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Tuesday, October 28, 2025

#KALWAR VAISHYA - कलवारों के भगवान बलभद्र

#KALWAR VAISHYA - कलवारों के भगवान बलभद्र

आप सभी हैहयवंशी, बलभद्रवंशी कलचुरी राजवंश में उत्त्पन समस्त कलवार, कलार और कलार बंधुओं को हार्दिक बधाई और आत्मीय शुभकामनाएं देते हुए अंतर्मन से आह्लादित हूँ।


ब्रह्मा को सृष्टि रचियता मानते हुए यदि वंशावली का अवलोकन किया जाये तो ब्रह्मा से भृगु, शुक्र, अत्तरी, चंद्र .... होते हुए बीसवीं पीढ़ी में चक्रवर्ती राजधिराज श्री कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन जी महाराज उत्प्पन हुए और इनके प्रपोत्र के प्रपोत्र श्री बलभद्र जी द्वापरयुग में अवतरित हुए।

श्री विष्णु की सेविका योगमाया ने कंस के कारगृह में बंदी जीवन जीने वाली माता देवकी के सातवें गर्भ को श्री वसुदेव की धर्मपरायणा पत्नी रोहिणी के गर्भ में संकर्षण विधि के द्वारा स्थापित कर दिया। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रोहिणी नक्षत्र, तुला लग्न में भगवान प्रकट हुए।

बाल्यकाल में अपने अनुज श्री कृष्ण के साथ कई लीला करने वाले बलराम के सहस्त्र नाम हैं पर उनमें नौ नाम प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार हैं – 1. संकर्षण, 2. अनंत, 3. बलदेव, 4. हली, 5. शीतिवासा, 6. मूसली, 7. रेवतीरमण, 8. रौहिणेय और 9. बलभद्र

श्री बलभद्र की पूजा केवल कलवार, कलाल और कलारों के द्वारा जन्मोतस्व के रूप में ही नहीं मनाया जाता है अपितु देश के कई भागों में अलग अलग रूप में होती है। मध्य और पश्चिम भारत में मनाया जाने वाला हलषष्ठी का व्रत भी श्री बलभद्र को ही समर्पित है और श्री बलभद्र की तरह बलशाली और श्रेष्ठ आचरणभाषी पुत्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है, जिसमे औरतें जमीन में पैदा होने वाले उस तरह के अनाज का प्रयोग नहीं करती जिसमें हल का प्रयोग होता रहा है, साथ ही गाय के दुग्ध या इससे बने पदार्थ का उपयोग भी नहीं करती हैं।

बलभद्र किसानों के भी देवता हैं और उनके प्रेरक भी। हल और मुसल जैसे कृषकयंत्रों को शस्त्र के रूप में प्रयोग कर कृषक को कुशल योद्धा बना दिया।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में सम्पूर्ण भारत वर्ष में 500 से भी अधिक स्थानों पर बलभद्र जन्मोतस्व मनाया जाता है साथ ही कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया ... जैसे विकसित देशों में भी बलभद्र जनमोत्स्व की धूम रहती है।

विश्वप्रसिद्ध श्री जगन्नाथ धाम की पुरी रथ यात्रा जिसमें भगवान् श्री बलभद्र अपने अनुज और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान रहते हैं। पश्चिम बंगाल का विश्व प्रसिद्ध मायापुर मंदिर के साथ इस्कॉन मंदिर में भी श्री बलभद्र अपने अनुज के साथ वास करते हैं।

ब्रह्मा जी के द्वारा रचित और श्री बलभद्र को समर्पित षोडशाक्षर मंत्र "ॐ कीं कालिंदी भेदनाय संकर्षणाय स्वाहा" का जाप दुःख, व्याधि और पापों को हरने वाला है।

मेरी जानकारी में यह जाति एकमात्र ऐसी जाति है जो आदि काल से विवाह संबंधों में "बान" का प्रयोग करती है। इस बान प्रथा के कारण नजदीकी रिश्तों (वर/ वधु के पिता के खुद का वंश - मूलबान , वर/ वधु के पिता की दादी का मायका का वंश - ददियाउर , वर/ वधु के पिता के नाना का वंश - ननियाउर, वर/ वधु के माता के मायके का वंश - ससुराल, वर/ वधु के माता के नाना का वंश - सास का नैहर) में शादी नहीं होती है, जिसे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है और आधुनिक विज्ञान में 'MARRIAGE WITHIN BLOOD RELATION AND EFFECT' के शीर्षक से कई शोध पत्र मौजूद हैं, यानि विज्ञान ने जिसे आज माना, वह ज्ञान हमारे पास कई सौ वर्षों पूर्व से ज्ञात है।

श्री बलभद्र से हमारा सम्बन्ध आदिकाल से चला आ रहा है जिसका प्रमाण हमारे रीति- रिवाज और प्रथा में हज़ारों हज़ार साल से है। स्वजातीय समाज में आज कि तारीख में भी होने वाले सारे वैवाहिक कार्यक्रम में भगवान् श्री बलभद्र की पूजा कुलदेव के रूप में ही होती आ रही है और इस पूजन के बिना विवाह संपन्न ही नही हो सकते।

कलवार समाज अपने शादी ब्याह में जिस बेलभदर (यह भाषाई अपभ्रंश है सही उच्चारण बलभद्र है) के बात का जिक्र करता है वह वास्तव में बलभद्र का भात है यानी हमारे कुलदेवता भगवान बलभद्र और बलभद्र मनावन की रस्म भी अपने भगवान बलभद्र को मनाने से जुड़ी है।

महाभारत काल में भगवान् बलभद्र ने जब सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से तय कर दिया तो श्री कृष्ण को यह नागवार गुजरा और उन्होंने अपने सखा अर्जुन को समझा कर सुभद्रा का अपहरण करवा लिया। जिस रथ में सुभद्रा को लेकर अर्जुन गए उस रथ को खुद सुभद्रा ही चला रही थी। जब श्री बलभद्र को यह जानकारी हुई तो वे क्रोधित हो गए हुए अर्जुन को दण्डित करने निकल पड़े। तब श्री कृष्ण ने दाऊ को समझाया कि “हमारी बहन अर्जुन से प्रेम करती हैं और वह रथ चला कर अर्जुन का अपहरण कर के ले गई है।अर्जुन अपराधी नहीं हैं तथा वह सुभद्रा के लिए सुपात्र भी है |" इस तरह बलभद्र जी को बहुत अनुनय विनय कर के मनाया गया। इसी अनुनयपूर्वक मनाने की विधि को "मनावन" बोला जाता है। श्री बलभद्र जी मान गए और विवाह हेतु शुभाशीष दिया | तभी से कलवार जाति में बलभद्र मनावन की परंपरा चली आ रही है इस विधि को मान कर ही आज भी विवाह सम्पन्न होते हैं|

इस रस्म को मानाने के लिए सर्वप्रथम कुम्हार के घर से बलभद्र जी की एक मिट्टी की छोटी प्रतिमा लाई जाती है | इस प्रतिमा को जौ से सजाया जाता है | बाजे गाजे के साथ इस प्रतिमा को घर की महिलाएं ले कर आती हैं इसे “श्री बलभद्र लाना” कहतें हैं| वैवाहिक विधि - विधान में हल के पाटे का भी उपयोग किया जाता है, जिसे शिरीष कहते हैं। उपवास रह कर अति शुद्धता और भक्ति के साथ पूजा स्थान पर कुल देवता बलभद्र जी को स्थान दिया जाता है और पूजा की जाती है | छोटे छोटे चुकिया कलश जो ढक्कन के साथ होता है उनके सम्मुख रखा जाता है | इन पात्रों को चना दाल तथा शुद्ध घी से बने मीठी बुंदिया से भरा जाता है और ढक दिया जाता है | एक पात्र में चीनी का शरबत भी भरा जाता है | एक पत्तल में पान का बीड़ा, और दांत सफा करने हेतु खरिक्का रखा जाता है | श्री बलभद्र भगवान जी को भोग लगाने के लिए “कच्ची रसोई” जैसे भात, दाल, बजका, बरी, अदौरी, फुलौरा (एक तरह की खास मिठाई), सब्जी, इत्यादि बनायीं जातीं है, फिर थाली में भोग लगाया जाता है | प्रसाद में अर्पित भोग को उसी थाली में मिला कर अपने वंश के सदस्यों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है !

