मां के कहने से ब्याज पर लिए 50,000 रुपये और शुरू किया बिजनेस, आज 60 करोड़ का टर्नओवर
आरके अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, नेट प्लाट प्राइवेट लिमिटेड
हर सफलता के पीछे एक अद्भुत कहानी होती है। कानपुर शहर के उद्योगपति आरके अग्रवाल की सफलता की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। साधारण से नौकरी पेशा परिवार में जन्मे आरके अग्रवाल की मां की इच्छा थी कि उनका बेटा उद्योगपति बने। अनगिनत संघर्षों को पछाड़ते हुए आखिरकार आरके अग्रवाल ने ऐसा कर दिखाया। आज उनकी शहर में पांच औद्योगिक इकाइयां हैं। कई देशों में इनके उत्पाद निर्यात होते हैं। 60 हजार रुपये से शुरू किया काम आज 60 करोड़ के सालाना टर्नओवर में तब्दील कर दिया है। तिलक नगर निवासी आरके अग्रवाल के पिता दिवंगत रूप किशोर अग्रवाल न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में थे। चार बेटों का परिवार और एक कमाने वाला। शुरुआती जीवन अभावों में बीता। किसी तरह उन्होंने आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और बंगलुरू की एक कंपनी में नौकरी करने लगे। बेटे का नौकरी करना उनकी मां कमला अग्रवाल को पसंद नहीं आया।
मां चाहती थीं कि उनकी तरह उनके बेटे के परिवार को हर महीने वेतन का इंतजार न करना पड़े। आखिरकार मां ने एक दिन कह दिया, बेटा नौकरी नहीं करनी। तुम्हें उद्योगपति बनना है। मां के सपने को पूरा करने के लिए आरके अग्रवाल ने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने बताया कि वेतन से बचे 10,000 रुपये और पिता से ब्याज पर लिए 50,000 रुपये से अपनी स्किल वाला उद्योग स्थापित किया। वर्ष 1978 में पनकी में किराये पर बिल्डिंग ली। रिसर्च इकाइयों के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट बनाने की फैक्ट्री स्थापित की।
यहीं से असली संघर्ष शुरू किया। विभिन्न तरह के लाइसेंस आदि लेना बड़ा मुश्किल था। आखिरकार इस व्यवसाय में बड़ी सफलता नहीं मिली। आठ साल बाद इसे बंद कर दिया। वर्ष 1986 में प्लास्टिक और पॉलीयूरेटीन के व्यवसाय में कदम रखा। ऑटो मोबाइल कंपोनेट बनाने लगे। यह काम चल निकला। देखते देखते टाटा मोटर, स्कॉर्ट्स, सोनालिक ट्रैक्टर जैसी कंपनियां इनके उत्पादों की ग्राहक बन गईं।
आरके अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, नेट प्लाट प्राइवेट लिमिटेड
वर्तमान में ये देश की कई बड़ी ऑटो मोबाइल कंपनियों के लिए उत्पाद तैयार करते हैं। काम इतना बढ़ा कि पनकी में ही एक के बाद एक पांच उत्पादक इकाइयां स्थापित कीं। एक फैक्ट्री रूद्रपुर में भी खोली। उनका सालाना टर्नओवर 60 करोड़ रुपये से अधिक का हो गया है।
कुल उत्पादन का 40 फीसदी निर्यात
आरके अग्रवाल बताते हैं कि उनके कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा निर्यात होता है। इंग्लैंड, स्लोवेनिया, आयरलैंड में उत्पाद जाते हैं। वर्ष 2010 में राष्ट्रपति अवार्ड और 2012 व 2014 में राज्य सरकार से एक्सपोर्ट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। दिल्ली में चल रहीं लो फ्लोर बसों में उन्हीं की बनाई हुई सीटें लगी हैं। अभी हाल ही में उन्होेंने प्लास्टिक पॉली प्रोपलिन के दाने की ट्रेडिंग भी शुरू की है।
युवाओं को संदेश
युवा नौकरी के पीछे न भागें। यदि दिमाग में कोई बिजनेस आइडिया है तो उस पर काम करें। लगन और मेहनत से किए गए काम में सफलता मिलती है। एक बात ध्यान रखें जो भी उत्पाद बेचें या बनाएं उससे एक दिन में कमाने की न सोचें। व्यवसाय दीर्घकालीन लाभ के लिए होता है।
साभार:प्रदीप अवस्थी , अमर उजाला, कानपुर
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