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Friday, June 22, 2012

महेश यानि शंकर का समुदाय है माहेश्वरी

पौराणिक कथा अनुसार राजस्थान के खण्डेला राज्य में राजपूत राजा खण्डेलसेन शासन करता था। वह और उसकी दो रानियों सूर्यकुंवर और इंद्र कुंवर की कोई संतान न थी। तब नि:संतान होने से दु:खी राजा को महर्षि याज्ञवल्क्य ने शिव आराधना करने को कहा। शिवकृपा से राजा को पुत्र प्राप्ति हुई। जिसका नाम सुजनसेन रखा गया।

सुजनसेन के बारे में राज पुरोहितों ने भविष्यवाणी की कि यह बहुत शक्तिशाली और चक्रवर्ती होगा। किंतु इसके जीवन में एक छोटी सी घटना दु:ख का कारण बनेगी। किंतु उस घटना का अंत बहुत सुखद होगा।

एक बार राजा सुजनसेन जंगल में शिकार के दौरान अपने ७२ सैनिकों के साथ रास्ता भटक गए और भूख से पीडि़त होने लगे। वह भटकते हुए एक आश्रम के करीब पहुंचे। वहां कुछ ऋषि शिव यज्ञ कर रहे थे। उन्होंने भूखे और प्यासे होने से आश्रम में जाकर यज्ञ के लिए बने प्रसाद को खा लिया, जल भी पी लिया, यहां तक कि अपने शिकार में उपयोग किए गए गंदे हथियारों को भी उस सरोवर में धो लिया। जिसका जल यज्ञ के लिए उपयोग में लिया जाता था। उनके इस तरह के कार्यों से ऋषियों का यज्ञ और तपस्या भंग हो गई। जिससे ऋषियों ने क्रोधित होकर राजा सुजनसेन और ७२ सैनिकों को पत्थर बन जाने का शाप दिया।

राजा और सैनिकों के घर न लौटने पर उनकी पत्नीयां महर्षि जाबाली के पास गई। महर्षि ने सारी घटना बताई और शाप से मुक्ति के लिए उसी सरोवर के पास जाकर शिव आराधना करने का उपाय बताया। रानी और सैनिकों की शिव आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और पार्वती प्रगट हुए। उन्होनें राजा और सैनिकों से कहा कि पापकर्मों, शक्ति के गलत उपयोग और देव अपराध के कारण तुम्हारा यह हाल हुआ।

तुम्हारी पत्नियों की आराधना से प्रसन्न होकर मैं तुम सभी को शाप मुक्त कर नया जीवन देता हूं। लेकिन अब से तुम क्षत्रिय धर्म और हिंसक वृत्ति छोड़कर वैश्य धर्म और कर्म से जीवन व्यतीत करोगे। तुम सभी अब मेरे नाम यानि माहेश्वरी नाम से पहचाने जाओगे।

इससे राजा और सैनिक तो वैश्य बन गए। किंतु रानी और सैनिक पत्नी क्षत्रिय ही रहीं। इस धर्म संकट से मुक्ति का उपाय माता पार्वती ने बताया। उन्होंने राजा, रानी और सैनिक पत्नियों से कहा कि वह सभी अपनी-अपनी पत्नियों के साथ गठबंधन कर मेरे चार फेरे लगाएं। इससे रानी और सैनिकों की पत्नियां भी वैश्य धर्म के योग्य हो जाएंगी। इसलिए आज भी माहेश्वरी समाज के विवाह में चार फेरे लेने की परंपरा है।इस प्रकार शंकर और पार्वती की कृपा से माहेश्वरी समुदाय और उसके ७२ उप कुलों का उत्त्पत्ति युधिष्ठिर संवत के नवें वर्ष में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के नवें दिन मानी जाती है।


साभार : दैनिक भास्कर

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