यह पूजा 5 पुरुष जो कि अपने कुल (एक मुलबान) के होते हैं, करतें हैं | ये पांचो व्यक्ति उस थाली को पकड़ कर एक सदस्य प्रश्न करता है और शेष ४ के साथ अन्य उपस्थित समूह उत्तर देता है!

प्रश्न 1 “बलभद्र जी उठलें ? ” उत्तर 1“ हाँ उठलें !”

प्रश्न 2 “ बलभद्र जी मुहँ धोवलें ?”

उत्तर 2 - “ हाँ धोवलें !”

प्रश्न 3 “बलभद्र जी खाना खइलन ?”

उत्तर 3 - “हाँ खइलन !”

प्रश्न 4 “बलभद्र जी कुल्ला कइलन ?”

उत्तर 4 - सबकोई मिलकर स्वांग करते हुए एक साथ “हाँ कुल्ला कइलन!”

प्रश्न 5 “बलभद्र पान खइलन”

उत्तर 5 सभी पान खाने के स्वांग के साथ देते है “हाँ खइलन!”

इसे सम्पन्न करने के बाद समझा जाता है कि बलभद्र जी अब मान गए हैं, अतः उनके आशीर्वाद से विवाह निर्विघ्न रूप से संपन्न होगा |

विवाह होने तक श्री बलभद्र जी की प्रतिमा को पूजा घर में रखा जाता है | “चौठारी” (विवाह का चौथा दिन - दूल्हा - दुल्हन के हांथों के मंगल बंधनवार को खोलने तथा मंदिरों में दर्शन वाले दिन ) इस प्रतिमा को बड़े ही श्रद्धा, सम्मान और प्यार से नजदीक के नदी में विसर्जित कर दिया जाता है |

यह श्री बलभद्र के वंशज होने का आध्यात्मिक और धार्मिक प्रमाण है।

अब स्वजातीय समाज के सामाजिक और राजनितिक स्थिति पर नज़र डालने से पता चलता है की पुरे भारत वर्ष में लगभग 10 करोड़ की आबादी वाला यह समाज आज जाग्रत हो रहा है और राजनितिक भागीदारी की मांग करने लगा है।

भारत वर्ष में जाति प्रथा आदि काल से चली आ रही है। प्रारंभ की वर्ण व्यवस्था आज जातियों व उपजातियो में बिखर चुकी है। दिन प्रतिदिन यह लघु रूपों में बिखरती जा रही है। आज की कलवार, कलाल या कलार जाति जो कभी क्षत्रिय थी, आज कई राज्यों में वैश्यों के रूप में पहचानी जाती है। यह हैहय वंश या कलचुरि वंश की टूटती हुई श्रंखला की कड़ी मात्र है। इसे और टूटने से बचाना है।

वर्ण व्यवस्था वेदों की देन है, तो जातियाँ व उपजातियाँ सामाजिक व्यवस्था की उपज है।

कलवार शब्द की उत्पत्ति का अध्ययन करने पर पता चलता है कि मेदिनी कोष में कल्यपाल/ कल्पपाल शब्द का अर्थ 'न्यायाधिपति प्रजापति' है। कल्यपाल/ कल्पपाल शब्द का अपभ्रंश ही कलवार है।

कल्हण कृत राज तरंगिणी संस्कृत ग्रन्थ में जो काश्मीर के प्राचीन महाराजाओं का इतिहास है, राज्यक्रम का वर्णन करते हुए आचार्य ने करकोटि राज्यवंश के पश्चात कल्पपाल राज्यवंश का वर्णन किया है। कल्पपाल के वंशज अपने आगे वरमन उपाधि का प्रयोग करते हैं। वरमन की उपाधि केवल क्षत्रिय के लिए प्रचलित थी। आज भी कलवार जाति के लोग इस उपाधि का प्रयोग करते हैं। इस उपनाम के लोग बंगाल में बहुतायत में हैं और आज भी खुद को क्षत्रिय ही मानते हैं।

पद्मभूषण डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक "अशोक का फूल" में लिखा हैं कि कलवार हैहय क्षत्रिय थे। सेना के लिए कलेऊ की व्यवस्था करते थे, इसीलिए कालांतर में वैश्य कहलाये। क्षत्रियो के कलेवा में मादक द्रव्य भी होता था, इसी लिए ये मादक द्रव्यों का कारोबार करने लगे और आगे चलकर इस मादक द्रव्य ने कलवार की सामाजिक मर्यादा घटा दी।

श्री नारायण चन्द्र साहा की जाति विषयक खोज से यह सिद्ध होता हैं की कलवार उत्तम क्षत्रिय थे। जब गजनवी ने कन्नौज पर हमला किया तो उसका मुकाबला कालिंदी पार के कलवारों ने किया था, जिसके कारण इन्हें कलिंदिपाल भी बोलने लगे। इसी कलिंदिपाल का अपभ्रंश भी कलवार ही हैं।

संस्कृत व्युत्पत्ति से कलवार शब्द का भी अपना एक स्वत्रन्त्र अर्थ है - यथा कलः सुन्दरः वारयस्य यानी जिनके दिन वाणिज्य व्यवहारादि द्वारा सुखमय रहते हों, वे कलवार कहलाये।

आचार्य क्षितिमोहन सेन शास्त्री ने भारत वर्ष में जाति भेद" नामक पुस्तक के पृष्ठ 153 में लिखा है -

"गुरु गोविन्द सिंह के खालसा धर्म में जाति धर्म निर्विशेष सभी सादर स्वीकृत हुए हैं उनमे कलवार यानी मद्य विक्रेता कलाल जाति भी क्रमशः अभिजात हो सकी है।"

हैययवंशी क्षत्रिय कलवार, कलाल व कलार का ज्ञात इतिहास लाखों साल पुराना है। स्वजातीय इतिहास में नर्मदा नदी तट स्थित और राजा हैहय के प्रपौत्र महिष्मान द्वारा बसाया गया महिष्मति नगर (वर्तमान में मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में महेश्वर के नाम से प्रसिद्द है, जो कार्तवीर्य सहस्त्ररार्जुन जी महाराज कि राजधानी थी) का विशेष धार्मिक महत्व है। इसी तरह शेषनाग अवतार श्री बलभद्र जी से सम्बंधित गोकुल, मथुरा ...आदि के भी धार्मिक रूप से विशेष महत्व हैं।

