआ है।
अडाणी ग्रीन एनर्जी ने इसी साल जून में 6 बिलियन डॉलर (44.50 हजार करोड़ रुपए) के पावर प्रोजेक्ट की घोषणा किया है।

रिलायंस ग्रुप का फोकस

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने अमेरिका की ब्रेकथ्रू एनर्जी वेंचर्स लिमिटेड II LP (BEV) में 50 मिलियन डॉलर यानी करीब 372 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। RIL ने कहा है कि इस निवेश को लेकर दोनों कंपनियों के बीच समझौता हो गया है। ब्रेकथ्रू एनर्जी ग्रुप को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स लीड करते हैं।
हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने रिलायंस और फ्यूचर ग्रुप के डील को मंजूरी मिली है। इसके तहत रिलायंस, फ्यूचर ग्रुप के रिटेल, होलसेल, लॉजिस्टिक्स और वेयर हाउसिंग कारोबार का अधिग्रहण करेगी।
25 सितंबर से 9 नवंबर के बीच RIL ने रिटेल वेंचर में 10% हिस्सेदारी बेचकर 47 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम जुटाई है।

साभार: दैनिक भास्कर 

HARSHIT BANSAL - हर्षित बंसल ने बनाया विश्व कीर्तिमान

 

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Wednesday, December 2, 2020

SANJEEV GOYAL - वैश्य गौरव

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SANJEEV GOYAL - IITINS - VAISHYA GOURAV


साभार: अमर उजाला