अनुसंधानों से पता चलता हैं कि कलवार जाति के तीन बड़े - बड़े हिस्से हुए हैं, वे हैं प्रथम पंजाब दिल्ली के खत्री, अरोरे कलवार यानि की कपूर, खन्ना, मल्होत्रा, मेहरा, सूरी, भाटिया , कोहली, खुराना, अरोरा ...... इत्यादि। दूसरा हैं राजपुताना के मारवाड़ी कलवार यानि अगरवाल, वर्णवाल, लोहिया ..... आदि। तीसरा हैं देशवाली कलवार जैसे अहलूवालिया, वालिया, बाथम, शिवहरे, माहुरी, शौन्द्रिक, साहा, गुप्ता, महाजन, कलाल, कराल, कर्णवाल, सोमवंशी, सूर्यवंशी, जैस्सार, जायसवाल, व्याहुत, चौधरी, प्रसाद, भगत ..... आदि।

कश्मीर के कुछ कलवार बर्मन तथा कुछ शाही उपनाम धारण करते हैं। झारखण्ड के कलवार प्रसाद, साहा, चौधरी, सेठ, महाजन, जायसवाल, भगत, मंडल .... आदि प्रयोग करते हैं। नेपाल के कलवार शाह उपनाम का प्रयोग करते हैं। जैन पंथ वाले जैन कलवार कहलाये।

आज इस इतिहास को जान जान तक पहुंचाने की नितांत आवश्यकता है ताकि हमारी वर्तमान और आगामी पीढ़ी इसे सहेज कर और समृद्ध बना सके।

IIजय कलवार, जय कलाल व जय कलारII

IIजय सहस्त्रार्जुन, जय बलभद्र II

#KALWAR VAISHYA - कलवार/ कलाल/ कलार की उपजाति बियाहुत/ ब्याहुत/ वियाहुत में बान प्रथा

#KALWAR VAISHYA - कलवार/ कलाल/ कलार की उपजाति बियाहुत/ ब्याहुत/ वियाहुत में बान प्रथा

कलवार/ कलाल/ कलार की उपजाति बियाहुत/ ब्याहुत/ वियाहुत में शादी- ब्याह में बान (बाण नही) मिलाने की परंपरा युगों से चली आ रही है और इसके बिना आज भी शादी की बातें तय नही होती है।

सारांश यह है कि इस उपजाति में आज भी शादी-ब्याह के लिए प्रथम अध्याय (स्टेप/ कदम) के रूप में इसकी कड़ाई से जांच की जाती है। 

बान मिलान का मूल उद्देश्य पूरी तरह वैज्ञानिक है, आधुनिक विज्ञान (Modern Science) में "MARRIAGE WITHIN BLOOD RELATION AND EFFECT" के शीर्षक से सैकड़ों अनुसंधान पत्र (Research paper) उपलब्ध है। 【इस पर विस्तार से आगामी किसी अंक में जानकारी उपलब्ध कराऊंगा।】

बान का संबंध मुख्य रूप से बियाहुत/ ब्याहुत/ वियाहुत के मूल निवास (प्रारम्भिक खानदान/ वंश के निवास का मूल स्थान) स्थान/ जगह से जुड़ा हुआ है।

कालांतर में जीविकोपार्जन के लिए यह समुदाय जब देश के अलग अलग हिस्सों में प्रवास करने गया तो अपने साथ दो चीजें मुख्य रूप से ले गया, एक तो मूल स्थान का नाम और दूसरी चीज वहां की वह माटी (मिट्टी) जिस पर कुलदेवता का पूजन होता था।
 
आज भी बियाहुत/ ब्याहुत/ वियाहुत उपजाति के लोग जब किसी नए घर का निर्माण करते हैं तो पुत्र के शादी के शुभ मुहूर्त में पुराने घर से उस माटी का एक अंश लाकर अपने नए पूजा स्थल पर लाकर रखते हैं जिसे देवता को घर मे स्थापित करने का नाम दिया जाता है।

इसके बारे में विस्तार से चर्चा किसी अन्य अंक में करूंगा।

बान मिलान की प्रक्रिया किसी भी विज्ञान से ज्यादा प्रामाणिक है और किसी भी जाति में इस कठोरता से इसका पालन नही होता है।

बान जो मुख्य रूप से गोत्र/ वंश/कुल/ पूर्वजों की पहचान का ही बोध या पहचान कराता है, में वर - वधू के साथ कई अन्य संबंधों या पीढ़ियों के भी बान का भी मिलान किया जाता है।

पहले ग्यारह, फिर नौ, सात बान को मिलाया जाता था, कुछेक साल पहले तक पांच मिलाया जाता था अब तो कई जगह सिर्फ तीन को ही मान्यता दी जाती है।

ये पांच बान इस प्रकार हैं-

1 मूलबान - यह वर/वधु के पिता के कुल/ वंश की पहचान है।
2 ददियाउर/ ददिआउर - वर/ वधु के पिता की दादी के मायका का कुल/ वंश की पहचान है।
3 ननियाउर/ ननिआउर - वर/ वधु के पिता के नाना के कुल/ वंश की पहचान है।
4 ससुराल - वर/ वधु के पिता के ससुराल के कुल/ वंश की पहचान।
5 सास का नैहर - वर - वधू के पिता की सास के मायका के कुल/ वंश की पहचान है।

अब जहां मात्र तीन बान के मिलान की परंपरा चल रही है वहां क्रम संख्या 3 और 5 को छोड़ दिया जाता है।

ऊपर जैसा बताया गया है कि बान में आये शब्द मूल स्थान से संबंध रखते हैं तो उसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि

काश्मीर से आये कसमीरिया, पवई से आये लोग जिनका व्यवसाय खेती- बाड़ी थी पवई के किसान कहलाये ठीक उसी तरह कटेसर से आये बंधु जो वहां जमींदार थे या ग्रामीण न्यायिक व्यवस्था में मुख्य स्थान रखते थे कटेसर के पांडे (पाण्डेय) कहलाये।

अब उन 360 बानों की सूची नीचे दी जा रही है-

1 अमनैक
2 आमी
3 अमिला
4 अबही/एबही
5 अबसा/ अबासा
6 अबकहीला
7 अवसाही
8 अवैसा
9 अटौनी
10 ओटवनिया
11 अतिमी/ आतमी
12 अधेना
13 अनौर/ अनौरा
14 आररुआ
15 अरवनिया
16 अहिरोन्हो
17 औसार
18 औसाईं
19 औराई कारक
20 उग्रसेनिया/ उग्रसेरिया
21 उटेहिया
22 उनाद
23 उनुआंच
24 उरदगाई
25 इकौना/ एकौना
26 कठेठ
27 कटेसर
28 काटना/ कटना
29 कटसवा/ कटसरवा
30 कटारिया/ कटरिया
31 कठेरा
32 कटेर/ कटरेह
33 कटेस/ काटस
34 कटौरा/ कटउरा
35 कठियारी
36 कटियार/ कटिहारा
37 कंटेली
38 कनैल (करनैल, करनलय)
39 कमलसार
40 कसमल
41 कपड़हार
42 करहरा
43 करंजहा/करनजाहा
44 कलिल
45 करैल (करैलिया)
46 करगहिया
47 कन्नौज (कन्नौजिया)
48 कलनुआं
49 कारक
50 कसमीरिया
51 कांटे
52 कांटे कारक
53 कांटेकर कमल/ काँटेकारक कमल
54 किसान
55 कुढाढी
56 केसरवानी
57 कैथहर
58 कैथार
59 कोधपाकर
60 खगेसर/ खतेसर
61 खटपच
62 खनखना
63 खटैया
64 खटौंच
65 खरउना
66 खरैया
67 ख़रीरा
68 खानत
69 खपडतात
70 खपराहा
71 खुरवे
72 गढ़हा/ गड़हिया
73 गमफूल
74 गमैल
75 गरैया
76 गवाइख/गवइल/गवइत
77 गायन
78 गाँव नुनहर
79 गाफर
80 गंगदहिया
81 गोआ
82 गोहना
83 गोड़सरिया
84 गौड़
85 गौदहिया
86 घरियार
87 घड़ी कारक
88 चंडसिया/ चंडीसाई
89 चौड़काटे
90 चौगाई
91 चौधरी
92 चौभगा
93 चौबहा
94 चौराई
95 चौरसिया
96 चौसा / चौसाहा
97 चौहत कारक
98 चौहत वाड़ी/चौहत कार्ट
99 चौसर कारक
100 चैहान/ चौहान
101 छटकसी
102 छतहार/ छहतार
103 छतहा
104 जागमुण्डा
105 जगमनरा
106 जगतपुर
107 जबई
108 जबराही/जगराही
109 जदु पारे/ जड़पाड़े
110 जमुआँव
111 जिबिया
112 जैतपुर
113 जौनपुर
114 डुमरांव
115 डोम कटार
116 ढकाइच/ढकाइस
117 तमगाई
118 तबकहीला
119 तारतर के वीरपुरी
120 तिरखनदोन
121 दगाई
122 दहिआंव
123 दिगरिया
124 दिघरिया
125 दुलौर
126 घड़कना
127 घड़सरा
128 घड़सरिया
129 घघरक
130 घघरी
131 घनखरिया
132 घरौल/ घरौली
133 घाघरगांई
134 घुरखेलिया
135 घुरफंदा
136 धोबहा
137 धोबबल
138 धोबउरा
139 नेकून
140 नबौरा
141 नायनपुर
142 नायक
143 ननुआंव
144 नुनहर/ नोनहर
145 नुनखारिया
146 नुनेसर
147 निसहर
148 नौआ
149 नोनेआ
150 नौलखिया
151 पखनाहा
152 पड़रिया
153 परसिया/परिसिवा
154 पड़खना
155 परसौवा
156 परुआर
157 पटेल/ पातेर
158 पारसी
159 परिहारवारी
160 पवाई
161 पीपरपांती
162 पतौनी
163 पम्मरिया/ पम्मार
164 पनिहा चौर
165 पंथपाकर
166 पनिखरहां
167 पुरुरोख
168 पुरवे
169 पोखराहा
170 पंचनरिया/पंचनदिया
171 पौलाहा
172 फरकिया
173 बकनाहा
174 बड़बाईक
175 बवसही
176 बसहारा
177 बनरहा
178 बनखंडा
179 बनारस/बनारसी-बनरसिया
180 बरनिया
181 बटनिया
182 बक्सर
183 बानपुर
184 बारसाठी
185 बलखरहा
186 बसुहारी
187 बसुन्धर
188 बरुआर/बरियार
189 बरेरिया
190 वनराज
191 बथुआहा
192 बतीसी
193 बंडेर
194 बाड़ी
195 बिहिया
196 बिरिसिया
197 बिलासपुर
198 बुजुरुग
199 बैरिया
200 बैलहा
201 बैक हिसुन
202 बोकाही
203 भदवरिया
204 भरौली
205 भुटानी
206 भदेयां
207 भोजपुर / भोजपुरिया
208 मगाही
209 मेहता
210 मनेर/ मनेरिया
211 महथा
212 मझवारी
213 महारी
214 महनार/महनारी
215 मेहरा
216 मगरा / मगर
217 मलारी
218 मगरहम
219 मल्लिक/मालिक
220 मुलमहाली
221 महरौली
222 महंथ
223 मझौरा
224 महुआरी
225 महुँआइस/महेशिया
226 मंडरे
227 मंगफ/माँगफा
228 मंगरैया
229 मांगी
230 मालिक
231 मायेर
232 मासुढी
233 मुआंव
234 मुसरा पंचायन
235 मुंगरा गाई
236 मंजवानिया
237 मैरवां
238 जोधपुर / योधपुर
239 राजतपुर
240 रानजीयर
241 रणपीयर
242 रंगपीययर
243 रसूल
244 रायपूत
245 राम किसान
246 रामजाने
247 राना बाना
248 रेड बनिया
249 लकटाहा
250 लखनसरिया
251 लखनेसर
252 लमगोड़िया
253 लडम्बा
254 लैया
255 लैआ
256 बोकाही
257 सजलनियां
258 सिरगिटिया/ शेरघाटी
259 सकरवार
260 सुबर्धन
261 सोहनपुर
262 सनहा
263 सहन
264 सहाल
265 सहाना
266 सहोदर
267 शनिचरा
268 सागरकांट
269 सागर
270 सागरधर
271 सारन
272 साहुल
273 सिवर्धन
274 सिरिसिया
275 सिमकुरिया
276 सिंह
277 सुगबिया/सजलनिया
278 सुगन्धर
279 सेहरा
280 सेठ/ श्रेष्ठ
281 सेहरी
282 सोनवल
283 सोनहर
284 सोहन
285 सोनया
286 सोनेकांट
287 सोनवार
288 सोने कारक
289 सौराई/सवराई
290 शिवरैया
291 हरियार/हरियारा
292 हरनाटांर
293 हरखंडा
294 हरौली
295 हलनुआ
296 हरिद्वार
297 हितौली
298 हिरमनि
299 हिरौनी
300 हिरौंधा
301 हिरौधी
302 हिनानासू
303 हीरमनिया
304 हैसही
305 पवई के किसान
306 पुरवे के किसान
307 बेरूत के किसान
308 कय के किसान
309 कटेसर के पांडे
310 कटारी के पांडे
311 खलेसर (खरेसर)के पांडे
312 गजका के पांडे
313 चौगाई के पांडे
314 जवेरिया के पांडे
315 टकेसर के पांडे
316 दिघवारिया के पांडे
317 पढ़ला के पांडे
318 पालमुआ के पांडे
319 पहला के पांडे
320 पथला के पांडे
321 पार के पांडे
322 बड़हिया के पांडे
323 विकट पार के पांडे
324 बेरूत के पांडे
325 भुजार के पांडे
326 हजारी के पांडे
327 हरद्वार के पांडे
328 कुसुमा के महाराय
329 बिल्लौरी के महाराय
330 बेलवाटिया के महाराय
331 अमथुआ के महता
332 उग्रसेनिया के महता
333 कवलेसर के महता
334 कौसा / कौस के महता
335 कमलसर के महता
336 कौसार के महता
337 गाड़सरियाके महता
338 चौगाई के महता
339 जुगवालिया के महता
340 योगिया के महता
341 बरोहा के महता
342 बथुआ के महता
343 बडरहा के महता
344 वारसन के महता
345 सुगलिया के महता
346 भरथुआ के महता
347 हुलसर के महता
348 बेरूत के महता
349 खडेंसर के रावत (रायपूत)
350 खजुराहो के रावत (रायपूत)
351 खजौलिया के रावत (रायपूत)
352 खरकना के रावत (रायपूत)
353 गलपत के रावत (रायपूत)
354 चाढ़े(चाड़) के रावत (रायपूत)
355 चकमक के रावत (रायपूत)
356 दाता के रावत (रायपूत)
357 दौलत के रावत (रायपूत)
358 बगही के रावत (रायपूत)
359 बड़हरिया के रावत (रायपूत)
360 मसाढे के रावत (रायपूत)

#MAHARAJA AGRASEN - अग्रवाल राजवंश की ज्योति : #सम्राट अग्रसेन

#MAHARAJA AGRASEN - अग्रवाल राजवंश की ज्योति : #सम्राट अग्रसेन

भारतीय इतिहास के अनेक अध्याय अभी अलिखित हैं और लिखित के भी अनेक पृष्ठ अपठित।भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के उत्थान में जिन महापुरुषों ने अपना योगदान दिया इतिहास के पन्नो में उनका नाम तो स्वर्णाक्षरों से अंकित है किंतु उनमे से कुछ ऐसे भी हैं जिनके बारे में विस्तार से बताने में इतिहासकार प्रायः मौन हो जाते हैं। ऐसे ही महापुरुषों में एक हैं अग्रोहा नरेश सम्राट अग्रसेन। अग्रवाल एवं राजवंशी समुदाय के आदि पुरुष साम्राट अग्रसेन उन चक्रवती राजाओं में से एक हैं, जिन्होंने अपने क्षत्रियोचित पराक्रम से ना केवल एक विशाल गणराज्य की स्थापना की बरन अपने विजित विशाल साम्राज्य को " एक मुद्रा- एक ईट" जैसे अभूतपूर्व समाजवादी सिद्धांत द्वारा एक सूत्र में पिरोकर समाजवाद की एक आदर्श मिशाल प्रस्तुत की। एक ऐसा समाजवादी सिद्धांत जो न पहले कहीं सुना गया था न बाद में किसी राज्य में दिखाई पड़ा। सच्चे अर्थों में सम्राट अग्रसेन समाजवाद के जनक थे।


सम्राट अग्रसेन के जन्म, वंश एवं विवाह को लेकर इतिहासकारों में काफी मत भिन्नताएं हैं पर विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों, उत्खनन से प्राप्त मुद्राओं , शिलालेखों, पौराणिक आख्यानों , जनसमुदाय में प्रचलित किवदंतियों , भाट चरणों की विरुदवालियों आदि के आधार पर कुछ तथ्य स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आये है जिनके अनुसार ये सरस्वती नदी के किनारे आबाद वैदिक कालीन "आग्रेय-गण" के राजा थे, जो सूर्यवंशी क्षत्रियों की एक शाखा थी।यह काल सिंधु-सरस्वती सभ्यता का उद्गम काल था। नगरीय सभ्यता का प्रसार हो रहा था।धीरे धीरे राजतंत्रात्मक शाशन पद्धति प्रचलन में आ रही थी किन्तु यह अभी शैशवावस्था में थी । बड़े नगरों का विकाश शुरू हो चूका था। गणों के बीच साम्राज्यवादी विस्तार की होड़ मची हुई थी। बड़े गण छोटे गणों को जीत कर राजतन्त्र में परिवर्तित हो रहे थे। पहले राजा का चुनाव होता था किंतु राजतन्त्र में राजपद वंशानुगत होने लगा। महाराजा अग्रसेन ने भी अपने आसपास आबाद सत्रह अन्य गणों को जीत कर एक सशक्त गणराज्य की नींव रखी जो आगे चलकर इनके नाम पर आग्रेय गणराज्य कहलाया। महाराजा अग्रसेन ने भी राजतंत्रात्मक शासन पद्धति को अपनाया किन्तु राजतन्त्र में गणतंत्र का एक नया प्रयोग किया। इन्होंने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित कर जीते हुवे गणों की आतंरिक संरचना में कोई परिवर्तन ना करते हुवे उस गण के मुखिया को उस गण का अधिपति राजा बना दिया। इस प्रकार आग्रेय गणराज्य 18 गणों का एक विशाल राज्य बन गया जिसके प्रत्येक गण का अधिपति उसी कबीले का मुखिया था और केंद्रीय शक्ति महाराजा अग्रसेन के हाथों में थी। महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य के बीचोंबीच एक अत्यंत रमणीय एवं वैभवशाली "अग्रोदक" नगर की स्थापना कर उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। अग्रोदक राज्य की कुलदेवी महालक्ष्मी थीं। महाराज अग्रसेन ने राज्य के मध्य में एक भव्य श्रीपीठ की स्थापना करवाई थी। जिसमें वेद पारंगत ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रों से हरिप्रिया लक्ष्मी की स्तुति होती थी। राज्य की खुशहाली के लिए इन्होंने 18 राजसू यज्ञ किये जिनमे 17 तो पूर्ण हो गए किन्तु 18वें में पशुबलि से इन्हें घृणा हो गयी। वह यज्ञ अधूरा रह गया। इन्होंने अपने राज्य में तत्काल पशुवध पर रोक लगा दी और पशुपक्षियों पर होने वाली हिंसा को राज अपराध घोसित कर दिया इसके साथ ही यह घोषणा भी की कि सम्पूर्ण आग्रेय गण वाशी एक कुटुंब की तरह रहेंगे और प्रत्येक व्यक्ति अपने पितृ पक्ष- मातृ पक्ष के गण को छोड़कर शेष अन्य गणों के मध्य ही वैवाहिक संबंध कायम करेगा ताकि रक्त वर्ण की शुद्धि बनी रहे। इन्होंने अपने राज्य में "एक मुद्रा- एक ईंट " की रीति चलायी जिसमे राजधानी अग्रोदक नगरी में आकर बसने वाले प्रत्येक गरीब परिवार को संपूर्ण अग्रोदक वाशी एक एक मुद्रा और एक एक ईंट देंगे ताकि वह अपना निवास बना कर अपना व्यवसाय करने लगे। सहकारिता की यह भावना पुरे विश्व में कहीं देखने सुनने को नही मिलती। यही कारण है कि अग्रोदक की गिनती उस उस वक्त के प्रमुख बड़े व्यापारिक नगरों में होती थी। इस प्रकार महाराजा अग्रसेन समाजवाद के पुरोधा थे जिन्होंने जनमानस में सहकारिता की भावना विकसित की और देश को समाजवाद की राह दिखायी। पौराणिक उपाख्यानों के अनुसार इनका जन्म अश्वनी शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था और इनका विवाह नागवंशी राजा महीधर की कन्या राजकुमारी माधवी के साथ हुआ था। ईसापूर्व की चौथी शताब्दी तक आग्रेय गण एक शक्तिशाली गणराज्य रहा जिस पर अग्रवालों का एकक्षत्र साम्राज्य रहा। ईसापूर्व की छठी शताब्दी आते आते सभी जनपद व गणराज्य साम्राज्यवादी विस्तार में लग गये। बड़े जनपद अपनी सीमाओं का विस्तार कर महाजनपद बन गये।पूर्ववर्ती काल में पांचाल एवं कुरु जनपद ने एवं परवर्ती काल में मगध जनपद ने सबसे अधिक साम्राज्यवादी विस्तार किया। महाभारत युद्ध के पूर्व कौरवों के दिग्विजय प्रसंग में राजा कर्ण द्वारा इस राज्य को नीति पूर्वक अपने अधीन करने का उल्लेख महाभारत महाकाव्य के वनपर्व में आया है। महाभारत युद्ध के बाद हुयी राजनैतिक उथल पुथल से महाजनपदों ने मांडलिक राज्यों का रूप ले लिया एवं अनेक अन्य छोटे छोटे नये राज्यों का भी उदय हुआ। ये राज्य आपस में लड़ते रहते थे। आग्रेय गण को भी लगातार आक्रमणों का सामना करना पड़ रहा था जिससे उसकी आतंरिक शक्ति दिन प्रति दिन कमजोर होती जा रही थी और अंततः इसा पूर्व 326 में हुवे यूनानी सम्राट सिकंदर के आक्रमणों को अग्रेय गण नही झेल पाया। हालाँकि अग्रेय वीरों ने सिकंदर का डटकर सामना किया किन्तु यवनों की विशाल सेना के आगे ये ज्यादा देर तक टिक न सके और अंततः अग्रोदक नगर पर सिकंदर का अधिकार हो गया। यूनानी इतिहास्कार लिखते हैं कि विश्वविजय का सपना ले के निकले सम्राट अलेक्जेंडर ( सिकंदर) को असकेनिय/ अग्लोनिकाय ( अग्रश्रेणी/ अग्रेय गण) के लोगों ने कड़ी टक्कर दी। उनके साथ हुवे युद्ध में सिकंदर घायल भी हुआ पर कूटनीति का प्रयोग कर अंततः सिकंदर की सेना विजयी हो गयी। सिकंदर की गुस्साई सेना ने इनके प्रमुख नगर अग्रोदक( अग्रोहा) को आग के हवाले कर दिया था। इस प्रकार अग्रेय गणराज्य का अस्तित्व हमेशा के लिए समाप्त हो गया। वहां से निष्क्रमण कर ये अग्रेयवंशी भारत के विभिन्न भागों में फैल गये और आजीविका के लिए तलवार त्याग कर तराजू पकड़ लिये। ये जहाँ भी जाते अपना परिचय अग्रेय वाले के रूप में देते। यही अग्रेयवाले शब्द भाषाभेद एवं स्थानभेद से "अग्रवाले" होता हुवा "अग्रवाल" पड़ गया। वहीँ इनकी एक शाखा सामंत राजाओं के रूप में बड़े साम्राज्यों के अधीन छोटे छोटे भूभाग पर शासन करती रही और आगे चलकर " गुप्त साम्राज्य" जैसा बड़ा राज्य स्थापित किया। ईसवीं की छठी शताब्दी आते आते इनके राज्याधीन प्रान्तों पर जाटों एवं राजपूतों का अधिकार हो गया और अग्रवाल जाति पूरी तरह से राज्यच्युत हो गयी। अठारह कुलों का यह समूह आज संपूर्ण विश्व में " अग्रवाल" नाम से जाना जाता है। ये अठारह कुल आज इनके गोत्र कहलाते है। राज्य छिन जाने पर राजपूत काल में अग्रवाल पूरी तरह से व्यापार व व्यवसाय पर आश्रित हो गए और दसवीं शताब्दी आने तक इनकी गणना क्षत्रिय वर्ण होते हुवे भी वणिक जातियों(वैश्य वर्ण या बनियों) के साथ होने लगी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अग्रवाल समुदाय की प्रमुख भूमिका थी। गरमदल के प्रमुख लाल बाल पाल तिगड़ी के लाला लाजपत राय, गांधी युग के भामशाह जमनालाल बजाज, रामजीदास गुड़वाला, हिसार के लाला हुकुमचंद जैन जी का नाम इनमें अग्रणी है। अग्रवाल आज भले ही किसी साम्राज्य के शासक न हो पर इन्हें व्यावसायिक जगत का सम्राट माना जाता है। देश के अधिकांश औद्योगिक समूह इसी समाज के हाथों में है। इसके अतिरिक्त धर्म- संप्रदाय- जाति भावना से ऊपर उठकर समाजसेवा के मामले में भी इस समुदाय का कोई सानी नही है। इनके द्वारा बनवाये हुवे मंदिर एवं धर्मशालाएं देश के कोने कोने में देखने को मिल जाते हैं। हिन्दू धर्म की संजीवनी गीताप्रेस गोरखपुर मारवाड़ी अग्रवालों की देन थी। महाराजा अग्रसेन के सिद्धांत आज भी इस समाज के हर व्यक्ति की रगों में दौड़ते हैं। वैसे महापुरुषों को किसी एक जाति या समाज से बांध कर नही रखा जा सकता वो तो संपूर्ण राष्ट्र की धरोहर होते हैं। ऐसे ही महाराजा अग्रसेन भी संपूण भारतवर्ष की धरोहर हैं। उनके समाजवाद और अहिंसा के सिद्धांत संपूर्ण देशवाशियों के लिए अनुकरणीय हैं।उनके बताये हुवे रास्ते पर चलना ही इन पौराणिक महापुरुष के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

जय अग्रोहा- जय अग्रसेन

Friday, October 3, 2025

TOP RICHEST 100 INDIANS 2025 - १०० में से ६६ महाजन वानिया वैश्य समाज से

TOP RICHEST 100 INDIANS 2025 - १०० में से ६६ महाजन वानिया वैश्य समाज से

एम3एम हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025 के अनुसार, मुकेश अंबानी और उनके परिवार ने गौतम अडानी को पीछे छोड़ते हुए भारत के सबसे अमीर व्यक्ति का खिताब फिर से हासिल कर लिया है। अंबानी 9.55 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ पहले स्थान पर हैं, जबकि अडानी परिवार दूसरे स्थान पर है। रोशनी नादर मल्होत्रा ​​तीसरे स्थान पर रहीं और भारत की सबसे अमीर महिला बनीं।


नवीनतम M3M हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025 के अनुसार, मुकेश अंबानी और उनका परिवार गौतम अडानी को पछाड़कर भारत के सबसे अमीर व्यक्ति का खिताब फिर से हासिल कर लिया है। 9.55 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ, अंबानी इस सूची में पहले स्थान पर हैं, जबकि अडानी परिवार 8.15 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है।

इतिहास रचते हुए, रोशनी नादर मल्होत्रा ​​और उनके परिवार ने 2.84 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है, जिससे भारत की सबसे अमीर महिला के रूप में उनकी स्थिति और मजबूत हुई है। रिपोर्ट में देश के धन परिदृश्य को आकार देने में नए लोगों के बढ़ते प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है।

शीर्ष 100 हुरुन अमीरों की पूरी सूची देखें

रैंक नाम कंपनी संपत्ति (करोड़ रुपये में)

1 मुकेश अंबानी और परिवार रिलायंस इंडस्ट्रीज 9,55,410 करोड़ रुपये
2 गौतम अडानी और परिवार अदानी 8,14,720 करोड़ रुपये
3 रोशनी नादर मल्होत्रा ​​और परिवार एचसीएल 2,84,120 करोड़ रुपये
4 साइरस एस पूनावाला और परिवार सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया 2,46,460 करोड़ रुपये
5 कुमार मंगलम बिड़ला एवं परिवार आदित्य बिड़ला 2,32,850 करोड़ रुपये
6 Niraj Bajaj & family बजाज ऑटो 2,32,680 करोड़ रुपये
7 Dilip Shanghvi सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज 2,30,560 करोड़ रुपये
8 अजीम प्रेमजी और परिवार विप्रो 2,21,250 करोड़ रुपये
9 Gopichand Hinduja & family हिंदुजा 1,85,310 करोड़ रुपये
10 Radhakishan Damani & family एवेन्यू सुपरमार्ट्स 1,82,980 करोड़ रुपये
11 एलएन मित्तल और परिवार आर्सेलर मित्तल 1,75,390 करोड़ रुपये
12 जय चौधरी ज़स्केलर 1,46,470 करोड़ रुपये
13 सज्जन जिंदल और परिवार जेएसडब्ल्यू स्टील 1,43,330 करोड़ रुपये
14 उदय कोटक Kotak Mahindra Bank 1,25,120 करोड़ रुपये
15 राजीव सिंह एवं परिवार डीएलएफ 1,21,200 करोड़ रुपये
16 अनिल अग्रवाल एवं परिवार वेदांत रिसोर्सेज 1,11,400 करोड़ रुपये
17 रवि जयपुरिया एवं परिवार आरजे कॉर्प 1,09,260 करोड़ रुपये
18 विक्रम लाल एवं परिवार आयशर मोटर्स 1,03,820 करोड़ रुपये
19 सुनील मित्तल और परिवार Bharti Airtel 99,300 करोड़ रुपये
20 Mangal Prabhat Lodha & family लोढ़ा डेवलपर्स 93,750 करोड़ रुपये
21 मुरली दिवि और परिवार डिवीज़ लैबोरेटरीज 91,100 करोड़ रुपये
22 रोहिका साइरस मिस्त्री और परिवार शापूरजी पल्लोनजी 88,650 करोड़ रुपये
23 शापूर पल्लोनजी मिस्त्री एवं परिवार शापूरजी पल्लोनजी 88,650 करोड़ रुपये
24 जॉय अलुक्कास जॉय अलुक्कास 88,430 करोड़ रुपये
25 Sri Prakash Lohia इंडोरामा 87,700 करोड़ रुपये
26 नुस्ली वाडिया और परिवार ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज 86,820 करोड़ रुपये
27 वेणु श्रीनिवासन टीवीएस मोटर्स 85,260 करोड़ रुपये
28 पंकज पटेल एवं परिवार ज़ाइडस लाइफसाइंसेज 84,510 करोड़ रुपये
29 विजय चौहान और परिवार पार्ले उत्पाद 74,600 करोड़ रुपये
30 राहुल भाटिया और परिवार इंटरग्लोब एविएशन 71,270 करोड़ रुपये
31 Gopikishan Damani & family एवेन्यू सुपरमार्ट्स 70,670 करोड़ रुपये
32 बेनु गोपाल बांगुर एवं परिवार श्री सीमेंट 70,090 करोड़ रुपये
33 Vivek Kumar Jain गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स 67,800 करोड़ रुपये
34 Satyanarayan Nuwal सोलर इंडस्ट्रीज इंडिया 62,250 करोड़ रुपये
35 सुधीर मेहता और परिवार टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स 62,200 करोड़ रुपये
36 समीर मेहता और परिवार टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स 62,200 करोड़ रुपये
37 राजन भारती मित्तल एवं परिवार Bharti Airtel 62,060 करोड़ रुपये
38 राकेश भारती मित्तल एवं परिवार Bharti Airtel 62,060 करोड़ रुपये
39 संजीव गोयनका एवं परिवार सीईएससी 58,730 करोड़ रुपये
40 Vivek Chaand Sehgal & family संवर्धन मदरसन इंटरनेशनल 57,060 करोड़ रुपये
41 आदि गोदरेज और परिवार गोदरेज कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 55,580 करोड़ रुपये
42 अभयकुमार फिरोदिया एवं परिवार फोर्स मोटर्स 55,270 करोड़ रुपये
43 Shahid Bilakhia & family मेरिल लाइफ साइंस 55,130 करोड़ रुपये
44 हर्ष मारीवाला एवं परिवार मैरिको 53,990 करोड़ रुपये
45 आनंद महिंद्रा और परिवार Mahindra & Mahindra 51,930 करोड़ रुपये
46 मैं अश्विन दानी और परिवार हूँ एशियन पेंट्स 51,450 करोड़ रुपये
47 Rekha Rakesh Jhunjhunwala & family दुर्लभ उद्यम 50,480 करोड़ रुपये
48 Jayshree Ullal अरिस्टा नेटवर्क्स 50,170 करोड़ रुपये
49 Chandru Raheja & family के रहेजा 49,360 करोड़ रुपये
50 नादिर गोदरेज और परिवार गोदरेज कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 49,000 करोड़ रुपये
51 Radha Vembu जोहो 46,580 करोड़ रुपये
52 वेम्बु सेकर जोहो 46,580 करोड़ रुपये
53 यूसुफ अली एम.ए. लुलु 46,300 करोड़ रुपये
54 करसनभाई पटेल और परिवार बर्मा 45,900 करोड़ रुपये
55 मंजू डी गुप्ता और परिवार वृक 45,270 करोड़ रुपये
56 Sajjan Kumar Patwari & family Rashmi Metaliks 44,760 करोड़ रुपये
57 Acharya Balkrishna Patanjali Ayurved 43,640 करोड़ रुपये
58 विकास ओबेरॉय ओबेरॉय रियल्टी 42,960 करोड़ रुपये
59 राकेश गंगवाल एवं परिवार इंटरग्लोब एविएशन 42,790 करोड़ रुपये
60 पी. पिची रेड्डी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर्स 42,650 करोड़ रुपये
61 मनोहर लाल अग्रवाल एवं परिवार हल्दीराम स्नैक्स 42,260 करोड़ रुपये
62 पीवी कृष्णा रेड्डी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर्स 41,810 करोड़ रुपये
63 बसंत बंसल एवं परिवार एम3एम इंडिया 41,140 करोड़ रुपये
64 नितिन कामथ और परिवार Zerodha 40,020 करोड़ रुपये
65 Falguni Nayar & family जल्दी करो 39,810 करोड़ रुपये
66 बी पार्थसारधि रेड्डी और परिवार हेटेरो लैब्स 39,030 करोड़ रुपये
67 Madhusudhan Agarwal & family हल्दीराम स्नैक्स 38,650 करोड़ रुपये
68 कैलाशचंद्र नुवाल एवं परिवार सोलर इंडस्ट्रीज इंडिया 38,630 करोड़ रुपये
69 निर्मल कुमार मिंडा एवं परिवार एक मन 38,300 करोड़ रुपये
70 अनुराग जैन एवं परिवार एंड्योरेंस टेक्नोलॉजीज 38,040 करोड़ रुपये
71 संजय दांगी और अल्पना संजय दांगी ऑथम इन्फ्रास्ट्रक्चर 37,800 करोड़ रुपये
72 शिवकिशन मूलचंद अग्रवाल एवं परिवार हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल 37,750 करोड़ रुपये
73 Romesh T Wadhwani सिम्फनी प्रौद्योगिकी 37,200 करोड़ रुपये
74 अनिल राय गुप्ता एवं परिवार हैवेल्स इंडिया 37,150 करोड़ रुपये
75 सनी वर्की जेम्स एजुकेशन 37,070 करोड़ रुपये
76 नवीन जिंदल और परिवार जिंदल स्टील एंड पावर 36,190 करोड़ रुपये
77 भूषण दुआ एवं परिवार सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज 35,790 करोड़ रुपये
78 Arun Bharat Ram एसआरएफ केमिकल्स 35,760 करोड़ रुपये
79 सुनील वाचानी डिक्सन टेक्नोलॉजीज 35,570 करोड़ रुपये
80 उमा देवी प्रसाद एवं परिवार एरिस्टो फार्मास्यूटिकल्स 35,350 करोड़ रुपये
81 प्रेम वत्स फेयरफैक्स फाइनेंशियल होल्डिंग्स 35,270 करोड़ रुपये
82 Madhukar Parekh & family पिडिलाइट इंडस्ट्रीज 35,210 करोड़ रुपये
83 आदित्य खेमका और परिवार आदित्य इन्फोटेक 35,140 करोड़ रुपये
84 स्मिता वी कृष्णा और परिवार गोदरेज कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 35,100 करोड़ रुपये
85 Ranjan Pai मणिपाल शिक्षा एवं चिकित्सा 34,700 करोड़ रुपये
86 जमशेद गोदरेज एवं परिवार गोदरेज कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 34,220 करोड़ रुपये
87 Rajan Raheja & family एक्साइड इंडस्ट्रीज 33,950 करोड़ रुपये
88 रिशाद नौरोजी और परिवार गोदरेज कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 33,700 करोड़ रुपये
89 प्रताप रेड्डी और परिवार अपोलो हॉस्पिटल्स एंटरप्राइज 33,160 करोड़ रुपये
90 टीएस कल्याणरमन और परिवार कल्याण ज्वैलर्स इंडिया 32,670 करोड़ रुपये
91 निरंजन हीरानंदानी निडार 32,500 करोड़ रुपये
92 एनआर नारायण मूर्ति और परिवार इन्फोसिस 32,150 करोड़ रुपये
93 राजा बागमाने बैगमैन डेवलपर्स 31,510 करोड़ रुपये
94 जीएम राव और परिवार जीएमआर 31,340 करोड़ रुपये
95 Pritviraj Jindal & family जेएसडब्ल्यू स्टील 31,000 करोड़ रुपये
96 एस गोपालकृष्णन एवं परिवार इन्फोसिस 30,740 करोड़ रुपये
97 Ramesh Juneja & family मैनकाइंड फार्मा 30,680 करोड़ रुपये
98 दिव्यांक तुराखिया एआई.टेक 30,680 करोड़ रुपये
99 रफीक अब्दुल मलिक और परिवार मेट्रो ब्रांड्स 30,440 करोड़ रुपये
100 अरविंदकुमार पोद्दार एवं परिवार Balkrishna Industries 30,190 करोड़ रुपये

Mahajan Seth Lakshmi Chandra of Mathura

Mahajan Seth Lakshmi Chandra of Mathura

मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र अपने समय के अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे महाजन सेठ मणिराम के ज्येष्ठ पुत्र थे। फतेहचंद और मणिराम के पिता श्री जिनदास जयपुर राज्य के मालपुरा गाँव में रहने वाले साधारण वर्ग के खंडेलवाल जैन वैश्य महाजन  थे। फतेहचंद और मणिराम बेहतर आजीविका की तलाश में जयपुर गए थे। मणिराम ने जयपुर छोड़कर अन्यत्र व्यापार में भाग्य आजमाया। रास्ते में एक धर्मशाला में उन्होंने एक साधारण से दिखने वाले बीमार व्यक्ति की सेवा की और उसकी जान बचाई। वे कोई और नहीं, ग्वालियर राज्य के धनी गुजराती महाजन सेठ राधामोहन पारीख थे, जिन पर वहाँ के शासक की विशेष कृपा थी। उनके स्वार्थी सेवकों ने उनका सारा कीमती सामान और संपत्ति छीनकर उन्हें धर्मशाला में ही छोड़ दिया था। उनकी सेवाओं से अत्यंत कृतज्ञ और प्रसन्न होकर सेठ राधामोहन मणिराम को अपने साथ ग्वालियर ले गए और उन्हें कपड़े के व्यवसाय में स्थापित कर दिया। ग्वालियर के शासक की पत्नी महारानी बैजाबाई का सेठ पारीख पर गहरा आदर और विश्वास था। उन्होंने उन्हें मथुरा में एक विशाल मंदिर बनवाने का आदेश दिया। मणिराम के साथ सेठ पारीख वहीं बस गए और बैंकिंग का व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने व्यापारिक कार्य मणिराम को सौंप दिया और स्वयं धार्मिक जीवन व्यतीत करने लगे। महारानी की इच्छानुसार सेठ मणिराम ने मथुरा में प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण कराया। जैन होने के कारण उन्होंने मथुरा के निकट चौरासी में प्रसिद्ध जंबूस्वामी जैन मंदिर का भी निर्माण कराया। 1825 में उन्होंने छैढ़ाला की रचना करने वाले पं. दौलतराम को अपने यहाँ रहने के लिए आमंत्रित किया। निःसंतान होने पर सेठ राधामोहन ने सेठ मणिराम के ज्येष्ठ पुत्र लक्ष्मीचन्द्र जैन को गोद ले लिया। सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने एक बड़े व्यापारी और धार्मिक प्रवृत्ति के प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में खूब नाम कमाया। उनके समय में परिवार का नाम और प्रतिष्ठा चरम पर थी। उनकी हुण्डियों की दूर-दूर तक साख थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़े अंग्रेज अधिकारी भी उनका बड़ा सम्मान करते थे। वे साहसी, निर्भीक और स्वतंत्र स्वभाव के थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ एक ओर उन्होंने अंग्रेजों की सहायता की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने मथुरा की जनता को अंग्रेजों और विद्रोही सेनाओं के अत्याचार और अन्याय से बचाया। कुछ समय तक उन्होंने मथुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर लगभग नियंत्रण कर लिया था। 1857 के बाद वे अंग्रेजों और मथुरा की जनता, दोनों के बीच और अधिक लोकप्रिय हो गए। सेठ लक्ष्मीचंद्र जैन की अपने धर्म में गहरी आस्था थी। उनके भाई राधा कृष्ण और गोविंद दास वैष्णव संतों के भक्त थे। जब सेठ लक्ष्मीचंद्र एक विशाल संघ के साथ जैन तीर्थस्थलों की यात्रा पर निकले, तो उनकी अनुपस्थिति में उनके भाइयों ने वृंदावन में प्रसिद्ध रंगजी मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ किया। स्वदेश लौटने पर धार्मिक रूप से सहिष्णु सेठ लक्ष्मीचंद्र ने अपने भाइयों की सहायता की और अपनी देखरेख में मंदिर का निर्माण पूरा कराया। उन्होंने इस मंदिर और मथुरा स्थित द्वारकाधीश मंदिर के रखरखाव के लिए जागीरें प्रदान की थीं। उनके पुत्र सेठ रघुनाथ दास एक धार्मिक प्रवृत्ति के प्रमुख व्यवसायी थे। उन्होंने चौरासी स्थित जम्बूस्वामी मंदिर में ग्वालियर से लाकर भगवान अजितनाथ की एक भव्य मूर्ति स्थापित की थी।उन्होंने वहां 8 दिवसीय कार्तिकी मेला और रथ जुलूस भी शुरू किया। निःसंतान, सेठ रघुनाथ दास ने 1853 में पैदा हुए लक्ष्मी दास को गोद लिया था, जो उनके चाचा राधा कृष्ण के पुत्र थे। वह अपने समय के जैन समाज के एक प्रमुख नेता थे। उन्होंने 1884 में अखिल भारतीय दिग जैन महासभा की स्थापना की। उन्होंने मथुरा में इसके कई सत्र आयोजित किए और उन सम्मेलनों और कार्तिकी मेले में एक उदार मेजबान थे। उनके सक्रिय प्रयासों से महासभा ने चौरासी में जैन महाविद्यालय की स्थापना की थी।

अंग्रेजी सरकार ने उन्हें राजा और सी.आई.ई. की उपाधि से सम्मानित किया था। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन मथुरा में उनके निजी अतिथि रहे थे। जयपुर, भरतपुर, ग्वालियर, धौलपुर और रामपुर आदि राज्यों के शासकों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। अपने उदार और मददगार स्वभाव तथा ज़रूरतमंदों व गरीबों के प्रति दयालु हृदय के कारण वे जनता के बीच बहुत लोकप्रिय थे। उन्होंने बहुत ही शालीन जीवन जिया।

बाद में कलकत्ता कोठी में अपने लेखाकार के नासमझी भरे कदमों और अंग्रेज अफसरों की धूर्त नीतियों के कारण उन्हें व्यापार में भारी नुकसान उठाना पड़ा। 1900 में 47 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।